#आर्थिक प्रभाव पर शी जिनपिंग
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शी जिनपिंग दूरदर्शी वर्ल्ड लीडर... बोले प्रचंड, नेपाली PM के चीन दौरे पर भारत की नजरें क्यों?
अल्पयू सिंह, नई दिल्ली: हाल ही में नेपाल के पीएम प्रचंड चीन के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने शी जिनपिंग को दूरदर्शी वर्ल्ड लीडर बताया और कहा कि नेपाल वन चाइना पॉलिसी को मानता है। नेपाल वापसी पर उन्होंने चीन के दौरे को बेहद सफल करार दिया। उनके शब्दों में चीन दौरे से काठमांडू-पेइजिंग के बीच विश्वास का माहौल मजबूत हुआ है। प्रचंड के बयान से लगता है कि पहले से ज्यादा करीब आ गए हैं। क्या इससे भारत को सतर्क होने की जरूरत है?केंद्र में BRIप्रचंड के हफ्ते भर के दौरे में चीन की ओर से उनकी अच्छी-खासी आवभगत की गई। इस दौरे में वे कम्युनिस्ट पार्टी के तीनों बड़े लीडर्स से भी मिले। प्रचंड के इस दौरे से पहले चीनी सरकार ने कहा था कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और रणनीतिक सहयोग दोनों देशों के संबंधों के केंद्र में है। हालांकि, BRI को लेकर चीन नेपाल से खासा निराश रहा है। साल 2017 में इस पर मुहर लगाने के बाद भी नेपाल में इससे जुड़ा एक भी प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया है।7 दिन के इस दौरे का नतीजा दोनों देशों के बीच 12 करार पर समझौते के रूप में सामने आया। दोनों देश कृषि व्यापार, बुनियादी ढांचे, डिजिटल अर्थव्यवस्था के अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर में एक-दूसरे का सहयोग करने पर राजी हुए। BRI को लेकर कहा गया कि दोनों देशों की ओर से इस योजना को अंतिम रूप देने के लिए सहयोग ��ें तेजी लाने पर काम होगा।दबाव में नहींइस दौरान एक खास बात ये रही कि चीन की ओर से दबाव बनाए जाने के बावजूद नेपाल ने चीन के ग्लोबल सिक्यॉरिटी इनिशिएटिव में शामिल होने से इनकार कर दिया। साझा बयान में कहा गया कि नेपाल, चीन की वैश्विक विकास पहल का समर्थन करता है और इस समूह में शामिल होने के बारे में सोचेगा।भारत पर पूछा गया सवालप्रचंड से भारत के बारे में सवाल भी पूछे गए। ग्लोबल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने संतुलित जवाब देते हुए कहा कि नेपाल गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को मानता है। ऐसे में वह दोनों ही देशों के साथ स्वतंत्र रिश्ते बनाकर रखता है। उन्होंने चीन और भारत को करीबी दोस्त और सहयोगी बताया। एक-दूसरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह दोनों ही देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध चाहते हैं।नेपाल जो कहे लेकिन सच ये है कि बीते कुछ समय में चीन और नेपाल बहुत करीब आए हैं। साल 2015 की अघोषित आर्थिक नाकेबंदी ने आम नेपाली के मन में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया है। वहां का पॉलिटिकल क्लास पहले से ही चीन की ओर झुकाव रखता रहा है। नेपाल में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर आक्रामक रहा है।रिश्ते मजबूत करे भारतहाल ही में नेपाल में चीन के राजदूत चेन सॉन्ग ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि दुर्भाग्य से आपके पास भारत जैसा पड़ोसी है। चीन ने भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी निवेश के जरिए भारत के लिए नई चुनौतियां खड़ी की हैं। इन देशों की शिकायत रही है कि भारत उनके साथ बिग ब्रदर वाला रवैया अपनाता रहा है। इसी वजह से दूरी बढ़ी भी है।भारत के लिए ये बेहद जरूरी है कि वह नेपाल के साथ संवाद बढ़ाए। दोनों देशों के बीच खामोशी से संबंधों में दूरी पैदा हुई है, जिसको खत्म करना जरूरी है। साथ ही भारतीय विदेश नीति में पड़ोसी देशों को लेकर नेबरहुड फर्स्ट की नीति को फिर से रिवाइव कर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि उन्हें चीन के प्रभाव में आने से रोका जा सके। http://dlvr.it/SwsVvY
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चीन में आर्थिक अर्थव्यवस्था के प्रभाव से पर्यावरण की चुनौती, शी पेंग ने ये देखभाल की है
चीन में आर्थिक अर्थव्यवस्था के प्रभाव से पर्यावरण की चुनौती, शी पेंग ने ये देखभाल की है
चिंराट में एक बार फिर से पायरा होता है। कुछ अन्य स्थितियों में भी त्वरित गति से स्थिति होती है। स्थिति में है। इस बीच चीन के राष्ट्रपति चुनाव के प्रभाव में हैं। शी पिपिंग की ये योजना इकठ्ठा करने के लिए आवश्यक है. . स्थायी रूप से खरा��� होने पर स्कूल बंद हो जाएगा"टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफाई;"> विकास और के प्रभाव को कम करने की चुनौती राष्ट्रपति जी.जी. इसके तः हिन्दी कम से कम कीमत पर प्रभाव और आर्थिक…
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#आर्थिक प्रभाव#आर्थिक प्रभाव पर शी जिनपिंग#ओमिक्रोन वरिनाटा#कोरोना का प्रकोप#कोरोना काल#कोरोना न्यूज#कोरोना महामारी#कोरोनावाइरस#कोविड -19#कोविड जीरो पॉलिसी#चीन के राष्ट्रपति शी जेमिंग पिंग#चीन में अर्थव्यवस्था का प्रभाव#चीन में अर्थव्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करना#चीन में कोरोनावायरस#चीन में कोविड#चीन में तेज गति से बातचीत#चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग#झी जिनपिंग#टीका#बीजिंग#शी जिनपिंग ताजा खबर#शी जिनपिंग हिंदी समाचार#शी जेमिंग
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Zelensky Seeks Direct Talks With China's Xi to Help 'End War With Russia'
Zelensky Seeks Direct Talks With China’s Xi to Help ‘End War With Russia’
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने गुरुवार को बताया कि यूक्रेन रूस के साथ अपने युद्ध को समाप्त करने में मदद करने के लिए चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ “सीधे” बोलने का अवसर मांग रहा है। एससीएमपी के साथ एक साक्षात्कार में, यूक्रेनी नेता ने चीन से लड़ाई को समाप्त करने के लिए रूस पर अपने बड़े राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का उपयोग करने का आग्रह किया। “यह एक बहुत शक्तिशाली राज्य है। यह एक शक्तिशाली अर्थव्यवस्था है…
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चीन कोविड रणनीति: शी जिनपिंग ने बढ़ते मामलों के आर्थिक प्रभाव को कम करने का वादा किया है
चीन कोविड रणनीति: शी जिनपिंग ने बढ़ते मामलों के आर्थिक प्रभाव को कम करने का वादा किया है
राष्ट्रपति ने कह��, “चीन को न्यूनतम लागत पर अधिकतम रोकथाम और नियंत्रण हासिल करने और आर्थिक और सामाजिक विकास पर महामारी के प्रभाव को कम करने का प्रयास करना चाहिए।” झी जिनपिंग चीन के शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय पोलित ब्यूरो ने गुरुवार को अपनी स्थायी समिति की बंद कमरे में बैठक में कहा। शी का बयान चीन की जीरो-कायर रणनीति के प्रभाव और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर इसके कठोर लॉकडाउन के…
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बाइडेन ने बुलाई 40 देशों के नेताओं की बैठक, पीएम मोदी को न्योता, इमरान खान को झटका Divya Sandesh
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बाइडेन ने बुलाई 40 देशों के नेताओं की बैठक, पीएम मोदी को न्योता, इमरान खान को झटका
वॉशिंगटन/इस्लामाबाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना समेत विश्व के 40 नेताओं को जलवायु परिवर्तन से निपटने पर वार्ता के मकसद से आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है। इस शिखर सम्मेलन का मकसद जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने के आर्थिक लाभ एवं महत्व को रेखांकित करना है। इस बैठक में पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को न्योता नहीं मिला है।
यह दो दिवसीय शिखर सम्मेलन 22 और 23 अप्रैल को होगा और इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा। वाइट हाउस ने शुक्रवार को कहा, ‘यह ग्लासगो में इस साल नवंबर में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी26) के मार्ग में एक मील का पत्थर होगा।’ मोदी के अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा, ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन समेत 40 नेताओं को शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया है।
दक्षिण एशिया से बंग्लादेश की प्रधानमंत्री और भूटान के PM को आमंंत्रण इन नेताओं के अलावा दक्षिण एशिया से बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग को भी सम्मेलन मे शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। वाइट हाउस ने कहा कि इस शिखर सम्मेलन और सीओपी26 का मुख्य लक्ष्य वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के प्रयासों को गति देना है। उसने कहा कि इस सम्मेलन में उन उदाहरणों को भी रेखांकित किया जाएगा कि किस प्रकार जलवायु महत्वाकांक्षा से अच्छे वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं, नवोन्मेषी तकनीक विकसित करने में मदद मिलती है।
साथ ही कमजोर देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुसार ढलने में सहायता मिलती है। वाइट हाउस ने कहा कि शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले अमेरिका पेरिस समझौते के तहत अपने नए राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान के रूप में महत्वाकांक्षी 2030 उत्सर्जन लक्ष्य की घोषणा करेगा।
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DNA ANALYSIS: कोरोना फैलाने वाले चीन से दुनिया की Economic डिस्टेंसिंग
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DNA ANALYSIS: कोरोना फैलाने वाले चीन से दुनिया की Economic डिस्टेंसिंग
आप इसे चीन की लापरवाही कहिए या फिर साजिश लेकिन सच ये है कि एक देश की वजह से आज पूरी दुनिया जीवन और मृत्यु के एक ऐसे चक्र में फंस गई है जिससे बाहर निकलने की कोई सूरत फिलहाल दिखाई नहीं दे रही लेकिन इसके लिए चीन को क्या सज़ा दी जानी चाहिए? पूरी दुनिया इस समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है लेकिन क्या चीन को सबक सिखाने के लिए दुनिया को उसके साथ ECONOMIC DISTANCING करनी चाहिए ? यानी क्या दुनिया को चीन का आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए?
दुनिया के दो देशों ने इस पर काम शुरू कर दिया है. जापान और अमेरिका अब चीन को उसके कर्मों की सज़ा देने की कोशिश कर रहे हैं . इस हफ्ते मंगलवार को जापान ने एक बहुत बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. ये आर्थिक पैकेज 75 लाख करोड़ रुपये का है. ये जापान की कुल जीडीपी का 20 प्रतिशत है. आगे बढ़ने से पहले आप इस विषय पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का ये बयान सनिए:
कहा जा रहा है कि शिंजो आबे ने इतने बड़े पैकेज का ऐलान करके जापान को संदेश देने की कोशिश की है क्योंकि इस राहत पैकेज के जरिए जापान अपनी बड़ी बड़ी कंपनियो और फैक्ट्रियों को चीन से वापस बुलाना चाहता है. जापान की जो कंपनियां ऐसा करेंगी उन्हें सरकार इस राहत पैकेज के तहत आर्थिक मदद देगी जो कंपनियां जापान वापस आएंगी उनके लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये और जो कंपनियां चीन के छोड़कर किसी और देश में जाएंगी उनके लिए 1600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जापान ने अपनी कंपनियों को साफ साफ दिया है कि वो चीन को छोड़कर किसी भी देश में जाने के लिए स्वतंत्र हैं.
चीन से अमेरिकी कंपनियों का पलायन भी शुरू हो गया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी ��ी वजह से कई कंपनियां अब चीन छोड़ने पर मजबूर हैं . चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार यानी व्यापार युद्ध भी चल ��हा है और यही वजह है कि पिछले वर्ष अमेरिका की करीब 50 कंपनियों ने पिछले साल ही चीन को गुड बाय कह दिया था और इस साल चीन छोड़ने वाली अमेरिकी कंपनियों की संख्या तेज़ी से बढ़ सकती हैं. कंसल्टिंग फर्म KEARNEY के मुताबिक चीन के प्रति अब दुनिया भर की कंपनियों का रवैया बदलने लगा है .
अब ये कंपनियां चाहती हैं कि वो दुनिया के अलग अलग देशों में कारोबार करे और अपनी फैक्ट्रियां लगाएं ताकि चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके. दरअसल, चीन पिछले कई दशकों से दुनिया की फैक्ट्री बना हुआ , आपके जीवन से जुड़ी कई छोटी बड़ी चीज़ें भी चीन से ही बनकर आती है . लेकिन कोरोना वायरस की वजह से जब चीन में उत्पादन ठप हुआ तो पूरी दुनिया को ये समझ आ गया है कि चीन पर निर्भर रहने का अर्थ है अपनी ज़रूरतों से समझौता करना. दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग इस समय लॉकडाउन में हैं और अगर कंपनियां चीन से माल खरीद ही नहीं पाएंगी तो इन 400 करोड़ लोगों तक जरूरत का सामान पहुंचेगा कैसे?
इसलिए दुनिया के तमाम बड़े बड़े देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम या फिर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं और इसकी शुरुआत जापान और अमेरिका ने कर दी है लेकिन सवाल ये है कि अगर बड़ी बड़ी कंपनियां चीन छोड़ देती हैं तो इससे दुनिया के किन देशों को फायदा होगा ? और चीन के मुकाबले कौन से देश नया विकल्प बन सकते हैं.
दुनिया में फिलहाल 5 ऐसे देश हैं जो चीन की जगह ले सकते हैं. इसमें पहला नाम भारत का है. भारत चीन के पैमाने पर ही लेबर फोर्स मुहैया करा सकता है क्योंकि आबादी के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है और चीन की ही तरह भारत में भी श्रम लागर बहुत कम है. दूसरे नंबर पर वियतनाम है जो कोरोना वायरस के संकट से पहले भी अमेरिका को करीब 5 हज़ार तरह के उत्पाद बेच रहा था. इसके अलावा थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया को भी इससे काफी फायदा हो सकता है, क्योंकि इन देशों की आबादी भी अच्छी खासी है और इन देशों में भी श्रम लागत काफी कम है और इन पांचों देशों के पास सस्ते दामों पर कच्चा माल भी उपलब्ध है.
फिलहाल चीन दुनिया की फैक्ट्री है. आपके मोबाइल फोन से लेकर दीवाली पर लगाई जाने वाली लाइटें तक चीन में ही बनती है . चीन बड़ी सैन्य शक्ति ही नहीं बल्कि एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी है इसलिए किसी भी बड़े देश की कंपनियों के लिए चीन छोड़ने का फैसला आसान नहीं है लेकिन यहां आपको ये भी समझना चाहिए कि चीन ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को इतना सक्षम बनाया कैसे ? और उसकी उपलब्धियां क्या हैं.
चीन 70 वर्षों में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम रहा है. चीन का लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक अपन�� देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म करना है. पिछले 70 वर्षों में हर 8 साल के दौरान चीन की अर्थव्यस्था का आकार दोगुना होता रहा है .
वर्ष 2050 तक चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी से दोगुनी हो जाएगी, हालांकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ये चमत्कार 2030 से पहले भी कर सकता है. हालांकि, चीन को अभी भी एक विकासशील देश माना जाता है. लेकिन ऐसा इतिहास में पहली बार हो रहा है जब कोई विकासशील देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है.
ये भी सच है कि चीन ने आर्थिक तरक्की का सफर 70 वर्ष पहले नहीं बल्कि सिर्फ 42 साल पहले शुरू किया था. 1978 में चीन में डेंग ज़ाओपिंग सत्ता में आए और उन्होंने उदारीकरण की शुरुआत की, यानी चीन ने दुनिया के लिए अपने दरवाज़े भारत से 13 वर्ष पहले खोल लिए थे. भारत में आर्थिक उदारीकरण का दौर 1991 में शुरु हुआ था.
1978 में चीन की अर्थव्यवस्था सिर्फ 150 बिलियन डॉलर्स यानी आज के हिसाब से 10 लाख करोड़ रुपये थी . चीन की अर्थव्यवस्था 1997 में बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 73 लाख करोड़ रुपये हो गई . और आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत से कई गुना ज्यादा बड़ी है जिसका आकार करीब 14 ट्रिलियन डॉलर्स का है. ये 1100 लाख करोड़ रुपये के बराबर है . ये भारत की अर्थव्यवस्था से करीब 5 गुना ज्यादा है.
वर्ष 1980 में चीन विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बना और चीन में चार स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाए गए. दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां चीन आने लगीं, क्योंकि चीन में श्रम लागत बहुत कम है. इसलिए चीन कुछ ही वर्षों में दुनिया की फैक्टरी बन गया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक Deng Xiaoping (डेंग ज़ाओपिंग) ने एक बार कहा था कि समाजवाद का मतलब गरीबी नहीं है, अमरी होना भी यशस्वी होने के बराबर है.
आज चीन सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि सैन्य और कूटनीतिक तौर पर भी दुनिया के शक्तिशाली देशों में शामिल है जो काम डेंग जाओपिंग ने शुरू किया था उसे आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन शी ये काम कैसे कर रहे हैं और कैसे उनके इस उद्देश्य में चीन की संस्कृति उनकी मदद कर रही है ये आपको समझना चाहिए. आधुनिक इतिहास में ऐसा पहली बार है, जब दुनिया की किसी सुपर पावर का संबध पश्चिम से नहीं पूर्व से है. आज हम आपको चीन के आर्थिक विकास में छिपे खतरों के बारे में भी बताएंगे लेकिन पहले आपको ये समझना चाहिए कि चीन ने 40 वर्षों में ये चमत्कार आखिर किया कैसे?
1978 तक चीन में महानदार्शनिक Confucius मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता था. इन मूल्यों में मानवता, ज्ञान, एकजुटता, वफादारी, और सही आचरण जैसी बातें शामिल थी . लेकिन चीन की कम्युनिस्ट सरकारों ने धीरे-धीरे इन मूल्यों को आधुनिकता के साथ जोड़ने का काम शुरु किया और इस विकास यात्रा में कुछ मूल्यों को सिरे से भूला भी दिया गया .
��तिहासिक तौर चीन में हमेशा से शासन करने वालों को बहुत सम्मान दिया जाता रहा है. चीन की संस्कृति के मुताबिक वहां शासक को एक संरक्षक माना जाता है. यानी चीन के पारिवारिक मूल्यों में भी सत्ता का प्रभाव अक्सर दिखाई देता है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में सरकार और समाज को एक ही यूनिट माना जाता है.
इसलिए वहां की सरकार जब सख्त नियम लागू करती है, तो ज्यादातर लोग इनका विरोध नहीं करते, बल्कि ये मान लेते हैं कि ये नियम घर के किसी बड़े ने उनको लाभ पहुंचाने के लिए तय किए हैं. यानी चीन में सत्ता को बहुत शक्तिशाली माना जाता है और उसके खिलाफ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता. कोरोना वायरस के दौर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा लिए गए फैसले भी इसी अनुशासन का उदाहरण है. शी ने खुद को चीन की सत्ता का केंद्र बना लिया है और वो आने वाले कई वर्षों तक चीन के लोगों के इस अनुशासन के दम पर राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं .
अब आपको चीन की कमज़ोरियों को भी समझना चाहिए. चीन की सबसे बड़ी कमज़ोरी है वहां विपक्ष और लोकतंत्र का अभाव. ये चीन की विकास यात्रा का वो पहलू है जिससे भारत ने हमेशा बचने की कोशिश की है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और एक लोकतंत्र की विशेषता ये होती है कि वहां सब की बात सुनी जाती है. विपक्ष को भी अहमियत दी जाती है. लोगों की राय का सम्मान किया जाता है. विरोध प्रदर्शन को दबाया नहीं जाता, बल्कि इसे लोकतंत्र की ताकत माना जाता है. हालांकि इसकी वजह से कई बार विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है . लक्ष्य वक्त पर हासिल नहीं हो पाते . इसलिए कुछ लोग इसे डेमोक्रेसी टैक्स भी कहते हैं. चीन में अमीर और गरीबों के बीच की खाई पहले से भी बड़ी हो गई है. चीन के ग्रामीण इलाकों में ये असमानता बहुत ज्यादा है और चीन की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी कम कुशल है . यानी इनकी काम करने कुशलता बहुत कम है. हालांकि चीन को कभी एशिया के सबस�� गरीब और दरिद्र देशों में शामिल किया जाता था, लेकिन आज चीन दुनिया की महाशक्ति बन गया है.
अब यहां आपको चीन से जुड़ा एक एतिहासिक पहलू बताते हैं . चीन में सरकार और शक्तिशाली लोगों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सज़ा देने का इतिहास रहा है और जो लोग महामारियों से जुड़ा सच बताते हैं उन्हें भी कई बार मौत के घाट उतार दिया जाता है.
उदाहरण के लिए चीन के जिस डॉक्टर Li Wenliang (ली वेनलियांग) ने सबसे पहले कोरोना वायरस के खतरे से आगाह किया था उन्हें चीन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनकी कोरोना वायरस से ही मौत हो गई. 2002 में SARS Virus के बारे में बताने वाले सर्जन को भी 45 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था.
2008 में चीन में एक व्यक्ति ने दूध कंपनियों के भ्रष्टाचार को उजागर किया था. ये कंपनियां दूध में खतरनाक केमिकल की म��लावट कर रही थी जिसकी वजह से 54 हज़ार बच्चों को अस्पताल में भर्ति कराना पड़ा था लेकिन ये खुलासा करने वाले Whistel Blower की भी चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी गई .
लेकिन चीन में सच कहने वालों को सज़ा देने का इतिहास बहुत पुराना है . ढाई हज़ार साल पहले महान दार्शनिक Confucius के एक शिष्य Zhong You ने जब भ्रष्टाचार के मामले को उजागर किया तो उसकी
भी निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी . कहा जाता है कि Zhong You के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे और कहा जाता है कि इसके बाद Confucius ने जीवन में फिर कभी मांस को हाथ नहीं लगाया. यानी Confucius से लेकर Communism तक चीन का इतिहास तो बदलता रहा लेकिन उसकी जन विरोधी प्रथाएं नहीं बदलीं.
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सीमा पर तनाव के बाद चीन को सताने लगा व्यापार में घाटे का डर सिक्किम की सरहद को लेकर भारत और चीन सामने सामने हैं । दोनों देशों के बीच इस बढ़ते तनाव का प्रभाव आर्थिक रिश्तों पर भी पड़ने की आशंका हैं । भारत के बड़े बाजार पर नजर लगाए बैठे चीन को अब व्यापार को लेकर चिंता सताने लगी हैं । इसकी जलक चीन सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया की खबरों में भी नजर आई । भारत में काम कर रही चीनी कंपनियों को चेताया गया है कि सरहद पर बढ़ते तनाव के मद्देनजर चीनी वस्तुओं का बहिष्कार होने की संभावना हैं । चीनी मीडिया ने एक लेख में कहा है कि भारत के लोग अपने देश की संप्रभुता को लेकर बेहद संवेदनशील हैं, ऐसे में चीनी कंपनियों की मुश्किलें ��ढ़ सकती हैं । दरअसल जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए, तो उस दौरान एशिया२ के दो महारथियों के बीच रिश्तों में भी गर्माहट आई । आपसी विश्वास के चलते २०१४ की तुलना में चीन से विदेशी निवेश लगभग ६ गुना से ज्यादा बढ़ा हैं । वहीं भारत के मुकाबले चीन का भारत में निर्यात काफी भारी भरकम हैं । आंकड़ों की बात करें तो चीन और भारत के निर्यातक में भारी असमानता हैं । यहां चीन भारत में लगभग ७ अरब डोलर का निर्यात करता हैं, वहीं भारत का चीन में निर्यात महज १६ मिलियन डोलर हैं । वहीं अगर विदेशी निवेश की बात करें, तो चीन ने २०१४ में एक बिलियन डोलर का निवेश किया और २०१५ में ही बढ़कर ६ मिलियन डोलर हो गया । चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए भारत एक पसंदीदा डेस्टिनेशन हैं । जिसको वह गवाना नहीं चाहता ।
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रूस के साथ संबंधों पर हमें ज्ञान न दे अमेरिका... चीन की बाइडेन प्रशासन को दो टूक
बीजिंग: चीन ने रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर अमेरिका पर जमकर भड़ास निकाली है। बीजिंग ने सख्त लहजे में कहा है कि अमेरिका हमें यह ज्ञान न दे कि रूस के साथ संबंधों को कैसे रखना है। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका के गठबंधन नीतियों की तुलना में चीन-रूस संबंध किसी भी तीसरे पक्ष के खिलाफ नहीं हैं। हमारे संबंध गैर-गठबंधन, गैर-टकराव और गैर-लक्ष्यीकरण पर आधारित हैं। यह दोनों पक्षों के हितों के अनुरूप है और वैश्विक चुनौतियों को दूर करने में सहायता करने वाला है। चीन ने अमेरिका पर अपने दुश्मनों को लक्ष्य बनाने वाले गठबंधन के निर्माण का आरोप भी लगाया। अमेरिका ने चीन को दी है चेतावनी अमेरिका ने चीन को चेतावनी दी है कि वह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को कमजोर करने में रूस की सहायता न करे। अमेरिका ने इसे लेकर चीन को अंजाम भुगतने की भी धमकी दी है। चीन ने रूस के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। कुछ समझौते तो यूक्रेन पर हमले के चंद दिनों पहले ही साइन किए गए थे। इसमें चीन और रूस के बीच तेल पाइपलाइन की स्थापना के साथ रियायती दरों पर लंबे समय तक तेल और गैस की आपूर्ति भी शामिल है। इसके अलावा अनाजों के निर्यात को लेकर भी दोनों देशों में डील हुई है। रूस के साथ संबंधों की तारीफ कर रहा चीन चीन ने कहा कि बीजिंग और मास्को के बीच ठोस संबंध दुनिया को बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ने में मदद कर सकते हैं, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकपक्षवाद में जाने से रोक सकते हैं। अमेरिका को चिंता है कि चीन और रूस के बीच गहराते सहयोग से उसके वैश्विक नेतृत्व और आधिपत्य पर असर पड़ेगा। यह सहयोग दोनों देशों के खिलाफ उसके प्रभाव को प्रभावित करेगा। अमेरिका को क्या है चिंता चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में रूसी, पूर्वी यूरोपीय और मध्य एशियाई अध्ययन संस्थान के एक एसोसिएट रिसर्च फेलो यांग जिन ने कहा कि अमेरिका को चिंता है कि चीन और रूस अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं। इससे अमेरिका और पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबधों के प्रभाव को कम क���ने में मदद मिल रही है। अमेरिकी विदेश विभाग ने चीन को कोसा अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने शुक्रवार को कहा कि जो लोग इस अन्यायपूर्ण युद्ध में मास्को के साथ हैं, वे अनिवार्य रूप से खुद को इतिहास के गलत पक्ष में पाएंगे। प्रवक्ता ने कहा कि बीजिंग तटस्थ होने का दावा करता है, लेकिन उसका व्यवहार स्पष्ट करता है कि वह अभी भी रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों में निवेश कर रहा है। यह बयान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के बीच एक वर्चुअल बैठक के बाद आया, जिसके दौरान दोनों ने विशेष रूप से द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों की प्रशंसा की थी। http://dlvr.it/SgDhjB
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