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#कहा इनके पुत्र की हुई है हत्या
nayesubah · 3 years
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अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्रबंधक के पिता ने चैनपुर थाने में दर्ज करवाई प्राथमिकी, कहा इनके पुत्र की हुई है हत्या
अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्रबंधक के पिता ने चैनपुर थाने में दर्ज करवाई प्राथमिकी, कहा इनके पुत्र की हुई है हत्या
Bihar: कैमूर जिले के चैनपुर थाना क्षेत्र के ग्राम भुवालपुर में स्थित बिस्कोमान कृषक केंद्र के गोदाम पर सहायक गोदाम प्रबंधक के रूप में कार्यरत सागर आनंद पांडे की हत्या के मामले को लेकर मृतक के पिता सुजीत पांडे जो धनबाद जिले के झरिया थाना क्षेत्र अंतर्गत कोयरी बांध सब्जी पट्टी के निवासी हैं के द्वारा चैनपुर थाने में अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है, जिसके उपरांत पोस्टमार्टम किया…
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karanaram · 3 years
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🚩 श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बदलिदान के कारण कश्मीर बच पाया था - 06 जुलाई 2021
🚩डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को चढ़ाया गया था तथाकथित धर्मनिरेपक्षता की बलि, इन्हे मिली थी देशप्रेम की सज़ा और इनकी मृत्यु तक को बना दिया गया ऐसा रहस्य जिसे आज तक खोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो पायी है। जी हाँ चर्चा चल रही है नकली धर्मनिरपेक्षता की आंधी और हिन्दू विरोध की सुनामी में अपने आप को स्वाहा कर के कश्मीर को बचा लेने वाले अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की.... आज भी जब जब और जहाँ जहाँ ये नारे गूँजते हैं की जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है तो उस महापुरुष की याद आ जाती है जिसे पहले जेल और बाद में मृत्यु इसलिए दे डाली गयी क्योकि उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए वहां कूच कर देने का एलान कर दिया।
🚩भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्���ात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहाँ लिंकन्स इन से उन्होंने 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया। श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को शुशोभित करते रहे।
🚩अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान ‘कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ़ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलोर’ तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे। श्यामाप्रसाद अपनी माता पिता को प्रतिदिन नियमित पूजा-पाठ करते देखते तो वे भी धार्मिक संस्कारों को ग्रहण करने लगे। वे पिताजी के साथ बैठकर उनकी बातें सुनते। माँ से धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथाएँ सुनते-सुनते उन्हें अपने देश तथा संस्कृति की जानकारी होने लगी। वे माता-पिता की तरह प्रतिदिन माँ काली की मूर्ति के समक्ष बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते। परिवार में धार्मिक उत्सव व त्यौहार मनाया जाता तो उसमें पूरी रुचि के साथ भाग लेते। गंगा तट पर मंदिरों में होने वाले सत्संग समारोहों में वे भी भाग लेने जाते। आशुतोष मुखर्जी चाहते थे कि श्यामाप्रसाद को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाए। उन दिनों कलकत्ता में अंग्रेजी माध्यम के अनेक पब्लिक स्कूल थे।
🚩आशुतोष बाबू यह जानते थे कि इन स्कूलों में लार्ड मैकाले की योजनानुसार भारतीय बच्चों को भारतीयता के संस्कारों से काटकर उन्हें अंग्रेजों के संस्कार देने वाली शिक्षा दी जाती है। उन्होंने एक दिन मित्रों के साथ विचार-विमर्श कर निर्णय लिया कि बालकों तथा किशोरों को शिक्षा के साथ-साथ भारतीयता के संस्कार देने वाले विद्यालय की स्थापना कराई जानी चाहिए। उनके अनन्य भक्त विश्वेश्वर मित्र ने योजनानुसार ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। भवानीपुर में खोले गये इस शिक्षण संस्थान में बंग्ला तथा संस्कृत भाषा का भी अध्ययन कराया जाता था। श्यामा प्रसाद को किसी अंग्रेजी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलाने की बजाए ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ में प्रवेश दिलाया गया। आशुतोष बाबू की प्रेरणा से उनके अनेक मित्रों ने अपने पुत्रों को इस स्कूल में दाखिला दिलाया। वे स्वयं समय-समय पर स्कूल पहुँच कर वहाँ के शिक्षकों से पाठ्यक्रम के विषय में विचार-विमर्श किया करते थे।
🚩“श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे। जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया। उसके बाद उन्होंने जनसंघ की नींव डाली। आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी। इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है।” विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है।
🚩डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा।” समान नागरिक संहिता बनाने की बात करने वालों ने भी कभी पलट कर ये नहीं जानना चाहा की किस ने और क्यों मारा कश्मीर के रक्षक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को? उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता।
🚩मुखर्जी ने कहा कि मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।” उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था।
🚩1950 के आसपास ईस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं पर जानलेवा हमले शुरु हो गये। करीब 50 लाख हिन्दू ईस्ट पाकिस्तान को छोड़ भारत वापस आ गए। हिन्दुओं की यह हालत देखकर मुखर्जी चाहते थे कि देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए। वह कुछ कहते इससे पहले जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने समझौता कर लिया था। समझौते के मुताबिक दोनों देश के रिफ्यूजी बिना किसी परेशानी के अपने-अपने देश आ जा सकते थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरु जी की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत ही कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देते ही उन्होंने रिफ्यूजी की मदद के काम में खुद को झोंक दिया।
🚩आख़िरकार कश्मीर को अलग कर दिया गया। उसे अपना एक नया झंडा और नई सरकार दे दी गई। एक नया कानून भी जिसके तहत कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति वहां जाकर नहीं बस सकता। सब कुछ खत्म हो चुका था, लेकिन मुखर्जी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे’ के नारे के साथ वह कश्मीर के लिए निकल पड़े। नेहरु को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने हर हाल में मुखर्जी को रोकने का आदेश जारी कर दिया। उन्हें कश्मीर जाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में मुखर्जी के पास गुप्त तरीके से कश्मीर पहुंचने के सिवा कोई दूसरा विकल्प न था। वह कश्मीर पहुंचने में सफल भी रहे।
🚩मगर उन्हें पहले कदम पर ही पकड़ लिया गया। उन पर बिना इजाजत कश्मीर में घुसने का आरोप लगा। एक अपराधी की तरह उन्हें श्रीनगर की जेल में बंद कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उन्हें दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उनकी बीमारी की खबरें आने लगी। वह गंभीर रुप से बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां कई दिन तक उनका इलाज किया गया। माना जाता है कि इसी दौरान उन्हें ‘पेनिसिलिन’ नाम की एक दवा का डोज दिया गया। चूंकि इस दवा से मुखर्जी को एलर्जी थी, इसलिए यह उनके लिए हानिकारक साबित हुई।
🚩कहते हैं कि डॉक्टर इस बात को जानते थे कि यह दवा उनके लिए जानलेवा है। बावजूद इसके उन्हें यह डोज दिया गया। धीरे-धीरे उनकी तबियत और खराब होती गई। अंतत: 23 जून 1953 को उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर ली। मुखर्जी की मौत की खबर उनकी मां को पता चली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नेहरु से गुहार लगाई कि उनके बेटे की मौत की जांच कराई जाये। उनका मानना था कि उनके बेटे की हत्या हुई है। यह गंभीर मामला था, लेकिन नेहरू ने इसे अनदेखा कर दिया। हालाँकि, कश्मीर में उनके किये इस आन्दोलन का काफी फर्क पड़ा और बदलाव भी हुआ और कश्मीर अलग बनता बच गया।
🚩इस क��ी में, नेहरु का रवैया लोगों के गले से नहीं उतरा। वह मुखर्जी की मौत के वाजिब कारण को जानना चाहते थे। लोगों ने आवाजें भी उठाई, लेकिन सरकार के सामने किसी की एक नहीं चली। नतीजा यह रहा कि उनकी मौत का रहस्य उनके साथ ही चला गया। इतने सालों बाद भी किसी के पास जवाब नहीं है कि उनकी मौत के पीछे की असल वजह क्या थी?
🚩कश्मीर की अखंडता के उस महान रक्षक अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की गाथा सदा-सदा के लिए अमर रहेगी।
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kisansatta · 4 years
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Parshuram Jayanti 2020: परशुराम जयंती का महत्व और भगवान परशुराम की शौर्य गाथा
ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।भगवान परशुराम विष्णुजी के छठे अवतार और सात चिरंजीवी में एक हैं, जो कलयुग के समय आज भी इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। परशुराम जी की गणना दशावतारों में होती है।26 अप्रैल को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती दोनों मनाई जाएगी। भगवान परशुराम की जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं उनसे जुड़ी हुई कुछ बातें-
भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था । अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है। माना जाता है कि कलयुग में आज भी ऐसे आठ चिरंजीव देवता और महापुरुष हैं जो जीवित हैं। इन्हीं आठ चिरंजीवियों में से एक भगवान परशुराम भी हैं।
भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था।यही नहीं इनके क्रोध से भगवान गणेश भी नहीं बच पाये थे। परशुराम ने अपने फरसे से वार कर भगवान गणेश के एक दांत को तोड़ दिया था जिसके कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाए जाते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानी इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है।भगवान परशुराम के पिता का नाम मुनि जमदग्रि और माता का नाम रेणुका था। एक बार अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने अपनी माता की हत्या कर दी।
इस कारण इनपर मातृ हत्या का पाप लगा था जिसका पश्चताप करने के लिए उन्होंने भगवान  शिव की आराधना की थी। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने परशु नाम का एक अस्त्र दिया था जिस कारण से इनका नाम परशुराम पड़ा।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।
परशुराम जी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वह दुष्टता करने वालों को क्षमा नहीं करते थे। वह कर्ण के गुरु भी थे।तीर से समुद्र को पीछे कर बसाए थे ये राज्य: कथाओं के अनुसार परशुराम जी धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये जिसमें कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल कर नई भूमि का निर्माण किया।
इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल में भगवान परशुराम की विशेष रूप से पूजा की जाती है।भगवान परशुराम त्रेता और द्वापर दोनों युग में मौजूद रहें। ���हाभारत में उन्होंने भगवान कृष्ण की लीला देखी तो वहीं त्रेता युग में भगवान राम की भी लीला देखी। भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। वही सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण को वापस किया।महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर उनसे शिक्षा ग्रहण की थी। भगवान परशुराम को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जिस विद्या को उसने झूठ बोलकर प्राप्त की है, वही विद्या युद्ध के समय वह भूल जाएगा और कोई भी अस्त्र या शस्त्र नहीं चला पाएगा। भगवान परशुराम का यही श्राप अंतत: कर्ण की मृत्यु का कारण भी बना। 
https://kisansatta.com/parshuram-jayanti-2020-importance-of-parashuram-jayanti-and-the-heroic-saga-of-lord-parashuram32933-2/ #DuringTheMahabharataPeriod, #KuntiSSonKarnaHadTaughtHimByLyingToLordParashurama, #ParshuramJayanti2020ImportanceOfParashuramJayantiAndTheHeroicSagaOfLordParashuram During the Mahabharata period, Kunti's son Karna had taught him by lying to Lord Parashurama., Parshuram Jayanti 2020: Importance of Parashuram Jayanti and the heroic saga of Lord Parashuram Religious, Trending #Religious, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
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डॉ सुनील यादव के सवाल जो हर एक को निरुत्तर कर दें..
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ये ऐसे सवाल है जो बहुत हि सोचने लायक है। जैसे कि -
1:- सभी देवी देवताओ ने भारत मे हि जन्म क्यो लिया?
क्यो किसी भी देवी देवता को भारत के बाहर कोइ नही जानता ?
2:- जितने भी देवी देवता देवताओ की सवारीया है उनमे सिर्फ वही जानवर क्यो है जो कि भारत मे ही पाये जाते है?
एसे जानवर क्यो नही जो कि सिर्फ कुछ हि देशो मे पाये जाते है, जैसे कि कंगारु, जिराफ आदी !!
3:- सभी देवी देवता हमेशा राज घरानो मे हि जन्म क्यो लेते थे ?
क्यो किसी भी देवी देवता ने किसी गरीब या शुद्र के यहा जन्म नही लिया?
4:- पोराणीक कथाओ मे सभी देवी देवताओ की दिनचर्या का वर्णन है जैसे कि कब पार्वती ने चंदन से स्नान किया, कब गणेश के लिये लड्डु बनाये, गणेश ने कैसे लड्डु खाये.. आदी
लेकीन जैसे हि ग्रंथो कि स्क्रीप्ट खत्म
हो गयी भगवानो कि दिनचर्या भी खत्म..
तो क्या बाद में सभी देवीदेवताऔ का देहांत हो गया ??
अब वो कहाँ है? उनकी औलादे कहाँ है?
5:- ग्रंथो के अनुसार पुराने समय मे सभी देवी देवताओ का पृथ्वी पर आना-जाना लगा रहता था।
जैसे कि किसी को वरदान दे��े या किसी पापी का सर्वनाश करने..
लेकीन अब एसा क्या हुआ जो देवी देवताओ ने पृथ्वी पर आना बंद
हि कर दिया??
6:- जब भी कोइ पापी पाप फैलाता था तो उसका नाश करने के लिये खुद भागवान किसी राजा के यहा जन्म लेते थे फिर 30-35 की उम्र तक जवान होने के बाद वो पापी का नाश करते थे,
ऐसा क्यों?
पापी का नाश जब भगवान खुद हि कर रहे है तो 30-35 साल का इतना ज्यादा वक्त क्यो???
भगवान सिधे कुछ क्यो नही करते??
जीस प्रकार उन्होने अपने खुद के ही भक्तो का उत्तराखण्ड मे नाश किया ?
(7) अगर हिन्दू धर्म कई हज़ार साल
पुराना है, तो फिर भारत के बाहर इसका प्रचार-प्रसार क्यों नहीं हुआ और एक भारत से बाहर के धर्म “इस्लाम-ईसाई” को इतनी मान्यता कैसे हासिल
हुई?
वो आपके अपने पुरातन हिन्दू धर्म से ज़्यादा अनुयायी कैसे बना सका? हिन्दू देवी-देवता उन्हें नहीं रोक रहें??
(8) अगर हिन्दू धर्म के अनुसार एक
जीवित पत्नी के रहते, दूसरा विवाह अनुचित है, तो फिर राम के पिता दशरथ ने चार विवाह किस नीति अनुसार किये थे?
(9) अगर शिव के पुत्र गनेश की गर्दन शिव ने काट दी, तो फिर यह कैसा भगवान है??
जो उस कटी गर्दन को उसी जगह पर क्यों नहीं जोड़ सका??
क्यों एक पिरपराध जानवर (हाथी) की हत्या करके उसकी गर्दन गणेश की धढ पर लगाई?
एक इंसान के बच्चे के धढ़ पर हाथी की गर्दन कैसे फिट आ गयी?
(10) अगर हिन्दू धर्म में मांसाहार वर्जित है, तो फिर राम स्वर्णमृग (हिरन) को मारने क्यों गए थे? क्या मृग हत्या जीव हत्या नहीं है?
(11) राम अगर भगवान है, तो फिर उसको यह क्यों नहीं पता था कि रावण की नाभि में अमृत है?
अगर उसको घर का भेदी ना बताता कि रावण की नाभि में अमृत है, तो उस युद्ध में रावण कभी नहीं मारा जाता।
क्या भगवन ऐसा होता है?
(12) तुम कहते हो कि कृष्ण तुम्हारे भगवन हैं, तो क्या नहाती हुई निर्वस्त्र गोपीयों को छुपकर देखने वाला व्यक्ति, भगवान हो सकता है?
अगर ऐसा काम कोई व्यक्ति आज के दौर में करे, तो हम उसे छिछोरा-नालायक कहते हैं।
तो आप कृष्ण को भगवान क्यों कहते हो?
(13) हिन्दूओ में बलात्कारीयोंका प्रमाण अधिक क्यों होते हैं?
(14) शिव के लिंग (पेनिस) की पूजा क्यों करते हैं? क्या उनके शरीर में कोई और चीज़ पूजा के क़ाबिल नहीं?
(15) खुजराहो के मंदिरों में काम-क्रीड़ा और उत्तेजक चित्र हैं, फिर ऐसे स्थान को मंदिर क्यों कहा जाता है?
क्या काम-क्रीडा, हिन्दू धर्मानुसार पूजनीय है?
सवाल तो और भी बहुत है, लेकेन पहले इनके जवाब मिल जाये बस!!
अगर इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है... तो फिर क्यूँ नासा के कई वैज्ञानिको ने इस्लाम कुबूल किया ? ? ?
क्यु... यूसुफ योहाना व अफ्रीकन क्रिकेटर और वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा मुस्लिम बन गऐ ...? ?
क्यु... ए.एस. दिलीप मुसलमान होकर ए.आर. रहमान हो गए ... ? ?
क्यु... शक्ति कपूर, ममता कुलकर्णी ,सरोज खान,
बालिका वधू स्टार ,और कई दक्षिण के अभिनेताओं ने इस्लाम कुबूल किया ... ? ?
क्यु... टोनी ब्लेयर की बहन ने इस्लाम कुबूल कर लिया ... ? ?
क्यु... मुहम्मद अली मुसलमान हो गए ... ? ?
क्यु... यू.एस.ए. में 9/11 के बाद 25.67 लाख से भी ज्यादा
लोगों ने इस्लाम कुबूल किया ... ? ?
क्यु... अब्राहम विलिंग्टन यूएस आर्मी में भर्ती होकर
मुसलमानों को मारने का इरादा छोड़कर मस्जिद जाकर मुसलमान हो गए .... ? ?
क्यु... गैरी मिलर जो कि कुरान के विरोधी थे .....
कुरान पढ़कर मुसलमान हो गए .... ? ?
क्यु... कामेडी स्टार मिस्टर बीन मुसलमान हो गए .... ? ?
क्यु... माइक टायसन और माइकल जैकसन मुसलमान बन गए .... ? ?
क्यु... हिजाब की विरोधी ब्रिटेन की पुलिस अफसर जेने कैम्प इस्लामी शिक्षाएँ पढ़कर मुसलमान हो गईं ... ? ?
फ्राँस में क्या ओसामा आया था... ?
कि फ्राँस 60% मुसलिम आबादी वाला देश बन गया .... ? ?
1929 में यू. एस. ए. में एक मस्जिद थी ....
आज 2500 से भी ज्यादा मस्जिदे है....और सन् 2003 तक रूस में 250 मस्जिदें थीं
आज 3000 ज्यादा मस्जिदे हैं
क्यु... रूस 30% मुसलिम आबादी वाला देश बन गया ... ? ?
क्यु... यु.के. की संसद मे ईसाइयो के इस्लाम कुबूलने की बढ़ती हुई तादाद के बाबत
आपातकालीन चर्चा हुई ... ? ?
और ... अगर क्वीन डायना ना मारी जाती तो .....
अब तक पूरा यूके मुसलिम राष्ट्र घोषित हो जाता ! !
इंडोनेशिया और मलेशिया में 100 साल पहले " बौद्ध देश " थे आज 85% मुसलिम आबादी वाले देश हैं ....
इस्लाम को 1500 साल भी नहीं हुए ...और इस्लाम पूरी दुनिया में फैल चुका व
दूसरे क्यु nahi .... ? ?
कोई दुनिया की किसी भी इतिहास की किताब में यह दिखा दे कि मुसलमानों ने वहाँ कब और कौनसी जंग की ... ? ?
इस बात को सभी को शेयर करो ताकि सभी को पता चल जाये की इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा नही देता है .....
Pls share jarur kare ...
अमेरिका के राजदूत ने कहा है कि जिस नाम के साथ मुहम्मद आ जाय उसे हमारा कंप्यूटर स्वीकार नहीं करता मुसलमानो अपने आक़ा मुहम्मद का नाम इतना इस्तेमाuiल करो कि अमेरिका का कंपयूटर फेल हो जाए अगर मुहम्मद स.के गुलाम हो तो संदेश आगे चलाए न्यूनतम 7 लोगों को सैंड करना अमेरिका के गुलाम हो तो मिटा दो
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sitakrim · 7 years
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महामंडलेश्वर आचार्य श्री सुनील शास्त्रीजी महाराज (Shri Sunil Shastri Ji) आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ? हमारे हृदय में विराजमान नारायणस्वरूप आशाराम बापूजी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन ! मैं आज संत के रूप में नहीं लेकिन भारत माता का एक पुत्र और एक नागरिक होने के नाते पूर्णतः बिके हुए कुछ लोगों से सवाल करना चाहूँगा कि जब संविधान हमें कहता है कि जब तक दोष साबित न हो जाय तब तक उसे दोषी न माना जायेगा तो आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ? यह भारत के संविधान की अवमानना है । ६ करोड़  अनुयायियों के दिलों में तलवार घोंपना - क्या यह भारत के संविधान की हत्या नहीं है ? इन हत्यारों की माता भी इनको पैदा करके अपनी कोख पर शर्माती होगी कि मैंने कैसे पुत्र को जन्म दिया ! और दूसरी बात, दिल्ली में एफआईआर हुई और आयी जोधपुर में । लेकिन जोधपुर पुलिस के बहुत ब‹डे अधिकारी, जिन्होंने संविधान की शपथ ली है, उन्होंने प्रेसवार्ता में कहा कि ‘‘लड़की की एफआईआर एवं उसकी मेडिकल जाँच रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं होती है । इसलिए बापू को बलात्कार की धारा से मुक्त किया जाता है ।" लेकिन ६ घंटे के अंदर वह संविधान की कसम खानेवाला अधिकारी पलटता क्यों है ? जगद्गुरु जयेन्द्र सरस्वती पर भी आपने आरोप लगाया, सर्वोच्च न्यायालय में वे निर्दोष साबित हुए । क्यों नहीं मीडिया ने दिखाया ? आज तक आपने माफी क्यों नहीं माँगी ? और हमारे संत-समाज का बहुत बड़ा संघ है । ये ‘शांति-शांति-शांति...' कहते हैं इसलिए इनको इतना ‘शांत' मत समझो, ‘क्रांति... क्रांति...!'  मैंने २००८ में भी कहा था कि बापू निष्कलंक हैं, निर्दोष हैं, बापूजी भारत माता के सच्चे सपूत और संत-समाज के शिरोमणि हैं । ये ‘रेप केस, रेप केस...' सुनते-सुनते मेरा कान पीड़ित हो गया है । मैं पूछना चाहता हूँ कि भारत के संविधान के अनुच्छेद २५, २६ ‘धर्म स्वतंत्रता का अधिकार' के अंतर्गत कि आज कुछ नेता लोग अनर्गल बात कर रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी के कितने लोगों पर पहले मुकदमे चल रहे हैं, उनको क्यों नहीं वे फाँसी पर चढ़ा रहे हैं ! उस व्यक्ति को पहले फाँसी पर क्यों नहीं चढ़ा रहे हो जो संविधान की कसम खाकर उसकी अवमानना कर रहा है ? लेकिन हमको बेचारा मत समझो । और ‘बलात्कार-बलात्कार...' जैसे दोषारोपण मीडिया बापू���ी पर किसलिए करती है ? हमें एक बहुत बड़े चैनल के अध्यक्ष ने कहा कि यह सब टीआरपी का खेल है । इनके पेट की नाभि क्या है ? टीआरपी । और देश के कुछ बिके हुए गद्दार करोड़ो रुपये देकर मीडिया को खरीदते हैं ।
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its-axplore · 4 years
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत को ढाई महीना हो गया है। मामला 360 डिग्री घूमकर खुदकुशी की थ्योरी पर ही लौट आया है। इस दौरान मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ा और दो राज्यों की पुलिस और सरकारें आमने-सामने आ गईं। तीन केंद्रीय जांच एजेंसियों (ईडी, सीबीआई और एनसीबी) ने अपनी ताकत झोंक दी। नेपोटिज्म, मनी लॉन्डरिंग, हत्या और ड्रग्स कनेक्शन तक के एंगल सामने आए। इसके साथ ही एक अभिनेता की मौत पूरे बॉलीवुड को ड्रग्स मुक्त कराने का अभियान बन गई। ड्रग्स पैडलर गिरफ्तार हो रहे हैं और बॉलीवुड सेलेब्स के ड्रग्स टेस्ट की मांग उठ रही है। सुशांत की मौत का मामला किन मोड़ों से गुजरा, डालते हैं उस पर एक नजर:-
मुंबई पुलिस डेढ़ महीने तक बयान दर्ज करती रही
14 जून को सुशांत सिंह राजपूत बांद्रा स्थित अपने किराए के अपार्टमेंट में मृत पाए गए। मुंबई पुलिस ने मौका-ए-वारदात पर पहुंचते ही इसे आत्महत्या बता दिया। जबकि मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ।
इसी बीच कंगना रनोट ने नेपोटिज्म का राग छेड़कर मामले को आत्महत्या के लिए उकसाने के एंगल से जोड़ दिया। उन्होंने फिल्ममेकर करन जौहर को नेपोटिज्म फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहर���या तो सोशल मीडिया पर एक मुहिम सी छिड़ गई।
कंगना रनोट ने 14 जून को यह आरोप लगाकर सनसनी फैला दी कि सुशांत की सुसाइड के पीछे करन जौहर और उनकी नेपोटिस्ट गैंग है। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा था कि सुशांत ने उन लोगों को जीत दिलवा दी, जो भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। फिल्म माफिया हैं और खेमेबाजी में यकीन रखते हैं।
करन के साथ-साथ आदित्य चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, महेश भट्ट जैसे दिग्गजों को ट्रोल किया जाने लगा। इनके साथ स्टार किड्स के बायकॉट की मांग उठने लगी।
आनन-फानन में मुंबई पुलिस ने बिना एफआईआर दर्ज किए ही पूछताछ शुरू कर दी। सुशांत के हाउस स्टाफ नीरज, केशव, सैमुअल मिरांडा से लेकर उनकी गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती, फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली, महेश भट्ट, आदित्य चोपड़ा और फिल्म क्रिटिक राजीव मसंद समेत 50 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए गए।
हालांकि, इस दौरान न तो पैसे के एंगल को देखा गया, न क्राइम सीन को लॉक किया गया और न ही इस बात पर विचार किया गया कि अगर सुसाइड नोट नहीं मिला तो यह मामला कुछ और भी हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि मुंबई पुलिस ने खुद भी सुशांत की डेड बॉडी को पंखे से लटका नहीं देखा था। बावजूद इसके उन्होंने इसे आत्महत्या मान लिया और अंधेरे में तीर चलाना शुरू कर दिया। यहां तक कि सुशांत के फोन को भी फोरेंसिक जांच के लिए घटना के 24 दिन बाद भेजा था।
28 जुलाई से बिहार पुलिस एक्टिव हुई
25 जुलाई को सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह ने पटना के राजीव नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई और रिया चक्रवर्ती पर बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया। यह आरोप भी लगाया कि रिया, उनके पिता इंद्रजीत, मां, संध्या, भाई शोविक, सुशांत की पूर्व मैनेजर श्रुति मोदी और हाउस मैनेजर रहे सैमुअल मिरांडा ने सुशांत के खाते से 15 करोड़ रुपए की हेराफेरी की।
हालांकि, इस एफआईआर की जानकारी 28 जुलाई को तब सामने आई, जब पटना पुलिस की एक एसआईटी जांच के लिए मुंबई पहुंच गई। इसके बाद मुंबई पुलिस ने पूछताछ बंद कर दी। खुद को मुख्य आरोपी बनते देख रिया गायब हो गईं। उन्होंने आनन-फानन में वकील सतीश मानशिंदे के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामले को पटना से मुंबई शिफ्ट कराने की अपील की।
केके सिंह ने 26 अगस्त को एक न्यूज चैनल को यह बयान दिया था।
इस दौरान बड़ा ड्रामा हुआ। मुंबई पुलिस पर पटना पुलिस को सहयोग न देने और रिया को मदद करने के आरोप लगे। जांच के लिए मुंबई पहुंचे पटना सिटी एसपी विनय तिवारी को जबरन क्वारैंटाइन कर दिया गया। इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की तो महाराष्ट्र सरकार भी खुलकर सामने आ गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने नीतीश की इस सिफारिश की निंदा की और उनके साथ-साथ मुंबई पुलिस पर सवाल उठाने वालों पर घटिया राजनीति करने का आरोप लगाया। सभी पक्षों को सुनने के बाद 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
मामले से ऐसे जुड़ा आदित्य ठाकरे का नाम
मामले में आदित्य ठाकरे का नाम घसीटा गया। भाजपा नेता नारायण राणे ने एक बयान देकर राजनीतिक हलचल को और बढ़ा दिया। उन्होंने दावा किया कि सुशांत की मौत से एक रात पहले 13 जून को अभिनेता डिनो मोरिया ने सुशांत सिंह राजपूत और कुछ राजनेताओं के लिए पार्टी रखी थी।
उनके मुताबिक, यह पार्टी पहले मोरिया के घर में हुई और फिर सुशांत के घर में। उन्होंने आरोप लगाया कि इस पार्टी में एक नेता पुत्र शामिल हुए थे, जो महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं। उनका इशारा उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे की ओर था।
आदित्य ठाकरे ने अपने बयान में कहा था कि इस मामले में सड़क छाप राजनीति हो रही है। उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा था।
आदित्य ने पूरे विवाद पर बयान जारी किया था और कहा था कि वे बालासाहब ठाकरे के पोते हैं, ऐसा कोई काम नहीं कर सकते, जिससे परिवार की छवि खराब हो। उन्होंने भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर गंदी राजनीति करने और सुशांत की मौत का फायदा राजनीतिक लाभ ��े लिए उठाने का आरोप लगाया था।
रिया के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग का केस
31 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिया चक्रवर्ती, उनके पिता इंद्रजीत, मां संध्या, भाई शोविक, सुशांत की पूर्व मैनेजर श्रुति मोदी और हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग का केस दर्ज किया था। पूछताछ में रिया ने सुशांत के खाते से पैसे निकालने के आरोप को मनगढ़ंत और गलत बताया।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि रिया या उनके फैमिली मेंबर्स ने सुशांत के पैसों का गबन किया था। लेकिन पिछले दिनों फोन क्लोनिंग से यह खुलासा जरूर हुआ था कि रिया चक्रवर्ती ने सैमुअल मिरांडा (सुशांत का हाउस मैनेजर) की मदद से सुशांत के डेबिट कार्ड के पिन हासिल कर लिए थे। मामले की जांच अभी जारी है।
ईडी की जांच में खुला ड्रग्स कनेक्शन का राज
26 अगस्त को नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने रिया चक्रवर्ती व अन्य के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज किया। दरअसल, पिछले दिनों ईडी ने रिया चक्रवर्ती के दो फोन को क्लोन करके उससे डिलीट डाटा रिकवर किया था। इसका खुलासा एक ऐसे लेटर में हुआ, जो ईडी का आधिकारिक डॉक्यूमेंट बताया जा रहा था। क्लोनिंग के बाद रिया के चैट के रिकॉर्ड सामने आए और उसमें ड्रग्स कनेक्शन का खुलासा हुआ।
रिया ने एक एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था- दुर्भाग्य से किसी के गुजर जाने के बाद हमें उसके दोष के बारे में बात करनी पड़ रही है। जी हां , सुशांत मारिजुआना का नशा करते थे। रेगुलरली पीते थे। मुझे मिलने से पहले से पीते थे। मैं उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश करती थी। लेकिन वे अपनी पसंद की जिंदगी जीना चाहते थे।
ईडी टीम ने यह डाटा सीबीआई और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से भी शेयर किया था। एनसीबी ने ड्रग पैडलर अब्दुल बासित परिहार और जैद विलात्रा को गिरफ्तार कर लिया है। अब्दुल का कनेक्शन रिया के सहयोगी सैमुअल मिरांडा के साथ बताया जा रहा है, जो एक्ट्रेस के भाई शोविक के इशारे पर काम कर रहा था।
जैद से यह पता चला है कि वह अब्दुल बासित परिहार और सूर्यदीप मल्होत्रा के संपर्क में था। ये दोनों शोविक के संपर्क में थे। इससे पहले 27 और 28 अगस्त को ड्रग डीलर अब्बास लखानी और करण अरोड़ा की गिरफ्तारी हुई थी। दोनों के पास से गांजा भी बरामद हुआ था।
इस बीच कई नेता और सोशल मीडिया यूजर्स बॉलीवुड सेलेब्स के ड्रग टेस्ट की मांग उठा रहे हैं। एक्ट्रेस कंगना रनोट खुलकर रणबीर कपूर, रणवीर सिंह और विकी कौशल से ड्रग टेस्ट कराने की अपील कर चुकी हैं। उन्होंने यह दावा भी किया है कि अगर उन्हें पुलिस प्रोटेक्शन मिले तो वे बॉलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन को उजागर करने में एनसीबी की मदद कर सकती हैं।
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manishajain001 · 4 years
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत को ढाई महीना हो गया है। मामला 360 डिग्री घूमकर खुदकुशी की थ्योरी पर ही लौट आया है। इस दौरान मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ा और दो राज्यों की पुलिस और सरकारें आमने-सामने आ गईं। तीन केंद्रीय जांच एजेंसियों (ईडी, सीबीआई और एनसीबी) ने अपनी ताकत झोंक दी। नेपोटिज्म, मनी लॉन्डरिंग, हत्या और ड्रग्स कनेक्शन तक के एंगल सामने आए। इसके साथ ही एक अभिनेता की मौत पूरे बॉलीवुड को ड्रग्स मुक्त कराने का अभियान बन गई। ड्रग्स पैडलर गिरफ्तार हो रहे हैं और बॉलीवुड सेलेब्स के ड्रग्स टेस्ट की मांग उठ रही है। सुशांत की मौत का मामला किन मोड़ों से गुजरा, डालते हैं उस पर एक नजर:-
मुंबई पुलिस डेढ़ महीने तक बयान दर्ज करती रही
14 जून को सुशांत सिंह राजपूत बांद्रा स्थित अपने किराए के अपार्टमेंट में मृत पाए गए। मुंबई पुलिस ने मौका-ए-वारदात पर पहुंचते ही इसे आत्महत्या बता दिया। जबकि मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ।
इसी बीच कंगना रनोट ने नेपोटिज्म का राग छेड़कर मामले को आत्महत्या के लिए उकसाने के एंगल से जोड़ दिया। उन्होंने फिल्ममेकर करन जौहर को नेपोटिज्म फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया तो सोशल मीडिया पर एक मुहिम सी छिड़ गई।
कंगना रनोट ने 14 जून को यह आरोप लगाकर सनसनी फैला दी कि सुशांत की सुसाइड के पीछे करन जौहर और उनकी नेपोटिस्ट गैंग है। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा था कि सुशांत ने उन लोगों को जीत दिलवा दी, जो भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। फिल्म माफिया हैं और खेमेबाजी में यकीन रखते हैं।
करन के साथ-साथ आदित्य चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, महेश भट्ट जैसे दिग्गजों को ट्रोल किया जाने लगा। इनके साथ स्टार किड्स के बायकॉट की मांग उठने लगी।
आनन-फानन में मुंबई पुलिस ने बिना एफआईआर दर्ज किए ही पूछताछ शुरू कर दी। सुशांत के हाउस स्टाफ नीरज, केशव, सैमुअल मिरांडा से लेकर उनकी गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती, फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली, महेश भट्ट, आदित्य चोपड़ा और फिल्म क्रिटिक राजीव मसंद समेत 50 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए गए।
हालांकि, इस दौरान न तो पैसे के एंगल को देखा गया, न क्राइम सीन को लॉक किया गया और न ही इस बात पर विचार किया गया कि अगर सुसाइड नोट नहीं मिला तो यह मामला कुछ और भी हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि मुंबई पुलिस ने खुद भी सुशांत की डेड बॉडी को पंखे से लटका नहीं देखा था। बावजूद इसके उन्होंने इसे आत्महत्या मान लिया और अंधेरे में तीर चलाना शुरू कर दिया। यहां तक कि सुशांत के फोन को भी फोरेंसिक जांच के लिए घटना के 24 दिन बाद भेजा था।
28 जुलाई से बिहार पुलिस एक्टिव हुई
25 जुलाई को सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह ने पटना क�� राजीव नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई और रिया चक्रवर्ती पर बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया। यह आरोप भी लगाया कि रिया, उनके पिता इंद्रजीत, मां, संध्या, भाई शोविक, सुशांत की पूर्व मैनेजर श्रुति मोदी और हाउस मैनेजर रहे सैमुअल मिरांडा ने सुशांत के खाते से 15 करोड़ रुपए की हेराफेरी की।
हालांकि, इस एफआईआर की जानकारी 28 जुलाई को तब सामने आई, जब पटना पुलिस की एक एसआईटी जांच के लिए मुंबई पहुंच गई। इसके बाद मुंबई पुलिस ने पूछताछ बंद कर दी। खुद को मुख्य आरोपी बनते देख रिया गायब हो गईं। उन्होंने आनन-फानन में वकील सतीश मानशिंदे के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामले को पटना से मुंबई शिफ्ट कराने की अपील की।
केके सिंह ने 26 अगस्त को एक न्यूज चैनल को यह बयान दिया था।
इस दौरान बड़ा ड्रामा हुआ। मुंबई पुलिस पर पटना पुलिस को सहयोग न देने और रिया को मदद करने के आरोप लगे। जांच के लिए मुंबई पहुंचे पटना सिटी एसपी विनय तिवारी को जबरन क्वारैंटाइन कर दिया गया। इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की तो महाराष्ट्र सरकार भी खुलकर सामने आ गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने नीतीश की इस सिफारिश की निंदा की और उनके साथ-साथ मुंबई पुलिस पर सवाल उठाने वालों पर घटिया राजनीति करने का आरोप लगाया। सभी पक्षों को सुनने के बाद 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
मामले से ऐसे जुड़ा आदित्य ठाकरे का नाम
मामले में आदित्य ठाकरे का नाम घसीटा गया। भाजपा नेता नारायण राणे ने एक बयान देकर राजनीतिक हलचल को और बढ़ा दिया। उन्होंने दावा किया कि सुशांत की मौत से एक रात पहले 13 जून को अभिनेता डिनो मोरिया ने सुशांत सिंह राजपूत और कुछ राजनेताओं के लिए पार्टी रखी थी।
उनके मुताबिक, यह पार्टी पहले मोरिया के घर में हुई और फिर सुशांत के घर में। उन्होंने आरोप लगाया कि इस पार्टी में एक नेता पुत्र शामिल हुए थे, जो महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं। उनका इशारा उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे की ओर था।
आदित्य ठाकरे ने अपने बयान में कहा था कि इस मामले में सड़क छाप राजनीति हो रही है। उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा था।
आदित्य ने पूरे विवाद पर बयान जारी किया था और कहा था कि वे बालासाहब ठाकरे के पोते हैं, ऐसा कोई काम नहीं कर सकते, जिससे परिवार की छवि खराब हो। उन्होंने भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर गंदी राजनीति करने और सुशांत की मौत का फायदा राजनीतिक लाभ के लिए उठाने का आरोप लगाया था।
रिया के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग का केस
31 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिया चक्रवर्ती, उनके पिता इंद्रजीत, मां संध्या, भाई शोविक, सुशांत की पूर्व मैनेजर श्रुति मोदी और हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग का केस दर्ज किया था। पूछताछ में रिया ने सुशांत के खाते से पैसे निकालने के आरोप को मनगढ़ंत और गलत बताया।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि रिया या उनके फैमिली मेंबर्स ने सुशांत के पैसों का गबन किया था। लेकिन पिछले दिनों फोन क्लोनिंग से यह खुलासा जरूर हुआ था कि रिया चक्रवर्ती ने सैमुअल मिरांडा (सुशांत का हाउस मैनेजर) की मदद से सुशांत के डेबिट कार्ड के पिन हासिल कर लिए थे। मामले की जांच अभी जारी है।
ईडी की जांच में खुला ड्रग्स कनेक्शन का राज
26 अगस्त को नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने रिया चक्रवर्ती व अन्य के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज किया। दरअसल, पिछले दिनों ईडी ने रिया चक्रवर्ती के दो फोन को क्लोन करके उससे डिलीट डाटा रिकवर किया था। इसका खुलासा एक ऐसे लेटर में हुआ, जो ईडी का आधिकारिक डॉक्यूमेंट बताया जा रहा था। क्लोनिंग के बाद रिया के चैट के रिकॉर्ड सामने आए और उसमें ड्रग्स कनेक्शन का खुलासा हुआ।
रिया ने एक एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था- दुर्भाग्य से किसी के गुजर जाने के बाद हमें उसके दोष के बारे में बात करनी पड़ रही है। जी हां , सुशांत मारिजुआना का नशा करते थे। रेगुलरली पीते थे। मुझे मिलने से पहले से पीते थे। मैं उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश करती थी। लेकिन वे अपनी पसंद की जिंदगी जीना चाहते थे।
ईडी टीम ने यह डाटा सीबीआई और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से भी शेयर किया था। एनसीबी ने ड्रग पैडलर अब्दुल बासित परिहार और जैद विलात्रा को गिरफ्तार कर लिया है। अब्दुल का कनेक्शन रिया के सहयोगी सैमुअल मिरांडा के साथ बताया जा रहा है, जो एक्ट्रेस के भाई शोविक के इशारे पर काम कर रहा था।
जैद से यह पता चला है कि वह अब्दुल बासित परिहार और सूर्यदीप मल्होत्रा के संपर्क में था। ये दोनों शोविक के संपर्क में थे। इससे पहले 27 और 28 अगस्त को ड्रग डीलर अब्बास लखानी और करण अरोड़ा की गिरफ्तारी हुई थी। दोनों के पास से गांजा भी बरामद हुआ था।
इस बीच कई नेता और सोशल मीडिया यूजर्स बॉलीवुड सेलेब्स के ड्रग टेस्ट की मांग उठा रहे हैं। एक्ट्रेस कंगना रनोट खुलकर रणबीर कपूर, रणवीर सिंह और विकी कौशल से ड्रग टेस्ट कराने की अपील कर चुकी हैं। उन्होंने यह दावा भी किया है कि अगर उन्हें पुलिस प्रोटेक्शन मिले तो वे बॉलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन को उजागर करने में एनसीबी की मदद कर सकती हैं।
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gokul2181 · 4 years
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The death of a father and son, allegedly due to torture in a police station near Thoothukudi, Tamil Nadu | हिरासत में बाप-बेटे की हत्या के आरोपी पुलिसकर्मी बेखौफ, चश्मदीद महिला कांस्टेबल को धमकी; मुख्य आरोपी इंस्पेक्टर गिरफ्तार
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The death of a father and son, allegedly due to torture in a police station near Thoothukudi, Tamil Nadu | हिरासत में बाप-बेटे की हत्या के आरोपी पुलिसकर्मी बेखौफ, चश्मदीद महिला कांस्टेबल को धमकी; मुख्य आरोपी इंस्पेक्टर गिरफ्तार
पिता-पुत्र की मौत मामले की सीबी-सीआ��डी जांच, हत्या का केस दर्ज
हाई कोर्ट के आदेश पर थाने का चार्ज लेने गए रेवेन्यू ऑफिसर की टीम को चिढ़ाते रहे पुलिसकर्मी
आर. रामकुमार
Jul 02, 2020, 05:54 AM IST
चेन्नई. तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पुलिस हिरासत में पिता-पुत्र की हत्या पर देशभर में गुस्सा है, पर आरोपी पुलिसकर्मी बेखौफ हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने सातनकुलम थाने का प्रभार रेवेन्यू डिपार्टमेंट को दे दिया है। कोर्ट के आदेश पर चार्ज लेने वाले तहसीलदार सेंथूर राजन और उनकी टीम को भी पुलिस कर्मियों की बदसलूकी का सामना करना पड़ रहा है। पुलिसकर्मी डराने के इरादे से उन्हें घूर रहे हैं। मुंह चिढ़ा रहे हैं।
तहसीलदार राजन ने बताया कि उन्हें थाना चलाने का कोई अनुभव नहीं है। कोर्ट के आदेश पर थाने का प्रभार संभाल रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ सरकारी गवाह बनने को तैयार हुई चश्मदीद हेड कांस्टेबल रेवती को पुलिसकर्मियों ने जान से मारने की धमकी दी है। फिलहाल रेवती के घर पर पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
रेवती ने कहा, पिता-पुत्र को रातभर पुलिस ने पीटा
रेवती ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को दी गवाही में कहा है, ‘पी. जयराज और उसके बेटे फेनिक्स को पूरी रात पुलिसकर्मियों ने बारी-बारी से पीटा था और इनके खून से लाठी और टेबल सन गई थी।’ इस दौरान पुलिसकर्मियों ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट भारतीदासन से बदसलूकी की थी।
मजिस्ट्रेट को धमकी देने वालों के खिलाफ कार्रवाई
कोर्ट ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को धमकी देने वाले एएसपी डी कुमार, डीएसपी प्रतापन और कांस्टेबल महाजन के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। गृह विभाग ने इन्हें सजा की प्रतीक्षा सूची में रखा था। इसके 24 घंटे के भीतर ही इन्हें नई पोस्टिंग मिल गई है। डी कुमार को नीलगिरी में पीईडब्ल्यू के एएसपी के रूप में तैनाती दी गई है। वहीं प्रतापन को पुधुकोट्टई में डीएसपी की तैनाती मिली है।
सीबी-सीआईडी ने जांच शुरू की
दूसरी तरफ सीबी-सीआईडी ने जांच शुरू करते हुए पी. जयराज और बेटे फेनिक्स हत्याकांड के मुख्य आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर रघु गणेश समेत 6 पुलिसकर्मियों पर 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तमिलनाडु के डीजीपी, तूतीकोरिन के एसपी को नोटिस जारी किया है।
गौरतलब है कि पी.जयराज और उसके बेटे फेनिक्स को लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। थाने में इन्हें बेरहमी से पीटा, जिससे 22 जून को दोनों की मौत हो गई थी। 
देश का हाल: पिछले साल पुलिस हिरासत में 74% मौतें टॉर्चर से देश में पिछले साल पुलिस हिरासत में 125 लोगों की मौत हुई। इनमें से 74% की मौत टॉर्चर से हुई। पिछले साल पुलिस हिरासत में सबसे ज्यादा 14 मौतें यूपी में हुईं।
राज्य पुलिस हिरासत में मौतों की संख्या यूपी 14 तमिलनाडु 11 पंजाब 11 बिहार 10 मध्य प्रदेश 09
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thesandhyadeepme · 5 years
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कच्छाधारी गिरोह के सात बदमाश गिरफ्तार
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भरतपुर, 30 जुलाई (वार्ता) राजस्थान में भरतपुर पुलिस ने उत्तरप्रदेश पुलिस के सहयोग से अंतर्राज्यीय छेमार कच्छाधारी गिरोह के सात खूंखार बदमाशों को गिरफ्तार किया है। पुलिस अधीक्षक हैदर अली जैदी ने आज बताया कि यह गिरोह राजस्थान और उत्तरप्रदेश में हत्या, लूट एवं डकैती की दर्जनों वारदातों को अब तक अंजाम दे चुका है। भरतपुर के जघीना और टोटपुर गांवों में पिछले दिनों हुई लूट एवं हत्या तथा नाऊ का नगला और गुंडबा गांवों में डकैती की कई वारदातों में इस गिरोह की सरगर्मी सेे तलाश थी।
  सीपी जोशी सार्वजनिक उपक्रमों की समिति के सदस्य बने उन्होंने बताया कि दोनों राज्यों की पुुलिस को मिली सूचना के बाद उत्तर प्रदेश के अजमल शाह (25), आरिफ (25 छेमार निवासी फकीरपुरा थाना इंदरगढ़ (कन्नौज), आरिफ (25), नाजिम (25), हारुन (45), ईसुब (50), नदीम (19) और नाजिम पुत्र हामिद (28) को गिरफ्तार किया गया। श्री जैदी ने बताया कि पुलिस ने बदमाशों की गिरफ्तारी के बाद भरतपुर के डीग, सेबर, उद्योगनगर एवं चिकसाना थाना क्षेत्रों में गत दिनों हुई लूट नकबजनी की वारदातों का खुलासा हुआ है। इनके खिलाफ उत्तरप्रदेश के एक दर्जन जिलों में हत्या, लूट तथा डकैती के दर्जनों मामले दर्ज हैं। उन्होंने बताया कि गिरोह के सदस्य गिरफ्तारी के समय पुलिस को गलत नाम पते बताकर जेल जाने के बाद छूट कर फिर वारदातों में लिप्त हो जाते हैं।
सोना 160 रुपये चमका , चांदी 150 रुपये चढ़ी उन्होंने इस गिरोह की कार्यशैली का विवरण देते हुए बताया कि ये लोग छैमार जाति के खानाबदोश हैं। ये वारदात के लिये किसी रेलवे या बस स्टैंड के पास डेरा जमाते हैं। दोपहर में भीख मांगने के बहाने ये गलियों में घूमकर वारदात के लिये घर चिन्हित करते हैं। फिर रात में ये लोग एक सूने खेत में जाते हैं और खेत में लकड़ी तोड़कर उसे हथियार का रूप देते हैं। कपड़े उतारकर पूरे शरीर पर तेल मलते हैं और कच्छा बनियान पहनकर चिन्हित घर पहुंचते हैं। यहां दो तीन लोग सोये हुए लोगों के सिरहाने खड़े हो जाते हैं जबकि अन्य सदस्य घर में घुसकर कीमती वस्तु बटोर लेते हैं। अगर कोई जाग जाता है तो ये लकड़ी से उसके सिर पर वार करके उसकी हत्या कर देते हैं। गिरोह का सरदार उसी बदमाश को बनाया जाता है जो लूट एवं डकैती के दौरान कम से कम छह लोगों की हत्या कर चुका हो। इसीलिये इसे छैमार गिरोह कहा जाता है।
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bittudk · 5 years
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ब्राह्मण वंशावली (गोत्र प्रवर परिचय) -1.
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।
एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव :
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गर्ग (शुक्ल- वंश)
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गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं।
उपगर्ग (शुक्ल-वंश):
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उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
(१)बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं।
गौतम (मिश्र-वंश):
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गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं।
उप गौतम (मिश्र-वंश):
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उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है।
वत्स गोत्र (मिश्र- वंश):
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वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है।
कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश):
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तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है।
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
वशिष्ठ गोत्र (मिश्र-वंश):
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इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है।
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश)
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शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं।
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है।
इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है।
उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश):
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इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं।
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश):
भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर।
भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश):
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भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार
कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें। सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है।
सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश)
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सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)
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सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)
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इन तीन गांवों से बताये जाते हैं।
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ (३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
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इन तीन गांवों से बताये जाते हैं।
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
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इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है।
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है।
ब्राह्मणों की वंशावली
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भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें
वरदान दिया। वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका क्रमानुसार नाम था👉
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाय जाते हैं। तथा विंध्यांचल के उत्तर मं पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं। वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है। शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं। जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के लगभग है। तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है। उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है 81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है -
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
ब्राह्मण गौत्र और गौत्र कारक 115 ऋषि
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(1). अत्रि, (2). भृगु, (3). आंगिरस, (4). मुद्गल, (5). पातंजलि, (6). कौशिक,(7). मरीच, (8). च्यवन, (9). पुलह, (10). आष्टिषेण, (11). उत्पत्ति शाखा, (12). गौतम गोत्र,(13). वशिष्ठ और संतान (13.1). पर वशिष्ठ, (13.2). अपर वशिष्ठ, (13.3). उत्तर वशिष्ठ, (13.4). पूर्व वशिष्ठ, (13.5). दिवा वशिष्ठ, (14). वात्स्यायन,(15). बुधायन, (16). माध्यन्दिनी, (17). अज, (18). वामदेव, (19). शांकृत्य, (20). आप्लवान, (21). सौकालीन, (22). सोपायन, (23). गर्ग, (24). सोपर्णि, (25). शाखा, (26). मैत्रेय, (27). पराशर, (28). अंगिरा, (29). क्रतु, (30. अधमर्षण, (31). बुधायन, (32). आष्टायन कौशिक, (33). अग्निवेष भारद्वाज, (34). कौण्डिन्य, (34). मित्रवरुण,(36). कपिल, (37). शक्ति, (38). पौलस्त्य, (39). दक्ष, (40). सांख्यायन कौशिक, (41). जमदग्नि, (42). कृष्णात्रेय, (43). भार्गव, (44). हारीत, (45). धनञ्जय, (46). पाराशर, (47). आत्रेय, (48). पुलस्त्य, (49). भारद्वाज, (50). कुत्स, (51). शांडिल्य, (52). भरद्वाज, (53). कौत्स, (54). कर्दम, (55). पाणिनि गोत्र, (56). वत्स, (57). विश्वामित्र, (58). अगस्त्य, (59). कुश, (60). जमदग्नि कौशिक, (61). कुशिक, (62). देवराज गोत्र, (63). धृत कौशिक गोत्र, (64). किंडव गोत्र, (65). कर्ण, (66). जातुकर्ण, (67). काश्यप, (68). गोभिल, (69). कश्यप, (70). सुनक, (71). शाखाएं, (72). कल्पिष, (73). मनु, (74). माण्डब्य, (75). अम्बरीष, (76). ���पलभ्य, (77). व्याघ्रपाद, (78). जावाल, (79). धौम्य, (80). यागवल्क्य, (81). और्व, (82). दृढ़, (83). उद्वाह, (84). रोहित, (85). सुपर्ण, (86). गालिब, (87). वशिष्ठ, (88). मार्कण्डेय, (89). अनावृक, (90). आपस्तम्ब, (91). उत्पत्ति शाखा, (92). यास्क, (93). वीतहब्य, (94). वासुकि, (95). दालभ्य, (96). आयास्य, (97). लौंगाक्षि, (98). चित्र, (99). विष्णु, (100). शौनक, (101).पंचशाखा, (102).सावर्णि, (103).कात्यायन, (104).कंचन, (105).अलम्पायन, (106).अव्यय, (107).विल्च, (108). शांकल्य, (109). उद्दालक, (110). जैमिनी, (111). उपमन्यु, (112). उतथ्य, (113). आसुरि, (114). अनूप और (110). आश्वलायन।
कुल संख्या 108 ही हैं, लेकिन इनकी छोटी-छोटी 7 शाखा और हुई हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर इनकी पूरी सँख्या 115 है।
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karanaram · 3 years
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🚩 हर हिंदुस्तानी को बंदा बैरागी का इतिहास पढ़ना चाहिए 09 जून 2021
🚩 भारतवासी आज जो चैन कि श्वास ले रहे हैं और स्वतंत्रता में जी रहे हैं ये हमारे देश के वीर सपूतों और महापुरुषों के बलिदान के कारण ही संभव हुआ है। उनमें से एक महापुरुष थे बन्दा बैरागी, जिन्होंने अनेक अत्याचार सहकर भी संस्कृति को जीवित रखा पर हम उनके बलिदान दिवस को ही भुल गये हैं।
🚩 बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 (27 अक्टूबर 1670) को हुआ था। वह राजपूतों के (मिन्हास) भारद्वाज गोत्र से सम्बन्धित थे और उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। इनके पिता का नाम रामदेव मिन्हास था।
🚩 लक्ष्मणदास ने युवावस्था में शिकार खेलते समय एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।
🚩 इसी दौरान गुरु गोविन्द सिंह जी माधोदास कि कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा। बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब कि ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।
🚩 बन्दासिंह को पंजाब पहुँचने में लगभग चार माह लग गये। बन्दा सिंह महाराष्ट्र से राजस्थान होते हुए नारनौल, हिसार और पानीपत पहुंचे और पत्र भेजकर पंजाब के सभी सिक्खों से सहयोग माँगा। सभी सिखों में यह प्रचार हो गया कि गुरु जी ने बन्दा को उनका जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है। बंदा के नेतृत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाया, उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया करते थे और मुस्लिम जमींदार इनका खूब शोषण करते थे देखते ही देखते सेना गठित हो गयी।
🚩 इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब हरियाणा के मुस्लिम जमींदारों पर जोरदार हमला शुरू हो गया। सबसे पहले कैथल के पास मुगल कोषागार लूटकर सेना में बाँट दिया गया, उसके बाद समाना, कुंजुपुरा, सढ़ौरा के मुस्लिम जमींदारों को धूल में मिला दिया।
🚩 बन्दा ने पहला फरमान यह जारी किया कि जागीरदारी व्यवस्था का खात्मा करके सारी भूमि का मालिक खेतिहर किसानों को बना दिया जाए।
🚩 लगातार बंदा सिंह कि विजय यात्रा से मुगल सत्ता कांप उठी और लगने लगा कि भारत से मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेकेंगे। अब मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने कि नीति पर काम किया, उनके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख पंथ कि शिक्षाओं का पालन नहीं करता। खुद गुरु गोविन्द सिंह जी कि दूसरी पत्नी माता सुंदरी जो कि मुगलो के संरक्षण/नजरबन्दी में दिल्ली में ही रह रही थी, से भी बंदा सिंह के विरुद्ध शिकायते कि गई । माता सुंदरी ने बन्दा सिंह से रक्तपात बन्द करने को कहा जिसे बन्दा सिंह ने ठुकरा दिया।
🚩 जिसका परिणाम यह हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उनका साथ छोड़ दिया जिससे उनकी ताकत कमजोर हो गयी तब बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया।
🚩 1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज (10 लाख सैनिक) ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। पर मुगल सेना अभी भी बन्दा सिंह से डरी हुई थी।
🚩 अब माता सुंदरी के प्रभाव में बाबा विनोद सिंह ने बन्दा सिंह का विरोध किया और अपने सैंकड़ो समर्थको के साथ किला छोड़कर चले गए, मुगलों से समझोते और षड्यंत्र के कारण विनोद सिंह और उसके 500 समर्थको को निकल जाने का सुरक्षित रास्ता दिया गया। अब किले में विनोद सिंह के पुत्र बाबा कहन सिंह किसी रणनीति से रुक गए इससे बन्दा सिंह कि सिक्ख सेना कि शक्ति अत्यधिक कम हो गयी।
🚩 खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। कुछ साक्ष्य दावा करते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह जी कि माता गूजरी और दो साहबजादो को धोखे से पकड़वाने वाले गंगू कश्मीरी ब्राह्मण रसोइये के पुत्र राज कौल ने बन्दा सिंह को धोखे से किले से बाहर आने को राजी किया।
🚩 मुगलों ने गुरदास नंगल के किले में रहने वाले 40 हजार से अधिक बेगुनाह मर्द, औरतों और बच्चों की निर्मम हत्या कर दी।
🚩 मुगल सम्राट के आदेश पर पंजाब के गर्वनर अब्दुल समन्द खां ने अपने पुत्र जाकरिया खां और 21 हजार सशस्त्र सैनिकों कि निगरानी में बाबा बन्दा बहादुर को दिल्ली भेजा। बन्दा को एक पिंजरे में बंद किया गया था और उनके गले और हाथ-पांव कि जंजीरों को इस पिंजरे के चारो ओर नंगी तलवारें लिए मुगल सेनापतियों ने थाम रखा था। इस जुलुस में 101 बैलगाड़ियों पर सात हजार सिखों के कटे हुए सिर रखे हुए थे जबकि 11 सौ सिख बन्दा के सैनिक कैदियों के रुप में इस जुलूस में शामिल थे।
🚩 युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले कि नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।
🚩 मुगल इतिहासकार मिर्जा मोहम्मद हर्सी ने अपनी पुस्तक इबरतनामा में लिखा है कि हर शुक्रवार को नमाज के बाद 101 कैदियों को जत्थों के रुप में दिल्ली कि कोतवाली के बाहर कत्लगाह के मैदान में लाया जाता था। काजी उन्हें इस्लाम कबूल करने या हत्या का फतवा सुनाते। इसके बाद उन्हें जल्लाद तलवारों से निर्ममतापूर्वक कत्ल कर देते। यह सिलसिला डेढ़ महीने तक चलता रहा। अपने सहयोगियों कि हत्याओं को देखने के लिए बन्दा को एक पिंजरे में बंद करके कत्लगाह तक लाया जाता ताकि वह अपनी आंखों से इस दर्दनाक दृश्य को देख सकें।
🚩 बादशाह के आदेश पर तीन महीने तक बंदा और उसके 27 सेनापतियों को लालकिला में कैद रखा गया। इस्लाम कबूल करवाने के लिए कई हथकंडों का इस्तेमाल किया गया। जब सभी प्रयास विफल रहे तो जून माह में बन्दा कि आंखों के सामने उसके एक-एक सेनापति कि हत्या की जाने लगी। जब यह प्रयास भी विफल रहा तो बन्दा बहादुर को पिंजरे में बंद करके महरौली ले जाया गया। काजी ने इस्लाम कबूल करने का फतवा जारी किया जिसे बन्दा ने ठुकरा दिया।
🚩 बन्दा के मनोबल को तोड़ने के लिए उनके चार वर्षीय अबोध पुत्र अजय सिंह को उसके पास लाया गया और काजी ने बन्दा को निर्देश दिया कि वह अपने पुत्र को अपने हाथों से हत्या करे। जब बन्दा इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो जल्लादों ने इस अबोध बालक का एक-एक अंग निर्ममतापूर्वक बन्दा कि आंखों के सामने काट डाला। इस मासूम के धड़कते हुए दिल को सीना चीरकर बाहर निकाला गया और बन्दा के मुंह में जबरन ठूंस दिया गया। वीर ��न्दा तब भी निर्विकार और शांत बने रहे।
🚩 अगले दिन जल्लाद ने उनकी दोनों आंखों को तलवार से बाहर निकाल दिया। जब बन्दा टस से मस न हुआ तो उनका एक-एक अंग हर रोज काटा जाने लगा। अंत में उनका सिर काट कर उनकी हत्या कर दी गई। बन्दा न तो गिड़गिड़ाये और न उन्होंने चीख पुकार मचाई। मुगलों कि हर प्रताड़ना और जुल्म का उसने शांति से सामना किया और धर्म कि रक्षा के लिए बलिदान हो गया।
🚩 देश और धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने और इतनी यातनाएं सहन करने के बाद प्राणों कि आहुति दे दी लेकिन न धर्म बदला और नही अन्याय के सामने कभी झुके। इन वीर महापुरुषों को आज हिंदुस्तानी भूल रहे है और देश को तोड़ने में सहायक हीरो-हीरोइन, क्रिकेटरों का जन्म दिन याद होता है लेकिन आज हम जिनकी वजह से स्वतंत्र है उनका बलिदान दिवस याद नही कितने दुर्भाग्य की बात है ।
🚩 इतिहास से हिन्दू आज सबक नही लेगा, संगठित होकर कार्य नही करेगा और हिंदू राष्ट्र कि स्थापना नही होगी तो फिर से विदेशी ताकते हावी होगी और हमें प्रताड़ित करेंगी।
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mahenthings-blog · 6 years
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कौन है हम ?? भाग -15
सीर नदी की घाटी से शकों को निकालकर युइशि जाति के लोग वहाँ पर आबाद हो गए थे पर वे यहाँ भी अधिक समय तक नहीं टिक सके, हूणों ने यहाँ पर भी उनका पीछा किया जिससे मजबूर होकर उन्होंने शको के पीछे बैक्ट्रिया में प्रवेश किया और बैक्ट्रिया तथा उसके समीपवर्ती प्रदेशों पर क़ब्ज़ा कर पहली सदी में अपने पाँच राज्य क़ायम किए। चीनी ऐतिहासिक के अनुसार ये पांच राज्य हिउ-मी, शुआंग-मी, कुएई-शुआंग, ही-तू और काओ-फ़ू थे पर इन राज्यों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था। बैक्ट्रिया के यूनानियों के सम्पर्क में आकर युइशि लोगो ने विकास किया और अंततः तक़लामक़ान की मरुभूमि में अपना स्थायी आवास स्थापित किया | 25 ई. पू. के लगभग कुएई-शुआंग राज्य का शासन 'कुषाण' नाम के राजा के पास आया जिसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और शक राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक इतिहासकारों का मत है कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था अपितु  यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया उसका नाम कुजुल कडफ़ाइसिस था। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण ये राजा कुषाण कहलाते थे इसे लेकर मतभेद है लेकिन इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है। प्राचीन भारत के सभी साम��राज्यों में कुषाण साम्राज्य महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय महत्व रखता था । इसके पूर्व में चीन पश्चिम में पार्थियन साम्राज्य था तथा रोमन साम्राज्य का उदय हो रहा था। रोमन तथा पार्थियन साम्राज्यों में परस्पर शत्रुता थी, रोमन एक ऐसा मार्ग चाहते थे जिससे वे बिना पार्थिया से गुजरे चीन से व्यापार कर सके इसलिए वे कुषाण साम्राज्य से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखने के इच्छुक थे। विख्यात सिल्क मार्ग की तीनों मुख्य शाखाओं केस्पियन सागर से होकर जाने वाले मार्ग ,मर्व से फ़रात (यूक्रेट्स) नदी होते हुए रूमसागर पर बने बंदरगाह तक जाने वाले मार्ग और भारत से लाल सागर तक जाने वाले मार्ग पर कुषाण साम्राज्य का नियंत्रण था |  प्रथम शताब्दी में भारत और रोम के बीच मधुर सम्बन्ध का उल्लेख 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' नामक पुस्तक में मिलता है। इस पुस्तक में रोमन साम्राज्य को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में कालीमिर्च , अदरक, रेशम, मलमल, सूती वस्त्र, रत्न , मोती आदि का तथा आयात की जाने वस्तुओ में मूंगा, लोशन, कांच, चांदी , सोने के बर्तन , रांगा, सीसा, तिप्तीया घास आदि का उल्लेख किया गया है | ये व्यापार मुख्यतः सिंधु नदी के मुहाने पर स्थित बन्दरगाह 'बारवैरिकम' और भड़ोच से होता था।
            प्रसिद्द कुषाण शासक कनिष्क बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी था उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए काफ़ी काम किया। कनिष्क के समय में ही कश्मीर के कुण्डल वन में बौद्ध धर्म की चौथी संगीति का आयोजन किया गया इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष कनिष्क का राजकवि अश्वघोष था इसमें नागार्जुन भी शामिल हुए थे |  इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको 'महाविभाषा' नाम की पुस्तक में संकलित किया गया ,इस पुस्तक को बौद्ध धर्म का 'विश्वकोष' भी कहा जाता है , संगीति के निर्णयों को ताम्रपत्र पर लिखकर पत्थर की मंजूषाओं में रखकर स्तूप में स्थापित कर दिया गया। कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी होते हुए भी अन्य धर्मों के प्रति साहिष्णु था उसके सिक्कों पर पार्थियन, यूनानी एवं भारतीय देवी देवताओ की आकृतियाँ मिली हैं। कनिष्क के सिक्कों पर ग्रीक भाषा में 'हिरैक्लीज', 'सिरापीज', हेलिओस और सेलिनी, मीइरो (सूर्य), अर्थों (अग्नि ), ननाइया, शिव आदि के नाम मिले है । सिक्कों पर बुद्ध तथा भारतीय देवी देवताओं की आकृतियाँ यूनानी शैली में उकेरी गई हैं। कुषाण वंश के शासकों में कडफ़ाइसिस -शैव , कनिष्क- बौद्ध , हुविष्क और वासुदेव वैष्णव धर्म के अनुयायी थे | मथुरा से कनिष्क की एक ऐसी मूर्ति मिली है, जिसमें उसे सैनिक वेषभूषा में दिखाया गया है। कनिष्क के अब तक प्राप्त सिक्के यूनानी एवं ईरानी भाषा में मिले हैं। कनिष्क के ताम्बे के सिक्कों पर उसे 'बलिवेदी' पर बलिदान करते हुए दर्शाया गया है। कनिष्क के सोने के सिक्के रोम के सिक्कों से काफ़ी कुछ मिलते थे। बुद्ध के अवशेषों पर कनिष्क ने पेशावर के निकट एक स्तूप  एवं मठ निर्माण करावाया। कनिष्क कला और विद्वता का आश्रयदाता था उसके दरबार का सबसे महान् साहित्यिक व्यक्ति अश्वघोष था जिसकी रचनाओं की तुलना महान् मिल्टन, गेटे, काण्ट एवं वॉल्टेयर से की गई है। अश्वघोष ने 'बुद्धचरित्र' तथा 'सौन्दरनन्द', शारिपुत्रकरण एवं सूत्रालंकार की रचना की। इसमें बुद्धचरित तथा सौन्दरनन्द को महाकाव्य की संज्ञा प्राप्त है। सौन्दरनन्द में बुद्ध के सौतेले भाई सुन्दरनन्द के सन्न्यास ग्रहण करने का वर्णन है। अश्वघोष का ग्रंथ 'सरिपुत्रप्रकरण' नौ अंको का एक नाटक ग्रंथ है, जिसमें बुद्ध के शिष्य 'शरिपुत्र' के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का नाटकीय उल्लेख है इस ग्रंथ की तुलना वाल्मीकि की रामायण से की जाती है। कनिष्क के दरबार की ही एक अन्य विभूति नागार्जुन दार्शनिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी था। इसे भारत का 'आईन्सटाइन' कहा गया है  नागार्जुन ने अपनी पुस्तक 'माध्यमिक सूत्र' में सापेक्षता के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। वसुमित्र ने चौथी बौद्ध संगीति में 'बौद्ध धर्म के विश्वकोष' 'महाविभाष्ज्ञसूत्र' की रचना की। इस ग्रंथ को 'बौद्ध धर्म का विश्वकोष'कहा जाता है। कनिष्क के राजवैद्य और रत्न चिकित्सक चरक ने औषधि पर 'चरकसंहिता' की रचना की |  अन्य विद्धानों में पार्श्व, वसुमित्र, मतृवेट, संघरक्षक आदि के नाम उल्लेखनीय है इसके संघरस कनिष्क के पुरोहित थे , वसुमित्र ने विभाषा शास्त्र की रचना की थी। कुषाणों ने भारत में बसकर यहाँ की संस्कृति को आत्मसात् किया इनकी संस्कृति यूनानी संस्कृति से प्रभावित थी। कुषाण शासकों ने 'देवपुत्र' उपाधि धारण की। कनिष्क के समय में ही 'वात्सायन का कामसूत्र', भारवि की स्वप्नवासवदत्ता की रचना हुई। 'स्वप्नवासवदत्ता' को संभवतः भारत का प्रथम सम्पूर्ण नाटक माना गया है।
                    चौथी सदी से सातवीं सदी के मध्य उड़ीसा ,मध्यप्रदेश ,पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी बंगाल तथा असम में उन्नत कृषि व्यवस्था का प्रसार हुआ | उत्पादन बढ़ने के साथ इन क्षेत्रो में व्यापार ,शिल्प और विभिन्न कलाओ का विकास हुआ जिनके चलते नए राज्य तंत्रो का विकास संभव हुआ | इस समय उड़ीसा में कई राज्य स्थापित होते है जिनमे पांच की पहचान स्पष्ट रूप से होती है और इनमे माठर वंश का राज्य प्रमुख है ये पितृभक्त वंश भी कहलाता था जिसका साम्राज्य महानदी और कृष्णा नदी के बीच फैला था | माठरों ने महेंद्र पर्वत क्षेत्र में महेन्द्रभोग नाम का नया जिला बनाया साथ ही अग्रहार नाम के न्यास बनाये जिन्हे कुछ भूमि दी गयी जिसकी आय से पठन पाठन और धार्मिक कार्यो में लगे ब्राह्मण वर्ग का भरण पोषण होता था | ये लोग मौसम की अच्छी जानकारी रखते थे और उसका उपयोग कृषि में करते थे ,इन लोगो ने वर्ष को 4 -4 महीनो के तीन भागों में बांटा और काल की गणना तीन ऋतुओ के आधार पर करना शुरू किया |  माठरों के अमल में पांचवी सदी के मध्य में वर्ष को बारह चंद्र मॉस में विभाजित करने की परंपरा चली |  ईसा की चौथी सदी तक इस क्षेत्र में प्राकृत भाषा के अभिलेख मिलते है लेकिन इसी के साथ 350 ईस्वी के आसपास संस्कृत के प्रयोग के भी प्रमाण मिलते है |  इस काल के अभिलेखों में उत्कृष्ट संस्कृत के श्लोक मिलते है जो शासन पत्रों और सामाजिक नियमो को दर्शाने वाले अभिलेखों में वर्णित है , शासनपत्रो में राजा द्वारा स्वयं को वर्ण व्यवस्था का रक्षक तथा प्रयाग स्थित गंगा यमुना संगम में स्नान को पवित्र कहा गया था | दक्षिण कलिंग में आंध्र की सीमाओं पर वशिष्ठ वंश ,महाकांतर के वन्यप्रदेश में नलवंश ,महानदी के पार उत्तर और समुद्रवर्ती क्षेत्र में मानवंश के शासको के राज्य थे , ये सभी राज्य वैदिक और आर्य संस्कृति के पोषक थे और अपने शासन की वैधता को स्थापित करने के लिए वैदिक यज्ञ किया करते थे | नल वंश की स्थापना 290 ईस्वी में वराहराज (शिशुक ) ने की ,ये वंश वाकाटक राज्य का समकालीन था और वाकाटकों से संघर्ष करता रहा था | नलवंश के शासको ने पुष्करी ,कोरापुट और बस्तर में अपनी राजधानी बनायीं , बस्तर के जनजातीय क्षेत्रो एड़ेंगा और कुलिया से मिली नलवंश की स्वर्ण मुद्राओं से एक विकसित अर्थव्यवस्था की जानकारी मिलती है| इस वंश के शासक भवदत्त वर्मा का अमरावती से ताम्रपत्र तथा पोड़ागढ़ से शिलालेख ,अर्थपति का केशरीबेड़ से ताम्रपत्र तथा पंडियापाथर से लेख और विलासतुंग का राजिम से शिलालेख प्राप्त हुआ है | इसी तरह मानवंश द्वारा जारी किये गए ताम्बे के सिक्के बताते है कि किसान और शिल्पियों के बीच इन सिक्को का प्रचलन था |                       
उत्तरी बंगाल के कई हिस्सों जहाँ वर्तमान बोगरा जिला स्थित है में अशोक के काल से ही लेखन प्रच��ित होने के प्रमाण मिलते है , इस क्षेत्र के लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और प्राकृत जानते थे ,बौद्ध भिक्षुओ के भरण पोषण के लिए सिक्को और अनाज के भंडार थे  |  दक्षिण पूर्व बंगाल के समुद्रवर्ती नोआखली जिले में मिले अभिलेख से पुष्टि होती है कि ये लोग ईसा पूर्व दूसरी सदी में प्राकृत और ब्राह्मी लिपि जानते थे , दक्षिण पूर्व बंगाल में खरोष्ठी लिपि के प्रचलित होने का भी आभास मिलता है |  बंगाल के बारे में स्पष्ट जानकारी ईसा के बाद की चौथी सदी में जाकर मिलती है , सदी के मध्य में महाराज उपाधिधारक एक राजा का जिक्र बांकुरा जिले के दामोदर तटवर्ती पोखरणा के शासक बतौर मिलता है जो संस्कृत जानता था और विष्णु का उपासक था | गंगा और ब्रह्मपुत्र के बीच का प्रदेश जो अब बांग्लादेश का भाग है पांचवी सदी में भरा पूरा था और यहाँ संस्कृत शिक्षा प्रचलित थी |  550 ईस्वी के बाद गुप्त शासन के स्वतंत्र हुए गवर्नरों द्वारा उत्तरी बंगाल पर कब्ज़ा करने के संकेत मिलते है , इसके कुछ भाग को कामरूप के राजाओ ने भी हथियाया | 432 -33 ईस्वी से अगले 100 वर्षो तक पुण्ड्रवर्धनभुक्ति (समूचा उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश का भाग ) में भूमि व्यवहारों के बड़ी संख्या में ताम्रपत्र मिलते है जिसमे भूमि के मूल्य के रूप में दीनार नामक स्वर्णमुद्रा का जिक्र है |  गुप्त साम्राज्य के दौरान नियुक्त गवर्नरों द्वारा स्थापित व्यवस्था के तहत इन ताम्रपत्रों पर लिपिकारों ,वणिको ,शिल्पियों और भू स्वामियों के नाम मिलते है | 600 ईस्वी में आकर यह गौड़ प्रदेश कहलाया ,इसे गोड़ नाम मिलने के पीछे दो धारणाये प्रचलित है | प्रथम के अनुसार यहाँ से गुड़ का व्यापार होने के कारण तथा दूसरे गोड़ शासको के कारण | गोड़ वंश को क्षत्रिय राजवंश कहा जाता है और पौराणिक सूत्रों के अनुसार ये भरत के वंशज थे | कहा जाता है कि जब राम अयोध्या के राजा बने तब भरत को गांधार का राजा बनाया गया था | भरत के पुत्र तक्ष द्वारा तक्षशिला तथा पुष्कल द्वारा पुष्कलावती (पेशावर ) नगर बसाये गए थे , बाद में इनके वंशजो ने बंगाल तक साम्राज्य विस्तार किया | 553 ईस्वी के हराहा अभिलेख में ईश्वरवर्मन मौखरि की गोड़ प्रदेश पर विजय का उल्लेख मिलता है |  बाणभट्ट ने गोड़ नरेश शशांक का वर्णन किया है जिसकी राजधानी कर्णसुवर्ण (वर्तमान मुर्शिदाबाद जिले का रांगामाटी क़स्बा ) थी | शशांक का राज्य पश्चिम में मगध तथा दक्षिण में उड़ीसा की चिल्का झील तक था | शशांक ने ही थानेश्वर के शासक और हर्षवर्धन के भाई राज्य वर्धन की हत्या की थी जो दोनों के बीच शत्रुता का कारण  था | दक्षिण पूर्व बंगाल का ब्रह्मपुत्र द्वारा गठित त्रिभुजाकार क्षेत्र समतट कहलाता था जिसे चौथी सदी में समुद्रगुप्त ने जीता था , लेकिन यहाँ न तो वर्णव्यवस्था का प्रचलन मिलता है और न ही उत्तरी बंगाल की तरह संस्कृत का प्रयोग ,जिससे पता चलता है कि यहाँ के शासक बाह्मण धर्मावलम्बी नहीं थे | लगभग 525 ईस्वी में यहाँ एक सुसंगठित राज्य रहा जिसमे समतट के साथ इसकी पश्चिमी सीमा से सटा वंग का भाग भी शामिल था ,ये समतट या वंग राज्य कहलाया ,इसके शासक सम हरदेव का वर्णन मिलता है जिसने छठी सदी के उत्तरार्ध में स्वर्ण मुद्राये जारी की थी |  इसके अतिरिक्त सातवीं सदी में ढाका क्षेत्र में खड्ग वंश का साम्राज्य मिलता है , यहाँ दो राज्य थे ,लोकनाथ नामक ब्राह्मण सामंत का राज्य और राट वंश का राज्य ,ये दोनों कुमिल्ला क्षेत्र में पड़ते थे |  इस अवधि में जो भी राज्य स्थापित हुए उन्होंने उड़ीसा की तरह अग्रहारों की स्थापना की और बड़ी संख्या में अनुदानपत्र जारी किये ये सस्कृत भाषा में थे | बंगाल और उड़ीसा के बीच के क्षेत्र में राजस्व और प्रशासनिक इकाई दंडभुक्ति बनाई गयी , वर्धमानभुक्ति (बर्दवान ) में भी यही व्यवस्था थी |  राजकाज की भाषा संस्कृत रही, इस काल में ब्राह्मणवाद फैला साथ ही बौद्ध धर्म भी बंगाल के नए क्षेत्रो में पहुंचा |                      
  गुवाहाटी के पास अम्बारी में हुए उत्खननों से  यहाँ चौथी सदी में ही बस्तियां होने के प्रमाण मिलते है जो छठी सातवीं सदी तक विकसित रूप ले चुकी थी | कामरूप के राजाओ ने वर्मन की उ��ाधि धारण की थी जिसका अर्थ होता है कवच या जिरह -बख्तर ये योद्धा होने का प्रतीक है |  इसे मनु ने क्षत्रियों के लिए निर्धारित किया था , सातवीं सदी में भास्करवर्मन ऐसे राज्य के प्रधान के रूप में सामने आया जिसका नियंत्रण ब्रह्मपुत्र मैदान के बड़े भाग के साथ उसके आगे के क्षेत्रो पर भी था , यहाँ बौद्ध धर्म के पैर जमे थे और चीनी यात्री हुआन सांग भी इस क्षेत्र में घूमा था|  कुल मिलाकर देखे तो चौथी से सातवीं सदी के बीच इस क्षेत्र में संस्कृत ,वैदिक कर्मकांड ,वर्णव्यवस्था और राज्यतंत्रो का विकास हुआ |  गुप्त साम्राज्य से सांस्कृतिक सम्बन्धो के चलते पूर्वांचल में सभ्यता विकसित हुई वही  बौद्ध धर्म के साथ वैष्णव और शैव सम्प्रदायों के रूप में ब्राह्मण धर्म की भी प्रगति हुई | 
 जारी है अतीत का ये सफर ---महेंद्र जैन 10 फरवरी 2019  
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Raja Dashrath History In Hindi | राजा दशरथ का इतिहास
January 7, 2019  admin 0 1 views
Raja Dashrath History In Hindi : हम सबने रामायण में राजा दशरथ जी के बारे में पढ़ा है. वे वर्तमान फैजाबाद तथा उस समय के अयोध्या राजा के रघुवंशी राजा थे. इन्ही के घर राम लक्ष्मण का जन्म हुआ था. दशरथ इक्ष्वाकु कुल के थे. रामायण में दिखाए गये उनके चरित्र के अनुसार एक आदर्श राजा, अपनी सन्तान से अगाध प्यार करने वाला पिता, धर्मनिष्ठ अपने वचन की पालने करने वाले राजा के रूप में दिखाया गया हैं. कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी इनकी तीन पत्नियाँ तथा राम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न ये चार पुत्र थे. इनके एक बड़ी बेटी भी थी जिसका नाम शांता था उन्हें अंगदेश के राजा रोमपाद को गोद दे दिया था. आज हम विस्तार से Raja Dashrath History In Hindi को जानेगे.
Raja Dashrath History In Hindi | राजा दशरथ का इतिहास
दशरथ के पिता का नाम (dashrath father name & dashrath ke pita ka naam) महाराजा अज और मा का नाम इंदुमती था. ये अयोध्या के शासक थे. अपने जीवन में इन्होंने भी असुरों के साथ युद्ध किया. राजा दशरथ इनके पुत्र थे. रामायण के अनुसार भगवान श्री राम दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र एवं भारतवर्ष के आदर्शपुरुष थे. इन्हें इतिहास में मर्यादा पु��ुषोत्तम के रूप में याद किया जाता हैं. रानी कैकेयी को दिए एक वचन के कारण इन्हें अपने बड़े पुत्र राम को 14 वर्ष का वनवास देना पड़ा था. अपने प्रिय पुत्र के वियोग का कष्ट न झेल पाने के कारण दशरथ का देहांत हो जाता हैं.
इक्ष्वाकु वंश के तेजस्वी राजा दशरथ का राज्य सरयू नदी के किनारे था जिसकी राजधानी अयोध्या थी. अपने समय में यह भारत के सबसे सम्रद्ध एवं शान्ति पूर्ण राज्यों में गिना जाता था. बताया जाता है कि दशरथ के पिता राजा मनु के कोई सन्तान नही थी. पुत्र प्राप्ति के लिए इन्होने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, तपस्या से खुश होकर विष्णु जी ने उन्हें मनचाहा वर मांगने को कहा तब इन्होने भगवान को अपने कुल में जन्म लेने की इच्छा जताई. विष्णु जी बोले ऐसा ही होगा. आज अगले जन्म में राजा दशरथ के रूप में अयोध्या के राजा होंगे रावण के पापो का संहार करने के लिए मैं माता कैकेयी की गोद से जन्म लूँगा.
राजा दशरथ की एक बेटी भी थी शांता Raja Dashrath History Hindi Mein
आपने कई बार रामायण की कथा सुनी तथा पढ़ी भी होगी. मगर क्या आपने कभी राजा दशरथ की बड़ी पुत्री शांता का प्रसंग सुना है जो भगवान राम की बड़ी बहिन थी. कई कई स्थानों पर रामचरितमानस में इसका उल्लेख भी मिलता हैं. कौशल्या रानी की ये पहली सन्तान थी. अंगदेश की रानी वर्षिणी के वचन के अनुसार उन्हें गोद दे दिया.
बचपन में ही शांता को अंगप्रदेश में भेज दिया गया. यही उनकी परवरिश हुई थी, बड़ी होने पर इसका विवाह ऋषि ऋषिश्रङ्ग के साथ कर दिया गया. जब राजा दशरथ को कोई पुत्र नहीं हुआ तो उन्होंने ऋषिश्रङ्ग को यज्ञ करने के लिए बुलाया. उनके साथ शांता भी थी. परिचय कराने पर दशरथ उनकी बेटी को पहचान पाए थे. इस यज्ञ के बाद ही दशरथ जी के घर पर राम , लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ.
राजा दशरथ का राम को वनवास और केकैयी को वरदान की कहानी
राजा दशरथ की बड़ी तमन्ना थी कि उनके पुत्र राम राजा बने, मगर वे अपनी इच्छा को कभी पूर्ण नहीं कर पाए थे. उनकी इस इच्छा की राह में सबसे बड़ी विपदा रानी कैकेयी थी जिसने अपने वचन एवं हठ के चलते भगवान राम को 14 साल का वनवास दिलाया. एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि एक बार शिकार खेलते समय राजा दशरथ के बाण से श्रवण कुमार की हत्या हो गई थी.
श्रवणकुमार की मृत्यु के बाद उनके अंधे माँ बाप ने यह श्राप दे दिया कि जिस तरह हम अपनी सन्तान के बिना तडप तडप कर मर रहे हैं. तुम भी अपने पुत्र के वियोग में इसी तरह मृत्यु को प्राप्त करोगे. अपने पिता के वचन के मुताबिक़ सन्न्यासियों के वस्त्र पहनकर सीता तथा लक्ष्मण को वनवास में जाना पड़ा. दशरथ अपने प्रिय पुत्र राम के वियोग को सहन नहीं कर पाए तथा उनकी मृत्यु हो गई.
मिस्र के पिरामिड के बारे में तथ्य
रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय
संत रामानंद जी का इतिहास व जीवन परिचय
संत रामपाल जी महाराज की जीवनी
जय श्री राम स्टेट्स SMS शायरी हिंदी में
आशा करता हूँ दोस्तों Raja Dashrath History In Hindi का यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा. यदि आपकों राजा दशरथ के इतिहास के बारे में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करे.
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bisaria · 6 years
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उत्तर प्रदेश में गंगा नदी से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर माँ विंध्यवासिनी का मंदिर स्थित है। माँ विंध्यवासिनी देवी दुर्गा का ही एक रूप है जिन्होंने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। विंध्यवासिनी वो है जो विंध्य पर निवास करती हैं। माना जाता है कि ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तिथि को ही देवी दुर्गा का युद्ध असुरों के साथ इसी पर्वत पर हुआ था। इसी दिन माता ने राक्षसों का वध करके समस्त संसार को इनके अत्याचारों से मुक्त कराया था।
प्रत्येक वर्ष लोग इस दिन देवी विंध्यवासिनी की पूजा अर्चना करके उनका धन्यवाद करते हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इस वर्ष यह पूजा 19 जून, 2018 मंगलवार को है। आइए इस शुभ अवसर पर माता की महिमा के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।
कैसे हुई माँ विंध्यवासिनी की उत्पत्ति
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार एक बार देवी दुर्गा ने सभी देवी देवताओं को बताया था कि वे नन्द और यशोदा के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी ताकि वे सभी असुरों का नाश कर सकें। अपने कहे अनुसार माता ने ठीक उसी दिन जन्म लिया जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। चूंकि इस बात की भविष्यवाणी पहले ही हो चुकी थी कि देवकी और वासुदेव की आठवी संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी इसलिए अपने प्राण बचाने के लिए कंस ने एक एक कर अपनी बहन की सभी संतानों को मौत के घाट उतार दिया था। किन्तु देवकी और वासुदेव की आठवी संतान के रूप में स्वयं विष्णु जी ने श्री कृष्ण बनकर धरती पर जन्म लिया था इसलिए भगवान की माया से वासुदेव ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए उसे नन्द और यशोदा की पुत्री के स्थान पर रख दिया और उनकी पुत्री जो देवी का ही रूप थी, उन्हें लेकर वापस कारागार में लौट आए।
जब कंस ने देवी की हत्या करनी चाही
कहते हैं जब कंस को इस बात का पता चला कि उसकी बहन ने एक और संतान को जन्म दिया है तो वह फ़ौरन उसकी हत्या करने के लिए पहुँच गया। लेकिन जब उसने देखा कि देवकी ने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि भविष्यवाणी के अनुसार देवकी और वासुदेव का आठवा पुत्र उसकी हत्या करेगा। फिर भी अपनी मौत से भयभीत कंस ने उस कन्या को ही मारने का निर्णय लिया किन्तु जैसे ही उसने प्रहार किया, देवी दुर्गा अपने असली रूप में आ गयीं। साथ ही कंस को इस बात की चेतावनी भी दी कि उसकी हत्या करने वाला गोकुल में सुरक्षित है। इतना कहते ही माता अंतर्ध्यान हो गयी। कहते हैं तब से देवी विंध्य पर्वत पर ही निवास करती है।
महिषासुर मर्दिनी
विंध्य पर्वत पर ही माता को समर्पित विन्ध्यवासिनी मंदिर स्थित है। माता को देवी काली के रूप में भी पूजा जाता है। चूंकि माता ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। अपने इस रूप में या तो माता असुर का गला काटते दिखाई देंगी या फिर उसका धड़ अपने हाथ में लिए। महिषासुर मर्दिनी का अर्थ ही है जिसने महिषासुर का अंत किया है।
माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के पश्चात् जहां जहां देवी सती के अंग गिरे थे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इस स्थान को भी ��क्तिपीठ कहा जाता है और यहां माता काजल देवी के नाम से भी जानी जाती है।
विभिन्न स्थानों पर होती है माँ विंध्यवासिनी की पूजा
इस पवित्र अवसर पर भारत के कई हिस्सों में माँ विंध्यवासिनी की उपासना की जाती है। भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करके उनका आशीर्वाद पाते हैं। साथ ही माता उनके समस्त कष्ट हर लेती है और उनका जीवन सुखमय बन जाता है। क्योंकि यह पूजा देवी काली के ही एक रूप को समर्पित है इसलिए इस पूजा क�� पंडितों की देख रेख में और उनकी सलाह अनुसार करना ही उचित माना जाता है।
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aajkarashifal · 7 years
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आंवला नवमीः इसलिए आज एक आंवला जरूर खाएं, मिलेगा लाभ
आर के श्रीधर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को 'आंवला नवमी' या 'अक्षय नवमी' कहते हैं। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है जिससे अखंड सौभाग्य, आरोग्य, संतान और सुख की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया यानी अक्षय तृतीया का है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा की जाती है उसका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। कहा जाता है कि आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। साथ ही आज के दिन विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से भी कन्यादान तुल्य फल मिलता है। पूजन विधि प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊँ धात्र्यै नम: मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में कच्चे सूत्र लपेटें। फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें। प्रचलित कथा काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा और दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराये बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया। लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी। इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है, इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर गंगा स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी गंगा किनारे रहने लगी। कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्ध महिला का वेष धारण कर उसके पास आयीं और बोली तू मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा कर तथा उसका पूजन कर। यह व्रत करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा। वृद्ध महिला की बात मानकर वैश्य की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई। विष्णु का स्वरूप है आंवला शास्त्रों के अनुसार आंवला, पीपल, वटवृक्ष, शमी, आम और कदम्ब के वृक्षों को चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला कहा गया है। इनके समीप जप-तप पूजा-पाठ करने से इंसान के सभी पाप मिट जाते हैं। पद्म पुराण में भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा है 'आंवला वृ��्ष साक्षात् विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है।' माता लक्ष्मी से संबंध आंवला वृक्ष की पूजा और इस वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव न हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। आंवला और वास्तु आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से भी शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए लेकिन आंवले को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस वृक्ष को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है। मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट। http://dlvr.it/Py6fhq
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yarokiyari · 7 years
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राजस्थान के अलवर से रिश्तों को शर्मसार करने वाला एक मामला सामने आया है. अलवर शहर के शिवाजी पार्क इलाके में एक मां ने कथित प्रेम प्रंसग की वजह से अपने पति और 4 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया. दरअसल शिवाजी पार्क में 2 अक्टूबर की रात को एक परिवार के 4 बच्चों समेत 5 लोगों की हुई नृशंस हत्या के मामले में पुलिस ने पर्दाफाश किया है. पुलिस के अनुसार अवैध संबंधों के चलते पत्नी और प्रेमी ने मिलकर बनवारी लाल शर्मा और उसके चार बेटों की गला काट कर हत्या कर दी। पुलिस ने मृतक की पत्नी, बड़ौदा मेव के रहने वाले उसके प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और दो सुपारी किलर कपिल और दीपक को गिरफ्तार किया है. पत्नी का प्रेमी हनुमान उदयपुर से बीपीएड कर रहा है. पुलिस ने दोपहर आरोपियों की निशानदेही पर अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे के रेलवे स्टेशन के समीप नाले से वारदात में काम लिया गया चाकू भी बरामद कर लिया. ऐसे शुरू हुई लव स्टोरी अलवर जिला पुलिस अधीक्षक राहुल प्रकाश ने बताया कि मृतक की पत्नी और हनुमान प्रसाद साथ-साथ ताइक्वांडो सीखने के बाद कोचिंग का भी काम करते थे. इस दौरान दोनों में प्रेम प्रंसग हो गया और अवैध संबंधों तक इनके संबंध कायम हो गए. इसके बाद दोनों ने शादी करने का विचार बनाया. इन दोनों के बीच करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. इनके संबंधों की भनक बनवारी को लगी तो संबंधों को लेकर बनवारी लाल और उसकी पत्नी के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ. आरोप है कि बनवारी ने अपनी पत्नी के साथ मारपीट भी की. ऐसे बनाया मर्डर प्लान इसके बाद पत्नी संतोष ने प्रेमी हनुमान से मिलकर पति की हत्या करने का प्लान बनाया. पहले चरण में यह तय हुआ कि पति को मार देते हैं. लेकिन बनवारी की पत्नी ने कहा कि इन बच्चों को क्या होगा, इसके बाद दोनों ने बच्चों को भी साथ मारने की योजना बनाई और तैयारी शुरू कर दी. इस घटना को अंजाम देने के लिए करीब तीन महीने का समय लगा. घटना वाले दिन रात को करीब 10 बजे हनुमान प्रसाद आया, उस वक्त बनवारी की पत्नी अपने घर की छत पर खडी थी. उसने आंखों से इशारा कर दिया और वो वहां से चला गया. उसके बाद दो किराए के हत्यारे कपिल व दीपक को साथ लेकर शिवाजी पार्क स्थित मकान के पास गए और उन्हें मकान दिखा दिया. इस दौरान छत से पत्नी ने उन्हें देख लिया, जहां बनवारी की पत्नी संतोष ने गेट खोलकर उन्हें मकान में अंदर प्रवेश करवाया. रात करीब एक बजे इन्होंने 2 चाकुओं से बनवारी लाल (40) और उसका सबसे बड़ा बेटा अमन (17) हैपी (14) निक्की (12) ओर अज्जू (9) की ताबड़तोड़ हमले कर हत्या कर दी. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि निक्की बनवारी के छोटे भाई मुकेश का पुत्र था और बनवारी और मुकेश किराये के मकान में रहते हैं. इसके बाद 3 आरोपियों को मृतक की पत्नी ने स्कूटी की चाबी सौंप दी. तीनों बदमाशों ने इस घटना को दस्ताने पहनकर अंजाम दिया. अस्पताल में बीमारी का नाटक करने के साथ ही संतोष शक के घेरे में आ गई. किलर्स को दिए 3 हजार रुपये बताया जा रहा है कि किलर दीपक और कपिल को 3 हजार रुपये दिए गए थे. हत्या की मास्टर माइंड पत्नी खुद मकान की छत पर बने कमरे में बहन के साथ जाकर सो गई. स्कूटी से तीनों आरोपी सवार होकर रेलवे स्टेशन के समीप पहुंचे और मंडी मोड़ पर स्कूटी खड़ी कर रेलवे स्टेशन पहुंचे. लेकिन ट्रेन नहीं मिलने की वजह से वो ऑटो के माध्यम से राजगढ़ पहुंचे. राजगढ़ में भी ट्रेन नहीं मिलने पर वो बांदीकुई पहुंचें. यहां से ट्रेन में सवार होकर प्रेमी हनुमान उदयपुर के लिए रवाना हो गया जबकि सुपारी किलर दीपक और कपिल अपने गांव गाजूकी पहुंज गए. सुबह मृतक की पत्नी संतोष उसकी बहन कविता पानी की मोटर चलाने आई तब उनकी चीख पुकार सुनकर लोग एकत्रित हुए. इसके कुछ समय बाद हत्या में शामिल पत्नी अस्पताल में भर्ती हो गई थी और ���क की सुई उसकी ओर घूमने लग गई. खाने में नशीला पदार्थ देकर दिया वारदात को अंजाम वारदात के दिन पत्नी संतोष ने अपने प्रेमी द्वारा लाई गई नींद की गोलियां दही से बने रायते में पीसकर डाल दी. उसके बाद करीब 9 बजे संतोष ने अपने पति और बच्चों को खाना खिलाया. पति को बड़े प्यार से खाना खिलाया. गहरी नींद में हो ने कती वजह से आसानी से ठिकाने लगाया जा सका. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पूछताछ में यह बात सामने आई कि बड़े बेटे अमन की तबियत खराब होने के कारण उसने खाना नहीं खाया, इसलिए उन्हें यह चिंता थी कि कहीं वारदात करते वक्त वो जाग नहीं जाए. उसके द्वारा विरोध भी किया गया इसलिए उसके हाथ में चाकू का कट लगा था. जीरो वॉट के बल्ब की रोशनी में की हत्या पुलिस अधीक्षक ने बताया कि जिस वक्त यह घटना घटित हुई, उस वक्त जीरो वॉट का बल्ब जलाया गया. सबसे पहले पत्नी के प्रेमी नेपति की गर्दन पर चाकू से वार किया और हाथ-पैर सुपारी किलर ने पकड लिए. इसकी हत्या के बाद यह आभास हो गया कि सभी लोग नशे में सो रहे हैं. जैसे ही पति की हत्या हुई तो बडा बेटा अमन जाग गया, उसने इस दृश्य को देखा तो शोर मचाने की कोशिश की. तीनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. उसने इस घटना का विरोध भी किया. अमन की हत्या के बाद बाकी के तीन बच्चों की हत्या चाकूओं से आसानी से कर दी गई. अपनी आंखों के सामने सबको मरते देख रही थी संतोष जिस वक्त इस वारदात को अंजाम दिया जा रहा था,उस वक्त संतोष सीढियों में खडी थी और सारे माजरे को देख रही थी.
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