#अब वे हैं कि...
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srbachchan · 3 months ago
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DAY 6046
Jalsa, Mumbai Sept 6, 2024/Sept 7 Fri/Sat 3:06 am
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गणेश चतुर्थी की अनेक अनेक शुभकामनाएँ 🚩
ये जो Ef Jay Chauhan हैं , ये लगता है कि या तो बहुत ही popular और एक बहुत ही प्रख्यात EF हैं, या फिर उनकी पहुँच बहुत बड़ी है !!!
कम से कम १३६ 136 Ef ने, मुझे मेसेज भेजा कि आज उनका जन्म दिवस है, और मैं उन्हें, यहाँ ब्लॉग पे बधाई दूँ ।।।
और ये प्रथा, बहुत दिनों से मैं देख रहा हूँ, की ना केवल इनके लिए बल्कि औरों के लिए भी अब मुझे सूचित किया जाता है ।।
मेरी प्रार्थना है, की, किसी को बधाई देना, मेरी चलाई हुई प्रथा है । संभव होगा तो बधाई दे दूँगा । न संभव होगा तो ना दे पाऊँगा ।।। मैंने किसी को भी ये वचन तो दिया नहीं की मैं उनके जन्म दिवस पे बधाई लिखूँ यहाँ ।। या उनकी विवाह जयंती पे, या उनकी संतान के बारे में लिखूँ ।।
यदि किसी को इस पर कोई दुविधा है, तो वे यहाँ से विदाई ले सकते हैं ।।
मैं यहाँ अपने मन की बात लिखूँ या ना लिखूँ, ये मुझपे निभर रहेगा ।।
आप सब यहाँ अपनी बात व्यक्त करते हैं, धायवाद ।। आपकी बात को यहाँ लिखित करूँ, ये मुझपे निभर होना है ।।
जो इस बात को समझ ले, तो मैं कृतज्ञ हूँ ।। जो न समझें उन्हें 🙏
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It be now coming up to 3:30 am of the 7th of Sept and having started work at 7 am of yesterday, it is reasonable now that I should retire .. for tomorrow is another day and another day of work ..
Each day of work is a learning for me .. not just the work but just another day is filled with elements that bring one closer to the reality of life and living ..
Each day we see meet know life and at times have wonder in our eyes ..
look where you are , and what you have within .. no point in lamenting a loss .. accept it and work to better the day of living for yourself and those that depend upon you ..
Your strength is within you and you alone shall own it to your need ..
My love and gratitude ..
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Amitabh Bachchan
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helputrust · 2 months ago
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लखनऊ, 21.09.2024 । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कॉलेज, ऐशबाग, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमे 22 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी ज़िम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना ।
कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कॉलेज की शिक्षिकाओं श्रीमती सरिता पाण्डे, श्रीमती बिन्दू शर्मा, श्रीमती विजय लक्ष्मी एवं रेड ब्रिगेड से प्रशिक्षिका ने दीप प्रज्वलित किया ।
गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कॉलेज की शिक्षिका श्रीमती सरिता पाण्डे ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “आज के आत्मरक्षा कार्यक्रम ने हमारी बेटियों में आत्मविश्वास की नई लहर पैदा की है । यह केवल एक प्रशिक्षण सत्र नहीं था, बल्कि जीवन जीने की एक नई दिशा थी । आत्मरक्षा के ��स महत्वपूर्ण पाठ ने उन्हें न केवल शारीरिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत किया । आत्मरक्षा सिर्फ बाहरी खतरों से सुरक्षा नहीं है, बल्कि यह अपने आत्म-सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा का भी एक साधन है । हमारी बेटियां अब आत्मरक्षा के साथ-साथ आत्मनिर्भरता का भी पाठ सीख चुकी हैं । यह कार्यक्रम उन्हें हर उस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार कर रहा है, जहां उन्हें खुद को साबित करने का मौका मिलेगा । समाज में ऐसे कार्यक्रमों की अहमियत इसलिए है क्योंकि यह न केवल नारी सशक्तिकरण को बल देते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि हमारी बेटियां अपनी सुरक्षा और अधिकारों के प्रति जागरूक रहें । हम आशा करते हैं कि वे इन सीखों को जीवनभर संजोएंगी और समाज में एक प्रेरणास्त्रोत बनेंगी ।"
आत्मरक्षा प्रशिक्षण में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से कुशल प्रशिक्षिकाओं ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किये गये ।
कार्यशाला में गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कॉलेज की शिक्षिकाओं श्रीमती सरिता पाण्डे, श्रीमती बिन्दू शर्मा, श्रीमती विजय लक्ष्मी, श्रीमती मनीषा दीक्षित, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से प्रशिक्षिकाओं तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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lucifar7000 · 3 months ago
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"दोस्तो, मेरा नाम युग है और मैं मध्यप्रदेश राज्य के भोपाल शहर में रहता हूँ.
मैं अक्सर चूत चुदाई की कहानी पढ़ता रहता हूं और दिन में दो बार हिला लेता हूँ.
यह सेक्स कहानी मेरी और मेरी छोटी बहन वर्षा की चुदाई की कहानी है.
इसमें आप पढ़ेंगे कि कैसे मैंने अपनी ही सगी बहन को चोदकर अपनी रंडी बना लिया.
यह Xxx सिस फक कहानी आज से एक साल पहले की उस समय की है जब मैंने 12 वीं के बोर्ड के इम्तिहान दिए थे.
एग्जाम के बाद से स्कूल की छुट्टी चल रही थीं.
मैं अपने परिवार के बारे में बता दूं.
मेरे घर में पाँच सदस्य हैं. मम्मी-पापा, दीदी और एक छोटी बहन.
मेरे पापा का नाम सुदेश है. उनकी उम्र 44 साल है.
मेरी मम्मी का नाम अदिति है. उनकी उम्र 42 साल है. लेकिन वे 30 से ज्यादा की नहीं लगती हैं.
उनका फिगर 32-28-36 का है. वे पारदर्शी साड़ी पहनती हैं और नाभि से नीचे साड़ी को बांधती हैं.
पारदर्शी साड़ी ��े साथ टू बाय टू की रुबिया के झीने ब्लाउज में से उनकी ब्रा साफ दिखाई देती है.
उनकी थिरकती चूचियों और मटकती गांड को देखकर किसी का भी लंड खड़ा हो जाए.
मेरी एक बड़ी बहन है, जिसका का नाम दीपाली है.
वह मुझसे एक साल बड़ी है और वह भी बहुत सेक्सी दिखती है.
दीपाली के बाद मैं हूँ और मुझसे छोटी बहन है.
उसका नाम वर्षा है.
वह मुझसे एक साल छोटी है.
उसकी उम्र 18 साल की है. उसने अभी जवानी की दहलीज पर अपना पहला कदम रखा ही है.
उसके दूध मस्त गोरे हैं और बहुत ही कांटा आइटम है.
उसकी फूली हुई गांड के बीच की दरार को देखकर मेरा उसे चोदने का मन करता है.
मैंने कई बार उसकी ब्रा पैंटी को सूंघकर लंड हिलाया है.
उन दिनों मैं उसकी चूत और गांड में लंड डालने की प्लानिंग कर रहा था.
वैसे सपनों में तो मैं उसे कई बार चोद चुका था पर हकीकत में उसे चोदने में डर लगता था कि कहीं उसने शोर मचा दिया तो सारी इज्जत की मां चुद जाएगी.
यों तो हम दोनों काफी खुले हुए हैं और हमें एक दूसरे के सारे सीक्रेट पता हैं.
कभी कभी वह मुझे गले लगाती है, तो उसके दूध मेरे सीने से लग कर एक मीठी रगड़ दे जाते हैं.
मैं उसके चूतड़ भी सहला देता था.
उस वक्त मन ही मन मैं उसे चोदने का सोचने लगता था.
ऐसा लगता था कि इसे यहीं घोड़ी बना कर इसकी गांड मार दूं.
एक रात को हम सब मिलकर टीवी देख रहे थे और वह हमेशा की तरह मेरी बगल में बैठी टीवी देख रही थी.
मैं भी हमेशा की तरह उसकी टांग से टांग रगड़ कर मस्त हो गया था. मेरा हाथ भी उसकी टांग पर घूम रहा था.
उस दिन काफी रात हो गई थी तो हम सब सोने के लिए जाने लगे.
वर्षा मेरे साथ सोती थी.
मैं भी उसके सो जाने के बाद उसके दूध दबाता, गांड में लंड रगड़ता … लेकिन कभी चोद नहीं सका था.
एक दिन मम्मी और दीदी मौसी के घर निकल गईं वे दो दिन के लिए गई थीं.
कुछ देर बाद पापा भी ऑफिस के लिए निकल गए थे.
पापा को दारू पीने की आदत है और आज मम्मी के न होने से उनके लिए यह किसी त्यौहार के जैसा दिन था.
मैं जानता था कि पक्के में आज पापा दोस्तों के साथ अपनी महफ़िल जमाएंगे.
मुझे पूरी उम्मीद थी कि वे मुझे फोन करके घर आने से मना करेंगे.
वही हुआ भी … एक घंटा बाद उनका फोन आ गया कि वे ऑफिस के काम से बाहर जा रहे हैं और कल शाम तक या परसों वापस आ जाएंगे.
उनके फोन से मुझे बेहद खुशी हुई कि अब बहन की चूत चोदी जा सकती है.
अब घर ��ैं और वर्षा अकेले थे.
आज चुदाई का सही समय था.
मैं हॉल में टीवी देख रहा था और वर्षा कमरे में थी.
मैंने सोचा कि चल कर देखूँ कि वर्षा क्या कर रही है.
मैं कमरे में गया तो वर्षा तौलिया में मेरे सामने थी. वह नहा कर निकली थी.
उसकी तौलिया छोटी थी, जिससे उसके दूध दिख रहे थे.
उसने गुस्से से मुझे बाहर जाने को कहा, मैं बाहर आ गया.
लेकिन अब उसे चोदने का मन कर रहा था.
शाम हो गई, मैं छत पर बैठा था कि तभी वह आई.
वर्षा- सॉरी भैया, मैं आज आप पर चिल्लायी.
मैं- कोई बात नहीं. वैसे तुम बहुत खूबसूरत हो!
वर्षा- आपको कैसे पता कि मैं खूबसूरत हूं?
मैं- आज तुम्हें बिना कपड़ों के देखा, तब से जाना कि तुम बेहद खूबसूरत हो … आई लव यू वर्षा. सच में मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.
मैंने न जाने किस आवेश में उससे यह कह तो दिया लेकिन मुझे डर लग रहा था कि अब वह क्या कहती है.
वह मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी और फिर एकदम से आगे बढ़ कर मुझे किस करने लगी.
मैं भी उसका साथ देने लगा और उसके मम्मों को दबाने लगा.
हम दोनों की 5 मिनट के किस के बाद वह हट गई और शर्माने लगी.
मैंने उसकी तरफ देख कर उसे वापस अपनी गोदी में लेने के लिए हाथ बढ़ाया.
तो वह कहने लगी- आज रात को आपके लिए मेरे पास कुछ बहुत खास है.
मैं समझ गया कि आज मैं इसकी चूत का रस ले सकूँगा.
मैंने कहा- आज खाना मत बनाना, मैं बाहर से ले आऊंगा.
उसने पूछा- क्या पापा का खाना भी लेकर आओगे?
मैंने उसे आंख मारते हुए बताया- नहीं, आज पापा अपनी दारू के प्रोग्राम में व्यस्त रहेंगे शायद … उनका फोन आया था कि वे कल शाम तक वापस आएंगे या हो सकता है कि परसों ही घर आ पाएं!
यह सुनकर मेरी छोटी बहन मुस्कुरा दी और बोली- ओके, इस खबर के लिए अब आपको और भी बढ़िया उपहार मिलेगा.
मैं समझ गया कि शायद अब यह और ज्यादा कामुक होकर चुदना चाहती है.
कुछ देर बाद मैं बाजार गया और वहां से खाना पैक करवा कर मेडिकल स्टोर से सेक्स की गोली लेता हुआ घर के लिए निकल पड़ा.
घर वापस आया तो 8 बज गए थे.
मैं घर पहुंचा तो मैंने देखा कि वर्षा ने लाल रंग की शॉर्ट नाइटी पहन रखी थी.
उसने मुझे देख कर आंख मारी और पूछा- मैं कैसी लग रही हूं?
मैं- बहुत सेक्सी लग रही हो मेरी जान!
यह कह कर मैं उस पर झपटने को हुआ.
वर्षा- चलो, पहले खाना खाना खाते हैं. आज की रात मैं तुम्हारी हूं, जो करना है … कर लेना.
फिर हम दोनों ने खाना खाया और मैं कमरे में गया.
मैंने देखा कि कमरा तो एकदम करीने से सजा हुआ था. उसने तकियों और कुशन से बेड सजाया था.
मैं मन ही मन खुश हुआ.
वर्षा- ��जावट कैसी लग रही है?
मैं- अच्छी है, पर क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो!
वर्षा- मैं तो आपसे कबसे प्यार करती हूं, बस आप ही देर कर रहे थे.
मैं उसकी तरफ मादक भाव से देखने लगा.
मैं वर्षा को किस करने लगा.
वह भी मेरा साथ देने लगी.
कुछ देर बाद मैंने उसकी नाइटी उतार कर फेंक दी. उसने नाइटी के नीचे कुछ नहीं पहना था, शायद वह पूरी तरह नंगी होकर चुदवाना चाहती थी.
उसने भी मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मेरा लंड चूसने लगी.
वह एकदम पेशेवर रंडी की तरह मेरा लंड चूस रही थी.
उसका लंड चूसना देख कर मुझे संदेह हुआ कि कहीं इसकी चूत पहले से ही तो खुली हुई नहीं है!
पर अगले ही पल मैं शांत हो गया कि कमसिन लड़की की चूत को सीलबंद चूत समझ कर ही चोदना चाहिए.
मैंने उसके सर पर अपना हाथ रख कर उसे अपने लौड़े पर दबाते हुए कहा- मेरी रानी, इतना अच्छा लंड चूसना कहां से सीखा?
वर्षा- मैंने बहुत सारी पोर्न फिल्में देखी हैं. भैया मैं जानबूझ कर अपनी पैंटी और ब्रा बाथरूम में छोड़ देती थी ताकि आप उसे सूंघकर अपना लंड हिला सकें.
मैं- तुम मुझसे कबसे प्यार करती हो?
वर्षा- जब से मैंने आपका 7 इन्च लम्बा लंड देखा है, बस तभी से आपसे चुदवाना चाहती हूं.
यह कहते हुए उसने खड़े होकर अपनी सफ़ाचट चूत मुझे दिखाई.
मैंने उसकी चूत की महक को अपने नथुनों में भरा और कामोन्मत्त हो गया.
फिर हम दोनों 69 की पोजीशन में हो गए.
वह मेरा लंड चूसने लगी और मैं उसकी चूत चाटने लगा.
कुछ मिनट बाद उसने मुझसे कहा- भाई, अब रहा नहीं जा रहा है, जल्दी से अपना लंड डाल दो.
मैंने चुदाई की स्थिति बनाई और उसकी चूत की तरफ देखने लगा कि इतनी संकरी चूत में मेरा मूसल कैसे घुस सकता है.
तभी उसने मेरा लंड अपने हाथ से अपनी चूत पर सैट कर दिया.
मेरा सुपारा उसकी चूत की बंद लकीर पर मुँह मारने लगा.
वह भी सुपारे की गर्मी पाकर अपनी गांड हिलाती हुई मेरे लंड को अन्दर बुलाने लगी थी.
मुझसे रहा न गया और मैंने एक जोरदार धक्का लगा दिया.
शॉट एकदम सही समय पर और सही जगह पर लगा था तो करीब ढाई इंच लंड चूत को फाड़ कर अन्दर घुस गया था.
लंड क्या घुसा, उसकी तो चीख ही निकल गई.
उसकी चीख बता रही थी कि पक्का यह उसका पहली बार वाला हमला था.
मैं सजग हो गया और अन्दर ही अन्दर बेहद खुश भी हो गया था कि आज चूत फाड़ने का पहला मौका मिला है.
अब मैं उसे किस करने लगा और उसे सहलाने लगा, उसका एक दूध अपने मुँह में भर कर चूसने लगा.
अपने चूचे चुसवाने से उसे अच्छा लगने लगा.
थोड़ी देर बाद वह खुद अपनी कमर उठा कर लंड लेने लगी.
उसका दर्द कम हो गया था.
मैंने एक और जोरदार धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत की जड़ तक उतार दिया.
��सकी दर्द भरी चीख निकल गई पर इस बार मेरे होंठ चूसने की वजह से आवाज नहीं निकल पाई.
इस बार मैंने बिना रुके धक्कों की स्पीड तेज कर दी.
उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे.
फिर 5 मिनट तक चुदाई के बाद उसे भी मजा आने लगा और वह मादक आवाजें निकालने लगी- आह हहह हहह आज मेरी चूत फ़ाड़ कर इसका भोसड़ा बना दो … बड़ा मजा आ रहा है भैया … आहह आज मेरी चूत की माँ चुद गईई ईई आह.
मुझे अपनी बहन की चूत रगड़ने में बेहद सुकून मिल रहा था.
मैं भी सांड की तरह अपनी छोटी बहन को बकरी समझ कर चोदने में लगा हुआ था.
काफी देर की जोरदार चुदाई के बाद मैंने चूत से लंड निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया.
वह अच्छी तरह से लंड चूसने लगी.
मैंने उसके मुँह में ही जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और 5 मिनट बाद उसके मुँह में ही झड़ गया.
उस रात मैंने उसे 3 बार चोदा, दो बार उसकी चूत और एक बार गांड बजाई.
Xxx सिस फक के बाद हम दोनों ऐसे ही नंगे सो गए.
अगली सुबह मैं 12 बजे उठा.
तब तक वर्षा नहाकर तैयार हो गई थी.
उसने मुझे जगाया और एक किस किया.
मैं जागा तो उसने मुझसे फ्रेश होने को कहा.
उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, हम दोनों दबा कर चुदाई करते.
मैंने वर्षा की मदद से अपनी मम्मी को भी चोदा.
यह सब कैसे हुआ था, उसे मैं अपनी अगली सेक्स कहानी में बताऊंगा.
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yogi-1988 · 6 months ago
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कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते,
ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्र��प्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर��� (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी ।।
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bhoomikasworld · 6 months ago
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द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु ��ो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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ghanshyamdas1999 · 3 days ago
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द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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anujkumars-posts · 1 month ago
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#ऐसे_मिलेगा_भगवान
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कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराजपूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
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sillykryptonitenerd · 2 months ago
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पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
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spiritualraja · 2 months ago
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समाज में परंपराएं और अंधविश्वास: एक सोचने योग्य विषय
हमारा समाज विभिन्न परंपराओं और मान्यताओं से भरा हुआ है। कई बार ऐसा लगता है कि कुछ चीजें केवल इसलिए चली आ रही हैं क्योंकि वे सदियों से चली आ रही हैं। पर क्या हमने कभी गंभीरता से सोचा है कि इनमें से कितनी चीजें वास्तव में आज के दौर में प्रासंगिक हैं? क्या जाति व्यवस्था की अब भी आवश्यकता है? क्या महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग नियम वास्तव में सही हैं? क्या अंधविश्वासों को बिना प्रश्न किए मानते जाना उचित है?
मेरा नाम राजा है, और मेरी उम्र 22 वर्ष है। मैं यह दावा नहीं करूंगा कि मेरे पास ज्ञान का विशाल भंडार है, लेकिन अपने जीवन के इस मोड़ पर इतना जरूर समझ चुका हूं कि कई सामाजिक मान्यताएं केवल परंपराओं का अनुसरण हैं, जिनका तर्क से कोई लेना-देना नहीं है। ये सवाल मैंने खुद से भी पूछे थे, और लंबे समय तक सोचने और पढ़ने के बाद मुझे यह महसूस हुआ कि ये परंपराएं और अंधविश्वास सिर्फ सामाजिक नियमों का हिस्सा बन गए हैं जिन्हें हम बिना सोचे-समझे मानते जा रहे हैं।
हम अपने आस-पास के समाज में इन चीजों को होते हुए देखते हैं—बाजारों में, गलियों में, और हमारे सामाजिक ढांचे के हर हिस्से में। फिर भी, हम में से बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इन परंपराओं और मान्यताओं पर सवाल उठाते हैं। जब मैं देखता हूं कि आज भी समाज में जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव हो रहा है, तो मुझे सच में अचरज होता है कि हम अब भी इन चीजों को क्यों स्वीकार कर रहे हैं। क्या वाकई इनकी अब कोई जरूरत है?
मैं यह समझता हूं कि शायद समाज के कुछ हिस्से मेरी बातों से सहमत न हों। लेकिन फिर भी, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि एक बार अपने आप से और अपने समाज से इन सवालों को पूछिए। क्या ये परंपराएं और अंधविश्वास अब भी जरूरी हैं? क्या इनका कोई तार्किक आधार है?
जवाब शायद यही मिलेगा: "हमारे दादा-दादी ने किया, इसलिए हम भी कर रहे हैं।"लेकिन क्या यह पर्याप्त कारण है?
समाज को आगे बढ़ाने के लिए हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। अगर हम अतीत के केवल अनुकरण करते रहेंगे, तो विकास कैसे होगा? यह जरूरी है कि हम इन सवालों को खुद से पूछें और उन पर विचार करें, ताकि हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ स��ें जो तर्कसंगत, न्यायसंगत और आधुनिक हो।
- राजा
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saathi · 4 months ago
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narendardass · 4 months ago
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#सबसे_बड़ा_डॉक्टर_भगवान
जब डॉक्टर भी इलाज करके थक जाते हैं और मरीज को आराम नहीं मिलता तो वे यही कहते हैं कि अब तो भगवान ही बचा सकते हैं। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गयी पूर्ण परमात्मा की भक्ति से श्रद्धालुओं के सारे रोग समाप्त हो रहे हैं। जिनका इलाज करने में डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे।
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helputrust · 10 months ago
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लखनऊ, 03.02.2024 | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में शशि भूषण बालिका महाविद्यालय, लाल कुआं, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला" आयोजित की गई जिसमें 30 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी जिम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना | कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा शशि भूषण बालिका महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो0 अंजुम इस्लाम एवं रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के श्री अजय पटेल ने दीप प्रज्वलन किया | शशि भूषण बालिका महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो0 अंजुम इस्लाम ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का आभार प्रकट करते हुए कहा, "भारत में वर्तमान समय में नारी उत्पीड़न के प्रति घंटे के अनुरूप लगभग 49 मामले दर्ज होते है । इस तरह यह स्थिति भयावह है । हमारे देश की आधी आबादी, जो पूरी तरह से अब भी सामाजिक सम्मान, शक्ति, संपन्नता, सम्पत्ति की समान अधिकारिणी व आर्थिक रूप से स्वतंत्रता, राजनैतिक दृष्टि से सुदृढ़ता, भौगोलिक परिवेश को लेकर उदारता की भागीदार नहीं बन पाई है इसलिए नारी उत्पीड़न के समाधान हम सबको मिलकर घरेलू स्तर से प्रारंभ करते हुए, सामाजिक व राष्ट्रीय स्तर पर करते रहने होंगे । जहाँ बेटी के जन्म को बोझ समझते हुए लिंग परीक्षण को पूरी तरह रोकना होगा, घरेलू स्तर से ही बालक-बालिका में भेद पर अंकुश लगाना होगा, बालिकाओं हेतु रोजगान्मुखी शिक्षा को जरूरी बनाना होगा| साथ ही विद्यालय स्तर से ही समान प्रायोगिक, व्यवहारिक, खेलकूद, कसरत, योगाभ्यास आदि का समान प्रशिक्षण देना होगा | बालिकाओं को आत्मरक्षा कौशल भी सिखाना उतना ही जरूरी है जितना घरेलू कार्य क्योंकि इससे उनकी मानसिक सोच मजबूत होगी तथा वे समाज में फैले अत्याचार के खिलाफ मजबूत कदम उठा सकेंगी |" कार्यशाला में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख श्री अजय पटेल ने बालिकाओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को बताते हुए कहा कि, "किसी पर भी अन्याय तथा अत्याचार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती हैं, फिर समाज के एक बहुत बड़े भाग यानि स्त्रियों के साथ ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध हैं | महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ देश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं तथा सरकार निरंतर महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला ��ही है लेकिन यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारा समाज 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या व लैंगिक भेदभाव के कुचक्र से छूट नहीं पाया है | आज भी देश के तमाम हिस्सों में बेटी के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है या बेटी और बेटे में भेदभाव किया जाता है | महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तथा उनको एक स्त्री होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है | आत्मरक्षा प्रशिक्षण समय की जरूरत बन चुका है क्योंकि यदि महिला अपनी रक्षा खुद करना नहीं सीखेगी तो वह अपनी बेटी को भी अपने आत्म सम्मान के लिए लड़ना नहीं सिखा पाएगी | आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखियें, नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति में समान की भागीदार हैं | फिर उन्हें कमतर क्यों समझा जाता है यह विचारणीय हैं | हमें उनका आत्मविश्वास बढाकर, उनका सहयोग करके समाज की उन्नति के लिए उन्हें साहस और हुनर का सही दिशा में उपयोग करना सिखाना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर पाएगा | आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का हमारा यही मकसद है कि हम ज्यादा से ज्यादा बालिकाओं और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखा सके तथा समाज में उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीना सिखा सके |" आत्मरक्षा प्रशिक्षण की प्रशिक्षिका तंजीम अख्तर ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |  कार्यशाला में शशि भूषण बालिका महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो0 अंजुम इस्लाम, शिक्षिकाओं, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से श्री अजय पटेल, तंजीम अख्तर तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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yogendra-das · 4 months ago
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हजरत मुहम्मद जी मांस नहीं खाते थे।
गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
संत गरीबदास जी ने कहा है कि नबी मुहम्मद जी को मेरा नमस्कार (सलाम) है। वे (राम) अल्लाह के (रसूल) संदेशवाहक कहलाए। बाबा आदम से लेकर अंतिम नबी
हजरत मुहम्मद जी तक एक लाख अस्सी हजार नबी हुए हैं तथा जो उनके अनुयाई उस समय थे, कसम है उन्होंने छुरी चलाकर जीव हिंसा नहीं की।
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yogi-1988 · 2 months ago
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श्राद्ध करने से क्या होता है ?
पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने (भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पितर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पितरों के पास जायेंगे अर्थात पितर बन जायेंगे, मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी। यह मूखौं की पूजा है।
#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
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bhoomikasworld · 3 months ago
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संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
संत रामपाल जी महाराज, संत शास्त्रों से प्रमाणित सत्संग करते हैं वे अपने सत्संगो में कही एक-एक बात का प्रमाण शास्त्रों में दिखाते हैं। संत रामपाल जी महाराज मनमानी शास्त्रविरुद्ध पूजा जैसे कि श्राद्ध, पिण्ड दान, माता मसानी और प्रेतों की पूजा करना निषेध करते हैं, क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इन क्रियाओं को मना किया गया है और वे एक पूर्ण परमात्मा की शास्त्र अनुसार साधना कराते हैं जिससे साधक को सभी सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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essentiallyoutsider · 8 months ago
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चाहिए थोड़ा दुख
खबरें देखता रहता हूं दिन भर और
कुछ नहीं लिखता मैं
देखता हूं रील, तस्‍वीर और वीडियो
दूसरों का नाच गाना सोना नहाना
सब कुछ पर बेमन
सीने में जाने किसका है वजन
जो काटे नहीं कटता वक्‍त की तरह
गोकि मैं हूं बहुत बहुत व्‍यस्‍त और
ऐसा सिर्फ दिखाने के लिए नहीं है चूंकि
मैं फोन नहीं उठाता किसी का
मैं वाकई व्‍यस्‍त हूं, और जाने
किन खयालों में मस्‍त हूं कि अब
कुछ भी छू कर नहीं जाता
निकल लेता है ऊपर से या नीचे से
या दाएं से और बाएं से
सर्र से पर मेरी रूह को तो छोड़ दें
त्‍वचा तक को कष्‍ट नहीं होता।
ये जो वजन है
यही दुख का सहन है
वैसे कारण कम नहीं हैं दुखी होने के
दूसरी सहस्राब्दि के तीसरे दशक में, लेकिन
दुख की कमी अखरती है रोज-ब-रोज
जबकि समृद्धि इतनी भी नहीं आई
कि खा पी लें दो चार पुश्‍तें
या फिर कम से कम जी जाएं विशुद्ध
हरामखोर बन के ही बेटा बेटी
या अकेले मैं ही।
मैंने सिकोड़ लिया खुद को बेहद
तितली से लार्वा बनने के बाद भी
फोन आ जाते हैं दिन में दो चार
और सभी उड़ते हुए से करते हैं बात
चुनाव आ गया बॉस, क्‍या प्‍लान है
मेरा मन तो कतई म्‍लान है यह कह देना
हास्‍यास्‍पद बन जाने की हद तक
संन्‍यस्‍त हो जाने की उलाहना को आमंत्रित करता
बेकल आदमी का एकल गान है।
एक कल्‍पना है
जिसका ठोस प्रारूप कागज पर उतारना
इतना कठिन है कि महीनों हो गए
और इतना आसान, कि लगता है
एक रोज बैठूंगा और लिख दूंगा
रोज आता है वह एक रोज
और बीत जाता है रोज
अब उसकी भी तीव्रता चुक रही है
तारीख करीब आ रही है और धौंकनी
धुक धुक रही है
कि क्‍या 4 जून के बाद भी करते रहना होगा
वही सब चूतियापा
जिसके सहारे काट दिए दस साल
अत्‍यंत सुरक्षित, सुविधाजनक
बिना खोए एक क्षण भी आपा
बदले में उपजा लिए कुछ रोग जिन्‍हें
डॉक्‍टर साहब जीवनशैली जनित कहते हैं
जबकि इस बीच न जीवन ही खास रहा
न कोई शैली, सिवाय खुद को
बचाने की एक अदद थैली
आदमी से बन गए कंगारू
स्‍वस्‍थ से हो गए बीमारू
कीड़े पनपते रहे भीतर ही भीतर
बाहर चिल्‍लाते रहे फासीवाद और
भरता रहा मन में दुचित्‍तेपन का
गंदा पीला मवाद।
यार, ऐसे तो नहीं जीना था
सिवाय इस राहत के कि
जीने की भौतिक परिस्थितियां ही
गढ़ती हैं मनुष्‍य को
यह दलील चाहे जितना डिस्‍काउंट दे दे
लेकिन मन तो जानता है (न) कि
दुनिया के सामने आदमी कितनी फानता है
और घर के भीतर चादर कितनी तानता है।
अगर ये सरकार बदल भी जाए तो क्‍या होगा मेरा
यही सोच सोच कर हलकान हुआ जाता हूं
जबकि सभी दोस्‍त ठीक उलटा सोच रहे हैं
जरूरी नहीं कि दोस्‍त एक जैसा सोचें
बिलकुल इसी लोकतांत्रिक आस्‍था ने दोस्‍त
कम कर दिए हैं और जो बच रहे हैं
वे फोन करते हैं और मानकर चलते हैं
मैं उनके जैसी बात कहूंगा हुंकारी भरूंगा
मैं तो अब किसी को फोन नहीं करता
न बाहर जाता हूं मिलने
बहुत जिच की किसी ने तो घर
बुला लेता हूं और जानता हूं कि
दस में से दो आ जाएं तो बहुत
इस तरह कटता है मेरा क्‍लेश और
बच जाता है वक्‍त
चूंकि मैं हूं बहुत बहुत व्‍यस्‍त
बचे हुए वक्‍त में मैं कुछ नहीं करता
यह जानते हुए भी लगातार लोगों से बचता
फिरता हूं क्‍योंकि वे जब मिलते हैं तो
ऐसा लगता है कि बेहतर होता कुछ न करते
घर पर ही रहते और ऐसा
तकरीबन हर बार होता है
हर दिन बस यही संतोष
मुझे बचा ले जाता है
कि मेरा खाली समय कोई बददिमाग
पॉलिटिकली करेक्‍ट
बुनियादी रूप से मूर्ख और अतिमहत्‍वाकांक्षी
लेकिन अनिवार्यत: मुझे जानने वाला मनुष्‍य
नहीं खाता है।
लोगों को ना करते दुख होता है
ना नहीं करने के अपने दुख हैं
आखिर कितनों की इच्‍छाओं, महत्‍वाकांक्षाओं
और मूर्खतापूर्ण लिप्‍साओं की आत्‍यंन्तिक रूप से
मौद्रिक परियोजनाओं में
आदमी कंसल्‍टेंट बन सकता है एक साथ?
आपके बगैर तो ये नहीं होगा
आपका होना तो जरूरी है
रोज दो चार लोग ऐसी बातें कह के मुझे
फुलाते रहते हैं और घंटे भर की ऊर्जा
उनके निजी स्‍वार्थों की भेंट चढ़ जाती है
इतने में दस आदमी कांग्रेस से भाजपा में और
चार आदमी भाजपा से कांग्रेस में चले जाते हैं
हेडलाइन बदल जाती है
किसी के यहां छापा पड़ जाता है
तो किसी को जेल हो जाती है
फिर अचानक कोई ऐसा नाम ट्रेंड करने लगता है
जिसे जानने में बची हुई ऊर्जा खप जाती है।
मुझे वाकई ये बातें जानने का शौक नहीं
ज्‍यादा जरूरी यह सोचना है कि अगले टाइम
क्‍या छौंकना है लौकी, करेला या भिंडी
और किस विधि से उन्‍‍हें बनना है
यह और भी अहम है पर संतों के कहे
ये दुनिया एक वहम है और मैं
इस वहम का अनिवार्य नागरिक हूं
और औसत लोगों से दस ग्राम ज्‍यादा
जागरिक हूं और यह विशिष्‍टता 2014 के बाद
अर्जित की हुई नहीं है क्‍योंकि उससे पहले भी
मैं जग रहा था जब स��� करोड़ हिंदू
सो रहा था इस देश का जो आज मुझसे
कहीं ज्‍यादा जाग चुका है और
मेरे जैसा आदमी बाजार से भाग चुका है
भागा हुआ आदमी घर में दुबक कर
खबरें ही देख सकता है और गाहे-बगाहे सजने वाली
महफिलों में अपने प्रासंगिक होने के सुबूत
उछाल के फेंक सकता है।
दरअसल मैं इसी की तैयारी करता हूं
इसीलिए खबरें देखता रहता हूं
पर लिखता कुछ नहीं
बस देखता हूं दूसरों का नाच गाना
सोना नहाना सब कुछ
नियमित लेकिन बेमन।
कब आ जाए परीक्षा की घड़ी
खींच लिया जाए सरेबाजार और
पूछ दिया जाए बताओ क्‍या है खबर
और कह सकूं बेधड़क मैं कि सरकार बहादुर
गरीबों में बांटने वाले हैं ईडी के पास आया धन।
छुपा ले जाऊं वो बात जो पता है
सारे जमाने को लेकिन कहने की है मनाही
कि एक स्‍वतंत्र देश का लोकतांत्रिक ढंग से
चुना गया प्रधानमंत्री कर रहा था सात साल से
धनकुबेरों से हजारों करोड़ रुपये की उगाही
खुलवाकर कुछ लाख गरीबों का खाता जनधन।
सच बोलने और प्रिय बोलने के द्वंद्व का समाधान
मैंने इस तरह किया है
बीते बरसों में जमकर झूठ को जिया है
स्‍वांग किया है, अभिनय किया है
जहां गाली देनी थी वहां जय-जय किया है
��र सीने पर रख लिया है एक पत्‍थर
विशालकाय
अकेले बैठा पीटता रहता हूं छाती हाय हाय
कि कुछ तो दुख मने, एकाध कविता बने
लगे हाथ कम से कम भ्रम ही हो कि वही हैं हम
जो हुआ करते थे पहले और अकसर सोचा करते थे
किसके बाप में है दम जो साला हमको बदले।
ये तैंतालीस की उम्र का लफड़ा है या जमाने की हवा
छूछी देह ही बरामद हुई हर बार जब-जब
खुद को छुवा
हर सुबह चेहरे पर उग आती है फुंसी गोया
दुख का निशान देह पर उभर आता हो
मिटाने में जिसे आधा दिन गुजर जाता हो
दुख हो या न हो, दिखना नहीं चाहिए
ऐसी मॉडेस्‍टी ने हमें किसी का नहीं छोड़ा
भरता गया मवाद बढ़ता गया फोड़ा
अल्‍ला से मेघ पानी छाया कुछ न मांगिए
बस थोड़ा सा जेनुइन दुख जिसे हम भी
गा सकें, बजा सकें और हताशाओं के
अपने मिट्टी के गमले में सजा सकें
और उसे साक्षी मानकर आवाहन करें
प्रकृति का कि लौट आओ ओ आत्‍मा
कम से कम कुछ तो दो करुणा कि
स्‍पर्श कर सकें वे लोग, वे जगहें, वे हादसे
जिनकी खबरें देखता रहता हूं मैं
दिन भर और कुछ भी नहीं लिख पाता।
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