#उषा सुदर्शन
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IPL 2022: विराट कोहलीचा व्हिडिओ पाहून बी साई सुदर्शनचा दृष्टिकोन बदलला, गुजरात टायटन्सच्या फलंदाजाच्या आईचा खुलासा
IPL 2022: विराट कोहलीचा व्हिडिओ पाहून बी साई सुदर्शनचा दृष्टिकोन बदलला, गुजरात टायटन्सच्या फलंदाजाच्या आईचा खुलासा
खराब फलंदाजी फॉर्मशी झुंज देत असूनही विराट कोहली अनेकांसाठी आयकॉन आहे. वस्तुस्थिती अशी आहे की कोहलीचे त्याचे सहकारी खूप कौतुक करतात. यामध्ये आयपीएल 2022 मध्ये रॉयल चॅलेंजर्स बंगलोरविरुद्ध सामने खेळलेल्या युवा क्रिकेटपटूंचा समावेश आहे. सामना संपल्यानंतर किंवा दुसऱ्या दिवशी कोहली तरुणांशी बोलताना दिसतो. कोहलीची आभा अशी आहे की विरोधी संघाचे खेळाडू इंस्टाग्रामवर आरसीबीच्या माजी कर्णधारासोबत पोज…
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केंद्रीय जेल का प्रहरी कैदियों को बेचता था नशीली वस्तुएं, रंगे हाथों पकड़ा और किया सस्पेंड
उज्जैन से सुदर्शन सोनी की रिपोर्ट
उज्जैन । विगत कुछ वर्षों से उज्जैन स्थित केन्द्रीय जेल भेरूगढ का नाम लगातार सुर्खियों में रहा है । आये दिन जेल में कुछ न कुछ ऐसा घटित होता रहा है जो जेल के साथ अधिकारियों की साख को बट्टा लगा रहा है। ऐसा ही एक मामला पुनः सामने आया है । जेल में सजा काट रहे कैदियों को चरस की गोलियां मुहैया कराने वाले प्रहरी को एसपी ने रंगे हाथों पकडकर निलंबित कर दिया है ।
जेल से मिली जानकारी के अनुसार राजेश उमहेरकर केंद्रीय भैरवगढ़ जेल में प्रहरी है, पिछले कुछ माह से मिल रही गुप्त सूचना एवं उसके रहन सहन को देखते हुए जेल अधिकारियों ने मंगलवार शाम अचानक उसके कपडों की तलाशी की तब उसके शर्ट की आस्तीन में लिपटे करीब 20 हजार 20 रूपये नगद मिले हैं।
राजेश द्वारा जेल के कैदियों तक चरस व अन्य नशीले पदार्थ सप्लाय करने की शिकायत एसपी उषा राज के पास लंबे समय से आ रही थी। उन्होंने ही अफसरों को राजेश पर नजर रखने के निर्देश भी दिये थे।
उसकी वर्दी की तलाशी में रूपये मिलने के बाद वर्दी में लगने वाली सीटी (विसल) को भी खोलकर देखा गया तब उसमें चरस की दो ��ोलियां बरामद की गई । जेल एसपी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए राजेश को निलंबित कर शाजापुर जेल अटैच किया है। जेल एसपी उषा राज ने बताया कि प्रहरी राजेश के पास से रूपये व चरस की गोलियां मिलने के बाद उसे तुरंत निलंबित करने के साथ उसके खिलाफ विभागीय जांच की कार्रवाही भी शुरू कराई गई है ।
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खुशी एक पल नहीं बल्कि यात्रा है - के.एम.टंडन
ISTD कोटा चेप्टर द्वारा स्वर्ण जयंती वर्ष में ‘टेक्नोलॉजी ऑफ हैप्पीनेस’ पर हुई वर्कशॉप न्यूजवेव @ कोटा इंडियन सोसाइटी फॉर ट्रेनिंग एंड डवलपमेंट (ISTD) के स्वर्ण जयती वर्ष में 14 जून को फ्राइडे शेयरिंग सेशन का शुभारम्भ किया गया। कोटा चेप्टर और इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनीयर्स के सयुंक्त तत्वावधान में ‘टेक्नोलॉजी ऑफ हैप्पीनेस’ पर वर्कशॉप आयोजित की गई। मुख्य वक्ता कोटा चेप्टर के पूर्व चेयरमैन के.एम.टंडन ने कहा कि खुशी कोई लक्ष्य नहीं है बल्कि जीवनभर की एक सुखद यात्रा है। सुख-दुःख इस जीवन की फ्रीक्वेंसी में आने वाले ऐसे सिग्नल हैं जो क्षणिक हैं। हर व्यक्ति उतना खुश रह सकता है जितना वो चाहता है। याद रखने वाली बात यह है कि खुद को खुश रहने का दायित्व हमारे उपर ही होता है। कॉर्डिनेटर डॉ अन्नपूर्णा भार्गव ने बताया कि कोटा चेप्टर द्वारा प्रतिमाह निशुल्क फ्राइडे शेयरिंग सेशन का आयोजन होगा जिसमें समाज के सभी वर्गों के ट्रेनिंग एंड डवलपमेंट पर फोकस किया जाएगा। इसमें कोई भी भाग ले सकते हैं। जहां सबके प्रति प्रेम का भाव, वहां नहीं कोई अभाव
KM Tandon उन्होंने कहा कि खुशी के लिए अनुशासित व स्वछंद जीवन निर्वहन आवश्यक है। इसके लिए कुछ न कुछ करने योग्य होना चाहिए। लोगों से रिश्ते प्रगाढ़ होने चाहिए और सोच सकारात्मक होनी चाहिए। कोई सामाजिक सरोकार हो तो प्रसन्नता कई गुना बढ सकती है। सबके प्रति प्रेम का भाव हो तो जीवन में कोई अभाव नहीं हो सकता। टंडन ने कहा कि खुश व्यक्ति स्वयं को भूलकर दूसरों के लिए समर्पित हो जाता है। दुखी व्यक्ति इसके विपरीत आत्मकेंद्रित हो कर अवसाद में चला जाता है। ऐसे में नियमित व्यायाम करें, इच्छाओं को सीमित करें और वर्तमान में जिएं। भूतकाल की त्रुटियों को भुला दें और भविष्य की अधिक चिंता न करें। अधिक देर तक आक्र��श मेें न रहें। भरपूर नींद लें और जीवन की खुशनुमा यात्रा हँसते गाते बिताते चलें। वर्कशॉप में आर्ट ऑफ लिविंग की ट्रेनर उषा वाधवा ने विभिन्न प्राणायाम और मेडिटेशन के माध्यम से खुश रहने के आसान तरीके बताये। उन्होंने कहा कि सुदर्शन क्रिया को अपनी दिनचर्या में शामिल कर हम खुश रहने के साथ उर्जावान भी बने रह सकते है। सचिव डॉ अमित राठौर ने आभार जताया। डॉ. अन्नपूर्ण भार्गव ने संचालन किया। वर्कशॉप में अशोक सक्सेना, नरेन्द्र शुक्ला और सी.के.एस. परमार ने भी विचार रखे। Read the full article
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भोजपुरी फिल्मों के बाद हिन्दी फिल्मों के तरफ अग्रसर अभिनेता सुदीप पाण्डेय गया(बिहार) की धरती से जुड़े अभिनेता सुदीप पाण्डेय दर्जनों भोजपुरी फिल्मों में बतौर हीरो काम करने के बाद पहली बार हिंदी फिल्म 'वी फॉर विक्टर' में बतौर हीरो आ रहे हैं। बॉलीवुड के चर्चित निर्देशक एस. कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म में बंगाल की अभिनेत्री पामेला, साउथ की स्टार रूबी परिहार,नसीर अब्दुल्ला, उषा वाच्छानी, रासुल टंडन, संजय स्वराज की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फिल्म की खास बात यह है कि पहली बार इस फिल्म में सुदर्शन न्यूज के चेयरमैन सुरेश चव्हाण भी अभिनय क���ते नज़र आएंगे।लेखक रमेश मिश्रा (आई ए एस) की कहानी पर आधारित इस फिल्म के लिए गीतकार द्वय संजीव चतुर्वेदी व कृष्णा भारद्वाज द्वारा लिखे गीतों को अपने मधुर संगीत से सजाया है संगीतकार संजीव दर्शन ने। इस फिल्म से अभिनेता सुदीप पाण्डेय को काफी उम्मीद है। बकौल अभिनेता सुदीप पाण्डेय- इस फिल्म में एक बॉक्सर की ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव को दिखाया है।इसमें मैं विक्टर नामक कैरेक्टर कर रहा हूँ। जोकि आम इंसान है और वह किस तरह बॉक्सर बनता है?और वह कैसे देश के हित में काम करता है और देश हित में काम करने के क्रम में उसे किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है इन्हीं सब बातों का चित्रण इस फिल्म में बड़े ही कलात्मक अंदाज़ में किया गया है।यह एक संगीतमय, पारिवारिक और एक्शन से भरपूर संदेशपरक फिल्म है। मूल रूप से बॉक्सिंग पर आधारित हिन्दी फिल्म 'वी फॉर विक्टर' इसी वर्ष मार्च में प्रदर्शित होगी । संवाद प्रेषक : काली दास पाण्डेय
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प्रधानमंत्री एलपीजी पंचायत में सेफ्टी क्लीनिक के तहत लोगों को किया गया जागरुक प्रधानमंत्री एलपीजी पंचायत में सेफ्टी क्लीनिक के तहत लोगों को किया गया जागरुक उपनगर गोला स्थित एक मैरिज हॉल पर प्रधानमंत्री एलपीजी पंचायत में सेफ्टी क्लिनिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें माँ सरयू इण्डेन गैस सर्विस के कुशल कर्मचारियों द्वारा घरेलू गैस प्रयोग करने से पहले क्या क्या सावधानियां हैं और सुरक्षा के संबंध में जागरूकता अभियान के तहत विस्तार से जानकारी दी गई। इंडियन गैस के प्रशिक्षु राम सिंह ने बताया कि गैस का प्रयोग करने से पहले सबसे पहले रेगुलेटर पाइप आदि की जांच कर लेनी चाहिए l इस मौके पर सुदर्शन कसौधन ,शत्रुघ्न कसौधन , दीपक जायसवाल इमरान अंसारी बबलू सोनकर लालमति मौर्य धनौती देवी रामावती उषा देवी संजू गीता देवी राधिका कलावती देवी गुड्डी गायत्री देवी सीताबी देवी हेमंती देवी पिंकी सुनीता सहित किया।
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भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध
lord shiva vs lord krishna
नमस्कार दोस्तों भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध क्यों हुआ, इसका सम्पूर्ण वर्णन विष्णुपुरान पंचम अंश के ३२ वें और ३३ वें अध्याय में किया गया है, बाणासुर नामक एक महान असुर हुआ, जिसने भगवान शिव को तपस्या से प्रसन्न करके अभय प्राप्त कर लिया, एक बार उसकी पुत्री उषा ने भगवान शिव और माता पार्वती को क्रीडा करते देखा, तो उसके मन में भी विचार आया, कि मै कब अपने प्रियतम के साथ ऐसे क्रीडा करूंगी, तब माता पार्वती उषा के मन की बात जानते हुए बोली कि " पुत्री तू परेशान मत हो, वैशाख शुक्ल द्वादशी कि रात्रि में तेरे सपने में जो पुरुष तेरे साथ जबरजस्ती संभोग करेगा, वहीं तेरा पति होगा, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); तब कुछ समय पश्चात वैसा ही स्वप्न उषा ने देखा जैसा माता पार्वती उसे बताया था, अतः जब वह नींद से जागी, तो सारी बात अपनी सहेली चित्रलेखा से बताई, और उस पुरुष को ढूढने की बात कही, तथा एक छायाचित्र बनाकर चित्रलेखा को दिखाया, छायाचित्र देखकर चित्रलेखा बोली कि " यह तो कृष्ण का पौत्र तथा प्रदुम्न का पुत्र अनिरूद्घ है, तुम थोड़े दिन मेरा इंतजार करो मै इसे लेकर तुम्हारे पास आऊंगी, यह कहकर चित्रलेखा द्वारिकापुरी गई, और अपने योगबल से अनिरूद्घ को उषा के पास ले आयी, लेकिन जब यह बात बाणासुर को पता चली, तो वह आग बबूला हो गया, और अनिरूद्घ को मारने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन अनिरूद्घ ने सबको परास्त करके मार डाला, तब बाणासुर स्यंम युद्ध करने गया, और मायापूर्वक नागपाश से अनिरुद्ध को बांध दिया, इधर अनिरूद्घ के गायब होने से द्वारिकापुरी में हलचल मच गई, तब नारद मुनि ने बाणासुर द्वारा अनिरूद्घ के बंदी बनाए जाने की बात श्री कृष्ण से बताई, है तब श्री कृष्ण, बलराम तथा प्रदुम्न गरुण पर सवार होकर बाणासुर के नगर पहुंचे, उनके नगर में पहुंचते ही उनका सामना भगवान शंकर के पार्षदों से हुआ, लेकिन उन्हें नष्ट करके श्री हरी विष्णु बाणासुर की राजधानी के पास पहुंचे, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); जहां उनका सामना महान ��हेश्वर ज्वर से हुआ, जो तीन सींग, तीन पैर वाला था, उस ज्वर का ऐसा प्रभाव था कि उसके फेंके भस्म के स्पर्श से संतप्त हुए श्री कृष्ण के शरीर का आलिंगन करने पर बलराम जी बेहोश हो गए, तब श्री हरी के शरीर में समाहित वैष्णव ज्वर ने उस महेश्वर ज्वर को बाहर निकाल दिया, तथा श्री हरी विष्णु के प्रहार से पीड़ित उस माहेश्वर ज्वर को देख ब्रम्हा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि " है मधुसूदन इसे क्षमा प्रदान करें, तब श्री हरी ने उस वैष्णव ज्वर को अपने अंदर समाहित के लिया, यह देख माहेश्वर ज्वर बोला कि " जो मनुष्य आपके साथ मेरे इस युद्ध को याद करेगा, वह तुरंत ज्वरहीन हो जाएगा, यह कहकर वह वहां से चला गया, तब भगवान नारायण ने पंचाग्नि को भी जीत के नष्ट के दिया, यह सब देख बाणासुर ने भगवान शिव को पुकारा, और भक्त को कष्ट में देख भगवान शिव तुरंत कार्तिकेय के साथ युद्धक्षेत्र में आ डटे, तब भगवान शिव और श्री कृष्ण का भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया, जिसे देख तीनों लोक भयभीत हो गए, सभी को लगने लगा कि जगत का प्रलय काल निकट आ गया है, लेकिन तभी श्री कृष्ण ने भगवान शिव पर जम्भकास्त्र चलाया, जिससे भगवान शिव निद्रित होकर जमुहाई लेते हुए रथ के पिछले हिस्से मे सो गए, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); उसी समय गरुण ने भी कार्तिकेय का वाहन नष्ट कर दिया, और श्री कृष्णा के अस्त्रों से पीड़ित हो स्वामी कार्तिकेय भी इधर उधर भागने लगे, इस प्रकार महादेव के सो जाने पर कार्तिकेय को पराजित करके, श्री कृष्ण बाणासुर के साथ युद्ध करने लगे, उधर बलराम जी अपने हल से दैत्यों की समस्त सेना का विनाश कर रहे थे, और इधर श्री कृष्ण और बाणासुर भी दोनों एक दूसरे पर दिव्यास्त्रों की बरसात करने लगे, लेकिन श्री कृष्ण के आगे बाणासुर की कहां चलने वाली, तथा ज़ब श्री कृष्ण ने बाणासुर को मारने के लिए अपना चक्र उठाया, उसी समय दैत्यों की कुलदेवी नग्नावस्था मे श्री कृष्ण के सामने आ गयी, जिसे देखते ही श्री कृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए, और बाणासुर की हजारों भुजाओं को लक्ष्य करके अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया, उस सुदर्शन चक्र ने बाणासुर की हजारों भुजाओं को काट डाला, केवल दो भुजा छोड़कर, तभी भगवान शिव निद्रावस्था से जागे, और श्री कृष्ण के पास जाकर बोले की " है मधुसूदन यह आपका अपराधी नहीं है, यह मेरे अभय प्रदान करने के कारण इतना गर्बीला हुआ है, आप इसे क्षमा प्रदान करें, यह सुनकर श्री कृष्ण ने क्रोध त्याग दिया, और अनिरूद्घ को लेकर द्वारिकापुरी वापस आ गए, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); असल में बाणासुर ने भगवान शिव से अभय प्राप्त किया था, और हजारों भुजाओं वाला बन गया, एक बार उसने भगवान शिव से पूंछा की " प्रभु क्या कभी मेरी हजारों भुजाओं को सफल बनाने वाला युद्ध होगा, क्योंकि बिना युद्ध ये भुजाएं किस काम की, तब भगवान शिव बोले कि " है ��ाणासुर जब तुम्हारा मयूरचिन्ह वाला ध्वज टूट जाएगा, तब समझ लेना कि यही वह समय है जिसका तुम्हे इंतजार था, और जब अनिरूद्घ अपहरण हुआ, तो वह मयूर ध्वज टूट गया था, जिससे बाणासुर को यह बात पर चली थी, तो दोस्तो आपको यह कथा कैसी लगी हम कमेंट में जरूर बताए, धन्यवाद REED MORE STORIES :- १:- श्री राम के जीजा जन्मे थे हिरनी से २:- जब युद्ध से भागे श्री कृष्ण, कहलाए रणछोड़ ३:- सारा समुद्र क्यों पी गए, मुनि अगस्त्य ४:- पति को वश में कैसे करें
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भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा जीवन परिचय जिसे जानकर हो जायेंगे आप हैरान
भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा परिचय जिसे शायद आपने पहले कभी सूना या पढ़ा होगा । 3228 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् में श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, 21 जुलाई, बुधवार के दिन मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया, पिता- श्री वसुदेव जी थे । उसी दिन वासुदेव ने नन्द-यशोदा जी के घर गोकुल में छोड़ा ।
1- मात्र 6 दिन की उम्र में भाद्रपद कृष्ण की चतुर्दशी, 27 जुलाई, मंगलवार, षष्ठी-स्नान के दिन कंस की राक्षसी पूतना का वध कर दिया । 2- 1 साल, 5 माह, 20 दिन की उम्र में माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्नप्राशन- संस्कार हुआ । 3- 1 साल की आयु त्रिणिवर्त का वध किया ।
4- 2 वर्ष की आयु में महर्षि गर्गाचार्य ने नामकरण-संस्कार किया ।
5- 2 वर्ष 6 माह की उम्र में यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार किया ।
6- 2 वर्ष, 10 माह की उम्र में गोकुल से वृन्दावन चले गये । 7- 4 वर्ष की आयु में वत्सासुर और बकासुर नामक राक्षसों का वध किया । 8- 5 वर्ष की आयु में अघासुर का वध किया । 9- 5 साल की उम्र में ब्रह्माजी का गर्व-भंग किया । 10- 5 वर्ष की आयु में कालिया नाग का मर्दन और दावाग्नि का पान किया
11- 5 वर्ष, 3 माह की आयु में गोपियों का चीर-हरण किया । 12- 5 साल 8 माह की आयु में यज्ञ-पत्नियों पर कृपा की । 13- 7 वर्ष, 2 माह, 7 दिन की आयु में गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर इन्द्र का घमंड भंग किया । 14- 7 वर्ष, 2 माह, 14 दिन का उम्र में में श्रीकृष्ण का एक नाम ‘गोविन्द’ पड़ा । 15- 7 वर्ष, 2 माह, 18 दिन की आयु में नन्दजी को वरुणलोक से छुड़ाकर लायें ।
16- 8 वर्ष, 1 माह, 21 दिन की आयु में गोपियों के साथ रासलीला की । 17- 8 वर्ष, 6 माह, 5 दिन की आयु में सुदर्शन गन्धर्व का उद्धार किया । 18- 8 वर्ष, 6 माह, 21 दिन की उम्र में शंखचूड़ दैत्य का वध किया । 19- 9 वर्ष की आयु में अरिष्ट��सुर (वृषभासुर) और केशी दैत्य का वध करने से ‘केशव’ पड़ा । 20- 10 वर्ष, 2 माह, 20 दिन की आयु में मथुरा नगरी में कंस का वध किया एवं कंस के पिता उग्रसेन को मथुरा के सिंहासन दोबारा बैठाया ।
21- 11 वर्ष की उम्र में अवन्तिका में सांदीपनी मुनि के गरुकुल में 126 दिनों में छः अंगों सहित संपूर्ण वेदों, गजशिक्षा, अश्वशिक्षा औ�� धनुर्वेद (कुल 64 कलाओं) का ज्ञान प्राप्त किया, पञ्चजन दैत्य का वध एवं पाञ्चजन्य शंख को धारण किया । 22- 12 वर्ष की आयु में उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार हुआ । 23- 12 से 28 वर्ष की आयु तक मथुरा में जरासन्ध को 17 बार पराजित किया । 24- 28 वर्ष की आयु में रत्नाकर (सिंधुसागर) पर द्वारका नगरी की स्थापना की एवं इसी उम्र में मथुरा में कालयवन की सेना का संहार किया ।
25- 29 से 37 वर्ष की आयु में रुक्मिणी- हरण, द्वारका में रुक्मिणी से विवाह, स्यमन्तक मणि – प्रकरण, जाम्बवती, सत्यभामा एवं कालिन्दी से विवाह, केकय देश की कन्या भद्रा से विवाह, मद्र देश की कन्या लक्ष्मणा से विवाह । इसी आयु में प्राग्ज्योतिषपुर में नरकासुर का वध, नरकासुर की कैद से 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्तकर द्वारका भेजा, अमरावती में इन्द्र से अदिति के कुंडल प्राप्त किए, इन्द्रादि देवताओं को जीतकर पारिजात वृक्ष (कल्पवृक्ष) द्वारका लाए, नरकासुर से छुड़ायी गयी 16, 100 कन्याओं से द्वारका में विवाह, शोणितपुर में बाणासुर से युद्ध, उषा और अनिरुद्ध के साथ द्वारका लौटे. एवं पौण्ड्रक, काशीराज, उसके पुत्र सुदक्षिण और कृत्या का वध कर काशी दहन किया ।
26- 38 वर्ष 4 माह 17 दिन की आयु में द्रौपदी-स्वयंवर में पांचाल राज्य में उपस्थित हुए । 27- 39 व 45 वर्ष की आयु में विश्वकर्मा के द्वारा पाण्डवों के लिए इन्द्रप्रस्थ का निर्माण करवाया । 28- 71 वर्ष की आयु में सुभद्रा- हरण में अर्जुन की सहायता की । 29- 73 वर्ष की उम्र में इन्द्रप्रस्थ में खाण्डव वन – दाह में अग्नि और अर्जुन की सहायता, मय दानव को सभाभवन-निर्माण के लिए आदेश भी दिया । 30- 75 साल की उम्र में धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ के निमित्त इन्द्रप्रस्थ में आगमन हुआ ।
31- 75 वर्ष 2 माह 20 दिन की आयु में जरासन्ध के वध में भीम की सहायता की । 32- 75 वर्ष 3 माह की आयु में जरासन्ध के कारागार से 20 ,800 राजाओं को मुक्त किया, मगध के सिंहा��न पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक किया ।
33- 75 वर्ष 6 माह 9 दिन की आयु में शिशुपाल का वध किया । 35- 75 वर्ष 7 माह की आयु में द्वारका में शिशुपाल के भाई शाल्व का वध किया ।
36- 75 वर्ष 10 माह 24 दिन की उम्र में प्रथम द्यूत-क्रीड़ा में द्रौपदी (चीरहरण) की लाज बचाई । 37- 75 वर्ष 11 माह की आयु में वन में पाण्डवों से भेंट, सुभद्रा और अभिमन्यु को साथ लेकर द्वारका प्रस्थान किया । 38- 89 वर्ष 1 माह 17 दिन की आयु में अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में बारात लेकर विराटनगर पहुँचे । 39- 89 वर्ष 2 माह की उम्र में विराट की राजसभा में कौरवों के अत्याचारों और पाण्डवों के धर्म-व्यवहार का वर्णन करते हुए किसी सुयोग्य दूत को हस्तिनापुर भेजने का प्रस्ताव, द्रुपद को सौंपकर द्वारका-प्रस्थान, द्वारका में दुर्योधन और अर्जुन— दोनों की सहायता की स्वीकृति, अर्जुन का सारथी-कर्म स्वीकार करना किया । 40- 89 वर्ष 2 माह 8 दिन की उम्र में पाण्डवों का सन्धि-प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गयें ।
41- 89 वर्ष 3 माह 17 दिन की आयु में कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को ‘भगवद्गीता’ का उपदेश देने के बाद महाभारत-युद्ध में अर्जुन के सारथी बन युद्ध में पाण्डवों की अनेक प्रकार से सहायता की
42- 89 वर्ष 4 माह 8 दिन की उम्र में अश्वत्थामा को 3, 000 वर्षों तक जंगल में भटकने का श्राप दिया, एवं इसी उम्र में गान्धारी का श्राप स्वीकार किया । 43- 89 वर्ष 7 माह 7 दिन की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवाया ।
44- 91-92 वर्ष की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में सम्मिलित हुए । 45- 125 वर्ष 4 माह की उम्र में द्वारका में यदुवंश कुल का विनाश हुआ, एवं 125 वर्ष 5 माह की उम्र में उद्धव जी को उपदेश दिया । 46- 125 वर्ष 5 माह 21 दिन की आयु में दोपहर 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर प्रभास क्षेत्र में स्वर्गारोहण और उसी के बाद कलियुग का प्रारम्भ हुआ ।
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Hindi News भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा जीवन परिचय जिसे जानकर हो जायेंगे आप हैरान appeared first on Kranti Bhaskar.
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भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा जीवन परिचय जिसे जानकर हो जायेंगे आप हैरान
भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा परिचय जिसे शायद आपने पहले कभी सूना या पढ़ा होगा । 3228 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् में श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, 21 जुलाई, बुधवार के दिन मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया, पिता- श्री वसुदेव जी थे । उसी दिन वासुदेव ने नन्द-यशोदा जी के घर गोकुल में छोड़ा ।
1- मात्र 6 दिन की उम्र में भाद्रपद कृष्ण की चतुर्दशी, 27 जुलाई, मंगलवार, षष्ठी-स्नान के दिन कंस की राक्षसी पूतना का वध कर दिया । 2- 1 साल, 5 माह, 20 दिन की उम्र में माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्नप्राशन- संस्कार हुआ । 3- 1 साल की आयु त्रिणिवर्त का वध किया ।
4- 2 वर्ष की आयु में महर्षि गर्गाचार्य ने नामकरण-संस्कार किया ।
5- 2 वर्ष 6 माह की उम्र में यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार किया ।
6- 2 वर्ष, 10 माह की उम्र में गोकुल से वृन्दावन चले गये । 7- 4 वर्ष की आयु में वत्सासुर और बकासुर नामक राक्षसों का वध किया । 8- 5 वर्ष की आयु में अघासुर का वध किया । 9- 5 साल की उम्र में ब्रह्माजी का गर्व-भंग किया । 10- 5 वर्ष की आयु में कालिया नाग का मर्दन और दावाग्नि का पान किया
11- 5 वर्ष, 3 माह की आयु में गोपियों का चीर-हरण किया । 12- 5 साल 8 माह की आयु में यज्ञ-पत्नियों पर कृपा की । 13- 7 वर्ष, 2 माह, 7 दिन की आयु में गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर इन्द्र का घमंड भंग किया । 14- 7 वर्ष, 2 माह, 14 दिन का उम्र में में श्रीकृष्ण का एक नाम ‘गोविन्द’ पड़ा । 15- 7 वर्ष, 2 माह, 18 दिन की आयु में नन्दजी को वरुणलोक से छुड़ाकर लायें ।
16- 8 वर्ष, 1 माह, 21 दिन की आयु में गोपियों के साथ रासलीला की । 17- 8 वर्ष, 6 माह, 5 दिन की आयु में सुदर्शन गन्धर्व का उद्धार किया । 18- 8 वर्ष, 6 माह, 21 दिन की उम्र में शंखचूड़ दैत्य का वध किया । 19- 9 वर्ष की आयु में अरिष्टासुर (वृषभासुर) और केशी दैत्य का वध करने से ‘केशव’ पड़ा । 20- 10 वर्ष, 2 माह, 20 दिन की आयु में मथुरा नगरी में कंस का वध किया एवं कंस के पिता उग्रसेन को मथुरा के सिंहासन दोबारा बैठाया ।
21- 11 वर्ष की उम्र में अवन्तिका में सांदीपनी मुनि के गरुकुल में 126 दिनों में छः अंगों सहित संपूर्ण वेदों, गजशिक्षा, अश्वशिक्षा और धनुर्वेद (कुल 64 कलाओं) का ज्ञान प्राप्त किया, पञ्चजन दैत्य का वध एवं पाञ्चजन्य शंख को धारण किया । 22- 12 वर्ष की आयु में उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार हुआ । 23- 12 से 28 वर्ष की आयु तक मथुरा में जरासन्ध को 17 बार पराजित किया । 24- 28 वर्ष की आयु में रत्नाकर (सिंधुसागर) पर द्वारका नगरी की स्थापना की एवं इसी उम्र में मथुरा में कालयवन की सेना का संहार किया ।
25- 29 से 37 वर्ष की आयु में रुक्मिणी- हरण, द्वारका में रुक्मिणी से विवाह, स्यमन्तक मणि – प्रकरण, जाम्बवती, सत्यभामा एवं कालिन्दी से विवाह, केकय देश की कन्या भद्रा से विवाह, मद्र देश की कन्या लक्ष्मणा से विवाह । इसी आयु में प्राग्ज्योतिषपुर में नरकासुर का वध, नरकासुर की कैद से 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्तकर द्वारका भेजा, अमरावती में इन्द्र से अदिति के कुंडल प्राप्त किए, इन्द्रादि देवताओं को जीतकर पारिजात वृक्ष (कल्पवृक्ष) द्वारका लाए, नरकासुर से छुड़ायी गयी 16, 100 कन्याओं से द्वारका में विवाह, शोणितपुर में बाणासुर से युद्ध, उषा और अनिरुद्ध के साथ द्वारका लौटे. एवं पौण्ड्रक, काशीराज, उसके पुत्र सुदक्षिण और कृत्या का वध कर काशी दहन किया ।
26- 38 वर्ष 4 माह 17 दिन की आयु में द्रौपदी-स्वयंवर में पांचाल राज्य में उपस्थित हुए । 27- 39 व 45 वर्ष की आयु में विश्वकर्मा के द्वारा पाण्डवों के लिए इन्द्रप्रस्थ का निर्माण करवाया । 28- 71 वर्ष की आयु में सुभद्रा- हरण में अर्जुन की सहायता की । 29- 73 वर्ष की उम्र में इन्द्रप्रस्थ में खाण्डव वन – दाह में अग्नि और अर्जुन की सहायता, मय दानव को सभाभवन-निर्माण के लिए आदेश भी दिया । 30- 75 साल की उम्र में धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ के निमित्त इन्द्रप्रस्थ में आगमन हुआ ।
31- 75 वर्ष 2 माह 20 दिन की आयु में जरासन्ध के वध में भीम की सहायता की । 32- 75 वर्ष 3 माह की आयु में जरासन्ध के कारागार से 20 ,800 राजाओं को मुक्त किया, मगध के सिंहासन पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक किया ।
33- 75 वर्ष 6 माह 9 दिन की आयु में शिशुपाल का वध किया । 35- 75 वर्ष 7 माह की आयु में द्वारका में शिशुपाल के भाई शाल्व का वध किया ।
36- 75 वर्ष 10 माह 24 दिन की उम्र में प्रथम द्यूत-क्रीड़ा में द्रौपदी (चीरहरण) की लाज बचाई । 37- 75 वर्ष 11 माह की आयु में वन में पाण्डवों से भेंट, सुभद्रा और अभिमन्यु को साथ लेकर द्वारका प्रस्थान किया । 38- 89 वर्ष 1 माह 17 दिन की आयु में अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में बारात लेकर विराटनगर पहुँचे । 39- 89 वर्ष 2 माह की उम्र में विराट की राजसभा में कौरवों के अत्याचारों और पाण्डवों के धर्म-व्यवहार का वर्णन करते हुए किसी सुयोग्य दूत को हस्तिनापुर भेजने का प्रस्ताव, द्रुपद को सौंपकर द्वारका-प्रस्थान, द्वारका में दुर्योधन और अर्जुन— दोनों की सहायता की स्वीकृति, अर्जुन का सारथी-कर्म स्वीकार करना किया । 40- 89 वर्ष 2 माह 8 दिन की उम्र में पाण्डवों का सन्धि-प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गयें ।
41- 89 वर्ष 3 माह 17 दिन की आयु में कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को ‘भगवद्गीता’ का उपदेश देने के बाद महाभारत-युद्ध में अर्जुन के सारथी बन युद्ध में पाण्डवों की अनेक प्रकार से सहायता की
42- 89 वर्ष 4 माह 8 दिन की उम्र में अश्वत्थामा को 3, 000 वर्षों तक जंगल में भटकने का श्राप दिया, एवं इसी उम्र में गान्धारी का श्राप स्वीकार किया । 43- 89 वर्ष 7 माह 7 दिन की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवाया ।
44- 91-92 वर्ष की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में सम्मिलित हुए । 45- 125 वर्ष 4 माह की उम्र में द्वारका में यदुवंश कुल का विनाश हुआ, एवं 125 वर्ष 5 माह की उम्र में उद्धव जी को उपदेश दिया । 46- 125 वर्ष 5 माह 21 दिन की आयु में दोपहर 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर प्रभास क्षेत्र में स्वर्गारोहण और उसी के बाद कलियुग का प्रारम्भ हुआ ।
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Hindi News भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा जीवन परिचय जिसे जानकर हो जायेंगे आप हैरान appeared first on Kranti Bhaskar.
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लालीगुराँस वाटिका माविमा नमुना चुनाव काठमाडौँ, २२ वैशाख । कोटेश्वर नरेफाँट (विद्यानगर) स्थित लालीगुराँस वाटिका माविमा कक्षा ६ देखि १० सम्मका विद्यार्थीमाझ नमुना चुनाव सम्पन्न भएको छ । विद्यालयका क्याप्टेन तथा भाइस क्याप्टेन छनोटका लागि राष्ट्रिय चुनावमा हुने सम्पूर्ण प्रक्रिया अपनाइएको थियो । यही वैशाख २१ गते उम्मेदवारी दर्ता, दाबीविरोध, उम्मेदवारी फिर्ता र अन्तिम नामावली प्रकाशन गरिएको थियो भने २१ गते २ बजेदेखि २२ गते १ बजेसम्म प्रचारप्रसार तथा मत माग्ने समय तोकिएको थियो । मतदानका लागि सुरक्षा फौज, स्वयंसेवक, पर्यवेक्षक, मतदान अधिकृत, मसी लगाउने, नाम रुजु गर्ने, मतपत्र हस्ताक्षर गर्ने, मतदाता लाइन बस्ने÷मिलाउने, मतपेटिका, मतदान टेबल आदिको दुरुस्त व्यवस्था गरिएको थियो । यसअघि पनि सबै कक्षाका क्याप्टेन तथा भाइस क्याप्टेनको चुनाव सम्पन्न भइसकेको थियो । चुनावमा क्याप्टेनतर्फ आदित्य गुप्ता, उषा नेपाल, इस्मिता भुसाल, सरला चापागाईं, कृष्ण पटेल र अमिक पोखरेल तथा भाइस क्याप्टेनतर्फ समिप सत्याल, आभाष बराल, रोजिना नेपाल र शुभम घिमिरे स्पर्धामा उत्रिएका थिए । उक्त निर्वाचनका प्रमुख आयुक्त प्रअ हरि शिवाकोटी र आयुक्त कार्यक्रम संयोजक थानेश्वर पाण्डेयको नेतृत्वमा निर्वाचन सम्पन्न भएको थियो । विद्यालयका कार्यकारी प्रमुख सुदर्शन पराजुलीका अनुसार मतगणना शनिबार र नतिजा आइतबार बिहान प्रकाशन गरी विजेतालाई प्रमाणपत्र र ब्याच प्रदान गरिनेछ । “देशको प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया र त्यसको उपयोगसम्बन्धी प्रत्यक्ष ज्ञानका लागि यस्ता कार्यक्रम विद्यार्थीका लागि अति उपयोगी हुन्छन्” पराजुलीको भनाइ थियो । रासस
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भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध
lord shiva vs lord krishna
नमस्कार दोस्तों भगवान शिव और श्री कृष्ण का युद्ध क्यों हुआ, इसका सम्पूर्ण वर्णन विष्णुपुरान पंचम अंश के ३२ वें और ३३ वें अध्याय में किया गया है, बाणासुर नामक एक महान असुर हुआ, जिसने भगवान शिव को तपस्या से प्रसन्न करके अभय प्राप्त कर लिया, एक बार उसकी पुत्री उषा ने भगवान शिव और माता पार्वती को क्रीडा करते देखा, तो उसके मन में भी विचार आया, कि मै कब अपने प्रियतम के साथ ऐसे क्रीडा करूंगी, तब माता पार्वती उषा के मन की बात जानते हुए बोली कि " पुत्री तू परेशान मत हो, वैशाख शुक्ल द्वादशी कि रात्रि में तेरे सपने में जो पुरुष तेरे साथ जबरजस्ती संभोग करेगा, वहीं तेरा पति होगा, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); तब कुछ समय पश्चात वैसा ही स्वप्न उषा ने देखा जैसा माता पार्वती उसे बताया था, अतः जब वह नींद से जागी, तो सारी बात अपनी सहेली चित्रलेखा से बताई, और उस पुरुष को ढूढने की बात कही, तथा एक छायाचित्र बनाकर चित्रलेखा को दिखाया, छायाचित्र देखकर चित्रलेखा बोली कि " यह तो कृष्ण का पौत्र तथा प्रदुम्न का पुत्र अनिरूद्घ है, तुम थोड़े दिन मेरा इंतजार करो मै इसे लेकर तुम्हारे पास आऊंगी, यह कहकर चित्रलेखा द्वारिकापुरी गई, और अपने योगबल से अनिरूद्घ को उषा के पास ले आयी, लेकिन जब यह बात बाणासुर को पता चली, तो वह आग बबूला हो गया, और अनिरूद्घ को मारने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन अनिरूद्घ ने सबको परा��्त करके मार डाला, तब बाणासुर स्यंम युद्ध करने गया, और मायापूर्वक नागपाश से अनिरुद्ध को बांध दिया, इधर अनिरूद्घ के गायब होने से द्वारिकापुरी में हलचल मच गई, तब नारद मुनि ने बाणासुर द्वारा अनिरूद्घ के बंदी बनाए जाने की बात श्री कृष्ण से बताई, है तब श्री कृष्ण, बलराम तथा प्रदुम्न गरुण पर सवार होकर बाणासुर के नगर पहुंचे, उनके नगर में पहुंचते ही उनका सामना भगवान शंकर के पार्षदों से हुआ, लेकिन उन्हें नष्ट करके श्री हरी विष्णु बाणासुर की राजधानी के पास पहुंचे, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); जहां उनका सामना महान महेश्वर ज्वर से हुआ, जो तीन सींग, तीन पैर वाला था, उस ज्वर का ऐसा प्रभाव था कि उसके फेंके भस्म के स्पर्श से संतप्त हुए श्री कृष्ण के शरीर का आलिंगन करने पर बलराम जी बेहोश हो गए, तब श्री हरी के शरीर में समाहित वैष्णव ज्वर ने उस महेश्वर ज्वर को बाहर निकाल दिया, तथा श्री हरी विष्णु के प्रहार से पीड़ित उस माहेश्वर ज्वर को देख ब्रम्हा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि " है मधुसूदन इसे क्षमा प्रदान करें, तब श्री हरी ने उस वैष्णव ज्वर को अपने अंदर समाहित के लिया, यह देख माहेश्वर ज्वर बोला कि " जो मनुष्य आपके साथ मेरे इस युद्ध को याद करेगा, वह तुरंत ज्वरहीन हो जाएगा, यह कहकर वह वहां से चला गया, तब भगवान नारायण ने पंचाग्नि को भी जीत के नष्ट के दिया, यह सब देख बाणासुर ने भगवान शिव को पुकारा, और भक्त को कष्ट में देख भगवान शिव तुरंत कार्तिकेय के साथ युद्धक्षेत्र में आ डटे, तब भगवान शिव और श्री कृष्ण का भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया, जिसे देख तीनों लोक भयभीत हो गए, सभी को लगने लगा कि जगत का प्रलय काल निकट आ गया है, लेकिन तभी श्री कृष्ण ने भगवान शिव पर जम्भकास्त्र चलाया, जिससे भगवान शिव निद्रित होकर जमुहाई लेते हुए रथ के पिछले हिस्से मे सो गए, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); उसी समय गरुण ने भी कार्तिकेय का वाहन नष्ट कर दिया, और श्री कृष्णा के अस्त्रों से पीड़ित हो स्वामी कार्तिकेय भी इधर उधर भागने लगे, इस प्रकार महादेव के सो जाने पर कार्तिकेय को पराजित करके, श्री कृष्ण बाणासुर के साथ युद्ध करने लगे, उधर बलराम जी अपने हल से दैत्यों की समस्त सेना का विनाश कर रहे थे, और इधर श्री कृष्ण और बाणासुर भी दोनों एक दूसरे पर दिव्यास्त्रों की बरसात करने लगे, लेकिन श्री कृष्ण के आगे बाणासुर की कहां चलने वाली, तथा ज़ब श्री कृष्ण ने बाणासुर को मारने के लिए अपना चक्र उठाया, उसी समय दैत्यों की कुलदेवी नग्नावस्था मे श्री कृष्ण के सामने आ गयी, जिसे देखते ही श्री कृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए, और बाणासुर की हजारों भुजाओं को लक्ष्य करके अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया, उस सुदर्शन चक्र ने बाणासुर की हजारों भुजाओं को काट डाला, केवल दो भुजा छोड़कर, तभी भगवान शिव निद्रावस्था से जागे, और श्री कृष्ण के पास जाकर बोले की " है मधुसूदन यह आपका अपराधी नहीं है, यह मेरे अभय प्रदान करने के कारण इतना गर्बीला हुआ है, आप इसे क्षमा प्रदान करें, यह सुनकर श्री कृष्ण ने क्रोध त्याग दिया, और अनिरूद्घ को लेकर द्वारिकापुरी वापस आ गए, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); असल में बाणासुर ने भगवान शिव से अभय प्राप्त किया था, और हजारों भुजाओं वाला बन गया, एक बार उसने भगवान शिव से पूंछा की " प्रभु क्या कभी मेरी हजारों भुजाओं को सफल बनाने वाला युद्ध होगा, क्योंकि बिना युद्ध ये भुजाएं किस काम की, तब भगवान शिव बोले कि " है बाणासुर जब तुम्हारा मयूरचिन्ह वाला ध्वज टूट जाएगा, तब समझ लेना कि यही वह समय है जिसका तुम्हे इंतजार था, और जब अनिरूद्घ अपहरण हुआ, तो वह मयूर ध्वज टूट गया था, जिससे बाणासुर को यह बात पर चली थी, तो दोस्तो आपको यह कथा कैसी लगी हम कमेंट में जरूर बताए, धन्यवाद REED MORE STORIES :- १:- श्री राम के जीजा जन्मे थे हिरनी से २:- जब युद्ध से भागे श्री कृष्ण, कहलाए रणछोड़ ३:- सारा समुद्र क्यों पी गए, मुनि अगस्त्य ४:- पति को वश में कैसे करें
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