#उलट
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#हम मुहम्मद को सतलोक ले गयो#इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो। उलट मुहम्मद महल पठाया#गुज बीरज एक कलमा लाया।।GyanGanga स्वर्ण_युग
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“उलट चोर कोतवाल को डांटे”, निर्भया निधीची वस्तूस्थिती मांडत विरोधकांवर सत्ताधाऱ्यांचा पलटवार
“उलट चोर कोतवाल को डांटे”, निर्भया निधीची वस्तूस्थिती मांडत विरोधकांवर सत्ताधाऱ्यांचा पलटवार
“उलट चोर कोतवाल को डांटे”, निर्भया निधीची वस्तूस्थिती मांडत विरोधकांवर सत्ताधाऱ्यांचा पलटवार मुंबईः गेल्या दोन दिवसांपासून निर्भया पथकातील वाहनांवरून राज्यातील वातावरण प्रचंड तापले आहे. महाविकास आघाडी सरकार असताना केंद्र सरकारकडून मंजूर करण्यात आलेली वाहनं स्वतःसाठी वापरली असल्याटी टीका आदित्य ठाकरे, सुप्रिया सुळे यांनी केली. त्यानंतर आज भाजपच्या नेत्या चित्रा वाघ यांनी सगळी वस्तूस्थिती मांडत…
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#“उलट#“निर्भया#आजच्या प्रमुख घडामोडी#को#कोतवाल#चोर#डांटे”#निधीची#पलटवार#बातमी आजची#भारत लाईव्ह न्यूज मीडिया#मांडत#राजकारण#राजकारण लेटेस्ट#वस्तूस्थिती#विरोधकांवर#शासन#सत्ताधाऱ्यांचा#सरकार
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वाणी:- मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है। इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।। सरलार्थ:- जैसे मछली ऊपर से गिर रहे जल की धारा में उल्टी चढ़ जाती है। इसी प्रकार भक्त को ऊपर की ओर सतलोक में चलना है। उसके लिए इला (इड़ा अर्थात् बाईं नाक से श्वांस) तथा पिंगुला (दांया स्वर नाक से) तथा दोनों के मध्य सुष्मणा नाड़ी है। उसको खोजो। फिर हे भक्त! ऊपर को चल जो औघट घाट अर्थात् उलट मार्ग है। संसार के साधकों का मार्ग त्रिकुटी तक है। संत मार्ग (घाट) इससे और ऊपर उल्टा चढ़ने का मार्ग (घाट) है। यह सुष्मणा सतनाम के जाप से खुल जाता है।
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#मुहर्रमपर_अल्लाहकबीर_कासंदेश
कबीर परमेश्वर हजरत मुहम्मद जी को मिले थे।
कबीर साहेब हजरत मुहम्मद जी को सतलोक लेकर गए, सर्व लोकों की स्थित��� से परिचय करवाया। किन्तु हजरत मुहम्मद जी ने मान-बड़ाई के कारण कबीर साहेब का ज्ञान स्वीकार नहीं किया था।
कबीर साहेब ने कहा है-
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया, इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।। उलट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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वाणी:- मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है।
इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।।
सरलार्थ:- जैसे मछली ऊपर से गिर रहे जल की धारा में उल्टी चढ़ जाती है। इसी प्रकार भक्त को ऊपर की ओर #सतलोक में चलना है।
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कबीर परमेश्वर हजरत मुहम्मद जी को मिले थे।
कबीर साहेब हजरत मुहम्मद जी को सतलोक लेकर गए, सर्व लोकों की स्थिति से परिचय करवाया। किन्तु हज़रत मुहम्मद जी ने मान-बड़ाई के कारण कबीर साहेब का ज्ञान स्वीकार नहीं किया था।
कबीर साहेब ने कहा है-
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया, इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उलट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया ।।
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♦️कबीर परमेश्वर हजरत मुहम्मद जी को मिले थे।
कबीर साहेब हजरत मुहम्मद जी को सतलोक लेकर गए, सर्व लोकों की स्थिति से परिचय करवाया। किन्तु हज़रत मुहम्मद जी ने मान-बड़ाई के कारण कबीर साहेब का ज्ञान स्वीकार नहीं किया था।
कबीर साहेब ने कहा है-
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया, इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उलट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया ।।
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कबीर परमेश्वर हजरत मुहम्मद जी को मिले थे।
कबीर साहेब हजरत मुहम्मद जी को सतलोक लेकर गए, सर्व लोकों की स्थिति से परिचय करवाया। किन्तु हज़रत मुहम्मद जी ने मान-बड़ाई के कारण कबीर साहेब का ज्ञान स्वीकार नहीं किया था।
कबीर साहेब ने कहा है-
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया, इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उलट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया ।।
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#क्या_कहती_है_पाक_कुरान
हजरत मुहम्मद जी को जिंदा वेश धारण करके मक्का शहर में खुदा कबीर मिले थे।
संत गरीबदास को बताया था।
वाणी (अमर कुछ रसैंणी से):-
मुहमंद बोध सुनो ब्रह्म ज्ञानी, शंकर दीप से आये प्राणी।। लोक दीप कूं हम लेगैऊ, इच्छा रूपी वहाँ न रहेऊ।। उलट मुहमंद महल पठाया, गुझ बीरज एक कलमा धाया।। रोजा बंग, निवाज दई रे, बिसमल की नहीं बात कही रे।।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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#GodMorningSaturday
वाणी:- मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है।
इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।।
सरलार्थ:- जैसे मछली ऊपर से गिर रहे जल की धारा में उल्टी चढ़ जाती है। इसी प्रकार भक्त को ऊपर की ओर #सतलोक में चलना है।
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#GodMorningMonday हजरत मुहम्मद जी को जिंदा वेश धारण करके मक्का में खुदा कबीर मिले थे।
मुहमंद बोध सुनो ब्रह्म ज्ञानी,शंकर दीप से आये प्राणी।। लोक दीप कूं हम लेगैऊ,इच्छा रूपी वहाँ न रहेऊ। उलट मुहमंद महल पठाया,गुझ बीरज एक कलमा धाया । रोजा बंग,निवाज दई रे,बिसमल की नहीं बात कही रे।।
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प्रशन :- ओशो, क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?
कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण ? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है।
दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल-मिलाकर चलती है।
जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू दोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए, तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा - डमरू उलटा । इन छोरों पर थोड़ी-सी आत्माएं हैं। निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां मरे नहीं, वहां नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर, मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।
मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही । और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है, वहां गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहां असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पड़ता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए, वह भी साधारण नहीं है। तो श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।
सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी को यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोचकर, जरा रुककर, जरा ठहरकर गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर ! थोड़ा ठहरकर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।
जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस दुकान भी देखता है उलट-पलट करता है, भाव-ताव करता है, खोजबीन करता है, , फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो उसकी आंख में पड़ जाती है चीज, वहीं चला जाता है।
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में हैं। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है - और वह जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सकें। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता !
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गई। और प्रेत का अर्थ, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गई। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहां समाप्त नहीं हुआ, और वहां वह प्रवेश करने लगता है।
जो आत्माएं रुक जाती हैं, क्या वे किसी के शरीर में प्रवेश करके उसे परेशान कर सकती हैं?
इसकी भी संभावना है। क्योंकि वे आत्माएं, जिनको शरीर नहीं मिलता, शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं । निकृष्ट आत्माएं शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। श्रेष्ठ आत्माएं शरीर के बिना अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती हैं। यह फर्क ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ आत्मा शरीर को निरंतर ही किसी न किसी रूप में बंधन अनुभव करती है और चाहती है कि इतनी हलकी हो जाए कि शरीर का बोझ भी न रह जाए। अंततः वह शरीर से भी मुक्त हो जाना चाहती है, क्योंकि शरीर भी एक कारागृह मालूम होता है। अंततः उसे लगता है कि शरीर भी कुछ ऐसे काम करवा लेता है, जो न करने योग्य हैं। इसलिए वह शरीर के लिए बहुत मोहग्रस्त नहीं होता। निकृष्ट आत्मा शरीर के बिना एक क्षण नहीं जी सकती है। क्योंकि उसका सारा रस, सारा सुख शरीर से ही बंधा होता है।
शरीर के बिना कुछ आनंद लिए जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आनंद तब भी लिया जा सकता है। लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, तो शरीर के बिना भोजन करने का रस असंभव है। तो उसके प्राण बड़े छटपटा���े लगते हैं कि वह कैसे प्रवेश कर जाए। और उसके योग्य गर्भ न मिलता हो, तो वह किसी कमजोर आत्मा में— कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर की मालिक नहीं है—उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।
और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तो आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड़ जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। एक नहीं बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में प्रवेश कर सकती है। और करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वे शरीर से बंधे हैं। वे दूसरे के शरीर मैं प्रवेश करके लेने की वह कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मेहमान बन सकते हैं।
कभी-कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी-कभी। लेकिन उनका प्रवेश बहुत दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करुणा के, जो शरीर के बिना नहीं किए जा सकते। जैसे समझें, एक घर में आग लगी है, एक घर में आग लग गई है। और कोई उस घर में आग को बचाने को नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है। और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। मेरी तो हिम्मत न थी और वह बढ़ जाता है, और आग बुझाने लगता है, और आग बुझा लेता है, और किसी को बचाकर बाहर निकल आता है। और वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, कुछ किसी और ने मुझसे करवा लिया है। ऐसी किसी घड़ी में जहां कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत न जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।
निकृष्ट आत्मा निरंतर शरीर के लिए आतुर रहती है। उसके सारे रस उनसे बंधे हैं और यह बात भी ध्यान में रख लेनी चाहिए कि मध्य की आत्माओं के लिए कोई बाधा नहीं है, उनके लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध हैं।
इसीलिए श्रेष्ठ आत्माएं कभी-कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकर हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब-करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए। और उसी समय बिहार में छह और अदभुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए और कोई कारण न थ���, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित सकंबल, एक था संजय वेलट्ठीपुत्त, एक था मक्खली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे-से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं और मौका मिल सका तो एकदम से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ। उसी समय चीन में कनफ्यूशियस पैदा हुआ, लाओत्से पैदा हुआ, मेन्शियस पैदा हुआ, च्वांगत्से पैदा उसी समय सारी दुनिया के कोने-कोने में कुछ अद्भुत लोग एकदम से पैदा हुए। सारा पृथ्वी कुछ अदभुत लोगों से भर गई। ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे, प्रतीक्षारत थीं उनकी आत्माएं: और एक मौका आया और गर्भ उपलब्ध हो सके, और जब गर्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला; और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए, कलियां टूटी, इधर फूल खिला, उधर फूल खिला । रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।
ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग ने भी हिटलर और स्टेलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा किए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता.....
अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की अकेले एक आदमी ने और हिटलर ने अकेले एक आदमी ने कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किए, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किए थे। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसी कभी किसी आदमी ने नहीं की थी। तैमूरलंग और चंगीजखान सब बचकाने सिद्ध हो गए।
हिटलर ने गैस चेंबर्स बनाए उसने कहा, एक-एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक-एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक-एक आदमी को मारना महंगा है, एक-एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक-एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए!
लेकिन सामूहिक हत्या भी करने के उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और की, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक-एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत ��ेर भी लगती है। ऐसे एक-एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता। इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
तो हिटलर ने गैस चैंबर बनाए। एक-एक चैंबर में पांच-पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दवा, वे गए। एकदम गए, इसके बाद हॉल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मारकर खून गिराना पड़ा। खून-वून गिराने का जुर्म हिटलर पर कोई नहीं लगा सकता ! अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिलकुल निर्दोष पाएगा। उसने खून किसी का गिराया नहीं, किसी की छाती में छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन ही नहीं था। उसने बिलकुल नई तरकीब निकाली, गैस चैंबर जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। , पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसा खो गया आदमी। ऐसे गैस चैंबर बनाकर उसने अंदाजन एक करोड़ आदमियों को गैस चेंबर में उड़ा दिया।
ऐसे आदमी को जल्दी जन्म मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर बहुत समय लग सकता है अब हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन मामला है। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है-लंबी श्रृंखला । एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा ? हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां-बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहे हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, बीजाणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसको पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है। लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध है। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और इतने गर्भ चारों तरफ उसके लिए तैयार हैं; और उसकी कोई विशेष, कोई विशेष उसकी मांगें नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम-भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छा��ं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां-बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है।
लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, तो ऐसी आत्माओं को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! और यदि किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं को भी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
(मैं मृत्यु सिखाता हूं )
||osho||
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Mirov
#चैप्टर_1: अगर कभी ध्यान से सोचा जाये तो इंसान का अस्तित्व वह कुल इनफार्मेशन भर है जो वह अपनी आखिरी सांस तक हासिल करता है। यही उसकी मेमोरी है, यही उसके होने का अहसास है और यही उसका जीवन है। अगर किसी दिमाग़ से यह सारी इनफार्मेशन खुरच कर निकाल ली जाये तो फिर भले उसका शरीर बाकी रहे, लेकिन वह इंसान खत्म हो जायेगा, उसका अस्तित्व, "मैं" होने का अहसास मिट जायेगा और इसी से तो वह था। अब उसकी यह इनफार्मेशन अगर किसी दूसरे ब्लैंक दिमाग़ में या किसी आर्टिफिशियल ह्युमन में डाल दी जाये तो उसी इनफार्मेशन के सहारे वह कृत्रिम इंसान ख़ुद को वही इंसान समझेगा।
सोचिये कि कितना दिलचस्प है यह मेमोरी और इंसानी अस्तित्व का खेल… प्रस्तुत कहानी इसी विचार से शुरु होती है। इस विस्तृत कहानी का पहला चैप्टर इसी विचार से पैदा एक खोज है, जो एक चार सौ साल पुरानी हिमालयन रीज़न में दबी लाश की मेमोरी और आधुनिक युग के एक आर्टिफिशियल मानव के मेल के साथ शुरु होती है और अतीत में दबा एक ऐसा फसाना सामने आता है, जिससे ढेरों तरह की उलझनें खड़ी हो जाती हैं।
वहां मुगल साम्राज्य के उत्तरी किनारे पर बसी एक घाटी में वह सभ्यता मौजूद थी जो अपने महापूर्वज के लिये सोना-चांदी, क़ीमती कलाकृतियां/धरोहरें आदि लूट कर उस जगह इकट्ठी कर रही थी जो सत्��हवीं सदी में इक्कीसवीं सदी की आधुनिक सुविधाओं के साथ मौजूद थी, जो उस दौर में संभव ही नहीं था— लेकिन वह जगह ऐसे वीरानों में और भी जाने कितने पीछे से मौजूद थी। उन लुटेरों का महापूर्वज ख़ुद को दो सौ साल पुराना बताता था, जबकि दिखने में वह बस बत्तीस-चौंतीस की उम्र का ही था और वह झूठ भी नहीं बोल रहा था।
उन पुरानी स्मृतियों से जूझते एडगर वैलेंस के लिये वह सवाल ही नहीं बवाले जान नहीं थे, बल्कि आधुनिक दौर के वह लोग भी थे, जो उस पर अपने बाॅस को मारने और उनकी एक मोटी रकम लूटने का इल्ज़ाम लगा रहे थे— वह लड़की भी थी जो उस पर अपना शरीर लेने का इल्ज़ाम लगा रही थी और उससे अपना शरीर वापस चाहती थी, जबकि उसे ऐसा कुछ भी याद नहीं था।
#चैप्टर_2: एक आदमी अचानक ग़ायब होने के सौ साल बाद प्रकट होता है और बताता है कि उसने तो सिर्फ चार दिन किसी रहस्मयी जगह पर गुज़ारे हैं, और उसकी उम्र भी वही थी, जिसस�� दुनिया भर के लोगों की दिलचस्पी उस घाटी में हो जाती है, जहां वह रहस्यमयी जगह मौजूद थी। कुछ लोग हैं दुनिया में, जो सेटी (सर्च फाॅर एक्सट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) के लिये काम करते हैं या एन्शेंट एस्ट्रानाॅट थ्योरिस्ट कहलाते हैं— दुनिया भर में एलियन एग्जिस्टेंस के सबूत ढूंढते फिरते हैं और उन्हें एनालाईज करते हैं। उन्हें सौ साल बाद सामने आये इसी आदमी के भरोसे उस घाटी में एलियन एग्जिस्टेंस की भरपूर संभावनाएं दिखती हैं और वे इसका रहस्य पता करना चाहते हैं।
लेकिन उस घाटी के मुसाफिर बस वही नहीं थे— एक टीम वह भी थी, जिसके लोगों के देशों से सम्बंधित धरोहरें जो चार-पांच सौ साल पीछे के अतीत में चुराई गई थीं और सैकड़ों साल तक गुमशुदा रहने के बाद अब एकाएक नीलामी के ज़रिये बेची जाने लगी थीं— और बेचने वाले उसी खास घाटी में बैठे थे। उनके सिवा वे दो टीमें भी थीं, जिन्होंने चार सौ साल पीछे के इतिहास में दफन उस कहानी का पता लगाया था और अब वे न सिर्फ उस खज़ाने को हासिल करना चाहते थे, बल्कि उस जगह के राज़ को भी पता करना चाहते थे।
#चैप्टर_3: हम अपने ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में जितना कुछ देख जान पाते हैं, वह बस यूनिवर्स का चार-पांच प्रतिशत है और बाकी में जो अबूझ मटेरियल है, उसे हम डार्क मैटर और डार्क एनर्जी कह कर सम्बोधित करते हैं— लेकिन कहीं वही 94-95% यूनिवर्स ही तो असल यूनिवर्स नहीं है, जिसके लिये शैडो यूनिवर्स शब्द का इस्तेमाल होता है— और हमारा अपना जाना-पहचाना यूनिवर्स उस यूनिवर्स में आई मामूली एनाॅमली भर हो। कहानी का तीसरा चैप्टर इसी संभावना को साकार करते हुए इस वास्तवि�� यूनिवर्स का खाका खींचता है, जहां सब अनोखा है— उससे उलट, जो हमारा देखा और जाना-पहचाना है।
वहां भी सभ्यताएं हैं, तरक्की के पैमाने पर जीरो से लेकर वहां तक, कि वे पूरे यूनिवर्स तक को रीडिजाइन करने की क्षमता रखती हैं। जो सबसे तरक्कीशुदा सभ्यताएं हैं, वे इसी धुरी के अंतर्गत एक दूसरे के साथ संघर्ष में उलझे हैं और पृथ्वी से ट्रांसफार्म हो कर वहां पहुंचे लोगों को भी अपने साथ यह कह कर उलझा लेते हैं कि अगर उनका यूनिवर्स रीडिजाईन होता है तो इंसानों का यूनिवर्स ही कोलैप्स हो जायेगा। इस कठिन संघर्ष के अंतिम मरहले पर एक ऐसा महायुद्ध होता है, जिसमें पूरी की पूरी सभ्यताएं मिट जाती हैं।
तीनों किताबें एक साथ पब्लिश की गई हैं और ऑनलाइन बिक्री के लिये अमेज़न/फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं। जिन्हें डिजिटल फार्मेट में पढ़ना पसंद है, उनके लिये यह सुविधा किंडल पर मौजूद है। सभी लिंक पोस्ट के साथ ही संलग्न हैं।
Miro 1
Mirov 2
Mirov 3
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कोड / ऋतुराज
भाषा को उलट कर बरतना चाहिए
मैं उन्हें नहीं जानता
यानी मैं उन्हें बख़ूबी जानता हूं
वे बहुत बड़े और महान् लोग हैं
यानी वे बहुत ओछे, पिद्दी
और निकृष्ट कोटि के हैं
कहा कि आपने बहुत प्रासंगिक
और सार्थक लेखन किया है
यानी यह अत्यन्त अप्रासंगिक
और बकवास है
आप जैसा प्रतिबद्ध और उदार
दूसरा कोई नहीं
यानी आप जैसा बेईमान और जातिवादी इस धरती पर
कहीं नहीं
अगर अर्थ मंशा में छिपे होते हैं
तो उल्टा बोलने का अभ्यास
ख़ुद-ब-ख़ुद आशय व्यक्त कर देगा
मुस्कराने में घृणा प्रकट होगी
स्वागत में तिरस्कार
आप चाय में शक्कर नहीं लेते
जानता हूँ
यानी आप बहुत ज़हरीले हैं
मैंने आपकी बहुत प्रतीक्षा की
यानी आपके दुर्घटनाग्रस्त होने की ख़बर का
इन्तज़ार किया
वह बहुत कर्तव्यनिष्ठ है
यानी बहुत चापलूस और कामचोर है
वह देश और समाज की
चिन्ता करता है
यानी अपनी सन्तानों का भविष्य सुनहरा
बनाना चाहता है
हमारी भाषा की शिष्टता में
छिपे होते हैं
अनेक हिंसक रूप
विपरीत अर्थ छानने के लिए
और अधिक सुशिक्षित होना होगा
इतना सभ्य और शिक्षित
कि ��त्रु को पता तो चले
कि यह मीठी मार है
लेकिन वह उसका प्रतिवाद न कर सके
सिर्फ कहे, आभारी हूँ,
धन्यवाद !!
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#GodMorningWednesday
🙏शुभ प्रभात🌻
इंसान
मुझे सब बोलते हैं क्या रखा है भक्ति में, ये भी कोई उम्र है ?
परमात्मा
कबीर, कहते को कह जान दे, गुरु की सीख ले । । साकट और श्वान को, उलट जवाब न दे ।।
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*🎯जगत के तारणहार परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज जी का जीवन परिचय और उनका अद्भुत क्रांतिकारी अध्यात्मिक संघर्ष🎯* परम संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर, 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करने के बाद हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। संत रामपाल जी महाराज जी की आस्था देवी देवताओं की भक्ति में विशेष होने के कारण जगह जगह साधु संतों से अध्यात्मिक चर्चा करते थे जिनके फलस्वरूप उनकी मुलाकात स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से हुई और उनसे प्रभावित होकर उन्होंने 17 फरवरी सन् 1988 को 37 वर्ष की आयु में फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि में दीक्षा प्राप्त की। 1994 में अपने गुरुदेव रामदेवानंद जी के आदेश अनुसार नाम दीक्षा देने लगे। अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए। अपने गुरुदेव की आज्ञा पालन करने के लिए संत रामपाल जी महाराज ने अपना घर, बच्चे, नौकरी छोड़कर, सर्वस्व परमात्मा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया । ऐसा माना जाता है कि सामाजिक, आर्थिक, अध्यात्मिक इत्यादि क्षेत्रों में जब सुगमता पूर्वक विचारयुक्त वाले व्यक्ति हो तो प्रायः सभी क्षेत्रों में समानता के भाव रहते है किंतु इसके उलट जब लोग स्वार्थपूर्वक जीवन जीने के आतुर हो तो वही संघर्ष की शुरुआत होती है। कुछ ऐसा ही कुकृत्य सन् 2006 में करोंथा कांड में देखा गया। जब संत रामपाल जी महाराज जी व उनके अनुयाई शांति पूर्वक सत्संग कर रहे थे तभी कुछ तथाकथित आर्य समाज के व्यक्तियों ने आश्रम को चारों तरफ से घेर लिया और सभी प्रकार की सुविधाएं भी बंद करा दी तथा हत्या का झूठा आरोप लगाकर 2006 से 2008 तक संत रामपाल जी महाराज जी को जेल भिजवा दिया। पुनः 2014 में भी झूठे आरोप में जेल जाना पड़ा। कारण सिर्फ इतना था कि संत रामपाल जी महाराज ने आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा रचित पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश का खुलासा किए तथा जनता को सच्चाई से रूबरू करवाए। जेल में जाने के बावजूद भी संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान रुका नहीं जन जन तक लोगों में अलख क्रांति जगाई । लोग संत रामपाल जी महाराज जी से जुड़ते गए और उनके सत्य ज्ञान को पहचानते गए। आज जनता के सामने सच्चाई भी उजागर हुई। 2006 में करोंथा कांड में लगाए गए हत्या के झूठे आरोप में संत रामपाल जी महाराज जी बाइज्जत बरी हो चुके हैं। दोस्तों यह तो सच है कि जब भी किसी कार्य में परिवर्तन किया जाता है तो विरोध होना लाजमी है किंतु यह बड़े स्तर पर संत रामपाल https://www.instagram.com/p/CopoB29IlsL/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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