#अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई
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PM Modi Rajasthan Visit: सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई पर पीएम मोदी का तंज, 'यह कैसी सरकार है जहां...' - ABP न्यूज़
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गहलोत-पायलट की लड़ाई में क्या कह रही है कांग्रेस? जयराम रमेश ने बताया सुलह का 'फॉर्मूला'
गहलोत-पायलट की लड़ाई में क्या कह रही है कांग्रेस? जयराम रमेश ने बताया सुलह का ‘फॉर्मूला’
छवि स्रोत: पीटीआई कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश सनावद (मध्य प्रदेश): राजस्थान की सियासत में इस नशे का बवाल मच गया है। प्रदेश में अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का जंग अब अलग ही लेवल पर पहुंच गया है। गहलोत ने खुले आम सचिन पायलट को गद्दार कह दिया है और सीएम पद के लिए पायलट की प्राथमिकता का खुल्लमखुल्ला विरोध कर दिया है। गहलोत के कप्तानों पर सचिन पायलट भी पलटवार करते हुए…
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गहलोत 'आउट', कमलनाथ का नंबर और दिग्विजय का इशारा पायलट की फ्लाइट क्रैश... कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर बड़ा संकेत
गहलोत ‘आउट’, कमलनाथ का नंबर और दिग्विजय का इशारा पायलट की फ्लाइट क्रैश… कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर बड़ा संकेत
भोपाल: राजस्थान में सियासी संकट जारी है. कथित तौर पर कहा जा रहा है कि इस प्रकरण के ���ाद अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ से बाहर हो सकते हैं। वहीं सचिन पायलट के पास आलाकमान का मजबूत बैकअप है. गांधी परिवार की ओर से अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बने तो कौन बनेगा? इस बीच दो नामों की जबरदस्त चर्चा है। ये दोनों सांसद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के मजबूत नेता हैं। कमलनाथ को सोमवार को सोनिया गांधी ने…
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#अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई#अशोक गहलोत दौड़ से बाहर#इंदिरा गांधी युग में कमलनाथ सिंगल#कमलनाथ को कांग्रेस अध्यक्ष पद से नकारा#कमलनाथ जीत सकते हैं लॉटरी#कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव#कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दिग्विजय सिंह#नवीनतम भोपाल समाचार#भोपाल समाचार#भोपाल समाचार हिंदी में#भोपाल सुर्खियों#सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत#सोनिया गांधी ने दी एआइसीसी प्रमुख पद की पेशकश
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राजस्थान उपचुनाव के नतीजे गहलोत बनाम पायलट कैंप आरजेएसआर में 2021 की कांग्रेस की बड़ी जीत में बदल सकते हैं.
राजस्थान उपचुनाव के नतीजे गहलोत बनाम पायलट कैंप आरजेएसआर में 2021 की कांग्रेस की बड़ी जीत में बदल सकते हैं.
जयपुर राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड जीत दर्ज की है. वल्लभ नगर और धारियावर विधानसभा सीटों की जीत के बाद राजस्थान कांग्रेस में नए राजनीतिक समीकरण सामने आएंगे. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक डेढ़ साल से अधिक समय से चल रही अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट सियासी लड़ाई में गहलोत और मजबूत होंगे. वहीं पायलट कैंप की बयानबाजी और गतिविधियों को रोका जा सकता है. गहलोत के खिलाफ उनका खुला मोर्चा…
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केरल से कश्मीर तक... जिधर देखो बगावत से जूझ रही है कांग्रेस, देखें कहां किस-किस में भिड़ंत Divya Sandesh
#Divyasandesh
केरल से कश्मीर तक... जिधर देखो बगावत से जूझ रही है कांग्रेस, देखें कहां किस-किस में भिड़ंत
यह सब कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सदस्यों, पार्टी महासचिवों (AICC General Secretaries), सचिवों, प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC) प्रमुखों की ‘हमें चाहिए गांधी परिवार’ की बनावटी चित्कार की आड़ में हो रहा है। ध्यान रहे कि ये कार्यसमिति से लेकर पीसीसी तक के सदस्य और प्रमुख प्रभावी तौर पर ‘नामित’ हैं, चयनित नहीं। यही वजह है कि वो सभी सोनिया गांधी की कृपा से पद पर आसीन रहते हैं जबकि चुनाव होते तो जीतने वाले कार्यसमिति सदस्यों या संसदीय बोर्ड के सदस्यों को हटाने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष के पास नहीं होता। नेतृत्व के मोर्चे पर ‘आप नामित करें, हमें समर्थन देंगे’ की व्यवस्था के बावजूद विभिन्न प्रदेशों में कांग्रेस आंतरिक मारधाड़ से लहूलुहान है। कांग्रेस नेता पार्टी नेतृत्व से मायूस हो रहे हैं, इसलिए उनमें निराशा का भाव गहरा हो रहा है। वहीं, पार्टी नेतृत्व ‘पीढ़ीगत बदलाव’, ‘बुजुर्ग नेताओं’ को किनारे करने और ‘टीम राहुल-प्रियंका’ को मजबूत करने के लुभावने दावे कर रहा है। इन सबके बीच केरल से लेकर कश्मीर तक कांग्रेस पार्टी के अंदर विद्रोह की ज्वाला धधक रही है…कांग्रेस पार्टी दो वर्षों से नेतृत्व विहीन है। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी का पहिया खींच रही हैं। अभूतपूर्व चुनावी एवं संगठनात्मक उलटफेर के बीच पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी नेतृत्व में परिवारिक हितों की रक्षा कर रहे हैं।यह सब कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सदस्यों, पार्टी महासचिवों (AICC General Secretaries), सचिवों, प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC) प्रमुखों की ‘हमें चाहिए गांधी परिवार’ की बनावटी चित्कार की आड़ में हो रहा है। ध्यान रहे कि ये कार्यसमिति से लेकर पीसीसी तक के सदस्य और प्रमुख प्रभावी तौर पर ‘नामित’ हैं, चयनित नहीं। यही वजह है कि वो सभी सोनिया गांधी की कृपा से पद पर आसीन रहते हैं जबकि चुनाव होते तो जीतने वाले कार्यसमिति सदस्यों या संसदीय बोर्ड के सदस्यों को हटाने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष के पास नहीं होता। नेतृत्व के मोर्चे पर ‘आप नामित करें, हमें समर्थन देंगे’ की व्यवस्था के बावजूद विभिन्न प्रदेशों में कांग्रेस आंतरिक मारधाड़ से लहूलुहान है। कांग्रेस नेता पार्टी नेतृत्व से मायूस हो रहे हैं, इसलिए उनमें निराशा का भाव गहरा हो रहा है। वहीं, पार्टी नेतृत्व ‘पीढ़ीगत बदलाव’, ‘बुजुर्ग नेताओं’ को किनारे करने और ‘टीम राहुल-प्रियंका’ को मजबूत करने के लुभावने दावे कर रहा है। इन सबके बीच केरल से लेकर कश्मीर तक कांग्रेस पार्टी के अंदर विद्रोह की ज्वाला धधक रही है…केरलगांधी परिवार को ओमन चांडी और रमेश चेन्निताला की जुगलबंदी भा रही है। वहां केसी वेणुगोपाल की सलाह पर सामूहिक नेतृत्व की जगह एक से ज्यादा मोर्चों का प्रयोग आजमाया जा रहा है। दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के. सुधाकरण और विधानसभा में संसदीय दल के नेता वीडी सतीशन का जोड़ा है। ऐसे में केरल कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि नई धुरी पार्टी पर चांडी-चेन्निताला की पकड़ मजबूत करना चाहता है तो सुधाकरण-सतीशन की जोड़ी किसी भी सूरत में अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती है। कर्नाटकसिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार की लड़ाई ही प्रदेश कांग्रेस की सुर्खियां रहती हैं। बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया है, इस कारण प्रदेश कांग्रेस से उसका आसान निशाना ही छिन गया। अब उसके पास भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी औंधे मुंह गिर चुका है। ऐसे में पूरा फोकस सिद्धरमैया और शिवकुमार के बीच खुद को मुख्यमंत्री पद का हकदार साबित करने पर चला गया है। भवि��्य में यह गुटबाजी बढ़ने के भरपूर संकेत मिल रहे हैं।महाराष्ट्रटीम राहुल ने ‘वफादारों’ को नजरअंदाज करके बीजेपी से लौटे नाना पटोले को महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने महाविकास अघाड़ी गठबंधन में अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। तब गठबंधन के साथियों- शिवसेना और एनसीपी ने कांग्रेस को हिदायत दी कि वह पटोले को अनुशासन में रखे। नितिन राउत समेत कांग्रेस के अन्य मंत्रियों के साथ पटोले का मनमुटाव भी सार्वजनिक हो चुका है। मुंबई कांग्रेस में आंतरिक कलह को हवा संजय निरुपम और गुरुदास कामत के झगड़े से मिली थी। कामत की अब मृत्यु हो चुकी है। उसके बाद यूथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सूरज ठाकुर ने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति (MRCC) और भाई जगताप के साथ अनबन के कारण पद से इस्तीफा दे दिया। भाई जगताप राहुल गांधी की खोज हैं। मुंबई कांग्रेस में यह तब हो रहा है जब बीएमसी चुनाव माथे पर है।गोवादलबदल की राजनीति के प्रतीक इस राज्य में कांग्रेस के पास करीब आधे दर्जन पूर्व मुख्यमंत्री और पर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन टीम राहुल ने गिरीश चोडंकर, चंद्रकांत कावलकर और चेल्लाकुमार (अब उनकी जगह दिनेश गुंडुराव आ गए हैं) को क्रमशः पार्टी प्रमुख, विधानसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता और पार्टी प्रभारी बनाया। इससे वहां के वरिष्ठ कांग्रेसियों में बगावत हो गई और कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। हाल ही में, प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं ने गांधी से मिलकर गोवा के नेतृत्व में बदलाव की मांग की।गुजरातपिछले विधानसभा चुनाव में बढ़िया प्रदर्शन करने के बाद राहुल गांधी ने गुजरात में अपनी टीम बनाई। ऐसा करते वक्त उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व को पूरी तरह नजरअंदाज किया जिसमें अहमद पटेल के भी कई समर्थक शामिल थे। अमित चावड़ा, परेश धानी और हार्दिक पटेल को क्रमशः प्रदेश कांग्रेस प्रमुख, विधानसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष का पोस्ट दिया। वहीं, अशोक गहलोत की जगह राजीव सातव को गुजरात का प्रभारी बनाया गया। उसके बाद लोकसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वहां पार्टी की हार का सिलसिला आगे बढ़ा और स्थानीय निकायों के चुनावों में भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। अब पार्टी में आंतरिक कलह जोरों पर है। वहां पार्टी के कई नेता एक-दूसरे को दुश्मन की नजर से देखते हैं। राजस्थानमुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ‘हम बड़े, हम बड़े’ की लड़ाई परंपरागत तरीके से आगे बढ़ रही है। प्रदेश प्रभारी अजय माकन जुलाई में जयपुर गए और हरेक व��धायक से अकेले में मुलाकात की। उन्होंने पार्टी को दिल्ली नेतृत्व का संदेश दिया कि राजस्थान कैबिनेट में बदलाव किया जाए। मीटिंग में कई प्रमुख विधायकों और नेताओं ने माकन को चेताया कि दिल्ली नेतृत्व ‘गद्दारों’ की पीठ पर हाथ रखकर उन वफादारों को चिढ़ाना छोड़ दे जिन्होंने उस वक्त गहलोत की सरकार बचाई जब बीजेपी ने घात लगाने की कोशिश की थी।पंजाबपंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच का झगड़ा इस बात का प्रतीक है कि गांधी परिवार किस तरह संकट पैदा करने में माहिर हो चुका है। वहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें कैप्टन की अगुवाई में कांग्रेस की आसान जीत की भविष्यवाणी हो रही थी। प्रदेश कांग्रेस में इस बात की चर्चा है कि कैप्टन को विरासत में कई संकट मिले, लेकिन उन्होंने गांधी परिवार के नाक में दम कभी नहीं किया लेकिन सिद्धू और उनके सलाहकारों ने सीमा लांघ दी।हरियाणाविधानसभा में कांग्रेस ससंदीय दल के नेता और पूर्व मुख्यंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा बनाम प्रदेश कांग्रेस प्रमुख कुमारी शैलजा की लड़ाई के बीच हाल ही में हुड्डा के समर्थक कांग्रेस हेडक्वॉर्टर पहुंच गए। वहां उन्होंने कांग्रेस के संगठन महासचिव और प्रदेश प्रभारी से प्रदेश संगठन की शिकायत की। उन्होंने अपनी शिकायत में जो तथ्य सामने रखे, उससे लगता है कि हुड्डा कैंप को गांधी और वाड्रा परिवार का समर्थन हासिल है। कहा जा रहा है कि हुड्डा अपने बेटे को शैलजा की जगह प्रदेश कांग्रेस प्रमुख का पद दिलाना चाहते हैं जबकि शैलजा पुरानी वफादार हैं और उनके समर्थक एवं दलित मतदाताओं की मजबूत जमीन कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण है।उत्तर प्रदेश और बिहारराहुल-प्रियंका के नेतृत्व में लड़े गए पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद यूपी कांग्रेस गहमागहमी बढ़ी। कई बुजुर्ग नेताओं को किनारे लगा दिया गया और जितिन प्रसाद ने तो पार्टी ही छोड़ दी। वहीं, बिहार में पार्टी को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वो किसी दलित को प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपे या फिर सवर्ण को। ऐसे में कई कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री नीतीश कुमारे के पार्टी (जेडीयू) मजबूत करो अभियान के शिकार हो सकते हैं। छत्तीसगढ़राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने का वादा किया था जो अब उनकी गले ही हड्डी बन रहा है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव वादा पूरा नहीं होने से खफा हैं जबकि भूपेश बघेल अपने प्रतिस्पर्धी टीएस सिंह देव के प्रभाव वाले दलित बहुल इलाकों के नेताओं को भड़काने में जुटे हैं। दिल्ली नेतृत्व ने देव को और बड़ा मंत्रालय देने का ऑफर दिया, लेकिन बघेल की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बनाना संभव नहीं दिख रहा है। कारण बड़े सपोर्ट बेस वाले बघेल का विधायकों के बीच भी अच्छी पकड़ का होना है। झारखंडप्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी कलह बढ़ने के बीच प्राटी ने वहां नया अध्यक्ष बना दिया। प्रदेश में इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि कुछ विधायक बीजेपी के फेंके पासे में फंसते दिख रहे हैं। नए प्रदेश नेतृत्व ने पार्टी को संभालने में सफलता नहीं पाई तो जेएमएम के साथ गठबंधन वाली उसकी सरकार भी संकट में आ सकती है।असम और पूर्वोत्तर राज्यअसम विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई चरम पर पहुंच गई। यहां तक कि राहुल गांधी की वफादार सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया। असम के कुछ कांग्रेसी विधायकों और नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी। बीजेपी और उसके गठबंधन साथियों के शासित कई पूर्वोत्तर राज्य आंतिरक संकट से जूझ रहे हैं, फिर भी कांग्रेस मौके का फायदा नहीं उठा पा रही है।जम्मू-कश्मीरकांग्रेस पार्टी ने गुलाम नबी आजाद से किनारा करके जम्मू-कश्मीर में पार्टी ���े समीकरण को नया मोड़ दे दिया है। राहुल ने वहां आजाद के आलोचक गुलाम मोहम्मद मीर को प्रदेश प्रमुख का ओहदा दे दिया है। बदले में आजाद पिछली दो बार से अपने प्रदेश दौरे पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी उनके पास पार्टी में प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचाने की पूरी क्षमता है।खुर्शीद की कांग्रेसियों को सलाहकांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि पार्टी नेताओं को पहले आरएसएस और बीजेपी से लड़ना चाहिए और फिर अपने मतभेदों को दूर करना चाहिए। उन्होंने यह टिप्पणी कांग्रेस के कुछ नेताओं की ओर से संगठन में व्यापक बदलाव की मांग से जुड़े विवाद को लेकर की है। खुर्शीद ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विधि विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘जब समय आएगा तो हम बता देंगे हमारा अध्यक्ष कौन हैं। फिलहाल सोनिया जी हमारी अध्यक्ष हैं और अगर कोई कोई बदलाव होगा तो आपको बताया जाएगा।’ खुर्शीद ने कहा, ‘अगर हम आपस में ही लड़ते रहेंगे तो फिर आरएसएस और भाजपा से कैसे लड़ेंगे। पहले आरएसएस और भाजपा से लड़िये और फिर अपने मतभेदों को को दूर करिये।’
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एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे गहलोत और पायलट समर्थक डेढ़ महीने दिन तक चले सियासी संग्राम के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ऊपरी तौर पर विवाद थम गया, लेकिन अंदर दोनों खेमों के बीच मतभेद की चिंगारियां रह रहकर उठ रही हैं। बाड़ाबंदी के दौरान जहां पहले एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का दौर चल रहा था,वहीं अब निर्वाचन क्षेत्रों में भी विरोध किया जाने लगा है। सियासी मतभेद की इस लड़ाई का एक नजारा भरतपुर जिले में देखने को मिला। गहलोत खेमे के एक विधायक के पहुंचने पर पायलट समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की।दरसअल, बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए गहलोत खेमे के के विधायक जोगिन्द्र सिंह अवाना अपने निर्वाचन क्षेत्र नदबई पहुंचे थे। वहां पहुंचने पर पायलट समर्थकों ने अवाना के सामने पायलट के समर्थन में जमकर नारेबाजी कर हूटिंग की हैं। हालात ये हो गये कि अवाना जिस तरफ भी गए पायलट समर्थक उनके पीछे चलते गए और नारेबाजी करते गये। इससे अवाना खुद को असहज महसूस करने लगे, लेकिन पायलट समर्थकों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। पायलट समर्थकों में अधिकांश गुर्जर समाज के लोग बताए जाते हैं, अवाना खुद गुर्जर है। हंगामा बढ़ता देख आखिकार अवाना गाड़ी में बैठकर जयपुर रवाना हो गए।
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मालूम नहीं प्रदेश में कब शुरू हो जाये पायलट - गहलोत ड्रामा : मायावती
नई दिल्ली : राजस्थान में चली आ रही सियासी घमासान थमने के साथ विपक्षी पार्टियों को बहुत बड़ा झटका लगा है | बता दें कि इसी बीच बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने मंगलवार को कहा कि राजस्थान के राज्यपाल को राज्य में ‘‘गंभीर राजनीतिक स्थिति’’का संज्ञान लेना चाहिए ताकि लोगों को राजनीतिक अनिश्चितता से छुटकारा मिल सके। उन्होंने कहा कि राजस्थान में भले ही कांग्रेस सरकार हाल में विधायकों की बगावत से बच गई लेकिन कोई नहीं जानता कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और ��नके पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच फिर कब से ‘‘ड्रामा’’ शुरू हो जाए।
ये भी पढ़ें : सरकार के दिशा निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर अस्पताल में नहीं रूक रहे अधीक्षक
आपको बता दें कि करीब महीने भर चले सियासी घमासान के बीच पायलट की हुई घर वापसी को लेकर मायावती ने एक बयान में कहा कि गहलोत और पायलट के बीच लंबी सियासी रस्साकशी के बीच कोरोना वायरस के खिलाफ राज्य की लड़ाई और जनता के अन्य महत्वपूर्ण काम प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की स्थिति में लोगों की विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल को गंभीर राजनीतिक स्थिति का संज्ञान लेते हुए अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करना चाहिए — यह हमारा आग्रह है।
पीएम मोदी की सौगात, लॉन्च किया ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ मंच
मायावती ने मीडिया में आयी खबरों का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि भाजपा जरूरत पड़ने पर उसकी सरकार भगवान परशुराम की बड़ी प्रतिमा लगवाएगी। उन्होंने कहा कि बसपा इसका विरोध नहीं करेगी बल्कि स्वागत करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा को यह कदम उठाने में विलंब नहीं करना चाहिए और उनकी जयंती को सरकारी छुट्टी घोषित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा ने ये दोनों काम नहीं किए तो सत्ता में आते ही बसपा उन्हें करेगी।तो इसी के साथ यह सब्जित हो गया कि मायावती भी प्रदेश में ब्राह्मण वोट की सियासी जंग में मैदान पर आ गयी है जिसमे वो परशुराम की मूर्ती लगाने को तैयार है |
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अशोक गहलोत ने कांग्रेस के विधायकों को फिर से शिफ्ट किया हो सकता है कॉलेज हॉर्स ट्रेडिंग दरें राजस्थान में हैं - सीएम गहलोत अब विधानसभा सत्र की मंजूरी के बाद अपने विधायकों को दूसरे शहर में स्थानांतरित कर सकते हैं
अशोक गहलोत ने कांग्रेस के विधायकों को फिर से शिफ्ट किया हो सकता है कॉलेज हॉर्स ट्रेडिंग दरें राजस्थान में हैं – सीएम गहलोत अब विधानसभा सत्र की मंजूरी के बाद अपने विधायकों को दूसरे शहर में स्थानांतरित कर सकते हैं
राजस्थान में राजनीतिक लड़ाई जारी है। (फाइल फोटो)
विशेष चीज़ें
आज कांग्रेस के विधायकों को शिफ्ट किया जा सकता है
विधानसभा का सत्र 14 अगस्त से शुरू होगा
राज्यपाल ने गहलोत के चौथे प्रस्ताव को मंजूरी दी
जयपुर:
राजस्थान Rajasthanराजस्थान में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) द्वारा भेजे गए नोटिस के बाद इस राजनीतिक लड़ाई में जाँच और जाँच का खेल शुरू हुआ। सत्ता…
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CM गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ खोला मोर्चा, कहा- खरीद-फरोख्त का कर रहे थे काम
चैतन्य भारत न्यूज राजस्थान की सियासत में पिछले 3 दिन से चल रही उठापटक के बाद बुधवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने तल्ख तेवर दिखाते हुए बगावत करने वाले पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट पर जमकर हमला बोला। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया है। सीएम गहलोत ने कहा कि, 'हमारे डिप्टी सीएम सचिन पायलट खुद राजस्थान सरकार गिराने की डील कर रहे थे। हमारे विधायकों को पैसे के लालच दिए जा रहे हैं। मेरे पास सबूत है।' गहलोत ने कहा कि, 'राजनीति में लड़ाई विचारधारा की लड़ाई होती है। लेकिन विपक्ष के साथ मिलकर हॉर्स ट्रेडिंग की जा रही थी। रात को 2 बजे लोगों को रवाना किया जा रहा था। हमारे पीसीसी चीफ खुद ही डील कर रहे थे। गहलोत ने कहा कि सोने की छुरी पेट में खाने के लिए नहीं होती।' सचिन पायलट पर हमला बोलते हुए अशोक गहलोत ने कहा कि, 'पहले भी हमें अपने विधायकों को 10 दिन तक होटल में रखना पड़ा। अगर उस वक्त हम नहीं रखते तो आज जो मानेसर वाला खेल हुआ है, ��ो उस समय होने वाला था। रात के दो बजे लोगों को भेजा रहा था। खुद षड्यंत्र में शामिल नेता सफाई दे रहे थे। दिल्ली में बैठे लोगों ने सरकार गिराने की साजिश रची। लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश हो रही है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह साजिश हो रही है।' सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि, 'आज सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी का दुरुपयोग किया जा रहा है। हम तो तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। 40 साल की राजनीति हो गई। हम तो नई पीढ़ी को तैयार करते हैं। आने वाला कल उनका है। हमारी बहुत रगड़ाई हुई थी। 40 सालों तक जिन्होंने संघर्ष किया, वो आज मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और पार्टी के शीर्ष पर हैं। लोग कहते हैं हम नई पीढ़ी को पसंद नहीं करते हैं। राहुल गांधी, सोनिया गांधी और खुद अशोक गहलोत उन्हें पसंद करता है। गवाह है कि जब भी मीटिंग होती है तो मैं युवाओं और एनएसयूआई के लिए लड़ाई लड़ता हूं। इनकी रगड़ाई नहीं हुई थी, इसलिए यह समझ नहीं पा रहे हैं।' सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि अच्छा हिंदी-इंग्लिश बोलना, अच्छा बयान देना ही सबकुछ नहीं होता है, आपके दिल में क्या है देश के लिए, आपका कमिटमेंट क्या है। पार्टी की नीति, विचारधारा के प्रति आपके कमिटमेंट को देखा जाता है। सोने की छुरी प्लेट में खाने के लिए नहीं होती है। Read the full article
#sachinpilot#sachinpilotbjp#sachinpilotcongress#sachinpilotinterview#sachinpilotnews#सचिनपायलट#सचिनपायलटअशोकगहलोत
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राजस्थान संकट: पायलट सिंधिया जैसे दिखते हैं, लेकिन सिंधिया हैं नहीं
राजस्थान संकट: पायलट सिंधिया जैसे दिखते हैं, लेकिन सिंधिया हैं नहीं
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राजस्थान की सियासत में जो घटनाक्रम चल रहे हैं, उनसे सबसे पहली बात नजर में यही आती है कि यहां जो हो रहा है वह मध्य प्रदेश में तीन महीने पहले हुए घटनाक्रम का रिपीट टैलिकास्ट है. ऊपरी तौर से ऐसा लगना गलत भी नहीं है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) में कुसी की लड़ाई थी. यहां अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट(Sachin Pilot) में है. ��मलनाथ…
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पायलट गुट का दावा - 13 निर्दलीय MLAs भी संपर्क में, VIDEO में नजर आए ये विधायक
पायलट गुट का दावा – 13 निर्दलीय MLAs भी संपर्क में, VIDEO में नजर आए ये विधायक
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नई दिल्ली: जयपुर की सत्ता की बिसात बिछ चुकी है. दांव चले जा चुके हैं. राजस्थान कांग्रेस में दो गुट साफ बन चुके हैं. ऐसा लग रहा है कि अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच आरपार की लड़ाई शुरू हो गई है. कांग्रेस ने आज फिर विधायक दल की बैठक बुलाई है. सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट बैठक में नहीं जाएंगे. सचिन पायलट ने गहलोत को विधानसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती दी…
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यह कोई पुरानी बात नहीं है जब कांग्रेस पार्टी के युवा और ऊर्जावान नेताओं से लोकसभा भरा हुआ रहता था। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, संदीप दिक्षित और राहल जैसे लोग शामिल थे। यह... from Live Hindustan Rss feedhttps://https://ift.tt/32bxx21
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गहलोत पायलट की 'युद्ध' का विधायक ने उठाया फायदा, परिवारों को मिला टिकट - News18Hindi
गहलोत पायलट की ‘युद्ध’ का विधायक ने उठाया फायदा, परिवारों को मिला टिकट – News18Hindi
जयपुर. राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की लड़ाई से कांग्रेस आलाकमान भले ही खफा है, लेकिन पंचायत चुनाव में कांग्रेस और समर्थित विधायक इस दुविधा का सामना कर रहे हैं. छह जिलों में पंचायत चुनाव के लिए लाभ नामांकन पत्र दाखिल किए गए हैं। कांग्रेस में एक मंत्री समेत सात विधायकों ने अपने परिवारों को टिकट दिया. अब विधानसभा के सदस्य अपने परिवार को जिले का मुखिया…
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विशुद्ध राजनीतिः क्या LJP में बंटवारा नीतीश कुमार ने करवाया? Divya Sandesh
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विशुद्ध राजनीतिः क्या LJP में बंटवारा नीतीश कुमार ने करवाया?
क्या करेंगे चिराग में बंटवारे के बाद का जो घटनाक्रम रहा है, उसमें के अलग-थलग पड़ जाने की बात हो रही है। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि यह बंटवारा ने करवाया क्योंकि चिराग के साथ उनके रिश्ते कभी सहज नहीं रहे। रामविलास पासवान के जीवनकाल में भी नीतीश ने कभी चिराग को तवज्जो नहीं दी, यहां तक कि पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने के बाद भी नहीं। स्वाभाविक ही चिराग के मन में भी नीतीश के प्रति नाराजगी बढ़ती रही। विधानसभा चुनाव में चिराग का नीतीश कुमार को लेकर जो रुख रहा है, उसके बाद तो यह तय ही हो गया था कि चिराग के लिए आने वाले दिन कठिनाई भरे हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने चिराग को और कमजोर कर दिया और उसके बाद का जो घटनाक्रम रहा, वह बताने की जरूरत नहीं। अब आरजेडी की कोशिश चिराग को अपने साथ लेने की है, लेकिन विधानसभा के चुनाव में अभी काफी वक्त है। ऐसे में राज्य स्तर के गठबंधन में चिराग अभी अपनी कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, उनकी कोशिश केंद्रीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की है। उनकी कोशिश एनडीए में अपनी वापसी को लेकर है। चर्चा है कि वह बीजेपी को संदेश भिजवा चुके हैं कि राज्य में उनका जेडीयू से भले ही दुराव हो, लेकिन बीजेपी से कोई मतभेद नहीं है। इसी के जरिए वह पिता के स्थान पर केंद्रीय कैबिनेट में वापसी भी चाहते हैं। एनडीए में अगर उनकी वापसी होती है तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी क्योंकि बीजेपी के अंदर नीतीश कुमार की पसंद-नापसंद को बहुत ज्यादा तवज्जो न दिए जाने की बात हो रही है।
क्यों शुरू हुई लड़ाई?
कर्नाटक में अभी विधानसभा चुनाव में दो साल बाकी हैं। वहां बीजेपी के अंदर तो काफी पहले ��े मुख्यमंत्री बदलने को लेकर खींचतान चल ही रही है, मजे की बात यह है कि कांग्रेस में भी अगले चुनाव के लिए सीएम का चेहरा तय करने की मांग पर झगड़ा शुरू हो गया है। सीएम रह चुके सिद्धाररमैया चाहते हैं कि आलाकमान उनके नाम पर मुहर लगाए। 2018 का चुनाव पार्टी ने उन्हीं के चेहरे पर लड़ा था, वह उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री भी थे, लेकिन उनके नाम का विरोध डीके शिवकुमार गुट कर रहा है। शिवकुमार इस वक्त कर्नाटक राज्य इकाई के अध्यक्ष हैं। उनके लोग यह तर्क दे रहे हैं कि जो प्रदेश अध्यक्ष होता है, उसी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की परंपरा है। इस लिहाज से शिवकुमार को ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। उधर, एक पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं- जी परमेश्वर। वह पार्टी का दलित चेहरा होने के नाते सीएम पद के लिए अपना दावा पेश कर चुके हैं। इन तीन बड़े नामों के अलावा तीन अन्य नाम भी हैं, जो सीएम पद की रेस में शामिल होना चाहते हैं। लेकिन सवाल तो यह है कि जब चुनाव के दो साल बाकी हैं तो झगड़ा अभी से क्यों शुरू हो गया। इस सवाल पर प्रदेश कांग्रेस के एक नेता की यह टिप्पणी काफी दिलचस्प रही, ‘दरअसल हमारे यहां देर से सुना जाता है, इसलिए यह लड़ाई अभी से शुरू हो गई ताकि चुनाव आते-आते कोई फैसला हो सके।’
चार अनार, 12 बीमार
पुरानी कहावत है- एक अनार, सौ बीमार। मध्य प्रदेश की राजनीति के नजरिये से इसे बदल कर कहा जा सकता है- चार अनार, 12 बीमार। वजह यह है कि इस वक्त राज्य में चार मंत्री पद खाली हैं, लेकिन उन्हें भरा इसलिए नहीं जा पा रहा है कि उसके दावेदार एक दर्जन विधायक हैं। शिवराज चौहान चाह कर भी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे। अगर बात सिर्फ बीजेपी की होती तो भी वह मंत्रिमंडल विस्तार का जोखिम ले सकते थे क्योंकि नाराजगी घर के अं���र की बात होती। जो नाराजगी दिखाता उससे सीधे-सीधे आलाकमान निपट लेता, लेकिन मध्य प्रदेश बीजेपी की पॉलिटिक्स में ज्योतिरादित्य सिंधिया फैक्टर बहुत अहम बना हुआ है। राज्य में पार्टी और सरकार कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेना चाहती, जिससे सिंधिया की नाराजगी का खतरा बढ़ जाए। सिंधिया तकनीकी रूप से तो बीजेपी का हिस्सा हो ही चुके हैं, उन्हें ‘वीटो पावर’ भी मिली हुई है। साथ ही शिवराज चौहान के खिलाफ पार्टी के अंदर होने वाली गोलबंदी में भी वह मुख्यमंत्री के लिए कवच का काम करते हैं। ऐसे में चौहान भी सिंधिया को अतिरिक्त तवज्जो देते हैं। कैबिनेट में जो चार पद खाली हैं, उन पर मूल बीजेपी के विधायकों की नजर तो है ही, साथ ही सिंधिया समर्थक विधायक भी अपनी दावेदारी बनाए हुए हैं। चौहान के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि दर्जन भर दावेदारों में से चार कैसे चुनें। इस वजह से वह जितना टाल पा रहे हैं, टाल रहे हैं लेकिन खाली मंत्रिपद देखकर विधायकों को कहां चैन आने वाला। उनका सीएम पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है। देखने वाली बात होगी कि चौहान कैसे इस दबाव से बाहर आते हैं और वे चार लोग कौन होते हैं, जिन्हें मंत्री पद से नवाजा जा सकता है।
विंसेंट की वापसी से सुकून
दिल्ली में कांग्रेस का जो सबसे ताकतवर दरबार कहा जाता है, उसमें की वापसी की चर्चा है। विंसेंट एक वक्त गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाते थे, लेकिन पनडुब्बी घोटाले में नाम आने के बाद से गांधी परिवार ने उनसे दूरी बना ली थी। हालांकि, बीते दिनों पंजाब संकट के दौरान उन्हें मध्यस्थता करते देखा गया। कैप्टन और सिद्धू के बीच चल रहे ‘युद्ध’ में फिलहाल जो विराम दिख रहा है, वह जॉर्ज के ही प्रयासों का नतीजा माना जा रहा है। पंजाब के साथ-साथ उन्हें राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच भी सुलह कराने का टास्क सौंपा गया है क्योंकि तमाम प्रयासों के बावजूद गहलोत और पायलट के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बन पा रही है। अभी तक जितने भी लोगों को यह जिम्मा दिया गया है, उन्हें नाकामी ही हाथ लगी है। जॉर्ज इस टास्क में कितना कामयाब होते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन उनकी दिल्ली दरबार में वापसी से सबसे ज्यादा सुकून जिन्हें महसूस हो रहा होगा, वह कमलनाथ हो सकते हैं। दरअसल, इधर एक सीनियर और गांधी परिवार के भरोसेमंद शख्स की दिल्ली दरबार में मांग बढ़ गई थी। इसके लिए कमलनाथ ही सबसे उपयुक्त माने जा रहे थे, लेकिन वह किसी भी कीमत पर मध्य प्रदेश छोड़ने को तैयार नहीं थे। उन्हें लगता है कि मध्य प्रदेश छोड़ने का मतलब होगा मुख्यमंत्री पद का दावा छोड़ना। सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद भी कमलनाथ अपने लिए मध्य प्रदेश में मुश्किल कम होते नहीं देख रहे। उन्हें अपने बेटे को भी राज्य की राजनीति में स्थापित करना है।
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राजस्थान में नो रिटर्न का एंट्री पॉइंट, क्या सचिन पायलट का 'सिंधिया मोमेंट' डल अशोक गहलोत का जादू चलेगा?
राजस्थान में नो रिटर्न का एंट्री पॉइंट, क्या सचिन पायलट का 'सिंधिया मोमेंट' डल अशोक गहलोत का जादू चलेगा?
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके डिप्टी सचिन पायलट की फाइल फोटो। (PTI)
अगर इस ��ार पायलट ने गहलोत के खिलाफ मजबूत लड़ाई नहीं लड़ी, तो वह अपने समर्थकों को खोने का जोखिम उठाते हैं, जो उन्हें एक कमजोर नेता के रूप में देख सकते हैं, जो ताकतवर गहलोत को लेने की हिम्मत नहीं रखते। तुलना सिंधिया से की जाएगी जिन्होंने कमलनाथ की ताकत को लिया।
सीएनएन-News18
आखरी अपडेट:13 जुलाई, 2020, 12:28 PM…
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गहलोत का सियासी संकट टला,पायलट की घर वापसी
नई दिल्ली : राजस्थान में पिछले महीने से चल रहे सियासी घमासान के बीच अशोक सरकार पर मंडरा रहा खतरा लगभग ताल सा गया है बता दें कि पार्टी में खींचतान के चलते पार्टी से अलग हुए पायलट की घर वापसी हुई है |
सीएम अशोक गहलोत की तरफ से पायलट खेमे को भरोसा दिलाया गया है कि उनके खिलाफ कोई जांच नहीं होगी। जबकि कांग्रेस नेता सोनिया राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी की तरफ से सचिन को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद दिए जाने का भरोसा दिलाया गया है।
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बताया जा रहा है कि सचिन पायलट ने दिल्ली कांग्रेस आलाकमान से बात करते हुए अपनी कुछ शर्ते भी रखी थी। जिस पर उन्हें आश्वासन दिया गया है। जिसके बाद सचिन पायलट कांग्रेस में लौटने को राजी हुए। सचिन की वापसी के पीछे प्रियंका गांधी का बड़ा रोल बताया जा रहा है।
पहले दिन से मनाने की कोशिश में जुटी थी प्रियंका…
ऐसी खबरें आ रही है कि प्रियंका पहले दिन से ही सचिन पायलट से सम्पर्क बनाये हुई थी। वो नहीं चाहती थी कि सचिन कांग्रेस पार्टी छोड़कर जाये। उन्हें इस बात का डर था कि कही इसका ठीकरा भी उनके भाई राहुल गांधी के माथे पर न फोड़ा जाये।
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दूसरी वजह ये भी बताई जा रही है कि राहुल को इस बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर प्रोजेक्ट करने की तैयारी है ऐसे में अगर सचिन पायलट कांग्रेस छोड़कर चलें जाते तो इसका असर राहुल की दावेदारी पर भी पड़ता।
उनका कांग्रेस अध्यक्ष बन पाना शायद संभव नहीं हो पाता। ऐसी तमाम बातें थी जिसे ध्यान में रखते हुए सचिन को मनाने की कवायद जारी रही और आखिरकार सोमवार को इस मामले में राहुल और प्रियंका को कामयाबी मिल गई।
कांग्रेस की ओर से एक कमेटी का गठन किया गया है, जो कि सचिन पायलट की सभी समस्याओं का समाधान करेगी। इन वादों के साथ ही सचिन पायलट मान गए हैं और जल्द ही वो कांग्रेस में किसी बड़े पद पर दिखाई दे सकते हैं।
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ऐसे बनी बात?
मालूम हो कि राजस्थान में अशोक गहलोत अभी सीएम बने रहेंगे, लेकिन सचिन पायलट के करीबियों को मंत्रिमंडल में बड़ा पद ओहदा दिया जा सकता है। इसके अलावा पार्टी की ओर से सचिन पायलट को सीएम पद का आश्वासन मिला है।
राहुल-प्रियंका से मुलाकात के बाद सचिन पायलट ने मीडिया से बात की, उन्होंने कहा कि पार्टी पद देती है तो ले भी सकती है। हम आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रहे थे।
इस बीच अब इस बात पर मंथन होगा कि सचिन पायलट की सम्मानजनक वापसी कैसे हो, पार्टी की ओर से उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में कोई पद दिया जा सकता है।
अब विधानसभा सत्र पर निगाहें….
गौरतलब है कि 14 अगस्त को विधानसभा का सत्र शुरू होना है, पायलट गुट के कुछ विधायक जयपुर लौट आए हैं और कुछ जल्द लौटेंगे। भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का सपना देख रही थी, वो फिर टूट गया है। आज बीजेपी की बैठक भी होनी है, ऐसे में उसमें भी कुछ असर दिख सकता है। हालांकि, वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों ने पहले ही अपने अलग तेवर दिखा दिए हैं।
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