#अनाथों
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सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ
भावार्थ
(परम) सुंदर सुजान और कृपानिधान तथा जो अनाथों पर प्रेम करते हैं ऐसे एक श्री रामचंद्र जी ही हैं इनके समान निष्काम (निःस्वार्थ) हित करने वाला (सुहृद्) और मोक्ष देने वाला दूसरा कौन है? जिनकी लेशमात्र कृपा से मंदबुद्धि तुलसीदास ने भी परम शांति प्राप्त कर ली उन श्री रामजी के समान प्रभु कहीं भी नहीं हैं
जय श्री सीताराम🏹🚩🙏
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हिमाचल में शराब के ठेके होंगे नीलम, बीपीएल श्रेणी के चयन के लिए वार्षिक आय की 50 हजार; पढ़ें कैबिनेट के फैसले
Himachal News: हिमाचल प्रदेश में साल 2025-26 में शराब ठेके नीलाम होंगे। मंगलवार देर शाम को राज्य सचिवालय में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया। सरकार ने प्रदेश में बीपीएल श्रेणी के चयन के लिए बड़ा फैसला लेते हुए वार्षिक आय 36 हजार रुपये को बढ़ाकर अब 50 हजार रुपये कर दिया है। सरकार ने विधवाओं-अनाथों के कल्याण, कानून व्यवस्था, शिक्षा और…
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मदर टेरेसा का जीवन परिचय
पूरा नाम: अंजेजे गोंझा बोयाजू (Anjezë Gonxhe Bojaxhiu) जन्म: 26 अगस्त 1910, स्कोप्जे (मेसिडोनिया, पूर्व यूगोस्लाविया) मृत्यु: 5 सितंबर 1997, कोलकाता, भारत उपनाम: संत टेरेसा ऑफ़ कोलकाता कार्य: नन, समाजसेवी, मानवतावादी पुरस्कार: नोबेल शांति पुरस्कार (1979), भारत रत्न (1980), मैग्सेसे पुरस्कार (1962)
चलिए बात करते है मदर टेरेसा के बारे में
प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म एक अल्बानियाई परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और जरूरतमंदों की सेवा करना चाहती थीं। 18 वर्ष की उम्र में वे सिस्टर्स ऑफ लोरेटो मिशनरी संस्था में शामिल हो गईं और आयरलैंड से भारत आईं।
भारत आगमन और सेवा कार्य
1929 में मदर टेरेसा कोलकाता (तब कलकत्ता) पहुँचीं और सेंट मैरी हाई स्कूल में शिक्षिका के रूप में सेवा शुरू की। लेकिन 1946 में उन्होंने एक “आंतरिक बुलावा” महसूस किया, जिसमें उन्होंने महसूस किया कि उन्हें गरीबों और बीमारों की सेवा करनी चाहिए।
1948 में, उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और गरीबों की सेवा में जुट गईं। उन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर बीमारों और जरूरतमंदों की मदद की।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना
1950 में, मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी नामक संस्था ��ी स्थापना की, जिसका उद्देश्य गरीबों, अनाथों, बेघरों और बीमारों की सेवा करना था। यह संस्था आज भी दुनिया के कई देशों में कार्यरत है।
उन्होंने कुष्ठ रोगियों, एचआईवी/एड्स पीड़ितों और निराश्रितों के लिए कई अस्पताल, अनाथालय और सेवा केंद्र खोले।
सम्मान और पुरस्कार
मदर टेरेसा को उनके मानव सेवा कार्य के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं: ✔ नोबेल शांति पुरस्कार (1979) — गरीबों के प्रति प्रेम और सेवा के लिए ✔ भारत रत्न (1980) — भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ✔ रामन मैग्सेसे पुरस्कार (1962) — समाजसेवा के लिए ✔ ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर (1983)
निधन और संत की उपाधि
मदर टेरेसा का 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में निधन हो गया। उनके निधन के बाद भी उनकी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी पूरी दुनिया में गरीबों की सेवा कर रही है।
2016 में, पोप फ्रांसिस ने उन्हें “संत टेरेसा ऑफ़ कोलकाटा” की उपाधि दी, जिससे वे आधिकारिक रूप से कैथोलिक चर्च की संत बन गईं।
प्रेरणा और शिक्षा
✔ निस्वार्थ सेवा — उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और असहायों की सेवा में समर्पित कर दिया। ✔ करुणा और प्रेम — वे कहती थीं, “अगर आप सौ लोगों की मदद नहीं कर सकते, तो केवल एक की मदद करें।” ✔ सादगी और समर्पण — उन्होंने कभी अपने लिए कुछ नहीं माँगा और पूरी तरह से सेवा में लगी रहीं।
निष्कर्ष
मदर टेरेसा प्रेम, करुणा और मानवता की प्रतीक थीं। उनका जीवन हमें दूसरों की मदद करने, जरूरतमंदों की सेवा करने और बिना किसी स्वार्थ के प्रेम फैलाने की प्रेरणा देता है।
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मदर टेरेसा: मानवता की मिसाल
परिचय
मदर टेरेसा एक कैथोलिक नन और महान समाजसेविका थीं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, बीमारों, अनाथों और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" नामक संस्था की स्थापना की, जो आज भी दुनिया भर में जरूरतमंदों की सेवा कर रही है। उनकी निस्वार्थ सेवा और करुणा के कारण उन्हें 2016 में "संत" की उपाधि दी गई। चलिए चर्चा करते है मदर टेरेसा के बारे में
मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन
पूरा नाम: एग्नेस गोंझा बोयाज्यू
जन्म: 26 अगस्त 1910
जन्मस्थान: स्कोप्जे (अब उत्तरी मैसेडोनिया)
परिवार: उनका परिवार धार्मिक था, और वे बचपन से ही सेवा कार्यों में रुचि रखती थीं।
18 वर्ष की उम्र में, वे "सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो" मिशनरी संस्था से जुड़ गईं और भारत आने का निर्णय लिया।
भारत में सेवा कार्य
1929 में, मदर टेरेसा भारत आईं और कोलकाता के सेंट मैरी स्कूल में शिक्षिका बनीं।
लेकिन 1946 में, एक ट्रेन यात्रा के दौरान उन्हें ईश्वर का संदेश (Divine Calling) मिला कि उन्हें गरीबों और असहायों की सेवा करनी चाहिए।
1948 में, उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीबों की सेवा शुरू की।
1950 में, उन्होंने "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" की स्थापना की, जो गरीबों, बीमारों, अनाथों और बेसहारा लोगों की मदद के लिए कार्य करने लगी।
मानवता की सेवा में जीवन
उन्होंने ��ोलकाता में "निर्मल हृदय" नामक आश्रम खोला, जहाँ गरीब और बीमार लोग स���्मानपूर्वक अंतिम सांस ले सकते थे।
उन्होंने अनाथालय, अस्पताल, वृद्धाश्रम, कुष्ठ रोगियों के लिए आश्रम और स्कूलों की स्थापना की।
उनके सेवा कार्य धीरे-धीरे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के 130 से अधिक देशों में फैल गए।
पुरस्कार और सम्मान
1962: भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार।
1979: नोबेल शांति पुरस्कार।
1980: भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न।
1997: अमेरिकी कांग्रेस का गोल्ड मेडल।
उन्हें दुनियाभर में "मानवता की माँ" के रूप में सम्मानित किया गया।
मृत्यु और संत की उपाधि
मृत्यु: 5 सितंबर 1997, कोलकाता, भारत।
2016 में, पोप फ्रांसिस ने उन्हें "संत" (Saint Teresa of Calcutta) की उपाधि देकर सम्मानित किया।
मदर टेरेसा की प्रेरणादायक बातें
"यदि आप सौ लोगों की मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम एक की मदद करें।"
"शांति की शुरुआत एक मुस्कान से होती है।"
"प्रेम हर इंसान की सबसे बड़ी आवश्यकता है।"
निष्कर्ष
मदर टेरेसा का जीवन सेवा, प्रेम और मानवता की मिसाल है। उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि दया और करुणा के बिना समाज अधूरा है। उनकी संस्था "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" आज भी उनके दिखाए रास्ते पर चल रही है और गरीबों व जरूरतमंदों की सेवा कर रही है।
उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है और यह सिखाता है कि निस्वार्थ सेवा से ही सच्ची खुशी मिलती है।
hope this blog about baba harbhajan singh indian army will be helpful for you.
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#धरती_ऊपर_स्वर्ग
वृद्धों और अनाथों की देखभाल:
संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायियों द्वारा वृद्धों और अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, जिससे वे भी समाज में सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
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• वृद्धों और अनाथों की देखभाल: संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा वृद्धों और अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, जिससे वे भी समाज में सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।

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संत रामपाल के बेटे ने बदली दान की परंपरा, जाट महासभा को दिया ऐतिहासिक यो...
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सामाजिक समानता और न्याय
– सामाजिक न्याय का प्रसार: संत रामपाल जी ने समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को अपने अनुयायियों के बीच फैलाया।
• गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता:
संत रामपाल जी के अनुयायी नियमित रूप से गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता करते हैं। वे भोजन, वस्त्र, और शिक्षा जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं।
• वृद्धों और अनाथों की देखभाल: संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा वृद्धों और अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, जिससे वे भी समाज में सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
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संत रामपाल के बेटे ने बदली दान की परंपरा, जाट महासभा को दिया ऐतिहासिक यो...
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*संत रामपाल जी महाराज जी का समाज सुधार में योगदान* (इसके संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु नीचे दिए गए हैं, कृपया इन बिंदुओं के अनुसार टिप्पणियां अवश्य करें।)
• नशा ��ुक्त भारत बनाना :- संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सुनने मात्र से ही आत्मा निर्मल हो जाती है और उनसे नामदिक्षा लेने से मन के सभी विकार दूर हो जाते हैं। इसीलिए उनसे जुड़ने के उपरांत आज लाखों लोगों ने नशा छोड़ा है और सुखमय जीवन व्यतीत कर रहें हैं।
• समाज से दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से खत्म करना:- संत रामपाल जी के अनुयाई मात्र 17 मिनट में दहेज मुक्त विवाह (रमैनी) करते हैं जिसमें दोनों पक्षों की तरफ से किसी भी चीज का लेन देन नहीं किया जाता । इसी मुहिम के तहत आज हजारों शादियां हो चुकी हैं जिससे लड़कियों को न तो समाज में बोझ समझा जाता है और कन्या भ्रूण हत्या भी खत्म होती जा रही है।
• युवाओं में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति लाना :- युवा पीढ़ी जो आज गलत दिशा में जाती जा रही है और अपने मूल उद्देश्य से वंचित रह जाती हैं तो वहीं दूसरी ओर संत रामपाल जी से जुड़े युवा अध्यात्म से जुड़कर सभी विकारों से दूर अपने उद्देश्य को सफल बना रहें हैं।
• भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना :- संत रामपाल जी महाराज का कोई भी शिष्य रिश्वतखोरी और चोरी नहीं करते जिससे कि समाज में भ्रष्टाचार खत्म हो रहा है।
• समय समय पर रक्तदान और देहदान जैसे कार्यक्रम आयोजित करना :- संत रामपाल जी के अनुयाई रक्तदान और देहदान कर मानव समाज की मदद कर रहे हैं।
• सतभक्ति प्रदान करके विश्व को मोक्ष प्रदान करना: ऐसे समाज सुधार के कार्य करने वाले महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में लगभग 11 सतलोक आश्रमों में 3 दिवसीय विशाल भंडारा साल में 6 बार करवाते है।
• भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान: भ्रूण हत्या, विशेषकर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम चलाना।
• अंतरधार्मिक सद्भावना: विभिन्न धर्मों के बीच सद्भावना और एकता को बढ़ावा देना। संत जी ने सभी धर्मग्रंथों के आधार पर एक परमात्मा की ओर ध्यान केंद्रित कर धार्मिक एकता का संदेश दिया।
• प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य
COVID-19 महामारी के दौरान सहायता: कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन के चलते हरियाणा राज्य के कई शहरों में मजदूर फंस गए थे। स्थानीय प्रशासन स्थिति को संभालने में असमर्थ हो गया था। तब संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने उन मजदूरों के रहने, भोजन, पानी और अन्य ज़रूरतों का इंतज़ाम संत जी के आश्रम में ही किया। प्रशासन ��ो भी राहत मिली और मजदूरों को उनके घरों तक पहुँचाया गया। रास्ते के लिए भोजन और पानी की बोतलें भी संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने निःशुल्क उपलब्ध करवाईं।
• बाढ़ पीड़ितों को सहायता: 2023 में हरियाणा के 12 जिलों में भयंकर बाढ़ आई थी, जहाँ संत रामपाल जी के शिष्यों ने बाढ़ पीड़ितों को भोजन और अन्य आवश्यक सामग्री ट्रैक्टरों में ले जाकर प्रदान की। संत जी के शिष्य जहां कहीं भी समाज सेवा का मौका देखते हैं, तुरंत आगे आकर सेवा कार्य में लग जाते हैं।
• रेल हादसे में सहायता: 2 जून 2023 को ओडिशा में भीषण रेल हादसा हुआ, जिसमें करीब 300 लोगों की मौत हो गई और करीब 1000 लोग घायल हो गए। इस दुख की घड़ी में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी मसीहा बनकर आगे आए। 16 जून को ओडिशा के संबलपुर में संत रामपाल जी के अनुयायियों ने 278 यूनिट रक्तदान किया और घायलों की मदद की।
• पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर पौधारोपण अभियान चलाना जैसे कि पंजाब और मध्यप्रदेश में लाखों पौधे रोपना। इन अभियानों का उद्देश्य पर्यावरण को हरा-भरा रखना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है।
• स्वच्छता अभियान: संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा नियमित रूप से स्वच्छता अभियानों का आयोजन किया जाता है। इन अभियानों का उद्देश्य समाज को स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद वातावरण प्रदान करना है।
• सामाजिक समानता और न्याय
– सामाजिक न्याय का प्रसार: संत रामपाल जी ने समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को अपने अनुयायियों के बीच फैलाया।
• गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता:
संत रामपाल जी के अनुयायी नियमित रूप से गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता करते हैं। वे भोजन, वस्त्र, और शिक्षा जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं।
• वृद्धों और अनाथों की देखभाल: संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा वृद्धों और अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, जिससे वे भी समाज में सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
• आध्यात्मिकता के प्रति जागरूक करना: संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संगों में शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान और पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की वाणियों से शिक्षा देते हैं, जो व्यक्ति के भीतर बदलाव ला देती है और बुराइयों के प्रति घृणा उत्पन्न करती है।
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1. अयोध्या के राम मंदिर में 1 महीने तक 24 घंटे निःशुल्क भंडारा करवाना
2. दहेज प्रथा का अंत
3. नशा मुक्त अभियान
4. रक्तदान शिविर
5. देहदान शिविर
6. नेत्र जांच निःशुल्क शिविर
7. प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य
8. निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा
9. बाढ़ पीड़ितों में बच्चों के लिए किताबें और कपड़े उपलब्ध कराना
10. माता-बहनों के लिए निःशुल्क बस सेवा
11. पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता अभियान
12. वृद्धों और अनाथों की देखभाल
13. महिला सशक्तिकरण
14. कोरोना काल में घर-घर खाद्य सामग्री पहुँचाना
15. स्वच्छ समाज के लिए खेलों के बढ़ावे हेतु आर्थिक योगदान
16. कुरीतियों और अंधविश्वास का खंडन
17. भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान
18. सामाजिक समानता और जातिवाद का विरोध
19. पाखंडवाद का विरोध
20. छुआछूत निषेध
21. रिश्वत पर प्रतिबंध
22. सभी प्रकार के नशे का निषेध
23. भ्रष्टाचार को खत्म करना
24. युवाओं में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति लाना
25. समाज में शांति और भाईचारा स्थापित करना
26. निःशुल्क दांत चिकित्सा शिविर का आयोजन
27. रेल हादसों में सहायता
28. बिहार, हरियाणा जैसे अन्य राज्यों में बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री पहुँचाना

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संत रामपाल के बेटे ने बदली दान की परंपरा, जाट महासभा को दिया ऐतिहासिक यो...
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संत रामपाल जी महाराज जी परमेश्वर कबीर साहेब के अवतार, अध्यात्मिक रहनुमा होने के साथ साथ एक समाज सुधारक भी है। एक स्वस्थ एवं स्वच्छ समाज क�� स्थापना हेतू संत रामपाल जी ने नशा मुक्त, समाज की नींव रखी। उनके शरण में आने वाले लाखों नशाखोर लोग अब नशा त्याग चुके हैं। वो सभी लोग जो नशा मुक्त होना चाहते हैं, वे संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सुने और अपने नजदीकी नाम दीक्षा केंद्र से संपर्क करें.
संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में बेटियों का जीवन सुखमय बनाने के लिए उनके शिष्य अपने बच्चों के विवाह में दहेज का लेन-देन नहीं करते, इस तरह दहेज प्रथा मुक्त समाज का निर्माण संभव हो रहा है। बेटियों को गर्भ से गिरा दिया जाता है। भगत समाज में गर्भपात व भ्रुण हत्या पर रोक लगा दी है।
संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में हर वर्ष 4-5 भंडारे आयोजित किए जाते हैं जिनमें नेत्र जांच शिविर, दांत चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर लगाए जाते हैं। जिनमें उनके शिष्य बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। देह दान करते हैं। इसके अलावा
प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य करना, निशुल्क एम्बुलेंस सेवा, वृक्षारोपण, वृद्धों और अनाथों की देखभाल, कुरीतियों और अंधविश्वास का खंडन, सामाजिक समानता, छुआछूत निषेध, युवाओं में अध्यात्मिक चेतना आदि अनेकों समाज सुधारक कार्य किए जा रहे हैं। करोड़ों भगत इन कार्यों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
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संत रामपाल के बेटे ने बदली दान की परंपरा, जाट महासभा को दिया ऐतिहासिक यो...
न1. अयोध्या के राम मंदिर में 1 महीने तक 24 घंटे निःशुल्क भंडारा करवाना
2. दहेज प्रथा का अंत
3. नशा मुक्त अभियान
4. रक्तदान शिविर
5. देहदान शिविर
6. नेत्र जांच निःशुल्क शिविर
7. प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य
8. निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा
9. बाढ़ पीड़ितों में बच्चों के लिए किताबें और कपड़े उपलब्ध कराना
10. माता-बहनों के लिए निःशुल्क बस सेवा
11. पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता अभियान
12. वृद्धों और अनाथों की देखभाल
13. महिला सशक्तिकरण
14. कोरोना काल में घर-घर खाद्य सामग्री पहुँचाना
15. स्वच्छ समाज के लिए खेलों के बढ़ावे हेतु आर्थिक योगदान
16. कुरीतियों और अंधविश्वास का खंडन
17. भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान
18. सामाजिक समानता और जातिवाद का विरोध
19. पाखंडवाद का विरोध
20. छुआछूत निषेध
21. रिश्वत पर प्रतिबंध
22. सभी प्रकार के नशे का निषेध
23. भ्रष्टाचार को खत्म करना
24. युवाओं में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति लाना
25. समाज में शांति और भाईचारा स्थापित करना
26. निःशुल्क दांत चिकित्सा शिविर का आयोजन
27. रेल हादसों में सहायता
28. बिहार, हरियाणा जैसे अन्य राज्यों में बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री पहुँचाना
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मदर टेरेसा
मदर टेरेसा (मूल नाम: एग्नेस गोंझा बोयाज्यू) दुनिया भर में निस्वार्थ सेवा, प्रेम और मानवता की प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। उनका पूरा जीवन गरीबों, बीमारों और बेसहारा लोगों की सेवा में समर्पित था। चलिए जानते है मदर टेरेसा का जीवन परिचय के बारे में
प्रारंभिक ज���वन
जन्म: 26 अगस्त 1910, स्कॉप्जे, ओटोमन साम्राज्य (अब उत्तरी मेसिडोनिया)।
परिवार: मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाज्यू था। वे एक कैथोलिक अल्बानियाई परिवार से थीं। उनके पिता निकोला एक व्यवसायी थे, जबकि उनकी मां ड्राना धार्मिक और दयालु स्वभाव की महिला थीं।
बचपन से ही एग्नेस को गरीबों की मदद करने की प्रेरणा मिली। उनके पिता का निधन तब हुआ जब वे केवल 8 साल की थीं।
धार्मिक जीवन की शुरुआत
18 साल की उम्र में, एग्नेस ने नन बनने का निर्णय लिया और आयरलैंड में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो मिशनरी में शामिल हो गईं।
1929: एग्नेस भारत आईं और कोलकाता (तब का कलकत्ता) के सेंट मैरी स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू किया।
"मिशनरी ऑफ चैरिटी" की स्थापना
1946: मदर टेरेसा को एक "दिव्य पुकार" महसूस हुई, जिसमें उन्होंने महसूस किया कि उन्हें गरीबों और बीमारों की सेवा करनी चाहिए।
1950: उन्होंने "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" नामक संस्था की स्थापना की।
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य गरीबों, अनाथों, कुष्ठ रोगियों और मरने वाले लोगों की सेवा करना था।
कोलकाता में उन्होंने "निर्मल हृदय" नामक आश्रय स्थल बनाया, जहां असहाय और बीमार लोगों की देखभाल की जाती थी।
प्रमुख कार्य और योगदान
गरीबों और बीमारों की सेवा:
मदर टेरेसा ने बेसहारा, भूखे, और बीमार लोगों की देखभाल की।
कुष्ठ रोगियों और अनाथ बच्चों के लिए आश्रय:
उन्होंने कुष्ठ रोगियों और अनाथ बच्चों के लिए कई घर और अस्पताल बनाए।
मानवता की सेवा का विस्तार:
उनकी संस्था ने केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जरूरतमंदों की सेवा के लिए केंद्र खोले।
पुरस्कार और सम्मान
मदर टेरेसा को उनके निस्वार्थ सेवा कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले:
नोबेल शांति पुरस्कार (1979): मानवता की सेवा के लिए।
भारत रत्न (1980): भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
पद्मश्री (1962): समाज सेवा के लिए।
आर्डर ऑफ मेरिट: ब्रिटिश सरकार द्वारा।
निधन और संत की उपाधि
निधन: 5 सितंबर 1997, कोलकाता, भारत।
संत की उपाधि: 4 सितंबर 2016 को, पोप फ्रांसिस ने उन्हें कैथोलिक चर्च द्वारा "संत टेरेसा" का दर्जा दिया।
विरासत
आज उनकी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी 100 से अधिक देशों में जरूरतमंदों की सेवा कर रही है।
मदर टेरेसा का जीवन सिखाता है कि सच्चा धर्म मानवता की सेवा करना है।
मदर टेरेसा के जीवन से शिक्षा
निस्वार्थ प्रेम और करुणा मानवता का सबसे बड़ा रूप है।
सेवा का कोई धर्म, जाति, या सीमा नहीं होती।
आशा है यह ब्लॉग मदर टेरेसा के बारे में आपकी कुछ मदद कर सके
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1. अयोध्या के राम मंदिर में 1 महीने तक 24 घंटे निःशुल्क भंडारा करवाना
2. दहेज प्रथा का अंत
3. नशा मुक्त अभियान
4. रक्तदान शिविर
5. देहदान शिविर
6. नेत्र जांच निःशुल्क शिविर
7. प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य
8. निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा
9. बाढ़ पीड़ितों में बच्चों के लिए किताबें और कपड़े उपलब्ध कराना
10. माता-बहनों के लिए निःशुल्क बस सेवा
11. पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता अभियान
12. वृद्धों और अनाथों की देखभाल
13. महिला सशक्तिकरण
14. कोरोना काल में घर-घर खाद्य सामग्री पहुँचाना
15. स्वच्छ समाज के लिए खेलों के बढ़ावे हेतु आर्थिक योगदान
16. कुरीतियों और अंधविश्वास का खंडन
17. भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान
18. सामाजिक समानता और जातिवाद का विरोध
19. पाखंडवाद का विरोध
20. छुआछूत निषेध
21. रिश्वत पर प्रतिबंध
22. सभी प्रकार के नशे का निषेध
23. भ्रष्टाचार को खत्म करना
24. युवाओं में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति लाना
25. समाज में शांति और भाईचारा स्थापित करना
26. निःशुल्क दांत चिकित्सा शिविर का आयोजन
27. रेल हादसों में सहायता
28. बिहार, हरियाणा जैसे अन्य राज्यों में बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री पहुँचाना
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अनाथों के नाथ हैं काशी विश्वनाथ, ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक किया
इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में द्वादश पार्थिव ज्योर्तिलिंग का पूजन, अभिषेक एवं एक लाख रूद्री निर्माण चल रहा है। जिसके तहत रविवार को काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक मुख्य यजमान मीना डोनी, प्रियांशी डोनी, छवि डोनी, शिवराज डोनी, मनोज डोनी, मनीषा डोनी, आस्था डोनी, अकक्षिता डोनी, गोपाल नामदेव, प्रतिभा नामदेव, गौहरपाल नामदेव ने किया। मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे बताया कि यह प्राचीन…
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