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#कलप
sabkuchgyan · 2 years
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अंकिता के आखिरी ऑडियो क्लिप के सामने इस शख्स को रोते हुए बुलाया
अंकिता के आखिरी ऑडियो क्लिप के सामने इस शख्स को रोते हुए बुलाया
मशहूर अंकिता भंडारी हत्याकांड में आए दिन नए खुलासे हो रहे हैं. एक तरफ उत्तराखंड में इस मामले को लेकर लोगों में गुस्सा है, अब जांच शुरू हो गई है. इसी बीच अंकिता का आखिरी ऑडियो क्लिप सामने आया है। इसमें अंकिता अपने एक स्टाफ मेंबर से बात कर रही हैं। एक स्टाफ कुक से बातचीत में अंकिता ने रोते हुए अपना बैग मांगा. दरअसल, अंकिता भंडारी ने रिजॉर्ट में सेफ का काम करने वाले शख्स से मेरा बैग लाने के लिए…
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tenaciousbananabird · 4 months
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subhashdagar123 · 4 months
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parveendassi · 9 months
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हम्ही से ब्रह्मा विष्णु, ईश है कला हमारी। हमही पद प्रवानि, कलप कोटि जुग तारी।।
#सत_भक्ति_सन्देश
कबीर परमात्मा ने बताया है कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की आत्मा की उत्पत्ति मैंने की है। हे धर्मदास ! मैं सतपुरुष हूँ। यह सब मेरी आत्माएँ हैं जो जीव रूप में रह रहे हैं। यह सत्य वचन है।
• जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
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jayshrisitaram108 · 5 months
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हरि अनंत हरि कथा अनंता कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता रामचंद्र के चरित सुहाए कलप कोटि लगि जाहिं न गाए
हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते है रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते
जय श्री राम🏹ᕫ🙏
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( #Muktibodh_part177 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part178
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 341-342
◆ ‘‘कबीर परमेश्वर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 958-975 का सरलार्थ :- जिंदा रूप में परमेश्वर कबीर जी ने तर्क-वितर्क करके यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाया। प्रश्न किया कि जो शालिगराम (मूर्तियाँ) लिए हुए हो, ये किस लोक से आए हैं? अड़सठ तीर्थ के स्नान व भ्रमण से किस लोक में साधक जाएगा? यह तत्काल बता। राम तथा कृष्ण कौन-से लोक में रहते हैं?
जिनको आप शालिगराम कहते हो, ये तो जड़ (निर्जीव) हैं। इनके सामने घंटा बजाने का कोई लाभ नहीं। ये न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं। ये तो पत्थर या अन्य धातु से बने हैं। हे धर्मदास! कहाँ भटक रहे हो? (निजपद निहकामी) सतलोक को (चीन्ह) पहचान। जिस परमेश्वर की शक्ति से प्रत्येक जीव बोलता है, हे धर्मदास! उसको नहीं जाना। चिदानंद परमेश्वर को पहचान। इन पत्थर व धातु को पटक दे। परमेश्वर कबीर जी जिंदा बाबा ने कहा कि हे धर्मदास! राम-कृष्ण तो करोड़ों जन्म लेकर मर लिए। (धनी) मालिक सदा से एक ही है। वह कभी नहीं मरता। आप विवेक से काम लो। ये आपके पत्थर व पीतल धातु के भगवानों को दरिया में छोड़कर देखो, डूब जाएँगे तो ये आपकी क्या मदद करेंगे? इनको मूर्तिकार ने काट-पीट, कूटकर इनकी छाती पर पैर रखकर (तरासा) काटकर रूप दिया।
इनका रचनहार तो कारीगर है। ये जगत के उत्पत्तिकर्ता व दुःख हरता कैसे हैं? ऐसी पूजा कौन करे? जिस परमेश्वर ने माता के गर्भ में रक्षा की, खान-पान दिया, सुरक्षित जन्म दिया,
उसकी भक्ति कर। यह पत्थर-पीतल तथा तीर्थ के जल की पूजा की (बोदी) कमजोर आशा त्याग दे। जिंदा बाबा ने कहा कि जो पूर्ण परमात्मा सब सृष्टि की रचना करके इससे भिन्न रहता है। अपनी शक्ति से सब ब्रह्माण्डों को चला व संभाल रहा है, उसका विचार कर।
उसका शरीर श्वांस से नहीं चलता। वह सबसे ऊपर के लोक में रहता है। आपकी समझ में नहीं आता है। उसकी शक्ति सर्वव्यापक है। उसका आश्रम (स्थाई स्थान) अधर-अधार यानि सबसे ऊपर है। वह अजर-अमर अविनाशी है।
धर्मदास जी ने कहा :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 :-
बोलत है धर्मदास, सुनौं जिंदे मम बाणी।
कौन तुम्हारी जाति, कहांसैं आये प्राणी।।976।।
ये अचरज की बात, कही तैं मोसैं लीला।
नामा के पीया दूध, पत्थरसैं करी करीला।।977।।
नरसीला नित नाच, पत्थर के आगै रहते।
जाकी हूंडी झालि, सांवल जो शाह कहंते।।978।।
पत्थर सेयै रैंदास, दूध जिन बेगि पिलाया।
सुनौ जिंद जगदीश, कहां तुम ज्ञान सुनाया।।979।।
परमेश्वर प्रवानि, पत्थर नहीं कहिये जिंदा।
नामा की छांनि छिवाई, दइ देखो सर संधा।।980।।
दोहा-सिरगुण सेवा सार है, निरगुण सें नहीं नेह।
सुन जिंदे जगदीश तूं, हम शिक्षा क्या देह।।981।।
‘‘धर्मदास वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 का सरलार्थ :- धर्मदास जी कुछ नाराज होकर परमेश्वर से बोले कि हे (प्राणी) जीव! तेरी जाति क्या है? कहाँ से आया है? आपने मेरे से
बड़ी (अचरज) हैरान कर देने वाली बातें कही हैं, सुनो! नामदेव ने पत्थर के देव को दूध पिलाया। नरसी भक्त नित्य पत्थर के सामने नृत्य किया करता यानि पत्थर की मूर्ति की पूजा करता था। उसकी (हूंडी झाली) ड्रॉफ्ट कैश किया। वहाँ पर सांवल शाह कहलाया।
रविदास ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाया। हे जिन्दा! तू यह क्या शिक्षा दे रहा है कि पत्थर की पूजा त्याग दो। ये मूर्ति परमेश्वर समान हैं। इनको पत्थर न कहो। नामदेव की छान
(झोंपड़ी की छत) छवाई (डाली)। देख ले परमेश्वर की लीला। हम तो सर्गुण (पत्थर की मूर्ति जो साक्षात आकार है) की पूजा सही मानते हैं। निर्गुण से हमारा लगाव नहीं है। हे जिन्दा! मुझे क्या शिक्षा दे रहा है?
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 :-
बौलै जिंद कबीर, सुनौ बाणी धर्मदासा।
हम खालिक हम खलक, सकल हमरा प्रकाशा।।982।।
हमहीं से चंद्र अरू सूर, हमही से पानी और पवना।
हमही से धरणि आकाश, रहैं हम चौदह भवना।।983।।
हम रचे सब पाषान नदी यह सब खेल हमारा।
अचराचर चहुं खानि, बनी बिधि अठारा भारा।।984।।
हमही सृष्टि संजोग, बिजोग किया बोह भांती।
हमही आदि अनादि, हमैं अबिगत कै नाती।।985।।
हमही माया मूल, हमही हैं ब्रह्म उजागर।
हमही अधरि बसंत, हमहि हैं सुखकै सागर।।986।।
हमही से ब्रह्मा बिष्णु, ईश है कला हमारी।
हमही पद प्रवानि, कलप कोटि जुग तारी।।987।।
दोहा-हम साहिब सत्यपुरूष हैं, यह सब रूप हमार।
जिंद कहै धर्मदाससैं, शब्द सत्य घनसार।।988।।
‘‘परमेश्वर कबीर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 का सरलार्थ :- हे धर्मदास! आपने जो भक्त बताए हैं, वे पूर्व जन्म के परमेश्वर के परम भक्त थे। सत्य साधना किया करते थे जिससे उनमें भक्ति-शक्ति जमा थी। किसी कारण से वे पार नहीं हो सके। उनको तुरंत मानव जन्म मिला। जहाँ उनका जन्म हुआ, उस क्षेत्रा में जो लोकवेद प्रचलित था, वे उसी के आधार से
साधना करने लगे। जब उनके ऊपर कोई आपत्ति आई तो उनकी इज्जत रखने व भक्ति तथा भगवान में आस्था मानव की बनाए रखने के लिए मैंने वह लीला की थी। मैं समर्थ परमेश्वर हूँ। यह सब सृष्टि मेरी रचना है। हम (खालिक) संसार के मालिक हैं। (खलक) संसार हमसे ही उत्पन्न है। हमने यानि मैंने अपनी शक्ति से चाँद, सूर्य, तारे, सब ग्रह तथा ब्रह्माण्ड उत्पन्न किए हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की आत्मा की उत्पत्ति मैंने की है। हे धर्मदास! मैं सतपुरूष हूँ। यह सब मेरी आत्माएँ हैं जो जीव रूप में रह रहे हैं। यह सत्य वचन है।
धर्मदास जी ने अपनी शंका बताई। कहा कि :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 989-994 :-
बोलत हैं धर्मदास, सुनौं सरबंगी देवा। देखत पिण्ड अरू प्राण, कहौ तुम अलख अभेवा।।989।।
नाद बिंद की देह, शरीर है प्राण तुम्हारै। तुम बोलत बड़ बात, नहीं आवत दिल म्हारै।।990।।
खान पान अस्थान, देह में बोलत दीशं। कैसे अलख स्वरूप, भेद कहियो जगदीशं।।991।।
कैसैं रचे चंद अरू सूर, नदी गिरिबर पाषानां।
कैसैं पानी पवन, धरनि पृथ्वी असमानां।।992।।
कैसैं सष्टि संजोग, बिजोग करैं किस भांती।
कौन कला करतार, कौन बिधि अबिगत नांती।। 993।।
दोहा-कैसैं घटि घटि रम रहे, किस बिधि रहौ नियार।
कैसैं धरती पर चलौ, कैसैं अधर अधार।।994।।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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praveendaskumar · 2 years
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गरीब, चैरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर। भुवन चतुर्दश लोक सब, टूटैं जम जंजीर।।1।। गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड में, बंदी छोड़ कहाय। सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।2।। गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि। बाहर भीतर रमि रह्या, जहां तहां सब ठांहि।।3।। गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक। पूर्ण ब्रह्म कबीर हैं, अबिगत पुरूष अलेख।।4।। गरीब, सेवक होय कर ऊतरे, इस पृथ्वी के मांहि। जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।5।। #waheguru #moksha #lordshiva #omnamahshivaya #maghar #kashi #banaras #KabirisGod #Kabir #SantRampalJiMaharaj #SaintRampalJi #satlok #hindiquotes (at Delhi, India) https://www.instagram.com/p/Cn3LgxmyLHr/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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seedharam · 2 months
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#अलख_निरंजन_कौन_हैं_?
तत्वज्ञान के अभाव में ज्यादातर लोग शिव जी को अलख निरंजन जानते और मानते हैं।
वैदिक परंपरा वाले लोग ज्योति निरंजन (ओमकार भगवान) को अलख निरंजन जानते हैं।
योगी लोग अलख निरंजन का तात्पर्य "निराकार भगवान" मानते हैं।
अलख निरंजन के विषय में आम धारणा यह हैं कि भगवान मूलतः निराकार हैं,अशरीरी हैं इसलिए उन्हें देखा जाना संभव नहीं हैं । इसप्रकार से उस निराकार भगवान को ही अलख निरंजन कहा जाता हैं।
आइये जानते हैं #अलख का वास्तविक अर्थ क्या होता हैं ?
✓ यदि किसी साधक/ भगत के पास अपने ईष्ट देव को प्राप्त करने, उनके दर्शन करने के लिए शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना नहीं हैं अर्थात् वह लोकवेद/दन्तकथा/ परम्परागत/ मनमुखी भक्ति साधना पर आधारित हैं तो ऐसे साधक/ भगत के लिए अपने ईष्ट देव को देख (लख) पाना संभव नहीं हैं अर्थात् उनके लिए वह अलख हो गया। अलख का मतलब निराकार नहीं होता।
आइये अब जानते हैं #निरंजन का वास्तविक अर्थ
✓ जो भगवान माया से रहित हैं,जिन पर माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं वास्तव में वही निरंजन हैं अर्थात् मायारहित भगवान हैं।
माया का अर्थ भी बहुत ही ब्यापक हैं।
पवित्र गीता जी में तीनों गुणों को माया बताया हैं
सन्तों ने दुर्गा जी को माया बताया हैं
लोग काम क्रोध लोभ मोह मद अहंकार को भी माया ही बताया हैं।
तो #अलख_निरंजन का मतलब हैं - ऐसा समरथ और साकार परमात्मा जो माया से रहित हो, जो स्वयं ही मायापति हो।
वो कौन है ?
#सुक्ष्मवेद में बताया गया हैं कि...
#सतकबीर नाम कर्ता का,कलप करै दिल देवा।
सुमरन करै सुरति सै लापै,पावै हरिपद भेवा।।
सहंस कमल दल फूलि रहै हैं,अमी महारस खाता।।
जहां अलख निरंजन जोगी बैठ्या,जा सें रह्मा न भाता।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए।
साधना चैनल पर प्रतिदिन सायं 7:30 - 8.30 बजे।
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uday-yadav · 2 months
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गरीब, चैरासी बंधन काटन, कीनी कलप कबीर। भवन चतुरदश लोक सब, टूटैं जम जंजीर।।
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madanlal123 · 2 months
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#GodMorningTuesday
#अनसुना_पाँचवाँ_वेद
सूक्ष्म वेद
कबीर साहेब जी द्वारा
जगन्नाथ के पांडे की रक्षा करना....
जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई।
उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर,
हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया,
तहां परया योह नीर ।।
जगन्नाथ जगदीश का,
जरत बुझाया पंडा
गरीबदास हर हर करत,
मिट्या कलप सब दंड।।
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anitadasi34 · 2 months
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#GodMorningTuesday
#अनसुना_पाँचवाँ_वेद
सूक्ष्म वेद
कबीर साहेब जी द्वारा
जगन्नाथ के पांडे की रक्षा करना....
जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई।
उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर,
हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया,
तहां परया योह नीर ।।
जगन्नाथ जगदीश का,
जरत बुझाया पंडा
गरीबदास हर हर करत,
मिट्या कलप सब दंड।।
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abhay1233 · 2 months
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#GodMorningTuesday
#अनसुना_पाँचवाँ_वेद
सूक्ष्म वेद
कबीर साहेब जी द्वारा
जगन्नाथ के पांडे की रक्षा करना....
जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई।
उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर,
हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया,
तहां परया योह नीर ।।
जगन्नाथ जगदीश का,
जरत बुझाया पंडा
गरीबदास हर हर करत,
मिट्या कलप सब दंड।।
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sushildas1989 · 2 months
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#GodMorningTuesday
#अनसुना_पाँचवाँ_वेद
सूक्ष्म वेद
कबीर साहेब जी द्वारा
जगन्नाथ के पांडे की रक्षा करना....
जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई।
उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर,
हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया,
तहां परया योह नीर ।।
जगन्नाथ जगदीश का,
जरत बुझाया पंडा
गरीबदास हर हर करत,
मिट्या कलप सब दंड।।
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jayshrisitaram108 · 2 years
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जिन्ह हरि कथा सुनी नहि काना श्रवण रंध्र अहि भवन समाना
जिसने अपने कानों से प्रभु की कथा नही सुनी उसके कानों के छेद सांप के बिल के समान हैं.
जिन्ह हरि भगति हृदय नहि आनी जीवत सब समान तेइ प्राणी
जो नहि करई राम गुण गाना जीह सो दादुर जीह समाना
जिसने भगवान की भक्ति को हृदय में नही लाया वह प्राणी जीवित मूर्दा के समान है. जिसने प्रभु के गुण नही गाया उसकी जीभ मेंढ़क की जीभ के समान है.
कुलिस कठोर निठुर सोई छाती सुनि हरि चरित न जो हरसाती
तुलसीदास जी कहते हैं – उसका हृदय बज्र की तरह कठोर और निश्ठुर है जो ईश्वर का चरित्र सुनकर प्रसन्न नही होता है.
सगुनहि अगुनहि नहि कछु भेदा गाबहि मुनि पुराण बुध भेदा।
अगुन अरूप अलख अज जोई भगत प्रेम बश सगुन सो होई।
तुलसीदास जी कहते हैं – सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नही है. मुनि पुराण पन्डित बेद सब ऐसा कहते. जेा निर्गुण निराकार अलख और अजन्मा है वही भक्तों के प्रेम के कारण सगुण हो जाता है.
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता
रामचंन्द्र के चरित सुहाए।कलप कोटि लगि जाहि न गाए
भगवान अनन्त है, उनकी कथा भी अनन्त है. संत लोग उसे अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं. श्रीराम के सुन्दर चरित्र करोड़ों युगों मे भी नही गाये जा सकते हैं
जय सीताराम🏹ᕫ🚩🙏
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rahulkumar123r · 2 months
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#GodMorningTuesday
#अनसुना_पाँचवाँ_वेद
सूक्ष्म वेद
कबीर साहेब जी द्वारा
जगन्नाथ के पांडे की रक्षा करना....
जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई।
उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर,
हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया,
तहां परया योह नीर ।।
जगन्नाथ जगदीश का,
जरत बुझाया पंडा
गरीबदास हर हर करत,
मिट्या कलप सब दंड।।
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