#कृष्ण जन्म कब होगा
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी : कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है
यह त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी या भाद्रपद महीने के आठवें दिन पड़ता है। इसे गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है।
ऐसा मानते हैं कि , भगवान कृष्ण का जन्म वर्तमान समय के मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनका जन्म एक कालकोठरी में और कृष्ण पक्ष की अंधियारी आधी रात को हुआ था ।
मान्यताओं के अनुसार, कंस मथुरा का शासक था। उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव जी को कारागार में डालकर रखा था क्योंकि उसे यह श्राप मिला था कि देवकी की कोख से उत्पन्न होने वाली आठवीं सन्तान एक पुत्र रूप में होगी जो कंस का वध करेगी। अतः आठवें पुत्र के इंतजार में उसने जेल में ही उत्पन्न देवकी के सात सन्तानों की हत्या कर दी थी। दैवीय लीला से जब आठवें पुत्र श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो योगमाया ने वहां उपस्थित सभी पहरेदारों को गहन निद्रा में डाल दि��ा और वासुदेव जी को निर्देश दिया कि अभी ही वह कारागार से बाहर निकल कर पुत्र को यमुना जी के रास्ते से ले जाकर गोकुल पहुंचा दें।
वासुदेव व देवकी को सारी बात समझ में आ चुकी थी कि यही प्रभु अवतरण हैं जिनके हाथों कंस का वध होगा। वैसा ही सब कुछ हुआ। समय आने पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के हाथों कंस का अंत हुआ।
इसी कारण इस दिन का बहुत ही महत्व माना जाता है और देश भर में इस दिवस को उत्सव की भांति मनाया जाता है।
मथुरा और वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी से 10 दिन पहले रासलीला, भजन, कीर्तन और प्रवचन जैसे विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ शुरू होता है यह उत्सव । रासलीलाएं कृष्ण और राधा के जीवन और प्रेम कहानियों के साथ-साथ उनकी अन्य गोपियों की नाटकीय रूपांतर पेश किए जाते हैं। पेशेवर कलाकार और स्थानीय उपासक दोनों ही मथुरा और वृन्दावन में विभिन्न स्थानों पर इसका प्रदर्शन करते हैं। भक्त जनमाष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण मंदिरों में आते हैं, विशेषकर वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, जहां माना जाता है कि उनका जन्म हुआ था। मंदिरों को मनमोहक फूलों की सजावट और रोशनी से खूबसूरती से सजाया गया है।
पंचांमृत अभिषेक
अभिषेक के नाम से जाना जाने वाला एक विशिष्ट अनुष्ठान आधी रात को होता है, जो कृष्ण के जन्म का सटीक क्षण माना जाता है। इस दौरान कृष्ण की मूर्ति को दूध, दही, शहद, घी और पानी से स्नान कराया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अभिषेक के दौरान शंख बजाए जाते हैं, घंटियां बजाई जाती हैं और वैदिक मंत्रो का पाठ किया जाता है। इसके बाद भक्त श्रीकृष्ण को 56 अलग-अलग भोग (जिन्हें छप्पन भोग के नाम से जाना जाता है) अर्पित करते हैं। उनके लड्डू गोपाल स्वरूप को जन्म के बाद झूला झुलाते हैं और जन्म के गीत गाये जाते हैं।
नंदोत्सव
जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला नंदोत्सव एक खास कार्यक्रम है। कहते हैं कि जब कृष्ण के पालक पिता, नंद बाबा ने उनके जन्म की खुशी में गोकुल (कृष्ण का गाँव) में सभी को उपहार और मिठाइयां दीं। इस दि��, भक्त प्रार्थना करने और जरूरतमंदों को दान देने के लिए नंद बाबा के जन्मस्थान नंदगांव की यात्रा करते हैं। इसके अलावा वे विभिन्न प्रकार के समारोहों और खेलों में भाग लेते हैं जो कृष्ण के चंचल स्वभाव का सम्मान में आयोजित किए जाते हैं।
दही हांडी पर्व का महत्व
दही हांडी का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है । महाराष्ट्र, गुजरात , उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में इसकी अलग धूम देखने को मिलती है। इस दौरान गोविंदाओं की टोली ऊंचाई पर बंधी दही से भरी मटकी फोड़ने की कोशिश करती है ।
जन्माष्टमी पर दही हांडी का खास महत्व होता है । भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकिया दर्शाने के लिए दही हांडी पर्व मनाया जाता है।
दही हांडी कार्यक्रम
दही हांडी कार्यक्रम, जो कृष्ण की मां यशोदा द्वारा ऊंचे रखे गए मिट्टी के बर्तनों से मक्खन चुराने की बचपन की शरारत से प्रेरित एक कार्यक्रम है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी समारोह का एक और मुख्य आकर्षण है। इस कार्यक्रम में युवा, पुरुषों के समूह ऊंचाई से लटके हुए एक बर्तन तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं, जिसमें दही या मक्खन होता है। यह अवसर वफादारी, बहादुरी और टीम वर्क को दर्शाता है। इसमें बड़ी संख्या में दर्शक भी शामिल होते हैं, जो तालियां बजाते हैं और इस दृश्य का आनंद लेते हैं।
दरअसल, भगवान श्री कृष्ण बचपन में दही और मक्खन घर से चोरी करते थे और उसके साथ ही गोपियों की मटकियां भी फोड़ देते थे । यही कारण है कि गोपियों ने माखन और दही की हांडियों को ऊंचाई पर टांगना शुरू कर दिया था लेकिन कान्हा इतने नटखट थे कि अपने सखाओं की मदद से एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर हांडी को फोड़कर माखन और दही खा जाते थे । भगवान कृष्ण की इन्हीं बाल लीलाओं का स्मरण करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी ।
प्रभु की लीला कभी व्यर्थ नहीं होती है। उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है।
ऐसा मानते हैं कि पैसों के लिए गोपियाँ अपने घर के सारे दूध , दही और माखन मथुरा में जाकर कंस की राजधानी में बेच आतीं थीं। वे सब बलवान हो जाते थे जबकि ग्वाल बाल सीमित रूप में इसे प्राप्त कर पाते थे। तब प्रभु की बाल लीला ने माखन चोरी करने का निर्णय किया था ताकि ये सभी हृष्ट पुष्ट रहें और मथुरा तक ये न पहुंच सके।
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 74
नानक जी का संक्षिप्त यथार्थ परिचय
आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर(धाणक) जुलाहा के साक्षी:- श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इस स्थान को अब ’’ननकाना साहब‘‘ कहते हैं। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।
श्री नानक जी चैदह वर्ष की आयु में अपनी बहन नानकी की ससुराल शहर सुल्तानपुर लोधी में चले गए थे। अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्��्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को ईष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी भी इनके दरबार में हार मानकर क्षमा याचना करके गए थे।
त्रोता युग में श्री नानक जी ही राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। एक सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था। जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलियुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दू परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।
नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर लोधी के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।
एक दिन परमेश्वर कबीर जी जिन्दा फकीर के वेश में बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी के साथ दरिया में गोता लगाया। कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सचखण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।
तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापिस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आए।
उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए। श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा ��िसको जितना चाहिए, ले जाओ। तेरा-तेरा कहकर पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये श्री नानक जी के अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।
नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ?
श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सचखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अ���ना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। प्रथम उदासी में बनारस गए। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है? यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।
जैसा कि कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।
परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा। काशी (बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सबने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए र��ने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहा��िक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।
श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं कबीर साहेब जी? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि:-
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक।।”
जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।
गुरू ग्रन्थ साहेब के पृष्ठ 731 पर कहा है कि:-
नीच जाति प्रदेशी मेरा, खिन आवै तिल जावै।
जाकि संगत नानक रहेंदा, क्यूंकर मौंडा पावै।।
जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।
तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई। पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्रा का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच सनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।_
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्त्व ज्ञान बिना) झूठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आशा है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच ��ुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करता��� कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फाँसने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उत्तर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोंक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्र.पृष्ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है।
और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721.
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार। हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी। मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर। आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल। गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक। नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आपके द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आपकी कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तुरा) बंदा पार हो गया।
केवल हिन्दी अनुवाद:- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आपके समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।
भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निरूत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।
इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्त्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्त्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्त्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान करवाता है।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम् (अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हर��याणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उनसे कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है।
इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सद्ग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है:-
गरीब, झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब, हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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एकबोध कथा ये एक बोध कथा ऐसी है जिससे हम अपने बच्चो में एक प्रकार का संस्कार डाल सके के एक प्रभु ही हमारे रक्षण हार है चाहे पूरा परिवार हो हमारे आस पास पर कब साथ छोड़ दे वो भरोसा नहीं पर प्रभु कभी किसी का साथ नहीं छोड़ते चाहे हमारे ख़ुशी के दिन हो चाहे दुःख के दिन हो एक भगवन ही हमारा सच्चा साथी है ll कुछ कथाएं ऐसी होती हैं जो बचपन में कभी सुनी गई हों लेकिन मन में ऐसी गहरी बैठ जाती हैं कि प्राणांत तक भुलाती नहीं वैसे ही जैसे ईश्वर के प्रति श्रद्धा अंतिम सांस तक बनी रहेगी. श्रीकृष्ण लीला और कृष्ण भक्ति की ऐसी कथाएं बहुत कम ही सुनने को मिलती हैं. यह कहानी है कृष्णा की जो एक मासू�� बच्चा था. उसे भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई लगते थे. वह बड़े ही भोलेपन से अपने गोपाल भैया को बुलाता था. यह कहानी है उस विश्वास की जो हमें ईश्वर से जोड़ता है. इस विश्वास की डोर इतनी पक्की हो जाती है कि ईश्वर को सभी परंपराओं, मान्यताओं को तोड़कर भक्त के लिए भागकर आऩा होता है. लीलाधर को तो हर समय लीला करने में आनंद ही आता है. वह अपने उसी गोपाल यानी गोकुल में गाएं चराने वाले ग्वाले के भेष में आ जाते थे. कृष्णा को जन्म देते समय उसकी मां गुजर गई थी. बाद में पिता का भी स्वर्गवास हो गया था. बस एक बूढ़ी दादी थी. बेचारे दादी पोता बड़ी ही मुश्किल से जी रहे थे. जब कृष्णा पांच साल का हुआ तो दादी को उसकी पढ़ाई की चिंता हुई. उन्होंने एक गुरुकुल में गुरुजी से प्रार्थना की. गुरुजी निशुल्क पढ़ाने के लिए तो तैयार हो गए लेकिन विद्यालय जंगल के उस पार था. कृष्णा और उसकी दादी जंगल के इस पार गांव में रहते थे. जंगल काफी घना हिंसक जानवरों से भरा था. कृष्णा गुरूकुल पहुंचेगा कैसे, यही सोचते दादी लौट रही थी. साथ में कृष्णा भी था. दादी उसे रास्ते भर घर से विद्यालय तक का रास्ता दिखाती समझाती आई. कृष्णा तो गुरुकुल जाने के लिए उत्साहित था बूढ़ी दादी समझती थीं कि जंगल पार करना कितना कठिन है. दादी और पोता घर पहुंचे. अगली सुबह कृष्णा को पाठशाला जाना था. दादी का मन भर आया. उसने कृष्णा को कहा- अगर रास्ते में उसे डर लगे तो अपने गोपाल भैया को पुकारना. कृष्णा ने पूछा- ये गोपाल कौन है? तो दादी ने कहा कि यह गोपाल तुम्हारे दूर के रिश्ते का बड़ा भाई है. वह उसी जंगल में गाएं चराता है. सहायता के लिए बुलाने पर तुरंत आ जाता है. कृष्णा खुश हो गया कि उसका रिश्ते का भाई भी है जो सहायता को आ जाएगा. कृष्णा जंगल में दादी के बताए रास्ते पर बढ़ने लगा पर आज अकेला था. उसे डर लगने लगा. डर में उसने पुकार लिया- गोपाल भैया तुम कहां हो। मेरे सामने आ जाओ, मुझे डर लग रहा है. लेकिन जंगल में उसकी अपनी ही आवाज गूंज गईं. पांच साल का छोटा बालक कृष्णा डरता सहमता अपने रास्ते पर बढ़ता रहा. आगे जाकर जंगल और घना हो गया. कृष्णा ने फिर पुकारा गोपाल भैया तुम कहां हो. मुझे डर लग रहा है, आ जाओ. दादी ने तो कहा था तुम पुकारते ही चले आओगे. नन्हे से बालक कृष्णा की आवाज में जो विश्वास था. भगवान उसकी उपेक्षा नहीं कर पाए और तत्काल चले आए. कृष्णा को अपने कानों में मुरली की मधुऱ धुन सुनाई देने लगी. सहसा कृष्णा ने देखा जो जंगल अभी तक डरावना लग रहा था, अचानक मनोरम हो गया. जंगली जानवरों की आवाजें बंद हो गईं. उनकी जगह गायों के रंभाने और बछड़ों के किलकने की आवाज आने लगीं. बालक कृष्णा ने देखा, दूर से एक चौदह पंद्रह साल का किशोऱ बांसुरी बजाते हुए उसकी ओर चला आ रहा था. बालक कृष्णा बिना कुछ कहे समझ गया कि यही उसका भैया गोपाल है. आनंदकंद भगवान अपने गोपाल स्वरुप में लीला के लिए एक बार फिर से उपस्थित थे क्योंकि ये बालक कृष्णा के विश्वास की पुकार थी. उसकी दादी की कृष्णभक्ति की परीक्षा थी बालक कृष्णा दौड़कर गोपाल भैया के गले लग गया और उन्हें देखता रह गया. माथे पर मोर मुकुट, पीले रंग की धोती, कंधे पर कंबली और हाथों में हरे बांस की मधुर बांसुरी. सभी भुवनों में प्रकाशित वो दिव्य स्वरूप बालक कृष्णा की भोली पुकार पर सम्मुख था. कृष्णा ने अधिकारपूर्वक गोपाल भैया से कहा कि वो उसे जंगल पार करा दें क्योंकि उसे डर लग रहा है. गोपाल हंसे. उनकी हंसी से पूरा जंगल जैसे किसी अलौकिक रोशनी से जगमगा उठा. वह बोले- छोटे भैया, मैं आ गया हूं. तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं. उन्होंने कृष्णा को जंगल पार कराया. कृष्णा ने कहा- आप मेरे बड़े भैया हैं. छोटे भाई की सहायता को शाम को भी आ जाना बिना पुकारे. आप मुझसे प्रेम करते हो तो जरूर आओगे. लीलाधारी ने चिरपरिचित मुस्कान बिखेरी. उनके मुस्कुराने से जंगल में मंगल हो गया फिर वह बोले- कृष्णा तुम अपने सारे भय त्याग दो, आज से मैं तुम्हारे साथ हूं. सदैव तुम्हारे साथ हूं. कृष्णा खुशी-खुशी विद्यालय चला गया. दिनभर पढ़ाई की लौटकर देखा तो जंगल के मुहाने पर गोपाल भैया खड़े थे. उनके साथ बहुत सारी गैया और बछड़े भी थे. बालक कृष्णा अपनी सारी थकान भूल गया और दौड़कर भगवान के पास पहुंच गया. गोपाल भैया मुरली बजाते हुए उसे जंगल के दूसरे मुहाने तक छोड़ आए. रास्ते में गोपाल भैया ने उसे पीने के लिए गाय का ताजा दूध भी दिया. उधर दादी दिनभर बेचैन कृष्णा की चिंता कर रही थी. शाम को उन्होंने कृष्णा को आते देखा, तो जान में जान आई. उन्होंने पूछा कि आखिर तुम्हें जंगल में डर तो नहीं लगा कृष्णा ? कृष्णा ने सारी कहानी बताई. दादी को लगा किसी चरवाहे ने कृष्णा को जंगल पार करा दिया होगा. वह तो सोच भ�� नहीं सकती थी स्वयं लीलाधारी भगवान श्रीकृष्ण ही प्रकट हो गए थे. यह रोज का नियम हो गया. कृष्णा को गोपाल भैया विद्यालय से घर और घर से विद्यालय छोड़ा करते थे. एक बार विद्यालय में गुरुजी का जन्मदिन मनाया जा रहा था. सभी बच्चों ने तय किया कि वे अपने अपने योगदान से गुरुजी का जन्मदिन मनाएंगे. यहीं पर भोजन बनाया जाएगा. कृष्णा ने गोपाल भैया को भी जन्मदिन की बात बताई.भगवान ने भी कृष्णा के उत्साह को देखकर खुशी जताई. कृष्णा ने दादी से उत्सव के लिए पैसे या कुछ सामान देने की बात कही तो दादी ने बता दिया कि उनके पास कुछ भी नहीं है जो दे सकें. आस-पड़ोस की दया से तो दोनों पल रहे हैं. अगले दिन कृष्णा भारी मन से विद्यालय को चला. वह जाना नहीं चाहता था लेकिन जन्मदिन में पहुंचना जरूरी था. रास्ते में गोपाल भैया मिले लेकिन उन्हें देखकर कृष्णा ने रोज की तरह कोई खुशी नहीं जाहिर की. भगवान से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था. उन्होंने भोले बनकर कृष्णा से पूछा- छोटे भैया तुम दुखी क्यों हो तो कृष्णा ने अपनी गरीबी की व्यथा सुनाई. आंखों में आंसू भर आए. भगवान से देखा नहीं गया. उन्होंने एक छोटी सी मिट्टी की लुटिया में दूध भरा और गोपाल को दे दिया. गोपाल खुश हो गया कि चलो आखिर उसके पास कोई न कोई उपहार तो है. आखिर उसे खाली हाथ तो विद्यालय नहीं जाना पड़ेगा. गुरुजी की पत्नी को दूध की लुटिया दे दी. इतनी छोटी लुटिया में दूध देखकर हंसी.गुरुपत्नी ने दूध की लुटिया एक तरफ रख दी थी और बाकी के कामों में फंसकर उसके बारे में भूल गई थीं. कृष्णा जानना चाह रहा था कि उसके उपहार का क्या इस्तेमाल किया जा रहा है. इसलिए वह बार-बार झांककर देखता कि दूूध कहां रखा है. क्या इसे गुरूजी पीएंगे या किसी और काम में आएगा. गुरुमाता से भोलेपन में उसने यह बात कई बार पूछ भी ली. इससे नाराज होकर गुरुपत्नी ने दूध की लुटिया उठाई और खीर के बर्तन में पलट दी. सोचा कि लुटिया अभी खाली हो जाएगी तो उठाकर दूर फेंक दूंगी. कृष्णा को भी ये संतोष हो जाएगा कि उसकी दूध की लुटिया का इस्तेमाल खीर बनाने में हो गया है लेकिन ये क्या! लुटिया में भरा हुआ दूध खाली ही नहीं हो रहा था. गुरुपत्नी ने घबराहट में चीखकर गुरुजी को बुलाया. वह अपने सभी शिष्यों के साथ आए. उन्होंने देखा की दूध की लुटिया ज्यों की त्यों भरी हुई है. उसे बार-बार अलग-अलग बर्तनों में उडेला जाता पर वह खाली ही न होती. उसके दूध से एक के बाद एक बहुत सारे बर्तन भर गए. अब तो बर्तन बचे भी न थे. जिसने देखा वही हैरान कि आखिर यह हो क्या रहा है. कहीं कोई माया तो नहीं है. कुछ भय भी हुआ. गुरुजी ने कृष्णा से इसके बारे में पूछा तो उसने गोपाल भैया की सारी कथा विस्तार कहकर सुना दी. गुरुजी ज्ञानी पुरुष थे. वह तुरंत समझ गए कि ये लीलाधारी की लीला है. उन्होंने तुरंत कृष्णा के चरण पकड़ लिए और भगवान के दर्शन की इच्छा जाहिर की. बालक कृष्णा ने संध्याकाल में लौटते समय गोपाल भैया से अनुरोध किया कि वह गुरुजी और बाकी शिष्यों को भी दर्शन दें लेकिन भगवान ने उन्हें इस स्वरुप में दर्शन देने से इन्कार कर दिया और दूर से ज्योति रुप में दर्शन दिए जिससे कृष्णा के सभी साथियों सहित गुरुजी का जीवन धन्य हो गया. यह कथा भक्ति और आस्था की ऐसी सुंदर कथा है जिसे हम सभी बचपन में सुनते-पढ़ते बड़े हुए और भगवान के प्रति समर्पण पक्का होता गया. आशा है आप भी अपने बच्चों को ऐसी कथाएं सुनाने की आदत डालेंगे. इसके दो लाभ हैं. पहला तो उसकी ईश्वर में आस्था बनी रहेगी. ईश्वर में आस्था बनी रहेगी तो ��ास्त्रों से जुड़ा रहेगा और संस्कारों से परिचित होगा. जाहिर है कि इस तरह वह माता-पिता, गुरुजनों, बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देने वाला एक आदर्श संस्कारी संतान सिद्ध होगा तो आपको गर्व होगा. दूसरा जिस पौधे में बचपन से धर्म और संस्कार रूपी देसी खाद डाला जाएगा उससे बढ़ने वाला पौधा उन्नत होगा- जीवन के प्रति, लक्ष्य के प्रति, समाज के प्रति.
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कृष्ण की चेतावनी
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धू��-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।
‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।
‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।
‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता ह��ँ लोचन,
छा जाता ��ारों ओर मरण।
‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?
‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।
‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’
थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!
-रामधारी सिंह "दिनकर"
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28दिसंबर
अध्याय 8अक्षर ब्रह्म योग भाग 3
श्री कृष्ण ने आत्मा के शरीर त्यागने के दो मार्ग बताए है
दो गति हैं सूर्य गति ,चंद्र गति
एक है शुक्ल गति ,एक है कृष्ण गति
इसे जानकर समता में योगी बनो
योग ,कर्मकांड ,तप ,दान करने से को फल मिलता है उससे अधिक ध्यान करने से ,योगी बनने से मिलता है
ध्यान करने के वक्त ध्यान करो ,सूर्यनाड़ी चलने पर ध्यान करने से चिड़चिड़ापन आता है और चंद्र नाड़ी चलने पर पढ़ने की चेष्टा व्यर्थ है
ग्रह प्रवेश के समय लक्ष्मी रूपी बहू दाहिना पांव रखकर आती है
दाहिने पैर की गति स्थिरता है
ये रहस्य है
श्री कृष्ण ने युद्ध भूमि में अर्जुन को दाहिने से लड़ने को कहा
ये गूढ़ ज्ञान है
तत्त्व दर्शी ,गुरु के पास ब���ठकर ही ये ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं
सेवा से भी ज्ञान मिलता है
शरीर में नौ द्वारों से प्राण जातें हैं आठवें अध्याय में मृत्यु की कला बताई गई है ,मृत्यु कैसे हो आदि
मूर्छा या होशपूर्वक प्राण त्याग सकतें हैं
आंखो से , गैस के साथ गुदा से ,पेशाब द्वारा मूत्र द्वार से ,उल्टी,डकार से मुख द्वारा , कान से, योगी के प्राण ब्रह्म रंध्र
से निकलते हैं
मृत्यु के बाद कपाल क्रिया का कोई फायदा नहीं ,
दिल्ली के एक साधु जो सैनिक थे , को गोली लगने से मूर्छा आ गई जब होश आया तो उसे ज्ञान प्राप्त हो गया
वो साधु गुरुदेव को योगिराज कहते थे और गुरुदेव से कहा कितने हजारों साल बाद आए हो
ज्ञान कैसे कब प्राप्त होगा कोई बता नही सकता
कभी अचानक ,कभी धीरे धीरे होता है
यहां दो मार्ग श्री कृष्ण ने बताया है वो मार्ग पकड़ने से मन कभी विचलित नहीं होता ,
जब हम ये जान जाए की कब प्रेम वा कब गुस्से की नाड़ी खुली है
जो सूक्ष्म जगत में होता है उसकी परछाई हम स्थूल जगत में महसूस करते हैं
आप अपने अंदर देखो तो बाहर क्या हो रहा है पता चलता है
इसके लिए साधना करनी पड़ेगी,मौन रखना पड़ेगा
जब योगी ध्यानी बनते हो ,मन की समता को बनाए रखते हो तो ये सिद्धियां सहज प्राप्त होती हैं
शुरू में कह दिया श्री कृष्ण ने अधिभूत ,अधिदेव,अधि यज्ञ सब मैं ही हूं
आपके भीतर सूर्य नाड़ी ,चंद्र नाड़ी सब कुछ है
विशेष ज्ञान भी है ,सामान्य ज्ञान भी है , दोनों में अटकना नही है
विशेष ज्ञान जैसे देवी देवता आदि का ज्ञान
सामान्य ज्ञान माने पूरे शरीर को देखना
दुनिया में बहुत सारे धर्म है ये सामान्य ज्ञान है ये सभी परमात्मा ,अल्लाह,वन गॉड ,ईश्वर को मानते हैं
यही श्री कृष्ण भी कहते हैं वही एक भगवान है
मगर कुछ विशेष ज्ञान भी है शरीर एक ही कोशिका से बना है ,वही कोशिकाएं अपने विशेष गुण के कारण विभिन्न अंग बनाती हैं
ये आदि देव ज्ञान है
सभी धर्मों ने इसे स्वीकार किया है ,अलग अलग तीर्थंकर हुए वो सब बाहर से एक लगते हैं मगर उनके चिह्न अलग अलग है
एकता और विविधता दोनो का ज्ञान यहाँ बताया है
एक साधारण ज्ञान प्राणायाम करो सांस लो छोड़ दो
दूसरा विशेष ज्ञान देखो कौन सा स्वर चल रहा है दाहिना या बायां ,इनसे क्या करना चाहिए ,क्या होता है आदि
सामान्य ज्ञान के साथ विशेष ज्ञान की भी जरूरत है
जैसे हृदय रोग विशेषज्ञ को सामान्य ज्ञान की भी जरूरत है
दोनों ज्ञान आपको यहां मिला ,
जैसे जीवन का ज्ञान है वैसे मृत्यु का ज्ञान भी दिया गया
मृत्यु क्या है ,कैसे आएगी इसके आगे राज विद्या ,राज गुह्य योग ,माने राज रहस्य योग क्या है
प्रश्न :स्वप्न पर ?
उत्तर: स्वप्न का स्वप्न में ही
विश्लेषण करें
पांच प्रकार के स्वप्न
१, इसमें हमारे मन का भय ,मन की आकांक्षा स्वप्न के रूप में आते है
२, जो होने वाला है वो स्वप्न के रूप में आएगा
३,जो पहले अनुभव किया है वो स्वप्न में आता है
४,जिस स्थान पर हो वहां से संबंधित स्वप्न
५,सब मिला जुला ९९% ऐसे ही स्वप्न आते हैं
प्रश्न ,गुरुदेव चाहे कितना भी योगाभ्यास किया हो ,तो अंत समय में कोई इच्छा रह जाए तो क्या साधना व्यर्थ हो जायेगी?
उत्तर, ये प्रश्न अर्जुन ने भी पूछा था
कृष्ण बोलते है उसका जन्म योगी कुल में होगा और कहा जहां छूटा वही से शुरू करेगा
प्रश्न, आपने सूर्य नाड़ी ,चंद्र नाड़ी,ज्ञान नाड़ी को कैसे क्रियान्वित करें?
उत्तर, सूर्य नाड़ी,चंद्र नाड़ी प्राणायाम से ,
लेकिन ज्ञान नाड़ी के लिए अपने आपको स्वास्थ्य रखो ये अपने आप क्रियान्वित होगी
प्रश्न, द्वापर युग की गीता का ज्ञान आज भी कैसे उपयोगी है ?
उत्तर, ज्ञान हमेशा उपयोगी है ,ज्ञान व्यर्थ नहीं है अगर १०% भी समझा तो भी जीवन में कुछ तो गति होगी
द्वापर युग में दिया गया तो क्या
ये सार्वदेशिक , सार्वकालिक सार्व भौमिक है
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जय श्री कृष्णा।। मित्रों आपको राज़कुमार देशमुख का स्नेह वंदन।आज कथा सेवा में चंदन और पलाश के वृक्षों पर लेखक की कल्पना कथा पुष्प के रूप में पल्लवित होकर आपको अर्पित है। 🌹🌹
🌹🌹सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्षों में दो वृक्ष सन्निकट थे।
.
एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था।
.
पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था।
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चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र।
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यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।
.
कुल्हाड़ी लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया।
.
पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला – ‘सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है।
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टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।’
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चंदन का वृक्ष धीरे से बोला – ‘भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं।
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मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।’
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लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्गति को प्राप्त हुआ।
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उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी।
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मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आव��्यकता थी।
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लकड़हारे उसी वन प्रांत में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगे जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे।
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अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया।
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उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे। यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था।
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वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बना चंदन बोला –
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‘आओ मित्र ! ईश्वर की इच्छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया।
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अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है।
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मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।
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पलाश बोला – ‘देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे।
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मुझे भय लग रहा है। अब बिछड़ना ही पड़ेगा।’
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चंदन ने कहा – ‘भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बना कर धन्य कर दिया!
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तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते।
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सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना।
.
सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं।
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सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।’
.
गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है –
.
"निरमल मन जन सो मोहिं पावा,
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।"
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अचानक पलाश का मुख एक आध्यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।चंदन और ईश्वर के प्रति नतमस्तक हो गया ।आशा है किसी अज्ञात लेखक की यह कल्पना जो कथा रूप में प्रस्तुत की आपको अवश्य पसंद आई होगी। 🌹🌹
अंत में आपसे पुनः निवेदन है कि आप कोराॆना काल में मानवीय दूरी का पालन करें मास्क, सेनेटाइजर का प्रयोग करें & चीन के सामान का बहिष्कार करें और स्वदेशी सामान अपनाए ताकि आने वाले आर्थिक संकट का सामना हम कर सके।
📚 संकलन कर्ता:- राज़कुमार देशमुख 📚
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68500 SHIKSHK BHARTI :हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
68500 SHIKSHK BHARTI :हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
● सूरदास का काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना कब हुई ।उत्तर - 1910 में ।● संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भारतीय भाषाओं की संख्या है।उत्तर - 22 ।● हिन्दी की विशिष्ट बोली ब्रज भाषा किस रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।उत्तर - काव्य भाषा ।● देवनागरी लिपि किस लिपि का विकसित रूप है।उत्तर - ब्राम्ही लिपि ।● रामायण महाभारत आदि ग्रन्थ कौन सी भाषा में लिखे गये है।उत्तर - आर्यभाषा में ।● विद्यापति की प्रसिद्ध रचना पदावली किस भाषा में लिखी गई है।उत्तर - मैथिली में ।● भारत में हिन्दी का संवैधानिक स्वरूप है।उत्तर - राजभाषा । ।● जाटू किस बोली का उपनाम है।उत्तर - बॉगरू ।● ''एक मनई के दुई बेटवे रहिन'' यह अवतरण हिन्दी की किस बोली में है।उत्तर - भोजपुरी से ।● क्रिया विशेषण किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रिया विशेषण कहते है।जैसे – यहॉ , वहॉ , अब , तक आदि● अव्यय किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों में लिंग , वचन , पुरूष , कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अव्यय कहते है।● अव्यय के सामान्यत: कितने भेद है।उत्तर - अव्यय के सामान्यत: 4 भेद है।1.क्रिया विशेषण2.संबंधबोधक3.समुच्चोय बोधक4.विस्मचयादि बोधक● हिन्दी् में वचन कितने प्रकार के होते है।उत्तर - हिन्दी् में वचन 2 प्रकार के होते है।1.एक वचन2.बहुवचन● वर्ण किसे कहते है।उत्तर - वह मूल ध्वनि जिसका और विभाजन नही हो सकता हो उसे वर्ण कहते है।जैसे - म , प , र , य , क आदि● वर्णमाला किसे कहते है।उत्तर - वर्णों का क्रमबद्ध समूह ही वर्णमाला कहलाता है।● शब्द किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक वर्णों का मेल जिनका कोई निश्चित अर्थ निकलता हो उन्हे शब्द कहते है।● व��क्य किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक शब्दों का सार्थक समूह वाक्य कहलाता है।● मूल स्वरों की संख्यां कितनी है।उत्तर - मूल स्वरों की संख्यां 11 होती है।● मूल व्यंजन की संख्यां कितनी होती है।उत्तर - मूल व्यंजन की संख्यां 33 होती है।● 'क्ष' ध्वनि किसके अर्न्तगत आती है।उत्तर - संयुक्त्ा वर्ण ।● 'त्र' किन वर्णों के मेल से बना है।उत्तर - त् + र ।● 'ट' वर्ण का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - मूर्धा ।● 'फ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - दन्तोष्ठय ।● स्थूल का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सूक्ष्म ।● शीर्ष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - तल ।● शोषक का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - शोषित ।● मृदु का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - कटु ।● कलुष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - निष्कलुष ।● निर्दय का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सदय ।● नीरोग में संधि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● निस्तेज में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग संधि ।● उज्जवल का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - उत् + ज्वल ।● बहिष्कार का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - बहि: + कार ।● चयन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - अयादि संधि ।● अन्वय में कौन सी संधि है।उत्तर - गुण संधि ।● सच्चिदानंद का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + चित् + आनंद ।● उन्नति का संधि विच्छेद है।उत्तर - उत् + नति ।● निर्धन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● सूर्य + उदय का संधयुक्त शब्द है।उत्तर - सूर्योदय ।● किस युग को आधुनिक हिन्दी कविता का सिंहद्वार कहा जाता है।● भारतेन्दु युग को ।● द्विवेदी युग के प्रवर्तक कौन थे।उत्तर - महावीर प्रसाद द्विवेदी ।● हिन्दी का पहला सामाजिक उपन्यास कौन सा माना जाता है।उत्तर - भाग्यवती ।● सन् 1950 से पहले हिन्दी् कविता किस कविता के रूप में जानी जाती थी।उत्तर - प्रयोगवादी ।● ब्रज भाषा का सर्वोत्तम कवि है।उत्तर - सूरदास ।● आदिकाल के बाद हिन्दी में किस साहित्य का उदय हुआ ।उत्तर - भक्ति साहित्य का ।● निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि है।उत्तर - कबीरदास ।● किस काल को स्वर्णकाल कहा जाता है।उत्तर - भक्ति काल को ।● हिन्दी का आदि कवि किसे माना जाता है।उत्तर - स्व्यंभू ।● आधुनिक काल का समय कब से माना जाता है।उत्तर - 1900 से अब तक ।● जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है।उत्तर - कामायनी ।● बिहारी ने क्या लिखे है।उत्तर - दोहे ।● कबीर किसके शिष्य थे।उत्तर - रामानन्द ।● पद्यावत महाकाव्य कौन सी भाषा में लिखा है।उत्तर - अवधी ।● चप्पू किसे कहा जाता है।उत्तर - गद्य और पद्य मिश्रित रचनाओं को ।● कलाधर उपनाम से कविता कौन से कवि लिखते थे।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● रस निधि किस कवि का उपनाम है।उत्तर - पृथ्वी सिंह ।● प्रेमचन्द्र के अधुरे उपन्यांस का नाम है।उत्तर - मंगलसूत्र ।● हिन्दी का सर्वाधिक नाटककार कौन है।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● तुलसीकृत रामचरित मानस में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है।उत्तर - अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।● एकांकी के जन्मदाता कौन है।उत्तर - धर्मवीर भारती ।● मीराबाई ने किस भाव से कृष्ण की उपासना की ।उत्तर - माधुर्य भाव से ।● रामचरित मानस का प्रधान रस है।उत्तर - शान्त रस ।● सबसे पहले अपनी आत्मकथा हिन्दी में किसने लिखी ।उत्तर - डॉं. राजेन्द��र प्रसाद ने ।● हिन्दी कविता का पहला महाकाव्य् कौन सा है।उत्तर - पृथ्वीराज रासो ।● हिन्दी के सर्वप्रथम प्रकाशित पत्र का नाम क्या है।उत्तर - उदन्ड मार्तण्ड ।● हिन्दी साहित्य की प्रथम कहानी है।उत्तर - इन्दुमती ।● आंचलिक रचनाऍं किससे सम्बन्धित होती है।उत्तर - क्षेत्र विषेश से ।● श् , ष् , स् , ह् व्यंजन कहलाते है।उत्तर - ऊष्म व्यंजन ।● य् , र् , ल् , व् व्यंजन को कहते है।उत्तर - अन्तस्थ व्यंजन ।● क् से म् तक के व्यंजनों को कहा जाता है।उत्तर - स्पर्श व्यंजन ।● घोष का अर्थ है।उत्तर - नाद ।● जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है कहलाती है।उत्तर - पार्श्विक ।● 'आ' स्वर कहलाता है।उत्तर - विवृत स्वर ।● पश्च स्वर है।उत्तर - इ , आ ।● अग्र स्वर है।उत्तर - ऐ ।● 'श्र' व्यंजन किन दो व्यंजनों से मिलकर बना है।उत्तर - श् + र ।● 'ड' , 'ढ' का व्यंजन वर्ग है।उत्तर - मूर्धन्य -उत्क्षिप्त ।● ओम ध्वनि के उच्चारण में स्वर का कौन सा रूप प्रकट होता है।उत्तर - प्लुत स्वर ।● सघोष वर्णो का सही वर्ग है।उत्तर - ड , ढ ।● भ्राता का भाववाचक शब्द क्या होगा ।उत्तर - भ्रातृत्व ।● सीमा दौड़ती है। यहॉ दौड़ती है कैसी क्रिया है।उत्तर - अर्कमक ।● आशुतोष ने कहा कि मैं पढूँगा । इसमें 'कि मै पढूँगा' क्या है।उत्तर - संज्ञा उपवाक्य ।● सोना - चॉंदी और तेल - पानी किस प्रकार के संज्ञा शब्द है।उत्तर - द्रव्यवाचक ।● कृपाण का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - दानी ।● अनुराग का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - विराग ।● भोगी का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - योगी ।● कीर्ति का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - अपकीर्ति ।● पृथ्वीराज रासो किस काल की रचना है ।उत्तर - आदिकाल की ।● हिन्दी गद्य का जन्म दाता किसको माना जाता है।उत्तर - भारतेन्दु हरिचन्द्र जी को ।● कवि कालिदास की ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ का हिन्दी अनुवाद किसने किया।उत्तर - राजा लक्ष्मणसिंह ने ।● पद्य साहित्य को कितने भागों में बॉंटा गया है।उत्तर - पन्द्रह भागों में ।● कवि नरेन्द्र शर्मा ने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के निधन से प्रभावित होकर कौन सी रचना की ।उत्तर - रक्त चन्दन की रचना की ।● नाट्यशास्त्रकारों द्वारा अमान्य रस कौन सा है।उत्तर - वीभत्स रस ।अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (One Word Substitution in Hindi)भारतीय संविधान में कौनसी विशेषता किस देश से ली गयी है - Indian constitutionवाक्यांश या शब्द समूहस्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित आंदोलन एवं वर्ष● काव्य शास्त्र का प्राचीनतम नाम क्या था।उत्तर - अलंकार शास्त्र ।● रीति सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे।उत्तर - आचार्य वामन ।● हिन्दी में काव्य शास्त्र के प्रथम आचार्य कौन है।उत्तर - केशवदास ।● साहित्य शब्द् किस शब्द से बना है।उत्तर - सहित शब्द से बना है।● हिन्दी साहित्य में जीवनी साहित्य का प्रारम्भ कौन से युग ��ें हुआ ।उत्तर - भारतेंदु युग में ।● हिन्दी भाषा और सांहित्य के लेखक है।उत्तर - श्यामसुंदरदास ।● मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । यह किसने कहा ।उत्तर - अरस्तू ने ।● भाषा किसे कहते है।उत्तर - मनुष्य अपने मानसिक विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिस माध्यम का प्रयोग करता है। वह भाषा कहलाती है।● भाषा शब्द की उत्पत्ति कहॉ से हुई है।उत्तर - भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के भाष धातु से हुई है।● सामान्य् शब्दों मे हम भाषा को किस तरह से व्यक्तु करेगे ।उत्तर - भाषा वह साधन है । जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों या विचारों को बोलकर या लिखकर दूसरे मनुष्यो तक पहुँचाता है।● भाषा को मोटे रूप में कितने भागों मे बांटा गया है।उत्तर - भाषा को मोटे रूप में 2 भागों मे बांटा गया है।1.लिखित भाषा2.मौखिक भाषा● हिन्दी भाषा का सम्बंन्ध किस लिपि से है।उत्तर - देवनागरी लिपि से है।● बोलने वालो की संख्या की दृष्टि से हिन्दी का विश्व मे कौन सा स्थान है।उत्तर - तीसरा ।● सूरदास के काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● संविधान के किस अनुच्छे्द में कहा गया है – ‘’ संघ की राजभाषा हिन्दी् और लिपि देवनागरी होगी ‘’ ।उत्तर - 343 वें अनुच्छेद में कहॉ गया ।● हिन्दी शब्द की व्युात्पात्ति कहॉ से हुई है।उत्तर - सिंधु से ।● वर्तमान हिन्दी का प्रचलित रूप कैसा है।उत्तर - खडी बोली ।● जिन ध्वनियों के संयोग से शब्दों का निर्माण होता है। उन्हें क्या कहते है।उत्तर - वर्ण ।● स्वरों की संख्या कितनी मानी गई है।उत्तर - 11 ।● हिन्दी मानक वर्ण माला में कुल कितने वर्ण है।उत्तर - 52 ।● अन्तस्थ व्यंजनों की संख्या कितनी है।उत्तर - 4 ।● हिन्दी वर्ण माला को कितने भागों में विभक्त किया गया है।उत्तर - दो भागो में ।● हिन्दो वर्ण माला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कितनी है।उत्तर - 25 ।● मात्रा के आधार पर हिन्दी स्वंरों के दो भेद कौन से है।उत्तर - हस्वर और दीर्घ ।● ‘ क्ष ‘ वर्ण किसके योग से बना है।उत्तर - ‘’ क् + ष ‘’ से बना है।● हिन्दी वर्ण माला में व्यंजनों की संख्या है।उत्तर - 33 व्यंजन है।● हिन्दी का पहला नाटक है।उत्तर - नहुष ।● कबीरदास की भाषा थी।उत्तर - सधुक्कडी ।● कलम का जादूगर किसे कहा जाता है।उत्तर - रामवृक्ष बेनीपुरी को ।● प्रगतिवाद उपयोगितावाद का दूसरा नाम है। यह कथन किसका है।उत्तर - रामविलास शर्मा ।● रामचरितमानस में कुल कितने काण्ड है।उत्तर - सात ।● हिन्दी साहित्य के इतिहास के रचयिता कौन है।उत्तर - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ।● गीत गोविन्द किस भाषा में है।उत्तर - संस्कृत भाषा में ।● लोक नायक किसको कहा जाता है।उत्तर - तुलसीदास जी को ।● इन्दिरापति किसे कहा जाता है।उत्तर - विष्णु को ।● पंचतंत्र क्या है।उत्तर - कहानी संग्रह ।● सामिष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - आमिष ।● गमन का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - आगमन ।● सम्मुख का विलोम शब्द है।उत्तर - विमुख ।● सुकाराथ का विलोम शब्द है।उत्तर - अकारथ ।● अगानत का विलोम शब्द है।उत्तर - आगत ।● उपमान का विलोम शब्द है।उत्तर - उपमेय ।● मौन का विलोम शब्द है।उत्तर - मुखर ।● .............. प्रयास की अपेक्षा सामूहिक प्रयास का बल अधिक होता है।उत्तर - एकांगी ।● गांधी जी के अनुसार अत्याचार का उत्तर ................ से देना ही मनुष्यता है।उत्तर - सदाचार ।● श्रवण कुमार के ��ाता पिता द्वारा दशरथ को दिया गया शाप भी उनके लिए ............... बन गया ।उत्तर - वरदान ।● सत्य बोलो मगर कटु सत्य मत बोलो । किस प्रकार का वाक्य है।उत्तर - संयुक्त्ा वाक्य ।● जब तक वह घर पहुँचा तब तक उसके पिता जा चुके थे। यह वाक्य किस प्रकार का है।उत्तर - मिश्रित वाक्य ।● यथासंभव अपना गृहकार्य शाम तक पूरा कर लो । मे वाक्य का प्रकार है।उत्तर - विधिवाचक ।● हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना मदनमोहन मालवीय ने की थी । में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - कर्तृवाच्य ।● व्यवहार में तुम बिलकुल वैसे ही हो, जैसे तुम्हारे पिताजी । में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - मिश्र वाक्य ।● हम अपनी संस्कृति के बारे में कितना जानते है। में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - प्रश्नवाचक ।● क्रिया के होने का समय तथा उसकी पूर्णता और अपूर्णता का बोध किससे होता है।उत्तर - काल से ।● मैने गीता पढ़ी वाक्य में वर्तमान काल का कौन सा भेद है।उत्तर - सामान्य वर्तमान ।● वाक्य में जो शब्द काम करने के अर्थ में आता है। उसे कहते है।उत्तर - कर्त्ता ।● मै खाना खा चुका हूँ । इस वाक्य में भूतकालिक भेद इंगित कीजिए ।उत्तर - पूर्ण भूत ।● क्रिया के साधन को बताने वाला शब्द कहलाता है।उत्तर - करण कारक ।● से विभक्ति किस कारक की है।उत्तर - करण ।● अपादान कारक की विभक्त्िा है।उत्तर - से, अलग ।● वह चटाई पर बैठा है। इस वाक्य में कौन सा कारक है।उत्तर - अधिकरण कारक ।● मोहन घोड़े से गिर पड़ा । इस वाक्य में कौन सा कारक है।उत्तर - अपादन कारक ।● वृक्ष से पत्ते गिरते है। इस वाक्य में इस कारक का चिन्ह है।उत्तर - अपादान ।● के लिए किस कारक का चिन्ह है।उत्तर - सम्प्रदान ।● कारक के कितने भेद होते है।उत्तर - 8 ।● जलमग्न में कौन सा कारक है।उत्तर - अधिकरण ।● जलधारा में कारक होगा ।उत्तर - संबंध ।● देवेन्द्र में कौन सी सन्धि है।उत्तर - गुण ।● निस्सार का सही सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - नि: + सार ।● गिरीश का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - गिरि + ईश ।● (अ + नि + आय) के मेल से कौन सा शब्द बनेगा ।उत्तर - अन्याय ।● परिच्छेद में कौन सी संधि है।उत्तर - व्यंजन ।● निश्चल में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग ।● जगन्नाथ में कौन सी संधि है।उत्तर - व्यंजन ।● अत्याचार का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - अति + आचार ।● सन्तोष का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सम् + तोष ।● सप्तर्षि का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - सप्त + ऋषि ।● प्रत्येक में कौन सी समास है।उत्तर - अव्ययीभाव समास । समास:- परिभाषा - दो या दो से अधिक शब्दो के सम्बन्ध बताने वाले शब्द को लोप कर बने सार्थक यौगिक शब्द को समास कहते है ।समास के 6 भेद होते है । 1 अव्ययीभाव समास 2. तत्पुरूष समास 3. कर्मधारय समास 4. द्विगु समास 5. द्वंद्व समास 6. बहुव्रीहि समास● विशेषण और विशेष्य के योग से कौन सा समास बनता है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● देशांतर में समास है।उत्तर - कर्मधाराय ।● रामानुज में समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● वनवास में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● नीलकमल में समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● सदाचार का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + आचार ।● महेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - महा + इन्द्र ।● हैदराबाद में कौन सी समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● रामकहानी में कौन सी समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● चन्द्रमौलि में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● मंदबुद्धि में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधाराय समास ।●�� नीलगाय में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● प्रतिमान में कौन सी समास है।उत्तर - अव्ययीभाव समास ।● नरसिंह में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● शाखामृग में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● वीणापाणि में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● नवयुवक में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● विज्ञान शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - वि ।● निर्वाह शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - निर् ।● प्रतिकूल शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● चिरायु शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - चिर् ।● संस्कार शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - सम् ।● बेइन्साफ शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - बे ।● प्रत्युत्पन्नमति शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● प्रतिकूल शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● सदाचार शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - सत् ।● आदेश शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - आ ।● धुंधला शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - ला ।● दोषहर्ता शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - हर्ता ।● अनुज शब्द को सत्रीवाचक बनाने के लिए आप किस प्रत्यय का प्रयोग करेगें।उत्तर - आ ।● घुमक्कड़ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - अक्कड़ ।● ऊँचाई शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - आई ।● जेठानी शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - आनी ।● प्राचीन शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - ईन ।● भगोड़ा शब्द में कौन सा प्रत्यय है।उत्तर - ओड़ा ।● कब्रिस्तान शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - इस्तान ।● यादव शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - व ।● जो बहुत बात करता हो ।उत्तर - वाचल ।● जहॉ पहुँचा न जा सके ।उत्तर - अगम ।● हर काम को देर से करने वाला ।उत्तर - दीर्घसूत्री ।● जिसका भोजन दूध ही हो ।उत्तर - दुग्धाहारी ।● जिसके आर पार देखा जा सके ।उत्तर - पारदर्शी ।● दो पर्वतों के बीच की भूमि ।उत्तर - उपत्यका ।● बिना घर का ।उत्तर - अनिकेत ।● पुरूष एवं स्त्री का जोडा ।उत्तर - दम्पती ।● जिसने देश के साथ विश्वासघात किया हो ।उत्तर - देशद्रोही ।● जो शत्रु की हत्या करता हो ।उत्तर - शत्रुघ्न ।● जिन शब्दों के अन्त में ‘अ’ आता है, उन्हें क्या कहते है।उत्तर - अकारांत कहते है।● हिन्दी वर्ण माला में अयोगवाह वर्ण कौन से है।उत्तर - अं , अ: वर्ण अयोगवाह वर्ण है ।● हंस मे लगा ( ं ) चिन्ह कहलाता है।उत्तर - अनुस्वार● चॉद शब्द में लगा ( ँ ) चिन्ह कहलाता है।उत���तर - अनुनासिक ।● भाषा की सबसे छोटी इकाई क्या है।उत्तर - वर्ण ।● जिन शब्दों में किसी प्रकार का विकार या परिवर्तन नही होता, उसे क्या कहते है।उत्तर - तत्सम ।● कार्य के होने का बोध कराने वाले शब्द को क्या् कहते है।उत्तर - क्रिया कहते है।● भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान किससे होता है।उत्तर - व्याकरण से होता है।● विशेषण जिस शब्द की विशेषता बताते है, उसे क्या कहते है।उत्तर - विशेष्ये ।● हिन्दी में लिंग का निर्धारण किस से होता है।उत्तर - संज्ञा से ।● क्रिया का मूल रूप क्या् कहलाता है।उत्तर - धातु ।● सर्वनाम के साथ प्रयुक्त होने वाली विभक्तियॉं होती है।उत्तर - संश्लिष्ट ●हिन्दी में कारक चिन्ह कितने होते है।उत्तर - 8 होते है।जबकि संस्कृत भाषा में कारक चिन्ह 7 होते है।● संज्ञा कितने प्रकार की होती है।उत्तर - संज्ञा 5 प्रकार की होती है।1. व्यवक्ति वाचक संज्ञा2. जाति वाचक संज्ञा3. भाव वाचक संज्ञा4. समूह वाचक संज्ञा5. द्वव्या वाचक संज्ञा● वे शब्द जो विशेषण की भी विशेषता बतलाते है। उन्हे क्या कहते है।उत्तर - प्रविशेषण ।● सर्वनाम किसे कहते है।उत्तर - सर्वनाम वे शब्द कहलाते है। जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग मे लाये जाते है।जैसे – यह , वह , वे , उनका , ��नका , इन्हे आदि● सर्वनाम के कितने भेद होते है।उत्तर - सर्वनाम के 6 भेद होते है।1. पुरूषवाचक सर्वनाम2. निश्चवयवाचक सर्वनाम3. अनिश्चायवाचक सर्वनाम4. प्रश्नावाचक सर्वनाम5. संबंधवाचक सर्वनाम6. निजवाचक सर्वनाम● क्रिया किसे कहते है।उत्तर - जिस शब्द – से किसी काम के करने या होने का बोध हो उसे क्रिया कहते है।जैसे – खाना , हँसना , रोना , बैठना आदि● क्रिया मुख्य रूप से कितने प्रकार की होती है।उत्तर - मुख्य रूप से क्रिया 2 प्रकार की होती है।1. अकर्मक क्रिया2. सकर्मक क्रिया● काल कितने प्रकार के होते है।उत्तर - काल 3 प्रकार के होते है।1. वर्तमान काल2. भूतकाल3. भविष्य काल● 'श' व्यंजन का उच्चारण स्थान कौन सा है।उत्तर - तालु ।● 'व' वर्ण का उच्चारण स्थान कौन सा है ।उत्तर - दन्त + ओष्ठ ।● 'ड.' का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - कण्ठ ।● 'क' वर्ण उच्चारण की दृष्टि से क्या है।उत्तर - कंठ्य ।● वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ व्यंजन क्या कहलाते है।उत्तर - महाप्राण ।● 'ए' और 'ऐ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - कंठतालु ।● 'घ' का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - कंठ ।● वर्ण के प्रथम, तृतीय व पंचम वर्ण क्या कहलाते है।उत्तर - अल्पप्राण ।● मात्रा के आधार पर हिन्दी स्वरों के दो भेद कौन से है।उत्तर - हस्व और दीर्घ ।● सर्वनाम के साथ प्रयुक्त्ा होने वाली विभक्तियॉ होती है ।उत्तर - संश्लिष्ट ।● 'शिक्षक विद्यार्थी को हिन्दी पढ़ाते है। वाक्य में क्रिया के किस रूप का प्रयोग हुआ है।उत्तर - द्विकर्मक क्रिया ।● 'मुझे' किस प्रकार का सर्वनाम है।उत्तर - उत्तम पुरूष ।● मानव शब्द का विशेषण बनेगा ।उत्तर - मानवीय ।● चिडि़या आकाश में उड़ रही है। उस वाक्य में उड़ रही क्रिया किस प्रकार की है।उत्तर - अकर्मक ।● पशु शब्द का विशेषण है।उत्तर - पाशविक ।● नेत्री शब्द का पुल्लिंग रूप है।उत्तर - नेता ।● अनायस में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● लोकप्रिय शब्द में समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● कन्यादान में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● चौराहा में समास है।उत्तर - द्विगु समास ।● महीश का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - मही + ईश ।● शुभेच्छा का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - शुभ + इच्छा ।● भानूदय का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - भानु + उदय ।● नवोढ़ा का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - नव + ऊढ़ा ।● पावक का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - पौ + अक ।● दुश्चरित्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - दु: + चरित्र ।● मृगेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - मृग + इन्द्र ।● सुरेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - सुर + इन्द्र ।● उत्कर्ष का विशेषण क्या होगा ।उत्तर - उत्कृष्ट ।● काम का तत्सम रूप है।उत्तर - कर्म ।● दूध का तत्सम रूप क्या है।उत्तर - दुग्ध ।● प वर्ग का उच्चारण मुँह के किस भाग से होता है।उत्तर - ओष्ठ ।● च, छ, ज, झ व्यंजन के उच्चारण को मुखांगो के व्यवहार के आधार पर क्या नाम दिया जाता है।उत्तर - तालव्य ।● मुझे किस प्रकार का सर्वनाम है।उत्तर - उत्तम पुरूष सर्वनाम ।● वह धीरे धीरे आ रहा है। वाक्य अव्यय के किस भेद के अन्तर्गत आता है।उत्तर - क्रिया विशेषण ।● मानव शब्द से विशेषण बनेगा ।उत्तर - मानवीय ।● चिडि़या आकाश में उड़ रही है। इस वाक्य में उड़ रही क्रिया किस प्रकार की है।उत्तर - अकर्मक ।● बुढ़ापा भी एक प्रकार का अभिशाप है। इस वाक्य में बुढापा शब्द की संज्ञा का भेद बताइए ।उत्तर - भाववाचक संज्ञा ।● आलस्य शब्द का विशेषण क्या है।उत्तर - आलसी ।● प्रवृत्ति का विलोम शब्द है।उत्तर - निवृत्ति ।● अंतरंग का विलोम शब्द है।उत्तर - बहिरंग ।● गुप्त का विलोम शब्द है।उत्तर - प्रकट ।● सूरदास का काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना कब हुई ।उत्तर - 1910 में ।● संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भारतीय भाषाओं की संख्या है।उत्तर - 22 ।● हिन्दी की विशिष्ट बोली ब्रज भाषा किस रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।उत्तर - काव्य भाषा ।● देवनागरी लिपि किस लिपि का विकसित रूप है।उत्तर - ब्राम्ही लिपि ।● रामायण महाभारत आदि ग्रन्थ कौन सी भाषा में लिखे गये है।उत्तर - आर्यभाषा में ।● विद्यापति की प्रसिद्ध रचना पदावली किस भाषा में लिखी गई है।उत्तर - मैथिली में ।● भारत में हिन्दी का संवैधानिक स्वरूप है।उत्तर - राजभाषा । ।● जाटू किस बोली का उपनाम है।उत्तर - बॉगरू ।● ''एक मनई के दुई बेटवे रहिन'' यह अवतरण हिन्दी की किस बोली में है।उत्तर - भोजपुरी से ।● क्रिया विशेषण किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रिया विशेषण कहते है।जैसे – यहॉ , वहॉ , अब , तक आदि● अव्यय किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों में लिंग , वचन , पुरूष , कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अव्यय कहते है।● अव्यय के सामान्यत: कितने भेद है।उत्तर - अव्यय के सामान्यत: 4 भेद है।1.क्रिया विशेषण2.संबंधबोधक3.समुच्चोय बोधक4.विस्मचयादि बोधक● हिन्दी् में वचन कितने प्रकार के होते है।उत्तर - हिन्दी् में वचन 2 प्रकार के होते है।1.एक वचन2.बहुवचन● वर्ण किसे कहते है।उत्तर - वह मूल ध्वनि जिसका और विभाजन नही हो सकता हो उसे वर्ण कहते है।जैसे - म , प , र , य , क आदि● वर्णमाला किसे कहते है।उत्तर - वर्णों का क्रमबद्ध समूह ही वर्णमाला कहलाता है।● शब्द किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक वर्णों का मेल जिनका कोई निश्चित अर्थ निकलता हो उन्हे शब्द कहते है।● वाक्य किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक शब्दों का सार्थक समूह वाक्य कहलाता है।● मूल स्वरों की संख्यां कितनी है।उत्तर - मूल स्वरों की संख्यां 11 होती है।● मूल व्यंजन की संख्यां कितनी होती है।उत्तर - मूल व्यंजन की संख्यां 33 होती है।● 'क्ष' ध्वनि किसके अर्न्तगत आती है।उत्तर - संयुक्त्ा वर्ण ।● 'त्र' किन वर्णों के मेल से बना है।उत्तर - त् + र ।● 'ट' वर्ण का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - मूर्धा ।● 'फ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - दन्तोष्ठय ।● स्थूल का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सूक्ष्म ।● शीर्ष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - तल ।● शोषक का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - शोषित ।● मृदु का विलोम शब्�� होगा ।उत्तर - कटु ।● कलुष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - निष्कलुष ।● निर्दय का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सदय ।● नीरोग में संधि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● निस्तेज में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग संधि ।● उज्जवल का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - उत् + ज्वल ।● बहिष्कार का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - बहि: + कार ।● चयन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - अयादि संधि ।● अन्वय में कौन सी संधि है।उत्तर - गुण संधि ।● सच्चिदानंद का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + चित् + आनंद ।● उन्नति का संधि विच्छेद है।उत्तर - उत् + नति ।● निर्धन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● सूर्य + उदय का संधयुक्त शब्द है।उत्तर - सूर्योदय ।● किस युग को आधुनिक हिन्दी कविता का सिंहद्वार कहा जाता है।● भारतेन्दु युग को ।● द्विवेदी युग के प्रवर्तक कौन थे।उत्तर - महावीर प्रसाद द्विवेदी ।● हिन्दी का पहला सामाजिक उपन्यास कौन सा माना जाता है।उत्तर - भाग्यवती ।● सन् 1950 से पहले हिन्दी् कविता किस कविता के रूप में जानी जाती थी।उत्तर - प्रयोगवादी ।● ब्रज भाषा का सर्वोत्तम कवि है।उत्तर - सूरदास ।● आदिकाल के बाद हिन्दी में किस साहित्य का उदय हुआ ।उत्तर - भक्ति साहित्य का ।● निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि है।उत्तर - कबीरदास ।● किस काल को स्वर्णकाल कहा जाता है।उत्तर - भक्ति काल को ।● हिन्दी का आदि कवि किसे माना जाता है।उत्तर - स्व्यंभू ।● आधुनिक काल का समय कब से माना जाता है।उत्तर - 1900 से अब तक ।● जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है।उत्तर - कामायनी ।● बिहारी ने क्या लिखे है।उत्तर - दोहे ।● कबीर किसके शिष्य थे।उत्तर - रामानन्द ।● पद्यावत महाकाव्य कौन सी भाषा में लिखा है।उत्तर - अवधी ।● चप्पू किसे कहा जाता है।उत्तर - गद्य और पद्य मिश्रित रचनाओं को ।● कलाधर उपनाम से कविता कौन से कवि लिखते थे।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● रस निधि किस कवि का उपनाम है।उत्तर - पृथ्वी सिंह ।● प्रेमचन्द्र के अधुरे उपन्यांस का नाम है।उत्तर - मंगलसूत्र ।● हिन्दी का सर्वाधिक नाटककार कौन है।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● तुलसीकृत रामचरित मानस में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है।उत्तर - अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।● एकांकी के जन्मदाता कौन है।उत्तर - धर्मवीर भारती ।● मीराबाई ने किस भाव से कृष्ण की उपासना की ।उत्तर - माधुर्य भाव से ।● रामचरित मानस का प्रधान रस है।उत्तर - शान्त रस ।● सबसे पहले अपनी आत्मकथा हिन्दी में किसने लिखी ।उत्तर - डॉं. राजेन्द्र प्रसाद ने ।● हिन्दी कविता का पहला महाकाव्य् कौन सा है।उत्तर - पृथ्वीराज रासो ।● हिन्दी के सर्वप्रथम प्रकाशित पत्र का नाम क्या है।उत्तर - उदन्ड मार्तण्ड ।● हिन्दी साहित्य की प्रथम कहानी है।उत्तर - इन्दुमती ।● आंचलिक रचनाऍं किससे सम्बन्धित होती है।उत्तर - क्षेत्र विषेश से ।● श् , ष् , स् , ह् व्यंजन कहलाते है।उत्तर - ऊष्म व्यंजन ।● य् , र् , ल् , व् व्यंजन को कहते है।उत्तर - अन्तस्थ व्यंजन ।● क् से म् तक के व्यंजनों को कहा जाता है।उत्तर - स्पर्श व्यंजन ।● घोष का अर्थ है।उत्तर - नाद ।● जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है कहलाती है।उत्तर - पार्श्विक ।● 'आ' स्वर कहलाता है।उत्तर - वहिंदी का गोल्ड स्मिथ किसे कहा जाता है ।उतर:----श्री सियाराम��रण गुप्त2 💐हिन्दी का टेनिसन किसे कहा जाता हैउत्तर:----बाबू जगन्नाथ दास3💐बिहार का महावीर प्रसाद द्विवेदी किसे कहा जाता हैउतर:----आचार्य शिवपूजन सहाय4 💐हिन्दी का लघु प्रसाद किसे कहा जाता हैउतर:----जगदीश चन्द्र माथुर5💐आधुनिक रसखान किसे कहा जाता हैउतर:---श्री अब्दुल रसीद6💐आधुनिक रहीम किसे कहा जाता हैउतर:----मिर्जा नासिर हसन7💐शब्द सम्राट कोश किसे कहा जाता हैउतर:----बाबू श्याम सुंदर दास8💐साहित्य का महारथी किसे कहा जाता हैउतर:----आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी9💐हिन्दी का गालिब किसे कहा जाता हैउतर:-----बिहारी10💐हिन्दी का मिल्टन किसे कहा जाता हैउतर:---केशवदास11💐युग का वैतालिक किसे कहा जाता हैउतर:-----भारतेंदु जी12 💐पूरे ऋषि किस अष्टछापी कवि को कहा जाता हैउतर:----कुम्भनदास13 💐ऊंची योग्यता का कवि किसे कहा जाता हैउतर:----गद्दाधर भट्ट14💐हिन्दी का लैम्ब किसे कहा जाता हैउतर:----प्रताप नारायण मिश्र15💐हिन्दी का मम्मट किसे कहा जाता हैउतर:----पण्डित रामदिन मिस्र16💐अवतारी पुरुष किस कवि को कहा जाता हैउतर:----महावीर प्रसाद द्विवेदी17💐हिन्दी का इलिएट किसे कहा जाता हैउतर:-----अज्ञेय जी18💐छोटे निराला किस कवि को कहा जाता हैउतर:---- जानकी बल्लभ शास्त्री19💐हिन्दी का मल्लिनाथ किसे कहा जाता हैउतर:----राजा लक्ष्मण सिंह20💐आधुनिक काल का पद्माकर किसे कहा जाता हैउतर:----बाबू जगन्नाथ दास ।
Read full post at: http://www.cnnworldnews.info/2018/03/68500-shikshk-bharti_31.html
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श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 2020
भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी अर्थात श्रीकृष्ण के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. जन्माष्टमी तिथि को लेकर उलझन है. इस बार जन्माष्टमी 11 और 12 अगस्त को दो दिन मनाया जा रहा है. हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार जन्माष्टमी भादो के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार जन्माष्टमी की तारीख को लेकर कई मत हैं. कुछ विद्वानों का कहना है कि जन्माष्टमी 11 अगस्त, मंगलवार के दिन है, जबकि अन्य बुद्धिजीवियों का मत है कि जन्माष्टमी 12 अगस्त को है।
आइए विस्तार से जानते हैं कि जन्माष्टमी कब मनायी जाएगी…??
भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस बार कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र एक साथ नहीं मिल रहे हैं. 11 अगस्त को प्रातकाल 5 बजकर 55 मिनट के बाद अष्टमी तिथि का आरंभ हो जाएगा, जो 12 अगस्त को प्रातकाल 7 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 13 अगस्त को सुबह 3 बजकर 27 मिनट से होगा अर्थात जन्माष्टमी का संयोग रोहणी नक्षत्र से इस वार नही होगा।यही कारण है कि स्मार्त (गृहस्थ) और वैष्णवों (सन्यासी) के विभिन्न मत होने के कारण तिथियां अलग-अलग बताई जा रही हैं।
जन्माष्टमी को दो तिथियां क्यो?
श्रीकृष्ण भक्त दो प्रकार के होते हैं
स्मार्त और वैष्णव।
स्मार्त कौन तथा वैष्णव कौन?
स्मार्त(सनातनी) वह भक्त हैं जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए पंचदेवोपासक है ,अर्थात पंचदेवो मे श्री गणेश , दुर्गा, विष्णु, शिव तथा सूर्य के साथ साथ इनके अवतारो जैसे राम ,कृष्ण इत्यादि तथा ग्रहो मातृकाओ आदि 33 कोटि देवताओं का पूजन, व्रत स्मरण करते हैं. उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का भी पूजन करते हैं.।तथा स्मृतियो(मनुस्मृति सूर्य स्मृति इत्यादि)मे वर्णित ग्रहस्थ नियमों सस्कारों का पालन करते है।तथा चारो पुरुषार्थ (अर्थ,धर्म,काम, मोक्ष)के अभिलाषी हो वे सभी स्मार्त कहलाते है।
जबकि वैष्णवों में वो भक्त आते हैं ।जो एकेश्वरवादी है।अर्थात केवल एक ही ईश्वर को ही मानते है,जिसकी उन्होने दीक्षा ली है।तथा जिन्होने वैष्णव मत के गूरुओ से दीक्षा लेकर अपनी भुजा पर तप्तमुद्रा द्वारा शंख चक्र अंकित करा लिये हो ।तथा संसार से विरक्त होकर सन्यासी हों गये हो जिनके जीवन का लक्ष्य अर्थ ,धर्म, तथा काम को त्याग कर केवल ईश्वर प्राप्ति (मोक्ष)हो। वे सभी वैष्णव कहलाते है।
स्मार्त भक्तजनो का मानना है कि जिस दिन रात्रि मे 12बजे अष्टमी तिथि है ,उसी दिन जन्माष्टमी मनानी चाहिए। अतःस्मार्तों(गृहस्थों) के लिये अष्टमी 11 अगस्त को है।
जवकि वैष्णव (सन्यासी , साधुसंत, विरक्त, एकेश्वरवादी तथा विधवा स्त्री जो वैष्णव हो गयी हो)उनके लिये श्री कृष्ण जन्माष्टमी 12 अगस्त को है।।
*मथुरा और द्वारका में 12 अगस्त को जन्माष्टमी जन्मोत्सव मनाया जाएगा। जबकि उज्जैन, जगन्नाथ पुरी और काशी में 11 अगस्त को दिन मे जन्माष्टमी ब्रत तथा जन्मोत्सव रात्रि 12 वजे मनाया जाएगा।*
जन्माष्टमी तिथि
अष्टमी तिथि आरम्भ – 11 अगस्त दिन मंगलवार प्रातकाल 5 वजकर 55 मिनट से सम्पूर्ण दिन तथा सम्पूर्ण रात्रि पश्चात
12 अगस्त दिन बुधवार प्रातकाल 7 बजकर 41 मिनट तक अतः स्पष्ट है कि समस्त ग्रहस्थ जनो (स्मार्त)को जन्माष्टमी व्रत 11अगस्त को मनाना चाहिये तथा वैष्णव (सन्यासी , साधु सन्तो विरक्त जनो)को जनमाष्टमी 12अगस्त वुधवार को मनाना चाहिये।
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इस वर्ष कब है कृष्णाजन्माष्टमी या जन्मदिवस अवतरण दिवस,, 🙏🏻🌹🙏🏻 ॐ कृष्ण काली नमः इस साल मे श्री हरि प्रभु श्रीकृष्ण का जन्मदिवस या अवतरण दिन (कृष्ण जन्माष्टमी) भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में मनाई जाती है ,इस दिन प्रभु श्री हरिश्रीकृष्ण का जन्म हुआ था इसलिए इसे कृष्णाजन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है ,मगर इस वर्ष भारतीय पंचांग के अनुसार प्रभु श्रीकृष्णजी जन्माष्टमी 11 अगस्त और 12 अगस्त दो दिन मनाने को मिल रही है पंचांग के अनुसार मगर यह असमंजस की स्थिति है कि कौन सी तारीख को प्रभु कृष्णजी जन्माष्टमी के लिए श्रेष्ठ मानी जाए, यह प्रभु श्री कृष्णजी के जन्म तिथि और नक्षत्र पर निर्भर करता है, हमारे अनुसार कई बार ज्योतिष गणना में तिथि और नक्षत्र में समय का अंतर रहता है इसलिए तारीखों में मतभेद होता है, बाकी भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 अगस्त को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से हो रहा है, जो 12 अगस्त को दिन में 11 बजकर 16 मिनट तक रहेगी और वहीं रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 13 अगस्त को तड़के 03 बजकर 27 मिनट से हो रहा है और समापन सुबह 05 बजकर 22 मिनट पर होगा। भारतीय पंचांग के अनुसार ऐसे में 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना सही रहेगा।जन्माष्टमी की पूजा की पुजा आप 12 अगस्त की रात 12 बजकर 05 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक प्रभु श्रीकृष्ण जी जन्म की पूजा कर सकते हैं, जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹 (at माँ महाकाली मंदिर) https://www.instagram.com/p/CDvcMF0Dv2d/?igshid=12m0xv7bhld0n
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*🙏🙏🕉🌹🌹December 10,ॐ श्रीमद् भागवत महापुराणाय नमः 🌹हरिबोल 🌹हरिॐ तत्सत् 🌹ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🌹जय श्री राधा-कृष्ण 🌹श्रीशुकदेवजी ने कहा - परीक्षित! वहां का वृतांत सुनकर तो धर्मराज चुप रहे, किन्तु जब उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि संसार में न्याय करने वाले यदि अनेक लोग होंगे तो फिर जीवों का समान रूप से न्याय कैंसे हो पाएगा। आपके शासन की अवेहलना आज तक किसी ने नहीं की फिर उन पार्षदों का साहस कैंसे हुआ कि उन्होंने अजामिल को हमें नहीं लाने दिया? यमराज ने दूतों से कहा - दूतों! मेरे अतिरिक्त इस संपूर्ण जगत के एक और स्वामी हैं। उन्हीं के अंश ब्रह्माजी, विष्णुजी और शंकरजी हैं। वे ही इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के कारण हैं। मैं तो उनका एक सेवक मात्र हूँ। उन्हीं के कारण मुझे यह विभाग प्राप्त हुआ है। मैं इंद्र, वरूण, चन्द्रमा, सूर्य, अग्नि, प्रजापति और अन्य सभी देवी-देवताओं के सबसे प्रधान होने पर भी मैं उन प्रभु की माया के अधीन हूँ। भगवान कब कैंसे और किस प्रकार क्या करना चाहते हैं वो मेरे लिए संभवतः आवश्यक नहीं है जानना। उनके आदेशों का पालन करना मुझे हर हाल में करना ही होगा। उन पार्षदों के दर्शन अत्यंत दुर्लभ है। तुम्हारा तो सौभाग्य है कि तुमनें उनके दर्शन किए। स्वयं भगवान ने ही मर्यादा का निर्माण किया है। उसे न तो ऋषि, न देवता, फिर मेरी और अन्य की तो बात ही क्या? जब यमदूतों ने अपने स्वामी धर्मराज से भगवान श्रीहरि विष्णु की महिमा सुनी और हाथ जोड़कर उनका स्मरण कर उनकी स्तुति कर उन्हें दंडवत प्रणाम किया। प्रेम से बोलो श्रीहरि नारायण विष्णु भगवान की🌹जय 🌹तभी से यमदूतों ने भगवान के भक्तों के पास जाना छोड़ दिया है उन्हें लेने तो स्वयं प्रभु श्रीहरि के पार्षद सोने के विमान में लेने आते हैं। इसलिए सोते-उठते-बैठते हर पल प्रभु का नाम स्मरण करना चाहिए। यदि अंत समय शरीर त्यागने से पूर्व आपने प्रभु को पुकारा तो निश्चय ��ी आपको सम्मान सहित अपने बैंकुंठ धाम ले जाएंगे... यह कथा मलय पर्वत पर विराजमान महर्षि अगस्त ने श्रीहरि नारायण विष्णु भगवान की पूजा करते समय मुझे (श्रीशुकदेवजी) को सुनाई थी... To be continued... आरती श्रीमद् भागवत महापुराण की।आरती अति पावन पुरान की।धर्म भक्ति विज्ञान खान की ।कलि मल मथनि त्रिताप निवारिनि। जन्म मृत्युमय भव भय हारिनि। सेवत सतत सकल सुखकारिनि। समहौषधि हरि चरित्र गान की। आरती अति पावन पुरान की... प्रणाम 🌹🌹🕉🙏🙏* https://www.instagram.com/p/B54pvqBguPU/?igshid=1d8808jrujn29
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पुण्यतिथि विशेष : क्यों लाला लाजपत राय को कहा जाता था 'पंजाब केसरी'? जानिए उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
चैतन्य भारत न्यूज महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का निधन आज ही के दिन यानी 17 नवंबर 1928 को हुआ था। इन्हें 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। वे जब बोलते थे तो केसरी की ही भांति उनका स्वर गूंजता था। जिस प्रकार केसरी की दहाड़ से वन्यजीव डर जाते हैं, उसी प्रकार से लाला लाजपत राय की गर्जना से अंग्रेज सरकार कांप उठती थी। आज हम आपको लाला लाजपत राय के 91वें बलिदान दिवस पर बताने जा रहे हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
लाला लाजपत राय से जुड़ी कुछ खास बातें... लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे। उनकी माता गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। 1884 में उनके पिता का रोहतक ट्रांसफर हो गया और वह भी पिता के साथ आ गए। उनकी शादी 1877 में राधा देवी से हुई। बचपन से ही उनके मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए।
लाजपत राय देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के हिमायती थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति के वह खिलाफ थे। बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष और बाल गंगाधर तिलक के साथ वह भी मानते थे कि कांग्रेस की पॉलिसी का नकारात्मक असर पड़ रहा है। लाजपत राय ने वकालत करना छोड़ दिया और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके।
1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए। इसके बाद वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे। साल 1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कोलकाता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया।
संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1928 में साइमन कमिशन भारत आया। कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भड़क गया। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगा और लाला लाजपत राय विरोध प्रदर्शन में आगे-आगे थे। इस दौरान पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उसकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाला लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए और 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। ये भी पढ़े... जानिए कब और कैसे हुई 14 नवंबर को बाल दिवस मनाने की शुरुआत 9 बार जेल जा चुके थे जवाहर लाल नेहरू, बाल दिवस पर जानिए उनकी जिंदगी से जुड़ी 12 बातें राष्ट्रीय प्रेस दिवस आज, जानिए वर्तमान में पत्रकरिता की वास्तविक स्थिति Read the full article
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#एक_रिश्तेदार ...👇Plz read & share👇 #महा_आश्चर्य इतना बड़ा #चमत्कार वो भी इतने #जल्दी..... आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा की जिस ईश्वर को पाना बहुत कठिन बताया जाता है उसी ईश्वर को अगर बाल रूप में भजा जाय तो सिर्फ कुछ ही दिनों में वो आपसे चमत्कारी रूप से रीझ जाता है ! जी हाँ, एकदम सत्य और आजमाई गयी बात है उन अनेक कृष्ण भक्तों द्वारा जो अक्सर ही अपने जीवन में लड्डू गोपाल की नटखट शरारतों के प्रत्यक्ष अनुभव और दर्शन का महा दुर्लभ सौभाग्य पाते हैं ! जैसे कोई छोटा मासूम बच्चा हो और उसे आप पीट भी दें, लेकिन फिर थोड़ी देर बाद उसे प्यार से बुलाएँ तो वो आपकी मार को भूलकर आपके पास खिलखिलाते हुए चला आयेगा | उसी तरह से कोई बड़ा पापी भी अगर अच्छा इन्सान बनना चाहता हो तो वो भी प्रेम से लड्डू गोपाल को बार बार बुलाये तो लड्डू गोपाल ठुमुक ठुमुक कर हसतें हुए उसके पास पहुच जायेंगे ! हमारे शास्त्रों में लाड लड़ाने की बड़ी महिमा बताई है कई लोगों को पता ही नहीं है की लाड लड़ाना कहते किसे है ? लाड लड़ाना वो अति आसान प्रक्रिया है जिससे अनन्त ब्रह्मांडो को जन्म देने वाला, पालने वाला और नष्ट करने वाला परम सत्ता आपके बंधन में बध जाता है | अब ये आपके ऊपर है की आप उसे किस रिश्ते में बाधना चाहते हैं | आपको जिस भी रिश्ते में सबसे ज्यादा प्यार महसूस होता हो (चाहे वह बेटा, भाई, भतीजा, भांजा कोई भी रिश्ता हो) उसी रिश्ते से बिना किसी संकोच बाल गोपाल को तुरन्त जोड़ लीजिये और कुछ दिनों तक उस रिश्ते को नियम से निभाइए | और फिर निश्चित चमत्कार देखिये ! कुछ दिन बाद भले ही आप उस रिश्ते को भूल जाय पर लड्डू नहीं भूलेंगे, और आपको ये देखकर महान आश्चर्य होगा की अब रिश्ता लड्डू गोपाल खुद निभा रहे है ! लाड लड़ाने में बस यही गहरी मानसिक भावना तो करनी होती है की लड्डू गोपाल अब से हमारे ये (जो रिश्ता आप चाहें) हुए और फिर मन में अन्दर ही अन्दर उनसे वो रिश्ता निभाइए | मन में भावना करने में दिक्कत आ रही हो तो फिर आप कोई मूर्ति या तस्वीर का सहारा भी ले सकते हैं | मन में लड्डू गोपाल को खाना खिलाने में एकाग्रता नहीं हो पा रही हो तो आप मूर्ति के सामने भोग लगाईये | दोनों में कोई अंतर नहीं है | वास्तव में प्रभु सामान के भूखे नहीं, सिर्फ आपके प्रेम के भूखे हैं ! अपनी नौकरी, व्यापार, पढाई को ईमानदारी से निभाते हुए जब भी आपको खाली समय मिले लड्डू गोपाल के साथ ही मन ही मन खेलिए, बातें करिए और वो हर काम करिए जो आप��ो पसंद हो | बस इसी तरह खेल खेल में लड्डू गोपाल कब आपके अपने हो जायेंगे, आपको पता ही नहीं चलेगा ! https://www.instagram.com/p/B089vaSgQXE/?igshid=14npqhismwpcn
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जय श्री कृष्णा।। मित्रों आपको राज़कुमार देशमुख का स्नेह वंदन।आज कथा सेवा में प्रस्तुत कथा पुष्प आपको सचेत करता है कि कोई भी कार्य अकारण नहीं होता।
🌹🌹एक बार लक्ष्मी और नारायण धरा पर घूमने आए,कुछ समय घूम कर वो विश्राम के लिए एक बगीचे में जाकर बैठ गए।नारायण आंख बंद कर लेट गए,लक्ष्मी जी बैठ नज़ारे देखने लगीं।
थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा एक आदमी शराब के नशे में धुत गाना गाते जा रहा था,उस आदमी को अचानक ठोकर लगी,
तो उस पत्थर को लात मारने और अपशब्द कहने लगा,लक्ष्मी जी को बुरा लगा, अचानक उसकी ठोकरों से पत्थर हट गया,वहां से एक पोटली नि��ली उसने उठा कर देखा तो उसमें हीरे जवाहरात भरे थे,वो खुशी से नाचने लगा और पोटली उठा चलता बना।
लक्ष्मी जी हैरान हुई,उन्होंने पाया ये इंसान बहुत झूठा,चोर और शराबी है।सारे ग़लत काम करता है,इसे भला ईश्वर ने कृपा के काबिल क्यों समझा,उन्होंने नारायण की तरफ देखा,मगर वो आंखें बंद किये मगन थे।
तभी लक्ष्मी जी ने एक और व्यक्ति को आते देखा,बहुत ग़रीब लगता था,मगर उसके चेहरे पे तेज़ और ख़ुशी थी,कपडे साफ़ मगर पुराने थे,तभी उससे व्यक्ति के पांव में एक बहुत बड़ा शूल यानि कांटा घुस गया,ख़ून के फव्वारे बह निकले, उसने हिम्मत कर उस कांटे को निकाला,पांव में गमछा बाँधा,प्रभु को हाथ जोड़ धन्यवाद दे लंगड़ाता हुआ चल दिया।इतने अच्छे व्यक्ति की ये दशा।उन्होंने पाया नारायण अब भी आँख बंद किये पड़े हैं मज़े से।
उन्हें अपने भक्त के साथ ये भेद भाव पसंद नहीं आया,उन्होंने नारायण जी को हिलाकर उठाया,नारायण आँखें खोल मुस्काये।लक्ष्मी जी ने उस घटना का राज़ पूछा।तो नारायण ने जवाब में कहा।
लोग मेरी कार्यशैली नहीं समझे।
मैं किसी को दुःख या सुख नहीं देता वो तो इंसान अपनी करनी से पाता है।
यूं समझ लो मैं एक accountant हूं।
सिर्फ ये हिसाब रखता हूं।
किसको किस कर्म के लिए कब या किस जन्म में अपने पाप या पुण्य अनुसार क्या फल मिलेगा।
जिस अधर्मी को सोने की पोटली मिली, दरअसल आज उसे उस वक़्त पूर्व जन्म के सुकर्मों के लिए,पूरा राज्य भाग मिलना था मगर उसने इस जन्म में इतने विकर्म
किये कि पूरे राज्य का मिलने वाला खज़ाना घट कर एक पोटली सोना रह गया।
और उस भले व्यक्ति ने पूर्व जन्म में इतने पाप करके शरीर छोड़ा था कि आज उसे शूली यानि फांसी पर चढ़ाया जाना था मगर इस जन्म के पुण्य कर्मो की वजह से शूली एक शूल में बदल गई।
अर्थात
ज्ञानी को कांटा चुभे तो उसे कष्ट होता है, दर्द तो होता,मगर वो दुखी नहीं होता।दूसरों की तरह वो भगवान को नहीं कोसता, बल्कि हर तकलीफ को प्रभु इच्छा मान इसमें भी कोई भला होगा मानकर हर कष्ट सह कर भी प्रभु का धन्यवाद करता है।
तो आगे से आप भी किसी तकलीफ में हो तो विचारिये?
सिर्फ़ कष्ट में हैं या दुःखी हैं।
सच्चे दिल से प्रभु पर विश्वास से आपकी आधी सज़ा माफ़ हो जाती है और बाक़ी तकलीफ सहने के लिए परमात्मा आपको उसे ख़ुशी ख़ुशी झेलने की हिम्मत और मार्गदर्शन देते हैं।
अंत में आपसे पुनः निवेदन है कि आप कोराॆना काल में मानवीय दूरी का पालन करें मास्क, सेनेटाइजर का प्रयोग करें &चीन के सामान का बहिष्कार करें और स्वदेशी सामान अपनाए ताकि आने वाले आर्थिक संकट का सामना हम कर सके।
📚 संकलन कर्ता: राज़कुमार देशमुख 📚
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अपनी जन्म कुंडली से जानें विवाह में देरी बाधा के योग विस्तार से !!शादी विशेष !!
वर्तमान में युवक-युवतियां का उच्च शिक्षा या अच्छा करियर बनाने के चक्कर में अधिक उम्र के हो जाने पर विवाह में काफी विलंब हो जाता है। उनके माता-पिता भी असुरक्षा की भावनावश अपने बच्चों के अच्छे खाने-कमाने और आत्मनिर्भर होने तक विवाह न करने पर सहमत हो जाने के कारण विवाह में विलंब-देरी हो जाती है।इस समस्या के निवारणार्थ अच्छा होगा की किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें।
ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं। जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है। अन्य योग निम्नानुसार हैं- (1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए। (2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में। (3) लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में। (4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर। (5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए। (6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में। (7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए। (8) द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में। विवाह में बाधक योग := जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को अशुभ म���ना जाता है। मंगल, शनि, राहु-केतु और सूर्य को क्रूर ग्रह माना है। इनके अशुभ स्थिति में होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है। सप्तमाधिपति द्वादश भाव में हो और राहू लग्न में हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा होना संभव है। सप्तम भावस्थ राहू युक्त द्वादशाधिपति से वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहू की युति हो तो दांपत्य सुख में कमी के साथ ही अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है। लग्न में स्थित शनि-राहू भी दांपत्य सुख में कमी करते हैं। सप्तमेश छठे, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। षष्ठेश का संबंध यदि द्वितीय, सप्तम भाव, द्वितीयाधिपति, सप्तमाधिपति अथवा शुक्र से हो, तो दांपत्य जीवन का आनंद बाधित होता है। छठा भाव न्यायालय का भाव भी है। सप्तमेश षष्ठेश के साथ छठे भाव में हो या षष्ठेश, सप्तमेश या शुक्र की युति हो, तो पति-पत्नी में न्यायिक संघर्ष होना भी संभव है।यदि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करके उपरोक्त दोषों का निवारण करने के बाद ही विवाह किया गया हो, तो दांपत्य सुख में कमी नहीं होती है। किसी की कुंडली में कौन सा ग्रह दांपत्य सुख में कमी ला रहा है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लें। विवाह योग के लिये जो कारण मुख्य है वे इस प्रकार हैं- सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है। सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है। कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है। यदि सप्तम भाव में सम राशि है। सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है। सप्तमेश बली है। सप्तम में कोई ग्रह नही है। किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है। दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है। सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है। विवाह नही होगा अगर := सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है। सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है। सप्तमेश नीच राशि में है। सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है। चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों। शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों। शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों। शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो। शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों। पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में ��ो या दो से अधिक पापग्रह हों। सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो। विवाह में देरी :—- सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है। चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं। चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है। सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है। विवाह का समय ;—– सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है। सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्�� बनता है। सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है। दाम्पत्य-वैवाहिक सुख के उपाय :—- १॰ यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है। अतः जातक मंगल व्रत। मंगल मंत्र का जप, घट विवाह आदि करें। २॰ सप्तम गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें। ३॰ राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२००० जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो, तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। ४॰ सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें। ५॰ जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें। “ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।” ६॰ किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए- “हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।” ७॰ किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं। “कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।” ८॰ जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है। “ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।” ९॰ “ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।” उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर ११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो जाता है। १०॰ जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए। ११॰ लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं बाँधनी चाहिए। १२॰ लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे। १३॰ पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है। १४॰ विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके करना चाहिए। “सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम। महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।” १५॰ किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर १०८ दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के बाद लड्डू बच्चों में बांट दें। यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें। १६॰ तुलसी के पौधे की १२ परिक्रमायें तथा अनन्तर दाहिने हाथ से दुग्ध और बायें हाथ से जलधारा तथा सूर्य को बारह बार इस मन्त्र से अर्ध्य दें- “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्र किरणाय मम वांछित देहि-देहि स्वाहा।” फिर इस मन्त्र का १०८ बार जप करें- “ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय यामिनि। विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे।” १७॰ गुरुवार का व्रत करें एवं बृहस्पति मन्त्र के पाठ की एक माला आवृत्ति केला के पेड़ के नीचे बैठकर करें। १८॰ कन्या का विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो तो एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी, एक सिक्का डाल कर लड़की के सिर के ऊपर ७ बार घुमाकर उसके आगे फेंक दें। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा। १९॰ जो माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी पुत्रवधु सुन्दर, सुशील एवं होशियार हो तो उसके लिए वीरवार एवं रविवार के दिन अपने पुत्र के नाखून काटकर रसोई की आग में जला दें। २० ॰ किसी भी शुक्रवार की रात्रि में स्नान के ��ाद १०८ बार स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का जप करें- “ॐ ऐं ऐ विवाह बाधा निवारणाय क्रीं क्रीं ॐ फट्।” २१ ॰ लड़के के शीघ्र विवाह के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ७० ग्राम अरवा चावल, ७० सेमी॰ सफेद वस्त्र, ७ मिश्री के टुकड़े, ७ सफेद फूल, ७ छोटी इलायची, ७ सिक्के, ७ श्रीखंड चंदन की टुकड़ी, ७ जनेऊ। इन सबको सफेद वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु व्यक्ति घर के किसी सुरक्षित स्थान में शुक्रवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें। २२ ॰ लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़ की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न प��़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें। २३ ॰ श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे। वास्तु दोष तो नहीं हें कारण आपके विवाह में देरी? आजकल अनेक अभिभावक अपने बच्चों की शादी-विवाह को लेकर बहुत परेशान-चिंतित रहते हें और पंडितों तथा ज्योतिर्विदों के पास जाकर परामर्श-सलाह लेते रहते है किन्तु क्या कभी आपने सोचा की विवाह में विलंब के कई कारण हो सकते हैं? इनमे से एक मुख्य कारण वास्तु दोष भी हो सकता है। यदि आप भी अपनी संतान के विवाह बाधा देरी की वजह से चिंतित हैं तो इन वास्तु दोषों पर विचार करें- 1- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें उनको उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। इससे विवाह के लिए रिश्ते आने लगते हैं।उस कमरे में उन्हें सोते समय अपना सर हमेशा पूर्व दिशा में रखना चाहिए… 2- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें को ऐसे कक्ष में नहीं रहना चाहिए जो अधूरा बना हुआ हो अथवा जिस कक्ष में बीम लटका हुआ दिखाई देता हो। 3- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें तो उनके शयन कक्ष/ कमरे एवं दरवाजा का रंग गुलाबी, हल्का पीला, सफेद(चमकीला) होना चाहिए। 4- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें तो उन्हें विवाह के लिए अपने कमरे में पूर्वोत्तर दिशा में पानी का फव्वारा रखना चाहिए। 5- कई बार ऐसा भी होता की कोई युवक या युवती विवाह के लिए तैयार/राजी नहीं होते हें हो तो उसके कक्ष के उत्तर दिशा की ओर क्रिस्टल बॉल कांच की प्लेट अथवा प्याली में रखनी चाहिए।
नोट ;= जिन युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है शादी में बिलम्व हो रहा हैं वो हम से शीघ्र सम्पर्क करें आचार्य पं. सतीश कुमार 9210103470, 9555869444
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पुरुषोत्तम मास यानी उत्तम होने की संभावना का महीना। इसे अधिक मास भी कहा गया है। ये माह 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। अपने अच्छे किए गए कार्यों का फल प्राप्त करने के अधिक अवसर हैं इसमें। जो लोग परिवार में रहते हैं, उनके लिए विष्णु भक्ति के ये दिव्य दिन माने गए हैं। महामारी के इस काल में पुरुषोत्तम मास का आना हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। बशर्ते हम इसे ठीक से समझें और इस महीने में जो किया जाना चाहिए, वह ठीक से कर जाएं।
इस समय हमारे जीवन का हर पक्ष कोविड-19 से प्रभावित है। यहां तक कि हमारी भक्ति भी इससे बची हुई नहीं है। डॉक्टर कहते हैं जब किसी पर कोरोना का प्रहार होता है तो चार मुख्य लक्षण सामने आते हैं- खांसी, बुखार, सांस की तकलीफ और शरीर दर्द। इसका इलाज तो चिकित्सा विज्ञान ही करेगा, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स भी किसी बीमारी से कम नहीं हैं। अभाव, दबाव, तनाव और स्वभाव इसके साइड इफेक्ट बनकर जीवन में नई शक्ल में रोग बनकर उतर चुके हैं, इनका इलाज हमें स्वयं ही करना है।
भागवत पुराण में छठे स्कंध के आरंभ में कहा गया है- अपने चिकित्सक आप बनें। इसमें भक्ति बहुत मदद करेगी। यह महीना भक्ति करने का ही है। अपनी भक्ति को उपचार बनाने के सारे अवसर इस मास में हैं। क्यों भक्ति करें और कैसे लाभ उठाएं, इसे यूं समझें..।
डॉक्टर भी मानते हैं जो लोग इस बीमारी को लेकर ओवर कान्फिडेंट हैं (जिन्हें लापरवाह भी कह सकते हैं) वो और दूसरे जो बहुत उदास हैं, वे इस बीमारी से हार जाएंगे। हो सकता है मृत्यु तक आ जाए। लेकिन, जो उत्साह में भरे हैं, आनंद में हैं, आत्मविश्वास में हैं, वे बच जाएंगे। तो क्यों न इस महीने हम अपने आपको इस दूसरी श्रेणी में रखें।
भगवान विष्णु के दस अवतार प्रमुख माने गए हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। हर अवतार ने पांच संदेश दिए हैं-
1. जीवन में संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा, समस्या बनी ही रहेगी।
2. हर समस्या का समाधान होता है। बस, ढूंढना आना चाहिए।
3. मेरा भरोसा मत छोड़ना।
4. मैं तुम्हारे लिए लड़ूंगा और तुम्हें लड़ने के योग्य बनाऊंगा।
5. लेकिन, मेरी एक शर्त है कि भक्ति करना होगी।
विष्णुजी के सभी दस अवतार ने ये पांच संदेश दिए हैं। यूं तो पूरे महीने आप अपने ढंग से पूजा-पाठ कर सकते हैं, लेकिन चाहें तो एक प्रयोग किया जा सकता है। विष्णुजी के इन दस में से भी दो प्रमुख अवतार हुए- श्रीराम और श्रीकृष्ण। तो दो मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है-
पहला - हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे.. हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे..। यह महामंत्र है।
दूसरा - ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय..। यह द्वादश मंत्र है। भागवत में कृष्णजी को इसी के साथ याद किया गया है।
दूसरा काम कर सकते हैं हवन। संभव हो तो हनुमत हवन करिए। इन अनुष्ठानों को प्रतिदिन चार भागों में बांटकर बड़ी आसानी से करते हुए इस माह का खूब लाभ उठा सकते हैं। इस महीने हम कुछ विशेष क्यों करें.? इसका जवाब है- हमारे जीवन में अभाव, दबाव, तनाव और स्वभाव की बीमारी भी जन्म ले चुकी है।
किस समय करें? सुबह, दोपहर, शाम और रात।
समय
क्या करें
क्या लाभ मिलेगा
सुबह
दान
अभाव दूर होगा
दोपहर
तप
दबाव दूर होगा
शाम
जाप
तनाव दूर होगा
रात
ध्यान
स्वभाव शांत होगा
अभाव दूर करने के लिए सुबह दान करें
इस महामारी ने हर एक के जीवन में एक अभाव पैदा कर दिया है और उसी से एक भय उपजा है- 'कल क्या होगा।' इसे मिटाने के लिए सुबह-सुबह प्रयोग करिए। खुद के लिए सबसे बड़ा दान समय का कीजिए। योगासन के लिए समय निकालिए। यदि कोई वस्तु दान करना चाहें तो पूरे तीस दिन के दान की सूची ब्राह्मण आपको बता सकते हैं।
दबाव दूर करने के लिए दोपहर में तप करें
इस समय जीवन के चारों क्षेत्र (व्यावसायिक, सामाजिक, पारिवारिक और निजी) में दबाव आ गया है। दबाव का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यदि यह कुछ समय रुक जाए तो तनाव में बदल जाता है। चूंकि जीवनशैली बदल गई, सहजता समाप्त हो गई तो दबाव आना स्वाभाविक है। ऐसे में दोपहर के समय तप करिए।
यहां तप का अर्थ धूनी रमाकर बैठ जाना नहीं है। दोपहर को जब आप अपने कार्यों में व्यस्त हों, उस समय तप का मतलब है पूरी सावधानी रखी जाए। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हैंडवॉश और स्वच्छता ही सबसे बड़ा तप है जो आपको उस समय निभाना है जब दिन में अनेक लोगों से संपर्क में आने की संभावना रहती है। यहां आपकी सावधानी को परमात्मा भक्ति ही मानेगा।
तनाव दूर करने के लिए शाम को जाप करें
इस समय सबसे बड़ा तनाव तो यह हो गया है कि कोरोना रूपी यह बीमारी जाएगी कब। दूसरी बात कि किसी एक को हो जाए तो उसके साथ वाले भी धरा जाते हैं। जीवन, जीविका और जगत ने एक साथ तनाव दे दिया है।
शाम को हमारी ऊर्जा वैसे ही निगेटिव हो जाती है तो तनाव और बढ़ जाता है। इस समय करिए जप। दो मंत्रों में से किसी का भी मानसिक जप करते हुए संकल्प लीजिए कि हम भगवान का भरोसा बढ़ाएंगे। बस, तनाव अपने आप कम होने लगेगा।
स्वभाव शांत करने के लिए रात में ध्यान करें
ऐसा समय आया कि मनुष्यों का स्वभाव बदलने लगा। अच्छे-अच्छे समर्थ लोग भयभीत दिख रहे हैं, बच्चे चिड़चिड़े हो गए। घरों में कलह उतर आया। स्वाभाविक जीवन जीने वाले लोग भी अस्वाभाविक हो गए। जब मनुष्य के स्वभाव पर प्रहार होता है तो उसका रोम-रोम रोगी हो जाता है।
रात को सोने से पहले ध्यान करें। मेडिटेशन का यह अधिक मास बहुत अच्छा अवसर है। इस समय आप अपनी समूची शक्ति को केंद्रित कर रहे होते हैं और शरीर, मन व आत्मा के अंतर को निद्रा पूर्व तथा निद्रा में समझना आसान हो जाता है। यदि रात को ध्यान के साथ सोएंगे तो अगली सुबह आपके साथ एक परमशक्ति होगी। यही परमशक्ति इस पुरुषोत्तम मास के प्राण हैं। यदि अधिक मास की अवधि में ये चार प्रहर ठीक से बिता लेते हैं तो इस बार का पुरुषोत्तम मास कोरोना से लडऩे में किसी वैक्सीनेशन से कम नहीं होगा..।
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NCERT Class 12 Hindi Apathit Kavyansh
NCERT Class 12 Hindi :: Apathit Kavyansh
CBSE Class 12 Hindi Unseen Passages (अपठित काव्यांश)
अपठित काव्यांश वे काव्यांश हैं जिनका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है। इन काव्यांशों के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की भावग्रहण क्षमता को विकसित करना है।
अपठित काव्यांश हल करने की विधि :
सर्वप्रथम काव्यांश का दो-तीन बार अध्ययन करें ताकि उसका अर्थ व भाव समझ में आ सके।
तत्पश्चात् काव्यांश से संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
प्रश्नों के पढ़ने के बाद काव्यांश का पुनः अध्ययन कीजिए ताकि प्रश्नों के उत्तर से संबंधित पंक्तियाँ पहचानी जा सके���।
प्रश्नों के उत्तर काव्यांश के आधार पर ही दीजिए।
प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
उत्तरों की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
गत वर्षों के पूछे गए प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. शांति नहीं तब तक, जब तकसुख-भाग न सबका सम हो।नहीं किसी को बहुत अधिक होनहीं किसी को कम हो।स्वत्व माँगने से न मिले,संघात पाप हो जाएँ।बोलो धर्मराज, शोषित वेजिएँ या कि मिट जाएँ?न्यायोचित अधिकार माँगनेसे न मिले, तो लड़ केतेजस्वी छीनते समय को,जीत, या कि खुद मर के।किसने कहा पाप है? अनुचितस्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना?उठा न्याय का खड्ग समर मेंअभय मारना-मरना?
प्रश्नः(क) कवि के अनुसार शांति के लिए क्या आवश्यक शर्त है?(ख) तेजस्वी किस प्रकार समय को छीन लेते हैं ?(ग) न्यायोचित अधिकार के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए?(घ) कृष्ण युधिष्ठिर को युद्ध के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ?उत्तरः(क) कवि के अनुसार, शांति के लिए आवश्यक है कि संसार में संसाधनों का वितरण समान हो।
(ख) अपने अनुकूल समय को तेजस्वी जीतकर छीन लेते हैं।
(ग) न्यायोचित अधिकार के लिए मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है। अपना हक माँगना पाप नहीं है।
(घ) कृष्ण युधिष्ठिर को युद्ध के लिए इसलिए प्रेरित कर रहे हैं ताकि वे अपने हक को पा सकें, अपने प्रति अन्याय को खत्म कर सकें।
2. नीड़ का निर्माण फिर-फिरनेह का आह्वान फिर-फिर
वह उठी आँधी कि नभ मेंछा गया सहसा अँधेरा
धूलि-धूसर बादलों नेभूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया फिररात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा,इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय सेभीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा कीमोहिनी मुसकान फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिरनेह का आह्वान फिर-फिर
प्रश्नः(क) आँधी तथा बादल किसके प्रतीक हैं ? इनके क्या परिणाम होते हैं ?(ख) कवि निर्माण का आह्वान क्यों करता है?(ग) कवि किस बात से भयभीत है और क्यों?(घ) उषा की मुसकान मानव-मन को क्या प्रेरणा देती है?उत्तरः(क) आँधी और बादल विपदाओं के प्रतीक हैं। जब विपदाएँ आती हैं तो उससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है। मानव मन का उत्साह नष्ट हो जाता है।
(ख) कवि निर्माण का आह्वान इसलिए करता है ताकि सृष्टि का चक्र चलता रहे। निर्माण ही जीवन की गति है।
(ग) विपदाओं के कारण चारों तरफ निराशा का माहौल था। कवि को लगता था कि निराशा के कारण निर्माण कार्य रुक जाएगा।
(घ) उषा की मुसकान मानव में कार्य करने की इच्छा जगाती है। वह मानव को निराशा के अंधकार से बाहर निकालती है।
3. पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,और प्रज्वलित प्राण देश कया कभी मरेगा मारे?लहू गर्म करने को रक्खो मन में ज्वलित विचार,हिंसक जीव से बचने को चाहिए किंतु तलवार ।एक भेद है और जहाँ निर्भय होते नर-नारीकलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारीजहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,बातों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले।जहाँ लोग पालते लहू में हालाहल की धारक्या चिंता यदि वहाँ हाथ में हुई नहीं तलवार?
प्रश्नः(क) कलम किस बात की प्रतीक है?(ख) तलवार की आवश्यकता कहाँ पड़ती है?(ग) लहू को गरम करने से कवि का क्या आशय है?(घ) कैसे व्यक्ति को तलवार की आवश्यकता नहीं होती?उत्तरः(क) कलम क्रांति पैदा करने का प्रतीक है। वह वैचारिक क्रांति लाती है।
(ख) तलवार की आवश्यकता हिंसक पशुओं से बचने के लिए होती है अर्थात् अन्यायी को समाप्त करने के लिए इसकी ज़रूरत होती है।
(ग) इसका अर्थ है-क्रांतिकारी विचारों से मन में जोश व उत्साह का बनाए रखना।
(घ) वे व्यक्ति जिनमें अंदर जोश है, वैचारिक शक्ति है, उन्हें तलवार की ज़रूरत नहीं होती।
4. यह लघु सरिता का बहता जलकितना शीतल, कितना निर्मलहिमगिरि के हिम से निकल-निकल,यह विमल दूध-सा हिम का जल,कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल,
तन का चंचल मन का विह्वलयह लघु सरिता का बहता जल।
ऊँचे शिखरों से उतर-उतरगिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,कंकड़-कंकड़ पैदल चलकरदिनभर, रजनी-भर, जीवन-भर
धोता वसुधा का अंतस्तलयह लघु सरिता का बहता जल।
हिम के पत्थर वो पिघल-पिघल,बन गए धरा का वारि विमल,सुख पाता जिससे पथिक विकलपी-पी कर अंजलि भर मृदुजल
नित जलकर भी कितना शीतलयह लघु सरिता का बहता जल।
कितना कोमल कितना वत्सलरे जननी का वह अंतस्तल,जिसका यह शीतल करुणाजलबहता रहता युग-युग अविरल
गंगा, यमुना, सरयू निर्मलयह लघु सरिता का बहता जल।
प्रश्नः(क) वसुधा का अंतस्तल धोने में जल को क्या-क्या करना पडता है?(ख) जल की तुलना दूध से क्यों की गई है?(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-‘तन का चंचल मन का विह्वल’(घ) ‘रे जननी का वह अंतस्तल’ में जननी किसे कहा गया है?उत्तरः(क) वसुधा का अंतस्तल धोने के लिए जल ऊँचे पर्वतों से उतरकर पर्वतों की चट्टानों पर गिरकर कंकड़-कंकड़ों पर पैदल चलते हुए दिन-रात जीवन पर्यंत कार्य करता है।
(ख) हिम के पिघलने से जल बनता है जो शुद्ध व पवित्र होता है। दूध को भी पवित्र व शुद्ध माना जाता है। अतः जल की तुलना दूध से की गई है।
(ग) इसका मतलब है कि जिस प्रकार शरीर में मन चंचल अपने भावों के कारण हर वक्त गतिशील रहता है, उसी तरह छोटी नदी का जल भी हर समय गतिमान रहता है।
(घ) इसमें भारत माता को जननी कहा गया है।
5. यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे।किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे।
निर्झर में गति है जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है,तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर कहता है बढ़े चलो! देखो मत पीछे मुड़कर,यौवन कहता है बढ़े चलो! सोचो मत क्या होगा चल कर।
चलना है केवल चलना है! जीवन चलता ही रहता है,रुक जाना है मर जाना है, निर्झर यह झरकर कहता है।
प्रश्नः(क) जीवन की तुलना निर्झर से क्यों की गई है?(ख) जीवन और निर्झर में क्या समानता है ?(ग) जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए?(घ) ‘तब यौवन बढ़ता है आगे!’ से क्या आशय है?उत्तरः(क) जीवन व निर्झर में समानता है क्योंकि दोनों में मस्ती होती है तथा दोनों ही सुख-दुख के किनारों के बीच चलते हैं।
(ख) जीवन की तुलना निर्झर से की गई है क्योंकि जिस तरह निर्झर विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए निरंतर आगे चलता रहता है, उसी प्रकार जीवन भी बाधाओं से लड़ते हुए आगे बढ़ता है।
(ग) जीवन का उद्देश्य सिर्फ चलना है। रुक जाना उसके लिए मृत्यु के समान है।
(घ) इसका आशय है कि जब जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो आम व्यक्ति रुक जाता है, परंतु युवा शक्ति आगे बढ़ती है। वह परिणाम की परवाह नहीं करती।
6. आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र कहाँ इस जग में?नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसती हो पाई ?बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई ?मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है।जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है।सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है।पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है।दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता,वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता।फिर क्या विषाद, भय चिंता जो होगा सब सह लेंगे,परिवर्तन की लहरों में जैसे होगा बह लेंगे।
प्रश्नः(क) ‘रोने से दुर्भाग्य सौभाग्य में नहीं बदल जाता’ के भाव की पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए।(ख) समय किसे नष्ट कर देता है और कैसे?(ग) इतिहास किसे याद रखता है और क्यों?(घ) ‘मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।उत्तरः(क) ये पंक्तिया हैं आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
(ख) समय हमेशा कमजोर व्यवस्था को चुपचाप नष्ट कर देता है। दुर्बल तब समय के अनुसार स्वयं को बदल नहीं पाता तथा प्रेरणापरक कार्य नहीं करता।
(ग) इतिहास उन्हें याद रखता है जो अपने बल व पुरुषार्थ के आधार पर समाज के लिए कार्य करते हैं। प्रेरक कार्य करने वालों को जनता याद रखती है।
(घ) इसका अर्थ है कि अच्छे दिन सदैव नहीं रहते। मानव के जीवन में पतझर जैसे दुख भी आते हैं।
7. तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन क��,चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का।विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता,जोड़ा करता जिनकी गति से नव उत्साह निरंतर नाता।पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय,जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय।अचल खड़े रहते जो ऊँचा, शीश उठाए तूफ़ानों में,सहनशीलता दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर,प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
प्रश्नः(क) कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?(ख) तरुणाई की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?(ग) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ते हैं और कैसे?(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय।’उत्तरः(क) कवि ने युवाओं का आह्वान किया है क्योंकि उनमें उत्साह होता है और वे संघर्ष क्षमता से युक्त होते हैं।
(ख) तरुणाई की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है-उत्साह, कठिन परिस्थितियों का सामना करना, हार से निराश न होना, दृढ़ता, सहनशीलता आदि।
(ग) मार्ग की रुकावटों को युवा शक्ति तोड़ती है। जिस प्रकार झरने चट्टानों को तोड़ते हैं, उसी प्रकार युवा शक्ति अपने पंथ की रुकावटों को खत्म कर देती है।
(घ) इसका अर्थ है कि युवा शक्ति जनसामान्य में उत्साह का संचार कर देती है।
8. अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में,सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।वही पंथ बाधा तो तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर,प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,जागो, देश के प्राण जगा दो नए प्रात का नया जागरण।आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी तरुणाई,नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली अंगड़ाई।
प्रश्नः(क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे?(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं ?(ग) “विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान क्यों कर रहा है?उत्तरः(क) मार्ग की रुकावटों को वीर तोड़ता है। वे अपने उत्साह, संघर्ष, सहनशीलता व वीरता से पथ की बाधाओं को दूर करते हैं।
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को दुर्गम रास्तों पर चलकर सार्थक करते हैं।
(ग) इसका आशय है कि पिछले कुछ समय से देश में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हो पा रहा है।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान इसलिए कर रहा है क्योंकि उनमें नए, कार्य करने का उत्साह व क्षमता है। वे नए इतिहास को लिख सकते हैं। उन्हें देश में नया उत्साह जगाना है।
9. मैंने गढ़ेताकत और उत्साह सेभरे-भरेकुछ शब्दजिन्हें छीन लिया मठाधीशों नेदे दिया उन्हें धर्म का झंडाउन्मादी हो गएमेरे शब्दतलवार लेकरबोऊँगी उन्हें मिटाने लगेअपना ही वजूदफिर रचे मैंनेइंसानियत से लबरेजढेर सारे शब्दनहीं छीन पाएगा उन्हेंछीनने की कोशिश में भीगिर ही जाएँगे कुछ दानेऔर समय आने परफिर उगेंगे वेअबकी उन्हें अगवा कर लियासफ़ेदपोश लुटेरों नेऔर दबा दिया उन्हेंकुर्सी के पाये तलेअसहनीय दर्द से चीख रहे हैंमेरे शब्द और वेकर रहे हैं अट्टहासअब मैं गर्दैगीनिराई गुड़ाई औरखाद-पानी सेलहलहा उठेगी फ़सलतब कोई मठाधीशकोई लुटेराएक बारदो बारबार-बारलगातार उगेंगेमेरे शब्द
प्रश्नः(क) ‘मठाधीशों’ ने उत्साह भरे शब्दों को क्यों छीना होगा?(ख) आशय समझाइए-कुर्सी के पाये तले दर्द से चीख रहे हैं(ग) कवयित्री किस उम्मीद से शब्दों को बो रही है?(घ) ‘और वे कर रहे हैं अट्टहास’ में ‘वे’ शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है?उत्तरः(क) मठाधीशों ने उत्साह भरे शब्दों को छीन लिया ताकि वे धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सके।
(ख) इसका आशय है कि सत्ता ने इंसानियत के शब्दों को कैद कर लिया। वे मुक्ति चाहते हैं, परंतु सत्ता उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है।
(ग) कवयित्री अपने शब्दों को बो रही है ताकि इन शब्दों को कोई लूट या कब्जा न कर सके। जब इनकी फ़सल उग जाएगी तो ये चिरस्थायी हो जाएँगे।
(घ) ‘वे’ शब्द सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए है।
10. खुल कर चलते डर लगता हैबातें करते डर लगता हैक्योंकि शहर बेहद छोटा है।ऊँचे हैं, लेकिन खजूर सेमुँह है इसीलिए कहते हैं,जहाँ बुराई फूले-पनपे-वहाँ तटस्थ बने रहते हैं,नियम और सिद्धांत बहुतदंगों से परिभाषित होते हैं-जो कहने की बात नहीं है,वही यहाँ दुहराई जाती,जिनके उजले हाथ नहीं हैं,उनकी महिमा गाई जातीयहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर,अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है-सब अपने धंधे में रत हैंयहाँ न्याय की बात गलत हैक्योंकि शहर बेहद छोटा है।बुद्धि यहाँ पानी भरती है,सीधापन भूखों मरता है-उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है,जो सारे काम गलत करता है।यहाँ मान के नाप-तौल की,इकाई कंचन है, धन है-कोई सच के नहीं साथ हैयहाँ भलाई बुरी बात है।क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
प्रश्नः(क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘छोटेपन’ को अभिव्यक्त करना चाहता है ?(ख) इस शहर के लोगों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?(ग) आशय समझाइए‘बुद्धि यहाँ पानी भरती है,सीधापन भूखों मरता है’(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं ?उत्तरः(क) कवि ने शहर को छोटा कहा है क्योंकि यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। व्यक्तियों के स्वार्थ में डूबे होने के कारण हर जगह अन्याय स्थापित हो रहा है।
(ख) इस शहर के लोग संवेदनहीन, स्वार्थी, डरपोक, अन्यायी का गुणगान करने वाले व निरर्थक प्रलाप करने वाले हैं।
(ग) इस पंक्ति का आशय है कि यहाँ विद्वान व समझदार लोगों को महत्त्व नहीं दिया जाता। सरल स्वभाव का व्यक्ति अपना जीवन निर्वाह भी नहीं कर सकता।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व दंगों से अपना शासन स्थापित करते हैं तथा नियम बनाते हैं। धनिक अवैध कार्य करके धन कमाते हैं।
11. जाग रहे हम वीर जवान,जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं,हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।वीरप्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं,गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं।तन, मन, धन, तुम पर कुर्बान,जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण,जिनमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन।एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल।थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर।हम उन वीरों की संतान,जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!
प्रश्नः(क) ‘नवीन भारत’ से क्या तात्पर्य है?(ख) उस पंक्ति को उद्धृत कीजिए जिसका आशय है कि भारतीय बाहर से चाहे कठोर दिखाई पड़ें, उनका हृदय कोमल होता है।(ग) ‘हम उन वीरों की संतान’-उन पूर्वज वीरों की कुछ विशेषताएँ लिखिए।(घ) ‘वीरप्रसू माँ’ किसे कहा गया है? क्यों?उत्तरः(क) ‘नवीन भारत’ से तात्पर्य है-आज़ादी के पश्चात् निरंतर विकसित होता भारत।
(ख) उक्त भाव को व्यक्त करने वाली पंक्ति है-जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल।
(ग) कवि ने पूर्वज वीरों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
इनकी वीरता से संसार भयभीत था।
वीरों में आग व मधु का मेल था।
वीरों में तेज था, परंतु वे कोमल भावनाओं से युक्त थे।
(घ) ‘वीरप्रसू माँ’ से तात्पर्य भारतमाता से है। भारतमाता ने देश का मान बढ़ाने वाले अनेक वीर दिए हैं।
12. देखो प्रिये, विशाल विश्व को आँख उठाकर देखो,अनुभव करो हृदय से यह अनुपम सुषमाकर देखो।यह सामने अथाह प्रेम का सागर लहराता है,कूद पड़ें, तैरूँ इसमें, ऐसा जी में आता है।
रत्नाकर गर्जन करता है मलयानिल बहता है,हरदम यह हौसला हृदय में प्रिय! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के,कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ ���ी भर के॥निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा,कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्यभूमि पर लक्ष्मी की असवारी,रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी॥
प्रश्नः(क) कवि अपनी प्रेयसी से क्या देखने का अनुरोध कर रहा है और क्यों?(ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ क्यों कहा जाता है ?(ग) विशाल सागर को देखने पर कवि के मन में क्या इच्छाएँ जगती हैं ?(घ) काव्यांश के आधार पर सूर्योदय का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।उत्तरः(क) कवि अपनी प्रेयसी से विशाल विश्व को देखने का अनुरोध कर रहा है ��्योंकि वह विश्व की सुंदरता का अनुभव उसे कराना चाहता है।
(ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ इसलिए कहा गया है क्योंकि इसके अंदर संसार के कीमती खनिज-पदार्थ, रत्न आदि मिलते हैं।
(ग) विशाल सागर को देखकर कवि के मन में इसमें कूदकर तैरने की इच्छा उत्पन्न होती है।
(घ) कवि कहता है कि समुद्र के तल पर सूर्य आधा निकला है जो लक्ष्मी के सोने के मंदिर का चमकता कंगूरा जैसा लगता है जैसे, लक्ष्मी की सवारी को लाने के लिए सागर ने सोने की सड़क बना दी हो।
13. तुम नहीं चाहते थे क्याफूल खिलेंभौरे गूंजेंतितलियाँ उड़ें?नहीं चाहते थे तुमशरदाकाशवसंत की हवामंजरियों का महोत्सवकोकिल की कुहू, हिरनों की दौड़?तुम्हें तो पसंद थे भेड़ियेभेड़ियों-से धीरे-धीरे जंगलाते आदमीसमूची हरियाली को धुआँ बनाते विस्फोट!तुमने ही बना दिया है सबको अंधा-बहराआकाशगामी हो गए सबकोलाहल में डूबे, वाणी-विहीनअब भी समय हैबाकी है भविष्य अभीखड़े हो जाओ अँधेरों के खिलाफवेद-मंत्रों से ध्याता,पहचानो अपनी धरतीअपना आकाश!
प्रश्नः(क) आतंकी विस्फोटों के क्या-क्या परिणाम होते हैं ?(ख) आतंकवादियों को धरती के कौन-कौन से रूप नहीं लुभाते?(ग) आशय स्पष्ट कीजिए‘तुम्हें तो पसंद थे भेडियेभेड़ियों से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी’(घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि क्या अपेक्षा करता है?उत्तरः(क) आतंकी विस्फोटों के निम्नलिखित परिणाम होते हैं-हरियाली का नष्ट होना, जीवधारियों की शांति भंग होना, विनाशक शकि तयों का प्रबल होना।
(ख) आतंकवादियों को-धरती पर फूल खिलना, भौरों का गुंजन, तितलियाँ उड़ना, वसंती हवा, मंजरियों का उत्सव, हिरनों की दौड़, कोयल का गाना आदि पसंद नहीं है।
(ग) इसका अर्थ है कि आतंकवादियों को धूर्त व हत्यारी प्रकृति के लोग पसंद होते हैं। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या से जंगलीपन बढ़ता जाता है।
(घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि यह अपेक्षा करता है कि आतंकी अपना बहुत कुछ खो चुके हैं, परंतु अभी सुधरने का समय है। वे इन प्रकृतियों के खिलाफ खड़े होकर समाज को बचा सकते हैं।
14. ‘सर! पहचाना मुझे ?’बारिश में भीगता आया कोईकपड़े कीचड़-सने और बालों में पानी।बैठा। छन-भर सुस्ताया। बोला, नभ की ओर देख-‘गंगा मैया पाहुन बनकर आई थीं’झोंपड़ी में रहकर लौट गईं-नैहर आई बेटी की भाँतिचार दीवारों में कुदकती-फुदकती रहींखाली हाथ वापस कैसे जातीं!घरवाली तो बच गईं-दीवारें ढहीं, चूल्हा बुझा, बरतन-भाँडे-जो भी था सब चला गया।प्रसाद-रूप में बचा है नैनों में थोड़ा खारा पानीपत्नी को साथ ले, सर, अब लड़ रहा हूँढही दीवार खड़ी कर रहा हूँकादा-कीचड़ निकाल फेंक रहा हूँ।’मेरा हाथ जेब की ओर जाते देखवह उठा, बोला-‘सर पैसे नहीं चाहिए।जरा अकेलापन महसूस हुआ तो चला आयाघर-गृहस्थी चौपट हो गई पररीढ़ की हड्डी मज़बूत है सर!पीठ पर हाथ थपकी देखकरआशीर्वाद दीजिए-लड़ते रहो।’
प्रश्नः(क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से क्यों की गई है?(ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर क्यों गया होगा?(ग) आगंतुक ‘सर’ के घर क्यों आया था?(घ) कैसे कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है?उत्तरः(क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से इसलिए की है क्योंकि शादी के बाद बेटी अचानक आकर मायके से बहुत कुछ सामान लेकर चली जाती है। इसी तरह बाढ़ भी अचानक आकर लोगों की जमापूँजी लेकर ही जाती है।
(ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर इसलिए गया होगा ताकि वह बाढ़ में अपना सब कुछ गँवाए हुए व्यक्ति की कुछ आर्थिक सहायता कर सके।
(ग) आगंतुक ‘सर’ के घर आर्थिक मदद माँगने नहीं आया था। वह अपने अकेलेपन को दूर करने आया था। वह ‘सर’ से संघर्ष करने की क्षमता का आशीर्वाद लेने आया था।
(घ) आगंतुक के घर का सामान बाढ़ में बह गया। इसके बावजूद वह निराश नहीं था। उसने मकान दोबारा बनाना शुरू किया। उसने ‘सर’ से आर्थिक सहायता लेने के लिए भी इनकार कर दिया। अतः हम कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है।
15. स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती।
देह तुम्हारी लोहे की हो, स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती,युवको, सुनो जवानी तुममें आए आँधी-सी अर्राती।
जब तुम चलो चलो ऐसेजैसे गति में तूफान समेटे।हो संकल्प तुम्हारे मन में।युग-युग के अरमान समेटे।
अंतर हिंद महासागर-सा, हिमगिरि जैसी चौड़ी छाती।
जग जीवन के आसमान मेंतुम मध्याह्न सूर्य-से चमकोतुम अपने पावन चरित्र सेउज्ज्व ल दर्पण जैसे दमको।
साँस-साँस हो झंझा जैसी रहे कर्म ज्वाला भड़काती।
जनमंगल की नई दिशा में ‘तुम जीवन की धार मोड़ दोयदि व्यवधान चुनौती दे तोतुम उसकी गरदन मरोड़ दो।
ऐसे सबक सिखाओ जिसको याद करे युग-युग संघाती।स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती।
प्रश्नः(क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना क्यों की गई है?(ख) किसकी गरदन मरोड़ने को कहा गया है और क्यों?(ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में क्या कहा गया है?(घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में क्या कल्पना की गई है?उत्तरः(क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना इसलिए की गई है ताकि उनमें उत्साह का संचार रहे। उनकी गति में तूफान व संकल्पों में युग-युग के अरमान समा जाएँ।
(ख) कवि ने व्यवधान की गरदन मरोड़ने को कहा है क्योंकि उसे सबक सिखाने की ज़रूरत है। उसे ऐसे सबक को लंबे समय तक याद रखना होगा।
(ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में कवि कहता है कि उन्हें तूफान की गति के समान चलना चाहिए। उनका मन हिंद महासागर के समान गहरा व सीना हिमालय जैसा चौड़ा होना चाहिए।
(घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में कवि कल्पना करता है कि वे संसार के आसमान में दोपहर के सूर्य के समान चमकें। वे अपने पवित्र चरित्र से उज्ज्वल दर्पण के समान दमकने चाहिए।
16. नए युग में विचारों की नई गंगा कहाओ तुम,कि सब कुछ जो बदल दे, ऐसे तूफ़ाँ में नहाओ तुम।
अगर तुम ठान लो तो आँधियों को मोड़ सकते होअगर तुम ठान लो तारे गगन के तोड़ सकते हो,अगर तुम ठान लो तो विश्व के इतिहास में अपने-सुयश का एक नव अध्याय भी तुम जोड़ सकते हो,
तुम्हारे बाहुबल पर विश्व को भारी भरोसा है-उसी विश्वास को फिर आज जन-जन में जगाओ तुम।
पसीना तुम अगर इस भूमि में अपना मिला दोगे,करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दिला दोगे।तुम्हारी देह के श्रम-सीकरों में शक्ति है इतनी-कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
नया जीवन तुम्हारे हाथ का हल्का इशारा हैइशारा कर वही इस देश को फिर लहलहाओ तुम।
प्रश्नः(क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें, तो क्या-क्या कर सकते हैं ?(ख) नवयुवकों से क्या-क्या करने का आग्रह किया जा रहा है?(ग) युवक यदि परिश्रम करें, तो क्या लाभ होगा?(घ) आशय स्पष्ट कीजिए‘कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।’उत्तरः(क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें तो वे विपदाओं का रास्ता बदल सकते हैं, वे विश्व के इतिहास को बदल सकते है, असंभव कार्य को संभव कर सकते हैं तथा अपने यश का नया अध्याय जोड़ सकते हैं।
(ख) कवि नवयुवकों से आग्रह करता है कि वे नए विचार अपनाकर जनता को जाग्रत कर तथा उनमें आत्मविश्वास का भाव जगाएँ।
(ग) युवक यदि परिश्रम करें तो करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन मिल सकता है।
(घ) इस पंक्ति का अर्थ है कि युवकों में इतनी कार्यक्षमता है कि वे कम साधनों के बावजद विकट स्थितियों में भी समाज को अधिक दे सकते हैं।
17. महाप्रलय की अग्नि साथ लेकर जो जग में आएविश्वबली शासन का भय जिनके आगे शरमाएचले गए जो शीश चढ़ाकर अर्घ्य दिया प्राणों काचलें मज़ारों पर हम उनकी, दीपक एक जलाएँ।टूट गईं बंधन की कड़ियाँ स्वतंत्रता की बेलालगता है मन आज हमें कितना अवसन्न अकेला।जीत गए हम, जीता विद्रोही अभिमान हमारा।प्राणदान से क्षुब्ध तरंगों को मिल गया किनारा।उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का व्योम उगलता जीवन,आज़ादी की आग अमर है, घोषित करता कण-कण।कलियों के अधरों पर पलते रहे विलासी कायर,उधर मृत्यु पैरों से बाँधे, रहा जूझता यौवन।उस शहीद यौवन की सुधि हम क्षण भर को न बिसारें,उसके पग-चिहनों पर अपने मन में मोती वारें।
प्रश्नः(क) कवि किनकी मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है और क्यों?(ख) ‘टूट गईं बंधन की कड़ियाँ’-कवि किस बंधन की बात कर रहा है?(ग) ‘विश्वबली शासन’ किसे कहा है? क्यों?(घ) शहीद किसे कहते हैं ? शहीदों के बलिदान से हमें क्या प्राप्त हुआ?उत्तर(क) कवि शहीदों की मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है क्योंकि उन शहीदों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था।
(ख) ‘टूट गई बंधन की कड़ियाँ’ पंक्ति में कवि ने पराधीनता के बंधन की बात कही है।
(ग) “विश्वबली शासन’ से तात्पर्य है- ब्रिटिश शासन। कवि ने विश्वबली शासन इसलिए कहा है क्योंकि उस समय दुनिया के बड़े हिस्से पर अंग्रेज़ों का शासन ��ा।
(घ) शहीद वे हैं जो क्रांति की ज्वाला लेकर आते हैं तथा देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। वे मृत्यु से भी नहीं घबराते। शहीदों के बलिदान से हमें आज़ादी मिली।
अन्य उदाहरण (हल सहित)
1. एक दिन सहसासूरज निकलाअरे क्षितिज पर नहीं,नगर के चौकधूप बरसीपर अंतरिक्ष से नहींफटी मिट्टी से।छायाएँ मानव जन कीदिशाहीनसब ओर पड़ीं-वह सूरज���हीं उगा था पूरब में, वहबरसा सहसाबीचों-बीच नगर केकाल-सूर्य के रथ केपहियों के ज्यों अरे टूटकरबिखर गए होंदसों दिशा मेंकुछ क्षण का वह उदय-अस्त।केवल एक प्रज्वलित क्षण कीदृश्य सोख लेने वाली दोपहरीफिर?छायाएँ मानव-जन कीनहीं मिटी लंबी हो-होकरमानव ही सब भाप हो गए।छायाएँ तो अभी लिखी हैं।झुलसे हुए पत्थरों परउजड़ी सड़कों की गच पर।
प्रश्नः(क) क्षितिज से न उगकर नगर के बीचों-बीच बरसने वाला ‘वह सूरज’ क्या था?(ख) वह दुर्घटना कब कहाँ, घटी थी?(ग) उसे ‘कुछ क्षण का उदय-अस्त’ क्यों कहा गया है?(घ) ‘मानव ही, सब भाप हो गए’ कथन का क्या आशय है?उत्तरः(क) क्षितिज से न उगकर नगर के बीचों-बीच बरसने वाला वह सूरज अमेरिका द्वारा जापान पर गिराया गया अणुबम था।
(ख) वह दुर्घटना दूसरे विश्वयुद्ध के अंत में जापान के हिरोशिमा नगर में हुई।
(ग) परमाणु बम विस्फोट अचानक हुआ था और कुछ ही क्षणों में सब कुछ नष्ट हो गया था।
(घ) इसका अर्थ है कि प्रचंड गरमी के कारण मनुष्य नष्ट हो गए। वे राख बन गए थे।
2. कलम आज उनकी जय बोलपीकर जिनकी लाल शिखाएँउगल रहीं लू लपट दिशाएँजिनके सिंहनाद से सहमीधरती रही अभी तक डोल।कलम आज उनकी जय बोल॥अंध चकाचौंध का मारा,क्या जाने इतिहास बिचारा।साक्षी हैं जिनकी महिमा केसूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल।कलम आज उनकी जय बोल।
प्रश्नः(क) स्वाधीनता संग्राम के शहीदों के सिंहनाद से आज भी धरती क्यों डोल जाती है?(ख) ‘क्या जाने इतिहास बिचारा’ कहकर कवि इतिहास को युग का दर्पण क्यों नहीं मानता?(ग) स्वाधीनता के वीर बलिदानियों की महिमा के साक्षी सूर्य, चंद्र, भूगोल और खगोल क्यों बताए गए हैं?(घ) कलम से किनकी जय बोलने का आग्रह किया गया है और क्यों?उत्तरः(क) आज भी स्वाधीनता के शहीदों की वीरगाथा रोमांचित कर देती है। उनके सिंहनाद से आज भी पृथ्वी काँप जाती है। विदेशी सत्ता उसका ताप नहीं सह पाईं।
(ख) कवि की मान्यता है कि इतिहास में स्वार्थ-प्रेरित कुछेक लोगों का वर्णन मिलता है। सच्चे वीरों के वृत्तांत इतिहास में नहीं मिलते। इतिहास युग का दर्पण नहीं है। इसीलिए इतिहास को बेचारा व अनजाना कहा है।
(ग) स्वतंत्रता के शहीदों के चश्मदीद गवाह सूरज, चाँद, ज़मीन और आकाश इसलिए बताए गए हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य देखा है और वे इतिहास की भाँति अँधे नहीं हैं।
(घ) कवि चाहता है कि लेखनी उन बलिदानी वीरों की जय-जयकार करे, जिन्होंने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर प्राण निछावर कर दिए और उनके बलिदान की आग से आज भी अंग्रेज़ी सत्ता थर्राती है।
3. वैराग्य छोड़ बाहों की विभा सँभालो,चट्टानों की छाती से दूध निकालो।है रुकी जहाँ भी धार शिलाएँ तोड़ो,पीयूष-चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।योगियों नहीं, विजयी के सदृश जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,मरता है जो एक ही बार मरता है।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे,जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे।
स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है,बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है।नत हुए बिना जो अशनि-घात सहती है,स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।
वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे।जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे॥
प्रश्नः(क) कवि भारतीय युवकों को ऐसा जीवन जीने को क्यों कहता है, जो योगियों जैसा नहीं, वरन् पराक्रमी वीरों जैसा हो?(ख) कवि के अनुसार किन परिस्थितियों में मृत्यु की चिंता नहीं करनी चाहिए?(ग) स्वतंत्रता को ‘बाहरी वस्तु न कह कर भीतरी गुण’ क्यों कहा गया है? स्पष्ट कीजिए।(घ) इस काव्यांश का मूल रूप क्या है? स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।उत्तरः(क) कवि भारतीय युवकों को पराक्रमी वीरों जैसा जीवन जीने के लिए कहता है क्योंकि पराक्रमी व्यक्तियों से दूसरे राष्ट्र भयभीत रहेंगे तथा देश की स्वाधीनता सुरक्षित रहेगी। योगी जैसे जीवन वाले व्यक्ति देश की रक्षा नहीं कर सकते।
(ख) कवि के अनुसार, आत्मसम्मान की प्राप्ति रक्षा के लिए यदि मृत्यु भी स्वीकार करनी पड़े तो चिंता नहीं करनी चाहिए।
(ग) कवि का मानना है कि प्राकृतिक रूप से मानव स्वतंत्र रहने का आदी होता है। कोई भी व्यक्ति पराधीन नहीं रहना चाहता। यह गुण जन्मजात होता है। यह बाहरी गुण नहीं है।
(घ) इस काव्यांश का मूल स्वर वैराग्य भाव त्यागकर पराक्रमी बनकर रहने का है। पराक्रमी व्यक्ति अपनी व देश की स्वाधीनता को कायम रख सकता है।
4. काँधे धरी यह पालकीहै किस कन्हैयालाल की?इस गाँव से उस गाँव तकनंगे बदन, फेंटा करो,बारात किसकी ढो रहे?किसकी कहारी में फँसे?
यह कर्ज पुश्तैनी अभी किस्तें हज़ारों साल की।काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
इस पाँव से उस पाँव पर,ये पाँव बेवाई फटे।काँधे धरा किसका महल?हम नींव पर किसकी डटे?
यह माल ढोते थक गई तकदीर खच्चर हाल की।काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
फिर एक दिन आँधी चलीऐसी कि पर्दा उड़ गया।अंदर न दुलहन थी न दूल्हाएक कौवा उड़ गया…
तब भेद आकर यह खुला हमसे किसी ने चाल कीकाँधे धरी यह पालकी लाला अशर्फीलाल की।
प्रश्नः(क) ‘खच्चर हाल’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कर बताइए कि यहाँ इस शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है?(ख) “यह कर्ज़ पुश्तैनी… साल की” काव्य-पंक्ति में समाज की किस कुरीति पर चोट की गई है और क्यों?(ग) क्रांति की आँधी ने एक दिन कौन-सा भेद खोल दिया?(घ) ‘लाला अशफ़ीलाल’ और ‘पालकी ढोने वाले’ समाज के किन वर्गों के प्रतीक हैं ?उत्तरः(क) ‘खच्चर’ एक पशु हैं जो जीवन भर खराब दशाओं में भार ढोता है। इसी तरह पालकी ढोने वाले तमाम उम्र दूसरों का बोझ ढोते है तथा बदले में उन्हें कोई सुख नहीं मिलता।
(ख) इस पंक्ति में, कवि ने कर्ज की समस्या को बताया है। समाज का एक बड़ा तबका महाजनी ऋण से दबे रहते हैं तथा उनकी कई पीढ़ियाँ इस कर्ज को चुकाने में गुज़र जाती है।
(ग) क्रांति की आँधी ने एक दिन पालकी ढोने वालों को यह भेद बताया कि इसमें दुल्हा व दुल्हन नहीं थी। इसमें पूँजीपति थे जो उनका शोषण कर रहे थे।
(घ) ‘लाला अशर्फीलाल’ पूँजीपति वर्ग तथा ‘पालकी ढोने वाले’ समाज के शोषित वर्ग के प्रतीक हैं जो सदियों से पूँजीपतियों की मार झेल रहे हैं।
5. बहुत दिनों से आज मिली है साँझ अकेली-साथ नहीं हो तुम ।
पेड़ खड़े बाहें फैलाएलौट रहे घर को चरवाहेयह गोधूली-साथ नहीं हो तुम।
कुलबुल-कुलबुल नीड़-नीड़ मेंचहचह-चहचह भीड़-भीड़ में
धुन अलबेली-साथ नहीं हो तुम।
ऊँचे स्वर से गाते निर्झरउमड़ी धारा, जैसी मुझ पर –बीती, झेली-साथ नहीं हो तुमसाँझ अकेली-साथ नहीं हो तुम।
प्रश्नः(क) ‘तुम’ कौन है? उसके बिना साँझ कैसी लग रही है और क्यों?(ख) सूर्यास्त के पूर्व का दृश्य कैसा है ?(ग) किस ध्वनि को ‘अलबेली’ कहा है और क्यों?(घ) आशय स्पष्ट कीजिए – ‘जैसी मुझ पर बीती, झेली’।उत्तरः(क) ‘तुम’ कवि की प्रेमिका है। प्रेमिका के बिना साँझ अच्छी नहीं लग रही है क्योंकि साँझ के सौंदर्य का महत्त्व प्रेमिका के बिना नष्ट हो जाता है।
(ख) सूर्यास्त के पूर्व पेड़ ऐसे खड़े मिलते हैं मानो बाहें फैलाए हुए हैं, चरवाहे घर लौट रहे हैं, पक्षियों के घरों में चहचहाहट है तथा झरने ऊँचे स्वर में गा रहे होते हैं।
(ग) सायंकाल के समय पक्षियों के झुंडों से आने वाली आवाज़ को ‘अलबेली’ कहा गया है क्योंकि उसमें मिलन की व्याकुलता होती है।
(घ) इसका अर्थ है कि सांझ के समय मौसम सुहावना व मस्त है। प्रकृति व मानव की हर क्रिया मिलन की तरफ बढ़ रही है, परंतु कवि अकेला है। उसे प्रेमिका की कमी खल रही है। वह इस पीड़ा को सहन कर रहा है।
6. स्वातंत्र्य उमंगों की तरंग, नर में गौरव की ज्वाला है,स्वातंत्र्य रूह की ग्रीवा में अनमोल विजय की माला है,स्वातंत्र्य-भाव नर को अदम्य, वह जो चाहे कर सकता है,शासन की कौन बिसात, पाँव विधि की लिपि पर धर सकता है।
जिंदगी वहीं तक नहीं, ध्वजा जिस जगह विगत युग में गाड़ी,मालूम किसी को नहीं अनागत नर की दुविधाएँ सारी,‘सारा जीवन नप चुका’ कहे जो, वह दासता-प्रचारक है,नर के विवेक का शत्रु, मनुज की मेधा का ��ंहारक है।
रोटी उसकी जिसका अनाज, जिसकी ज़मीन, जिसका श्रम है,अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध सीधा क्रम है।आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
प्रश्नः(क) कवि ने मनुष्य पर स्वतंत्रता का प्रभाव किन रूपों में लक्षित किया है?(ख) कवि दासता फैलाने वाला किसे मानता है और क्यों?(ग) कवि के मत में स्वतंत्रता का सीधा क्रम क्या है?(घ) स्वतंत्रता हमें क्या-क्या अधिकार देती है? स्पष्ट कीजिए।उत्तरः(क) कवि ने मनुष्य पर स्वतंत्रता का प्रभाव निम्नलिखित रूपों में लक्षित किया है-
स्वातंत्र्य उमंगों की तरंग
गौरव की ज्वाला, आत्मा के गले में अनमोल विजय की माला, नर का अदम्य भाव जिससे वह कुछ भी कर सकता है।
(ख) कवि दासता फैलाने वाला उसे मानता है जो हमेशा यह कहते रहते हैं कि मनुष्य संपूर्णता को प्राप्त कर चुका है तथा इससे आगे कुछ भी नहीं है। इससे मानव की विकास प्रक्रिया बाधित होती है।
(ग) कवि के मत में स्वतंत्रता का सीधा क्रम यह है कि जो व्यक्ति मेहनत करता है, भोजन पर हक भी उसी का है।
(घ) स्वतंत्रता हमें निम्नलिखित अधिकार देती है
परिश्रम का फल पाने का अधिकार।
शोषण का विरोध करने का अधिकार।
7. जीवन का अभियान दान-बल से अजस्र चलता है,उतनी बढ़ती ज्योति, स्नेह जितना अनल्प जलता है।और दान में रोकर या हँस कर हम जो देते हैं,अहंकारवश उसे स्वत्व का त्याग मान लेते हैं।ऋतु के बाद फलों का रुकना डालों का सड़ना है,मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है।देते तरु इसलिए कि रेशों में मत कीट समाएँ,रहें डालियाँ स्वस्थ कि उनमें नये-नये फल आएँ।यह न स्वत्व का त्याग, दान तो जीवन का झरना है,रखना उसको रोक, मृत्यु से पहले ही मरना है।किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते हैं ?गिरने से उसको सँभाल, क्यों रोक नहीं लेते हैं ?जो नर आत्मदान से अपना जीवन घट भरते हैं,वही मृत्यु के मुख में भी पड़कर न कभी मरते हैं।जहाँ कहीं है ज्योति जगत में, जहाँ कहीं उजियाला,वहाँ खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला।
प्रश्नः(क) भाव स्पष्ट कीजिए-उतनी बढ़ती ज्योति, स्नेह जितना अनल्प जलता है।(ख) दान को ‘जीवन का झरना’ क्यों कहा गया है?(ग) देय वस्तुओं के प्रति मोह रखना आत्मघात कैसे है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।(घ) वे कौन से मनुष्य हैं जो मर कर भी नहीं मरते? उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।उत्तरः(क) इसका अर्थ है कि हम निस्स्वार्थ भाव से जितना अधिक दूसरों को स्नेह देंगे, उतना ही हमारा यश फैलता जाएगा।
(ख) दान को जीवन का झरना कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार झरना बिना किसी भेदभाव के सबको जल देता है, उसी प्रकार दान करना भी जीवन का महान कार्य है। दान न करने से जीवन रुक जाता है तथा नाश को प्राप्त करना है।
(ग) कवि कहता है कि वृक्ष फलों को इसलिए देते हैं कि उनकी डालियाँ स्वस्थ रहें तथा नए-नए फल आएँ। यदि वे ऐसा न करें तो फल सड़ जाएगा तथा उसमें कीड़े हो जाएँगे जो पेड़ को भी नष्ट कर देंगे। अतः दी हुई वस्तु पर मोह नहीं दिखाना चाहिए।
(घ) वे व्यक्ति जो दूसरों के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देते हैं, वे मृत्यु को प्राप्त करके भी अमर रहते हैं। उनके कार्य सदैव याद किए जाते हैं।
8. जहाँ भूमि पर पड़ा किसोना धंसता, चाँदी धंसती,धंसती ही जाती पृथ्वी मेंबड़ों-बड़ों की हस्ती।
शक्तिहीन जो हुआ किबैठा भू पर आसन मारे,खा जाते हैं उसकोमिट्टी के ढेले हत्यारे!
मातृभूमि है उसकी, जिसकोउठ जीना होता है,दहन-भूमि है उसकी, जोक्षण-क्षण गिरता जाता है।
भूमि खींचती है मुझकोभी, नीचे धीरे-धीरेकिंतु लहराता हूँ मैं नभ परशीतल-मंद-समीरे।
काला बादल आता हैगुरु गर्जन स्वर भरता है,विद्रोही-मस्तक पर वहअभिषेक किया करता है।
विद्रोही हैं हमीं, हमारेफूलों में फल आते,और हमारी कुरबानी पर,जड़ भी जीवन पाते।
प्रश्नः(क) ‘विद्रोही हैं हमीं’-पेड़ अपने आप को विद्रोही क्यों मानते हैं ?(ख) ‘धंसती ही जाती पृथ्वी में बड़ों-बड़ों की हस्ती’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।(ग) इस काव्यांश में कवि ने किसे ‘मातृभूमि’ के लिए उपयुक्त और किसे ‘दहन-भूमि’ के योग्य बताया है ?(घ) काला बादल किसका अभिषेक किया करता है और क्यों?उत्तरः(क) पेड़ स्वयं को विद्रोही मानते हैं क्यो��कि इनके फूलों में भी फल आते हैं। दूसरे शब्दों में, पेड़ त्याग व समर्पण करते हैं।
(ख) इसका अर्थ है कि संसार में कोई भी व्यक्ति कितना ही शक्तिशाली, धनी, सुंदर आदि हो, उसका अभिमान सदा नहीं रहता। अंत में, सबको इस संसार से जाना पड़ता है तथा वे सभी अन्य लोगों की तरह मिट्टी में ही मिल जाते हैं।
(ग) कवि ने ‘मातृभूमि’ उन लोगों के लिए उपयुक्त बताई है जिनमें संघर्ष करने की क्षमता होती है तथा ‘दहनभूमि’ के योग्य उन व्यक्तियों को बताया है जो क्षण-क्षण गिरते जाते हैं।
(घ) काला बादल विद्रोही व क्रांतिकारी विचारों वाले व्यक्ति का अभिषेक करता है क्योंकि बादल स्वयं गर्जना करके विद्रोह का परिचय देता है।
9. जिसकी भुजाओं की शिराएँ फड़की ही नहीं,जिनके लहू में नहीं वेग है अनल का;
शिव का पदोदक ही पेय जिनका है रहा,चक्खा ही जिन्होंने नहीं स्वाद हलाहल का;
जिनके हृदय में कभी आग सुलगी ही नहीं,ठेस लगते ही अहंकार नहीं छलका;
जिनको सहारा नहीं-भुज के प्रताप का है,बैठते भरोसा किये वे ही आत्मबल का।
उसकी सहिष्णुता, क्षमा का है महत्त्व ही क्या,करना ही आता नहीं जिसको प्रहार है?
करुणा, क्षमा को छोड़ और क्या उपाय उसे,ले न सकता जो वैरियों से प्रतिकार है?
सहता प्रहार कोई विवश कदर्प जीवजिसकी नसों में नहीं पौरुष की धार है;
करुणा, क्षमा है क्लीव जाति के कलंक घोर,क्षमता क्षमा की शूरवीरों का सिंगार है।
प्रश्नः(क) किसकी सहनशीलता और क्षमा को महत्त्वहीन माना गया है और क्यों?(ख) लहू में अनल का वेग होने से क्या तात्पर्य है?(ग) कवि के अनुसार आत्मबल का भरोसा किन्हें रहता है ?(घ) शूरवीरों का श्रृंगार किसे माना गया है और क्यों?उत्तरः(क) कवि ने उन लोगों की सहनशीलता और क्षमा को महत्त्वहीन माना है जो आरामपरस्त हैं, भाग्यवादी हैं, स्वाभिमानी नहीं हैं तथा जो अत्याचार का विरोध नहीं करते। इन लोगों में प्रहार करने की शक्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति किसी को क्षमा नहीं करने में सक्षम नहीं होते।
(ख) इसका अर्थ है-अत्याचार, विद्रोह आदि को देखकर प्रतिकार का भाव न उठना। ऐसे व्यक्तियों को कायर माना जाता है जो कभी प्रतिरोध भाव को व्यक्त नहीं करते।
(ग) कवि का मत है कि आत्मबल का भरोसा वही लोग करते हैं जिनकी भुजाओं में ताकत नहीं है। वे अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाते।
(घ) शूरवीरों का श्रृंगार क्षमा करने की क्षमता है। इसका कारण यह है कि शूरवीर ही किसी को क्षमा कर सकता है। कमज़ोर व्यक्ति प्रतिरोध न करने के कारण क्षमा करने का अधिकारी नहीं होता।
10. किस भाँति जीना चाहिए किस भाँति मरना चाहिए,सो सब हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए।पद-चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए,निज पूर्व गौरव-दीप को बुझने न देना चाहिए।
आओ मिलें सब देश-बांधव हार बनकर देश के,साधक बनें सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्देश्य के।क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता, अहो,बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो॥
प्राचीन हो कि नवीन, छोड़ो रूढ़ियाँ जो हों बुरी,बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी।प्राचीन बातें ही भली हैं-यह विचार अलीक है,जैसी अवस्था हो जहाँ, वैसी व्यवस्था ठीक है॥
मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा,हे सब स्वदेशी बंधु, उनके दुःखभागी हो सदा।देकर उन्हें साहाय्य भरसक सब विपत्ति व्यथा हरो,निज दुख से ही दूसरों के दुख का अनुभव करो॥
प्रश्नः(क) हमें अपने अतीत के गौरव को बनाए रखने के लिए क्या करना होगा?(ख) कवि को यह विश्वास क्यों है कि सांप्रदायिकता हमारी एकता को भंग नहीं कर सकती?(ग) रूढ़ियों को त्यागने की बात कवि ने क्यों कही है?(घ) ‘मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा’-कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।उत्तरः(क) कवि कहता है कि हमें अपने अतीत के गौरव को बनाए रखने के लिए पूर्वजों के द्वारा सुझाए गए मार्गों का अनुसरण करना चाहिए। इस तरह हम पुराने गौरव को बचाए रख सकेंगे।
(ख) कवि कहता है कि जिस प्रकार विभिन्न तरह के फूल एक माला में बँधकर रहते हैं, उसी प्रकार भारत में अनेक धर्मों के लोग मिल-जुलकर रह सकते हैं। इस तरीके से कवि को विश्वास है कि सांप्रदायिकता हमारी एकता को भंग नहीं कर सकती।
(ग) रूढियाँ समय के बदलने पर विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं। कवि रूढ़ियों को त्यागने की बात कहता है क्योंकि ये हर युग में प्रासांगिक नहीं होती। हमें विवेकपूर्वक कार्य करने चाहिए।
(घ) इसका अर्थ है कि मनुष्य को देश विकास या देशप्रेम की केवल बातें नहीं करनी चाहिए। देश-कल्याण के लिए सार्थक प्रयास भी करने चाहिए। कवि व्यावहारिकता पर बल देता है।
11. इन दिनों छटपटा रहा है वहअच्छी लगने वाली बातों के अलावाऔर सब कुछ तो हो रहा हैइन दिनों वाले समय मेंयह आखिरी तनावयह आखिरी पीड़ायह अंतिम कुंठायह अंतिम भूखपर कहाँ?जाते हैं सिलसिलेबढ़ी जाती है बेक़रारीगुज़र जाते हैं दिन-पर-दिनअनचीन्हे-सेभीड़ के विस्फोट में गुम होने से पहलेआएगा क्या, कोई, ऐसा दिन एकउसका अपने वाला भी?उसका अपने वाला भी?उसका अपने वाला भी?अथ से इति तकअच्छी लगने वाली हो उसेउस दिन भी हवा वैसे ही चलेवैसे ही चले दुनिया भीलोग भी वही करें चलेरोटियाँ भी वैसे ही पकेंजैसा वह चाहेजैसा वह कहे।
प्रश्नः(क) कवि की छटपटाहट का कारण क्या है?(ख) कवि कैसे दिन की प्रतीक्षा में है?(ग) ‘अथ से इति तक’ का तात्पर्य बताइए।(घ) भाव स्पष्ट कीजिए- “अच्छी लगने वाली बातों के अलावा और सब कुछ तो हो रहा है।”उत्तरः(क) कवि की छटपटाहट का कारण यह है कि आजकल अच्छी लगने वाली बातों के अलावा सब कुछ हो रहा है अर्थात् दुख देने वाली बातें व कार्य हो रहे हैं।(ख) कवि ऐसे दिन की प्रतीक्षा में है. जिसमें शुरू से लेकर अंत तक अच्छी लगने वाली घटनाएँ हों।
(ग) इसका अर्थ है-प्रारंभ से समाप्ति तक।
(घ) इसका अर्थ है कि समाज में पीड़ा, कुंठा, भूख, तनाव आदि उच्चतम स्तर पर है। आम व्यक्ति को अच्छी लगने वाली बातें नहीं होती।
12. भीड़ जा रही थीमैंने सुनी पदचापें,बड़ा शोर था पर एक आहट ने मुझे पुकारावह शायद तुम्हारी थी।अकेलेपन के, कुंठाओ के जालों को तोड़करहो गया खड़ाऔर अब विश्वास है मुझेमैं कुछ बनूँगामैं कुछ कर गुज़रूँगाकिंतु अपनी मुट्ठी-भर योग्यताओं के बल पर नहीं,तुम्हारे विश्वास के बल परतुम्हारी आशाओं के बल परतुम्हारी शुभ कामनाओं के बल पर।मेरे मित्र!आहट ने मुझसे कहाबैठे क्यों हो?तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है।तब मैंशायद यह साथ रहे न रहे हमेशामैं जानता हूँ-रह भी नहीं सकतापड़ेगा बिछुड़नाजाना पड़ेगा दूरफिर भी मेरे साथ रहेगी तुम्हारी स्मृतिजो देती रहेगी मुझे सहारा, नव उत्साह!और मैं जब भी बढ़ाऊँगा क़दम किसी सफलता की ओरतो मेरा हृदय अवश्य कहेगा एक बातधन्यवाद मित्र, धन्यवाद मित्र, धन्यवाद!
प्रश्नः(क) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़रने का विश्वास किसने प्रदान किया?(ख) तीन बार ‘धन्यवाद’ कहने से अर्थ में क्या विशेषता आ गई है?(ग) मित्र के साथ न रहने पर कवि को किस बात का भरोसा है ?(घ) आशय स्पष्ट कीजिए–’तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है’।उत्तरः(क) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़रने का विश्वास उसके मित्र ने प्रदान किया।
(ख) कवि ने तीन बार ‘धन्यवाद’ किया है। इससे पता चलता है कि मित्र की प्रेरणा से कवि में उत्साह जगा है। वह अपनी हार्दिकतरीके से आभार व्यक्त करना चाहता है।
(ग) मित्र के साथ न रहने पर कवि को भरोसा है कि उस समय दोस्त की स्मृति उसके साथ रहेंगी जो सदैव उसमें उत्साह पैदा करती रहेगी।
(घ) इसका अर्थ है कि निरंतर चलना ही जीवन है। मनुष्य को स्वयं भी आगे बढ़ना चाहिए तथा दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।
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