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21.47 लाख करोड़ का पहली बार 93 साल में रेल बजट के साथ पेश हुआ आम बजट, सिलेंडर और चीनी की सब्सिडी समाप्त करने की संभावनाओं को देख गरीब व महिला विरोधी कहा जा सकता है
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरूण जेटली द्वारा पहली बार एक फरवरी को बजट पेश किया गया। भारी भरकम आर्थिक जानकारों की फौज के सहयोग से तैयार बजट को किसी भी रूप में बिल्कु�� तो नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि कुछ फायदे जनता के लिये घोषित किये गए हैं तो कहीं नुकसान भी आम आदमी को आने वाले समय में इससे होने वाले हैं। क्योंकि घरेलू गैस सिलेंडर व राशन की दुकानों पर मिलने वाली चीनी सब्सिडी समाप्त करने की चर्चा भी बजट पेश होने के बाद शुरू हो गई है। 21.47 लाख करोड़ रूपये के बजट को लेकर सबकी अपनी अपनी राय हैं। प्रोफेसर जगदीप छोकर संस्थापक सदस्य, नेशनल इलेक्शन वाॅच द्वारा इसे बस धारणा बदलने की कलाबाजी कहा गया तो आम बजट प्रस्ताव को शिव सेना के उद्धव ठाकरे द्वारा चुनावी जुमला बताया गया है। सीसीएयू कैंपस के एचओडी, अर्थशास्त्र डा अतवीर सिंह का कहना है कि बजट में बुरी खबर नहीं है। यही अच्छी खबर है। एडको डबलोपर्स के वरूण अग्रवाल का कहना है कि मध्यम वर्ग को राहत देने वाला है बजट। तो विपक्षी नेताओं का कहना है कि सोचा था बम होगा। मगर सब कुछ फुस्स निकला। हमारे पीएम नरेंद्र मोदी की नजर में यह भविष्य का बजट है। अपनी अमीर विरोधी छवि के चलते जागरूक नागरिकों के अनुसार बजट को केंद्र सरकार द्वारा अमीरों से लेने और मध्यम वर्ग के लोगों को देने का बजट बताया गया है। तो कई जागरूक नागरिक इसे बदलाव का बजट की संज्ञा भी दे रहे हैं। सांसद राहुल गांधी का कहना है कि बजट में किसानों व युवाओं के रोजगार के लिये कुछ नहीं किया गया। यूपी के मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार के इस बजट से अच्छे दिन तो नहीं आएंगे। जबकि रेलयात्रियों की सुरक्षा के लिये संरक्षा कोष बनाने की घोषणा करते हुए देशभर में फैली 65 से 70 हजार किमी तक की रेल लाईन से जल्द ही यात्रियों को उनके गतव्य तक पहुंचाने के लिये मैट्रो ट्रेन की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है। मगर नागरिकों का मानना है कि बुलट ट्रैन से पहले सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था होनी चाहिये मगर निगाह अगर बजट पर दौड़ाएं तो किसानों, बेरोजगारों के लिये इसमे बहुत कुछ नहीं किया गया। रालोद के राष्ट्रीय महासचिव जयंत चैधरी का कहना है कि किसान व मजदूर विरोधी है बजट तो भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चैधरी नरेश टिकैत द्वारा बजट में किसान और खेती के उपेक्षित रहने की बात कहीं गई है। दूसरी तरफ कमेंट एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा जाने माने कृषि अर्थशास्त्री का मानना है कि किसानों की आमदनी दुगनी करने का लक्ष्य सपना ही रह जाएगा। तो क���छ अन्यों का मानना है कि ग्रामीण रोजगार बढाने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है बजट में गांव और किसान को बेहतर भविष्य का सपना ही दिखाया गया है। बजट में यूपी मेरठ के हस्तिनापुर को रेल यात्रा के संदर्भ में इस बार भी लगभग निराशा ही हाथ लगी। बताते चले कि आदी आबादी को होमलोन में छुट तो नहीं मिली हां उनके घरेलू बजट पर सलेंडर और चीनी में दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती की संभावना जरूर व्यक्त की जा रही है। उनकी रसोई व घरेलू बजट गड़बड़ा जाएगा। अगर सिलेंडर व चीनी की सब्सिडी में कटौती होती है तो यूपी में विधानभा चुनाव के चलते लागू आचार संहिता की बंदिश के कारण केंद्रीय बजट में इसके लिये कोई बडा ऐलान नहीं किया गया मगर मुझे लगता है कि केंद्र सरकार का यह बजट पूरी तौर पर पांच राज्यों में हो रहे चुनावों को दृष्टिगत रख मतदाताओं को बहलाने और आकर्षित करने वाला बजट ही है। जो सुविधाएं दी गई हैं वो पूरे देश सहित इन पांचों प्रदेशों में भी लागू होंगी और जो अन्यों के लिये घोषण की गई है अनाधिकृत रूप से यह दर्शा दिया गया है कि भविष्य में चुनाव वा���े प्रदेश भी लाभ से वांचित नहीं रहेंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इस कथन से मैं भी कुछ सहमत हूं कि बजट मैं किसानों युवाओं और बेरोजगारों के लिये कुछ नहीं सिर्फ शेर और शायरी के माध्यम से लुभाने का प्रयास आम आदमी को ज्यादा किया गया लगता है। कुछ अखबारों में छपी खबरों के अनुसार देश का सबसे पहला बजट ईस्ट इंडिया कंपनी के वित्त सदस्य जेम्स विल्सन द्वारा 18 फरवरी 1869 को पेश किया गया था। तो पाक पीएम और पंडित जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार के वित्त मत्री लियाकत अली खान ने भी 1946 दो फरवरी को भारत का बजट पेश किया था। पहले बजट में कोई इनकम टैक्स नहीं लगाया गया था। तो केसी नेगी देश के ऐसे वित्त मंत्री रहे जिन्होंने कोई बजट पेश नहीं किया क्योंकि वो मात्र 35 दिन तक इस पद पर विराजमान रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मुरारजी दिशाई द्वारा अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा बार बजट पेश किया गया। उन्होंने कुल दस बार वित्त बजट पेश किया। उनके बाद प्रणव मुखर्जी, पी चिदंबरम, यशवंत सिंहा, वाईबी चैहान और सीडी देशमुख हैं। जिन्होंने कुल सात बार बजट पेश किया। मनमोहन सिंह और टीटी कृष्णामाचारी ने छह बार बजट पेश किया है। कुल मिलाकर वैसे तो यह आर्थिक जानकारों व बहुत जागरूक नागरिकों के सोचने और उनके कार्यक्षेत्र का मुददा है। मैं ठहरा निरक्षर और अनपढ़। लेकिन जागरूक नागरिकों के पास बैठने और उनकी बात सुनने और सोचने से जो विचार बनता है उसके अनुसार बजट में पूरी तौर पर ��ित्तमंत्री अरूण जेटली ने आंकडो की बाजीगिरी की है। तथा अपनी सोच के अनुसार गर��ब की बात तो कहीं। जानकारों का कहना है कि बीच बीच रेल किरायों में बढोतरी की जा सकती है लेकिन कुछ मुददे जैसे चीनी और सिलेंडर की सब्सिडी कम किये जाने की संभावना ऐसे है जिनसे लगता है कि यह बजट कम या ज्यादा गरीब विरोधी ही कहा ही जा सकता है।
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