#अनंत ठाकुर
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* भक्त की डांट पर ठाकुर जी रीझे...
करमानंद अपने गायन से प्रभु की सेवा किया करते थे। इनका गायन इतना भावपूर्ण होता था कि पत्थर-हृदय भी पिघल जाता था। ज्यादा दिनों तक इनको गृहस्थ जीवन रास नहीं आया और ये सब कुछ छोड़कर निकल पड़े। इनके पास केवल दो चीज़ें ही थी... एक छड़ी और दूसरा ठाकुर बटुआ जिसे ये गले में लटका कर चलते थे। ये जहाँ विश्राम करने के लिये रुकते थे वहाँ छड़ी को गाड़ देते थे और उस पर ठाकुर बटुआ लटका देते थे। इससे ठाकुर जी को झूला झूलने का आंनद मिलता था।
एक दिन ये सुबह-सुबह ठाकुर जी की पूजा करके श्री ठाकुर जी को गले में लटका कर चल दिए।उस समय ये भगवन्नाम में इतने डूबे हुए थे कि छड़ी को लेना भूल गए।
अब जब दूसरी जगह ये विश्राम करने के लिये रुके तो इन्हें छड़ी की याद आयी! अब समस्या थी कि ठाकुर जी को कैसे और कहाँ पधरावें? श्री ठाकुर जी में प्रेम की अधिकता के कारण इन्हें उनपर प्रणय-रोष हो आया।
ये गुस्सा करते हुए बोले; कि ठाकुर हम तो जीव हैं, हम कितना याद रखें? हम छड़ी भूल गए थे तो आपको याद दिलाना चाहिए था न! अब दूसरी छड़ी कहाँ से लाएंगे आप को पध्राने के लिए? पिछली जगह भी बहुत दूर है और ये भी पक्का नहीं है कि वहाँ छड़ी मिल भी जाएगी या नही। ये ठाकुर जी से खूब लड़े और बोले; बस छड़ी लाकर दो!!
श्री ठाकुर जी इनकी डाट-फटकार पर खूब रीझे। प्रभु की योगमाया ने छड़ी लाकर दे दी! अब ये फिर रोने लगे कि इन्होंने प्रभु को क्यों डाँटा?
जब इन्होंने क्षमा मांगी तो प्रभु ने कहा कि यह मेरी ही लीला थी, मुझे डाँट सुननी थी।
भगवान ने कहा कि जब यहाँ हम और तुम दो ही हैं तो अगर कुछ कहने-सुनने, लड़ने-झगड़ने की इच्छा होगी तो कहाँ जायेंगे, किससे लड़ेंगे?
प्रभु की यह बात सुनकर श्री करमानंद जी तो ��्रेम सागर में डूब गए!
:- कुछ करो या न करो, पर प्रभु से प्रेम ज़रूर करो। प्रभु से प्रेम करोगे तो भगवान का अनंत प्रेम पाओगे। प्रेम में रहोगे तो हर क्रिया साधना बन जायेगी l जैसे : छड़ी पर लटकाए जाना- "प्रभु को झूला झुलाने की सेवा बन गई"। प्रेम से की गई हर सेवा, श्री ठाकुर जी को रिझा देती है। प्रेम नहीं है तो कुछ नहीं, सब व्यर्थ हो जायेगा। प्रभु से प्रेम करो तो, श्री हरि खुद दौड़े चले आयेंगे जैसे छड़ी के लिये डाँट पड़ने पर खुद भक्त के सामने छड़ी लेकर आ गए।
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Anant Ambani Wedding: मुकेश अंबानी ने अपने पुत्र अनंत की शादी का पहला निमंत्रण मंगलवार को वृन्दावन स्थित ठाकुर बांके बिहारी को भेजा और उनसे पुत्र एवं पुत्रवधू को आशीर्वाद देने की प्रार्थना की
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( #Muktibodh_part181 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part182
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 348-349
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ तोड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचां-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है।
चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, व�� उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह
लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा।
उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमान परमात्मा ने अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई।
चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आप तो कसाई से भी अधिक हिंसक हैं। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है। उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनायें जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
कबीर परमेश्वर ने कहा कि और सुन। तुम कितनी जीव हिंसा करते हो?
◆पारख के अंग की वाणी नं. 1026-1036 :-
शब्द स्वरूपी रूप हमारा, क्या दिखलावै अचार बिचारा।
सतरि ब्राह्मण की है हत्या, जो चौका तुम देहौ नित्या।।1026।।
ब्राह्मण सहंस हत्या जो होई, जल स्नान करत हो सोई।
चौके करम कीट मर जांही, सूक्ष्म जीव जो दरसैं नाहीं।।1027।।
हरी भांति पृथ्वी के रंगा, अंनत कोटि जीव उड़ैं पतंगा।
तारक मंत्र कोटि जपाहीं, वाह जीव हत्या उतरै नाहीं।।1028।।
पृथ्वी ऊपर पग जो धारै, कोटि जीव एक दिन में मारै।
करै आरती संजम सेवा, या अपराध न उतरै देवा।।1029।।
ठाकुर घंटा पौंन झकोरैं, कोटि जीव सूक्ष्म शिर तोरैं।
ताल मृदंग अरू झालर बाजैं, कोटि जीव सूक्ष्म तहां साजैं।।1030।।
धूप, दीप और अर्पण अंगा, अनंत कोटि जीव जरैं बिहंगा।
एती हिंसा करत हो सारे कैसे दीदार करो करतारे।।1031।।
स्वामी सेवक बूडत बेरा, मार परै दरगह जम जेरा।
ऐसा ज्ञान अचंभ सुनाऊं, पूजा अर्पण सबै छुडाऊं।।1032।।
झाड़ी लंघी करत हमेशा, सूक्ष्म जीव होत हैं नेशा।
खान पान में दमन पिरानी, कैसैं पावैं मुक्ति निशानी।।1033।।
कोटि जीव जल अचमन प्रानी, यामैं शंकि सुबह नहीं जानी।
कहौ कैसैं बिधि करौ अचारं, त्रिलोकी का तुम शिर भारं।।1034।।
रापति सूक्ष्म एकही अंगा, अल्प जीव जूंनी जत संगा।
योह जतसंग अभंगा होई, कहौ अचार सधै कहां लोई।।1035।।
आत्म जीव हतै जो प्राणी, जो कहां पावै मुक्ति निशानी।
उरध पींघ जो झूलै भेषा, जिनका कदे न सुलझै लेखा।।1036।।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1026-1036 का सरलार्थ :- कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! जो खाना बनाने के स्थान पर यानि चूल्हे तथा आसपास के क्षेत्रा को प्रतिदिन लीपते
हो तथा पोंचा लगाते हो। पूजा के स्थान पर लीपते हो (डनक च्सेंजमत करते हो)। उसमें सत्तर ब्राह्मणों की हत्या के समान पाप लगता है। इतनी जीव हिंसा होती है। जो आप तीर्थ वाले तालाब में स्नान करते हो, उसके जल में असँख्यों जीव होते हैं।
जो आप मल-मलकर स्नान करते हो, असँख्यों जीवों की मृत्यु हो जाती है। वह पाप एक हजार ब्राह्मणों की हत्या के समान लगता है। पृथ्वी के ऊपर घास के अंदर भी जीव हैं। कुछ तो पृथ्वी के रंग जैसे हैं, कुछ घास के रंग जैसे हैं। कुछ सूक्ष्म हैं जो दिखाई भी नहीं देते।
एक दिन में करोड़ों जीव पृथ्वी के ऊपर चलने से मर जाते हैं। जो आप आरती करते हो, उस समय ज्योति जलाते हो। उसमें जीव मरते हैं। घंटी बजाते हो, झालर बजाते हो, ताल मृदंग बजाते हो, उनमें करोड़ों जीव मर जाते हैं। (धूप) अगरबत्ती के धुँऐ में करोड़ों जीव
वायु वाले मरते हैं। इतने पाप करते हो तो आपको परमात्मा के दर्शन कैसे होंगे? और सुन! (झाड़ी लंघी) टट्टी-पेशाब करते हो, उसमें जीव मरते हैं। खाना खाते हो, पानी पीते हो,
उसमें भी जीव हिंसा होती है। कैसे मुक्ति पाओगे? आप बताओ कि इतना पाप करते हो तो आपका आचार-विचार यानि क्रियाकर्म भक्ति की शुद्धता कैसे रहेगी? आपने कहा था कि जो जीव हिंसा करते हैं, उनक�� मोक्ष कभी नहीं हो सकता। आपका मोक्ष भी कभी नहीं हो सकता।
मैं ऐसा अद्भुत ज्ञान सुनाऊँगा जिससे सब शास्त्रविरूद्ध साधना बंद हो जाएगी तथा ऐसा नाम जाप करने की दीक्षा दूँगा कि सब पाप कट जाएँगे। प्रतिदिन होने वाला उपरोक्त पाप
नाम के जाप से नाश हो जाएगा। (कबीर परमेश्वर जी ने आगे और बताया।)
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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( #Muktibodh_part159 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part160
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन क�� गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंड���त पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस(Republic Day) के अवसर पर पुलिस मेडल्स से सम्मानित होने वाले अधिकारियों एवं जवानों की सूची जारी कर दी है। गृह मंत्रालय से जारी मेडल लिस्ट में पुलिस मेडल फॉर गैलंट्री अवॉर्ड के लिए के लिए 7, प्रेसिडेंट पुलिस मेडल के लिए एक और पुलिस मेडल फॉर मेरीटोरियस सर्विस के लिए 10 पुलिस अधिकारियों एवं जवानों का चयन किया गया है इस अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने पुलिस मेडल्स से सम्मानित होने वाले सभी पुलिस अधिकारियों एवं जवानों को बधाई दी है। जारी सूची में पुलिस मेडल फॉर गैलंट्री अवॉर्ड के लिए आईपीएस अभिषेक पल्लव, आरआई वैभव मिश्रा, एसआई अश्विनी सिन्हा, एसआई यशवंत श्याम, एसआई उत्तम कुमार, हेड कांस्टेबल उशरू राम कोर्राम तथा एपीसी स्व. कृशपाल सिंह कुशवाह का चयन किया गया है। गृह मंत्रालय की तरफ से जारी सूची में प्रेसिडेंट पुलिस मेडल के लिए एडीजी विवेकानंद सिन्हा का चयन किया गया है। इसके अलावा मेरीटोरियस सर्विस ऑफ पुलिस मेडल के लिए रायपुर आईजी अजय कुमार यादव, बिलासपुर आईजी बद्रीनारायण मीणा, आईपीएस झाडूराम ठाकुर, ईओडब्ल्यू एसपी पंकज चंद्रा, एडिशनल एसपी अनंत कुमार साहू, इंस्पेक्टर कमलेश्वर सिंह, कंपनी कमांडर अर्जुन सिंह ठाकुर, प्लाटून कमांडर संजय कुमार दुबे, प्लाटून कमांडर हरिहर प्रसाद तथा हेड कांस्टेबल श्री बलवीर सिंह का चयन किया गया है।
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मास्क नहीं पहनने वालों से वसूले जुर्माना
मास्क नहीं पहनने वालों से वसूले जुर्माना
कुर्साकांटा। निज प्रतिनिधि मास्क नहीं लगाने वालों के खिलाफ पुलिस प्रशासन लगतार अभियान चला… Source link
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#Anant Thakur#Block Office#Hindi News#Hindustan#Kursakanta#Madhu Kumari#News in Hindi#Subhash Kumar Gupta#अनंत ठाकुर#कुर्साकांटा#प्रखंड कार्यालय#मधु कुमारी#सुभाष कुमार गुप्ता#हिन्दुस्तान
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हिंदी सिनेमा की फेवरेट 'मां' थीं बॉलीवुड की 'सुपरमैन', Twitter पर छाया पोस्टर
हिंदी सिनेमा की फेवरेट ‘मां’ थीं बॉलीवुड की ‘सुपरमैन’, Twitter पर छाया पोस्टर
निरूपा रॉय हिंदी फ़िल्मों की एक जानी-मानी अभिनेत्री हैं। (फोटो- @ बॉलीवुड अप्रत्यक्ष / ट्विटर) आपने निरूपा रॉय को अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और विनोद खन्ना की माँ के रूप में देखा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि निरूपा रॉय बॉलीवुड की ‘सुपरमैन’ भी हैं? जी लिया। न्यूज 18 आखरी अपडेट:19 जनवरी, 2021, 9:22 PM IST नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा के पर्दे पर देखी जाने वाली माँएँ ज्यादातर दुःख, दर्द, त्याग और ममता…
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पुराणों में और पौराणिक गाथाओं में प्रकृति की सभी वनस्पतियों को महत्वपूर्ण माना जाता है…. परंतु सभी में 'तुलसी' का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है
पुराणों में और पौराणिक गाथाओं में प्रकृति की सभी वनस्पतियों को महत्वपूर्ण माना जाता है…. परंतु सभी में ‘तुलसी’ का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है
पुराणों में और पौराणिक गाथाओं में प्रकृति की सभी वनस्पतियों को महत्वपूर्ण माना जाता है…. परंतु सभी में ‘तुलसी’ का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है…! संसार में केवल एकमात्र पौधा जिसे हम ‘मां’ कहकर संबोधित करते है। हर क्षेत्र में तुलसी की महिमा अनंत है तथा इनके बिना तो ठाकुर जी भी भोग स्वीकार नहीं करते ! विवाह जो की ��मारे संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है…, उसमें मां तुलसी का विवाह करवाना अत्यंत…
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हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं नवगीतकार श्री सोम ठाकुर जी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु, सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें और मां भारती की अनवरत सेवा करते रहें। #सोम_ठाकुर https://www.instagram.com/p/Cat3aIhLFMM/?utm_medium=tumblr
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jamshedpur-bar-association-जमशेदपुर बार एसोसिएशन से 8 अधिवक्ताओं का इस्तीफा, एसोसिएशन के खिलाफ नाराजगी
jamshedpur-bar-association-जमशेदपुर बार एसोसिएशन से 8 अधिवक्ताओं का इस्तीफा, एसोसिएशन के खिलाफ नाराजगी
जमशेदपुर : जमशेदपुर के जिला बार एसोसिएशन कार्य प्रणाली से नाखुश होकर 8 अधिवक्ताओं ने सामूहिक रूप से सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. मामले को लेकर गौरव पाठक, रवि ठाकुर, मणि सिंह, पुष्पा सिंह, आलोक सिंह, राज हंस तिवारी, अनंत गोप और विनीता सिंह शामिल है. अधिवक्ताओं ने बताया कि बीते कई दिनों से अधिवक्ताओं के बीच कई सारे मामले हुए पर जिला बार एसोसिएशन ने इन मामलों पर कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया. इसके…
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
क्रमशः______________
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( #Muktibodh_part159 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part160
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेत��ैं, बीज बिना क्या होय।
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केंद्रीय राज्य पत्तन, पोत, परिवहन व जलमार्ग मंत्री, मतुआ समुदाय के वरिष्ठ नेता एवं बनगांव से भाजपा सांसद श्री शांतनु ठाकुर जी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं। आपके सुखद सानंद एवं दीर्घायु जीवन की ईश्वर से कामना है। #ShantanuThakur (at बोकारो स्टील सिटी) https://www.instagram.com/p/CSHjx7KFW_x/?utm_medium=tumblr
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पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेम कुमार धूमल का आज है जन्मदिन, जयराम ठाकुर ने लिखा यह संदेश
प्रो. प्रेम कुमार धूमल का आज है जन्मदिन, जयराम ठाकुर ने लिखा यह संदेश
शिमला। भाजपा प्रदेश प्रभारी हिमाचल प्रदेश अविनाश राय खन्ना ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेम कुमार धूमल को उनके जन्मदिन पर दूरभाष द्वारा सुभकामनाए दी और पूर्व मुख्यमंत्री के उत्तम स्वास्थ्य एवं सुदीर्घ जीवन के लिए ईश्वर से कामना की। भाजपा प्रभारी ने ट्वीट कर कहा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल जी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं। ईश्वर…
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#Apna Himachal Apni Shaan#himachal news#Himachal Pradesh#latest news#state news#जयराम ठाकुर ने लिखा यह संदेश
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विधानसभा के चालू सत्र के दूसरे दिन 49 विधायकों ने शपथ ली। इस तरह दो दिनों में कुल 243 विधायकों में से 239 विधायकों की शपथ ग्रहण प्रक्रिया पूरी हो गई। दोनों दिन अनुपस्थित रहने के कारण 4 विधायकों का शपथ ग्रहण सदन में नहीं हो सका। महागठबंधन और एनडीए दोनों तरफ से 2-2 विधायक शपथ नहीं ले सके।
इसमें माले विधायक अमरजीत कुशवाहा और राजद विधायक अनंत कुमार सिंह जेल में हैं। जदयू के एक विधायक अनिरुद्ध प्रसाद यादव बीमार हैं तो दूसरे विधायक नरेन्द्र कुमार नीरज दूसरे दिन की कार्यवाही समाप्त होने के बाद देर से विधानसभा पहुंचे।
मंगलवार को शपथ लेने वाले 49 विधायकों में दो संस्कृत में, एक-एक अंग्रेजी उर्दू और मैथिली में तो 44 ने हिन्दी में शपथ ली। राजद की मंजू अग्रवाल और निर्दलीय सुमीत सिंह ने संस्कृत में शपथ ली। वहीं कांग्रेस के राजेश कुमार ने अंग्रेजी में तो राजद के मो. नेहालुद्दीन ने उर्दू में शपथ लिया।
पहले दिन शपथ नहीं लेने वाले मंत्री जीवेश कुमार ने मैथिली में शपथ ली। वहीं पहले दिन अनुपस्थित रहने वाले लाल बाबू प्रसाद, भाई वीरेन्द्र, प्रो. चंद्रशेखर, केदार नाथ सिंह और संजय तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी को प्रोटेम स्पीकर जीतन राम मांझी ने शपथ दिलायी।
इन सभी ने हिन्दी में शपथ ली। 17वीं विधानसभा के पहले सत्र के पहले दिन 190 विधायकों का शपथ ग्रहण कराया गया था। मंत्री जीवेश कुमार के शपथ लेने के बाद राज्य मंत्रिमंडल के कुल 14 में से मंत्री बने विधानसभा के सभी 9 सदस्यों की शपथ पूरी हो गई।
सभापति ने सहयोग मांगा, नेताओं ने आश्वासन दिया बिहार विधान परिषद् के 196वें सत्र के सुगम संचालन के लिए कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। इस बैठक में संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, सुशील कुमार मोदी, संजय कुमार झा, रामचन्द्र पूर्वे, देवेशचंद्र ठाकुर, केदारनाथ पांडेय, रीना यादव, संजीव श्याम सिंह, संतोष कुमार सिंह, प्रेमचंद मिश्र और आदित्य नारायण पांडेय मौजूद थे। सभापति ने सभी दलीय नेताओं से सदन के संचालन के लिए ��हयोग मांगा। सभी ने उन्हें सहयोग का भरोसा दिया। बैठक में कार्यकारी सचिव बिनोद कुमार सहित परिषद के अन्य पदाधिकारियों ने भी भाग लिया।
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बिहार विधान परिषद् (फाइल फोटो)
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Raag Kirwani When Manna Dey Sang For Raj Kapoor Instead Of Mukesh | रागदारी: किस गाने के साथ पहली बार राज कपूर की आवाज बने थे मन्ना डे?
Raag Kirwani When Manna Dey Sang For Raj Kapoor Instead Of Mukesh | रागदारी: किस गाने के साथ पहली बार राज कपूर की आवाज बने थे मन्ना डे?
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साल था 1956. अनंत ठाकुर बतौर डायरेक्टर अपने करियर की चौथी फिल्म बना रहे थे. इस फिल्म के लिए उन्होंने पहली बार उस दौर के बड़े स्टार्स को साइन किया था. फिल्म में भारतीय फिल्मों की सबसे हिट जोड़ियों में से एक राज कपूर और नरगिस थे. इसके अलावा प्राण और जॉनी वाकर जैसे कलाकार भी फिल्म का…
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