#अस्पताल में बैठकर इलाज का समय नहीं
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Jamshedpur mgm hospital - एमजीएम अस्पताल में मरीज घंटों करते रहे ओपीडी खुलने का इंतजार, कई ऑपरेशन टले, अधीक्षक के साथ बैठक में नहीं निकला कोई नतीजा
जमशेदपुर : जमशेदपुर के एमजीएम के ओपीडी में रोजाना 1 हजार से अधिक मरीज इलाज कराने पहुंचे हैं. मंगलवार को भी भारी संख्या में मरीज इलाज कराने पहुंचे थे लेकिन ओपीडी बंद होने के कारण उन्हें निराशा हाथ लगी. हालांकि, इस दौरान कई मरीज घंटों देर तक प्रशासनिक भवन में बैठकर ओपीडी खुलने का इंतजार किए लेकिन जब अंतिम समय तक ओपीडी नहीं खुला तो वे लौट गए. एमजीएम अस्पताल में बीते 5 दिनों का आंकड़ा देखा जाए तो…
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कोरोना (Corona) से जंग- अस्पताल में बैठकर इलाज का समय नहीं, वार-मोड में करना होगा काम
कोरोना (Corona) से जंग- अस्पताल में बैठकर इलाज का समय नहीं, वार-मोड में करना होगा काम
पिथौरागढ़ सहयोगी, 17 मई 2021 वर्तमान में चिकित्सालय में बैठकर ईलाज करने का समय नहीं है। अब चिकित्सक अपनी टीम के साथ गांवों में जाकर लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करें और बीमार अथवा कोविड (Corona) लक्षण वाले व्यक्तियों का मौके पर ही रैपिड टेस्ट कर कोरोना पॉजिटिव व्यक्तियों को होम आइसोलेट करते हुए दवा उपलब्ध कराएं। कोरोना संक्रमण की भयावहता को देखते हुए सभी को वार-मोड में कार्य करना होगा। जिलाधिकारी…
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🚩 श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बदलिदान के कारण कश्मीर बच पाया था - 06 जुलाई 2021
🚩डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को चढ़ाया गया था तथाकथित धर्मनिरेपक्षता की बलि, इन्हे मिली थी देशप्रेम की सज़ा और इनकी मृत्यु तक को बना दिया गया ऐसा रहस्य जिसे आज तक खोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो पायी है। जी हाँ चर्चा चल रही है नकली धर्मनिरपेक्षता की आंधी और हिन्दू विरो�� की सुनामी में अपने आप को स्वाहा कर के कश्मीर को बचा लेने वाले अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की.... आज भी जब जब और जहाँ जहाँ ये नारे गूँजते हैं की जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है तो उस महापुरुष की याद आ जाती है जिसे पहले जेल और बाद में मृत्यु इसलिए दे डाली गयी क्योकि उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए वहां कूच कर देने का एलान कर दिया।
🚩भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहाँ लिंकन्स इन से उन्होंने 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया। श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को शुशोभित करते रहे।
🚩अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान ‘कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ़ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलोर’ तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे। श्यामाप्रसाद अपनी माता पिता को प्रतिदिन नियमित पूजा-पाठ करते देखते तो वे भी धार्मिक संस्कारों को ग्रहण करने लगे। वे पिताजी के साथ बैठकर उनकी बातें सुनते। माँ से धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथाएँ सुनते-सुनते उन्हें अपने देश तथा संस्कृति की जानकारी होने लगी। वे माता-पिता की तरह प्रतिदिन माँ काली की मूर्ति के समक्ष बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते। परिवार में धार्मिक उत्सव व त्यौहार मनाया जाता तो उसमें पूरी रुचि के साथ भाग लेते। गंगा तट पर मंदिरों में होने वाले सत्संग समारोहों में वे भी भाग लेने जाते। आशुतोष मुखर्जी चाहते थे कि श्यामाप्रसाद को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाए। उन दिनों कलकत्ता में अंग्रेजी माध्यम के अनेक पब्लिक स्कूल थे।
🚩आशुतोष बाबू यह जानते थे कि इन स्कूलों में लार्ड मैकाले की योजनानुसार भारतीय बच्चों को भारतीयता क�� संस्कारों से काटकर उन्हें अंग्रेजों के संस्कार देने वाली शिक्षा दी जाती है। उन्होंने एक दिन मित्रों के साथ विचार-विमर्श कर निर्णय लिया कि बालकों तथा किशोरों को शिक्षा के साथ-साथ भारतीयता के संस्कार देने वाले विद्यालय की स्थापना कराई जानी चाहिए। उनके अनन्य भक्त विश्वेश्वर मित्र ने योजनानुसार ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। भवानीपुर में खोले गये इस शिक्षण संस्थान में बंग्ला तथा संस्कृत भाषा का भी अध्ययन कराया जाता था। श्यामा प्रसाद को किसी अंग्रेजी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलाने की बजाए ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ में प्रवेश दिलाया गया। आशुतोष बाबू की प्रेरणा से उनके अनेक मित्रों ने अपने पुत्रों को इस स्कूल में दाखिला दिलाया। वे स्वयं समय-समय पर स्कूल पहुँच कर वहाँ के शिक्षकों से पाठ्यक्रम के विषय में विचार-विमर्श किया करते थे।
🚩“श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे। जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया। उसके बाद उन्होंने जनसंघ की नींव डाली। आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी। इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है।” विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है।
🚩डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा।” समान नागरिक संहिता बनाने की बात करने वालों ने भी कभी पलट कर ये नहीं जानना चाहा की किस ने और क्यों मारा कश्मीर के रक्षक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को? उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो ��कता।
🚩मुखर्जी ने कहा कि मैं नही स��झता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।” उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था।
🚩1950 के आसपास ईस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं पर जानलेवा हमले शुरु हो गये। करीब 50 लाख हिन्दू ईस्ट पाकिस्तान को छोड़ भारत वापस आ गए। हिन्दुओं की यह हालत देखकर मुखर्जी चाहते थे कि देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए। वह कुछ कहते इससे पहले जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने समझौता कर लिया था। समझौते के मुताबिक दोनों देश के रिफ्यूजी बिना किसी परेशानी के अपने-अपने देश आ जा सकते थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरु जी की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत ही कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देते ही उन्होंने रिफ्यूजी की मदद के काम में खुद को झोंक दिया।
🚩आख़िरकार कश���मीर को अलग कर दिया गया। उसे अपना एक नया झंडा और नई सरकार दे दी गई। एक नया कानून भी जिसके तहत कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति वहां जाकर नहीं बस सकता। सब कुछ खत्म हो चुका था, लेकिन मुखर्जी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे’ के नारे के साथ वह कश्मीर के लिए निकल पड़े। नेहरु को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने हर हाल में मुखर्जी को रोकने का आदेश जारी कर दिया। उन्हें कश्मीर जाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में मुखर्जी के पास गुप्त तरीके से कश्मीर पहुंचने के सिवा कोई दूसरा विकल्प न था। वह कश्मीर पहुंचने में सफल भी रहे।
🚩मगर उन्हें पहले कदम पर ही पकड़ लिया गया। उन पर बिना इजाजत कश्मीर में घुसने का आरोप लगा। एक अपराधी की तरह उन्हें श्रीनगर की जेल में बंद कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उन्हें दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उनकी बीमारी की खबरें आने लगी। वह गंभीर रुप से बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां कई दिन तक उनका इलाज किया गया। माना जाता है कि इसी दौरान उन्हें ‘पेनिसिलिन’ नाम की एक दवा का डोज दिया गया। चूंकि इस दवा से मुखर्जी को एलर्जी थी, इसलिए यह उनके लिए हानिकारक साबित हुई।
🚩कहते हैं कि डॉक्टर इस बात को जानते थे कि यह दवा उनके लिए जानलेवा है। बावजूद इसके उन्हें यह डोज दिया गया। धीरे-धीरे उनकी तबियत और खराब होती गई। अंतत: 23 जून 1953 को उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर ली। मुखर्जी की मौत की खबर उनकी मां को पता चली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नेहरु से गुहार लगाई कि उनके बेटे की मौत की जांच कराई जाये। उनका मानना था कि उनके बेटे की हत्या हुई है। यह गंभीर मामला था, लेकिन नेहरू ने इसे अनदेखा कर दिया। हालाँकि, कश्मीर में उनके किये इस आन्दोलन का काफी फर्क पड़ा और बदलाव भी हुआ और कश्मीर अलग बनता बच गया।
🚩इस कड़ी में, नेहरु का रवैया लोगों के गले से नहीं उतरा। वह मुखर्जी की मौत के वाजिब कारण को जानना चाहते थे। लोगों ने आवाजें भी उठाई, लेकिन सरकार के सामने किसी की एक नहीं चली। नतीजा यह रहा कि उनकी मौत का रहस्य उनके साथ ही चला गया। इतने सालों बाद भी किसी के पास जवाब नहीं है कि उनकी मौत के पीछे की असल वजह क्या थी?
🚩कश्मीर की अखंडता के उस महान रक्षक अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की गाथा सदा-सदा के लिए अमर रहेगी।
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मुंबई के नानावटी अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में अमिताभ बच्चन का आज (मंगलवार को) 11वां दिन है। वहां उनका कोरोना का इलाज चल रहा है। इसके बाद भी वे सोशल मीडिया के जरिए फैंस से जुड़े हुए हैं। सोमवार रात उन्होंने फैन्स के नाम ब्लॉग पोस्ट लिखी। जिसमें उन्होंने कहा कि आप सब लोग लगातार अपनी प्रार्थनाएं और चिंताएं जता रहे हैं और मैं सिर्फ आपके हाथ जोड़ रहा हूं।
ब्लॉग की शुरुआत में महानायक ने रोज की तरह कुछ फैन्स को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा, मेरा प्यार और शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं। इसके बाद उन्होंने लिखा, 'यही अगले की शांति और अनिश्चितता है... यही जीवन की प्रकृति का आश्चर्य है... यही हमारे सामने प्रत्येक क्षण, और हमारे हर जीवित दिन हमारे सामने आता है...'
'बीत चुके सामान्य दिनों में कभी आकलन करने की आदत या बैठकर सोचा नहीं कि वो कौन से विचार हैं जो हमें परेशान करते हैं... लेकिन अब वे नियमितता के साथ ऐसा करते हैं, ताकि उस खाली वक्त का इस्तेमाल कर सकें। वे बैठते हैं, सोचते हैं और वहां देखते हैं जहां कभी नहीं देखा।'
'इन परिस्थितियों में विचार अधिक गति और स्पष्टता के साथ दौड़ते हैं, जो कि पहले हमें दुविधा डाल देते थे। वे हमेशा से वहीं थे, लेकिन बस उनकी मौजूदगी को मन के द्वारा ��ांत रखा जाता था क्योंकि उसके पास करने के लिए बहुत सी सक्रिय चीजें थीं... जो कि अब निष्क्रिय पड़ गई हैं। मन अब पहले से स्वतंत्र है... यह अब पहले से कहीं ज्यादा विचार कर रहा है... और मैं उत्सुक हूं कि अगर वो सही है, स्वीकार करने योग्य उचित है या नहीं।'
'एक भटकता मन अपनी जटिल अनिश्चितताओं की वजह से अक्सर हमें ऐसी मंजिलों की ओर ले जाता है जिसे कभी-कभी आप देखना या सुनना नहीं चाहते हैं... लेकिन फिर भी आप करते हैं... इस बात का संभावित परिणाम ये होता है कि जो भी चीजें हमारे आसपास हैं हम पर जोर से वार करती हैं... इसे अनदेखा करना अच्छा विचार नहीं माना जाएगा...'
'इसलिए आप इसके आगे झुक जाते हैं.. इसे सहन करते हैं... इसे जी जाते हैं... उस वक्त उससे प्यार करते हैं... दूसरों के साथ इससे खेलते हैं... इसे दूर रखना चाहते हैं, लेकिन इसे पकड़े रहो, इसे गले लगाओ और स्वीकार करो... पर कभी भी इसकी उपस्थिति को मिटाने में सक्षम नहीं होना चाहिए।'
'तब उस समय वहां विचारकों और दूरदर्शी लोगों की प्रशंसा है... लेखक, कवि, दार्शनिक, वैज्ञानिक जो अपनी उच्च बुद्धिमत्ता के साथ खुद के लिए और अक्सर मानवता की भलाई के लिए खेलते हैं। ये ऐसा खेल है जिसमें हम जैसे आम लोग हिस्सा नहीं लेते हैं... ये हमारे लिए अलौकिक है... लेकिन जो चीज उन्हें विचार प्रक्रिया में उकसाती है, वह प्रतिभा का रहस्य है...'
'वक्त आज मस्तिष्क के गुरुत्व को फैलाने की स्वतंत्रता देता है.... हमें इस काम में शामिल होने का अवसर शायद कभी नहीं मिले, लेकिन परिस्थिति को देखते हुए, मैं यह मानना चाहूंगा कि हम में से हर किसी में... हर व्यक्ति विशेष में वो इच्छाशक्ति है और वो सब बनने की क्षमता है, जिस पर वे विश्वास करते हैं...।'
'अस्पताल के कमरे में मन बहलाने की स्थिति में... बेचैनी लगातार प्रतिक्रियाएं खोजती रहती है... एक कनेक्ट के लिए... किसी चीज का उत्तर देने के लिए... उससे थोड़ा ज्यादा करने के लिए जिसका आदेश हालत देती है।'
'कई बार जब आप इसे पा लेते हैं... या जब आप खाली दीवारों पर यूं ही खाली विचारों के साथ घूरते हैं... और आप प्रार्थना करते हैं कि वे जीवन के अस्तित्व, प्रतिक्रिया और साथ से भरे हों...'
'मुझे पता है... आप सब लोग हर घंटे अपनी प्रार्थनाओं और चिंताओं को भेज रहे हैं... और मैं सिर्फ हाथ जोड़ रहा हूं... '
हेल्थ अपडेट
77 साल के अमिताभ और उनके 44 वर्षीय बेटे अभिषेक 11 जुलाई को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद अस्पताल में भर्ती हो गए थे। इसके 6 दिन बाद 17 जुलाई को बहू ऐश्वर्या (46) और पोती आराध्या (8) को भी तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल ले जाया गया था।
18 जुलाई केहेल्थ अपडेट के मुताबिक, चारों की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। बिग बी और अभिषेक को आज या कल में नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट किया जा सकता है।
यह भी कहा जा रहा है कि बच्चन परिवार के चारों सदस्यों को इसी हफ्ते अस्पताल से छुट्टी मिल सकती है। सभी का इलाज डॉ. बर्वे और डॉ. अंसारी की निगरानी में हो रहा है। ये दोनों डॉक्टर ही लंबे समय से बच्चन परिवार के मेडिकल कंसल्टेंट हैं।
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Amitabh Bachchan says All of you push your prayers and concern each hour I know .. and I have only folded hands ..
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Unique initiative: भारत में होगी नवजात शिशु की डिजिटल ट्रैकिंग, जानें क्या है ये एडवांस्ड टेक्नोलॉजी
नई दिल्ली। महिलाओं एवं बच्चों के लिए प्रमुख अस्पताल अपोलो क्रेडल ने बुधवार को ‘एडवांस्ड टेक्नोलॉजी नियोनेटल इन्टेन्सिव केयर युनिट (ईएनआईसीयू)’ को लॉन्च किया। ऐसा संभवत: भारत में पहली बार है कि नवजात की डिजिटल ट्रैकिंग के लिए इस तरह की अनूठी पहल की गई है। ईएनआईसीयू के माध्यम से अपोलो क्रेडल के विशेषज्ञ अस्पताल में या किसी भी स्थान पर बैठकर हर छोटी जानकारी पर नजर रख सकेंगे, जैसे दवाएं, पोषण, शिशु का फीडिंग पैटर्न तथा कैलोरी और ग्रोथ चार्ट आदि। इस एनआईसीयू की मदद से अपोलो क्रेडल के डॉक्टर छोटे नगरों के एनआईसीयू को भी सहयोग प्रदान कर सकेंगे। प्री-टर्म बेबी की रियल टाइम मॉनिटरिंग एवं डिजिटल रिकॉर्ड से नैदानिक परिणामों में सुधार आएगा और भारत में नवजात शिशुओं को विश्वस्तरीय इलाज मिल सकेगा।
ईएनआईसीयू के उद्घाटन समारोह के दौरान अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा, “अपोलो क्रेडल का ईएनआईसीयू उन नवजात शिशुओं की देखभाल की क्षमता रखता है जो ज्यादातर अन्य अस्पतालों में मुश्किल होता है। इसकी मदद से डॉक्टर और चिकित्सा अधिकारी एक सेंट्रल लोकेशन से हर बच्चे को मॉनिटर कर सकते हैं। इसमें क्लाउड बेस्ड सिस्टम के द��वारा डॉक्टर के वर्कफ्लो, नर्सिग वर्कफ्लो एवं रेजिडेंट डॉक्टरों के कार्यो का प्रबंधन किया जाता है।”
अपोलो हेल्थ एंड लाइफस्टाइल लिमिटेड के सीईओ डॉ. नीरज गर्ग ने कहा, “ईएनआईसीयू के माध्यम से प्री-टर्म बेबी को उसी गुणवत्ता की देखभाल मिल सकेगी, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में मिलती है। अपोलो क्रेडल ने भारतीय शिशुओं को उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इस टेक्नोलॉजी में निवेश किया है।”
अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल में नियोनेटोलोजी डिपार्टमेन्ट में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अवनीत कौर ने कहा, “ईएनआईसीयू से हमारी नियोनेटल सेवाओं में महत्वपूर्ण सुधार आएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी समय बड़ी आसानी से रिकॉर्ड निकाले जा सकते हैं, क्योंकि हर चीज को डिजिटल फॉर्मेट में रिकॉर्ड किया जाएगा। डिजिटलीकरण से दोहराने की त्रुटि होने की संभावना खत्म हो जाएगी, क्योंकि इसमें कई मैनुअल डेटा एंट्री करने की जरूरत नहीं होती। डॉक्टरों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है, क्योंकि नए सिस्टम के द्वारा विशेषज्ञों को शिशु के बारे में हर जानकारी आसानी से मिलेगी और वे शुरुआती अवस्था में ही इन्फेक्शन के लक्षणों को पहचान कर डॉक्टर को सूचित कर सकेंगे।”
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Unique initiative: भारत में होगी नवजात शिशु की डिजिटल ट्रैकिंग, जानें क्या है ये एडवांस्ड टेक्नोलॉजी
नई दिल्ली। महिलाओं एवं बच्चों के लिए प्रमुख अस्पताल अपोलो क्रेडल ने बुधवार को ‘एडवांस्ड टेक्नोलॉजी नियोनेटल इन्टेन्सिव केयर युनिट (ईएनआईसीयू)’ को लॉन्च किया। ऐसा संभवत: भारत में पहली बार है कि नवजात की डिजिटल ट्रैकिंग के लिए इस तरह की अनूठी पहल की गई है। ईएनआईसीयू के माध्यम से अपोलो क्रेडल के विशेषज्ञ अस्पताल में या किसी भी स्थान पर बैठकर हर छोटी जानकारी पर नजर रख सकेंगे, जैसे दवाएं, पोषण, शिशु का फीडिंग पैटर्न तथा कैलोरी और ग्रोथ चार्ट आदि। इस एनआईसीयू की मदद से अपोलो क्रेडल के डॉक्टर छोटे नगरों के एनआईसीयू को भी सहयोग प्रदान कर सकेंगे। प्री-टर्म बेबी की रियल टाइम मॉनिटरिंग एवं डिजिटल रिकॉर्ड से नैदानिक परिणामों में सुधार आएगा और भारत में नवजात शिशुओं को विश्वस्तरीय इलाज मिल सकेगा।
ईएनआईसीयू के उद्घाटन समारोह के दौरान अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा, “अपोलो क्रेडल का ईएनआईसीयू उन नवजात शिशुओं की देखभाल की क्षमता रखता है जो ज्यादातर अन्य अस्पतालों में मुश्किल होता है। इसकी मदद से डॉक्टर और चिकित्सा अधिकारी एक सेंट्रल लोकेशन से हर बच्चे को मॉनिटर कर सकते हैं। इसमें क्लाउड बेस्ड सिस्टम के द्वारा डॉक्टर के वर्कफ्लो, नर्सिग वर्कफ्लो एवं रेजिडेंट डॉक्टरों के कार्यो का प्रबंधन किया जाता है।”
अपोलो हेल्थ एंड लाइफस्टाइल लिमिटेड के सीईओ डॉ. नीरज गर्ग ने कहा, “ईएनआईसीयू के माध्यम से प्री-टर्म बेबी को उसी गुणवत्ता की देखभाल मिल सकेगी, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में मिलती है। अपोलो क्रेडल ने भारतीय शिशुओं को उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इस टेक्नोलॉजी में निवेश किया है।”
अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल में नियोनेटोलोजी डिपार्टमेन्ट में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अवनीत कौर ने कहा, “ईएनआईसीयू से हमारी नियोनेटल सेवाओं में महत्वपूर्ण सुधार आएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी समय बड़ी आसानी से रिकॉर्ड निकाले जा सकते हैं, क्योंकि हर चीज को डिजिटल फॉर्मेट में रिकॉर्ड किया जाएगा। डिजिटलीकरण से दोहराने की त्रुटि होने की संभावना खत्म हो जाएगी, क्योंकि इसमें कई मैनुअल डेटा एंट्री करने की जरूरत नहीं होती। डॉक्टरों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है, क्योंकि नए सिस्टम के द्वारा विशेषज्ञों को शिशु के बारे में हर जानकारी आसानी से मिलेगी और वे शुरुआती अवस्था में ही इन्फेक्शन के लक्षणों को पहचान कर डॉक्टर को सूचित कर सकेंगे।”
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समय पर नहीं आते डॉक्टर, उपचार को भटकते हैं मरीज
रायसेन. जिला अस्पताल में डॉक्टरों ने सारी हदें पार कर दी हैं। उनकी मनमानी व लापरवाही से आए दिन मरीजों, प्रसूताओं को भोपाल रेफर कर दिया जाता है। अब तक कई प्रसूतिओं की मौत इस वजह से हो चुकी है। एसएनसीयू में भी नवजातों को भी इलाज नहीं मिल रहा है। रात में बच्चों को रेफर कर दिया जाता है। बीते माह कई बच्चों की मौत हो चुकी है। जिले के पांच-पांच मंत्रियों के होने व केंद्र व प्रदेशों में भाजपा सरकारें होने के बावजूद अस्पताल की स्थिति बदहाल है। यह बात कांग्रेस जिला अध्यक्ष मुमताज खान ने बुधवार को युवा कांग्रेस द्वारा आयोजित अस्पताल बचाओ आंदोलन को संबोधित करते हुए कही।
जिला अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं को लेकर बुधवार को युवक कांग्रेस विधानसभा अध्यक्ष संदीप मालवीय के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर राज्यपाल के नाम डिप्टी कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। धरने को संबोधित करते हुए मुमताज खान ने कहा कि ओपीडी की ड््यूटी के समय डॉक्टर न��जी प्रैक्टिस करते हैं। वकील रेहान खान ने कहा अधिकांश डॉक्टर ड््यूटी समय में ही मेडिकल स्टोरों व बंगलों पर बैठकर मरीजों से मोटी फीस वसूल कर इलाज करते हैं।
संदीप मालवीय ने १० दिन का अल्टीमेटम जिला प्रशासन को देते हुए कहा यदि जिला अस्पताल में हमारी छह सूत्रीय मांगों का निराकरण नहीं किया तो पुन: चरणबद्ध आन्दोलन करने के लिए मजबूर होंगे। धरने में महामंत्री नारायण सिंह ठाकुर, जावेद अहमद खान, संदीप मालवीय, उपेंद्र गौतम, गुड्डा बघेल, दौलत सेन, भावेश खूबचंदानी, असलम खान, दुलारे भाई, पार्षद इमरान खान, विकास शर्मा, रूपेश तंतवार आदि शामिल थे।
गोंडवाना समाज ने मांगों को लेकर किया प्रदर्शन
सिलवानी. गोंडवाना समाज ने 28 सूत्रीय मांगों को लेकर नगर में एक जुलुस निकाला व राष्ट्रपति के नाम नायब तहसीलदासर को मांग पत्र सौंप कर मांगों के निराकरण की मांग की। जुलुस का जगह-जगह स्वागत किया गया। बड़ी संख्या में एकत्रित हुए महिला पुरुष बड़ादेव थाना से नारेबाजी करते हुए जुलुस के रूप में तहसील कार्यालय पहुंचे। जिसमे शामिल आदिवासी युवक डीजे पर बज रहे गीतों पर नृत्य करते हुए चल रहे थे। बड़ी संख्या में महिलाएं व बालिकाएं भी शामिल हुई। जुलुस में शामिल सामाजिक बंधुओं का नगर के समाजसेवी संजय मस्ताना के द्वारा पुष्पहारों से स्वागत किया गया।
सौंपा 28 सूत्रीय मांग पत्र जुलुस के रूप में तहसील कार्यालय पहुंचे समाज के लोगों ने राष्ट्रपति के नाम नायब तहसीलदार को 28 सूत्रीय मांग पत्र सौंप। जिसमें मांग की गई है कि गोंड समाज के आराध्य बड़ादेव थाना लालघाटी पर 5 एकड़ भूमि का पट्टा स्वीकृत किया जाए। गांधी आश्रम की खाली शासकीय भूमि पर रानी दुर्गावती भवन निर्माण के लिए 200 बाय 200 का भूखंड उपलब्ध कराया जाए। 5 वीं व 6 वीं अनुसूची को लागू किया जाए।
गोंडी संस्कृति की रक्षा के लिए जल, जंगल, जमीन पर साज, साल, महुआ के वृक्ष की पूजा की जाती है, इन पेड़ों के काटने पर रोक लगाई जाए।
आदिवासी की भूमि अधिग्रहित न की जाए। सिलवनाी क्षेेत्र में गोंडी स्कूल की स्थापना की जाए। उज्ज्वला योजना में हो रही अनियमितताओं की जांच कराई जाए। सिलवानी के बजरंग चौराहा पर रानी दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित की जाए। इसके अतिरिक्त अन्य मांगों का भी समावेश किया गया।
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