#अनमोल वचन
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📚 श्रीमद्भागवत गीता जी में वर्णित 3 गुण क्या हैं?वही तीन गुणों को जानने और समझने के लिए...
🙏🏻 जानने के लिए अवश्य पढ़े पवित्र ग्रंथों पर आधारित पुस्तक ज्ञान गंगा।
📘संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक निःशुल्क प्राप्त करने के लिए हमें नीचे दिए गए लिंक पर अपना नाम, पूरा पता और मोबाइल नंबर भेजें ⤵️⤵️
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हिंदी साहित्य
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#shri krishna vachan#shri krishna vachan in hindi#श्रीमद्भगवद्गीता श्री कृष्ण अनमोल वचन#shri krishna ke vachan
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#जयगुरुदेव#जय गुरुदेव नाम प्रभु का#जयहिन्द#जयहिन्दफौज#जय गुरुदेव#जय गुरुदेव अनमोल वचन#जय गुरुदेव जिला राजकोट संगत (गुजरात)#परम् पूज्य संत बाबा जय गुरुदेव जी महाराज के अनमोल वचन
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#शराब_से_छुटकारा
देवता भी मनुष्य जीवन को तरसते हैं क्योंकि मोक्ष मनुष्य जीवन में ही हो सकता है।
परमात्मा का विधान है कोई भी नशा करने वाला मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता और आप इस अनमोल जीवन को शराब पीने में बर्बाद कर रहे हो
सुनें संत रामपाल जी महाराज के अमृत वचन साधना टीवी पर 7:30 p.m
#santrampaljiquotes#santrampalji is trueguru#santrampaljimaharaj#across the spiderverse#succession#satlokashram#supreme god kabir
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#शराब_से_छुटकारा
देवता भी मनुष्य जीवन को तरसते हैं क्योंकि मोक्ष मनुष्य जीवन में ही हो सकता है।
और परमात्मा का विधान है कोई भी नशा करने वाला मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता और आप इस अनमोल जीवन को शराब पीने में बर्बाद कर रहे हो।
मोक्ष की प्राप्ति के लिए अवश्य सुनें संत रामपाल जी महाराज के अमृत वचन साधना टीवी पर प्रतिदिन 7:30 p.m. से 8:30 p.m.
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#GodMorningTuesday
धनवान बनाने वाला भगवान
दान दिए धन घटे नहीं, यों कह गए साहेब कबीर।
कबीर साहेब का यह वचन बताता है कि सच्चे मन से दान करने से कभी धन नहीं घटता, बल्कि जीवन में संतोष और आनंद बढ़ाता है।
@SaintRampalJiM
🔔अधिक जानकारी के लिए पढ़ें अनमोल पुस्तक 📚"ज्ञान गंगा"📚

#kabir is supreme god#sa news channel#satlok_vs_earth#santrampaljimaharaj#satlokashram#santrampaljiquotes
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शारदीय नवरात्रि: देवी दुर्गा की पूजा और शास्त्रों का वास्तविक ज्ञान | Sa...
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आध्यात्मिक सत्संग जरूर सुनिए संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल वचन 🙏🏻🙏🏻
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धरती को स्वर्ग बनाना है
#धरती_को_स्वर्ग_बनाना_है
#SantRampalJiMaharaj #Heaven #HeavenOnEarth #swarg #heavenly #heavenisreal #god #viralpost #trending #photography #photochallenge #photographychallenge
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी तरह आप भी सुखी हों, उनसे जुड़ने के बाद शरीर के सभी प्रकार के रोग नष्ट होंगे। सभी प्रकार के नशे छूट जाऐंगे। जीवन यापन के लिए थोड़ी कमाई से ही काम चल जाएगा। निर्धनता खत्म हो जाएगी।
अधिक जानकारी के लिए अनमोल और पवित्र पुस्तक "धरती ऊपर स्वर्ग" अवश्य पढ़ें।
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हे मानव! पढ़ अनमोल वचन,बनेगा धरती ऊपर स्वर्ग।
Sant Rampal Ji Maharaj Ji ने तत्वज्ञान के आधार पर बताया है कि हमने धरती के ऊपर नरक जैसा माहौल बेवजह की परंपराओं,रीति रिवाजों जैसे दहेज,भात परंपरा आदि के कारण बना रखा है जिनसे अब बचना है और सभी ने मिलकर बनाना है #धरती_ऊपर_स्वर्ग

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#सत_भक्ति_सन्देश
संत रामपाल जी महराज वचन
★ यह अनमोल ज्ञान पूरे विश्व में फैलेगा ।
★ पूरी धरती स्वर्ग के समान होगी ।
★ पूरी पृथ्वी पर कबीर परमात्मा की भक्ति होगी ।
★ कलयुग में फिर से सतयुग आएगा ।
★ 1000 वर्ष तक यह ज्ञान चलेगा ।
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#आध्यात्मिक_ज्ञान_गंगाPart14 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#आध्यात्मिक_ज्ञान_गंगाPart15
॥ ब्रह्म(काल) भगवान द्वारा पूर्ण परमात्मा का वास्तविक ज्ञान अर्जुन को बताना ॥
अध्याय 18 के श्लोक 59,60 में फिर भगवान कह रहा है अर्जुन मन-इन्द्रियों को वश करके राग-द्वेष रहित होकर कर्म कर। तू अहंकार वश होकर कह रहा है मैं युद्ध नहीं करूंगा। युद्ध न करना भी तेरे बस की बात नहीं। तू भी स्वभाव वश होकर (क्षत्री होने के कारण) युद्ध अवश्य करेगा। जब अर्जुन बहुत दुःखी हो जाता है तथा सोचता है यह क्या? मरो और मारो। तब काल उसे सांत्वना देने के लिए बीच-2 में सच्चाई कहते हैं। श्लोक 61,62 में कहा है कि वह अविनाशी परमात्मा (पूर्णब्रह्म) शरीर रूपी मशीन में शक्ति की तरह स्थिति अपनी शक्ति से कर्मानुसार घुमाता है जो सब प्राणियों के हृदय में स्थित है। हे अर्जुन ! सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में चला जा। उस परमात्मा (पूर्णब्रह्म) की कृप्या से परम शान्ति अर्थात् जन्म-मरण से पूर्ण रूप से मुक्त हो जाएगा तथा सनातन परम स्थान (उत्तम लोक सतलोक) को प्राप्त होगा।
अध्याय 18 के श्लोक 63 में गीता ज्ञान दाता भगवान कह रहा है कि यह गुप्त से भी गुप्त गीता ज्ञान तुझे कह दिया। तू मेरा बहुत प्रिय है। अब जो अच्छा लगे वो कर। यदि मेरी शरण में रहना है तो तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी तथा अन्य देवों) की पूजा त्याग कर अनन्य मन से मेरी साधना ओ३म् मंत्र के जाप से कर (गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, गीता अध्याय 8 श्लोक 13)। मेरी साधना भी अश्रेष्ठ है (गीता अध्याय 7 श्लोक 18)। इसलिए उस परमेश्वर की शरण में जा उसके लिए किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर। मैं उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि को नहीं जानता (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) l
।। ब्रह्म (काल) का भी उपास्य देव पूर्णब्रह्म ।।
अध्याय 18 के श्लोक 64 में भगवान कह रहा है कि सर्व ज्ञानों से भी गोपनीय मेरे अनमोल वचनों को फिर सुन। इसलिए यह हितकारक वचन तुझे फिर कहूँगा। वास्तव में मेरा उपास्य देव भी यही पूर्णब्रह्म ही है।
अध्याय 18 का श्लोक 64
सर्वगुह्यतमम्, भूयः, श्रृणु, मे, परमम्, वचः,
इष्टः, असि, मे, दृढम्, इति, ततः, वक्ष्यामि, ते, हित्तम् । ।64 ।।
अनुवादः (सर्वगुह्यतमम्) सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय (मे) मेरे (परमम्) परम रहस्ययुक्त (हितम्) हितकारक (वचः) वचन (ते) तुझे (भूयः) फिर (वक्ष्यामि) कहूँगा (ततः) इसे (श्रृणु) सुन (इति) यह पूर्ण ब्रह्म (मे) मेरा (दृढम्) पक्का निश्चित (इष्टः) इष्टदेव अर्थात् पूज्यदेव (असि) है। (64)
केवल हिन्दी अनुवाद : सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त हितकारक वचन तुझे फिर कहूँगा इसे सुन यह पूर्ण ब्रह्म मेरा पक्का निश्चित इष्टदेव अर्थात् पूज्यदेव है।
अध्याय 18 के श्लोक 65 में एक मन वाला मतावलम्बी अर्थात् मेरे में मनवाला हो मुझ को (गुरु रूप में) प्रणाम कर (परंतु रह मेरे आश्रित) इसलिए मुझे ही प्राप्त होगा। तुझसे यह सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ। तू मेरा अत्यन्त प्रिय है।
।। ब्रह्म (काल) द्वारा अर्जुन को एक पूर्णब्रह्म की शरण में जाने को कहना।।
अध्याय 18 के श्लोक 66 में भगवान (काल) कह रहा है तू एक मेरी सर्व धार्मिक पूजाओं को मुझ में त्याग कर तू उस अद्वितीय पूर्णब्रह्म की शरण में जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त करवा दूंगा। चिंता मत कर।
अध्याय 18 का श्लोक 66
सर्वधर्मान्, परित्यज्य, माम्, एकम्, शरणम्, व्रज,
अहम्, त्वा, सर्वपापेभ्यः, मोक्षयिष्यामि, मा, शुचः ॥
अनुवाद: गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में जिस परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है इस श्लोक 66 में भी उसी के विषय में कहा है कि (माम्) मेरी (सर्वधर्मान्) सम्पूर्ण पूजाओंको (माम्) मुझ में (परित्यज्य) त्यागकर तू केवल (एकम्) एक उस अद्वितीय अर्थात् पूर्ण परमात्मा की (शरणम्) शरणमें (व्रज) जा। (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (सर्वपापेभ्यः) सम्पूर्ण पापोंसे (मोक्षयिष्यामि) छुड़वा दूँगा तू (मा, शुचः) शोक मत कर।
केवल हिन्दी अनुवाद : गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में जिस परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है इस श्लोक 66 में भी उसी के विषय में कहा है कि मेरी सम्पूर्ण पूजाओंको मुझ में त्यागकर तू केवल एक उस अद्वितीय अर्थात् पूर्ण परमात्मा की शरणमें जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे छुड़वा दूँगा तू शोक मत कर।
विशेष :-
अध्याय 18 के श्लोक 61 से 66 तक का भावार्थ है कि गीता ज्ञान दाता काल (ब्रह्म/क्षरपुरुष) कह रहा है कि जो पूर्ण परमात्मा (अन्य पुरुषोत्तम/अविनाशी परमात्मा/परम अक्षर ब्रह्म) सर्व जीवों के हृदय में स्थित है वही प्राणियों को कर्मानुसार यन्त्र (मशीन) की तरह घुमाता है अर्थात् कर्म आधार पर स्वर्ग-नरक-जन्म-मरण, चौरासी लाख जूनियों में चक्र कटवाता है। जो प्राणी उस (पूर्णब्रह्म/सतपुरुष) परमात्मा की शरण में नहीं है और क्षर पुरुष (ब्रह्म-काल) व तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की तथा ��ेवी-देवताओं की उपासना करता है या बिल्कुल नहीं करता है। जैसे भी कर्म बनते हैं उनके आधार पर कर्मों का फल वही सर्वव्यापक परमात्मा (सतपुरुष) ही देता है। जैसे प्रहलाद भक्त विष्णु उपासक था तो उसकी रक्षा के लिए वह परमात्मा (पूर्णब्रहा/सतपुरुष) ही नृसिंह रूप बना कर आया, हिरणाकशिपु को मारा तथा पश्चात् विष्णु रूप दिखा कर भक्त प्रहलाद को कृतार्थ किया। जो भक्त जिसका उपासक है उस भक्त की रक्षा वही पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) ही करता है तथा भक्त की श्रद्धा बनाए रखने के लिए उसी के इष्ट का रूप बना कर आता है। जो भक्ति करते हैं या नहीं करते उन सबका हिसाब धर्मराज रखता है। जो कर्मों का आधार है उसी परमात्मा के निर्देश पर फल देता है।
जो उस परमात्मा (पूर्णब्रह्म) की शरण में पूर्ण गुरु के माध्यम से जाता है। वह भक्त (योगी) जन्म-मरण चौरासी लाख जूनियों से छूट जाता है तथा सतलोक (सच्चे लोक/सच्च खण्ड/सनातन स्थान) को प्राप्त होता है तथा पूर्ण मुक्त हो जाता है। कुछ अस्थाई मुक्ति (राहत) भगवान काल (क्षर पुरुष) भी दे सकता है उसके लिए क्षर ब्रह्म कहता है कि ब्रह्मा-विष्णु-शिव व देवी-देवताओं की पूजा त्याग कर केवल मुझ (ब्रह्म) की अव्याभिचारिणी (अनन्य मन से) भक्ति गुरु बना कर करने से मुझ (काल) को प्राप्त होगा। उस साधक की चौथी मुक्ति (महास्वर्ग/ब्रह्मलोक में स्थापित) कर देगा। अपनी कमाई (पुण्यों) को समाप्त करके काल (क्षर, ब्रह्म) की महाप्रलय के समय समाप्त हो जाएगा और फिर जब काल (क्षर) सृष्टी रचेगा उसमें फिर वही चौथी मुक्ति वाले साधक जन्म-मरण व चौरासी लाख जूनियों में अवश्य जाएंगे। क्योंकि क्षर ब्रहा का संविधान है कि जैसे कर्म प्राणी करेगा उन सर्व (अच्छे व बुरे) कर्मों का फल उस (जीव) को भोगना पड़ेगा। यह अटल नियम (मत) है। अच्छे कर्मों के लिए स्वर्ग, महास्वर्ग तथा बुरे कर्मों के लिए नरक तथा कुछ अच्छे और कुछ बुरों के मिश्रण से चौरासी लाख योनियों में भी कष्ट उठाना पड़ेगा। यह काल (क्षर ब्रह्म) भगवान की साधना का परिणाम है। इसलिए काल (क्षरपुरुष) ने अध्याय 7 के श्लोक 18 में स्पष्ट कहा है कि जो परमात्मा प्राप्ति की कोशिश कर रहे हैं वे मानव शरीरधारी ज्ञानी आत्मा उद्धार हैं परंतु वे मेरी (काल की) ही अनुत्तम (घटिया) गति (मुक्ति) में अच्छी तरह व्यवस्थित हैं अर्थात् उन नादानों को उस पूर्ण ब्रह्म परमात्मा को पाने का ज्ञान न होने से वे मेरे (काल) पर ही पूर्ण आश्रित हैं जिससे वे पूर्ण शांति (पूर्ण मुक्ति) से वंचित रहते हैं। इसलिए क्षर ब्रह्म (काल) अध्याय 18 के श्लोक 62 में स्पष्ट कह रहा है कि उस परमात्मा की शरण में जा जिससे परम शांति (पूर्ण मुक्ति) व सनातन स्थान (सतलोक) को प्राप्त होगा। फिर अध्याय 18 के ही श्लोक 62 से 66 में कहा है कि अर्जुन अब तू सोच ले मेरी शरण में रहना चाहता है या उस परमात्मा की शरण में जाना चाहता है। यह गुप्त से भी गुप्त उस परमात्मा का ज्ञान तेरे को दिया है और गुप्त से भी ��ति गुप्त मेरे अनमोल वचन सुन तूं मेरा अति प्रिय है इसलिए तुझे बताता हूँ कि तू उस एक (पूर्णब्रह्म) परमात्मा की शरण में जा। जो मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी यही (पूर्णब्रह्म ही) है। यदि तू (अर्जुन) मेरी शरण में रहना चाहता है तो मेरे को ही प्राप्त होगा अर्थात् महास्वर्ग में जाएगा, मैं (काल) सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि मेरी शरण में रहेगा तो युद्ध अवश्य करना होगा। यहाँ तो मारो मार बनी रहेगी। वह भी जब होगा जब मेरे विधान (मत) के अनुसार साधना करेगा। यदि ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी-देवताओं, पितरों व भूतों की पूजा भी साथ करता रहेगा तो भी मुझे प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि यह व्यभिचारिणी भक्ति है जो एक इष्ट पर आधारित नहीं होते। वे व्याभिचारिणी भक्ति कर रहे हों उन्हें कोई लाभ नहीं हो सकेगा। अध्याय 18 के श्लोक 66 में कहा है कि उस परमात्मा से लाभ लेना है तो मेरी सर्व पूजाएँ मुझमें त्याग कर अर्थात् इन्हें भी छोड़ कर उस एक (पूर्णब्रह्म) की शरण जा। फिर मैं तेरे को सर्व पापों से छुड़वा दूँगा। तू चिंता मत कर।
।। अर्जुन, भगवान ब्रह्म (काल) की शरण में रहा फिर भी पाप मुक्त नहीं हुआ।।
विशेष : अध्याय 18 के श्लोक 73 में अर्जुन कहता है कि मैं आपकी शरण में ही रहूँगा अर्थात् आपकी आज्ञा का पालन करूँगा। में युद्ध करूँगा। इसीलिए अर्जुन को काल भगवान पाप मुक्त नहीं कर सका। क्योंकि यह नादान अर्जुन काल की शरण में रहा। अर्जुन भी बेचारा क्या करे? प्रथम तो इतना डराया कि काँपने लग गया फिर उस परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग काल भगवान ने नहीं बताया। ऊँ मन्त्र तथा यज्ञों का करना बताया जो उस परमात्मा को पाने का नहीं है अपितु काल जाल में ही रहने का है इसलिए तो अर्जुन पाप मुक्त नहीं हुआ। चूंकि प्रमाण है कि युद्ध में विजय के उपरांत राजा युधिष्ठिर को बुरे स्वपन आने लगे। तब भगवान कृष्ण ने उन्हें एक यज्ञ की सलाह दी कि यज्ञ करो। क्योंकि तुम्हें युद्ध में किए पाप कर्म दुःखी कर रहे हैं। जबकि अर्जुन तो उन्हें अजम-अनादि तथा सर्व भूतों (प्राणियों) का महान् भगवान मानता ही था। प्रमाण के लिए देखें अध्याय 10 के श्लोक 12 से 14 तक। क्योंकि अर्जुन ने तो उनका काल (विराट) रूप अपनी आँखों से देखा था। यह तो हो ही नहीं सकता कि अर्जुन काल (ब्रह्म) को सर्व प्राणियों का महान ईश्वर व अजन्मा अनादि न मानता हो। फिर पाप कर्म जो युद्ध में हुए थे, को समाप्त करने की सलाह स्वयं भगवान कृष्ण ने दी थी कि तुम अंतिम स्वांस तक हिमालय में जा कर तप करो तथा वहीं शरीर समाप्त कर दो। तुम्हारे पाप जो युद्ध में हुए थे समाप्त हो जाएंगे। चारों पाण्डवों का शरीर हिमालय की बर्फ में शरीर गल कर नष्ट हो गया साथ में द्रौपदी तथा कुन्ती का भी तथा पांचवें युधिष्ठिर का केवल पंजा गला। चूंकि युधिष्ठिर ने झूठ बोला था कि अश्वत्थामा (द्रोणाचार्य का पुत्र) मर गया जबकि अश्वत्थामा मरा नहीं ��ा। काल भगवान ने ही श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश होकर युधिष्ठर से झूठ बुलवाया था। चारों पाण्डव (भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) तथा द्रौपदी व कुंती आदि भी नरक में डाले गए जिसका प्रमाण महाभारत में पृष्ठ नं. 1683 पर है और कुछ समय युधिष्ठिर को भी धोखे से नरक में डाला गया। फिर पाप मुक्त कौन हो सकता है? कृपया पाठक विचारें तथा सतगुरु कबीर साहेब के नुमायन्दे तत्वदर्शी संत से नाम ले कर काल लोक से छुटकारा करवाएँ।
जैसा कि गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 और अध्याय 8 के श्लोक 21 में स्पष्ट है कि स्वयं गीता ज्ञान दाता भगवान कह रहा है कि हे अर्जुन ! मेरा उपास्य देव = (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं (काल) भी उसी की शरण हूँ तथा वहीं सनातन स्थान (सतलोक) मेरा (काल का) भी वास्तविक ठिकाना (स्थान) है अर्थात् मेरा परम धाम भी वही है। क्योंकि ब्रह्म (काल पुरुष) भी वहीं (सतलोक) से निष्कासित है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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