Two Militants Killed in Encounter in Jammu and Kashmir's Kulgam District
Two Militants Killed in Encounter in Jammu and Kashmir’s Kulgam District
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चित्र केवल प्रतिनिधित्व के लिए उपयोग किया जाता है। (पीटीआई फोटो)
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि आतंकवादियों की पहचान और समूह संबद्धता का पता लगाया जा रहा है।
PTI
आखरी अपडेट: 25 मई, 2020, 11:48 AM IST
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में सोमवार को दो आतंकवादी मारे गए।
उन्होंने कहा कि जिले के खुदी हंजिपोरा क्षेत्र में बंदूक की गोली…
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डोभाल के ऑपरेशन जैकबूट का आखिरी अहम टारगेट था नायकू; दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के आजादी के ऐलान के बाद शुरू हुआ था यह ऑपरेशन
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डोभाल के ऑपरेशन जैकबूट का आखिरी अहम टारगेट था नायकू; दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के आजादी के ऐलान के बाद शुरू हुआ था यह ऑपरेशन
8 जुलाई 2016 को बुरहान वानी की मौत और जाकिर मूसा के हिजबुल छोड़ने के बाद आतंक का नया पोस्टर ब्वॉय बना था नायकू
कश्मीरी युवाओं को बरगलाने में माहिर था नायकू, पुलिसवालों को नौकरी छोड़कर आतंकवाद की राह चुनने का अभियान चलाया था
दैनिक भास्कर
May 07, 2020, 04:02 AM IST
श्रीनगर. 8 साल से घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन की कमान संभाल रहे रियाज नायकू को बुधवार को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। नायकू राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के ऑपरेशन जैकबूट का आखिरी और अहम टारगेट था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नायकू 12 लाख का इनामी था, मोस्ट वांटेड था और मोस्ट वांटेड लिस्ट में ए ++ कैटेगिरी में शामिल था।
क्यों पड़ी ऑपरेशन जैकबूट की जरूरत?
आतंकवादियों ने ऐलान कर दिया था कि दक्षिण कश्मीर के चार जिले पुलवामा, कुलगाम, अनंतनाग और शोपियां आजाद हैं। न्यूज एजेंसी के मुताबिक, डोभाल ने इसी दौरान ऑपरेशन जैकबूट की नींव डाली।
बुरहान वानी आतंकवाद का पोस्टर ब्वॉय बन चुका था। हिजबुल का यह कमांडर अपने साथियों सब्जार भट, वसीम मल्ला, नसीर पंडित, इशफाक हमीद, तारिक पंडित, अफाकुल्लाह, आदिल खानदी, सद्दाम पेद्दार, वसीम शाह और अनीस के साथ आतंकवादी एक्टिविटीज को लगातार अंजाम दे रहा था।
आतंक के ये 11 चेहरे कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में रोज नए चैप्टर जोड़ रहे थे। यह वो दौर था, जब घर में पैदा हो रहा आतंकवाद सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बन गया था। विदेशी आतंकवादी पीछे रह गया था, क्योंकि यही चेहरे घाटी के युवाओं को आतंकवाद की ओर खींचने में कामयाब हो रहे थे।
घर में पनप रहा आतंकवाद घाटी के कई पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं को अपनी ओर खींच रहा था। बुरहान का गैंग इन्हें प्रोत्साहित कर रहा था। कई पुलिसवालों को टॉर्चर किया गया, किडनैप किया गया और कई की हत्या कर दी गई ताकि वे एंटी मिलिटेंसी ऑपेरशन में शामिल ना हो सकें।
लोकल इन्फॉर्मर का नेटवर्क बेहद मजबूत था, क्योंकि बुरहान वानी गैंग के सभी 11 मेंबर लोकल थे। पार्टी और गाना-बजाना वो भी बिना पकड़े जाने या जाल में फंसने के डर के, इन आतंकवादियों के बारे में यह बात घाटी में सभी को पता थी। इसी नेटवर्क के दम पर सुरक्षा बलों के जरा से भी मूवमेंट का पता इस आतंकी ग्रुप को लग जाता था।
अजित डोभाल को इस दौर में मुश्किल फैसला लेना था। तब भी लोग जानते थे कि घाटी में डोभाल के ‘आंख और कान’ हैं, जिनके बारे में सुरक्षा बलों के बड़े अधिकारियों को भी मालूमात नहीं होते थे। इंटेलीजेंस सर्किल में इन आंख और कान को डोभाल की खास और अहम पूंजी कहा जाता था और, डोभाल ने इसी दौर में ऑपरेशन जैकबूट शुरू किया।
आतंक के पोस्टर ब्वॉयज क��� खात्मे के बाद नया पोस्टर ब्वॉय बना नायकू
1972 में समर ओलिंपिक के दौरान म्यूनिख में फिलिस्तीनी आतंकियों ने नरसंहार किया था। इसका बदला लेने के लिए इजरायल ने ऑपरेशन “खुदा का कहर” शुरू किया था। नरसंहार के जिम्मेदार हर आतंकवादी को इजरायल ने चुन-चुनकर मौत के घाट उतारा। अजित डोभाल ने ऑपरेशन जैकबूट को भी कुछ इसी तरह अंजाम दिया। आतंकवाद के पोस्टर ब्वॉय बुरहान वानी और उसके हर साथी की मौत की पटकथा डोभाल ने खुद लिखी। ना केवल बुरहान वानी और उसके साथियों, बल्कि दूसरे लोकल आतंकवादियों को भी इसी ऑपरेशन के तहत सुरक्षा बलों ने मौत के घाट उतार दिया। इस पूरे ग्रुप में तारिक पंडित अभी जिंदा है। उसे 2016 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
बुरहान वानी 8 जुलाई 2016, सब्जार भट मई 2017, वसीम मल्ला अप्रैल 2015, नसीर पंडित अप्रैल 2016, अफाकुल्लाह अक्टूबर 2015, आदिल अक्टूबर 2015 सद्दाम, वसीम और अनीस, मो. रफी भट मई 2018 में मारे गए। मई 2019 में टॉप हिजबुल कमांडर लतीफ टाइगर को ढेर किया गया। बुरहान वानी की उस वायरल तस्वीर में लतीफ नहीं था, जो रातोंरात आतंकवाद के पोस्टर ब्वॉयज के तौर पर वायरल हो गई थी।
नए पोस्टर ब्वॉय की तलाश हिज्बुल ने शुरू कर दी थी, क्योंकि बुरहान वानी मारा गया था। हिजबुल को एक ऐसे लोकल चेहरे की तलाश थी, जो बुरहान की जगह ले सके।
रियाज नायकू हिज्बुल के लिए इस जगह के लिए सबसे सही चेहरा था। पढ़ा-लिखा रियाज इलाके में गणितज्ञ के तौर पर मशहूर था। वो एक चित्रकार भी था, जो गुलाब की तस्वीर बनाना काफी पसंद करता था। चश्मा पहना था, जैसा कि कभी-कभी बुरहान वानी भी करता था। जाकिर मूसा जब 2017 में हिजबुल से अलग हुआ तो इस आतंकवादी संगठन को बचाने में नायकू ने अहम रोल निभाया था। मूसा ने अलकायदा से जुड़ा गजवतुल हिंद संगठन बनाया था। मूसा को 23 मई 2019 में त्राल में सुरक्षा बलों ने ढेर किया था।
12 लाख का इनामी रियाज नायकू बुरहान वानी गैंग के सफाए के बाद मोस्ट वांटेड हो चुका था। वानी के खात्मे के 8 महीने के भीतर ही नायकू रैंक में काफी ऊपर आ गया था।
आतंकवादियों के जनाजे में फायरिंग करने वाले रियाज नायकू को प्रोपोगैंडा का मास्टर माना जाता था। उसने अभियान शुरू किया था, जिसके जरिए वो जम्मू-कश्मीर के पुलिसवालों को अपनी जॉब छोड़ने और आतंकवाद की राह चुनने को कहता था। उसने कई ऐसे पुलिसवालों के परिवारवालों को किडनैप करने की साजिश की थी, जिन्होंने अपनी जॉब छोड़ने से इनकार कर दिया था। प्रोपोगैंडा की वजह से उसे ज्यादा खतरनाक माना जाता था।
वह ज्यादा युवाओं को खींचने और आतंकवादी बनाने में कामयाब हो रहा था। लेकिन, 8 साल से बच रहे इस मोस्ट वांटेड को डोभाल के ऑपरेशन जैकबूट ने अपना आखिरी और अहम टारगेट बना ही दिया। ये हाल की मुठभेड़ों में शहीद हुए अफसरों की मौत का बदला भी है और साथ ही सुरक्षा बलों के लिए राहत की खबर ��ी।
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चार साल से मोदी सिर्फ रंगबिरंगे कपड़े पहनकर नगाड़ा और बांसुरी बजा रहे हैं, उपलब्धि तो शून्य है चार साल से मोदी विदेश जाकर रंगबिरंगे कपड़े पहनकर नगाड़ा और बांसुरी बजा रहे हैं, लेकिन विदेशी निवेश कितना लाए ? विदेशों में मोदी जी का डंका बजता है। इसे साबित करने के लिए उन्होंने कई देशों में बांसुरी और नगाड़े बजाए। विदेश में रह रहे भारतीयों से नारे लगवाए। बराक भाई के साथ फोटो खिंचवाई और जिनपिंग के साथ हिंडोला झूले। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा कि हम विदेश नीति को एकदम अलग दिशा में ले जाएंगे। लेकिन जब एक साल बीता तो कभी मोदी के प्रशंसक रहे वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक का हमने एक इंटरव्यू लिया। उनका कहना था कि शोर बहुत था, लेकिन मोदी जी का सारा शोर मोर का नाच साबित हुआ है। भाजपा और नरेंद्र मोदी विदेशी मोर्चे पर बुरी तरह फेल हो चुके हैं। सबसे बड़ा मुद्दा पाकिस्तान था लेकिन पाकिस्तान को न आप घेर सके, न कोई दबाव बना सके, न ही बातचीत शुरू कर सके। पांच साल कनफ्यूज रहे कि उसे दुश्मन मानें या दोस्त बनाएं। बस नारों में और भाषणों में पाकिस्तान जिंदा रहा। आईएसआई को बुलाकर पठानकोट हमले की जांच जरूर करवा ली। जम्मू कश्मीर में हालात और ही खराब हुए। जो मिलिटेंसी लगभग शांत थी, वह फिर से उभरी। अमेरिका से हालिया समझौता भारत की संप्रभुता पर चोट है जिसके तहत अमेरिका आपको निर्देश दे रहा है कि आप ईरान से तेल लेना बंद करें वरना हम प्रतिबंध लगा देंगे। वह आपको रूस से हथियार खरीदने में बाधा खड़ी कर रहा। अमेरिका पर सब कुछ लुटा देने वाली मुद्रा में भी आप न तो एनएसजी के सदस्य बन सके, न पाकिस्तान से आतंकी ला पाए। न माल्या आया, न मेहुल भाई आए। मालदीव में चीन ने अपना अड्डा जमा लिया। बांग्लादेश से भी आपका कुछ खास रिश्ता नहीं है। जबकि चीन वहां पर दक्षिणी और उत्तरी बांग्लादेश को जोड़ने वाला पुल बना रहा है। बांग्लादेश ने अपना ढाका स्टॉक एक्सचेंज का 25 फीसदी हिस्सा चीन को बेच दिया जबकि भारत के अधिकारी वहां गए थे, नाकाम होकर लौट आए। नेपाल जो करीब करीब भारतीय ही है, जिसकी हमारी सीमाएं खुली हैं, वहां जाकर शेखी बघारकर लोगों को नाराज किया, नाकेबंदी करके और वहां हिंदू राष्ट्र का अभियान चलाकर अपनी ही जड़ खोद ली। उस नाकेबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ, सिवाय नेपाल चीन की नजदीकी बढ़ने के। श्रीलंका ने अपना हम्बनटोटा पोर्ट चीन के सुपुर्द कर दिया। नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश हर देश में चीन मजबूत हुआ। विदेश नीति विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी की मानें तो ‘डोकलाम में चीन ने रणनीतिक स्तर पर जीत हासिल की है। चीन विवादित इलाक़े में निर्माण कार्य कर रहा है। इसके चलते भूटान अपनी सुरक्षा को लेकर भारत पर भरोसा करने से पहले सौ बार सोचेगा। दक्षिण एशिया और इसके क़रीब के देशों से भारत दूर हुआ है। नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान में भारत की स्थिति कमज़ोर हुई है। ऐसा भारत की दूरदर्शिता में अभाव के कारण हुआ है। शुरू में मोदी ने मज़बूत शुरुआत की थी, लेकिन आगे चलकर चीज़ें नाकाम रहीं।’ मेक इन इंडिया का नारा लगाते रहे लेकिन यह केवल मोदी जी और भगवान राम ही जानते हैं कि कितना विदेशी निवेश ला पाए। फिर इतने देशों में आप घूमे किसलिए ? रंगबिरंगे कपड़े पहनकर नगाड़ा और बांसुरी बजाने के लिए ? स्पष्ट है कि विदेश नीति के साथ नोटबंदी कांड हो गया - कृष्णकांत
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