#ओलंपिकमेंकितनेगेमखेलेजातेहैं
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allgyan · 3 years ago
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मीराबाई चानू :4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू का दमखम -
मीराबाई चानू और सिल्वर मेडल -
मीराबाई चानू एक नाम जो इस समय बहुत चर्चा में चल रहा है। और चर्चा भी क्यों नहीं टोकियो ओलिंपिक 2021 के पहले दिन भारत को मैडल दिलवाली चानू ही है।वेट लिफ्टिंग में 21 साल के सूखा का अंत हुआ।चानू ओलंपिक में वेटलिफ़्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं।उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है. इस वर्ग में चीन की होऊ ज़हुई ने गोल्ड और इंडोनेशिया की विंडी असाह ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता।चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया।2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा है।वैसे 4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू को देखकर अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है कि देखने में नन्ही सी मीरा बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं।48 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।
मीराबाई चानू का 'डिड नॉट फ़िनिश' से सिल्वर का सफर -
जब हम किसी भी खिलाड़ी को मैडल जीतते देखते है।लेकिन ये जितना उठा आसान नहीं होता है। इसके पीछे बहुत बड़ा संघर्ष छुपा होता है। मीराबाई चानू को इसका सामना करना पड़ा। डिड नॉट फ़िनिश से आपको कुछ तो अंदाज़ा लग ही गया होगा। लेकिन ओलिंपिक में ऐसा हो तो बहुत मुश्किल होता है।ओलपिंक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाएँ तो एक बात है, लेकिन अगर आप अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाएँ तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाली घटना हो सकती है।
2016 ��ें भारत की वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू के लिए ऐसा ही हुआ था।ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सि��्फ़ दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था 'डिड नॉट फ़िनिश'। जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं थी उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे उस समय भारत में रात थीं, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा। सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं। नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े।इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था।लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की।मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल।
मीराबाई का जीवन -
इस ओलंपिक के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं।48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए मीरा ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था। 8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी मीराबाई बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं।बिना ख़ास सुविधाओं वाला उनका गांव इंफ़ाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था।उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं। बस वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली।
मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी और  2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं।डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन नथा.उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया।11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन।जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर। मीरा को  वेटलिफ्टिंग के आलावा डांस करना बहुत पसंद है। वो कमरा बंद करके डांस क��या करती है। 26  वर्षीय मीराबाई चानू ने कई महिलाओं के प्रेरणा बनके उभरी है।
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allgyan · 3 years ago
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मीराबाई चानू :4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू का दमखम -
मीराबाई चानू और सिल्वर मेडल -
मीराबाई चानू एक नाम जो इस समय बहुत चर्चा में चल रहा है। और चर्चा भी क्यों नहीं टोकियो ओलिंपिक 2021 के पहले दिन भारत को मैडल दिलवाली चानू ही है।वेट लिफ्टिंग में 21 साल के सूखा का अंत हुआ।चानू ओलंपिक में वेटलिफ़्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं।उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है. इस वर्ग में चीन की होऊ ज़हुई ने गोल्ड और इंडोनेशिया की विंडी असाह ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता।चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया।2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा है।वैसे 4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू को देखकर अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है कि देखने में नन्ही सी मीरा बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं।48 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।
मीराबाई चानू का 'डिड नॉट फ़िनिश' से सिल्वर का सफर -
जब हम किसी भी खिलाड़ी को मैडल जीतते देखते है।लेकिन ये जितना उठा आसान नहीं होता है। इसके पीछे बहुत बड़ा संघर्ष छुपा होता है। मीराबाई चानू को इसका सामना करना पड़ा। डिड नॉट फ़िनिश से आपको कुछ तो अंदाज़ा लग ही गया होगा। लेकिन ओलिंपिक में ऐसा हो तो बहुत मुश्किल होता है।ओलपिंक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाएँ तो एक बात है, लेकिन अगर आप अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाएँ तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाली घटना हो सकती है।
2016 में भारत की वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू के लिए ऐसा ही हुआ था।ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था 'डिड नॉट फ़िनिश'। जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं थी उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे उस समय भारत में रात थीं, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा। सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं। नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े।इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था।लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की।मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल।
मीराबाई का जीवन -
इस ओलंपिक के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं।48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए मीरा ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था। 8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी मीराबाई बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं।बिना ख़ास सुविधाओं वाला उनका गांव इंफ़ाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था।उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं। बस वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली।
मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी और  2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं।डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन नथा.उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया।11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन।जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर। मीरा को  वेटलिफ्टिंग के आलावा डांस करना बहुत पसंद है। वो कमरा बंद करके डांस किया करती है। 26  वर्षीय मीराबाई चानू ने कई महिलाओं के प्रेरणा बनके उभरी है।
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मीराबाई चानू :4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू का दमखम -
मीराबाई चानू और सिल्वर मेडल -
मीराबाई चानू एक नाम जो इस समय बहुत चर्चा में चल रहा है। और चर्चा भी क्यों नहीं टोकियो ओलिंपिक 2021 के पहले दिन भारत को मैडल दिलवाली चानू ही है।वेट लिफ्टिंग में 21 साल के सूखा का अंत हुआ।चानू ओलंपिक में वेटलिफ़्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं।उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है. इस वर्ग में चीन की होऊ ज़हुई ने गोल्ड और इंडोनेशिया की विंडी असाह ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता।चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया।2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा है।वैसे 4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू को देखकर अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है कि देखने में नन्ही सी मीरा बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं।48 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।
मीराबाई चानू का 'डिड नॉट फ़िनिश' से सिल्वर का सफर -
जब हम किसी भी खिलाड़ी को मैडल जीतते देखते है।लेकिन ये जितना उठा आसान नहीं होता है। इसके पीछे बहुत बड़ा संघर्ष छुपा होता है। मीराबाई चानू को इसका सामना करना पड़ा। डिड नॉट फ़िनिश से आपको कुछ तो अंदाज़ा लग ही गया होगा। लेकिन ओलिंपिक में ऐसा हो तो बहुत मुश्किल होता है।ओलपिंक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाएँ तो एक बात है, लेकिन अगर आप अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाएँ तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाली घटना हो सकती है।
2016 में भारत की वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू के लिए ऐसा ही हुआ था।ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था 'डिड नॉट फ़िनिश'। जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं थी उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे उस समय भारत में रात थीं, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा। सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं। नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े।इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था।लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की।मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल।
मीराबाई का जीवन -
इस ओलंपिक के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं।48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए मीरा ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था। 8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी मीराबाई बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं।बिना ख़ास सुविधाओं वाला उनका गांव इंफ़ाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था।उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं। बस वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली।
मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी और  2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं।डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन नथा.उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया।11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन।जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर। मीरा को  वेटलिफ्टिंग के आलावा डांस करना बहुत पसंद है। वो कमरा बंद करके डांस किया करती है। 26  वर्षीय मीराबाई चानू ने कई महिलाओं के प्रेरणा बनके उभरी है।
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