#कृषि कानूनों पर झुकी मोदी सरकार
Explore tagged Tumblr posts
Text
कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया 'मजबूत सरकार' का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए!
कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया ‘मजबूत सरकार’ का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए!
नई दिल्लीहमारी तपस्या में शायद कमी रह गई, हमारी नीयत साफ थी लेकिन हम समझा नहीं पाए…मैंने जो कुछ किया वह किसानों के लिए था और अब मैं जो कुछ कर रहा हूं वह देश के लिए है…विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने जो कुछ कहा, उसका सार यही है। नोटबंदी जैसे फैसले का बचाव करते आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार किसी मुद्दे पर माफी मांगी। राष्ट्र के नाम संबोधन में…
View On WordPress
#Dent On modi&x27;s Strong Government Image#india Headlines#india News#india News in Hindi#kisan andolan news in hindi#Latest india News#modi government repeals farm laws#modi government rolls back new farm laws#modi government to repeal farm laws#modi government u-turn on farm laws#pm modi rolls back agriculture reforms#Rakesh Tikait News#कृषि कानूनों को वापस लेगी मोदी सरकार#कृषि कानूनों पर झुकी मोदी सरकार#भारत Samachar
0 notes
Text
किसान आंदोलन के आगे झुकी मोदी सरकार, कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान, कांग्रेस बोली- 'टूट गया अभिमान
किसान आंदोलन के आगे झुकी मोदी सरकार, कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान, कांग्रेस बोली- ‘टूट गया अभिमान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के खास अवसर पर राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान पीएम ने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी। हम कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। पीएम मोदी ने कहा, हमने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। कृषि…
View On WordPress
#AAP#Agriculture Laws Withdrawn#congress#farm laws#Farm laws revokes#narendra modi#New Agriculture Laws#pm modi#PM Modi Address#pm modi address nation#PM Modi Adress#PM Modi on agriculture laws#rahul Gandhi
0 notes
Link
पटियाला शहर क�� सड़कों में आस-पास के दर्जनों गांवों से आए किसानों की धमक लगातार बढ़ती जा रही है। शहर के मिनी सचिवालय के पास इन किसानों का जमावड़ा विकराल होता जा रहा है और करीब दो किलोमीटर की सड़क किसानों से भरी बसों और ट्रैक्टरों से पट चुकी है।
65 साल के दरबारा सिंह भी तेजी से मिनी सचिवालय की तरफ बढ़ रहे हैं। वे मूल रूप से हमझेड़ी गांव के रहने वाले हैं, जो पटियाला से करीब 70 किलोमीटर दूर है। आज वे खासतौर से किसान आंदोलन में शामिल होने पटियाला पहुंचे हैं। यहां आने का कारण बताते हुए वे कहते हैं, ‘आज अगर हमने विरोध नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। ये कानून अगर लागू हो गए तो पंजाब के किसान बर्बाद हो जाएंगे।’
कृषि बिल के विरोध में प्रदर्शन करते पंजाब के किसान। हाल ही में केंद्र सरकार किसानों से जुड़े तीन बिल लाई है, जिसका किसान विरोध कर रहे हैं।
दरबारा सिंह की ही तरह चिंताएं लेकर आज मालवा क्षेत्र के हजारों किसान पटियाला पहुंचे हैं। इनमें हर उम्र और हर वर्ग के किसान शामिल हैं। अनुभव की झुर्रियों भी हैं और जोशीली युवा आंखें भी, झुकी हुई कमर भी हैं और चौड़े सीने वाले जवान भी, शिकन भरे माथे भी हैं और आत्मविश्वास से लबरेज ललाट भी, लेकिन विविधताओं से भरी इस भीड़ में भी जो एक चीज समान है वो है इन किसानों की मुट्ठियां, मजबूती से तनी हुई और लगातार ऊपर उठती हुई।
दोपहर के दो बजते-बजते मिनी सचिवालय के पास लगा पंडाल पूरी तरह से भर चुका है। किसानों की संख्या इतनी ज्यादा है कि हजारों किसान अब बसों की छत पर चढ़कर अपने नेताओं की बात सुन ��हे हैं। मंच से लगातार यह बताया जा रहा है कि हाल ही में पारित हुए तीनों कानून किसानों के हित में नहीं, बल्कि किसान विरोधी हैं।
भारतीय किसान यूनियन के पटियाला जिला अध्यक्ष मनजीत सिंह दयाल अभी-अभी अपना भाषण खत्म करके मंच से उतरे हैं। उन्होंने यह कहने पर सबसे ज्यादा तालियां बटोरी थीं कि ये कानून किसानों की मौत के वारंट के समान हैं। इस बारे में वे कहते हैं, ‘पूरे देश में अगर पंजाब का किसान सबसे समृद्ध है तो इसका सबसे बड़ा कारण यहां की मंडी व्यवस्था और एमएसपी का मिलना ही है। इस पर चोट करके सरकार हमारी मौत का फरमान निकाल रही है।’
किसानों का कहना है, ‘आज अगर हमने विरोध नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। ये कानून अगर लागू हो गए तो पंजाब के किसान बर्बाद हो जाएंगे।’
मनजीत सिंह की इस बात पर यहां आए सभी किसान सहमति जताते हैं। संगरूर से आए युवा किसान रमनदीप कहते हैं, ‘आज के तमाम अखबारों में मोदी जी का विज्ञापन छपा है कि कॉरपोरेट के शामिल होने से फसल के अच्छे दाम मिलेंगे। यह बात कोरा झूठ है। कॉरपोरेट के शामिल होने से अगर अच्छे दाम मिल रहे होते तो बिहार और कई अन्य जगहों का किसान ऐसे बदहाल नहीं होता।’
रमनदीप मानते हैं कि किसानों की बदहाली का मुख्य कारण एमएसपी का न मिलना ही है। वे कहते हैं, ‘सरकार अगर सच में किसानों का भला चाहती है तो उसे पूरे देश में एमएसपी सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि बिहार का किसान भी पंजाब जैसा हो सके, लेकिन सरकार तो हमें भी बिहार के किसानों की तरह कर देना चाहती है। हमें खेती छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर कर देना चाहती है।’
पंजाब और हरियाणा में भी सिर्फ गेहूं, धान और गन्ने जैसी तीन ही फसल हैं जिन्हें किसान एमएसपी पर बेच पाते हैं। इनके अलावा जिन 22 अन्य फसलों पर सरकार ने एमएसपी तय की हुई है, वे सभी फसलें पंजाब और हरियाणा में भी एमएसपी से कम दामों पर ही बिकती हैं।
क्रांतिकारी किसान यूनियन क�� पंजाब अध्यक्ष डॉक्टर दर्शन पाल बताते हैं, ‘मकई का ही उदाहरण लीजिए। इस पर 1850 रुपए एमएसपी तय है, लेकिन किसान को बाजार से मकई के सात-आठ रुपए से ज्यादा नहीं मिल रहे। इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि जो फसलें बाजार के हवाले हैं उनसे किसानों का भला हो रहा है या बुरा।’
इस बिल के विरोध में 24 सितंबर को किसान रेल रोकने जा रहे हैं और 25 सितंबर को पूरा पंजाब बंद है।
मौजूदा समय में कुल 25 फसलों पर सरकार ने एमएसपी तय की हुई है। इनमें से 14 खरीफ की फसल हैं, सात रबी की और चार अन्य, लेकिन तीन फसलों को छोड़कर बाकी सभी फसलें किसान एमएसपी से कम पर बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में अगर इन तीन फसलों की खरीद भी मंडियों से बाहर होने लगी तो इन पर भी उन्हें एमएसपी नहीं मिल सकेगी और यह उनके लिए बहुत बड़ा नुकसान होगा।
किसान आंदोलन जैसे-जैसे तेज हो रहा है वैसे-वैसे केंद्र सरकार भी लगातार किसानों को समझाने के प्रयास तेज कर रही है। अखबारों के विज्ञापन से लेकर प्रधानमंत्री खुद कई बार इससे जुड़े बयान दे चुके हैं और कई बार दोहरा चुके हैं कि नए कानून बनने के बाद भी एमएसपी जारी रहेगी, लेकिन आंदोलन में शामिल किसान इस बात पर प्रधानमंत्री का यकीन करने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं।’
जगजीत सिंह युवा किसान हैं और एक बीटेक ग्रेजुएट भी। वे कहते हैं, ‘एमएसपी अगर नहीं हट रही तो सरकार इसे कानून में लिख क्यों नहीं देती। यही बात हम कितनी बार दोहराएं कि सरकार सुन और समझ ले? बाकी जहां तक बात प्रधानमंत्री के बोलने की है तो उन्होंने तो यह भी कहा था कि कालाधन वापस आएगा, आया क्या? बोला था कि सबको 15 लाख रुपए मिलेंगे, मिले? दो करोड़ नौकरियां हर साल मिलेंगी, मिलीं? उनके ऐसे झूठे वादों की लिस्ट बहुत लंबी है। हम कैसे उनका विश्वास करें। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।’
जगजीत जैसा ही गुस्सा आंदोलन में शामिल महिलाओं में भी देखा जा सकता है। ब्रास गांव से इस प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचीं 35 साल की गुरप्रीत कौर कहती हैं, ‘ये कानून हमें खुदकुशी ��ी राह पर धकेलने वाले हैं। ��ैं एक किसान की बेटी हूं और एक किसान की बहू हूं। मैंने बचपन से देखा है कि किसान कैसे खेतों में खप जाता है, ताकि देश का पेट भर सके, लेकिन सरकार हमारे ही पेट पर लात मारकर बड़े-बड़े व्यापारियों के हाथों हमें बेच देना चाहती है।’
गुरप्रीत कहती हैं, ‘खेती-किसानी को सरकार के संरक्षण की जरूरत है। मंडी की व्यवस्था में जो कमियां हैं उन्हें दूर करने का काम सरकार को करना चाहिए, लेकिन सरकार तो मंडियां ही उजाड़ देने का काम कर रही है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। सरकार हमें घरों में रोटियां बेलने वाली समझने की भूल न करे। हम झांसी की रानी बनकर इस लड़ाई को अपने भाइयों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे और जीतेंगे।’
प्रदर्शन करने वाली महिलाएं कहती हैं कि सरकार हमें घरों में रोटियां बेलने वाली समझने की भूल न करे। हम झांसी की रानी बनकर इस लड़ाई को अपने भाइयों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे और जीतेंगे।
इस लड़ाई को जीत लेने का ऐसा ही आत्मविश्वास युवा किसान वीरेंद्र सिंह में भी दिखता है। वे कहते हैं, ‘अभी तो किसान सिर्फ घरों से निकला है और दिल्ली कांपने लगी है। प्रधानमंत्री ने अब रोज बोलना शुरू कर दिया है। 24 सितंबर को किसान रेल रोकने जा रहे हैं और 25 सितंबर को पूरा पंजाब बंद है। सरकार को अपने फैसले वापस लेने ही होंगे।’
भारतीय किसान यूनियन के नेता मनजीत सिंह दयाल बताते हैं कि किसानों का जितना बड़ा प्रदर्शन यहां पटियाला में हो रहा है, उतना ही बड़ा प्रदर्शन बठिंडा के बादल गांव में भी जारी है। यानी एक तरफ ये प्रदर्शन मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृह क्षेत्र पटियाला में हो रहे हैं तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गृह क्षेत्र में भी।
यह दिलचस्प है कि आंदोलन में शामिल किसानों का जितना आक्रोश सत्ताधारी भाजपा पर फूट रहा है, वे उतना ही कांग्रेस से भी नाराज हैं। पटियाला में चल रहे इस प्रदर्शन के मंच से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के खिलाफ जितने नारे उछल रहे हैं, उतने ही नारे प्रदेश सरकार और कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ भी उछल रहे हैं।
सरकारों के खिलाफ लग रहे इन नारों में अब पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल के एक गाने ने भी विशेष जगह बना ली है। हरियाणा से लेकर पंजाब तक किसानों की ��गभग हर रैली में इन दिनों इसी गाने की गूंज सुनाई दे रही है। ट्रैक्टरों की कतारें जब किसानों का आक्रोश दर्ज करते हुए आगे बढ़ती हैं तो धूल के गुबार के साथ ही इस गाने की गूंज भी पीछे छूट जाती हैं। इस गाने के बोल हैं...
‘हल छड के पा लेयां जे, असी हथ हथियारा नू, वक्त पा देयांगे, जालम सरकारा नू।’
इस पंजाबी गाने का मतलब समझाते हुए 24 साल के जगजीत पूरे उत्साह के साथ मुट्ठी भींचते हुए कहते हैं, ‘किसानों ने अपना हल छोड़ कर अगर हथियार उठा लिए, तो इस जालिम सरकार को उसकी हैसियत याद दिला देंगे।'
किसानों से जुड़ी ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं...
1. पहली रिपोर्ट- किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के घर से...:गुरनाम कहते हैं- 'मोदी सरकार या तो कानून वापस ले या किसानों को सीधे गोली मार दे'
2. सरकार ने रबी की फसलों पर MSP बढ़ाया / किसान बिलों पर हंगामे के बीच गेहूं के समर्थन मूल्य में 50 रुपए, चना और सरसों में 225 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा
3. एमएसपी क्या है, जिसके लिए किसान सड़कों पर हैं और सरकार के नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं? क्या महत्व है किसानों के लिए एमएसपी का?
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020, the Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020Essential Commodities (Amendment) Bill, 2020
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/302SgTT via IFTTT
0 notes