यहां सकारात्मकता की बात भी बेमानी हो जाती है। अपनी भावनाओं से कट जाना समर्पण नहीं है। हो सकता है कि कुछ चरम स्थितियों में 'अब' को स्वीकार करना आपके लिए संभव न हो। लेकिन समर्पण में आपको इसके लिए एक और अवसर तो मिल ही जाता है। यह जानने के बाद कि जो हो गया है, उसे वैसा ही नहीं किया जा सकता।
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