#आकाश वायु
Explore tagged Tumblr posts
taapsee · 1 month ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
2 notes · View notes
thedhongibaba · 1 year ago
Text
🙏अब आपकी बारी
खासकर अपने बच्चों को बताएं
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜
📜
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜
📜
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
परा��र ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
**********************
इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी सनातन भारतीय संस्कृति का ज्ञान हो।
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।
5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शौक में
4. मन्दिर में
5. कथा में
सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।
अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।
परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।
उदास हो?
कथाए पढो ।
टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।
फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......
सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।
व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।
ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।
श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।
.
''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...
''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...
खाने से पहले'पानी 'पीना
अमृत"है...
खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की
''पूजा'' है...
खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
''पीना औषधि'' है...
खाने के बाद 'पानी' पीना"
बीमारीयो का घर है...
बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...
ये बात उनको भी बतायें जो आपको "��ान"से भी ज्यादा प्यारे है
रोज एक सेब
नो डाक्टर ।
रोज पांच बदाम,
नो कैन्सर ।
रोज एक निबु,
नो पेट बढना ।
रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।
रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहेरे की समस्या ।
रोज चार काजू,
नो भूख ।
रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।
रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।।
"चेहरे के लिए ताजा पानी"।
"मन के लिए गीता की बाते"।
"सेहत के लिए योग"।
और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।
अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।
जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...
अच्छा लगा तो मैने भी आपको भेज दिया, आप भी इस पुण्य के भागीदार बनें
*जय माँ सरस्वती*!! जय मां शारदा !! 🙏🙏🌹🌹
2 notes · View notes
mikaharuka · 2 years ago
Text
About Mahabhuta, the Apricity Interlude
Despite sharing excerpts, I never explained the fic, so here I am!
[Also, tagging because you might be interested: @mrsmungus, @udaberriwrites, @magma-saarebas19, @danceswithdarkspawn, @aislinnstanaka, @writingpotato07, @alpaca-clouds]
Mahabhuta & Interlude Objectives
As mentioned, Mahabhuta is an interlude (likely the first of many) to Apricity. It takes place in the week between the La Push Bonfire (Obsidian, Ch 10) and the Seattle Day Trip (starting in Sapphire, Ch 12). The chapter in between, (Azure, Ch 11) takes place over the course of this week, but it only covers a few things.
In general, the Saturday that the La Push bonfire happens is a major turning point. The change doesn't just reflect Beau's mind (through the dreams) - they also represent other changes in that world, as well as the mystic bond. This will show up within Mahabhuta and Apricity.
Overview of the Interlude Structure
Mahabhuta is structured in a 5+1 format, for six chapters in total.
Mahabhuta is Sanskrit for "great element". The first five chapters are the five classical elements and the +1 chapter is the original element. Each of those five classical elements has an associated color, sense, and body part. In addition, I used vampire bingo prompts, to assign one main prompt and two secondary prompts to the dreams. Lastly, I've associated each of the Cullen siblings with each element.
All six chapters have a dream phase with Beau and a reality phase with Mike. The elemental themes are in both phases. The dream is E-rated for smut and the reality phase is T-rated. Both are plot-crucial.
The Classic Elements in Sanskrit
As you might have noticed, the titles are in Sanskrit, reflecting the Eastern themes of the WL verse. These are the elements in their traditional order (from coarse to fine, the ground to the heavens):
Prithvi (पृथ्वी, pṛthvī) - Earth
Varuna (वरुण, váruṇa) - Water
Agni (अग्नि, agni) - Fire
Vayu (वायु, vāyu) - Air, Wind
Akasha (आकाश, ākāśa) - Sky, Void, Space
Prakriti (प्रकृति, prakṛti) - Prime, The Origin
Interlude Specifics - Names, Days, Prompts, and Concepts
(as a side note, the Obsidian bonfire was Saturday evening, with the Azure dream taking place over Saturday night into Sunday morning)
Prithvi [Earth]
POV: Beau (dream) + Mike (reality)
Timeline: Sunday night - Monday evening
Color: Green
Sense: Smell/Scent
Body: Flesh/Bone
Vampire: Alice
Prompts: Altar Sex, Fangs, Vampire Bites
Varuna [Water]
POV: Beau (dream) + Mike (reality)
Timeline: Monday night - Tuesday evening
Color: Blue
Sense: Taste
Body: Blood
Vampire: Mina
Prompts: Mist, Blood Sharing, Rejuvenation
Agni [Fire]
POV: Beau (dream) + Mike (reality)
Timeline: Tuesday night - Wednesday evening
Color: Red
Sense: Sight/Vision
Body: Body Heat
Vampire: Elle
Prompts: Fever, Long/Never-Ending Night, Feeling the Cold
Vayu [Air]
POV: Beau (dream) + Mike (reality)
Timeline: Wednesday night - Thursday evening
Color: Yellow
Sense: Touch
Body: Breath
Vampire: Rosalie
Prompts: Hunting, Shadows, Heartbeats
Akasha [Sky]
POV: Beau (dream) + Mike (reality)
Timeline: Thursday night - Friday evening
Color: Violet
Sense: Sound
Body: Soul, Spirit
Vampire: Edward
Prompts: Moonlight, Ageless, Ethereal Beauty
Prakriti [Prime]
POV: Carlisle (dream) + Carlisle (reality)
Timeline: Friday night - Saturday evening***
(***this Saturday is the Seattle trip, coincides with Sapphire onwards)
Color: Black, White
Sense: All
Body: All
Vampire: Carlisle
Prompts: Telepathic Connection, Feral, Humanity
In Conclusion...
This was a fun concept to come up with, and as always, I have to thank Alhaira for being a sound board and listening to my rambles. And yes, some of the stuff that happens will be referenced in Apricity before the corresponding Mahabhuta chapter is posted on AO3.
While it'll be possible to read these chapters fandom-blind (since... you know, the Winter Light verse and Apricity are fandom-blind friendly by default), you would be best off reading Apricity first.
I recommend reading through Azure (Ch 11) for the five elemental chapters and through Midnight (Ch 14) for the +1 chapter, Prakriti.
Not that there's any rush - I'm only halfway through Prithvi (as of January 25)! It's not like Mahabhuta is the only thing I'm working on either - I'll be moving through Apricity and other short pieces. And as everyone and their friend knows... I'm not exactly the fastest writer!
(thank goodness, because Prakriti is already low-key scaring me O.O)
Though... considering I'm at 10k words and see Prithvi hitting 15-20k words in the end, I am considering splitting it. I'll have to see in the end how that turns out. But that is all from me... for now~
13 notes · View notes
Text
*पिता के लिए हमारे शास्त्रों में कई जगह क्या बताया गया है उसका चिंतन करते है !*
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृताः
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥
पिता शब्द ‘पा रक्षणे’ धातु से निष्पन्न होता है। ‘यः पाति स पिता’ जो रक्षा करता है, वह पिता कहलाता है। इससे वह पिता अर्थात् हमारी रक्षा की भूमिका में होते हैं। अतः पिता एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। इसे केवल रूढ़ अर्थों में ही नहीं लिया जाना चाहिये ।
ऋषि यास्काचार्य प्रणीत ग्रन्थ ‘निरुक्त’ के सूत्र 4/21 में कहा गया है-
‘पिता पाता वा पालयिता वा”।
निरुक्त 6/15 में कहा है –
‘पिता–गोपिता”
अर्थात् पालक, पोषक और रक्षक को पिता कहते हैं।
मनुस्मृति वेदमूलक अति प्राचीन ग्रन्थ है। इसके 2/145 सूत्र में पिता के गौरव का वर्णन मिलता है।
श्लोक है-
‘��पाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
सहस्त्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते।।
श्लोक का अर्थ है कि दस उपाध्यायों से बढ़कर आचार्य, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता और एक हजार पिताओं से बढ़कर माता गौरव में अधिक है, अर्थात् बड़ी है।
मनुस्मृतिकार ने जहां आचार्य और माता की प्रशंसा की है, उसी प्रकार पिता का स्थान भी ऊंचा माना है।
मनुस्मृति के श्लोक 2/226 में
‘‘पिता मूर्त्ति: प्रजापतेः”
कहकर बताया गया है कि पिता पालन करने से प्रजापति (राजा व ईश्वर) का मूर्तिरूप है।
महाभारत के वनपर्व में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में भी माता व पिता के विषय में प्रश्नोत्तर हुए हैं जिसमें इन दोनों मूर्तिमान चेतन देवों के गौरव का वर्णन है। यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं कि
‘का स्विद् गुरुतरा भूमेः स्विदुच्चतरं च खात्।
क���ं स्विच्छीघ्रतरं वायोः किं स्विद् बहुतरं तृणात्।।
अर्थात् पृथिवी से भारी क्या है? आकाश से ऊंचा क्या है? वायु से भी तीव्र चलनेवाला क्या है? और तृणों से भी असंख्य (असीम-विस्तृत) एवं अनन्त क्या है? इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया कि ‘माता गुरुतरा भूमेः पिता चोच्चतरं च खात्। मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात्।।’ अर्थात् माता पृथिवी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक विस्तृत एवं अनन्त है।
महाभारत शा. 266/21 में कहा गया है कि
‘पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवता।।
अर्थात् पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सारे देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
पद्मपुराण के 47/12-14 श्लोकों में भी पिता का गौरवगान मिलता है। ग्रन्थकार ने कहा है कि
‘सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।12।।
मातरं पितरं चैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्त द्वीपा वसुन्धरा।।13।।
जानुनी च करौ यस्य पित्रोः प्रणमतः शिरः।
निपतन्ति पृथिव्यां च सोऽक्षयं लभते दिवम्।।14।।
इन श्लोकों का तात्पर्य है कि माता सर्वतीर्थमयी (दुःखों से छुड़ानेवाली तीर्थ) है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है, अतएव प्रयत्नपूर्वक सब प्रकार से माता–पिता का आदर–सत्कार करना चाहिए। जो माता–पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सात द्वीपों से युक्त सम्पूर्ण पृथिवी की परिक्��मा हो जाती है। माता–पिता को प्रणाम करते समय जिसके हाथ, घुटने और मस्तक पृथिवी पर टिकते हैं, वह अक्षय स्वर्ग को प्राप्त होता है। महाभारत के आदि पर्व के 3/37 श्लोक में तीन पिताओं का वर्णन है। श्लोक आता है कि
‘शरीरकृत् प्राणदाता यस्य चान्नानि भुंजते।
क्रमेणैते त्रयोऽप्युक्ताः पितरो धर्मशासने।।
इस श्लोक में बताया गया है कि जो गर्भाधान द्वारा शरीर का निर्माण करता है वह प्रथम, जो अभयदान देकर प्राणों की रक्षा करता है वह द्वितीय और जिसका अन्न भोजन किया जाता है वह तृतीय, यह तीनों पिता होते हैं। *इसी तरह की रोचक तथ्य एवं अध्यात्मिक ज्ञान हेतु हमारे पेज से जुड़े* *tumblr par👇🏻* https://www.tumblr.com/sanatan-poojan-samagri-bhandar, *Instagram par👇🏻* https://www.instagram.com/sanatanpoojansamagribhandar?r=nametag
2 notes · View notes
iskconchd · 2 years ago
Photo
Tumblr media
श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 2.23 https://srimadbhagavadgita.in/2/23 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ २.२३ ॥ TRANSLATION यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है । PURPORT सारे हथियार – तलवार, आग्नेयास्त्र, वर्षा के अस्त्र, चक्��वात आदि आत्मा को मारने में असमर्थ हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक आग्नेयास्त्रों के अतिरिक्त मिट्टी, जल, वायु, आकाश आदि के भी अनेक प्रकार के हथियार होते थे । यहाँ तक कि आधुनिक युग के नाभिकीय हथियारों की गणना भी आग्नेयास्त्रों में की जाती है, किन्तु पूर्वकाल में विभिन्न पार्थिव तत्त्वों से बने हुए हथियार होते थे । आग्नेयास्त्रों का सामना जल के (वरुण) हथियारों से किया जाता था, जो आधुनिक विज्ञान के लिए अज्ञात हैं । आधुनिक विज्ञान को चक्रवात हथियारों का भी पता नहीं है । जो भी हो, आत्मा को न तो कभी खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न किन्हीं वैज्ञानिक हथियारों से उसका संहार किया जा सकता है, चाहे उनकी संख्या कितनी ही क्यों न हो । मायावादी इसकी व्याख्या नहीं कर सकते कि जीव किस प्रकार अपने अज्ञान के कारण उत्पन्न हुआ और तत्पश्चात् माया की शक्ति से आवृत हो गया । न ही आदि परमात्मा से जीवों को विलग कर पाना संभव था, प्रत्युत सारे जीव परमात्मा से विलग हुए अंश हैं । चूँकि वे सनातन अणु-आत्मा हैं, अतः माया द्वारा आवृत होने की उनकी प्रवृत्ति स्वाभाविक है और इस तरह वे भगवान् की संगति से पृथक् हो जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि के स्फुलिंग अग्नि से विलग होते ही बुझ जाते हैं, यद्यपि इन दोनों के गुण समान हो���े हैं । वराह पुराण में जीवों को परमात्मा का भिन्न अंश कहा गया है । भगवद्गीता के अनुसार भी वे शाश्र्वत रूप से ऐसे ही हैं । अतः मोह से मुक्त होकर भी जीव पृथक् अस्तित्व रखता है, जैसा कि कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये उपदेशों से स्पष्ट है । अर्जुन कृष्ण के उपदेश के कारण मुक्त तो हो गया, किन्तु कभी भी कृष्ण से एकाकार नहीं हुआ । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.23 nainaṁ chindanti śastrāṇi nainaṁ dahati pāvakaḥ na cainaṁ kledayanty āpo na śoṣayati mārutaḥ TRANSLATION The soul can never be cut to pieces by any weapon, nor burned by fire, nor moistened by water, nor withered by the wind. PURPORT All kinds of weapons – swords, flame weapons, rain weapons, tornado weapons, etc. – are unable to kill the spirit soul. It appears that there were many kinds of weapons made of earth, water, air, ether, etc., in addition to the modern weapons of fire. Even the nuclear weapons of the modern age are classified as fire weapons, but formerly there were other weapons made of all different types of material elements. Fire weapons were counteracted by water weapons, which are now unknown to modern science. Nor do modern scientists have knowledge of tornado weapons. Nonetheless, the soul can never be cut into pieces, nor annihilated by any number of weapons, regardless of scientific devices. The Māyāvādī cannot explain how the individual soul came into existence simply by ignorance and consequently became covered by the illusory energy. Nor was it ever possible to cut the individual souls from the original Supreme Soul; rather, the individual souls are eternally separated parts of the Supreme Soul. Because they are atomic individual souls eternally (sanātana), they are prone to be covered by the illusory energy, and thus they become separated from the association of the Supreme Lord, just as the sparks of a fire, although one in quality with the fire, are prone to be extinguished when out of the fire. In the Varāha Purāṇa, the living entities are described as separated parts and parcels of the Supreme. They are eternally so, according to the Bhagavad-gītā also. So, even after being liberated from illusion, the living entity remains a separate identity, as is evident from the teachings of the Lord to Arjuna. Arjuna became liberated by the knowledge received from Kṛṣṇa, but he never became one with Kṛṣṇa. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
2 notes · View notes
atanshumman · 15 days ago
Text
कृष्ण और पांचजन्य: अच्छाई की विजय का संदेश
पांचजन्य का अर्थ है “पांच तत्वों से उत्पन्न” और यह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का प्रतीक है। यह शंख सिर्फ एक हथियार नहीं है, बल्कि दिव्य शक्ति और धर्म की प्रतीक है। महाभारत में भूमिका कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, कृष्ण द्वारा पांचजन्य के शंखनाद से युद्ध की शुरुआत हुई। इस शंखनाद का उद्देश्य पांडवों का मनोबल बढ़ाना और कौरवों को भयभीत करना था। दिव्य गुण पांचजन्य को एक दानव पंचजन के…
0 notes
aspundir · 26 days ago
Text
ब्रह्मवैवर्तपुराण - ब्रह्मखण्ड - अध्याय 03
ब्रह्मवैवर्तपुराण – ब्रह्मखण्ड – अध्याय 03 ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः तीसरा अध्याय श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ, नारायण, महादेव, ब्रह्मा, धर्म, सरस्वती, महालक्ष्मी और प्रकृति –का प्रादुर्भाव तथा इन सबके द्वारा पृथक-पृथक श्रीकृष्ण का स्तवन सौति कहते हैं – भगवान ने देखा कि सम्पूर्ण विश्व शून्यमय है। कहीं कोई जीव-जन्तु नहीं है। जल का भी कहीं पता नहीं है। सारा आकाश वायु से रहित और…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
harjilive · 1 month ago
Text
श्री लिंग महापुराणप्रथम सृष्टि का वर्णन…(भाग 2)
श्री लिंग महापुराणप्रथम सृष्टि का वर्णन…(भाग 2) सर्ग (सर्जन) की इच्छा से परमात्मा अव्यक्त में प्रवेश करता है, उससे महत् तत्व की सृष्टि होती है। उससे त्रिगुण अहंकार जिसमें रजोगुण की विशेषता है, उत्��न्न होता है। अहंकार से तन्मात्रा (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध) उत्पन्न हुई। इनमें सबसे पहले शब्द, शब्द से आकाश, आकाश से स्पर्श तन्मात्रा तथा स्पर्श से वायु, वायु से रूप तन्मात्रा, रूप से तेज (अग्नि)…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
sunilsharmasworld · 1 month ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes
taapsee · 28 days ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes
manjeetsworld · 1 month ago
Text
#GodEveningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
Tumblr media
0 notes
tejpa · 1 month ago
Text
Tumblr media
#सत_भक्ति_संदेश
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes
9897pansingh · 1 month ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes
coralsoulrebel · 1 month ago
Text
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
Tumblr media
0 notes
glitterypoetrytree · 1 month ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश���वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes
sumittra · 1 month ago
Text
Tumblr media
#GodMorningSaturday
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास। पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।
उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य
करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास
हैं।
0 notes