Tumgik
#एक प्रकार का हंस
indrabalakhanna · 2 months
Text
Shraddha TV Satsang 31-07-2024 || Episode: 2639 || Sant Rampal Ji Mahara...
#GodMorningWednesday
#WednesdayMotivation
#wednesdaythought
#सत_भक्ति_संदेश
#सतलोक_जाने_के_बाद_पुनर्जन्म_नहीं_होता
#सृष्टि_रचना_की_जानकारी
Must Watch
Zakir Naik VS Sant Rampal Ji Maharaj डिबेट यूट्यूब चैनल पर!
#पूर्णगुरु_से_होगा_मोक्ष
#परमात्मा_दुखी_को_सुखी_करता_है
#कबीर_परमात्मा_की_भक्ति_से_लाभ
True Guru
Sant Rampal Ji Maharaj
#TrueGuru
#TatvadarshiSant
#TrueGuruSantRampalJi
#SantRampalJiMaharaj
#KabirIsGod
#Kabir_Is_RealGod
#Kabir_Is_GreatGod
#Kabir_Is_MercifulGod
#SupremeGodKabir
#Kabir #kabirvani #Vedas #scriptures #Puran #God
#Allah #viralreel #viralreelsfb #trendingnow #trendingreels #trend #viralvideo #photochallenge
#SaintRampalJi
#SaintRampalJiQuotes
#SantRampalJiQuotes
#SatlokAshram
SA News Channel
*संतों की पहचान*
*सतगुरु के लक्षण कहूँ मधुरे बैन विनोद! चार वेद छ: शास्त्र कहे 18 बोध!!*
🙏वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र पूर्ण सतगुरु तत्वदर्शी संत हैं,भक्ति मुक्ति के दाता नाम दीक्षा अधिकारी पुरुष हैं!
🙏हमारे वेदों में प्रमाण हैं + हमारे शास्त्र और पुराण भी गवाही देते हैं कि हम सब आत्माओं के मूल मालिक पूर्ण ब्रह्म अक्षर पुरुष_कबीर परमेश्वर जी हैं,सृष्टि के रचयिता है, अनंत ब्रह्मांड के मालिक हैं, समर्थ सुखसागर हैं!
🙏पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी की भक्ति करने से ही हमें सभी शुभ लाभ प्राप्त हो सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है!
काल कर्म बंधन से हम कबीर परमेश्वर की भक्ति द्वारा ही मुक्ति पा सकते हैं!
Must Watch Carefully The Satsang *Head To Toe* ( Start To The End )
And Get True Spiritual Knowledge.
⏬⏬⏬
🙏मनुष्य जन्म असंख्यों जन्मों के पुण्यों के बाद प्राप्त होता है!
🙏दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म का लाभ उठाएं !
🙏सतगुरु शरण प्राप्त करें और मानव जीवन का कल्याण करायें!
🙏हम एक ही परमात्मा की संतान हैं!
🙏कृपया शास्त्र विरुद्ध भक्ति करवाने वाले अधूरे गुरुओं की पहचान करें !
मानव जीवन से खिलवाड़ करने वाले गुरुओं का त्याग करने में देर ना करें_झूठे गुरु अज्ञानी गुरु पक्के काल के दूत हैं, जो मानव जन्म को हल्के में ले रहे हैं और निरंतर काल का ग्रास बना रहे हैं!
🙏कृपया सच्चे पूर्ण सतगुरु की पहचान करें !
परमात्मा स्वयं धरती पर उतर आये है!
⏬👇
🙏कोयल के बच्चे_ कोयल की कूक से अपनी मां की पहचान कर लेते हैं और उसके पीछे दौड़ जाते हैं वह काग वाला घोंसला छोड़ जाते हैं,
ठीक उसी प्रकार परमात्मा की हंस आत्माएं परमात्मा को उसके पवित्र ज्ञान से पहचान लेती हैं!
परमात्मा स्वयं सतगुरु बनकर धरती पर हमारे उद्धार के लिए प्रत्येक युग में आते हैं!
परमात्मा ने इस कलयुग को *भक्ति युग + स्वर्ण युग की संज्ञा दी हैं! और अपनी कबीर वाणी में कहा है_
*अमर करूँ सतलोक पठाऊँ, ताँतें बंदीछोड़ कहाऊँ! कलयुग मध्य सतयुग लाऊँ, ताँतें बंदीछोड़ कहाऊँ!!*
*सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप अलेख! सतगुरु रमता राम हैं, यामें मीण ना मेंख!!*
*संत मिलन को चालिए, तज माया अभिमान ! ज्यों ज्यों कदम आगे बढ़ें, सौ सौ यज्ञ समान!!*
*सतगुरु शरण में आने से आई टले बला! जै मस्तक में सूली हो,कांटे में टल जा!! *
🙏सत साहेब जी🙏बोलो जय बंदीछोड़ की🙏
4 notes · View notes
prince-kumar · 1 year
Text
🎋कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🎋
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिंन्द्र मेरा। द्वापर में करुणामय कहाया कलयुग नाम कबीर धराया।।
इस वाणी में कबीर परमेश्वर ने कहा है कि, में चारों युगों में पृथ्वी पर आता हूं, सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिनंद्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर नाम से आता हूं।
जिस परमात्मा को हम निराकार मान रहे थे वह परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कबीर है। जिसका प्रमाण सद्ग्रंथों के इन मंत्रों में है 👇👇
यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 में लिखा है कि
"अग्ने: तनूर असि"विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि" इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि वह सर्वव्यापक, सर्व का पालनहार परमात्मा सशरीर है, साकार है।
तथा
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है कि
"कविरंघारि: असि, बम्भारी: असि स्वज्योति ऋतधामा असि" अर्थात कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु यानि सर्व पापों से मुक्त करवाकर, सर्व बंधनों से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित सशरीर है और सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,
��ग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3,
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में प्रमाण है कि, पूर्ण परमात्मा कभी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि,
जब पूर्ण परमात्मा पृथ्वी पर शिशु रुप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है,उस समय उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96
मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कवियों की तरह आचरण करता हुआ कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए सुखदाई होती है। 
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) चारों युगों में पृथ्वी पर कभी भी कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
अपना तत्वज्ञान दोहों, शब्दों तथा कविताओं द्वारा बोलकर सुनाते हैं।
ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में मिले। जो इस प्रकार है,👇👇👇
आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
"अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर है कुल के सिरजन हार।।
आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया।
धर्मदास जी ने कहा है कि,
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
रामानंद जी को कबीर परमेश्वर काशी में 104 वर्ष की आयु में मिले। सत्य ज्ञान समझाकर, सतलोक दिखाया।
रामानंद जी ने अपनी अमरवाणी में बताया है कि,
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारने, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस।
गरीबदास तव रुप बिन और न दूजा अंश।।
बोलत रामानंद जी सुनो कबीर करतार,
गरीबदास सब रुप में,तुम ही बोलनहार।।
मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिले। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि,
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर ।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
नानक देव जी को कबीर परमेश्वर बेई नदी के तट पर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। सत्य ज्ञान और सतलोक दिखाया तब नानक देव जी ने कहा था कि,
फाई सुरत मलुकि वेश ऐ ठगवाड़ा ठगी देश।
खरा सियाणा बहुता भार, धाणक रुप रहा करतार।।
दादू साहेब जी को कबीर परमेश्वर मिले, तत्वज्ञान कराया। सत्य ज्ञान से परिचित होकर दादू साहेब ने कहा है कि,
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
इसके अलावा मीरा बाई, अब्राहिम अधम सुल्तान, सिकंदर लोधी, रविदास जी, रंका बंका, नल नील, सेउ समन जैसी अनेकों आत्माओं को मिले।
सर्व बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि, जिसे हम एक कवि और संत मान रहे थे, वह तो पूर्ण परमात्मा है। उपरोक्त वाणीयों तथा प्रमाणों से भी यहीं सिद्ध होता है। हमारे सदग्रंथो में ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है। अपनी शंका दूर करने के लिए आप जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक सत्संग अवश्य देखें, संत रामपाल जी महाराज जी सर्व धर्मों के पवित्र सदग्रंथो में कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने के अनेकों प्रमाण दिखा कर सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं।
👇👇
साधना चैनल पर रात 7:30 से 8:30 बजे तक,
M-H. 1श्रद्धा चैनल पर दोपहर 2:00 से 3:00 बजे तक
#SantRampalJiMaharaj
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
2 notes · View notes
dasmp89 · 1 year
Text
🧩गुरु-शिष्य परंपरा बनाए रखने के लिए कबीर साहेब ने रामानन्द जी को गुरू धारण किया
ऋषि रामानंद जी का जीव सतयुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सतसुकृत नाम से मिले थे। त्रेता युग में रामानन्द जी का जीव वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के रूप में मिले थे। दोनों जन्मों में यह नि:संतान थे। परमात्मा इनको शिशु रूप में मिले, उस समय इन्होंने परमेश्वर को पुत्रवत पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण यह आत्मा परमात्मा को चाहने वाली थी।
कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था।
स्वामी रामानंद जी अपने समय के सुप्रसिद्ध की विद्वान कहे जाते थे। वह द्रविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे।
स्वामी रामानंद जी ने 1400 ऋषि शिष्य बना रखे थे। परमेश्वर कबीर जी ने अपने नियमानुसार रामानंद स्वामी को शरण में लेना था।
गरीब- जो जन हमरी शरण है, उसका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरू, जब तक धरती आकाश।।
गोता मारू स्वर्ग में, जा बैठू पाताल।
गरीबदास ढूंढत फिरु अपने हीरे मोती लाल।।
रामानन्द जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर परमेश्वर ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया व लीला करके रामानन्द को गुरू बनाकर उनका उद्धार किया।
गरीब- ज्यों बच्छा गऊ की नजर में, यूं साई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरे, भक्त वच्छल भगवंत।।
जब कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को सतलोक के दर्शन कराए थे तब स्वामी रामानंद की आत्मा को आंखों देखकर दृढ़ विश्वास हुआ कि कबीर ही परमात्मा है। जिसका चित्रार्थ गरीब दास जी महाराज जी ने अपनी वाणी किया है–
बोलत रामानंद जी सुन कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुमही बोलनहार॥
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारणें, उतरे हो मग जोय॥
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस॥
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म-कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरे दृढ़ विश्वास॥
कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को गुरु बना कर न केवल उनका उद्धार किया बल्कि उनकी जातिवादी सोच का भी नाश किया क्योंकि किसी भी प्रकार के जाति धर्म, ऊंच नीच का भेदभाव रखने वाला व्यक्ति सतलोक नहीं जा सकता।
साथ ही कबीर साहेब ने गुरु शिष्य परम्परा का निर्वाह इसलिए किया कि कलयुग कोई पाखण्डी गुरु यह नहीं कह सके कि गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं, कबीर साहेब ने कौनसा गुरु बनाया था।
इसलिए कबीर साहेब ने गुरु बनाया तथा यह बताया कि:-
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण।।
राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धणी, गुरु आगे आधीन।।
गुरु बड़े गोविंद से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो रह गए, गुरु सुमरे होय पार।।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण गुरु/तत्वदर्शी संत हैं तथा कबीर साहेब के अवतार हैं। उनसे नाम दीक्षा लेकर अपने जीव का कल्याण कराये।
#KabirPrakatDiwas
#SantRampalJiMaharaj
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
2 notes · View notes
goodthings123 · 4 months
Text
सृष्टि की रचना का रहस्य हुआ उजागर, सच्चाई जानकर हो जाओगे हैरान
भगवान को चाहने वाले व्यक्ति जब सृष्टि रचना पहली बार पढ़ते हैं तो उन्हें ये एक निराधार कथा लगती है पर जब उन्हें उनके ही धर्म के ग्रंथों से पर्याप्त प्रमाण दिखाए जाते हैं तो उन्हें इस सत्य कथा पर विश्वास करना पड़ता है। सृष्टि रचना के प्रमाण सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथो में हैं जिनमें हिन्दू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म और जैन धर्म के पवित्र ग्रन्थ शामिल हैं। ये सब प्रमाण इतने ठोस हैं कि एक नास्तिक व्यक्ति को भी सोचने पर मजबूर कर दें।
संक्षिप्त श्रृष्टि रचना: जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था। तब सृष्टि की रचना सबसे पहले परमेश्वर कबीर साहेब जी ने की, तब वे अकेले थे और कोई रचना नहीं हुई थी। उन्होंने अपने वचन यानी शब्द से चार अविनाशी लोकों की रचना की अनामी लोक, अगम लोक, अलख लोक और सतलोक। फिर सतपुरुष ने चारों लोकों में चार रूप धारण किए और प्रत्येक लोक में उपमात्मक नामों से प्रसिद्ध हुए। अनामी लोक में अनामी पुरुष या अकह पुरुष, अगम लोक में अगम पुरुष, अलख लोक में अलख पुरुष और सतलोक में सतपुरुष। फिर सतलोक में परमात्मा ने अन्य रचना की। एक शब्द यानी वचन से 16 द्वीपों तथा एक मानसरोवर की रचना की। पुनः 16 वचन से 16 पुत्रों की उत्पत्ति की। सतपुरुष ने अपने पुत्र अचिन्त से कहा कि अब आप अन्य रचना सतलोक में करें। मैंने कुछ शक्ति तेरे को प्रदान कर दी है।
अचिन्त ने अपने वचन से अक्षर पुरुष की उत्पत्ति की। अक्षर पुरुष उत्पन्न हुआ और वह मानसरोवर में स्नान करने चला गया। कुछ देर में उसे निंद्रा आ गई और वह सरोवर में गहरा नीचे चला गया। सतपुरुष ने मानसरोवर पर जाकर कुछ जल अपने चुल्लु में लिया और उसका एक विशाल अण्डा वचन से बनाया तथा एक आत्मा वचन से उत्पन्न करके अण्डे में प्रवेश की और अण्डे को जल में छोड़ दिया। जल में अण्डा नीचे जाने लगा तो उसकी गड़गड़ाहट के शोर से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हो गई। अक्षर पुरुष ने क्रोध से देखा कि किसने मुझे जगा दिया। क्रोध उस अण्डे पर गिरा तो अण्डा फूट गया। उसमें से एक व्यक्ति निकला। उसका नाम केल रखा गया। जो आगे चलकर काल कहलाया। जिसे ब्रह्म या ज्योति निरंजन के नाम से भी जाना जाता है। सतपुरुष ने कहा कि अक्षर पुरुष तुम निंद्रा में थे, तेरे को नींद से उठाने के लिए यह सब किया है। अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष से सतपुरुष ने कहा कि आप दोनों अचिंत के लोक में रहो।
कुछ समय के पश्चात् क्षर पुरुष ने मन में विचार किया कि हम तीन तो एक लोक में रह रहे हैं। मेरे अन्य भाई एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। यह विचार कर उसने अलग द्वीप प्राप्त करने के लिए तप प्रारम्भ किया। क्षर पुरुष ने 70 युग तक तप किया और 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किये। मगर कुछ समय बाद उसने अपने लोकों में सृष्टि रचना करने की सो���ी और उसने दोबारा तप करके पांच तत्व और 3 गुण प्राप्त किये और अंत मैं उसने अपने लोकों में आत्माओं को रखने की सोची और 64 युगों तक तप किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं।
कबीर परमेश्वर जी के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। कबीर परमेश्वर ने कहा था कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी जो आज काल ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा।
तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा आदि माया प्रकृति देवी दुर्गा पड़ा। इस प्रकार हम सभी आत्मायें इस काल लोक मैं आकर इस काल कसाई के चंगुल में फस गयी जो आज तक जन्म मरण तथा 84 लाख योनियों का कष्ट भोग रही है तथा नर्क और तप्त शिला आदि के महा कष्ट को भी उठा रही है जिसके बाद ज्योति निरंजन काल और दुर्गा के सहयोग से तीन पुत्र की उत्पत्ति हुई जिनका नाम ब्रह्मा, विष्णु, महेश रखा गया और इन्हीं से आगे की सृष्टि हुई।
इस वर्ष 20 जून से 22 जून 2024 तक, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 627वें कबीर प्रकट दिवस के अवसर पर एक विशेष समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस समागम पर आयोजित किए जाने वाले विशेष कार्यक्रम कुछ इस प्रकार है:
* निःशुल्क भंडारा: सभी आगंतुकों के लिए 20 से 22 जून 2024 तक निःशुल्क भंडारे का आयोजन होगा।
* निःशुल्क नाम दीक्षा: इस अद्वितीय अवसर पर संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त की जा सकती हैं।
* 3 दिवसीय अखंड पाठ: 20 से 22 फरवरी 2024 तक, 3 दिनों तक अखंड पाठ का आयोजन होगा।
* रक्तदान शिविर, निशुल्क नेत्र व दांतो की जांच, दहेज मुक्त विवाह और आध्यात्मिक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है।
* विशेष सत्संग प्रसारण: 22 जून 2024 को संत रामपाल जी महाराज के सत्संग का विशेष प्रसारण साधना टीवी चैनल पर सुबह 9:15 बजे (IST) से होगा।
* सोशल मीडिया प्रसारण: इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण निम्नलिखित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर भी उपलब्ध होगा:
Facebook page:- Spiritual Leader Saint Rampal Ji
YouTube:- Sant Rampal Ji Maharaj
Twitter:- @SaintRampalJiM
आप सभी इस महान अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें और इस आध्यात्मिक आयोजन का लाभ उठाएं। वहीं इस कार्यक्रम में आने के लिए आप निम्न सतलोक आश्रम में आ सकते हैं:
1. सतलोक आश्रम धनाना धाम, सोनीपत, हरियाणा
2. सतलोक आश्रम मुंडका, दिल्ली
3. सतलोक आश्रम धूरी, पंजाब
4. सतलोक आश्रम खमाणो, पंजाब
5. सतलोक आश्रम सोजत, राजस्थान
6. सतलोक आश्रम शामली, उत्तर प्रदेश
7. सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र, हरियाणा
8. सतलोक आश्रम भिवानी, हरियाणा
9. सतलोक आश्रम बैतूल, मध्य प्रदेश
10. सतलोक आश्रम इंदौर, मध्य प्रदेश
11. सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ⬇️
Tumblr media
0 notes
appasahebparbhane · 4 months
Text
#समर्थ #परमात्मा #कबीर
#ज्ञान #गंगा #पुस्तक #अवश्य #पढ़ें @आप्पासाहेब विश्वनाथ परभणे
भारत ही नहीं दुनियाभर में परमेश्वर की प्राप्ति का दावा करने वाले अनेक पंथ हैं, जिनकी अलग-अलग विचारधारा एवं साधना पद्धति है। ऐसा ही एक पंथ है राधास्वामी पंथ जोकि भारत समेत पूरे विश्व में फैला हुआ है। जिसकी स्थापना का श्रेय सेठ शिवदयाल जी उर्फ राधास्वामी को दिया जाता है। इस पंथ से अनेकों मनमुखी शाखाएं प्रारंभ हो चुकी ���ैं जिन्होंने आध्यत्मिक ज्ञान के नाम पर लाखों श्रद्धालुओं को गुमराह कर रखा है।
इस वीडियो में राधास्वामी पंथ समेत इससे निकली शाखा तुलसीदास जी द्वारा स्थापित जयगुरुदेव पंथ, मथुरा और श्री ताराचंद जी द्वारा गांव दिनोद जिला भिवानी, हरियाणा में स्थापित पंथ के अज्ञान को उजागर किया गया है। इन पंथों का मानना है कि सत्यलोक में परमात्मा नहीं है, बस वहां प्रकाश ही प्रकाश है। साथ ही, उनका मानना है कि मोक्ष प्राप्त प्राणी मृत्यु उपरान्त उस प्रकाश में इस प्रकार विलीन हो जाता है, जिस तरह कि समुद्र की बूंद समुद्र में गिरकर विलीन हो जाती है अर्थात सत्यलोक में आत्मा और परमात्मा का कोई अस्तित्व नहीं है।
जबकि संत रामपाल जी महाराज ने कबीर साहेब की वाणियों से साबित किया है कि सतलोक में भी सृष्टि हैं। वहां सतपुरुष और हंस आत्माओं का अस्तित्व भिन्न-भिन्न है। जहां स्वयं कबीर जी ही सतपुरुष, अविनाशी परमेश्वर के रूप में विराजमान हैं। स्वयं कबीर परमेश्वर ने सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
Tumblr media Tumblr media Tumblr media
1 note · View note
jyotis-things · 5 months
Text
( #Muktibodh_Part281 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part282
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 536-539
”परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों की स्थापना“
कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात शंख ब्रह्माण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया।
अन्य कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, वह स्वतंत्र राज्य करेगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के साथ सात शंख ब्रह्माण्डों में जन्म-मृत्यु का
कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्माण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी।
परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूँ तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की
इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने (जो परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों में फं��ी हैं) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माएँ गई हैं वे तो वहाँ मौज-मस्ती मनाएँगे, हम पीछे रह गये। परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष
अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए
सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माएँ जो पहले काल ब्रह्म के साथ गई आत्माओं के प्रेम में व्याकुल थी, वे अक्षर पुरूष के वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं
के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्रा रूप
बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात शंख ब्रह्माण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की।
इस लिए परब्रह्म के लोक (सात शंख ब्रह्माण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात शंख ब्रह्माण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात शंख ब्रह्माण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।
पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्माण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों तथा परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक
हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्माण्ड़ों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु है।
पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों सहित असंख्य ब्रह्माण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब
चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा
बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी.वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्रा दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।
इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।
क्रमशः_____
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes
pradeepdasblog · 5 months
Text
( #Muktibodh_Part281 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part282
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 536-539
”परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों की स्थापना“
कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात शंख ब्रह्माण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया।
अन्य कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, वह स्वतंत्र राज्य करेगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के साथ सात शंख ब्रह्माण्डों में जन्म-मृत्यु का
कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्माण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी।
परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूँ तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की
इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर द��या। इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने (जो परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों में फंसी हैं) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माएँ गई हैं वे तो वहाँ मौज-मस्ती मनाएँगे, हम पीछे रह गये। परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष
अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए
सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माएँ जो पहले काल ब्रह्म के साथ गई आत्माओं के प्रेम में व्याकुल थी, वे अक्षर पुरूष के वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं
के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्रा रूप
बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात शंख ब्रह्माण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की।
इस लिए परब्रह्म के लोक (सात शंख ब्रह्माण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात शंख ब्रह्माण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात शंख ब्रह्माण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।
पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्माण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों तथा परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक
हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्माण्ड़ों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु है।
पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों सहित असंख्य ब्रह्माण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब
चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा
बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी.वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्रा दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।
इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।
क्रमशः_____
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Tumblr media
0 notes
sonuonlinetechnical · 7 months
Text
माता सरस्वती जी के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां
माता सरस्वती हिंदू धर्म की एक प्रमुख द��वी हैं और वे ज्ञान, विद्या, कला, संगीत और शिक्षा की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। इनके पूजन का समय वसंत ऋतु के आरंभ के समय आता है, जिसे बसंत पंचमी कहा जाता है। यह पर्व सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है और यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पंचमी को आता है, जिसे हम सामान्यत: फरवरी-मार्च के बीच देख सकते हैं।
Tumblr media
सरस्वती देवी के दर्शन, वस्त्र, और आकृति की प्रतिमा में हाथ में वीणा होती है और वे हंस पर विराजमान होती हैं। वीणा उनकी प्रमुख वाहना भी है। माता सरस्वती की पूजा में सबसे अधिक चंदन की माला, कुमकुम, अक्षत, फूल आदि का प्रयोग होता है।
वेदों में माता सरस्वती को 'वाग्देवी' और 'वेदमाता' के रूप में उपासित किया गया है, जिसका अर्थ है कि वे वाणी की देवी हैं और वेदों की माता हैं। वे विद्या के स्रोत के रूप में जानी जाती हैं और छात्रों को ज्ञान की प्राप्ति में संचालित करने वाली हैं।
वैदिक धर्म के साथ ही सरस्वती देवी को पुराणों और इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनकी कई कहानियाँ हैं, जिनमें उनके धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने विशेष युद्ध और लड़ाइयाँ लड़ीं हैं।
सरस्वती पूजा को खासकर छात्रों, कलाकारों और विद्वानों द्वारा बहुत महत्व दिया जाता है। इस दिन छात्र अपनी शिक्षा की मां देवी सरस्वती की आराधना करते हैं और उनसे विद्या, बुद्धि और समझ की वरदान प्राप्त करने की कामना करते हैं।
इस प्रकार, माता सरस्वती हिंदू धर्म की एक उच्च देवी हैं जिनकी पूजा और आराधना के माध्यम से विद्या, ज्ञान और कला की प्राप्ति की आशा की जाती है।
1 note · View note
astrovastukosh · 8 months
Text
12 ज्योतिर्लिंगों में से सातवां ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ है। इसके दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🍁 काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग 🍁
Tumblr media
वाराणसी एक ऐसा पावन स्थान है जहाँ काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग विराजमान है। यह शिवलिंग काले चिकने पत्थर का है।
काशी, यानि कि वाराणसी सबसे प्राचीन नगरी है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मणिकर्णिका भी यहीं स्थित है। इस मंदिर का कई बार जीर्णोंद्धार हुआ। इस मंदिर के बगल में ज्ञानवापी  है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्त्व है। इस ज्योतिर्लिंग पर पंचामृत से अभिषेक होता रहता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मरते हुए प्राणियों के कानों में तारक मंत्र बोलते हैं। जिससे पापी लोग भी भव सागर की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी का प्रलय काल में अंत नहीं होगा।
शिवपुराण के अनुसार काशी में देवाधिदेव विश्वनाथजी का पूजन-अर्चन सर्व पापनाशक, अनंत अभ्युदयकारक, संसाररूपी दावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिए अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिए मोक्षदायक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, 7 ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य‍ श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किए गए हैं।
काशी या वाराणसी भगवान शिव की राजधानी मानी जाती है इसलिए अत्यंत महिमामयी भी है।
अविमुक्त क्षेत्र, गौरीमुख, त्रिकंटक विराजित, महाश्मशान तथा आनंद वन प्रभृति नामों से मंडित होकर गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों वाली है काशी।
प्रलय का�� के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
सावन के महीने में भगवान शिव जी के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का विशेष महत्त्व है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रसिद्धि का कारण--
जो यहां है वो कहीं और नहीं विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख काशी विश्वनाथ जहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजे हैं। मान्यता है कि पवित्र गंगा में स्नान और काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
विश्वनाथ दरबार में गर्भगृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं। शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार, निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र की दुनिया में में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और साथ में तंत्र द्वार भी हो।बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
कथा (1)--
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक कथा है। जो इस प्रकार है –
भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती जी के साथ हिमालय पर्वत पर रहते थे। भगवान शिव जी की प्रतिष्ठा में कोई बाधा ना आये इसलिए पार्वती जी ने कहा कि कोई और स्थान चुनिए।
शिव जी को राजा दिवोदास की वाराणसी नगरी बहुत पसंद आयी। भगवान शिव जी के लिए शांत जगह के लिए निकुम्भ नामक शिवगण ने वाराणसी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। लेकिन राजा को दुःख हुआ। राजा ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अपना दुःख दूर करने की प्रार्थना की।
दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहे, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्मा जी के कहने पर शिव जी मंदराचल पर्वत पर चले गए। वे चले तो गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु जी ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद वाराणसी महादेव जी का स्थायी निवास हो गया और शिव जी ने अपने त्रिशूल पर वाराणसी नगरी की स्थापना की।
कथा (2)--
एक और कथा प्रचलित है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस हो गयी थी कि कौन बडा है। तब ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस के ऊपर बैठकर स्तम्भ का ऊपरी छोर ढूंढ़ने निकले और विष्णु जी निचला छोर ढूंढने निकले। तब स्तम्भ में से प्रकाश निकला।
उसी प्रकाश में भगवान शिव जी प्रकट हुए। विष्णु  जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर नहीं ढूंढ सका। लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं होगी क्योंकि खुद की पूजा कराने के लिए उन्होंने झूठ बोला था। तब उसी स्थान पर शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
कथा (3)--
एक ये भी मान्यता है कि भगवान शिव जी अपने भक्त के सपने में आये और कहा कि तुम गंगा में स्नान करोगे उसके बाद तुम्हे दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा। तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तब से ही भगवान शिव माँ पार्वती जी के साथ यहाँ विराजमान हैं।
काशी विश्‍वनाथ मंदिर का इतिहास
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र  ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसी का  सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के स���ल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी।
सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है।
औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 
2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।
इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।
लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह सिलसिला प्राचीनकाल से चला आ रहा है।
इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद,  स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं।
काशी विश्वनाथ की महत्ता---
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल उत्तरप्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी  काशी  या वाराणसी
तीनों लोकों में न्यारी इस धार्मिक नगरी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक महत्व के इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं।
माना जाता है कि भगवान शिव ने इस 'ज्योतिर्लिंग' को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है। पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सान्निध्य में मौजूद हैं। भगवान शिव मंदर पर्वत से काशी आए तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थों तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गए।
विभिन्न ग्रंथों में मनुष्य के सर्वविध अभ्युदय के लिए काशी विश्वनाथजी के दर्शन आदि का महत्व‍ विस्ता‍रपूर्वक बताया गया है। इनके दर्शन मात्र से ही सांसारिक भयों का नाश हो जाता है और अनेक जन्मों के पाप आदि दूर हो जाते हैं.
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।
प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में भी एक विश्वनाथ का मंदिर बनाया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर का भी उतना ही महत्त्व है जितना पुराने विश्वनाथ मंदिर का है। इस नए मंदिर के विषय में एक कहानी है जो मदन मोहन मालवीय से जुडी हुई है। मालवीय जी शिव जी के उपासक थे। एक दिन उन्होंने शिव भगवान की उपासना की तब उन्हें एक भव्य मूर्ति के दर्शन हुए।
जिससे उन्हें आदेश मिला कि बाबा विश्वनाथ की स्थापना की जाये। तब उन्होंने वहां मंदिर बनवाना शुरू करवाया लेकिन वे बीमार हो गए तब यह जानकार उद्योगपति युगल किशोर विरला ने इस मंदिर की स्थापना का कार्य पूरा करवाया। यहाँ भी हजारों की संख्या में भक्तगण दर्शन करने के लिए आते हैं। विद्यालय प्रांगण में स्थापित होने के कारण यह विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
0 notes
indrabalakhanna · 2 months
Text
Satsang Ishwar TV | 05-08-2024 | Episode: 2471 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
#GodMorningMonday
#MondayMotivation
#MondayThoughts
#परमात्मा_दुखी_को_सुखी_करता_है
#कबीर_परमात्मा_की_भक्ति_से_लाभ
#TrueGuru
#TatvadarshiSant
#SantRampalJiMaharaj
#आओ_जानें_भगवान_को
#God #spiritual #meditation #bhagavadgita #hinduism #sanatandharma #lordshiva #jaishreeram #jaimahakal #lordhanuman #lordrama #lordganesha #photochallenge #viralshorts #exploremore #photographychallenge #spirituality #chakras #shiva #instagood
#krishna #mahadev
#KabirIsGod
#Kabir_Is_RealGod
#ImmortalGodKabir
#SupremeGodKabir
#SaintRampalJi
#Kabir #kabirvani #Vedas #scriptures #Puran #Allah #viralreel #viralreelsfb #trendingnow #trend #trendingreels #viralvideo
#SaintRampalJiQuotes
#SantRampalJiQuotes
#SatlokAshram
SA News Channel
🙏वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र पूर्ण सतगुरु तत्वदर्शी संत हैं,भक्ति मुक्ति के दाता नाम दीक्षा अधिकारी पुरुष हैं!
🙏हमारे वेदों में प्रमाण हैं + हमारे शास्त्र और पुराण भी गवाही देते हैं कि हम सब आत्माओं के मूल मालिक पूर्ण ब्रह्म अक्षर पुरुष_कबीर परमेश्वर जी हैं,सृष्टि के रचयिता है, अनंत ब्रह्मांड के मालिक हैं, समर्थ सुखसागर हैं!
🙏पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी की भक्ति करने से ही हमें सभी शुभ लाभ प्राप्त हो सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है!
काल कर्म बंधन से हम कबीर परमेश्वर की भक्ति द्वारा ही मुक्ति पा सकते हैं!
🙏Must Watch Carefully⏬
The Satsang *Head To Toe* ( Start To The End )
And Get True Spiritual Knowledge.
🙏मनुष्य जन्म असंख्यों जन्मों के पुण्यों के बाद प्राप्त होता है!
🙏दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म का लाभ उठाएं !
🙏सतगुरु शरण प्राप्त करें और मानव जीवन का कल्याण करायें!
🙏हम एक ���ी परमात्मा की संतान हैं!
🙏कृपया शास्त्र विरुद्ध भक्ति करवाने वाले अधूरे गुरुओं की पहचान करें !
🙏मानव जीवन से खिलवाड़ करने वाले गुरुओं का त्याग करने में देर ना करें_झूठे गुरु अज्ञानी गुरु पक्के काल के दूत हैं, जो मानव जन्म को हल्के में ले रहे हैं और निरंतर काल का ग्रास बना रहे हैं!
🙏कृपया सच्चे पूर्ण सतगुरु की पहचान करें !
परमात्मा स्वयं धरती पर उतर आये है!
⏬👇
🙏कोयल के बच्चे_ कोयल की कूक से अपनी मां की पहचान कर लेते हैं और उसके पीछे दौड़ जाते हैं वह काग वाला घोंसला छोड़ जाते हैं,
ठीक उसी प्रकार परमात्मा की हंस आत्माएं परमात्मा को उसके पवित्र ज्ञान से पहचान लेती हैं!
🙏परमात्मा स्वयं सतगुरु बनकर धरती पर हमारे उद्धार के लिए प्रत्येक युग में आते हैं!
🙏परमात्मा ने इस कलयुग को *भक्ति युग + स्वर्ण युग की संज्ञा दी हैं! और कहा कि संत गरीबदास जी वाले पर 12 वें पंथ में हम ही चल आएंगे! 🙏कबीर जी ने यहां तक कहा कि मेरे संत को मेरा ही रूप जान मानकर भक्ति कीजिए!
*कबीरअवतार_ संतरामपालजीमहाराज*
#GodKabir_CreatorOfUniverse
@satkabir_
*👌सारे पापों से बचाने वाला+सभी पुण्यों को प्राप्ति कराने वाला+पवित्र मनवांछित फल देने वाला_सबसे सर्वोत्तम तीर्थ धाम है!*
*Bandichod Satguru Sant Rampal Ji Maharaj*
*Baakhabar Sant Rampal Ji Maharaj*
*👌पूर्ण और सच्चे संत / पादरी / पीर / फकीर हैं_ संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर वर्तमान में!* *सारे मानव समाज का कल्याण है संत रामपाल जी महाराज के हाथों में+सभी आत्माओं की सद्गति है संत रामपाल जी महाराज के चरण कमलों में! *
🙏⏬
*पूर्ण सतगुरु का जीवन में अनमोल महत्व है! *
0 notes
mahadeosposts · 8 months
Text
Tumblr media
( #Muktibodh_part187 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part188
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 359-360
कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ का सारांश (छठा अध्याय) जैसा कि इस ग्रन्थ (कबीर सागर का सरलार्थ) के प्रारम्भ में लिखा है कि कबीर सागर
के यथार्थ अर्थ को न समझकर कबीर पंथियों ने इस ग्रन्थ में अपने विवेक अनुसार फेर-बदल किया है। कुछ अंश काटे हैं। कुछ आगे-पीछे किए हैं। कुछ बनावटी वाणी लिखकर कबीर सागर का नाश किया है। परंतु सागर तो सागर ही होता है। उसको खाली नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार कबीर सागर में बहुत सा सत्य विवरण उनकी कुदृष्टि से बच गया है। शेष मिलावट को अब एक बहुत पुराने हस्तलिखित ‘‘कबीर सागर‘‘ से मेल करके तथा संत गरीबदास जी की अमृतवाणी के आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा मुझ दास (रामपाल दास) को दिया, दिव्य ज्ञान के आधार से सत्य ज्ञान लिखा गया है। एक प्रमाण बताता हूँ जो बुद्धिमान के लिए पर्याप्त है। ज्ञान प्रकाश में परमेश्वर कबीर जी द्वारा धनी धर्मदास जी को शरण में लेने का विवरण है। आपसी संवाद है, परंतु धर्मदास जी का निवास स्थान भी गलत लिखा है। पृष्ठ 21 पर पूर्व गुरू रूपदास जी से शंका का निवारण करके अपने घर चले गए। धर्मदास जी
का निवास स्थान ‘‘मथुरा नगर‘‘ लिखा है, वाणी इस प्रकार हैः-
तुम हो गुरू वो सतगुरू मोरा।
उन हमार यम फंदा तोरा (तोड़ा)।।
धर्मदास तब करी प्रणामा।
मथुरा नगर पहुँचे निज धामा।।
जबकि धर्मदास जी का निज निवास स्थान ‘‘बांधवगढ़‘‘ कस्बा था जो मध्यप्रदेश में है। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में सर्व सत्य विवरण लिखा है कि धर्मदास बांधवगढ़ के रहने वाले सेठ थे। वे तीर्थ यात्रा के लिए मथुरा गए थे। उसके पश्चात् अन्य तीर्थों पर जाना था। कुछ तीर्थों पर भ्रमण कर आए थे। नकली कबीरपंथियों द्वारा किए फेर-बदल का
अन्य प्रमाण इसी ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण चल रहा है। बीच में सर्वानन्द ब्राह्मण की कथा लिखी है जो वहाँ पर नहीं होनी चाहिए। केवल धर्मदास की ही बात होनी चाहिए। पृष्ठ 37 से 50 तक सर्वानन्द की कथा है। इससे पहले पृष्ठ 34 पर धर्मदास जी को नाम दीक्षा देने, आरती-चांका करने का प्रकरण है। पृष्ठ 35 पर गुरू की महिमा की वाणी
है जो पृष्ठ 36 तक है। फिर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई है जो मात्र तीन वाणी हैं। इसके बाद ‘‘सतगुरू वचन‘‘ वाला प्रकरण मेल नहीं करता। पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई की तीन वाणी के पश्चात् पृष्ठ 50 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ से मेल (स्पदा) करता है जो सर्वानन्द
के प्रकरण के पश्चात् ‘‘धर्मदास वचन‘‘ की वाणी है।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई हो साहब तव पद सिर नाऊँ। तव पद परस परम पद पाऊँ।।
केहि विधि आपन भाग सराही । तव बरत गहैं भाव पुनः बनाई।।
कोधों मैं शुभ कर्म कमाया।
जो सदगुरू तव दर्शन पाया।।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 50 ‘‘धर्मदास वचन‘‘
धन्य धन्य साहिब अविगत नाथा।
प्रभु मोहे निशदिन राखो साथा।।
सुत परिजन मोहे कछु न सोहाही।
धन दारा अरू लोक बड़ाई।।
इसके पश्चात् सही प्रकरण है। बीच में अन्य प्रकरण लिखा है, वह मिलावटी तथा गलत है।
नाम दीक्षा देने के पश्चात् परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को प्रसन्न करने के लिए कहा कि जब आपको विश्वास हो जाएगा कि मैं जो ज्ञान तथा भक्ति मंत्रा बता रहा हूँ, वे सत्य हैं। फिर तेरे को गुरू पद दूँगा। आप दीक्षा लेने वाले से सवा लाख द्रव्य (रूपये या सोना) लेकर दीक्षा देना। परमात्मा ने धर्मदास जी की परीक्षा ली थी कि वैश्य (बनिया) जाति से है यदि लालची होगा तो इस लालचवश मेरा ज्ञान सुनता रहेगा। ज्ञान के पश्चात् लालच रहेगा ही नहीं। परंतु धर्मदास जी पूर्ण अधिकारी हंस थे। सतलोक से विशेष आत्मा भेजे थे।
फिर उन्होंने इस राशि को कम करवाया और निःशुल्क दीक्षा देने का वचन करवाया यानि माफ करवाया।
अब ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 9 से आवश्यक वाणी लेते हैं क्योंकि जो अमृतवाणी परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से बोली गई है, उसके पढ़ने-सुनने से भी अनेकों पाप नाश होते हैं। ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 9 से वाणीः-
धर्मदास बोध = ज्ञान प्रकाश
निम्न वाणी पुराने कबीर सागर ग्रन्थ के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ से हैं :-
बांधवगढ़ नगर कहाय।
तामें धर्मदास साह रहाय।।
धन का नहीं वार रू पारा।
हरि भक्ति में श्रद्धा अपारा।।
रूप दास गुरू वैष्णव बनाया।
उन राम कृष्ण भगवान बताया।।
तीर्थ बरत मूर्ति पूजा।
एकादशी और सालिग सूजा।।
ताके मते दृढ़ धर्मनि नागर।
भूल रहा वह सुख का सागर।।
तीर्थ करन को मन चाहा।
गुरू आज्ञा ले चला उमाहा।।
भटकत भ्रमत मथुरा आया।
कृष्ण सरोवर में उठ नहाया।।
चौका लीपा पूजा कारण।
फिर लगा गीता सलोक उचारण।।
ताही समय एक साधु आया।
पाँच कदम पर आसन लाया।।
धर्मदास को कहा आदेशा।
जिन्दा रूप साधु का भेषा।।
धर्मदास देखा नजर उठाई।
पूजा में मगन कछु बोल्या नाहीं।।
जग्यासु वत देखै दाता।
धर्मदास जाना सुनत है बाता।।
ऊँचे सुर से पाठ बुलाया।
जिन्दा सुन-सुन शीश हिलाया।।
धर्मदास किया वैष्णव भेषा।
कण्ठी माला तिलक प्रवेशा।।
पूजा पाठ कर किया विश्रामा।
जिन्दा पुनः किया प्रणामा।।
जिन्दा कहै मैं सुना पाठ अनुपा।
तुम हो सब संतन के भूपा।।
मोकैं ज्ञान सुनाओ गोसाँई।
भक्ति सरस कहीं नहीं पाई।।
मुस्लिम हिन्दू गुरू बहु देखे।
आत्म संतोष कहीं नहीं एके।।
धर्मदास मन उठी उमंगा।
सुनी बड़ाई तो लागा चंगा।।
◆ धर्मदास वचन
जो चाहो सो पूछो प्रसंगा।
सर्व ज्ञान सम्पन्न हूँ भक्ति रंगा।।
पूछहूँ जिन्दा जो तुम चाहो।
अपने मन का भ्रम मिटाओ।।
◆ जिन्द वचन
तुम काको पाठ करत हो संता।
निर्मल ज्ञान नहीं कोई अन्ता।।
मोकूं पुनि सुनाओ बाणी।
जातें मिलै मोहे सारंग पाणी।।
तुम्हरे मुख से ज्ञान मोहे भावै।
जैसे जिह्ना मधु टपकावै।।
धर्मदास सुनि जब कोमल बाता।
पोथी निकाली मन हर्षाता।।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes
kisturdas · 8 months
Text
Tumblr media
( #Muktibodh_part185 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part186
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 355-356
पारख के अंग की वाणी नं. 1063-1096 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने ही गुप्त रूप में दस सिर वाले रावण को मारा। हम ही ज्ञानी हैं। चतुर भी हम ही हैं। चोर भी हम हैं क्योंकि काल के जाल से निकालने वाला स्वयं सतपुरूष होता है। अपने को छुपाकर चोरी-छुपे सच्चा ज्ञान बताता है। यह रंग रास यानि आनंददायक वस्तुएँ भी मैंने बनाई हैं। सब आत्माओं की उत्पत्ति मैंने की है जिससे काल ब्रह्म ने भिन्न-भिन्न योनियां (जीव) बनाई हैं। जब-जब भक्तों पर आपत्ति आती है, मैं ही सहायता करता हूँ। व्रतासुर ने जब वेद चुराए थे तो मैंने ही बरहा रूप धरकर व्रतासुर को मारकर वेदों की रक्षा की थी।
हिरण्यकशिपु को मैंने ही नरसिंह रूप धारण करके उदर फाड़कर मारा था। मैंने ही बली राजा की यज्ञ में बावन रूप बनाकर तीन कदम (डंग) स्थान माँगा था। सुरपति के राज की रक्षा की थी। महिमा विष्णु की बनाई थी। इन्द्र ने विष्णु को पुकारा। विष्णु ने मुझे पुकारा।
त��� मैं गया था। मैं जन्मता-मरता नहीं हूँ। इसलिए चार प्रकार से जो अंतिम संस्कार किया जाता है, वह मेरा नहीं होता। हम किसी को भ्रमित नहीं करते। काल का रूप मन सबको भ्रमित करता है। करोड़ों शंकर मरकर समूल (जड़ा मूल से) चले गए। ब्रह्मा, विष्णु की गिनती नहीं कि कितने मरकर जा चुके हैं। मैं वह परमेश्वर
हूँ जिसका गुणगान वेद तथा कतेब (कुरान व बाईबल) करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, सनकादिक भी जिसे प्राप्त नहीं कर सके, वे प्रयत्न करके थक चुके हैं। अल्फ रूप यानि मीनी सतलोक भी हमारा अंग (भाग) है। उसको भी ये प्राप्त नहीं कर सके जहाँ पर अनंत करोड़ त्रिवेणी तथा गंगा बह रही हैं। हमारे लोक में स्वर्ग-नरक नहीं, मृत्यु नहीं होती। कोई बंधन
नहीं है। सब स्वतंत्रा हैं। सत्य शब्द उस स्थान को प्राप्त करवाने का मंत्र है। केवल हमारे वचन (शब्द) से उत्पन्न ऊपर के लोक तथा उनमें रहने वाले भक्त/भक्तमती (हंस, हंसनी) अमर रहेंगे, और सब ब्रह्माण्ड एक दिन नष्ट हो जाएँगे। कच्छ, मच्छ, कूरंभ, धौल, धरती सब नष्ट हो जाएँगे। स्वर्ग, पाताल सब नष्ट हो जाएँगे। इन्द्र, कुबेर, वरूण, धर्मराय, ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव भी मर जाएँगे। आदि माया (दुर्गा) काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी मरेंगे।
सब संसार मरेगा। हम नहीं मरेंगे। जो हमारी शरण में हैं, वो नहीं मरेंगे। सतलोक में मौज करेंगे।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1097-1124 (धर्मदास जी ने कहा) :-
धर्मदास बोलत है बानी, कौंन रूप पद कहां निशानी।
तुम जो अकथ कहांनी भाषी, तुमरै आगै तुमही साषी।।1097।।
योह अचरज है लीला स्वामी, मैं नहीं जानत हूं निजधामी।
कौन रूप पदका प्रवानं, दया करौं मुझ दीजै दानं।।1098।।
हम तो तीरथ ब्रत करांही, अगम धामकी कछु सुध नांही।
गर्भ जोनि में रहैं भुलाई, पद प्रतीति नहीं मोहि आई।।1099।।
हम तुम दोय या एकम एका, सुन जिंदा मोहि कहौ बिबेका।
गुण इन्द्री और प्राण समूलं, इनका कहो कहां अस्थूलं।।1100।।
तुम जो बटकबीज कहिदीन्या, तुमरा ज्ञान हमौं नहीं चीन्या।
हमकौं चीन्ह न परही जिंदा, कैसे मिटै प्राण दुख दुन्दा।।1101।।
त्रिदेवनकी की महिमा अपारं, ये हैं सर्व लोक करतारं।
सुन जिन्दा क्यूं बात बनाव, झूठी कहानी मोहे सुनावैं।।1102।।
मैं ना मानुं, बात तुम्हारी। मैं सेवत हूँ, विष्णु नाथ मुरारी।
शंकर-गौरी गणेश पुजाऊँ, इनकी सेवा सदा चित लाऊँ।।1103।।
तहां वहां लीन भये निरबांनी, मगन रूप साहिब सैलानी।
तहां वहां रोवत है धर्मनीनागर, कहां गये तुम सुख के सागर।।1104।।
अधिक बियोग हुआ हम सेती, जैसैं निर्धन की लुटी गई खेती।
कलप करै और मन में रोवै, दशौं दिशा कौं वह मग जोवै।।1105।।
हम जानैं तुम देह स्वरूपा, हमरी बुद्धि अंध गृह कूपा।
हमतो मानुषरूप तुम जान्या, सुन सतगुरू कहां कीन पियाना।।1106।।
बेग मिलौ करि हूं अपघाता, मैं नाहीं जीवूं सुनौं विधाता।
अगम ज्ञान कुछि मोहि सुनाया, मैं जीवूं नहीं अविगत राया।।1107।।
तुम सतगुरू अबिगत अधिकारी, मैं नहीं जानी लीला थारी।
तुम अविगत अविनाशी सांई, फिरि मोकूं कहां मिलौ गोसांई।।1108।।
दोहा - कमर कसी धर्मदास कूं, पूरब पंथ पयान।
गरीब दास रोवत चले, बांदौगढ अस्थान।।1109।।
जा पौंहचैं काशी अस्थाना, मौमन के घरि बुनि है ताना।
षटमास बीतै जदि भाई, तहां धर्मदास यग उपराई।।1110।।
बांदौगढ में यग आरंभा, तहां षटदर्शन अधि अचंभा।
यज्ञमांहि जगदीश न आये, धर्मदास ढूंढत कलपाये।।1111।।
अनंत भेष टुकड़े के आहारी, भेटै नहीं जिंद व्यौपारी।
तहां धर्मदास कलप जब कीनं, पलक बीच बैठै प्रबीनं।।1112।।
औही जिंदे का बदन शरीरं, बैठे कदंब वृक्ष के तीरं।
चरण लिये चिंतामणि पाई, अधिक हेत सें कंठ लगाई।।1113।।
◆ कबीर वचन :-
अजब कुलाहल बोलत बानी, तुम धर्मदास करूं प्रवानी।
तुम आए बांदौगढ स्थाना, तुम कारण हम कीन पयाना।।1114।।
अललपंख ज्यूं मारग मोरा, तामधि सुरति निरति का डोरा।
ऐसा अगम ज्ञान गोहराऊँ, धर्मदास पद पदहिं समाऊं।।1115।।
गुप्त कलप तुम राखौं मोरी, देऊँ मक्रतार की डोरी।
पद प्रवानि करूं धर्मदासा, गुप्त नाम हृदय प्रकाशा।।1116।।
हम काशी में रहैं हमेशं, मोमिन घर ताना प्रवेशं।
भक्ति भाव लोकन कौ देही, जो कोई हमारी सिष बुद्धि लेही।।1117।।
ऐसी कलप करौ गुरूराया, जैसे अंधरें लोचन पाया।
ज्यूं भूखैकौ भोजन भासै, क्षुध्या मिट��� है कलप तिरासै।।1118।।
जैसै जल पीवत तिस जाई, प्राण सुखी होय तृप्ती पाई।
जैसे निर्धनकूं धन पावैं, ऐसैं सतगुरू कलप मिटावैं।।1119।।
कैसैं पिण्ड प्राण निसतरहीं, यह गुण ख्याल परख नहीं परहीं।
तुम जो कहौ हम पद प्रवानी, हम यह कैसैं जानैं सहनानी।।1120।।
दोहा - धर्म कहैं सुन जिंद तुम, हम पाये दीदार।
गरीबदास नहीं कसर कुछ, उधरे मोक्षद्वार।।1121।।
◆ कबीर वचन :-
अजर करूं अनभै प्रकाशा, खोलि कपाट दिये धर्मदासा।
पद बिहंग निज मूल लखाया, सर्व लोक एकै दरशाया।।1122।।
खुलै कपाट घाटघट माहीं, शंखकिरण ज्योति झिलकांहीं।
सकल सृष्टि में देख्या जिंदा, जामन मरण कटे सब फंदा।।1123।।
दोहा - जिंद कहैं धर्मदास सैं, अभय दान तुझ दीन।
गरीबदास नहीं जूंनि जग, हुय अभय पद लीन।।1124।।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
1 note · View note
1479053 · 9 months
Text
( #Muktibodh_part154 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part155
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 298-299
परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को साथ लेकर सत्यलोक में गए। वहाँ सर्व आत्माओं का भी मानव सदृश शरीर है। उनके शरीर का भी सफेद प्रकाश है। परन्तु सत्यलोक निवासियों के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। बालक रूपधारी कविर्देव ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चंवर किया। जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय था तथा सिंहासन पर एक सफेद गुबन्द में विराज मान था। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि पूर्ण परमात्मा तो यह है जो तेजोमय शरीर युक्त है। यह बाल रूपधारी आत्मा कबीर यहाँ का अनुचर अर्थात् सेवक होगा। स्वामी रामानन्द जी ने इतना विचार ही किया था। उसी समय सिंहासन पर विराजमान तेजोमय शरीर युक्त परमात्मा सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया तथा बालक कबीर जी को सिंहासन पर बैठने के लिए प्रार्थना की नीचे से रामानन्द जी के साथ गया बालक कबीर जी उस सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा वह तेजोमय शरीर धारी प्रभु बालक के सिर पर
श्रद्धा से चंवर करने लगा। रामानन्द जी ने सोचा यह परमात्मा इस बच्चे पर चंवर करने लगा।
यह बालक यहां का नौकर (सेवक) नहीं हो सकता। इतने में तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। बालक कबीर जी का शरीर उसी प्रकार उतने ही
प्रकाश युक्त हो गया जितना पहले सिंहासन पर बैठे पुरूष (परमेश्वर) का था।
◆ वाणी नं. 555-567 का सरलार्थ :- इतनी लीला करके स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया। महर्षि रामानन्द जी ने आँखे खोल कर देखा तो बालक रूपधारी
परमेश्वर कबीर जी को सामने भी बैठा पाया। महर्षि रामानन्द जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बालक कबीर जी ही परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव (कुल का मालिक) है। दोनों स्थानों
(ऊपर सत्यलोक में तथा नीचे पृथ्वी लोक में) पर स्वयं ही लीला कर रहा है। यही परम दिव्य पुरूष अर्थात् आदि पुरूष है। सत्यलोक में जहाँ पर यह परमात्मा मूल रूप में निवास करता है
वह सनातन परमधाम है। परमेश्वर कबीर जी ने इसी प्रकार सन्त गरीबदास जी महाराज छुड़ानी (हरयाणा) वाले को सर्व ब्रह्मण्डों को प्रत्यक्ष दिखाया था। उनका ज्ञान योग खोल दिया था तथा परमेश्वर ने गरीबदास जी महाराज को स्वामी रामानन्द जी के विषय में बताया था कि किस प्रकार मैंने स्वामी जी को शरण में लिया था। महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में उल्लेख किया है।
तहाँ वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार।
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार।
गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस।
गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश।
गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर।
गरीबदास सरबंग में, अविगत पुरूष कबीर।।
कोटि-2 सिजदा किए, कोटि-2 प्रणाम।
गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।
बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरू प्राण।।
◆ उपरोक्त वाणी का भावार्थ :- सत्यलोक में तथा काशी नगर में पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर परमात्मा कबीर जी को देख कर स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कबीर परमात्मा आप दोनों
स्थानों पर लीला कर रहे हो। आप ही निज ब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् वास्तविक परमेश्वर तो क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष
(परब्रह्म) से अन्य ही है। वही परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है वह परम अक्षर ब्रह्म आप ही हैं। आप ही की शक्ति से सर्व प्राणी गति कर
रहे हैं। मैंने आप का वह सनातन परम धाम आँखों देखा है तथा वास्तविक अनहद धुन तो ऊपर सत्यलोक में है। ऐसा कह कर स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर के चरणों में कोटि-2
प्रणाम किया तथा कहा आप परमेश्वर हो, आप ही सतगुरु तथा आप ही तत्त्वदर्शी सन्त हो आप ही हंस अर्थात् नीर-क्षीर को भिन्न-2 करने वाले सच्चे भक्त के गुणों युक्त हो। कबीर भक्त नाम से यहाँ पर प्रसिद्ध हो वास्तव में आप परमात्मा हो। मैं आपका भक्त आप मेरे गुरु जी।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे स्वामी जी ! गुरु जी तो आप ही रहो। मैं आपका शिष्य हूँ। यह गुरु परम्परा बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। यदि आप मेरे गुरु जी रूप में नहीं
रहोगे तो भविष्य में सन्त व भक्त कहा करेंगे कि गुरु बनाने की कोई अवश्यकता नहीं है। सीधा ही परमात्मा से ही सम्पर्क करो। ‘‘कबीर’’ ने भी गुरु नहीं बनाया था।
हे स्वामी जी! काल प्रेरित व्यक्ति ऐसी-2 बातें बना कर श्रद्धालुओं को भक्ति की दिशा से भ्रष्ट किया करेंगे तथा काल के जाल में फाँसे रखेंगे। इसलिए संसार की दृष्टि में आप मेरे गुरु
जी की भूमिका कीजिये तथा वास्तव में जो साधना की विधि मैं बताऊँ आप वैसे भक्ति कीजिए।
स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की बात को स्वीकार किया। कबीर परमेश्वर जी एक रूप में स्वामी रामानन्द जी को तत्त्वज्ञान सुना रहे थे तथा अन्य रूप धारण करके कुछ ही
समय उपरान्त अपने घर पर आ गए। क्योंकि वहाँ नीरू तथा नीमा अति चिन्तित थे। बच्चे को सकुशल घर लौट आने पर नीरू तथा नीमा ने परमेश्वर का शुक्रिया किया। अपने बच्चे कबीर
को सीने से लगा कर नीमा रोने लगी तथा बच्चे को अपने पति नीरू के पास ले गई। नीरू ने भी बच्चे कबीर से प्यार किया। नीरू ने पूछा बेटा! आपको उन ब्राह्मणों ने मारा तो नहीं? कबीर जी
बोले नहीं पिता जी! स्वामी रामानन्द जी बहुत अच्छे हैं। मैंने उनको गुरु बना लिया है। उन्होंने मुझको सर्व ब्राह्मण समाज के समक्ष सीने से लगा कर कहा यह मेरा शिष्य है। आज से मैं सर्व
हिन्दू समाज के सर्व जातियों के व्यक्तियों को शिष्य बनाया करूँगा। माता-पिता (नीरू तथा नीमा) अति प्रसन्न हुए तथा घर के कार्य में व्यस्त हो गए।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा हे कबीर जी! हम सर्व की बुद्धि पर पत्थर पड़े थे आपने ही अज्ञान रूपी पत्थरों को हटाया है। बड़े पुण्यकर्मों से आपका दर्शन सुलभ हुआ है।
(यह शब्द कबीर सागर में अध्याय अगम निगम बोध के पृष्ठ 38 पर लिखा है।)
मेरा नाम कबीरा हूँ जगत गुरू जाहिरा।(टेक)
तीन लोक में यश है मेरा, त्रिकुटी है अस्थाना।
पाँच-तीन हम ही ने किन्हें, जातें रचा जिहाना।।
गगन मण्डल में बासा मेरा, नौवें कमल प्रमाना।
ब्रह्म बीज हम ही से आया, बनी जो मूर्ति नाना।।
संखो लहर मेहर की उपजैं, बाजै अनहद बाजा।
गुप्त भेद वाही को देंगे, शरण हमरी आजा।।
भव बंधन से लेऊँ छुड़ाई, निर्मल करूं शरीरा।
सुर नर मुनि कोई भेद न पावै, पावै संत गंभीरा।।
बेद-कतेब ��ें भेद ना पूरा, काल जाल जंजाला।
कह कबीर सुनो गुरू रामानन्द, अमर ज्ञान उजाला।।
क्रमशः________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••��•••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
youtube
Tumblr media Tumblr media
0 notes
anilkus5123-blog · 1 year
Text
Tumblr media
🎋🌏कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं🌏।🎋
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिंन्द्र मेरा। द्वापर में करुणामय कहाया कलयुग नाम कबीर धराया।।
इस वाणी में कबीर परमेश्वर ने कहा है कि, में चारों युगों में पृथ्वी पर आता हूं, सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन���द्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर नाम से आता हूं।
जिस परमात्मा को हम निराकार मान रहे थे वह परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कबीर है। जिसका प्रमाण सद्ग्रंथों के इन मंत्रों में है 👇👇
यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 में लिखा है कि
"अग्ने: तनूर असि"विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि" इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि वह सर्वव्यापक, सर्व का पालनहार परमात्मा सशरीर है, साकार है।
तथा
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है कि
"कविरंघारि: असि, बम्भारी: असि स्वज्योति ऋतधामा असि" अर्थात कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु यानि सर्व पापों से मुक्त करवाकर, सर्व बंधनों से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित सशरीर है और सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,
ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3,
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में प्रमाण है कि, पूर्ण परमात्मा कभी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि,
जब पूर्ण परमात्मा पृथ्वी पर शिशु रुप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है,उस समय उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96
मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कवियों की तरह आचरण करता हुआ कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए सुखदाई होती है।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) चारों युगों में पृथ्वी पर कभी भी कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
अपना तत्वज्ञान दोहों, शब्दों तथा कविताओं द्वारा बोलकर सुनाते हैं।
ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में मिले। जो इस प्रकार है,👇👇👇
आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
"अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर है कुल के सिरजन हार।।
आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया।
धर्मदास जी ने कहा है कि,
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
रामानंद जी को कबीर परमेश्वर काशी में 104 वर्ष की आयु में मिले। सत्य ज्ञान समझाकर, सतलोक दिखाया।
रामानंद जी ने अपनी अमरवाणी में बताया है कि,
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारने, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस।
गरीबदास तव रुप बिन और न दूजा अंश।।
बोलत रामानंद जी सुनो कबीर करतार,
गरीबदास सब रुप में,तुम ही बोलनहार।।
मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिले। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि,
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर ।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
नानक देव जी को कबीर परमेश्वर बेई नदी के तट पर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। सत्य ज्ञान और सतलोक दिखाया तब नानक देव जी ने कहा था कि,
फाई सुरत मलुकि वेश ऐ ठगवाड़ा ठगी देश।
खरा सियाणा बहुता भार, धाणक रुप रहा करतार।।
दादू साहेब जी को कबीर परमेश्वर मिले, तत्वज्ञान कराया। सत्य ज्ञान से परिचित होकर दादू साहेब ने कहा है कि,
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
इसके अलावा मीरा बाई, अब्राहिम अधम सुल्तान, सिकंदर लोधी, रविदास जी, रंका बंका, नल नील, सेउ समन जैसी अनेकों आत्माओं को मिले।
सर्व बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि, जिसे हम एक कवि और संत मान रहे थे, वह तो पूर्ण परमात्मा है। उपरोक्त वाणीयों तथा प्रमाणों से भी यहीं सिद्ध होता है। हमारे सदग्रंथो में ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है। अपनी शंका दूर करने के लिए आप जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक सत्संग अवश्य देखें, संत रामपाल जी महाराज जी सर्व धर्मों के पवित्र सदग्रंथो में कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने के अनेकों प्रमाण दिखा कर सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं।
👇👇
साधना चैनल पर रात 7:30 से 8:30 बजे तक,
M-H. 1श्रद्धा चैनल पर दोपहर 2:00 से 3:00 बजे तक
#SantRampalJiMaharaj
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
0 notes
shrivast · 1 year
Text
Tumblr media
🎋🌏कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं🌏।🎋
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिंन्द्र मेरा। द्वापर में करुणामय कहाया कलयुग नाम कबीर धराया।।
इस वाणी में कबीर परमेश्वर ने कहा है कि, में चारों युगों में पृथ्वी पर आता हूं, सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिनंद्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर नाम से आता हूं।
जिस परमात्मा को हम निराकार मान रहे थे वह परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कबीर है। जिसका प्रमाण सद्ग्रंथों के इन मंत्रों में है 👇👇
यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 में लिखा है कि
"अग्ने: तनूर असि"विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि" इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि वह सर्वव्यापक, सर्व का पालनहार परमात्मा सशरीर है, साकार है।
तथा
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है कि
"कविरंघारि: असि, बम्भारी: असि स्वज्योति ऋतधामा असि" अर्थात कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु यानि सर्व पापों से मुक्त करवाकर, सर्व बंधनों से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित सशरीर है और सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,
ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3,
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में प्रमाण है कि, पूर्ण परमात्मा कभी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि,
जब पूर्ण परमात्मा पृथ्वी पर शिशु रुप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है,उस समय उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96
मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कवियों की तरह आचरण करता हुआ कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए सुखदाई होती है।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) चारों युगों में पृथ्वी पर कभी भी कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
अपना तत्वज्ञान दोहों, शब्दों तथा कविताओं द्वारा बोलकर सुनाते हैं।
ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में मिले। जो इस प्रकार है,👇👇👇
आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
"अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर है कुल के सिरजन हार।।
आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया।
धर्मदास जी ने कहा है कि,
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
रामानंद जी को कबीर परमेश्वर काशी में 104 वर्ष की आयु में मिले। सत्य ज्ञान समझाकर, सतलोक दिखाया।
रामानंद जी ने अपनी अमरवाणी में बताया है कि,
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारने, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस।
गरीबदास तव रुप बिन और न दूजा अंश।।
बोलत रामानंद जी सुनो कबीर करतार,
गरीबदास सब रुप में,तुम ही बोलनहार।।
मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिले। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि,
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर ।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
नानक देव जी को कबीर परमेश्वर बेई नदी के तट पर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। सत्य ज्ञान और सतलोक दिखाया तब नानक देव जी ने कहा था कि,
फाई सुरत मलुकि वेश ऐ ठगवाड़ा ठगी देश।
खरा सियाणा बहुता भार, धाणक रुप रहा करतार।।
दादू साहेब जी को कबीर परमेश्वर मिले, तत्वज्ञान कराया। सत्य ज्ञान से परिचित होकर दादू साहेब ने कहा है कि,
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
इसके अलावा मीरा बाई, अब्राहिम अधम सुल्तान, सिकंदर लोधी, रविदास जी, रंका बंका, नल नील, सेउ समन जैसी अनेकों आत्माओं को मिले।
सर्व बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि, जिसे हम एक कवि और संत मान रहे थे, वह तो पूर्ण परमात्मा है। उपरोक्त वाणीयों तथा प्रमाणों से भी यहीं सिद्ध होता है। हमारे सदग्रंथो में ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है। अपनी शंका दूर करने के लिए आप जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक सत्संग अवश्य देखें, संत रामपाल जी महाराज जी सर्व धर्मों के पवित्र सदग्रंथो में कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने के अनेकों प्रमाण दिखा कर सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं।
👇👇
साधना चैनल पर रात 7:30 से 8:30 बजे तक,
M-H. 1श्रद्धा चैनल पर दोपहर 2:00 से 3:00 बजे तक
#SantRampalJiMaharaj
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
0 notes
jyotis-things · 7 months
Text
( #Muktibodh_part226 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part227
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 434-435
‘‘बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाण’’
◆ कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी’’ में पृष्ठ 132 पर स्पष्ट किया है कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! तू हमारा अंश है। मैं तेरे को एक गुप्त वस्तु का भेद बताता हूँ जो मैंने गुप्त रखी है। सात सुरति तो उत्पत्ति करने वाली हैं। तुम आठवीं सुरति हो तथा नौतम (नौंवी) सुरति मैंने गुप्त छुपाई है। नौतम सुरति मेरा निज वचन है यानि उसको पूर्ण मोक्ष मंत्र का अधिकार है जिससे दीक्षा लेने के पश्चात् काल चोर उस जीव को रोक नहीं सकता। धर्मदास जी ने प्रार्थना की कि हे परमात्मा! मुझे वह वचन बताओ जिससे जीव फिर से जन्म-मरण के चक्र में न आए। परमात्मा कबीर जी ने कहा कि आठ बूँद यानि सतलोक में स्त्री-पुरूष से उत्पन्न हंसों से जीव मुक्त कराने की योजना बनाई थी। तुम आठवीं बूँद हो। परंतु सबको काल ने भ्रमित कर दिया। अब नौंवी बूँद यानि नौतम सुरति से तुम सहित आठों की मुक्ति कराई जाएगी। नौतम सुरति बूँद प्रकाशा यानि नौंवे हंस का जन्म संसार में बूँद यानि माता-पिता से होगा। उस एक बूँद से तेरे बीयालिस बूँद वाले हंस
पार कर दिए यानि आशीर्वाद दे दिया है, ऐसा होगा।
वाणी :-
वंश बीयालिस बून्द तुम्हारा।
सो मैं एक बून्द (वचन) से तारा।
(कबीर बानी पृष्ठ 132-133 पर)
अनुराग सागर में पृष्ठ 142 पर :-
बिन्द तुम्हारा नाद संग जावै।
देखत दूत मन ही पछतावै।।
भावार्थ :- हे धर्मदास! तेरा वंश नाद वाले के साथ जाएगा यानि नाद वाले से दीक्षा लेगा तो काल के दूत निकट नहीं आएँगे। वे भाग जाएँगे, बहुत पश्चाताप करेंगे कि यह तो पार होगा।
भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि धर्मदास जी की छठी पीढ़ी के पश्चात् काल की साधना
चलेगी। टकसारी पंथ (जो नकली बारह कबीर पंथों में से एक है) वाली भक्ति विधि आरती चौंका, उसी नाम वाला मंत्र (अजर नाम, अमर नाम, पाताले सप्त सिंधु नाम आदि-आदि) दीक्षा में दिया जाता है। जो दामाखेड़ा (छत्तीसगढ़) वाले महंत जी दीक्षा दे रहे हैं, वह टकसारी वाली साधना है जो व्यर्थ है।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘अमर मूल‘‘ के पृष्ठ 242-243 पर दामाखेड़ा वालों ने मिलावट करके लिखी वाणी में कहा है कि सातवीं पीढ़ी वाला तो अभिमानवश विचलित हो जाएगा, परंतु आठवीं पीढ़ी से पंथ का प्रकाश हो जाएगा, परंतु परमात्मा ने वाणी में स्पष्ट किया है कि :-
जो तेरी वंश पीढ़ी वाले गुरू हैं, उनका नाम तो स्वर्ग तक है। आठवां भी काल अपना दूत भेजेगा। इस प्रकार काल बहुत छल करेगा। तुम्हारे वंश का यह लेखा बता दिया है कि बिना सारशब्द के मुक्ति नहीं हो सकती। सारशब्द केवल धर्मदास जी को दिया था और
धर्मदास जी से प्रतिज्ञा करा ली कि यह सारशब्द किसी को नहीं देना। अपने वंश को भी नहीं बताना। हे धर्मदास! तेरे को लाख दुहाई, यह सारशब्द तेरे अतिरिक्त किसी के पास नहीं जाना चाहिए। यदि यह सार शब्द किसी के हाथ लग गया तो वह अन् अधिकारी व्यक्ति सबको भ्रमित कर देगा। सारशब्द को उस समय तक छुपाना है, जब तक 12 पंथों को मिटा न दिया जाए। 12वां (बारहवां) पंथ संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, हरियाणा वाले) का है जिनका जन्म विक्रमी संवत् 1774 (सन् ई. 1717) में हुआ। उनको परमेश्वर कबीर जी धर्मदास जी की तरह मिले थे। उनको भी यही आदेश दिया था कि जब तक कलयुग 5505 वर्ष नहीं बीत जाता, तब तक मूल ज्ञान और मूल शब्द (मूल मंत्र) यानि सार शब्द छुपा कर रखना है। तो वह सार शब्द धर्मदास जी की वंश गद्दी वालों के पास कहाँ से आ गया? वह सार शब्द (मूल शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) मेरे (रामपाल दास के) पास है। विश्व में अन्य किसी के पास नहीं है।
प्रमाण :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136-137 तथा कबीर चरित्र बोध पृष्ठ 1835, 1870 पर तथा ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ पृष्ठ 1937 पर है।
कलयुग सन् 1997 को 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। सन् 1997 को मुझ दास को परमेश्वर कबीर के दर्शन दिन के 10 बजे हुए थे। सार शब्द (मूल शब्द) तथा मूल ज्ञान को सार्वजनिक करने का सही समय बताकर अन्तर्ध्यान हो गये थे। उसी समय से गुरू जी की आज्ञा से सार शब्द अनुयाईयों को प्रदान किया जा रहा है। सबका कल्याण होगा जो मेरे से नाम दीक्षा लेकर मन लगाकर मर्यादा में रहकर भक्ति करेगा, उसका मोक्ष निश्चित है।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes