#कब करें गृह प्रवेश
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Book Pandit Ji for Marriage, Griha Pravesh, Satyanarayan Katha Puja & Navgraha Shanti Puja | Panditjii.in
भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं का विशेष महत्व है। हर शुभ कार्य की शुरुआत मंत्रोच्चारण और विधिपूर्वक पूजा-पाठ के साथ होती है। शादी, गृह प्रवेश, सत्यनारायण कथा और नवग्रह शांति पूजा जैसे अनुष्ठान जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने के लिए किए जाते हैं। इन सभी धार्मिक अनुष्ठानों को सही विधि और मंत्रों के साथ संपन्न करने के लिए एक योग्य और अनुभवी Pandit Ji की आवश्यकता होती है।
अब आपको किसी भी पूजा के लिए पंडित जी खोजने की चिंता करने की जरूरत नहीं है! Panditjii.in के माध्यम से आप आसानी से Marriage Puja, Griha Pravesh, Satyanarayan Katha Puja और Navgraha Shanti Puja के लिए Pandit Ji की बुकिंग कर सकते हैं।
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1. Book Pandit Ji for Marriage Puja
शादी केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि यह दो आत्माओं और परिवारों के बीच एक पवित्र बंधन है। हिंदू विवाह में कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो वैदिक परंपराओं के अनुसार संपन्न किए जाते हैं। इस समारोह में गणेश पूजन, वर पूजन, कन्यादान, सप्तपदी, फेरे और मंगलाष्टक जैसे महत्वपूर्ण संस्कार शामिल होते हैं।
शादी के लिए पंडित जी की आवश्यकता क्यों है?
✅ वे सही विधि से मंत्रोच्चारण और हवन कराते हैं।
✅ विवाह संस्कार को शुद्ध और पवित्र बनाने में सहायता करते हैं।
✅ नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद और शुभकामनाएं प्रदान करते हैं।
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2. Book Pandit Ji for Griha Pravesh Puja
नए घर में प्रवेश करने से पहले गृह प्रवेश पूजा करवाना बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूजा नए घर में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि लाने के लिए की जाती है।
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गृह प्रवेश पूजा में क्या-क्या शामिल होता है?
🔹 गणेश पूजा – बाधाओं को दूर करने के लिए।
🔹 वास्तु शांति हवन – घर को पवित्र और सकारात्मक बनाने के लिए।
🔹 कलश स्थापना – मंगल ऊर्जा के लिए।
🔹 गौ पूजन – शुभता और समृद्धि के लिए।
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3. Book Pandit Ji for Satyanarayan Katha Puja
श्री सत्यनारायण कथा पूजा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। यह पूजा घर में सुख-समृद्धि और शांति बनाए रखने के लिए बहुत प्रभावी मानी जाती है।
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सत्यनारायण कथा कब और क्यों करें?
✅ गृह प्रवेश, शादी, जन्मदिन, शुभ कार्य या किसी विशेष अवसर पर।
✅ परिवार की समृद्धि और मानसिक शांति के लिए।
✅ ��ंकटों से बचाव और अच्छे स्वास्थ्य के लिए।
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4. Book Pandit Ji for Navgraha Shanti Puja
नवग्रह शांति पूजा का मुख्य उद्देश्य जीवन में ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करना और सुख-समृद्धि को बढ़ावा देना है। यह पूजा विशेष रूप से तब की जाती है जब किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई दोष हो, जैसे मंगल दोष, शनि दोष, या राहु-केतु दोष।
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नवग्रह शांति पूजा के लाभ:
✔ जीवन की बाधाओं और समस्याओं से मुक्ति।
✔ स्वास्थ्य, धन और सफलता में सुधार।
✔ ग्रह दोषों का समाधान।
यदि आपके जीवन में कोई ग्रह दोष है या आप सफलता और शांति की तलाश में हैं, तो Navgraha Shanti Puja के लिए Pandit Ji की बुकिंग करें।
कैसे करें बुकिंग?
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जानें कब मनाई जाएगी मकर संक्रान्ति
इस साल सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी की रात में 02: 44 मिनट पर प्रवेश करेंगे. ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से ये त्योहार अगले दिन यानी 15 जनवरी सोमवार को मनाया जाएगा. मकर संक्रान्ति के साथ ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सभी शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे।
मकर संक्रान्ति पुण्य काल
मकर संक्रान्ति के दिन पवित्र नदियों में स्नान, जाप, तप और दान का विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि इस दिन इन कामों को करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है. मकर संक्रान्ति के दिन वैसे तो आप किसी भी समय पर दान, जप और तप वगैरह कर सकते हैं क्योंकि ये पूरा दिन ही शुभ होता है. लेकिन अगर महापुण्यकाल की बात करें तो सुबह 7 बजे से सुबह 8 बजकर 46 तक रहेगा.
मकर संक्रान्ति का महत्व
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास खत्म हो जाता है और विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इस दिन के बाद से सूर्य उत्तरायण होने लगते हैं और धीरे-धीरे दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है. उत्तरायण को शास्त्रों में शुभ माना गया है. कहा जाता है कि महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने अपने प्राणों को त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था. इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी, कंबल, गरम वस्त्र, घी आदि का दान शुभ माना गया है।
कैसे मनाएं मकर संक्रान्ति
मकर संक्रान्ति के दिन सुबह जल्दी स्नान करना चाहिए. स्नान या तो किसी पवित्र नदी में करें या फिर साफ जल में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें.
स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए.-अर्घ्य देते समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें काला तिल, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत वगैरह डाल लें. अर्घ्य देते समय 'ॐ सूर्याय नम:' या सूर्य के किसी अन्य मंत्र का जाप करना चाहिए.
इसके बाद जरूरतमंदों को दान करना चाहिए. इस दिन काली उड़द, चावल, गुड़, तिल, घी आदि का दान काफी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा आप फल, कंबल, गर्म कपड़े वगैरह भी दान कर सकते हैं.
इस दिन खिचड़ी बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है. साथ ही तमाम लोग खिचड़ी को गरीबों और जरूरतमंदों को बांटते भी हैं.
मकर संक्रान्ति के दिन गुजरात, राजस्थान आदि तमाम जगहों पर पतंग उड़ाई जाती है. इस कारण कई लोग इस त्योहार को काइट फेस्टिवल भी कहते हैं।
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AICTE academic calendar 2021-22: जानें कब खुलेंगे टेक्निकल और ODL इंस्टीट्यूट Divya Sandesh
#Divyasandesh
AICTE academic calendar 2021-22: जानें कब खुलेंगे टेक्निकल और ODL इंस्टीट्यूट
2021-22: (AICTE) ने साल 2021-22 के लिए शैक्षणिक कैलेंडर जारी किया है। AICTE एकेडमिक कैलेंडर गुरुवार, 06 मई 2021 को आधिकारिक वेबसाइट aicte-india.org पर जारी किया गया है। नोटिस के अनुसार, टेक्निकल इंस्टीट्यूशंस के लिए काउंसलिंग या एडमिशन के पहले राउंड की सीट अलॉटमेंट की आखिरी तारीख 31 अगस्त, 2021 है।
टेक्निकल इंस्टीट्यूशंस ग्रांट और सीट ��लॉटमेंट डेट्स नोटिस के अनुसार, टेक्निकल इंस्टीट्यूशंस को मान्यता प्रदान करने की अंतिम तिथि 30 जून विश्वविद्यालयों / बोर्ड द्वारा मान्यता प्रदान करने की अंतिम तिथि 15 जुलाई है। काउंसलिंग / प्रवेश के पहले दौर को पूरा करने की अंतिम तिथि सीटों का आवंटन 31 अगस्त, 2021 है। काउंसलिंग / एडमिशन के दूसरे राउंड की सीट अलॉटमेंट की आखिरी तारीख 09 सितंबर 2021 है। टेक्निकल कोर्स की सीट कैंसिल करने पर पूरी फीस वापसी की तारीख 10 सितंबर, 2021 तक है। फर्स्ट ईयर में एडमिशन पाने वाले छात्रों को 15 सितंबर तक खाली सीटों पर प्रवेश दिया जा सकता है, और फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स की क्लासेस भी 15 सितंबर से शुरू होंगी। सेकेंड ईयर में लेटरल एंट्री एडमिशन की आखिरी तारीख 20 सितंबर, 2021 हैं।
स्टैंडअलोन पीजीडीएम (PGDM) और पीजीसीएम (PGCM) कॉलेजों की महत्वपूर्ण तारीखें संस्थानों के लिए अनुदान की प्रक्रिया की आखिरी तारीख – 30 जून 2021 स्टैंडअलोन पीजीडीएम और पीजीसीएम संस्थानों में मौ��ूदा और नए छात्रों के लिए क्लासेस शुरू – 1 जुलाई, 2021 एडमिशन कैंसिल और फीस रिफंड की आखिरी तारीख – 5 जुलाई पीजीडीएम और पीजीसीएम इंस्टीट्यूशंस में दाखिले लेने की आखिरी तारीख – 10 जुलाई
ओपन डिस्टेंस लर्निंग एडमिशन ओपन डिस्टेंस लर्निंग (ODL) और ऑनलाइन प्रोग्राम और कोर्सेस के मामले में, ओएलडी या ऑनलाइन कोर्सेस के लिए मान्यता देने की प्रक्रिया की आखिरी तारीख – 30 जून 2021 ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग या ऑनलाइन लर्निंग मोड कोर्सेस में दाखिला लेने की आखिरी तारीख – 01 सितंबर 2021 एडमिशन के दूसरे राउंड की आखिरी तारीख- 1 फरवरी 2022
कोविड-19 गाइडलाइंस का पालन करें संस्थान एआईसीटीई ने सभी संस्थानों और विश्वविद्यालयों से अनुरोध किया है कि, वे कोविड-19 महामारी को देखते हुए समय-समय पर जारी परीक्षाओं पर एआईसीटीई या यूजीसी गाइडलाइंस का पालन करें। साथ ही, महामारी से संबंधित निर्धारित प्रोटोकॉल या दिशानिर्देशों के बाद ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिश्रित मोड में क्लासेस शुरू की जा सकती हैं।
मनमानी करने पर होगी कार्रवाई ध्यान रहे, स्वास्थ्य मंत्रालय, गृह मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी महामारी और दिशानिर्देशों के कारण मौजूदा स्थिति के मद्देनजर, शैक्षणिक कैलेंडर बदला भी जा सकता है। एआईसीटीई ने यह भी निर्देश दिया कि बिना अप्रूवल के स्टूडेंट्स को एडमिशन देने वाले इंस्टीट्यूसंश पर कार्रवाई हो सकती है।
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खटखटाओ और तुम्हारे लिए द्वार खोला जायेगा
किंग टिंग द्वारा, चीन
1989 में, मैंने अपनी माँ के साथ प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया। जब मैंने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया, तब अक्सर सभाओं में भाग लेने और धर्मशास्त्रों को पढ़ने के माध्यम से, मुझे पता चला कि यह परमेश्वर था जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और उसमें सबकुछ बनाया था, और उसने मानवजाति बनाई थी, और यह परमेश्वर है जो मानवजाति के लिए सबकुछ प्रदान करता है। उस समय प्रचारक अक्सर हमें बताते थे, “चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, जब तक हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर हमारी मदद करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रभु ने कहा, ‘माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा‘ (मत्ती 7:7–8)। प्रभु भरोसेमंद हैं, इसलिए यदि हमें कठिनाइयाँ होती हैं और हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं, तो प्रभु हमारी प्रार्थनाओं को सुनेंगे। वह बाइबल के वचनों के माध्यम से हमसे बात करते हैं, और सभी कठिनाइयों में हमारी अगुआई करते हैं”… उसके बाद, चाहे बड़े मामलें हो या छोटे, मैंने सबकुछ प्रभु को सौंप दिया। प्रभु ने वास्तव में मेरी प्रार्थनाओं को सुना और मुझे बाइबल के वचनों के माध्यम से राह दिखाई, और मैंने जो कुछ भी खोजा उन सबको फलीभूत किया। इस वजह से मैं बाइबल को अधिक से अधिक संजोने लगी, और यह कुछ ऐसा था जो मुझसे अलग नहीं हो सकता था, इसे मैं हर जगह अपने साथ रखती थी।
सितंबर 1997 में एक रविवार को, मैं हमेशा की तरह एक सभा में आयी, और एक बुजुर्ग बहन जो प्रचार कर रही थीं, उन्होंने कहा, “परमेश्वर को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद दें। आज मैंने इन दो युवा बहनों को हमारे साथ साहचर्य करने के लिए आमंत्रित किया है, और आपके मन में जो भी प्रश्न हों वो पूछ सकते हैं…” शरुआत से ही, मैं इन बुजुर्ग बहन को बहुत चाहती थी, जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही परमेश्वर में विश्वास करना शुरू कर दिया था, और जो अब 68 वर्ष की थीं। अपने 50 साल के विश्वास में, उन्होंने बाइबल को इतने उत्साह से पढ़ा था कि उन्होंने तीन प्रतियां घिस दीं थीं, और वह बाइबल में काफी प्रवीण थीं, लेकिन आज मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इन लगभग बीस साल की दो बहनों को हमें उपदेश देने दे रही हैं। उन्होंने परमेश्वर में कब से विश्वास किया था? वे हमें कौन सा संदेश देने में सक्षम थीं? मैं बहुत आश्वस्त नहीं थी, लेकिन चूँकि बुजुर्ग बहन ने इसकी सिफारिश की थी, मैंने कुछ भी नहीं कहा। जब युवा बहनों ने हमें प्रकाशितवाक्य 22:1-5 से जन्मी एक कविता, “जीवन जल की एक नदी” का एक पद गाना सिखाया, तो मैंने सोचा कि यह पद काफी नया और सुनने में अच्छा था, इसलिए मेरा दिल शांत हो गया। उसके बाद उन्होंने हमें एक और नया गीत, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले से ही पूर्व में प्रकट हो चुका है” गवाया और मैंने सोचा कि यह भजन भी बहुत अच्छा था, और इसमें विशेषता और ऊर्जा थी। मैंने सोचा कि कलीसिया में हमने पहले जो गाने गाये थे यह उनके मुकाबले लोगों को आस्था देने में ज़्यादा सक्षम था। उस पल में मेरे दिल में उन दो युवा बहनों को लेकर अब और द्वंद नहीं रह गया था। लेकिन जल्द ही, युवा बहनों में से एक ने प्रभु यीशु के पहले ही लौट आने की गवाही दी, और यह भी कहा कि आखिरी दिनों में परमेश्वर फिर से देहधारी होकर आये हैं, मनुष्य के पुत्र के रूप में प्रकट होकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु यीशु के छुटकारे के काम के आधार पर, उन्होंने वचन के काम का एक चरण सम्पादित किया है जो लोगों को शुद्ध करता है और उनका न्याय करता है, और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से छोटी पुस्तक खोली है… बात करते हुए, उसने बाइबिल को नीचे रख दिया और मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक नामक एक किताब ली, और मेरे भीतर घमासान मच गया: “ये लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन वास्तव में बाइबल नीचे रख देते हैं। यह निश्चित रूप से सही नहीं हो सकता! बाइबल पढ़े बिना प्रभु में विश्वास का क्या अर्थ है? हम बाइबल पर प्रभु में अपना विश्वास रखते हैं, और हमें इसे हमेशा पढ़ना चाहिए!” जैसे ��ी मैं उन्हें अस्वीकार करना चाहती थी, मैंने देखा कि बुजुर्ग बहन स्वीकृति में अपना ��र हिला रहीं हैं, और मैंने उन शब्दों को निगल लिया जिनसे मैं उनका खंडन करने जा रही थी। मैंने सोचा, “यदि जो कुछ भी वे प्रचार कर रहीं हैं, उसे बुजुर्ग बहन स्वीकार करेंगी, तो मैं बाइबल के अपने ज्ञान से उन्हें अस्वीकार करने में शायद सक्षम नहीं हो पाऊँगी, और मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा। इसलिए उनके चले जाने के बाद बुजुर्ग बहन से बात करना बेहतर होगा। निश्चित रूप से बाइबल को पीछे छोड़ परमेश्वर पर विश्वास करना सही नहीं है, क्योंकि बाइबिल में लिखा है: ‘सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा’ (2 तीमुथियुस 3:16)। चूंकि बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गयी है, यह परमेश्वर की वाणी का प्रतिनिधित्व करती है। हम बाइबल का पालन करते हैं या नहीं, वास्तव में, इस महान विषय के संबंध में है कि हम आशीर्वाद प्राप्त करते हैं या दुर्भाग्य से पीड़ित होते हैं, और मुझे इस मामले की स्पष्ट समझ लेनी ही है। मुझे इन दो बहनों को हमें हमें धोखा देने और गुमराह करने नहीं देना चाहिए।” चिंता से भरपूर, मैं पूरे समय घबराई हुई थी। सभा खत्म होने तक इंतजार करना आसान नहीं था। मैं बार बार बुजुर्ग बहन की ओर देखती, कि वह कैसे स्पष्ट रूप उसे स्वीकार रही थीं जिसकी युवा बहनें संगति कर रही थीं। पूरे समय, वह शांत और खुश लग रही थीं, और मैं बड़बड़ाये बिना नहीं रह पायी: “आप क्यों कुछ नहीं कह रहीं हैं? क्या आप उन्हें बाइबल छोड़ कर यों ही इस तरह उपदेश देने देंगी? क्या इसे ही आप प्रभु के लिए एक अच्छा प्रबंधक होना कहतीं हैं?”
घर वापस जाते हुए, जितना मैं सोचती उतना अधिक चिंतित होती जाती। “मैंने सात या आठ सालों तक बाइबल पढ़ी है, और अब कुछ लोग हैं जो मुझे बाइबल छोड़ने के लिए कह रहे हैं। साथ ही, अप्रत्याशित रूप से बुजुर्ग बहन को भी लगता है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यह परमेश्वर की मांगों के अनुसार कैसे है? लेकिन कलीसिया के अधिकांश भाइयों और बहनों ने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार कर लिया है, और यदि मैं इसे स्वीकार नहीं करती हूँ, तो यदि थोड़ी भी सम्भावना हुई कि प्रभु सच में वापस आ गये हैं और वास्तव में वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, तो क्या मैं परमेश्वर की वापसी का स्वागत करने का अवसर नहीं खो दूँगी?” फिर भी, इस बारे में मैं पुनर्विचार करने लगी। मैं बस यों ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को स्वीकार नहीं कर सकती थी और बाइबिल को वैसे नहीं त्याग सकती थी जैसा कि उन्होंने किया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी? क्योंकि मेरे दिल में चैन नहीं था, और मेरे पैरों के ��ीचे की सड़क उबड़-खाबड़ और ऊँची-नीची लग रही थी, मैं परेशान घर लौट आयी। जब मेरे पति ने मेरे उलझे हुए भाव देखे, तो उन्होंने तुरंत मुझसे पूछा, “तुम इतनी विचलित क्यों हो? तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?” “ओह! रहने दीजिये, आज दो युवा बहनें कलीसिया में आईं और हमें उपदेश दिया, और कहा कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुके हैं और उन्होंने छोटी पुस्तक खोल दी है। उन्होंने हममें से प्रत्येक को भी एक किताब दी, और कहा कि यह परमेश्वर का नया वचन है। भविष्य में, वे हमें केवल इस किताब को पढ़ने के लिए कह रहे हैं जिसे मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक कहा जाता है। आपको क्या लगता है? हमने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया है, और साथ ही शुरुआत से ही बाइबल पढ़ी है, और बाइबल ने हमें इतना फायदा पहुंचाया है। हम बाइबिल को कभी नहीं छोड़ सकते!” मेरे पति ने भी आश्चर्यचकित होकर कहा, “ओह? तो यह सब चल रहा है?” एक पल के लिए गहराई से सोचने के बाद, उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि तुम सही हो। प्रभु के प्रति हमारा एक विवेक होना चाहिए, और हमें परमेश्वर में हमारे विश्वास में बाइबल पढ़नी चाहिए। हम कभी भी बाइबल को त्याग नहीं सकते।” मेरे पति के निश्चित जवाब ने बाइबल की रक्षा के प्रति मेरे विश्वास को और दृढ़ कर दिया।
शाम को, मैंने बाइबिल के सामने घुटने टेककर प्रभु से अधीरतापूर्वक प्रार्थना की, प्रभु को अपने झुंड पर नज़र रखने और लोगों को उन्हें चुराने न देने के लिए प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद, मैंने बाइबल को पहले की ही तरह पढ़ा, और जब रविवार आया तो मैंने अपनी बाइबिल ली और समय से पहले ही निकल पड़ी। मैंने मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक इस किताब को भी अपने बैग में रख लिया। क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे इस किताब के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए, मैं बुजुर्ग बहन और दूसरों की राय सुनना चाहती थी। जब मैंने बुजुर्ग बहन को देखा, तो मैंने उसके बारे में अपने सभी धारणाओं को उन्हें बताया। यह सुनने के बाद, बुजुर्ग बहन मुस्कुराईं और उन्होंने कहा, “बहन, यह निश्चित रूप से कोई मामूली मामला नहीं है, और कुछ ऐसा है जिसके साथ हमें बहुत सावधानी से पेश आना चाहिए। अगर हम आँखें बंद करके प्रभु की वापसी के मामले में राय बनाते हैं, तो प्रभु के विरुद्ध अपराध करना बहुत आसान है। ईमानदारी से प्रभु की उपस्थिति में थोड़ा और प्रार्थना करें, और मुझे विश्वास है कि प्रभु हमें रोशन और प्रबुद्ध करेंगे, ताकि हम उनकी इच्छा को समझ सकें। “मैंने कभी सोचा नहीं था कि बुजुर्ग बहन ऐसा कहेंगी लेकिन जब मैंने उनके रवैये को देखा, तो ऐसा लगा कि वह इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहले ही पहुँच गयीं थीं। उस शाम, मैं अपने बिस्तर में बेचैन होकर करवटें ले रही थी, और मैं सो नहीं पा रही थी। मैंने सोचा कि कैसे बुजुर्ग बहन ने ��्रभु में इतने सालों से विश्वास किया, और वह कितनी विवेक वाली थीं। उन वर्षों में कलीसिया में बड़ी ��राजकता थी, और वह पादरी और एल्डरों द्वारा दबाव डाले जाने और किनारे किये जाने पर भी, थ्री सेल्फ देशभक्ति आन्दोलन कलीसिया में अपनी पदवी को दृढ़तापूर्वक और डटकर एक किनारे करने और प्रार्थना और परमेश्वर की इच्छा खोजने के माध्यम से गृह कलीसिया पर्यावरण में प्रवेश करने में सक्षम हुईं। कारावास के खतरे में जीते हुए, उन्होंने प्रभु की सेवा जारी रखी। मैं उनका बहुत सम्मान और प्रशंसा करती थी, और मुझे विश्वास था कि वह इस समय प्रार्थना और खोज के बिना, केवल इच्छा पर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार नहीं करेंगी। “लेकिन इस किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, ने बाइबल को त्याग दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे किस तरह से देखते हैं, यह गलत ही है! प्रभु, मुझे क्या करना चाहिए?” उस समय, मुझे बुजुर्ग बहन की हिदायत याद आयी कि एक व्यक्ति को उन चीज़ों के बारे में अधिक प्रार्थना और खोज करनी चाहिए जिन्हें वह अच्छी तरह से समझ नहीं पाता है। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में उनके सामने घुटने टेककर प्रार्थना की: “अनुग्रह के प्रभु यीशु मसीह, हमारे रचियता और परिपूर्णकर्ता, कलीसिया के भाइयों और बहनों सभी ने बाइबिल को छोड़ दिया है, और एक किताब, मेमने द्वारा खोली गयी ��ुस्तक, पढ़ना शुरू कर दिया है। वे यह भी कहते हैं कि यह आपका नया वचन है, प्रभु! इतने सालों में, कब ऐसा हुआ है कि किसी ने परमेश्वर में विश्वास किया हो और बाइबिल को त्याग दिया हो? फिर भी आज, जिन भी चीज़ों की संगति सभाओं में की जाती है वह बाइबल की विषयवस्तु के अलावा कुछ और ही है। प्रभु! मुझे आप में किस तरह विश्वास करना चाहिए? मैं आपसे आगे का रास्ता दिखाने के लिए विनती करती हूँ, क्योंकि आप मेरे सामने दीपक की रोशनी हैं, मार्ग पर प्रकाश हैं, और मैं आपके मार्गदर्शन का इंतजार कर रही हूँ।”
उसके बाद भी मैं बाइबल को अपने साथ सभा में ले जाया करती थी, और जब मैं सुनती कि सभाओं में बताई गई विषयवस्तु बाइबल के वचन के अनुसार थी, तो मैं अनिच्छुक रूप से उसमें से थोड़ा स्वीकार कर लेती। जो कुछ भी बाइबल के अनुसार नहीं होता था, उसे न सुनने का नाटक करती थी, इस पूरे समय उस दिन की प्रतीक्षा करते हुए कि भाई-बहन सत्य के प्रति सचेत हो जाएंगे। लेकिन ऐसी ही बने रहते हुए, मैंने पाया कि भाइयों और बहनों की हालत निरंतर बेहतर होती जा रही थी, और उनमें से हर एक के चेहरे खुशी से भरे हुए थे। दूसरी तरफ, मेरी मनोदशा धीरे-धीरे और खराब होती जा रही थी, और भाइयों और बहनों का जवाब देते समय मुझे मुस्कुराने के लिए खुद को मजबूर करना पड़ता था। एक दिन सभा में, मैंने भाइयों और बहनों को बड़े जोश में उसकी संगति करते हुए देखा जो उन्होंने स्वीकार किया था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से सीखा था, और उनमें से हर कोई ऐसा उत्साहित था मानो कि उसे बस कोई खजाना मिल गया हो। जहाँ तक मेरी बात थी, ऐसा लगता था कि जिस बारे में वे संगति कर रहे हैं उसमें से मैं शायद ही कुछ समझ पा रही थी, और मैं काठ के समान मूर्ख थी। मेरे पास कहने के लिए एक वाक्य भी नहीं था, और केवल बेवकूफों की तरह बस कोने में खड़ी ही रह सकती थी। मुझे दिल में बहुत दुख और बेचैनी महसूस हुई। मैं केवल अपने दिल में प्रभु को रोकर पुकार सकती थी, “प्रभु! इससे पहले, आपने मेरे साथ बहुत अनुग्रह के साथ व्यवहार किया, और आप अक्सर मुझे प्रबुद्ध करते थे। ऐसा क्यों है कि अब आप मुझे प्रबुद्ध नहीं कर रहे हैं? क्या यह हो सकता है कि आप मुझे नहीं चाहते हैं? प्रभु, आप मेरी एकमात्र आशा हैं, और मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझे ना त्यागें…” भले ही मैंने बहुत प्रयास से प्रभु को पुकारा, फिर भी मुझे प्रभु से कोई प्रतिक्रिया या सांत्वना नहीं महसूस हुई। मेरा दिल ठंडा पड़ गया: प्रभु मुझे नहीं चाहते…
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जब मैं घर लौटी, तो मैं अपने दिल के दुःख को और सहन नहीं कर पा रही थी। मैं अपने बिस्तर पर सीधी लेट गयी और बिना सोचे विचारे प्रभु को पुकारा: “हे प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्यार करती हूँ, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे हालात सामने आते हैं, मैं बाइबल को यों ही त्याग नहीं सकती और आपसे दूर नहीं रह सकती। मैंने कई वर्षों से आप में विश्वास किया है, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आत्मा में ऐसा अंधकार महसूस नहीं किया है। प्रभु! मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझसे अपना चेहरा दूर न करें। आप मुझ पर दया करें। भाइयों और बहनों का कहना है कि नए वचन आपकी वाणी हैं, आप लौट आए हैं। इन वचनों को पढ़ने से उन सभी को बहुत कुछ मिला है, और वे सभी खुशी खुशी रह रहे हैं, फिर भी मैं अंधेरे में गिर गयी हूँ और अब और आपकी उपस्थिति महसूस नहीं कर पा रही हूँ। प्रभु! यह न जानते हुए कि इन सबका कैसे सामना करना है, मैं अपने दिल में बहुत पीड़ा भोग रही हूँ और मैं परेशान भी हूँ। प्रभु! क्या यह किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, सच में ��ौटने के बाद की आपकी वाणी है? यदि ऐसा है, तो मैं आपसे प्रभुद्धता और मार्गदर्शन के लिए विनती करती हूँ। मुझे अपनी वाणी समझने दें, क्योंकि मैं भी आपका अनुसरण करना चाहती हूँ। उस बिंदु पर प्रार्थना में, मेरे मन में प्रभु यीशु की मेरे द्वार पर खटखटाते हुए एक छवि उभरी, और ऐसा लगा कि मानो प्रभु बहुत समय पहले से बाहर मेरा इंतज़ार कर रहें हों। मैं चकित हो गयी और अचानक मुझे एहसास हुआ कि यह मैं थी जिसने प्रभु यीशु पर द्वार बंद कर रखा था। मैंने तुरंत खुद को दोषी ठहराया, पश्चाताप किया, और आभार के आँसुओं को बहते हुए महसूस किया। मैं आँसू पोंछ भी ना पाई और जल्दी से फर्श से उठने लगी। मैंने अपनी बाइबिल निकाली और प्रकाशितवाक्य 3:20-22 पढ़ा: “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ। जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया। जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।” मुझे यकीन था कि यह पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता थी। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में फिर से घुटने टेके, पश्चाताप के मेरे आँसू निरंतर बह रहे थे: “मेरे प्रभु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने सोचा ना था कि मैं आपके आगमन के साथ ऐसा व्यवहार करुँगी… वास्तव में मैं अंधी और अज्ञानी थी और आपकी वाणी को समझ नहीं सकी, और आपको दरवाजे के बाहर बंद कर दिया… मेरे कारण आपको दर्द और निराशा का अनुभव हुआ… अगर आपकी कृपा न होती, तो मैं अभी भी अन्धकार में रहते हुए, आपकी वाणी का त्याग कर रही होती। सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं आपकी ओर आना चाहती हूँ आपका वचन स्वीकार करना चाहती हूँ, और आपसे मेरे पापों से अपना मुख फेरने के लिए, और मुझ पर अपना उद्धार का कार्य जारी रखने की विनती करती हूँ।” अपनी प्रार्थना के बाद, अपने दिल में मैंने अद्वितीय स्वतन्त्रता का अनुभव किया, और ऐसा लगा की मेरे दिल पर रखा भारी पत्थर हटा दिया गया हो। मेरा दिल कितना हल्का महसूस हो रहा था! इसके बाद, जब भी मेरे पास समय होता मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ती। मैं हर खोये समय को पूरा करने के लिए उत्सुक थी, लेकिन मैं अभी भी बाइबल को छोड़ परमेश्वर के काम के विषय में अपनी आत्मा की गहराई में परेशानी महसूस कर रही थी।
एक दिन मैंने परमेश्वर का वचन खोला और पढ़ा: “परमेश्वर में विश्वास करते हुए बाइबल के समीप कैसे जाना चाहिए? यह एक सैद्धांतिक प्रश्न है। …बहुत सालों से, लोगों के विश्वास का परम्परागत माध्यम (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत के विषय में) बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में वि��्वास नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक दुष्ट पंथ और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकों को पढ़ते हैं, तो इन पुस्तकों की बुनियाद, बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम कहते हो कि तुम प्रभु में विश्वास करते हो, तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, तुम्हें बाइबल खानी और पीनी चाहिए, बाइबल के अलावा तुम्हें किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए जिस में बाइबल शामिल नहीं हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। उस समय से जब बाइबल थी, प्रभु के प्रति लोगों का विश्वास बाइबल के प्रति विश्वास रहा है। यह कहने के बजाए कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने की अपेक्षा की उन्होंने बाइबल पढ़नी आरम्भ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरम्भ कर दिया है; और यह कहने की अपेक्षा कि वे प्रभु के सामने वापस आ गए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने वापस आ गए हैं” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “बाइबल के विषय में (1)”)। परमेश्वर के वचन के इस अवतरण को पढ़ने के बाद, ऐसा लगा कि मैं परमेश्वर के साथ आमने सामने हूँ। हाँ, जो मैं सोच रही थी वह वही था जो परमेश्वर ने प्रकट किया था; मैं सोचती थी कि एक व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने के लिए बाइबल पढ़ने की ज़रूरत है और बाइबिल के अलावा वह किसी अन्य पुस्तक को नहीं पढ़ सकता, अन्यथा वह परमेश्वर को धोखा दे रहा था। लेकिन मैं अभी भी उलझन में थी: “क्या बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गई है? प्रभु में विश्वास करते हुए, क्या हम बाइबल का पालन नहीं कर रहे हैं? फिर, बाइबिल की उपस्थिति और परमेश्वर की उपस्थिति में लौटने के बीच वास्तव में कितना बड़ा अंतर है?” मैंने परमेश्वर के वचन में जवाब खोजना जारी रखा। इसके बाद जल्द ही, मैंने देखा कि परमेश्वर का वचन कहता है: “बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबीयों की अनेक भविष्यवाणियों और साथ ही उस समय उसके कार्य में यहोवा के कुछ कथनों को प्रलेखित करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को ‘पवित्र’ (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। वास्तव में, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग केवल इसलिए इस रीति से इस पुस्तक की ओर संकेत करते हैं क्योंकि परमेश्वर के जीवधारी अपने सृष्टिकर्ता के प्रति बहुत श्रद्धावान हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक ‘स्वर्गीय पुस्तक’ कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा द्वारा व्यक्तिगतरूप से इसका नाम नहीं रखा गया था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना कामार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का ग्रन्थकार परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। ‘पवित्र’ बाइबल ही केवल वह सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य के ��्वारा दिया गया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि इस पुस्तक को यहोवा के द्वारा नहीं लिखा गया था, और यीशु के द्वारा तो कदापि नहीं। इसके बजाए, यह अनेक प्राचीन नबीयों, प्रेरितों और पैगंबरों का लेखा-जोखा है, जिन्हें बाद की पीढ़ियों के द्वारा प्राचीन लेखों की एक ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया गया था जो, लोगों को, विशेष रूप से पवित्र दिखाई देती है, एक ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गम्भीर रहस्य हैं जो भविष्य की पीढ़ियों के द्वारा प्रकट किए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। वैसे तो, लोग यह विश्वास करने में और भी अधिक उतारू हो गए कि यह पुस्तक एक ‘दिव्य पुस्तक’ है। चार सुसमाचारों और प्रकाशित वाक्य की पुस्तक के शामिल होने के साथ ही, इसके प्रति लोगों की प्रवृत्ति किसी भी अन्य पुस्तक से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस ‘दिव्य पुस्तक’ को चीरफाड़ करने की हिम्मत नहीं करता है—क्योंकि यह बहुत ही अधिक ‘पवित्र’ है” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “बाइबल के विषय में (4)”)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ने अनन्त रहस्य का खुलासा किया है, और बाइबल के रहस्यों को समझाया है। इसने मेरे दिल की कठिनाइयों को भी समझाया है। परमेश्वर का वचन कहता है: “बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है।” इसके बारे में सावधानी से सोचते हुए, मैंने निष्कर्ष निकाला: “यह वास्तव में इसी तरह है, और बाइबल में जो कुछ भी दर्ज किया गया है वह वास्तव में इस्राएल में किए गए परमेश्वर के काम का इतिहास है। यह वह काम है जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में किया था, परन्तु परमेश्वर वह परमेश्वर हैं जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी और सबकुछ बनाया है, और पूरी मानवजाति पर भी शासन करते हैं। परमेश्वर हमेशा मानवजाति के लिए मार्गदर्शन और आपूर्ति प्रदान करते हैं, तो वह केवल इस्राएल में कैसे काम कर सकते हैं? वे केवल वो कैसे कह सकते हैं जो बाइबल में है? बाइबिल को लोगों द्वारा ‘पवित्र पुस्तक’ कहा जाता है, क्योंकि परमेश्वर ने जो कुछ कहा है, यह उसे दर्ज करती है। वे इसे परमेश्वर के प्रति अपने आदर के कारण इसे यह मानद उपाधि देते हैं, लेकिन वास्तव में बाइबिल के लेखक प्राचीन संत, नबी और प्रेरित हैं, परमेश्वर नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गयी है, और यह पूरा परमेश्वर का वचन नहीं है। यह परमेश्वर को गवाही देने के लिए केवल एक ऐतिहासिक पुस्तक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रभु यीशु ने कहा: ‘तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते‘ (यूहन्ना 5:39–40)।” प्रभु यीशु के वचन की तुलना में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़ कर, मैं अचानक प्रभु के उन वचनों को समझ गयी। इस पर, मैंने खुद से पूछा: “परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, और जीवन का झरना हैं। परमेश्वर स्वर्ग, पृथ्वी, और उसमें सब कुछ बना ��कते हैं, और सभी चीजों पर शासन करते हैं। क्या बाइबल यह काम कर सकती है? नहीं कर सकती। इस तरह इसे देखकर, ऐसा लगता है कि बाइबल निश्चित रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है। परमेश्वर और बाइबिल एक बराबर स्तर पर नहीं हैं। मुझे परमेश्वर के पदचिन्हों का पालन करना चाहिए, और बाइबल को पकड़े हुए परमेश्वर के नए काम को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।” जितना मैंने परमेश्वर के वचन पर विचार किया, उतना ही मुझे बाइबल के सार और इसके अंदर की कहानी के बारे में ज्ञान मिला, और उतना ही अधिक मुझे अपमान और शर्मिंदगी महसूस हुयी। मैंने उन धारणाओं के बारे में सोचा जिन्हें मैंने परमेश्वर में विश्वास में इतने सालों तक संजोया था, और मैंने सोचा था कि बाइबिल परमेश्वर जितनी ही महत्वपूर्ण थी। मैंने उनके साथ समान रूप से व्यवहार किया, और सोचा कि बाइबल को छोड़ना मतलब परमेश्वर में विश्वास नहीं करना था। लेकिन वास्तव में, मैं बाइबल के सार और उसके मूल मूल्य के बारे में स्पष्ट नहीं थी, और कभी नहीं सोचा था कि प्रभु में विश्वास करने और बाइबल में विश्वास करने के बीच क्या अंतर था। परमेश्वर में विश्वास करने का व्यावहारिक अर्थ अज्ञात था, और वास्तव में मैंने अपनी धारणाओं को सत्य के रूप में माना, और बकवास बातें कहीं। मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के काम और वचन को अस्वीकार कर दिया, और वास्तव में बहुत मूर्ख और अज्ञानी थी, बहुत अहंकारी और अविवेकी थी। परन्तु परमे��्वर ने मुझसे मेरी अज्ञानता के आधार पर व्यवहार नहीं किया, और मेरी निंदा नहीं की, लेकिन अब भी मुझे प्रबुद्ध किया और मार्गदर्शन दिया। उन्होंने मुझे बाइबल से कदम-ब-कदम दूर किया, और मैं परमेश्वर के सिंहासन के सामने आयी, ताकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का पोषण और जीवन प्राप्त कर सकूँ और धीरे-धीरे सत्य में से थोड़ा समझ सकूँ और बाइबल के सार को जान सकूँ। मेरे दिल का दरवाजा जो इतने लंबे समय तक मुहरबंद था अंततः परमेश्वर के लिए खुल गया, और अब मैं परमेश्वर के उद्धार से दूर नहीं जा सकती थी। इसके बजाय, परमेश्वर की नई वाणी में, सिंहासन से बहने वाले जीवन जल के प्रावधान का जितना चाहूं उतना आनंद उठाती हूँ। मैं ईमानदारी से परमेश्वर का धन्यवाद और उनकी स्तुति करती हूँ!
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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Coronavirus: BARC ने तैयार किया हाई-क्वॉलिटी मास्क, PPE दोबारा इस्तेमाल करने की तैयारी
Coronavirus Latest Mask: कोरोना वायरस से बचने (Coronavirus Prevention) के लिए मुंबई स्थित भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में एक हाई-क्वॉलिटी मास्क तैयार किया गया है। उम्मीद की जा रही है इसकी कीमत भी ज्यादा नहीं होगी (Cheap Coronavirus Mask)।
Edited By Shatakshi Asthana | एएनआई | Updated: 14 Jun 2020, 12:27:00 AM IST
दिल्ली में कोरोना की स्थिति पर गृहमंत्री अमित शाह करेंगे केजरीवाल, बैजल के साथ बैठक
हाइलाइट्स
कोरोना वायरस से बचाएगा हाई-क्वॉलिटी मास्क
भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर ने किया ह��� तैयार
डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक एनर्जी ने दी जानकारी
HEPA फिल्टर के इस्तेमाल से डिवेलप किया गया
PPE को दोबारा इस्तेमाल करने की भी तैयारी
नई दिल्ली/मुंबई कोरोना वायरस से निपटने के लिए नए और बेहतर तरीके खोजने की कोशिशें लगातार जारी हैं। ऐसे ही एक कोशिश के तहत डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक के मुंबई स्थित भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर में हाई-क्वॉलिटी का फेस मास्क डिवेलप किया गया है। मास्क HEPA (हाई एफिशेंसी पर्टिकुलेट एयर) फिल्टर के इस्तेमाल से डिवेलप किया गया है और उम्मीद की जा रही है कि इसकी कीमत भी ज्यादा नहीं होगी। PPE के दोबारा इस्तेमाल की तैयारी डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक एनर्जी की कम से कम 30 यूनिट्स हैं जिनमें शिक्षण संस्थान, वित्त पोषित अस्पताल और पब्लिक सेक्टर यूनिट्स हैं। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक हाई-क्वॉलिटी फेस मास्क के अलावा, वैज्ञानिकों ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट के दोबारा इस्तेमाल के लिए एक प्रोटोकॉल भी डिवेलप किया है। PPE को रेडियेशन से स्टेरलाइज किया जाएगा। डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक एनर्जी के इन-चार्ज जितेंद्र सिंह ने बताया कि PPE के दोबारा इस्तेमाल के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) पर स्वास्थ्य मंत्रालय विचार कर रहा है।
दिल्ली में फिर 2000 से अधिक केस, पीएम मोदी ने की स्थिति की समीक्षा
‘अब पूरे देश में काम कर रहे’ सिंह ने बताया, ‘मोदी सरकार की अहम उप्लब्धियों में से एक यह है कि हमने अटॉमिक एनर्जी की गतिविधियों को देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाया है जबकि अब तक यह ज्यादातर दक्षिण भारत में या महाराष्ट्र की तरह पश्चिम में रहा है।’ इससे पहले देश और खासकर राजधानी दिल्ली में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ स्थिति की समीक्षा की।
देश में तेजी से बढ़ रहे मामले देश में कोरोना के मामले अब तेजी से बढ़ रहे हैं। कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र में आज 3427 नए मामलों का पता चला और 113 मरीजों को मौत हो गई। कोरोना से कराह रही मुंबई में 1383 नए मरीजों का पता चला और 69 की मौत हो गई। शहर में पिछले 24 घंटे में चार पुलिसकर्मियों की भी मौत हो गई। दिल्ली में एक बार फिर 2000 से अधिक मामले सामने आए जबकि अहमदाबाद में आज 344 नए मामले आए।
महाराष्ट्र में 50 फीसदी सस्ता हुआ कोरोना टेस्टमहाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच उद्धव ठाकरे सरकार ने अहम कदम उठाया है। राज्य के प्राइवेट लैब्स में कोरोना जांच की फीस पहले के मुकाबले आधी हो गई है।
BARC ने बनाया बेहतर मास्क
Web Title bhabha atomic research center developed a high quality hepa filter mask for coronavirus prevention(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
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नेतृत्व का आधार योग्यता या परम्परा ........भाग 3
कुछ समय चलने के पश्चात सामव्रत राजगुरू के आश्रम पहुँच जाते हैं परन्तु जैसे ही वह राजगुरू की कुटिया में प्रवेश करते हैं एक शिष्य द्वारा उन्हें ज्ञात होता है कि राजगुरू अभी तक तपस्या पूरी करके नहीं लौटे हैं तब सामव्रत कहते कृपया करके आप मेरे ठहरने का प्रबंध आश्रम में ही करा दीजिये क्योंकि जब तक मैं राजगुरू से अपने प्रश्न का उत्तर ना पा लूँ मैं वापस नहीं लौटूँगा राजा सामव्रत के रहने का प्रबंध आश्रम में ही कर दिया जाता है एक माह के पश्चात राजगुरू तपस्या से लौट कर आ जाते हैं आने के कुछ समय पश्चात वह स्वयं जाकर राजा सामव्रत से भेंट करते हैं और उनके इस तरह आश्रम में आने और एक माह तक रूकने का कारण पूछते हैं सामव्रत:- राजगुरू कदाचित आपका निर्णय अणुव्रत को राजा घोषित करने के बारे में उचित था क्योंकि अभी मैं अपने दोनों पुत्रों के अधिकार क्षेत्र की जो दशा और दिशा देखकर आ रहा हूँ उसके आधार पर कह रहा हूँ किन्तु मैं यहाँ यह जानने की उत्सुकता से आया हूँ कि क्षण भर में ही आप को कैसे ज्ञात हो गया कि कौन राजसिंहासन के योग्य है और कौन नहीं कृपया मुझे विस्तार पूर्वक बताने का कष्ट करें राजगुरू:-राजन मैंने क्यों अणुव्रत को राजा बनाने का निर्णय लिया था यह अगर मैं तुम्हें विस्तार पूर्वक भी बता दूँ तो भी आप के मन कुछ ना कुछ शंका रह ही जायेगी अगर आप ��पनी शंका का पूर्ण समाधान चाहते हैं तो आप को स्वयं मेरे साथ दोनों पुत्रों के अधिकार क्षेत्र की व्यवस्था का निरीक्षण करना होगा सामव्रत:- जैसी आपकी आज्ञा राजगुरू बतायें कब और किस पुत्र के अधिकार क्षेत्र की व्यवस्था को आप सर्वप्रथम आप देखना चाहते हैं राजगुरू:- राजन मैं अभी अभी तपस्या से आया हूँ कुछ दिन यहाँ रूक कर अपने आश्रम का हाल जानूंगा उसके बाद ही मैं व्यवस्था का निरीक्षण कर पाऊँगा तब तक आप अपने किसी भी पुत्र के पास जाकर रहिये उचित समय पर मै स्वयं आकर आपसे भेंट करूँगा सामव्रत:- नहीं राजगुरू अब तो मैं आपको साथ लेकर ही जाऊँगा चाहें इसके लिए मुझे कितना ही समय आपके आश्रम में ही क्यों न रूकना पड़े अगर आपको मेरे यहाँ ठहरने में कोई आपत्ति न हो तो राजगुरू:- यह आप कैसी बात कर रहें हैं राजन यह राज्य आपका यह आश्रम आपका आप अपनी इच्छा अनुरूप जितना चाहें उतना समय यहाँ व्यतीत कर सकते हैं सामव्रत:- नहीं अब मैं राजा सामव्रत नहीं केवल सामव्रत हूँ जो एक याचक बन कर आपके पास आया है राजगुरू:- यह आपका बड़प्पन हैं राजन लेकिन अब इन बातों को रहने दीजिये मैं उचित समय पर आपको व्यवस्था निरीक्षण के संबंध में सूचित कर दूँगा तब तक इस आश्रम को अपना समझ कर यहाँ प्रसन्नता पूर्वक निवास कीजिए इस प्रकार राजगुरू सामव्रत से विदा लेकर अपने कक्ष में लौट जाते हैं एक सप्ताह के पश्चात राजगुरू सामव्रत को सूचित करते हैं कि कल वह पहले अग्रव्रत के अधिकार क्षेत्र की व्यवस्था का निरीक्षण करने जायेंगे अर्थात् आप जाने की तैयारी कर लें और इस तरह अगले दिन राजगुरू और सामव्रत अग्रव्रत के अधिकार क्षेत्र की ओर निकल जाते हैं वहाँ अग्रव्रत राजगुरू और अपने पिता श्री को प्रणाम करते हैं दोनों से आशीर्वाद ग्रहण करने के बाद सामव्रत के कहने पर अग्रव्रत अपने सभी पदाधिकारियों को राजमहल में आमंत्रित करते हैं राजगुरू एक एक करके सभी से मिलते हैं सभी से मिलने के पश्चात वह कहते हैं कि वह अब राज्य के अन्य कर्मचारियों से मिलने के उनकी नियुक्ति के स्थान पर जायेंगे और साथ साथ प्रजा जनों से भी भेंट कर उनका हाल जानेंगे और मेरे साथ केवल राजा सामव्रत ज���येंगे अग्रव्रत:- जैसी आपकी इच्छा राजगुरू अगर मेरी किसी भी प्रकार से आवश्यकता पड़े तो मुझे जरूर बताइयेगा इस प्रकार राजगुरू और सामव्रत दोनों व्यवस्था निरीक्षण के लिये निकल पड़ते हैं सबकुछ जाँचने के पश्चात वह सामव्रत से कहते हैं कि आप नगर के द्वार पर खड़े सैनिक से कहिये की नगर का एक स्तंभ गिर गया कृपया राजा अग्रव्रत को सूचित कर उसे पुनः स्थापित करा दीजिये सैनिक:-मैं तो आपको जानता तक नहीं फिर मैं आपके कार्य के लिये राजा से क्यों कहूँ सामव्रत:- मगर वह स्तंभ तो नगर की सम्पत्ति है और उसे ठीक प्रकार से रखना और उसकी पुनर्स्थापना कराना राजा का कर्तव्य है सैनिक:- वह सबकुछ में नहीं जानता मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि स्तंभ के पुनर्स्थापना से आपको निश्चित ही कोई व्यक्तिगत लाभ होगा और जब आपका लाभ है तो मैं क्यों न लाभ उठाऊँ इतना सुनकर सामव्रत राजगुरू के पास जाते हैं और उन्हें ��ारा वार्तालाप कह सुनाते हैं इस पर राजगुरू कहते कि आप उसे एक स्वर्णमुद्रा दे दीजिये और उससे शीघ्र ही राजा अग्रव्रत को इस संबंध में सूचित करने के लिये कहिये राजा सामव्रत राजगुरू के कहने पर सैनिक को एक स्वर्णमुद्रा दे देते हैं और स्तंभ के बारे में सूचित करने के लिये कहते हैं इसके बाद राजगुरू और सामव्रत आगे की ओर बढ़ जाते हैं और प्रजा जनों से वार्तालाप करने लगते हैं उसके बाद संध्या के समय वह राजमहल मैं पहुँचते हैं और अग्रव्रत से वार्तालाप करने लगते हैं बातों बातों में राजगुरू अग्रव्रत से पूछते हैं कि आज के दिन राज्य में हुई गतिविधियों या समस्या के बारे में हमें बतायें क्या कुछ खास रहा अग्रव्रत:- राजगुरू राज्य की गतिविधियां तो सामान्य थी किन्तु राज्य में एक स्तंभ के गिरने की सूचना मिली है तो उसके लिये मैंने महामंत्री को राजकोष से धन आवंटित कर उसे पुनर्स्थापित करने के लिये आदेश दे दिया है राजगुरू:- अग्रव्रत क्या तुम्हें ज्ञात है कि यह स्तंभ किस क्षेत्र में गिरा है अग्रव्रत:- नहीं राजगुरू मैं इन छोटी छोटी समस्याओं पर इतना विस्तार पूर्वक चर्चा नहीं करता हूँ यह तो एक विषय ऐसा था कि विचार-विमर्श के समय महामंत्री ने मुझे बताया कुछ देर पश्चात राजगुरू और सामव्रत अतिथि गृह में लौट आते हैं वहाँ सामव्रत कहते हैं कि राजगुरू यह क्या हो रहा है मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ और आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं जो स्तंभ गिरा ही नहीं उसके लिये धन आवंटित हो गया और जो धन आवंटित हुआ है अंत में वह कहाँ जायेगा एवं किस कार्य में उसका उपयोग होगा राजगुरू:-राजन अग्रव्रत के अधिकार क्षेत्र की दुर्दशा का कारण इसी प्रकार की स्थिति है जो कार्य होना है उसके लिए धन आवंटित नहीं होता और जो कार्य है ही नहीं उसके नाम पर धन आवंटित हो जाता है अब आपसे इस संबंध में विस्तार पूर्वक चर्चा में अणुव्रत के अधिकार क्षेत्र के भ्रमण के पश्चात ही करूँगा अब आप कल प्रात: काल ही वहाँ जाने की तैयारी कीजिए प्रात: काल ही राजगुरू एवं सामव्रत अणुव्रत के अधिकार क्षेत्र की ओर निकल जाते है वह सर्वप्रथम अणुव्रत से भेंट करते हैं अणुव्रत उन्हें प्रणाम करते हैं राजगुरू:- अणुव्रत हम तुम्हारे राज्य की व्यवस्था के संचालन का निरीक्षण करना चाहते हैं और साथ साथ ही तुम्हारे प्रजा जनों से भी कुछ वार्तालाप करेंगे अणुव्रत:- जैसी आपकी इच्छा राजगुरू अगर किसी प्रकार से भी मेरी आवश्यकता हो तो कृपया अवश्य बताइयेगा इसके बाद राजगुरू और सामव्रत राज्य के सभी पदाधिकारियों से मिलते हैं और यहाँ भी वह सामव्रत को एक सैनिक से राज्य में स्तंभ के गिरने की सूचना अपने राजा तक पहुंचाने के लिए कहते हैं सामव्रत भी ठीक वैसा ही करते हैं सैनिक:- सर्वप्रथम आप मुझे यह बतायें कि आप कहाँ से आये हैं न जाने मुझे ऐसा क्यों प्रतीत हो रहा है कि आप इस राज्य के नहीं हैं सामव्रत:- आप ने बिल्कुल सही समझा है परन्तु अगर मैं इस राज्य का भी नहीं हूँ तब भी इससे आपकी समस्या तो कम नहीं हो जाती सैनिक:- आपने मेरी बात का गलत अर्थ निकाला है मुनिवर मैं तो आपका आधार व्यक्त करना चाहता था कि आपने इस राज्य का न होते हुए भी मुझे इस संबंध में सूचित किया लेकिन अब मैं आपके साथ चलकर वह स्थान देखना चाहता हूँ जहाँ वह स्तंभ गिरा हुआ है। यह सुनकर सामव्रत थोड़े से सकुचाते हुए कहते हैं कि मैं अभी कुछ समय पश्चात आकर आपको वहाँ ��े चलूँगा और वह राजगुरू के समीप जाकर उन्हें सारी बात बता देते हैं राजगुरू:- राजन जो मुझे जानना था वह मैंने जान लिया है आइये अब लौट कर राजमहल को चलते हैं इस तरह दोनों अधिकार क्षेत्रों की समीक्षा कर सामव्रत एवं राजगुरू अणुव्रत के महल में लौट आते हैं वहाँ सामव्रत राजगुरू से कहते हैं क्या अब आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देंगे राजगुरू:- राजन आप मुझे दो के पश्चात अपने दोनों पुत्रों के साथ मेरे आश्रम में पधारें वहीं मैं आपके हर एक प्रश्न का उत्तर दे दूँगा इतना कहकर राजगुरू आश्रम में लौट जाते हैं दो दिन के पश्चात सामव्रत अपने पुत्रों के साथ राजगुरू के आश्रम में पहुँच कर उन्हें प्रणाम करते हैं राजगुरू उन्हें आशीर्वाद देते हुए आसन ग्रहण करने के लिए कहते हैं तदुपरांत वार्तालाप प्रारंभ होता है राजगुरू:- राजन पहले मैं आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व आपके दोनों पुत्रों से कुछ जानना चाहूँगा यह कहते हुए उन्होंने अणुव्रत को कुटिया के बाहर भेजकर अग्रव्रत से पूछा कि तुमने मेरे द्वारा दिये गये टुकड़े को जूते में धारण क्यों किया अग्रव्रत:- राजगुरू एक छोटे से तुच्छ काँच के टुकड़े की इससे बेहतर और क्या जगह हो सकती है बल्कि मैं तो उसे धारण ही नहीं करना किंतु ऐसा करना आपके आदेश का अपमान होता और इस बारे में मैंने अपने साले श्री और अपनी पत्नी से भी विचार-विमर्श किया था उन दोनों यही कहा कि अगर इसे धारण करके ही राजगुरू के सम्मुख जाना है तो कहीं भी धारण कर लो और तुच्छ वस्तु के लिये उचित स्थान पैरों की जूती ही होती है। राजगुरू:- अच्छा अब तुम कुटिया के बाहर प्रतिक्षा करो और अणुव्रत को अंदर भेज दो अग्रव्रत के बाहर जाते ही अणुव्रत के आने पर राजगुरू:- अच्छा अणुव्रत तुमने मेरे द्वारा दिये हुए काँच के टुकड़े को अपने राजमुकुट में ही क्यों धारण किया अणुव्रत:-राजगुरू यह एक कोई काँच का टुकड़ा नहीं बल्कि एक बहुमूल्य हीरा है और हीरा मूल्य हमारे समाज में सभी आभूषणों से अधिक होता है और उसे उसकी प्रतिष्ठा के अनुसार ही धारण करना चाहिए अगर आप इसे शरीर के किसी निम्न भाग में धारण करते हैं तो यह हीरे की प्रतिष्ठा के साथ साथ आपकी शोभा को भी गिराता है। राजगुरू:- पुत्र तुम्हें इसका आभास कब हुआ कि मैंने तुम्हें काँच का नहीं हीरे का टुकड़ा दिया है अणुव्रत:- मुझे इसका आभास उस समय ही हो गया था जब आपने मुझे वह हीरे का टुकड़ा दिया था क्योंकि एक राजगुरू एक राजपुत्र को काँच का टुकड़ा कभी आशीर्वाद स्वरूप नहीं देगा अगर ऐसा है भी तो इसमें कोई गूढ़ रहस्य अवश्य होगा इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने एक जौहरी से इसकी जाँच करायी उन्होंने मुझे बताया कि यह एक उत्तम प्रकार का हीरा है यह दिखने में तो साधारण लगता है लेकिन है विशेष यह मुख्य रूप से किसी उच्च स्थान पर पर धारण करने योग्य है अर्थात् मेरा यह अभिप्राय है कि आप इसे अपने राजमुकुट में धारण करें प्रमुख विशेषता यह है कि ज्यों ज्यों अंधकार बढ़ेगा त्यों त्यों इसका प्रकाश भी बढ़ता जाएगा राजगुरू:- अच्छा पुत्र अब तुम बाहर जाकर अपने भ्राता के साथ ��श्रम में कुछ देर भ्रमण कर आओ तब तक मैं आपके पिता श्री से कुछ वार्तालाप कर लेता हूँ अणुव्रत राजगुरू को प्रणाम कर बाहर आ जाते हैं और अपने भ्राता के साथ आश्रम भ्र��ण को निकल जाते हैं शेष कहानी अगले भाग में ........................🙏🙏
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खटखटाओ और तुम्हारे लिए द्वार खोला जायेगा
1989 में, मैंने अपनी माँ के साथ प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया। जब मैंने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया, तब अक्सर सभाओं में भाग लेने और धर्मशास्त्रों को पढ़ने के माध्यम से, मुझे पता चला कि यह परमेश्वर था जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और उसमें सबकुछ बनाया था, और उसने मानवजाति बनाई थी, और यह परमेश्वर है जो मानवजाति के लिए सबकुछ प्रदान करता है। उस समय प्रचारक अक्सर हमें बताते थे, "चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, जब तक हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर हमारी मदद करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रभु ने कहा, 'माँग���, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा' (मत्ती 7:7–8)। प्रभु भरोसेमंद हैं, इसलिए यदि हमें कठिनाइयाँ होती हैं और हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं, तो प्रभु हमारी प्रार्थनाओं को सुनेंगे। वह बाइबल के वचनों के माध्यम से हमसे बात करते हैं, और सभी कठिनाइयों में हमारी अगुआई करते हैं"... उसके बाद, चाहे बड़े मामलें हो या छोटे, मैंने सबकुछ प्रभु को सौंप दिया। प्रभु ने वास्तव में मेरी प्रार्थनाओं को सुना और मुझे बाइबल के वचनों के माध्यम से राह दिखाई, और मैंने जो कुछ भी खोजा उन सबको फलीभूत किया। इस वजह से मैं बाइबल को अधिक से अधिक संजोने लगी, और यह कुछ ऐसा था जो मुझसे अलग नहीं हो सकता था, इसे मैं हर जगह अपने साथ रखती थी।
सितंबर 1997 में एक रविवार को, मैं हमेशा की तरह एक सभा में आयी, और एक बुजुर्ग बहन जो प्रचार कर रही थीं, उन्होंने कहा, "परमेश्वर को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद दें। आज मैंने इन दो युवा बहनों को हमारे साथ साहचर्य करने के लिए आमंत्रित किया है, और आपके मन में जो भी प्रश्न हों वो पूछ सकते हैं..." शरुआत से ही, मैं इन बुजुर्ग बहन को बहुत चाहती थी, जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही परमेश्वर में विश्वास करना शुरू कर दिया था, और जो अब 68 वर्ष की थीं। अपने 50 साल के विश्वास में, उन्होंने बाइबल को इतने उत्साह से पढ़ा था कि उन्होंने तीन प्रतियां घिस दीं थीं, और वह बाइबल में काफी प्रवीण थीं, लेकिन आज मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इन लगभग बीस साल की दो बहनों को हमें उपदेश देने दे रही हैं। उन्होंने परमेश्वर में कब से विश्वास किया था? वे हमें कौन सा संदेश देने में सक्षम थीं? मैं बहुत आश्वस्त नहीं थी, लेकिन चूँकि बुजुर्ग बहन ने इसकी सिफारिश की थी, मैंने कुछ भी नहीं कहा। जब युवा बहनों ने हमें प्रकाशितवाक्य 22:1-5 से जन्मी एक कविता, "जीवन जल की एक नदी" का एक पद गाना सिखाया, तो मैंने सोचा कि यह पद काफी नया और सुनने में अच्छा था, इसलिए मेरा दिल शांत हो गया। उसके बाद उन्होंने हमें एक और नया गीत, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले से ही पूर्व में प्रकट हो चुका है" गवाया और मैंने सोचा कि यह भजन भी बहुत अच्छा था, और इसमें विशेषता और ऊर्जा थी। मैंने सोचा कि कलीसिया में हमने पहले जो गाने गाये थे यह उनके मुकाबले लोगों को आस्था देने में ज़्यादा सक्षम था। उस पल में मेरे दिल में उन दो युवा बहनों को लेकर अब और द्वंद नहीं रह गया था। लेकिन जल्द ही, युवा बहनों में से एक ने प्रभु यीशु के पहले ही लौट आने की गवाही दी, और यह भी कहा कि आखिरी दिनों में परमेश्वर फिर से देहधारी होकर आये हैं, मनुष्य के पुत्र के रूप में प्रकट होकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु यीशु के छुटकारे के काम के आधार पर, उन्होंने वचन के काम का एक चरण सम्पादित किया है जो लोगों को शुद्ध करता है और उनका न्याय करता है, और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से छोटी पुस्तक खोली है... बात करते हुए, उसने बाइबिल को नीचे रख दिया और मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक नामक एक किताब ली, और मेरे भीतर घमासान मच गया: "ये लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन वास्तव में बाइबल नीचे रख देते हैं। यह निश्चित रूप से सही नहीं हो सकता! बाइबल पढ़े बिना प्रभु में विश्वास का क्या अर्थ है? हम बाइबल पर प्रभु में अपना विश्वास रखते हैं, और हमें इसे हमेशा पढ़ना चाहिए!" जैसे ही मैं उन्हें अस्वीकार करना चाहती थी, मैंने देखा कि बुजुर्ग बहन स्वीकृति में अपना सर हिला रहीं हैं, और मैंने उन शब्दों को निगल लिया जिनसे मैं उनका खंडन करने जा रही थी। मैंने सोचा, "यदि जो कुछ भी वे प्रचार कर रहीं हैं, उसे बुजुर्ग बहन स्वीकार करेंगी, तो मैं बाइबल के अपने ज्ञान से उन्हें अस्वीकार करने में शायद सक्षम नहीं हो पाऊँगी, और मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा। इसलिए उनके चले जाने के बाद बुजुर्ग बहन से बात करना बेहतर होगा। निश्चित रूप से बाइबल को पीछे छोड़ परमेश्वर पर विश्वास करना सही नहीं है, क्योंकि बाइबिल में लिखा है: 'सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा' (2 तीमुथियुस 3:16)। चूंकि बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गयी है, यह परमेश्वर की वाणी का प्रतिनिधित्व करती है। हम बाइबल का पालन करते हैं या नहीं, वास्तव में, इस महान विषय के संबंध में है कि हम आशीर्वाद प्राप्त करते हैं या दुर्भाग्य से पीड़ित होते हैं, और मुझे इस मामले की स्पष्ट समझ लेनी ही है। मुझे इन दो बहनों को हमें हमें धोखा देने और गुमराह करने नहीं देना चाहिए।" चिंता से भरपूर, मैं पूरे समय घबराई हुई थी। सभा खत्म होने तक इंतजार करना आसान नहीं था। मैं बार बार बुजुर्ग बहन की ओर देखती, कि वह कैसे स्पष्ट रूप उसे स्वीकार रही थीं जिसकी युवा बहनें संगति कर रही थीं। पूरे समय, वह शांत और खुश लग रही थीं, और मैं बड़बड़ाये बिना नहीं रह पायी: "आप क्यों कुछ नहीं कह रहीं हैं? क्या आप उन्हें बाइबल छोड़ कर यों ही इस तरह उपदेश देने देंगी? क्या इसे ही आप प्रभु के लिए एक अच्छा प्रबंधक होना कहतीं हैं?"
घर वापस जाते हुए, जितना मैं सोचती उतना अधिक चिंतित होती जाती। "मैंने सात या आठ सालों तक बाइबल पढ़ी है, और अब कुछ लोग हैं जो मुझे बाइबल छोड़ने के लिए कह रहे हैं। साथ ही, अप्रत्याशित रूप से बुजुर्ग बहन को भी लगता है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यह परमेश्वर की मांगों के अनुसार कैसे है? लेकिन कलीसिया के अधिकांश भाइयों और बहनों ने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार कर लिया है, और यदि मैं इसे स्वीकार नहीं करती हूँ, तो यदि थोड़ी भी सम्भावना हुई कि प्रभु सच में वापस आ गये हैं और वास्तव में वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, तो क्या मैं परमेश्वर की वापसी का स्वागत करने का अवसर नहीं खो दूँगी?" फिर भी, इस बारे में मैं पुनर्विचार करने लगी। मैं बस यों ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को स्वीकार नहीं कर सकती थी और बाइबिल को वैसे नहीं त्याग सकती थी जैसा कि उन्होंने किया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी? क्योंकि मेरे दिल में चैन नहीं था, और मेरे पैरों के नीचे की सड़क उबड़-खाबड़ और ऊँची-नीची लग रही थी, मैं परेशान घर लौट आयी। जब मेरे पति ने मेरे उलझे हुए भाव देखे, तो उन्होंने तुरंत मुझसे पूछा, "तुम इतनी विचलित क्यों हो? तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?" "ओह! रहने दीजिये, आज दो युवा बहनें कलीसिया में आईं और हमें उपदेश दिया, और कहा कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुके हैं और उन्होंने छोटी पुस्तक खोल दी है। उन्होंने हममें से प्रत्येक को भी एक किताब दी, और कहा कि यह परमेश्वर का नया वचन है। भविष्य में, वे हमें केवल इस किताब को पढ़ने के लिए कह रहे हैं जिसे मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक कहा जाता है। आपको क्या लगता है? हमने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया है, और साथ ही शुरुआत से ही बाइबल पढ़ी है, और बाइबल ने हमें इतना फायदा पहुंचाया है। हम बाइबिल को कभी नहीं छोड़ सकते!" मेरे पति ने भी आश्चर्यचकित होकर कहा, "ओह? तो यह सब चल रहा है?" एक पल के लिए गहराई से सोचने के बाद, उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि तुम सही हो। प्रभु के प्रति हमारा एक विवेक होना चाहिए, और हमें परमेश्वर में हमारे विश्वास में बाइबल पढ़नी चाहिए। हम कभी भी बाइबल को त्याग नहीं सकते।" मेरे पति के निश्चित जवाब ने बाइबल की रक्षा के प्रति मेरे विश्वास को और दृढ़ कर दिया।
शाम को, मैंने बाइबिल के सामने घुटने टेककर प्रभु से अधीरतापूर्वक प्रार्थना की, प्रभु को अपने झुंड पर नज़र रखने और लोगों को उन्हें चुराने न देने के लिए प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद, मैंने बाइबल को पहले की ही तरह पढ़ा, और जब रविवार आया तो मैंने अपनी बाइबिल ली और समय से पहले ही निकल पड़ी। मैंने मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक इस किताब को भी अपने बैग में रख लिया। क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे इस किताब के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए, मैं बुजुर्ग बहन और दूसरों की राय सुनना चाहती थी। जब मैंने बुजुर्ग बहन को देखा, तो मैंने उसके बारे में अपने सभी धारणाओं को उन्हें बताया। यह सुनने के बाद, बुजुर्ग बहन मुस्कुराईं और उन्होंने कहा, "बहन, यह निश्चित रूप से कोई मामूली मामला नहीं है, और कुछ ऐसा है जिसके साथ हमें बहुत सावधानी से पेश आना चाहिए। अगर हम आँखें बंद करके प्रभु की वापसी के मामले में राय बनाते हैं, तो प्रभु के विरुद्ध अपराध करना बहुत आसान है। ईमानदारी से प्रभु की उपस्थिति में थोड़ा और प्रार्थना करें, और मुझे विश्वास है कि प्रभु हमें रोशन और प्रबुद्ध करेंगे, ताकि हम उनकी इच्छा को समझ सकें। "मैंने कभी सोचा नहीं था कि बुजुर्ग बहन ऐसा कहेंगी लेकिन जब मैंने उनके रवैये को देखा, तो ऐसा लगा कि वह इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहले ही पहुँच गयीं थीं। उस शाम, मैं अपने बिस्तर में बेचैन होकर करवटें ले रही थी, और मैं सो नहीं पा रही थी। मैंने सोचा कि कैसे बुजुर्ग बहन ने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया, और वह कितनी विवेक वाली थीं। उन वर्षों में कलीसिया में बड़ी अराजकता थी, और वह पादरी और एल्डरों द्वारा दबाव डाले जाने और किनारे किये जाने पर भी, थ्री सेल्फ देशभक्ति आन्दोलन कलीसिया में अपनी पदवी को दृढ़तापूर्वक और डटकर एक किनारे करने और प्रार्थना और परमेश्वर की इच्छा खोजने के माध्यम से गृह कलीसिया पर्यावरण में प्रवेश करने में सक्षम हुईं। कारावास के खतरे में जीते हुए, उन्होंने प्रभु की सेवा जारी रखी। मैं उनका बहुत सम्मान और प्रशंसा करती थी, और मुझे विश्वास था कि वह इस समय प्रार्थना और खोज के बिना, केवल इच्छा पर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार नहीं करेंगी। "लेकिन इस किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, ने बाइबल को त्याग दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे किस तरह से देखते हैं, यह गलत ही है! प्रभु, मुझे क्या करना चाहिए?" उस समय, मुझे बुजुर्ग बहन की हिदायत याद आयी कि एक व्यक्ति को उन चीज़ों के बारे में अधिक प्रार्थना और खोज करनी चाहिए जिन्हें वह अच्छी तरह से समझ नहीं पाता है। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में उनके सामने घुटने टेककर प्रार्थना की: "अनुग्रह के प्रभु यीशु मसीह, हमारे रचियता और परिपूर्णकर्ता, कलीसिया के भाइयों और बहनों सभी ने बाइबिल को छोड़ दिया है, और एक किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, पढ़ना शुरू कर दिया है। वे यह भी कहते हैं कि यह आपका नया वचन है, प्रभु! इतने सालों में, कब ऐसा हुआ है कि किसी ने परमेश्वर में विश्वास किया हो और बाइबिल को त्याग दिया हो? फिर भी आज, जिन भी चीज़ों की संगति सभाओं में की जाती है वह बाइबल की विषयवस्तु के अलावा कुछ और ही है। प्रभु! मुझे आप में किस तरह विश्वास करना चाहिए? मैं आपसे आगे का रास्ता दिखाने के लिए विनती करती हूँ, क्योंकि आप मेरे सामने दीपक की रोशनी हैं, मार्ग पर प्रकाश हैं, और मैं आपके मार्गदर्शन का इंतजार कर रही हूँ।"
उसके बाद भी मैं बाइबल को अपने साथ सभा में ले जाया करती थी, और जब मैं सुनती कि सभाओं में बताई गई विषयवस्तु बाइबल के वचन के अनुसार थी, तो मैं अनिच्छुक रूप से उसमें से थोड़ा स्वीकार कर लेती। जो कुछ भी बाइबल के अनुसार नहीं होता था, उसे न सुनने का नाटक करती थी, इस पूरे समय उस दिन की प्रतीक्षा करते हुए कि भाई-बहन सत्य के प्रति सचेत हो जाएंगे। लेकिन ऐसी ही बने रहते हुए, मैंने पाया कि भाइयों और बहनों की हालत निरंतर बेहतर होती जा रही थी, और उनमें से हर एक के चेहरे खुशी से भरे हुए थे। दूसरी तरफ, मेरी मनोदशा धीरे-धीरे और खराब होती जा रही थी, और भाइयों और बहनों का जवाब देते समय मुझे मुस्कुराने के लिए खुद को मजबूर करना पड़ता था। एक दिन सभा में, मैंने भाइयों और बहनों को बड़े जोश में उसकी संगति करते हुए देखा जो उन्होंने स्वीकार किया था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से सीखा था, और उनमें से हर कोई ऐसा उत्साहित था मानो कि उसे बस कोई खजाना मिल गया हो। जहाँ तक मेरी बात थी, ऐसा लगता था कि जिस बारे में वे संगति कर रहे हैं उसमें से मैं शायद ही कुछ समझ पा रही थी, और मैं काठ के समान मूर्ख थी। मेरे पास कहने के लिए एक वाक्य भी नहीं था, और केवल बेवकूफों की तरह बस कोने में खड़ी ही रह सकती थी। मुझे दिल में बहुत दुख और बेचैनी महसूस हुई। मैं केवल अपने दिल में प्रभु को रोकर पुकार सकती थी, "प्रभु! इससे पहले, आपने मेरे साथ बहुत अनुग्रह के साथ व्यवहार किया, और आप अक्सर मुझे प्रबुद्ध करते थे। ऐसा क्यों है कि अब आप मुझे प्रबुद्ध नहीं कर रहे हैं? क्या यह हो सकता है कि आप मुझे नहीं चाहते हैं? प्रभु, आप मेरी एकमात्र आशा हैं, और मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझे ना त्यागें..." भले ही मैंने बहुत प्रयास स��� प्रभु को पुकारा, फिर भी मुझे प्रभु से कोई प्रतिक्रिया या सांत्वना नहीं महसूस हुई। मेरा दिल ठंडा पड़ गया: प्रभु मुझे नहीं चाहते...
जब मैं घर लौटी, तो मैं अपने दिल के दुःख को और सहन नहीं कर पा रही थी। मैं अपने बिस्तर पर सीधी लेट गयी और बिना सोचे विचारे प्रभु को पुकारा: "हे प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्यार करती हूँ, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे हालात सामने आते हैं, मैं बाइबल को यों ही त्याग नहीं सकती और आपसे दूर नहीं रह सकती। मैंने कई वर्षों से आप में विश्वास किया है, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आत्मा में ऐसा अंधकार महसूस नहीं किया है। प्रभु! मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझसे अपना चेहरा दूर न करें। आप मुझ पर दया करें। भाइयों और बहनों का कहना है कि नए वचन आपकी वाणी हैं, आप लौट आए हैं। इन वचनों को पढ़ने से उन सभी को बहुत कुछ मिला है, और वे सभी खुशी खुशी रह रहे हैं, फिर भी मैं अंधेरे में गिर गयी हूँ और अब और आपकी उपस्थिति महसूस नहीं कर पा रही हूँ। प्रभु! यह न जानते हुए कि इन सबका कैसे सामना करना है, मैं अपने दिल में बहुत पीड़ा भोग रही हूँ और मैं परेशान भी हूँ। प्रभु! क्या यह किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, सच में लौटने के बाद की आपकी वाणी है? यदि ऐसा है, तो मैं आपसे प्रभुद्धता और मार्गदर्शन के लिए विनती करती हूँ। मुझे अपनी वाणी समझने दें, क्योंकि मैं भी आपका अनुसरण करना चाहती हूँ। उस बिंदु पर प्रार्थना में, मेरे मन में प्रभु यीशु की मेरे द्वार पर खटखटाते हुए एक छवि उभरी, और ऐसा लगा कि मानो प्रभु बहुत समय पहले से बाहर मेरा इंतज़ार कर रहें हों। मैं चकित हो गयी और अचानक मुझे एहसास हुआ कि यह मैं थी जिसने प्रभु यीशु पर द्वार बंद कर रखा था। मैंने तुरंत खुद को दोषी ठहराया, पश्चाताप किया, और आभार के आँसुओं को बहते हुए महसूस किया। मैं आँसू पोंछ भी ना पाई और जल्दी से फर्श से उठने लगी। मैंने अपनी बाइबिल निकाली और प्रकाशितवाक्य 3:20-22 पढ़ा: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ। जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया। जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" मुझे यकीन था कि यह पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता थी। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में फिर से घुटने टेके, पश्चाताप के मेरे आँसू निरंतर बह रहे थे: "मेरे प्रभु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने सोचा ना था कि मैं आपके आगमन के साथ ऐसा व्यवहार करुँगी... वास्तव में मैं अंधी और अज्ञानी थी और आपकी वाणी को समझ नहीं सकी, और आपको दरवाजे के बाहर बंद कर दिया... मेरे कारण आपको दर्द और निराशा का अनुभव हुआ... अगर आपकी कृपा न होती, तो मैं अभी भी अन्धकार में रहते हुए, आपकी वाणी का त्याग कर रही होती। सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं आपकी ओर आना चाहती हूँ आपका वचन स्वीकार करना चाहती हूँ, और आपसे मेरे पापों से अपना मुख फेरने के लिए, और मुझ पर अपना उद्धार का कार्य जारी रखने की विनती करती हूँ।" अपनी प्रार्थना के बाद, अपने दिल में मैंने अद्वितीय स्वतन्त्रता का अनुभव किया, और ऐसा लगा की मेरे दिल पर रखा भारी पत्थर हटा दिया गया हो। मेरा दिल कितना हल्का महसूस हो रहा था! इसके बाद, जब भी मेरे पास समय होता मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ती। मैं हर खोये समय को पूरा करने के लिए उत्सुक थी, लेकिन मैं अभी भी बाइबल को छोड़ परमेश्वर के काम के विषय में अपनी आत्मा की गहराई में परेशानी महसूस कर रही थी।
एक दिन मैंने परमेश्वर का वचन खोला और पढ़ा: "परमेश्वर में विश्वास करते हुए बाइबल के समीप कैसे जाना चाहिए? यह एक सैद्धांतिक प्रश्न है। …बहुत सालों से, लोगों के विश्वास का परम्परागत माध्यम (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत के विषय में) बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक दुष्ट पंथ और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकों को पढ़ते हैं, तो इन पुस्तकों की बुनियाद, बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम कहते हो कि तुम प्रभु में विश्वास करते हो, तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, तुम्हें बाइबल खानी और पीनी चाहिए, बाइबल के अलावा तुम्हें किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए जिस में बाइबल शामिल नहीं हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। उस समय से जब बाइबल थी, प्रभु के प्रति लोगों का विश्वास बाइबल के प्रति विश्वास रहा है। यह कहने के बजाए कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने की अपेक्षा की उन्होंने बाइबल पढ़नी आरम्भ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरम्भ कर दिया है; और यह कहने की अपेक्षा कि वे प्रभु के सामने वापस आ गए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने वापस आ गए हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (1)")। परमेश्वर के वचन के इस अवतरण को पढ़ने के बाद, ऐसा लगा कि मैं परमेश्वर के साथ आमने सामने हूँ। हाँ, जो मैं सोच रही थी वह वही था जो परमेश्वर ने प्रकट किया था; मैं सोचती थी कि एक व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने के लिए बाइबल पढ़ने की ज़रूरत है और बाइबिल के अलावा वह किसी अन्य पुस्तक को नहीं पढ़ सकता, अन्यथा वह परमेश्वर को धोखा दे रहा था। लेकिन मैं अभी भी उलझन में थी: "क्या बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गई है? प्रभु में विश्वास करते हुए, क्या हम बाइबल का पालन नहीं कर रहे हैं? फिर, बाइबिल की उपस्थिति और परमेश्वर की उपस्थिति में लौटने के बीच वास्तव में कितना बड़ा अंतर है?" मैंने परमेश्वर के वचन में जवाब खोजना जारी रखा। इसके बाद जल्द ही, मैंने देखा कि परमेश्वर का वचन कहता है: "बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबीयों की अनेक भविष्यवाणियों और साथ ही उस समय उसके कार्य में यहोवा के कुछ कथनों को प्रलेखित करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को 'पवित्र' (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। वास्तव में, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग केवल इसलिए इस रीति से इस पुस्तक की ओर संकेत करते हैं क्योंकि परमेश्वर के जीवधारी अपने सृष्टिकर्ता के प्रति बहुत श्रद्धावान हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक 'स्वर्गीय पुस्तक' कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा द्वारा व्यक्तिगतरूप से इसका नाम नहीं रखा गया था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना कामार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का ग्रन्थकार परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। 'पवित्र' बाइबल ही केवल वह सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य के द्वारा दिया गया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि इस पुस्तक को यहोवा के द्वारा नहीं लिखा गया था, और यीशु के द्वार�� तो कदापि नहीं। इसके बजाए, यह अनेक प्राचीन नबीयों, प्रेरितों और पैगंबरों का लेखा-जोखा है, जिन्हें बाद की पीढ़ियों के द्वारा प्राचीन लेखों की एक ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया गया था जो, लोगों को, विशेष रूप से पवित्र दिखाई देती है, एक ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गम्भीर रहस्य हैं जो भविष्य की पीढ़ियों के द्वारा प्रकट किए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। वैसे तो, लोग यह विश्वास करने में और भी अधिक उतारू हो गए कि यह पुस्तक एक 'दिव्य पुस्तक' है। चार सुसमाचारों और प्रकाशित वाक्य की पुस्तक के शामिल होने के साथ ही, इसके प्रति लोगों की प्रवृत्ति किसी भी अन्य पुस्तक से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस 'दिव्य पुस्तक' को चीरफाड़ करने की हिम्मत नहीं करता है—क्योंकि यह बहुत ही अधिक 'पवित्र' है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)")। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ने अनन्त रहस्य का खुलासा किया है, और बाइबल के रहस्यों को समझाया है। इसने मेरे दिल की कठिनाइयों को भी समझाया है। परमेश्वर का वचन कहता है: "बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है।" इसके बारे में सावधानी से सोचते हुए, मैंने निष्कर्ष निकाला: "यह वास्तव में इसी तरह है, और बाइबल में जो कुछ भी दर्ज किया गया है वह वास्तव में इस्राएल में किए गए परमेश्वर के काम का इतिहास है। यह वह काम है जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में किया था, परन्तु परमेश्वर वह परमेश्वर हैं जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी और सबकुछ बनाया है, और पूरी मानवजाति पर भी शासन करते हैं। परमेश्वर हमेशा मानवजाति के लिए मार्गदर्शन और आपूर्ति प्रदान करते हैं, तो वह केवल इस्राएल में कैसे काम कर सकते हैं? वे केवल वो कैसे कह सकते हैं जो बाइबल में है? बाइबिल को लोगों द्वारा 'पवित्र पुस्तक' कहा जाता है, क्योंकि परमेश्वर ने जो कुछ कहा है, यह उसे दर्ज करती है। वे इसे परमेश्वर के प्रति अपने आदर के कारण इसे यह मानद उपाधि देते हैं, लेकिन वास्तव में बाइबिल के लेखक प्राचीन संत, नबी और प्रेरित हैं, परमेश्वर नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गयी है, और यह पूरा परमेश्वर का वचन नहीं है। यह परमेश्वर को गवाही देने के लिए केवल एक ऐतिहासिक पुस्तक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रभु यीशु ने कहा: 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39–40)।" प्रभु यीशु के वचन क�� तुलना में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़ कर, मैं अचानक प्रभु के उन वचनों को समझ गयी। इस पर, मैंने खुद से पूछा: "परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, और जीवन का झरना हैं। परमेश्वर स्वर्ग, पृथ्वी, और उसमें सब कुछ बना सकते हैं, और सभी चीजों पर शासन करते हैं। क्या बाइबल यह काम कर सकती है? नहीं कर सकती। इस तरह इसे देखकर, ऐसा लगता है कि बाइबल निश्चित रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है। परमेश्वर और बाइबिल एक बराबर स्तर पर नहीं हैं। मुझे परमेश्वर के पदचिन्हों का पालन करना चाहिए, और बाइबल को पकड़े हुए परमेश्वर के नए काम को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।" जितना मैंने परमेश्वर के वचन पर विचार किया, उतना ही मुझे बाइबल के सार और इसके अंदर की कहानी के बारे में ज्ञान मिला, और उतना ही अधिक मुझे अपमान और शर्मिंदगी महसूस हुयी। मैंने उन धारणाओं के बारे में सोचा जिन्हें मैंने परमेश्वर में विश्वास में इतने सालों तक संजोया था, और मैंने सोचा था कि बाइबिल परमेश्वर जितनी ही महत्वपूर्ण थी। मैंने उनके साथ समान रूप से व्यवहार किया, और सोचा कि बाइबल को छोड़ना मतलब परमेश्वर में विश्वास नहीं करना था। लेकिन वास्तव में, मैं बाइबल के सार और उसके मूल मूल्य के बारे में स्पष्ट नहीं थी, और कभी नहीं सोचा था कि प्रभु में विश्वास करने और बाइबल में विश्वास करने के बीच क्या अंतर था। परमेश्वर में विश्वास करने का व्यावहारिक अर्थ अज्ञात था, और वास्तव में मैंने अपनी धारणाओं को सत्य के रूप में माना, और बकवास बातें कहीं। मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के काम और वचन को अस्वीकार कर दिया, और वास्तव में बहुत मूर्ख और अज्ञानी थी, बहुत अहंकारी और अविवेकी थी। परन्तु परमेश्वर ने मुझसे मेरी अज्ञानता के आधार पर व्यवहार नहीं किया, और मेरी निंदा नहीं की, लेकिन अब भी मुझे प्रबुद्ध किया और मार्गदर्शन दिया। उन्होंने मुझे बाइबल से कदम-ब-कदम दूर किया, और मैं परमेश्वर के सिंहासन के सामने आयी, ताकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का पोषण और जीवन प्राप्त कर सकूँ और धीरे-धीरे सत्य में से थोड़ा समझ सकूँ और बाइबल के सार को जान सकूँ। मेरे दिल का दरवाजा जो इतने लंबे समय तक मुहरबंद था अंततः परमेश्वर के लिए खुल गया, और अब मैं परमेश्वर के उद्धार से दूर नहीं जा सकती थी। इसके बजाय, परमेश्वर की नई वाणी में, सिंहासन से बहने वाले जीवन जल के प्रावधान का जितना चाहूं उतना आनंद उठाती हूँ। मैं ईमानदारी से परमेश्वर का धन्यवाद और उनकी स्तुति करती हूँ!
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Book Pandit Ji for Griha Pravesh : गृह प्रवेश क्यों, कब और कैसे कराएं ?
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गृह प्रवेश एक शुभ अवसर होता है, जब कोई व्यक्ति या परिवार अपने नए घर में प्रवेश करता है। यह केवल एक साधारण प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व छिपा होता है। सही विधि से गृह प्रवेश पूजा कराना बहुत आवश्यक होता है ताकि घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहे। आइए जानें कि गृह प्रवेश पूजा कब, क्यों और कैसे कैसे कराएं ।
गृह प्रवेश पूजा क्या है?
गृह प्रवेश पूजा एक वैदिक अनुष्ठान है, जिसमें विभिन्न मंत्रों और हवन के माध्यम से घर को शुद्ध किया जाता है और देवताओं से आशीर्वाद लिया जाता है। इस पूजा के माध्यम से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
गृह प्रवेश पूजा कब करनी चाहिए?
गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त और तिथि का विशेष ध्यान रखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह पूजा अमावस्या, कृष्ण पक्ष या ग्रहण के समय नहीं करनी चाहिए। आमतौर पर यह पूजा अक्षय तृतीया, बसंत पंचमी, दशहरा, दीपावली, नवरात्रि जैसे शुभ अवसरों पर कराई जाती है।
गृह प्रवेश पूजा क्यों जरूरी है?
घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए।
नकारात्मक शक्तियों और दोषों को दूर करने के लिए।
वास्तु दोष को शांत करने के लिए।
परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनाए रखने के लिए।
गृह देवताओं और पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए।
गृह प्रवेश पूजा कैसे कराएं?
आवश्यक सामग्री:
गृह प्रवेश पूजा के लिए कुछ आवश्यक सामग्रियां होती हैं, जैसे कि:
नारियल, अक्षत, हल्दी, कुमकुम
कलश, आम के पत्ते, पंचामृत
धूप, दीप, फूल, मिठाई
हवन सामग्री और लकड़ी
गृह प्रवेश पूजा की विधि:
भूमि पूजन: यदि नया घर बना है, तो पहले भूमि पूजन किया जाता है।
गणेश पूजा: घर में प्रवेश से पहले भगवान गणेश का पूजन कर विघ्न बाधाओं को दूर किया जाता है।
कलश स्थापना: कलश में जल भरकर उस पर आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है, जिसे घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है।
गौ पूजन: घर के अंदर गाय को प्र��ेश कराया जाता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
हवन: विशेष मंत्रों के साथ हवन किया जाता है जिससे घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
वास्तु शांति पूजा: यदि आपके घर में कोई वास्तु दोष है, तो इसे दूर करने के लिए यह पूजा की जाती है।
अंतिम प्रवेश: पूजा के बाद गृह स्वामी और उनके परिवार के सदस्य घर में प्रवेश करते हैं।
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नवरात्रि 2018: नाव पर सवार होकर आ रही हैं मां, कब करें कलश की स्थापना, जानिए शुभ मुहूर्त-
इस साल 2018 में देवी दुर्गा का आगमन नाव पर होने जा रहा है और उनका प्रस्थान हाथी पर होगा। मान्यता है कि यह अत्यंत शुभ संकेत है।
10 अक्टूबर 2018, बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। जो 18 अक्टूबर 2018, शुक्रवार तक रहेगी। नवरात्रि में कलश स्थापना का खास महत्व होता है। इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए। आइए जानते हैं नवरात्रि घटस्थापना के सबसे श्रेष्ठ और उत्तम मुहूर्त कौन से हैं... घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि को किया जाएगा। यह चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में संपन्न होगा।
नवरात्रि कलश(घट) स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018, बुधवार
कलश स्थापना मुहूर्त : प्रात: 06:22 से 07:25 तक।
मुहूर्त की अवधि : 01 घंटा 02 मिनट।
प्रतिपदा तिथि का आरंभ:-
9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
अगर इस दौरान किसी वजह से आप कलश स्थापित नहीं कर पाते हैं तो 10 अक्टूबर को सुबह 11:36 बजे से 12:24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं।
ध्यान रहे कि शास्त्रों के अनुसार अमावस्यायुक्त शुक्ल प्रतिपदा मुहूर्त में कलश स्थापित करना वर्जित होता है। इसलिए किसी भी हाल में 9 अक्टूबर को कलश स्थापना नहीं होगी।
नवरात्रि में शुभ कार्य-
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
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जानिए कब से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्रि, दिन के अनुसार करें देवी के स्वरूप की पूजा-
10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि प्रारम्भ हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। इन नौ दिनों में माता के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और घट स्थापना की जाती है। नवरात्रि के आखिरी यानि 10वें दिन कन्या पूजन होता है फिर उपवास खोला जाता है।
नवरात्रि में शुभ कार्य-
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
किसी तिथि पर किस देवी की होगी पूजा-आराधना-
10 अक्टूबर- नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर- नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर- नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबर- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा
15 अक्टूबर- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर- नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
17 अक्टूबर- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
18 अक्टूबर- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
19 अक्टूबर- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
नवरात्रि कलश(घट) स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018, बुधवार
कलश स्थापना मुहूर्त : प्रात: 06:22 से 07:25 तक।
मुहूर्त की अवधि : 01 घंटा 02 मिनट।
प्रतिपदा तिथि का आरंभ:-
9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
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देवशयनी एकादशी आज, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, जाने पूजा विधि और महत्व
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि इस बार 20 जुलाई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत पर अगले चार महीने के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और वे वहां चार मास विश्राम करते हैं। इस बीच पृथ्वी लोक की देखभाल भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास में सावन का विशेष म��त्व बताया गया है।सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जब भगवान विष्णु पाताल लोक चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किये गए किसी मांगलिक कार्य का शुभ फल नहीं मिलता है। देवशयनी एकादशी के चार मास बाद देवउठनी एकादशी के दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षिर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं। चातुर्मास में क्या नहीं करना चाहिए चातुर्मास का सबसे पहला नियम यह है कि इन 4 महीनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तमाम सोलह संस्कार नहीं किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन सभी कार्यों पर सनातन धर्म के सभी देवी-देवताओं को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है मगर भगवान विष्णु शयन काल में रहते हैं इसीलिए वह आशीर्वाद देने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इन 4 महीनों को छोड़कर अन्य महीनों में शुभ कार्य करते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। इसके साथ चातुर्मास के पहले महीने यानि सावन में हरी सब्जियां, भादो में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके साथ इन 4 महीनों में तामसिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए। इसके अलावा इन 4 महीनों में मूली, परवल, शहद, गुड़ तथा बैंगन का सेवन करना वर्जित माना गया है। देवशयनी एकादशी की पूजा-विधि देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयनी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयनी एकादशी : चार महीने भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल जानिए कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व और पूजा विधि देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय Read the full article
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युवती को कमरे में बंद कर दरवाजे पर खड़ी कर दी दीवार, एक महिला गिरफ्तार Divya Sandesh
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युवती को कमरे में बंद कर दरवाजे पर खड़ी कर दी दीवार, एक महिला गिरफ्तार
कोडरमा। जिले के जयनगर थाना क्षेत्र अंतर्गत योगियाटिल्हा में जमीन विवाद में एक युवती को कमरे में बंद कर दरवाजे पर ताला लगाने और दीवार खड़ी कर देने का मामला आया है। बताया गया है कि लड़की के परिजन अपने एक रिश्तेदार के घर गए थे। ��ाम को वापस आए तो उन्हें दरवाजे के आगे मिट्टी और ईट से बनी दीवार नजर आई। परिजनों ने पुलिस को सूचना दी इसके बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने दीवार को गिरा कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर सुलेखा कुमारी बेहोश हालत में मिली। उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जयनगर भेजा गया। वहीं, पुलिस ने इस मामले में एक महिला सावित्री देवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। घटना शुक्रवार देर शाम की है।
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सुलेखा कुमारी के माता-पिता के अलावा सभी लोग उसे घर पर छोड़कर एक रिश्तेदार के यहां गृह प्रवेश कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। पीड़िता सुलेखा कुमारी ने बताया कि जमीन को लेकर उनके पिता किशोर पंडित और गांव के ही विनोद पंडित, शंकर पंडित, मनोज पंडित, बीरबल पंडित से विवाद चल रहा है। शुक्रवार को जब वह गाय के बच्चे को चारा दे रही थी तभी अचानक विनोद पंडित, शंकर पंडित, मनोज पंडित, बीरबल पंडित, उषा देवी, गायत्री देवी, मनीषा देवी, मीना देवी, सावित्री देवी उसके घर पहुंच गए और जबरन उसे कमरे के अंदर बंद कर बाहर से ताला लगा दिया। इसके बाद दरवाजे के आगे मिट्टी और ईट से दीवार खड़ी कर दी। सुलेखा कमरे के अंदर से चिल्लाती रही बावजूद कोई नहीं सुना।
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एसआई राजेंद्र राणा ने बताया कि समय पर युवती को बाहर नहीं निकाला जाता तो उसकी जान भी जा सकती थी। मामले को लेकर किशोर पंडित ने जयनगर थाना में आवेदन देकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने बताया कि पुलिस के जाने के बाद उक्त आरोपियों ने घर को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। थाना प्रभारी अब्दुल्लाह खान ने बताया कि मामला गंभीर है दोषियों पर सख्त कार्रवाई किया जाएगा। फिलहाल एक महिला सावित्री को गिरफ्तार किया गया है।
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जानिए कब से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्रि, दिन के अनुसार करें देवी के स्वरूप की पूजा-
10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि प्रारम्भ हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। इन नौ दिनों में माता के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और घट स्थापना की जाती है। नवरात्रि के आखिरी यानि 10वें दिन कन्या पूजन होता है फिर उपवास खोला जाता है।
नवरात्रि में शुभ कार्य-
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
किसी तिथि पर किस देवी की होगी पूजा-आराधना-
10 अक्टूबर- नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर- नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर- नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबर- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा
15 अक्टूबर- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर- नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
17 अक्टूबर- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
18 अक्टूबर- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
19 अक्टूबर- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
नवरात्रि कलश(घट) स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018, बुधवार
कलश स्थापना मुहूर्त : प्रात: 06:22 से 07:25 तक।
मुहूर्त की अवधि : 01 घंटा 02 मिनट।
प्रतिपदा तिथि का आरंभ:-
9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
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जानिए कब से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्रि, दिन के अनुसार करें देवी के स्वरूप की पूजा-
10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि प्रारम्भ हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। इन नौ दिनों में माता के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और घट स्थापना की जाती है। नवरात्रि के आखिरी यानि 10वें दिन कन्या पूजन होता है फिर उपवास खोला जाता है।
नवरात्रि में शुभ कार्य-
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
किसी तिथि पर किस देवी की होगी पूजा-आराधना-
10 अक्टूबर- नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर- नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर- नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबर- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा
15 अक्टूबर- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर- नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
17 अक्टूबर- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
18 अक्टूबर- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
19 अक्टूबर- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
नवरात्रि कलश(घट) स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018, बुधवार
कलश स्थापना मुहूर्त : प्रात: 06:22 से 07:25 तक।
मुहूर्त की अवधि : 01 घंटा 02 मिनट।
प्रतिपदा तिथि का आरंभ:-
9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
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Book Pandit Ji for Satyanarayan Katha Puja : सत्यनारायण कथा कब, क्यों और कैसे कराएं?
सत्यनारायण कथा पूजा का महत्व
सत्यनारायण भगवान की पूजा हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ मानी जाती है। यह पूजा विशेष रूप से परिवार की सुख-समृद्धि, शांति, और अच्छे स्वास्थ्य के लिए की जाती है। इसे करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
सत्यनारायण कथा पूजा कब करें?
सत्यनारायण कथा पूजा किसी भी शुभ अवसर पर की जा सकती है, लेकिन कुछ विशेष दिन इसे करने के लिए और भी शुभ माने जाते हैं:
✅ पूर्णिमा तिथि – हर पूर्णिमा को इस कथा का विशेष महत्व होता है। ✅ गृह प्रवेश – नए घर में प्रवेश करने से पहले परिवार की सुख-शांति के लिए। ✅ शादी या सगाई के बाद – दांपत्य जीवन में खुशहाली और प्रेम बनाए रखने के लिए। ✅ जन्मदिन या नई शुरुआत पर – किसी भी नए कार्य, व्यापार, या नए साल की शुरुआत पर।
सत्यनारायण कथा पूजा क्यों करें?
🔸 घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए। 🔸 कर्ज, रोग, और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए। 🔸 भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए। 🔸 व्यापार में उन्नति और परिवार की भलाई के लिए।
सत्यनारायण कथा पूजा कैसे कराएं?
पूजा को विधिपूर्वक करने के लिए एक योग्य पंडित जी की आवश्यकता होती है, जो शास्त्रों के अनुसार सही विधि से मंत्रोच्चारण और अनुष्ठान करें। पूजा की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
1️⃣ गणपति पूजा – पहले भगवान गणेश की पूजा कर शुभारंभ किया जाता है। 2️⃣ कलश स्थापन – पवित्र जल से कलश की स्थापना की जाती है। 3️⃣ नवग्रह पूजा – सभी नौ ग्रहों की शांति के लिए मंत्रोच्चारण किया जाता है। 4️⃣ सत्यनारायण कथा वाचन – कथा के पांच अध्यायों का पाठ किया जाता है। 5️⃣ आरती और प्रसाद वितरण – पूजा के अंत में भोग लगाया जाता है और सभी को प्रसाद वितरित किया जाता है।
Book Pandit Ji for Satyanarayan Katha Puja
अब आप आसानी से अपने घर, ऑफिस या मंदिर में सत्यनारायण कथा पूजा के लिए पंडित जी बुक कर सकते हैं।
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