#कलयुग में राम नाम की महिमा
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#kalyug me ram nam ki mahima#ram nam ki mahima#कलयुग में राम नाम की महिमा#राम नाम की महिमा#jai sri ram#jai shree ram
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( #Muktibodh_part232 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part233
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 446-447
◆ कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ के पृष्ठ पर 136 :-
◆ द्वादश पंथ चलो सो भेद
द्वादश पंथ काल फुरमाना। भूले जीव न जाय ठिकाना।।
तातें आगम कह हम राखा। वंश हमारा चुड़ामणि शाखा।।
प्रथम जग में जागु भ्रमावै। बिना भेद वह ग्रन्थ चुरावै।।
दूसर सुरति गोपाल होई। अक्षर जो जोग दृढ़ावै सोई।।
(विवेचन :- यहाँ पर प्रथम जागु दास बताया है जबकि वाणी स्पष्ट कर रही है कि वंश (प्रथम) चुड़ामणि है। दूसरा जागु दास। यही प्रमाण ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ पृष्ठ 1870 में है। दूसरा जागु दास है। अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ के पृष्ठ 155(1499) पर भी दूसरा जागु
लिखा है। यहाँ प्रथम लिख दिया। यहाँ पर प्रथम चुड़ामणि लिखना उचित है।)
तीसरा मूल निरंजन बानी। लोक वेद की निर्णय ठानी।।
(यह चौथा लिखना चाहिए)
चौथे पंथ टकसार (टकसारी) भेद लौ आवै। नीर पवन को संधि बतावै।।
(यह पाँचवां लिखना चाहिए)
पाँचवां पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहै हम में देखा।।
(यह भगवान दास का पंथ है जो छटा लिखना चाहिए था।)
छटा पंथ सत्यनामी प्रकाशा। घट के माहीं मार्ग निवासा।।
(यह सातवां पंथ लिखना चाहिए।)
सातवां जीव पंथ ले बोलै बानी। भयो प्रतीत मर्म नहीं जानी।।
(यह आठवां कमाल जी का पंथ है।)
आठवां राम कबीर कहावै। सतगुरू भ्रम लै जीव दृढ़ावै।।
(वास्तव में यह नौवां पंथ है।)
नौमें ज्ञान की कला दिखावै। भई प्रतीत जीव सुख पावै।।
(वास्तव में यह ग्यारहवां जीवा पंथ है। यहाँ पर नौमा गलत लिखा है।)
दसवें भेद परम धाम की बानी। साख हमारी का निर्णय ठानी।।
(यह ठीक लिखा है, परंतु ग्यारहवां नहीं लिखा। यदि प्रथम चुड़ामणि जी को मानें तो सही क्रम बनता है। वास्तव में प्रथम चुड़ामणि जी हैं। इसके पश्चात् बारहवें पंथ गरीबदास जी वाले पंथ का वर्णन प्रारम्भ होता है। यह सांकेतिक है। संत गरीबदास जी का जन्म वि.
संवत् 1774 (सतरह सौ चौहत्तर) में हुआ था। यहाँ गलती से सतरह सौ पचहत्तर लिखा है। यह प्रिन्ट में गलती है।)
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। ता दिन प्रेम प्रकटें जग सोई।।
आज्ञा रहै ब्रह्म बोध लावै। कोली चमार सबके घर खावै।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें (बारवै) पंथ प्रगट होवै बानी। शब्द हमारै की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म नहीं पावै। ये बार (बारह) पंथ हमी (कबीर जी) को ध्यावैं।।
बारहें पंथ हमहि (कबीर जी ही) चलि आवैं।
सब पंथ मिटा एक ही पंथ चलावैं।।
प्रथम चरण कलजुग निरयाना (निर्वाण)। तब मगहर मांडो मैदाना।।
भावार्थ :- यहाँ पर बारहवां पंथ संत गरीबदास जी वाला स्पष्ट है क्योंकि संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी मिले थे और उनका ज्ञान योग खोल दिया था। तब संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा की वाणी बोली जो ग्रन्थ रूप में वर्तमान
में प्रिन्ट करवा लिया गया है। विचार करना है। संत गरीबदास जी के पंथ तक 12 (बारह) पंथ चल चुके हैं। यह भी लिखा है कि भले ही संत गरीबदास जी ने मेरी महिमा की साखी-शब्द-चौपाई लिखी है, परंतु वे बारहवें पंथ के अनुयाई अपनी-अपनी बुद्धि से वाणी का अर्थ करेंगें, परंतु ठीक से न समझकर संत गरीबदास जी तक वाले पंथ के अनुयाई यानि
बारह पंथों वाले मेरी वाणी को ठीक से नहीं समझ पाएंगे। जिस कारण से असंख्य जन्मों तक सतलोक वाला अमर धाम ठिकाना प्राप्त नहीं कर पाएँगे। ये बारह पंथ वाले कबीर जी
के नाम से पंथ चलाएंगे और मेरे नाम से महिमा प्राप्त करेंगे, परंतु ये बारह के बारह पंथों वाले अनुयाई अस्थिर यानि स्थाई घर (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर कहा है कि आगे चलकर बारहवें पंथ (संत गरीबदास जी वाले पंथ में) हम यानि स्वयं कबीर जी ही चलकर आएंगे, तब सर्व पंथों को मिटाकर एक पंथ चलाऊँगा। कलयुग का वह प्रथम चरण होगा, जिस समय मैं (कबीर जी) संवत् 1575 (ई. सन् 1518) को मगहर नगर से निर्वाण प्राप्त करूँगा यानि कोई लीला करके सतलोक जाऊँगा।
परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग को तीन चरणों में बाँटा है। प्रथम चरण तो वह जिसमें परमेश्वर लीला करके जा चुके हैं। बिचली पीढ़ी वह है जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा। अंतिम चरण में सब कृतघ्नी हो जाएंगे, कोई भक्ति नहीं करेगा।
मुझ दास (रामपाल दास) का निकास संत गरीबदास वाले बारहवें पंथ से हुआ है।
मेरे द्वारा चलाया वह तेरहवां पंथ अब चल रहा है। परमेश्वर कबीर जी ने चलवाया है। गुरू महाराज स्वामी रामदेवानंद जी का आशीर्वाद है। यह सफल होगा और पूरा विश्व परमेश्वर
कबीर जी की भक्ति करेगा।
संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में मिले थे। परमात्मा तो कबीर हैं ही। वे अपना ज्ञान बताने स्वयं पृथ्वी पर तथा अन्य लोकों में प्रकट होते हैं। संत गरीबदास जी ने ‘‘असुर निकंदन रमैणी‘‘ में कहा है कि ‘‘सतगुरू दिल्ली मंडल आयसी।
सूती धरती सूम जगायसी।
दिल्ली के तख्त छत्र फेर भी फिराय सी। चौंसठ योगनि मंगल गायसी।
‘‘संत गरीबदास जी के सतगुरू ‘‘परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी‘‘ थे।
परमेश्वर कबीर जी ने कबीर सागर अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136 तथा 137 पर कहा है कि बारहवां (12वां) पंथ संत गरीबदास जी द्वारा चलाया जाएगा।
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। जा दिन प्रेम प्रकटै जग सोई।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्यों जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें पंथ प्रगट हो बानी। शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म ना पावैं। ये बारा (बारह) पंथ हमही को ध्यावैं।।
बारहवें पंथ हम ही चलि आवैं। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि 12वें (बारहवें) पंथ तक के अनुयाई मेरी महिमा की साखी जो मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) स्वयं कही है जो कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक, कबीर शब्दावली आदि-आदि ग्रन्थों में लिखी हैं। उनको
तथा जो मेरी कृपा से गरीबदास जी द्वारा कही गई वाणी के गूढ़ रहस्यों को ठीक से न समझकर स्वयं गलत निर्णय करके अपने अनुयाईयों को समझाया करेंगें, परंतु सत्य से परिचित न होकर असँख्यों जन्म स्थाई घर अर्थात् सनातन परम धाम (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर मैं (परमेश्वर कबीर जी) उस गरीबदास वाले पंथ में आऊँगा जो कलयुग में पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे होने पर यथार्थ सत कबीर पंथ चलाया जाएगा। उस समय तत्त्वज्ञान पर घर-घर में चर्चा चलेगी। तत्त्वज्ञान को समझकर सर्व संसार के मनुष्य मेरी भक्ति करेंगे। सब अच्छे आचरण वाले बनकर शांतिपूर्वक रहा करेंगे। इससे सिद्ध है कि तेरहवां पंथ जो यथार्थ कबीर पंथ है, वह अब मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा चलाया जा रहा है। कृपा परमेश्वर कबीर जी की है। जब परमेश्वर कबीर जी ‘‘तोताद्रि‘‘ स्थान पर ब्राह्मणों के भण्डारे में भैंसे से वेद-मंत्र बुलवा सकते हैं तो वे स्वयं भी बोल सकते थे। समर्थ की समर्थता इसी में है कि वे जिससे चाहें, अपनी महिमा का परिचय दिला सकते हैं। शायद इसीलिए परमेश्वर कबीर जी ने अपनी कृपा से मुझ दास (रामपाल दास) से यह 13वां (तेरहवां) पंथ चलवाया है।
��्रमशः_______________
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( #Muktibodh_part230 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part231
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 442-443
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘ चौपाई
अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 121 :-
अरे काल परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख आधारा।।55
बीनती तोरी लीन मैं मानी।
मोकहं ठगे काल अभिमानी।।56
चौथा युग जब कलयुग आई।
तब हम अपना अंश पठाई।।57
काल फंद छूटै नर लोई।
सकल सृष्टि परवानिक (दीक्षित) होई।।58
घर-घर देखो बोध (ज्ञान) बिचारा (चर्चा)।
सत्यनाम सब ठोर उचारा।।59
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा।
तब यह वचन होयगा साचा।।60
कलयुग बीत जाए जब ऐता।
सब जीव परम पुरूष पद चेता।।61
भावार्थ :- (वाणी सँख्या 55 से 61 तक) परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे काल! तूने विशाल प्रपंच रच रखा है। तीनों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर) में जीवों को बहुत कष्ट देगा। जैसा तू कह रहा है। तूने मेरे से प्रार्थना की थी, वह मान ली। तूने मेरे साथ धोखा किया है, परतुं चौथा युग जब कलयुग आएगा, तब मैं अपना अंश यानि कृपा पात्र आत्मा भेजूँगा। हे काल! तेरे द्वारा बनाए सर्व फंद यानि अज्ञान आधार से गलत ज्ञान व साधना को सत्य शब्द तथा सत्य ज्ञान से समाप्त करेगा। उस समय पूरा विश्व प्रवानिक यानि उस मेरे संत से दीक्षा लेकर दीक्षित होगा। उस समय तक यानि जब तक कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच नहीं बीत जाता, सत्यनाम, मूल नाम (सार शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्रकट नहीं
करना है। परंतु जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरा हो जाएगा, तब घर-घर में मेरे अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हुआ करेगी और सत्यनाम, सार शब्द को सब उपदेशियों को प्रदान किया जाएगा। यह जो बात मैं कह रहा हूँ, ये मेरे वचन उस समय सत्य साबित होंगे, जब कलयुग के 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष पूरे हो जाएँगे। जब कलयुग इतने
वर्ष बीत जाएगा। तब सर्व मानव प्राणी परम पुरूष यानि सत्य पुरूष के ��द अर्थात् उस परम पद के जानकार हो जाएँगे जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वदर्शी संत के प्राप्त होने के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए
जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष का विस्तार किया है अर्थात् जिस परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की है, उस परमेश्वर की भक्ति करो।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि उस समय उस परमेश्वर के पद (सत्यलोक) के विषय में सबको पूर्ण ज्ञान होगा।
स्वसमवेद बोध पृष्ठ 170 :-
अथ स्वसम वेद की स्फुटवार्ता-चौपाई
एक लाख और असि हजारा।
पीर पैगंबर और अवतारा।।62
सो सब आही निरंजन वंशा।
तन धरी-धरी करैं निज पिता प्रशंसा।।63
दश अवतार निरंजन के रे।
राम कृष्ण सब आहीं बडेरे।।64
इनसे बड़ा ज्योति निरंजन सोई।
यामें फेर बदल नहीं कोई।।65
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि बाबा आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक कुल एक लाख अस्सी हजार (1,80,000) पैगंबर हुए हैं तथा दस अवतार जो हिन्दू मानते हैं, ये सब काल के भेजे आए हैं। इन सबने काल ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया है।
जो दस अवतार हैं, इन दस अवतारों में राम तथा कृष्ण प्रमुख हैं। ये सब काल (जो इनका पिता है) की महिमा बनाकर सर्व जीवों को भ्रमित करके काल साधना दृढ़ कर गए हैं। इस
सबका मुखिया ज्योति निरंजन काल (ब्रह्म) है।
कबीर सागर में स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171(1515) :-
सत्य कबीर वचन
दोहे :- पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।67
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।69
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।।70
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।71
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।72
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर(पीड़)।।73
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।74
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि हे धर्मदास! मैंने ज्योति निरंजन यानि
काल ब्रह्म से भी कहा था, अब आपको भी बता रहा हूँ। स्वसमबेद बोध की ��ाणी सँख्या 66 से 74 का सरलार्थ :- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए
आएगा। हिन्दु, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्यनाम की शक्ति से
मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती है। उनको कोई रोक नहीं पाता। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। परंतु जब तक ठीक का समय नहीं आएगा यानि कलयुग
पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे नहीं करता, तब तक मैं जो यह ज्ञान स्वसमवेद में बोल रहा हूँ, आप लिख रहे हो, निराधार लगेगा। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध
आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
परमात्मा से लाभ लेने के लिए एक ‘‘मानव‘‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माएँ सत्य नाम की शक्ति से
सतलोक चले जाएंगे। मेरे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा घर-घर में होगी। जिस कारण से सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। कलयुग में फिर एक होकर सहज बर्ताव करेंगे यानि शांतिपूर्वक
जीवन जीएंगे। कहाँ उग्र अर्थात् चाहे डाकू, लुटेरा, कसाई हो, चाहे शुद्र, अन्य बुराई करने वाला नीच होगा। परमात्मा सत्य भक्ति करने वालों की भवपीर यानि सांसारिक कष्ट हरेगा
यानि दूर करेगा। सत्य साधना से सबकी भवपीर यानि सांसारिक कष्ट समाप्त हो जाएंगे और उस 13वें (तेरहवें) पंथ का प्रवर्तक सबको समान दृष्टि से देखेगा अर्थात् ऊँच-नीच में
भेदभाव नहीं करेगा। वह समर्थ सत्य कबीर ही होगा। (मम् सन्त मुझे जान मेरा ही स्वरूपम्)
प्रश्न :- वह तेरहवां पंथ कौन-सा है, उसका प्रवर्तक कौन है?
उत्तर :- वह तेरहवां पंथ ‘‘यथार्थ सत कबीर‘‘ पंथ है। उसके प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर जी हैं। वर्तमान में उसका संचालक उनका गुलाम रामपाल दास पुत्र स्वामी रामदेवानंद जी महाराज है। (अध्यात्मिक दृष्टि से गुरू जी पिता माने जाते हैं जो आत्मा का पोषण करते हैं।)
प्रमाण :- वैसे तो संत धर्मदास जी की वंश परंपरा वाले महंतो से जुड़े श्रद्धालुओं ने अज्ञानतावश तेरहवां पंथ और संचालक धर्मदास की बिन्द (परिवार) की धारा वालों को सिद्ध
करने की कुचेष्टा की है। परंतु हाथी के वस्त्र को भैंसे पर डालकर कोई कहे कि देखो यह वस्त्र भैंसे का है। बुद्धिमान तो तुरंत समझ जाते हैं कि यह भैंसा का ��स्त्र नहीं है। यह तो भैंसे से कई गुणा लंबे-चौड़े पशु का है। भले ही वे ये न बता सकें कि यह हाथी का है।
उदाहरण :- पवित्र कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ के पृष्ठ 1834-1835 पर लिखा है।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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. ‼️࿈"सत साहेब जी"࿈‼️
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पूछो इन संतों से :- जब द्वापर युग में वेदव्यास सहित सभी ऋषि मुनियो ने राजा परीक्षित को ये कहकर भगवत की कथा सुनाने से इनकार कर दिया था की हम ये कथा सुनाने के अधिकारी नहीं है तो फिर इस कलयुग में तुम्हे किसने भागवत और रामायण का पाठ करने का लाइसेंस दे दिया।
पूछो इन पाखंडियो से :- जब तुम्हारे तीनो भगवान् ब्रह्मा विष्णु महेश स्वयं कह रहे है की हमारी जन्म और मृत्यु होती है हम पूर्ण भगवान् नहीं है, तो फिर पूर्ण परमात्मा कौन है कैसा है कहा रहता है और कैसे मिलता है
(श्री मद देवी भागवत देवी पुराण 6 वा अध्याय, तीसरा स्कन्द, पेज नंबर 123,)
पूछो इन पाखंडियो से :- जब गीता जी मना कर रही है की व्रत करने वाले, श्राद्ध निकालने वाले और देवी देवताओ की पूजा करने वालो को ना कोई सुख होता है ना ही मरने पर उनकी गति (मोक्ष) होती है। ( 6 वा अध्याय 16 वा श्लोक)
पूछो इन पाखंडियो से :- जिन 33 करोड़ देवी देवताओ को श्री लंका के राजा रावण ने अपनी कैद में डाल रखा था फिर क्यों सदियो से हमसे बेबस देवी देवता पूजवाते आ रहे हो।
पूछो इन पाखंडियो से :- जिस स्वर्ग के राजा इंद्र ने, रावण के स्वर्ग पर हमला करके उसे हराने पर अपनी पुत्री की शादी रावण के बेटे मेघनाथ से करके अपने प्राणों की रक्षा की। फिर किसलिए हमें मारने के बाद स्वर्ग भेजने की बात करते है।
पूछो इन पाखंडियो से,:- जब दशरथ पुत्र रामचंद्र का जन्म त्रेता युग में हुआ तो फिर सतयुग में राम कौन था।
पूछो इन पाखंडियो से :- श्री कृष्ण का जन्म आज से 5500 वर्ष पहले द्वापर युग में हूवा था । जबकि त्रेता व् सतयुग के इंसान तो जानते भी नहीं थे की कृष्ण कौन है फिर ये कैसे पूर्ण भगवान् हुए।
पूछो इन पाखंडियो से :- ये कहते है की वेदों में भगवान् की महिमा है। फिर वेदों में कबीर (कविर्देव) के अलावा 33 करोड़ देवी देवताओ, राम, कृष्ण, व् ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा किसी का भी नाम तक क्यों नहीं है।
पूछो इन पाखंडियो से:- गीता जी अध्याय नंबर 11 के श्लोक 32 मे श्री कृष्ण जी कहते है की अर्जुन मै काल हु और सबको खाने आया हु। श्री कृष्ण अपने को काल कह रहा है फिर ये पाखंडी उसे जबरदस्ती भगवान् क्यों बना रहे है।
और भी ना जाने कितने सवाल जिनके जवाब इनके पास नहीं है।
अब तक तो आपजी भी समझ चुके होंगे की संत रामपाल जी के सामने आकर ज्ञान चर्चा करने की क्यों इनकी हिम्मत नहीं होती!
🙏🏻 सत साहेब जी🙏🏻
#भक्ति_से_भगवान_तक
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देखिए आध्यात्मिक सत्संग साधना चैनल पर 7:30 से
पढ़िए सभी धर्मों के सद ग्रंथों से प्रमाणित अध्यात्म पुस्तक #ज्ञान_गंगा और #जीने_की_राह
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🙏🙏🙏🙏🙏
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🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसक�� नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को ��क दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
*✰जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सान्निध्य में 510वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित विशाल भंडारे में आप सपरिवार सादर आमंत्रित हैं✰*
आयोजन स्थल का पता है -
सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान),
सतलोक आश्रम खमानो (पंजाब),
सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब),
सतलोक आश्रम धनाना (हरियाणा),
सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा),
सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा),
सतलोक आश्रम बैतूल (मध्य प्रदेश),
सतलोक आश्रम शामली (उत्तर प्रदेश),
सतलोक आश्रम धनुषा (नेपाल देश)
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🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
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26-27-28 नवंबर 2023
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🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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*परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा*
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
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हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
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वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
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परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान ���ें जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहा�� गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
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पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
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*🙏सतलोक_के_राही🙏*
*🙇♂️कबीरपंथ ही आदि सनातन धर्म है।🙇♂️*
*कबीर जी चारों युगों में प्रकट होते हैं* और एक पूरे जीवन की लीला करते हैं।
*1 सतयुग* में परमेश्वर कबीर जी कमल पर प्रकट हुए और अपनी प्यारी आत्मा विधाधर और दीपिका को मिले सतयुग में परमेश्वर का *नाम सत्य सुकृत* था। परमात्मा ने एक जीवन की लीला करते हुए सतज्ञान दिया सतयुग में परमेश्वर कबीर ने गुरुकुल में शिक्षा की लीला की वहां के ऋषि जब वेदमन्त्रो का ग़लत अर्थ करते तो तो सतसुकृत नाम से लीला करते कबीर परमेश्वर उनका विरोध करते फलस्वरूप गुरुकुल से निकाल दिया गया फिर परमात्मा गरुड़ जी, श्री ब्रह्माजी, श्री विष्णु जी और श्री शिवजी से मिले और उन्हें सतज्ञान समझाया था फिर *ऋषि मनु से मिले और अपना ज्ञान बताया लेकिन मनु ऋषि ने परमात्मा कबीर जी का सतज्ञान स्वीकार नहीं किया और विरोध स्वरूप कबीर जी को ऋषि वामदेव कहने लगे।*
*ऋषि वामदेव की महिमा वेदों में भी है ऋषि वामदेव का ज्ञान अनुपम और विशिष्ट है।*
*2 त्रेतायुग* में कबीर परमेश्वर कमल के फूल पर फिर से प्रकट हुए और वेदविज्ञ और सूर्या नामक निसंतान दम्पति को मिले इस युग में कबीर परमेश्वर का *नाम ��ुनीन्द्र ऋषि था* और परमात्मा की महिमा *ऋषि मुनीन्द्र के नाम से त्रेतायुग में हुई* इस युग में परमेश्वर हनुमानजी से मिले और सतलोक दिखाया, रानी मन्दोदरी और विभीषण भी परमात्मा कबीर जी यानि ऋषि मुनीन्द्र जी के ही शिष्य थे। त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर भगवान राम से मिले नल और नील भी परमात्मा कबीर जी यानि ऋषि मुनीन्द्र के ही शिष्य थे परमात्मा ने समुद्र पर पुल बनाने के लिए पत्थर हल्के किये। और श्रीराम का मनोरथ पूरा किया।
कबीर परमेश्वर *3 द्वापरयुग* में भी कमल के फूल पर प्रकट हुए और बाल्मीकि कालू और गोदावरी नामक दम्पति से मिले और 404 साल तक सतज्ञान देकर जीवात्माओं का कल्याण किया। द्वापरयुग में परमेश्वर द्रोपदी से मिले और उसे प्रथम मन्त्र दिया और शरण में लिया द्वापरयुग में ही रानी इन्द्र मति और राजा चन्द्रविजय को शरण लेकर उनका कल्याण किया। द्वापरयुग में ही परमेश्वर कबीर जी के परमभक्त सुदर्शन जी हुए जिन्होंने पांडव यज्ञ का न्यौता अस्वीकार कर दिया था बाद में परमेश्वर ने अपने *भक्त सुदर्शन के रुप में* पांडवों पर यज्ञ में जाकर यज्ञ सफल करने की दया की।
*4 कलयुग* में तो कबीर परमेश्वर की महिमा गज़ब की रही वो *कबीर नाम से काशी में प्रकट हुए* और अपने ज्ञान से सारी दुनिया को अचंभित कर दिया पूरे 120 तक काशी में एक सन्त की लीला की और असंख्य चमत्कार करते हुए नानकदेव जी रविदास जी रामानंद जी और तकरीबन 64 लाख शिष्य बना कर कल्याण किया।
इस प्रकार ��दि सनातन धर्म कबीर परमेश्वर ने शुरू किया और यह आज भी है और हमेशा रहेगा इसका प्रकाश धीमा पड़ सकता है लेकिन विलोप नहीं होगा।
अतः सनातन धर्म की यह पहचान और जानकारी आप सब तक सतगुरु रामपाल जी महाराज की दया से पहुंच पाई है।
आज इस सदा सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के महान कर्म को करते सतगुरु रामपाल जी महाराज हम सब का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज की सदा ही जय हो
*अधिक जानकारी के लिए देखे जा सकते हैं रोजाना पॉपुलर टीवी चैनल पर शाम 7 :30 से और ईश्वर टीवी चैनल पर रात्री 8 :30 से*
🚨🚨👇👇👇👇🚨🚨
*👉9516493233 पर हमे वाटसप करे और पाए निशुल्क पुस्तक ज्ञान गंगा, जीने की राह, और मुस्लमान नहीं समझे ज्ञान कुरान बिलकुल फ्री आज ही ऑर्डर हमे बुक करवाये*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏😂😂😂😂😂😂😂😂
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( #Muktibodh_part230 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part231
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 442-443
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘ चौपाई
अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 121 :-
अरे काल परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख आधारा।।55
बीनती तोरी लीन मैं मानी।
मोकहं ठगे काल अभिमानी।।56
चौथा युग जब कलयुग आई।
तब हम अपना अंश पठाई।।57
काल फंद छूटै नर लोई।
सकल सृष्टि परवानिक (दीक्षित) होई।।58
घर-घर देखो बोध (ज्ञान) बिचारा (चर्चा)।
सत्यनाम सब ठोर उचारा।।59
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा।
तब यह वचन होयगा साचा।।60
कलयुग बीत जाए जब ऐता।
सब जीव परम पुरूष पद चेता।।61
भावार्थ :- (वाणी सँख्या 55 से 61 तक) परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे काल! तूने विशाल प्रपंच रच रखा है। तीनों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर) में जीवों को बहुत कष्ट देगा। जैसा तू कह रहा है। तूने मेरे से प्रार्थना की थी, वह मान ली। तूने मेरे साथ धोखा किया है, परतुं चौथा युग जब कलयुग आएगा, तब मैं अपना अंश यानि कृपा पात्र आत्मा भेजूँगा। हे काल! तेरे द्वारा बनाए सर्व फंद यानि अज्ञान आधार से गलत ज्ञान व साधना को सत्य शब्द तथा सत्य ज्ञान से समाप्त करेगा। उस समय पूरा विश्व प्रवानिक यानि उस मेरे संत से दीक्षा लेकर दीक्षित होगा। उस समय तक यानि जब तक कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच नहीं बीत जाता, सत्यनाम, मूल नाम (सार शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्रकट नहीं
करना है। परंतु जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरा हो जाएगा, तब घर-घर में मेरे अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हुआ करेगी और सत्यनाम, सार शब्द को सब उपदेशियों को प्रदान किया जाएगा। यह जो बात मैं कह रहा हूँ, ये मेरे वचन उस समय सत्य साबित होंगे, जब कलयुग के 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष पूरे हो जाएँगे। जब कलयुग इतने
वर्ष बीत जाएगा। तब सर्व मानव प्राणी परम पुरूष यानि सत्य पुरूष के पद अर्थात् उस परम पद के जानकार हो जाएँगे जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वदर्शी संत के प्राप्त होने के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए
जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष का विस्तार किया है अर्थात् जिस परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की है, उस परमेश्वर की भक्ति करो।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि उस समय उस परमेश्वर के पद (सत्यलोक) के विषय में सबको पूर्ण ज्ञान होगा।
स्वसमवेद बोध पृष्ठ 170 :-
अथ स्वसम वेद की स्फुटवार्ता-चौपाई
एक लाख और असि हजारा।
पीर पैगंबर और अवतारा।।62
सो सब आही निरंजन वंशा।
तन धरी-धरी करैं निज पिता प्रशंसा।।63
दश अवतार निरंजन के रे।
राम कृष्ण सब आहीं बडेरे।।64
इनसे बड़ा ज्योति निरंजन सोई।
यामें फेर बदल नहीं कोई।।65
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि बाबा आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक कुल एक लाख अस्सी हजार (1,80,000) पैगंबर हुए हैं तथा दस अवतार जो हिन्दू मानते हैं, ये सब काल के भेजे आए हैं। इन सबने काल ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया है।
जो दस अवतार हैं, इन दस अवतारों में राम तथा कृष्ण प्रमुख हैं। ये सब काल (जो इनका पिता है) की महिमा बनाकर सर्व जीवों को भ्रमित करके काल साधना दृढ़ कर गए हैं। इस
सबका मुखिया ज्योति निरंजन काल (ब्रह्म) है।
कबीर सागर में स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171(1515) :-
सत्य कबीर वचन
दोहे :- पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।67
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।69
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।।70
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।71
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।72
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर(पीड़)।।73
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।74
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि हे धर्मदास! मैंने ज्योति निरंजन यानि
काल ब्रह्म से भी कहा था, अब आपको भी बता रहा हूँ। स्वसमबेद बोध की वाणी सँख्या 66 से 74 का सरलार्थ :- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए
आएगा। हिन्दु, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्यनाम की शक्ति से
मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत���य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती है। उनको कोई रोक नहीं पाता। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। परंतु जब तक ठीक का समय नहीं आएगा यानि कलयुग
पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे नहीं करता, तब तक मैं जो यह ज्ञान स्वसमवेद में बोल रहा हूँ, आप लिख रहे हो, निराधार लगेगा। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध
आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
परमात्मा से लाभ लेने के लिए एक ‘‘मानव‘‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माएँ सत्य नाम की शक्ति से
सतलोक चले जाएंगे। मेरे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा घर-घर में होगी। जिस कारण से सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। कलयुग में फिर एक होकर सहज बर्ताव करेंगे यानि शांतिपूर्वक
जीवन जीएंगे। कहाँ उग्र अर्थात् चाहे डाकू, लुटेरा, कसाई हो, चाहे शुद्र, अन्य बुराई करने वाला नीच होगा। परमात्मा सत्य भक्ति करने वालों की भवपीर यानि सांसारिक कष्ट हरेगा
यानि दूर करेगा। सत्य साधना से सबकी भवपीर यानि सांसारिक कष्ट समाप्त हो जाएंगे और उस 13वें (तेरहवें) पंथ का प्रवर्तक सबको समान दृष्टि से देखेगा अर्थात् ऊँच-नीच में
भेदभाव नहीं करेगा। वह समर्थ सत्य कबीर ही होगा। (मम् सन्त मुझे जान मेरा ही स्वरूपम्)
प्रश्न :- वह तेरहवां पंथ कौन-सा है, उसका प्रवर्तक कौन है?
उत्तर :- वह तेरहवां पंथ ‘‘यथार्थ सत कबीर‘‘ पंथ है। उसके प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर जी हैं। वर्तमान में उसका संचालक उनका गुलाम रामपाल दास पुत्र स्वामी रामदेवानंद जी महाराज है। (अध्यात्मिक दृष्टि से गुरू जी पिता माने जाते हैं जो आत्मा का पोषण करते हैं।)
प्रमाण :- वैसे तो संत धर्मदास जी की वंश परंपरा वाले महंतो से जुड़े श्रद्धालुओं ने अज्ञानतावश तेरहवां पंथ और संचालक धर्मदास की बिन्द (परिवार) की धारा वालों को सिद्ध
करने की कुचेष्टा की है। परंतु हाथी के वस्त्र को भैंसे पर डालकर कोई कहे कि देखो यह वस्त्र भैंसे का है। बुद्धिमान तो तुरंत समझ जाते हैं कि यह भैंसा का वस्त्र नहीं है। यह तो भैंसे से कई गुणा लंबे-चौड़े पशु का है। भले ही वे ये न बता सकें कि यह हाथी का है।
उदाहरण :- पवित्र कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ के पृष्ठ 1834-1835 पर लिखा है।
क्रमशः_______________
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🎈कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🎈
कलयुग में अनेक लोक देवता आये जिनकी पूजा हो रही है, द्वापर में श्रीकृष्ण जी आये, त्रेता में श्रीमचन्द्र जी आये तथा उनसे पूर्ण ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव दुर्गा जी जी ब्रह्म व परब्रह्म हुए है। लेकिन वास्तम में पूर्ण परमात्मा कौन है जो पूजा के योग्य है। तथा सदा ही रहते है अर्थात अविनाशी है और जिनकी भक्ति से अक्षय मोक्ष प्राप्त होता है।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब चारों युगों में आते है, दृढ़ भक्तों को मिलते है। सद्भक्ति बताकर काल जाल से पार कराते है।
सतयुग में सत्सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।
चारों युग में मेरे संत पुकारे, कूक कहा हम हेल रे।
हीरे माणिक मोती बरसें, यह जग चुगता ढेल रे।।
सतयुग में परमात्मा का प्राकट्य:-
सतयुग में मनु समझाया, काल वश रहा मार्ग नहीं पाया।
उल्टा दोष मोही पर लगाया, वामदेव मेरा नाम धराया।।
पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी आदि को सतज्ञान समझाया था। श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था। परन्तु श्री मनु जी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर अपने द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरूढ़ रहे। इसके विपरीत परमेश्वर "सतसुकृत" जी का उपहास करने लगे कि आप तो सर्व विपरीत ज्ञान कह रहे हो। इसलिए परमेश्वर सतसुकृत का उर्फ नाम "वामदेव" निकाल लिया (वाम का अर्थ होता है उल्टा, विपरीत)
त्रेता युग का प्रमाण :
त्रेता में नल नील चेताया, लंका में चन्द्र विजय समझाया।
सीख मन्दोदरी रानी मानी, समझा नहीं रावण अभिमानी।।
विभिषण किन्ही सेव हमारी, तातें हुआ लंका छत्तरधारी।
हार गए थे जब त्रिभुवन राया, समुद्र पर सेतु मैं ही बनवाया।।
तीन दिवस राम अर्ज लगाई, समुद्र प्रकट्या युक्ति बताई।
मैं किन्हें हल्के वे पत्थर भारी, सेतु बांध रघुवर सेना तारी।
लीन्हें चरण राम जब मोरे, लक्ष्मण ने दोहों कर जोरे।।
दोनों बोले एक बिचार, ऋषिवर तुम्हरी शक्ति अपार।
हनुमान नत मस्तक होया, अंगद सुग्रीव ने माना लोहा।।
त्रेतायुग मे कबीर परमेश्वर मुनींद्र नाम से आये थे। चन्द्रविजय का पूरा परिवार, मन्दोत्री, विभीषण, हनुमानजी, नल नील इत्यादि को दीक्षा दी। मुनींद्र ऋषि ने श्रीमचन्द्र जी की सहायता की। मुनींद्र जी के आशीर्वाद से ही समुद्र में पत्थर तेरे थे।
द्वापर युग का प्रमाण:
ऊवाबाई बकें ब्र���्मज्ञानी, तत्वज्ञान की सार न जानी।
द्वापर पाण्डव यज्ञ पूर्ण किन्हीं, हो गई थी सबन की हीनि।।
संहस अठासी बैठे ऋषि जन, सब ही खा लिया था भोजन।
तेतीस कोटि देवता सारे, संख नहीं बजा रहे सब हारे।।
बाजा संख अखण्ड धुन लाई, पूरी पृथ्वी पर आवाज सुनाई।।
तीनों लोकों में सुनि संख आवाज, तुम सुदर्शन सन्तन सिर ताज।
ताको सतभक्ति समझाई, अपनी महिमा आप बताई।।
मेरे गुरू करूणामय तत्वज्ञानी, ये सब ऋषि देव है अभिमानी।
उनसे दीक्षा लो चल सब भाई, तातें तुमरा कल्याण हो जाई।।
माने नहीं मती के हीना, कृष्ण बोले बचन अधीना।
हम पर कृपा तुम बहु किन्ही, हमरी लज्जा रख तुम लिन्हीं।।
कृष्ण कह तुझे स्थान पहुँचाऊँ, रथ-घोड़े जोड़ शीघ्र मंगाऊं।
एता कष्ट ना करो सुजाना, तब हम हुए अन्तर्धाना।
सुदर्शन रूप परमात्मा के भोजन खाने से अखंड संख बजा तब पांडवों की यज्ञ सफल हुई। परमात्मा ने वहाँ सत्संग किया अपनी महिमा आप बताई और अंत में अंतर्ध्यान होकर कुटिया पर आ गये।
द्रोपती चिर बढ़ाकर उसकी इज्जत की रक्षा कबीर साहेब ने ही की थी।
एक लीर के कारणे, बढ़ गए च��र अनंत अपार ।
जो मैं पहले जानती, तो सर्वस देती वार ।।
कलयुग का प्रमाण:-
गरीब,हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब दास जी ने इस वाणी में स्पष्ट किया है कि परमेश्वर कबीर जी ने हम सबको(गरीबदास) दादू जी, नानक देव जी इब्राहिम सुल्तान इत्यादि को पार किया। वह परमात्मा काशी शहर में जुलाहा नाम से प्रसिद्ध हुआ है। वह अनन्त कोटि ब्रह्मण्डों का सृजनहार है।
पूर्ण परमात्मा एक है वह सब युगों में रहता है। तत्वज्ञान का प्रचार करता है। अच्छी आत्माएं तत्वज्ञान समझकर पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर की शरण ग्रहण करती हैं।
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर सेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
*✰जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सान्निध्य में 510वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित विशाल भंडारे में आप सपरिवार सादर आमंत्रित हैं✰*
आयोजन स्थल का पता है -
सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान),
सतलोक आश्रम खमानो (पंजाब),
सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब),
सतलोक आश्रम धनाना (हरियाणा),
सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा),
सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा),
सतलोक आश्रम बैतूल (मध्य प्रदेश),
सतलोक आश्रम शामली (उत्तर प्रदेश),
सतलोक आश्रम धनुषा (नेपाल देश)
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🎁कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🎁
संसार में सभी व्यक्तियों को सुख की तलाश है, सर्व सुखदाता, सर्व कार्यसिद्ध करने वाले, पापनाशक तथा मोक्ष प्रदान करने वाले पूर्ण परमात्मा की खोज है। वह सर्व सुखदाता कौन है? अवश्य जानिए।
अविनाशी परमेश्वर चारों युगों में आते है। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में अपने वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर कभी भी माँ के गर्भ से जन्म नह�� लेते है। अपने निज स्थान सतलोक से सशरीर आते है, सशरीर जाते है। लगभग 600 वर्ष पहले काशी में लहरतारा तालाब में शिशु रूप में प्रकट हुए और मगहर से सशरीर गए।
पूर्ण परमात्मा/परम् अक्षर ब्रह्म/सत्यपुरुष/पूर्ण ब्रह्म/Supreme God /Allahu Akbar प्रत्येक युग में किसी सरोवर में कमल के पुष्प पर प्रकट होते है। वहाँ से निःसन्तान दम्पत्ति उठा ले जाते हैं। फिर आध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करते हैं। सरोवर के जल में अवतरित होने के कारण परमेश्वर नारायण कहलाते हैं।
परमेश्वर का शरीर नाड़ियों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना अविनाशी शरीर है। जिसके एक रोम में करोड़ सूर्य करोड़ चन्द्रमा जितना प्रकाश है। वह अमर परमात्मा अपने रूप को सरल करके धरती पर चारों युगों में आत��� है।
अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कुंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिष होती है। इसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में भी है।
कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयायियों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है जिससे कवि की पदवी भी प्राप्त करता है। इसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में भी है।
कबीर साहेब (कविर्देव) पापनाश है, शांतिदायक है, बन्दीछोड़ है :-
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 "उशिगसी कविरंघारिसि बम्भारिस असि।"
कबीर,जबकि सत्यनाम ह्रदय धरयो भयो पाप को नाश।
मानो चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुराने घास।।
कबीर परमात्मा ने मीराबाई को शरण में लिया, द्रोपती के चिर बढ़ाकर उसकी इज्जत की रक्षा की। परमात्मा कबीर साहेब ने नरसिंह रूप धारण कर भगत प्रह्लाद की रक्षा की।
पहुंचूंगा क्षण एक में, जन अपने के काज।
हिरण्यकश्यप ज्यों मार दूं, नरसिंह धर ल्यूं साज।
नानक साहेब जी कहते हैं:- "नीच जात परदेशी मेरा, छिन आवै छिन जावै वे"
नानक साहब जी कह रहे हैं कि कबीर परमात्मा एक सेकंड में सतलोक से यहां आ जाते हैं और एक सेकंड में वापस चले जाते हैं। एक सेकंड के भी कुछ हिस्से में बनारस से मेरे पास पहुंच जाता है और सतलोक दिखा लाता है।
और यही प्रमाण पवित्र वेद बता रहे हैं कि वह परमात्मा कबीर बिजली की गति से क्रीड़ा करते हुए आता है और अपने श्रेष्ठ भक्तों को मिलता है। - ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1,2 सूक्त 86 मंत्र 26, 27
गरीबदास जी महाराज ने बताया है:- "है महबूब सलोना वो, सन्तो नाल खिलौना वो"
अपने भक्तों के लिए तो वह खिलौना है जब भी याद करें एक सेकंड में आकर भक्तों के काम ठीक कर देता है।
समर्थ का शरणा गहो रंग होरी हो
कबहुं ना हो अकाज राम रंग होरी हो।
परमेश्वर कबीर ने कुछ पुण्य आत्माओं को सतलोक दिखाया, सृष्टि रचना का ज्ञान कराया तथा उनके साक्षी बनाया। स्वामी रामानंद जी, संत धर्मदास जी, मलूकदास जी, संत गरीबदास जी, संत दादू जी तथा संत नानक देव जी इत्यादि को सत्यलोक में ले जाकर अपना परिचय करवाकर पृथ्वी पर शरीर में छोड़ा था। फिर सबने परमात्मा की कलम तोड़ महिमा गाई।
लोग कहते है किसने देखा भगवान को। तो इन्होंने देखा ��था लिखा है।
पवित्र सद्ग्रन्थ भी कबीर परमात्मा के साक्षी है - गीता अध्याय 8 श्लोक 9, कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59, गुरूग्रंथसाहिब राग तिलंग महला 1 पृष्ठ 721, राग सिरी महला 1 पृष्ठ 24, बाइबिल अय्यूब 36:5 तथा वेदों में अनेकों स्थान पर प्रमाण है कविर्देव/ कबीर परमेश्वर/ अल्लाह कबीर की पूर्ण परमात्मा है।
परमात्मा जब द्वापर युग मे मुनींद्र रूप में आये तब विभीषण और मण्डोत्री को नाम उपदेश दिया, बाद में हनुमान जी को भी शरण मे लिया। उन्ही के आशीर्वाद से पत्थर तेरे और रामसेतु बना।
परमेश्वर कबीर ने कलयुग में भी अनेकों लीलाएं की। जैसे मृत हो चुके कमाल, कमाली को जीवित किया।
मरी गाय को जीवित किया। परमात्मा को जल में डुबाने की कोशिश की गई, खूनी हाथी के आगे मरवाने की कुचेष्टा की गई। लेकिन वे तो अविनाशी परमात्मा है।
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 121 कबीर साहेब जी ने कहा कि हे काल! चौथा युग जब कलयुग आएगा, तब मैं अपना अंश यानि कृपा पात्र आत्मा भेजूँगा।
उस समय पूरा विश्व मेरे संत से दीक्षा लेगा। जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरा हो जाएगा, तब घर-घर में मेरे अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हुआ करेगी और सत्यनाम, सार शब्द को सब उपदेशियों को प्रदान किया जाएगा।
सत्यपुरुष/कबीर परमेश्र्वर का अवतार जो सत्य साधना तथा तत्वज्ञान का प्रचार प्रसार करेगा जिससे आपसी प्रेम बढ़ेगा, सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देंगे, असहाय व्यक्ति की मदद करेंगे, सब बुराइयां खत्म होगी।
परमेश्वर कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है, सब आत्माओं के जनक है पिता है जो हम सबके लिए भटक रहे हैं, हमें काल की जेल से निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
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