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Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad
Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad | In Conversation with Vandana Tribhuwan Singh
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में मौजूद हर अंग बेहद जरूरी होता है । सभी का अपना अलग कार्य होता है, जो हमें स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं । फेफड़े इन्हीं में से एक है, जो हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम का सबसे अहम हिस्सा है । यह हमें सांस लेने में काफी मदद करता है । हालांकि, कई वजहों से हमारे फेफड़े (Lungs) विभिन्न समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि फेफड़े में होने वाली इन बीमारियों के बारे में भी आप सतर्क रहें । फेफड़ों के स्वास्थ्य के महत्व और फेफड़ों की बीमारियों क�� रोकने के लिए जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य आम लोगों के बीच में फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना है | हमारे देश भारत में Covid-19 के बाद फेफड़े संबंधित बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ता जा रहा है और फेफड़ों के कैंसर सीओपीडी टीवी अस्थमा एवं एलर्जिक राइनाइटिस के मरीज निरंतर बढ़ते जा रहे हैं |
आखिर, भारत में फेफड़े संबंधी बीमारियों के बढ़ते मामलों की क्या है वजह और इससे बचने के क्या हैं उपाय? हमारे ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे साथ आज मौजूद है डॉ राजेंद्र प्रसाद जी जो आज की परिचर्चा के विषय The Vital Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases " पर प्रकाश डालेंगे |
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🧭संत रामपाल जी महाराज द्वारा किए जा रहे समाज कल्याण के कार्य🧭
संत रामपाल जी महाराज ने धर्मग्रंथों के यथार्थ ज्ञान के आधार पर प्रमाण देकर नकली गुरुओं की पोल खोलकर पाखंड पर चोट की। व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को सार्वजनिक कर उसे समूल उखाड़ फेकने का कठिन कार्य प्रारंभ किया। नशावृत्ति, दहेज जैसी कई सामाजिक कुरीतियों को बंद कराने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। रक्तदान, अन्नदान परमार्थ करने के लिए प्रेरित किया।
जाति, धर्म, लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव का केवल सन्त रामपाल जी ही सफल रूप से उन्मूलन कर सके हैं।
संत रामपाल जी महाराज कहते हैं कि -
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, धर्म नही कोई न्यारा।।
प्राकृतिक आपदा के कारण मुसीबत में फंसे लोगों को संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा खाद्य व अन्य राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य बड़ी तत्परता से किया जाता हैं। जुलाई 2023 में हरियाणा के 12 जिले बाढ़ की चपेट में आ गए। लोगों को खाने-पीने की समस्या उत्पन्न हो गई और जलभराव के कारण बीमारियों का भी खतरा इन इलाकों में मंडराने लगा। ऐसी विषम परिस्थिति में बाढ़ पीड़ितों तक खाद्य व अन्य राहत सामग्री पहुंचाने के लिए संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपनी जान को जोखिम में डालकर अलग-अलग जिलों, ब्लॉक आदि में यह मानवीय सेवा करते नजर आए।
संत रामपाल जी महाराज भारत व विश्व के सबसे बड़े समाज सुधारक है जिन्होंने देश को दहेज, भ्रूण हत्या, जातिवाद, रिश्वतखोरी आदि समस्याओं से निजात दिलाई है।
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मिनिमली इनवेसिव सीएबीजी (Minimally Invasive CABG) एक प्रकार का हृदय शल्यक्रिया (सर्जरी) है, जिसका उपयोग कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) के लिए किया जाता है, लेकिन यह पारंपरिक सीएबीजी सर्जरी से कहीं कम आक्रामक होता है। इस सर्जरी में, डॉक्टर पारंपरिक बाईपास सर्जरी के मुकाबले बहुत छोटी चीरे (इंकिशन्स) करते हैं, जिससे रिकवरी का समय कम होता है और दर्द भी कम होता है। मिनिमली इनवेसिव सीएबीजी के बारे में अधिक जानकारी: 1. सर्जरी का तरीका: ++++++++++++ पारंपरिक सीएबीजी में, डॉक्टर छाती के बीच में बड़ी चीरी (इंकिशन) करते हैं और हृदय तक पहुंचने के लिए हड्डियों को हटाते हैं। वहीं, मिनिमली इनवेसिव सीएबीजी में छोटे चीरे किए जाते हैं, जिनसे हृदय तक पहुंचा जा सकता है बिना छाती को पूरी तरह से खोलने के। 2. लाभ: ++++++ - कम दर्द और कम संक्रमण का खतरा: क्योंकि चीरे छोटे होते हैं, इसलिए रिकवरी की प्रक्रिया सरल और दर्द रहित होती है। - जल्दी रिकवरी: मरीज को अस्पताल में कम समय रहना पड़ता है, और वे जल्दी घर जा सकते हैं। आमतौर पर, एक हफ्ते के भीतर मरीज सामान्य गतिविधियाँ शुरू कर सकते हैं। - कम डर और तनाव: कम आक्रामक सर्जरी से मरीज का मानसिक तनाव भी कम होता है। 3. क्या होता है इस सर्जरी में? ++++++++++++++++++ - इस सर्जरी में, डॉक्टर कोरोनरी धमनी में ब्लॉकेज को बypass करने के लिए एक स्वस्थ रक्त वाहिका का उपयोग करते हैं, ताकि रक्त का प्रवाह हृदय तक सही तरीके से पहुंच सके। मिनिमली इनवेसिव तकनीक में छोटे चीरे किए जाते हैं और मशीन की मदद से हृदय तक पहुंचा जाता है। 4. कैंडि��ेट्स: ++++++++ यह सर्जरी उन मरीजों के लिए उपयुक्त होती है जिनके दिल की धमनियों में कई ब्लॉकेज होते हैं, लेकिन उनकी स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती कि उन्हें पारंपरिक बाईपास सर्जरी की आवश्यकता हो। #MICS #minimallyinvasivecardiacsurgery #CABG #drgagankhullar #cardiacsurgery #cardiacsurgeon #heartdoctor #heartspecialist #hamirpur #himachalpradesh #india
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#GodMorningFriday
धर्म के लोग ही कर रहे धार्मिक लोगों के साथ धोखा
गीताजी अध्याय 9 श्लोक 25 में साफ लिखा है भूत पूजोगे तो भूत बनोगे और ये पाखंडी भूत,पितर पुजवाते हैं।जीव को भूत,पितर बनवा रहे हैं।
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Deep State Exposed: Real or Fake? A Threat to Global Security
Introduction Of Deep State
Deep State: नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक दिन बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के पद की शपथ ग्रहण करेंगे. इसके साथ ही वह सत्ता संभालने के पहले दिन से ही डीप स्टेट कहे जाने वाले सिस्टम को ध्वस्त करने की योजना पर काम कर सकते हैं. माना जाता है कि मौजूदा समय में इस डीप स्टेट में 50 हजार से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं. ऐसे में यह जानना अहम है कि डीप स्टेट क्या है और इससे कैसे कई देशों के लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था को खतरा है.
Table Of Content
क्या डोनाल्ड ट्रंप पर हमले के पीछे था डीप स्टेट?
कहां से निकली है डीप स्टेट की परिभाषा?
CIA का क्या है डीप स्टेट से रिश्ता?
जॉन एफ कैनेडी की हत्या में क्या था डीप स्टेट का रोल?
डीप स्टेट पर कब हुआ था बड़ा खुलासा?
भारत में क्या है डीप स्टेट को लेकर राय?
क्या डोनाल्ड ट्रंप पर हमले के पीछे था डीप स्टेट?
दरअसल, अमेरिका में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने Deep State को खुद अमेरिका और दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों के लिए गंभीर और बड़ा खतरा बताया था. गौरतलब है कि 13 जुलाई को पेनसिल्वेनिया के बटलर में जब डोनाल्ड ट्रंप पर हमला हुआ, तब भी दावा किया गया था कि इसके पीछे डीप स्टेट का हाथ है.
ऐसे में बड़ा सवाल बन जाता है कि क्या वाकई में डीप स्टेट नाम का सिस्टम है या सिर्फ एक थ्योरी है, जिससे सरकारें अपनी नाकामी ��िपाती हैं. डीप स्टेट का पहली बार इस्तेमाल साल 2017 में पहली बार डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के बाद सामने आया था. डीप स्टेट डोनाल्ड ट्रंप के विरोधियों के एक मुहावरा बन गया. हालांकि, बहुत पहले से डीप स्टेट सिस्टम की बात चली आ रही है.
कहां से निकली है डीप स्टेट की परिभाषा?
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साल 1996 की सुसुरलुक घटना ने डीप स्टेट की गहरी जड़ों को उजागर कर दिया. दरअसल, तुर्की के सुसुरलुक में एक रोड एक्सडेंट हुआ था. इसमें एक राजनेता, एक पुलिस अफसर, और एक माफिया डॉन मारा गया था. इस हादसे ने स्पष्ट कर दिया कि देश की सरकार, रक्षा तंत्र और माफिया के बीच गहरे रिश्ते हो सकते हैं. साल 2002 में न्याय और विकास पार्टी के नेता रेसेप तैयप एर्दोगन ने डीप स्टेट को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी.
CIA का क्या है डीप स्टेट से रिश्ता?
इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, बिल डोनोवेन ने विश्व युद्ध को जीतने के लिए साल 1942 में OSS यानी ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विस की शुरुआत की. OSS ने अमेरिका की जीत के लिए सभी रणनीति अपनाई. बाद में इसे खत्म कर दिया गया. बाद में उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इसे विघटित कर दिया.
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जॉन एफ कैनेडी की हत्या में क्या था डीप स्टेट का रोल?
अमेरिकी नौसेना ने रूसी जहाजों को क्यूबा तक पहुंचने से रोकने के लिए समुद्र पर कब्जा कर लिया और बाद में अमेरिका और रूस दोनों को पीछे हटना पड़ा. इस दौरान डीप स्टेट ने जनता को यह विश्वास दिलाया कि सब काबू में है. बाद में जॉन एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई. दावा किया जाता है कि अमेरिका और क्यूबा के कई माफिया सरगनाओं ने मिलकर इस हत्या की साजिश रची थी. दरअसल, जॉन एफ कैनेडी के फैसले से क्यूबा के साथ अमेरिका के संबंध में कड़वाहट की वजह से माफियाओं को काफी नुकसान हुआ था
डीप स्टेट कब हुआ था बड़ा खुलासा?
सारी बड़ी टेक कंपनियां CIA को यूजर्स का डाटा शेयर कर रही थी. एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी. एडवर्ड स्नोडेन ने दावा किया अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसियां दुनियाभर में अपने जियोपॉलिटिकल एजेंडा को पूरा कर रही हैं. दावा यहां तक है कि दुनियाभर में कई जगहों पर युद्ध कराकर डीप स्टेट से जुड़ी लॉबी खूब सारा पैसा कमाती है.
भारत में क्या है डीप स्टेट को लेकर राय?
जॉन एफ कैनेडी की हत्या और एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे ने साफ कर दिया कि Deep State सरकार नहीं, बल्कि कोई खुफिया तंत्र है, जो सरकार से भी कहीं ज्यादा ताकतवर है. कई जानकारों का मानना है कि डीप स्टेट लोकतांत्रिक सरकार के साथ सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखता है. कई जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट ने हालिया घटनाक्रमों को देखते हुए कहा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और सीरिया में सत्ता परिवर्तन के पीछे बड़े पैमाने पर डीप स्टेट का हाथ है.
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अगर भारत की बात करें तो BJP यानी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कई बार दावा किया है कि डीप स्टेट अपनी साजिशों में लगा हुआ है. यहां तक की अमेरिकी कारोबारी जार्ज सोरोस का नाम भी इस मामले में सामने आ चुका है, जो गुप्त तरीके से कई देशों समेत भारत में अस्थिरता लाने के लिए फंडिंग कर रहा है. डीप स्टेट देशों में होने वाले घरेलू चुनावों में दखल देती हैं. कुछ दिनों पहले उपराष्ट्रपति ने राज्य सभा में इस बात का जिक्र किया था कि हम किसी भी कीमत पर भारत के लोकतंत्र को डीप स्टेट के हाथों ��त्म होने नहीं देंगे.
अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने 15 जनवरी को अपनी कंपनी को बंद करने का एलान कर दिया. लेकिन हिंडनबर्ग रिसर्च के तार कहीं न कहीं डीप स्टेट से जुड़ते हुए देखे गए थे. हिंडनबर्ग रिसर्च पर भारत और चीन जैसे कई विकासशील देशों में व्यवसायियों पर बड़े पैमाने पर अकाउंटिंग धोखाधड़ी, स्टॉक मूल्य में हेरफेर और उन देशों के स्टॉक मार्केट को अस्थिर करने का आरोप लगा. साथ ही इससे होने वाले टैक्स हेवन का फायदा उठाया. कई मीडिया रिपोर्ट में इसे डीप स्टेट से जोड़कर बताया.
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Conclusion Of Deep State
कई जियोपॉलिटल जानकारों का मानना है कि Deep State अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी का नेटवर्क है, जिस में CIA, FBI, NSA शामिल हैं. दावा यहां तक किया जाता है कि अमेरिका की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार से भी ज्यादा शक्ति डीप स्टेट के पास है और दुनियाभर में जो भी हो रहा है यानी सरकारें गिर रही हैं, युद्ध हो रहे हैं उनके पीछे अमेरिकी सरकार से ज्यादा डीप स्टेट का एजेंडा छिपा हुआ है.
डीप स्टेट को लेकर भारतीय जानकारों के अलग-अलग राय हैं. नीरज कौशल ने अपने एक लेख में कहा कि डीप स्टेट की षड्यंत्र हास्यास्पद है. साथ ही उन्होंने इसे सिरे से खारिज किया. भारत में डीप स्टेट को लेकर उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच आपसी सहयोग एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हरीश चंद्र बर्णवाल का दावा है कि डीप स्टेट दो विचारधाराओं का संघर्ष दिखाता है. इसमें लेफ्ट लिबरल विंग और राइट विंग की विचारधारा लड़ाई शामिल है. उन्होंने कहा कि अमेरिका में लंबे समय से लेफ्ट लिबरल के सत्ता में रहने से लेफ्ट विचारधारा का ईकोसिस्टम ही अमेरिका का डीप स्टेट है, जो मीडिया, न्यायपालिका, सरकारी संस्था और व्यापार समूह है. यह समूह अमेरिका समेत पूरे विश्व में लेफ्ट लिबरल विचारधारा के लिए जमीन तैयार करने का काम करता है.
दावा यह भी है कि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने डीप स्टेट के चेहरे को बेनकाब कर दिया. अब ऐसे में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दे दिया है कि वह पदभार ग्रहण करने के बाद ही डीप स्टेट कहे जाने वाले सिस्टम को ध्वस्त करने की योजना पर काम करना शुरू कर देंगे.
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क्या आप 40-55 वर्ष की महिला हैं? जानिए लंबे COVID का खतरा आपके लिए क्यों ज्यादा है!
हाल ही में टेक्सास विश्वविद्यालय के हेल्थ साइंस सेंटर, सैन एंटोनियो के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन ने लंबे COVID के जोखिम में लिंग भेद को उजागर किया है। इस अध्ययन के अनुसार, महिलाएं पुरुषों की तुलना में लंबे COVID के विकास के लिए 31% अधिक संवेदनशील हैं, और 40 से 55 वर्ष की आयु के बीच की महिलाएं इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। लंबा COVID क्या है? लंबा COVID एक ऐसी स्थिति है,…
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दिल्ली दंगों की सचाई – "2020 दिल्ली" फिल्म के माध्यम से खुलासा?
AIN NEWS 1: दिल्ली के फरवरी 2020 में हुए दंगे भारतीय इतिहास के सबसे खतरनाक और ह्रदयविदारक घटनाओं में से एक रहे हैं। इस घटना में कई लोगों की जान गई, संपत्तियों का नुक़सान हुआ और देश की एकता को खतरा उत्पन्न हुआ। इस दंगे ने देश के विभिन्न हिस्सों में नफ़रत और असहमति की दीवारों को और मजबूत किया। अब, इस हिंसा और असहमति की सच्चाई को दर्शाने वाली फिल्म "2020 दिल्ली" जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म में उस समय की घटनाओं, आरोपियों और उनके कृत्यों का खुलासा किया जाएगा। शाहरुख पठान की बंदूक की नोंक दिल्ली दंगों के दौरान शाहरुख पठान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह दिल्ली पुलिस के जवानों की ओर बंदूक तानते हुए दिखाई दे रहे थे। यह घटना इस दंगे का एक प्रमुख और ��यावह पहलू बन गई। शाहरुख ने खुलेआम पुलिस पर हमला करने की धमकी दी थी, जिससे न केवल दिल्ली पुलिस के जवानों को बल्कि पूरे देश को यह महसूस हुआ कि स्थिति कितनी भयावह हो चुकी है। यह घटना न केवल दिल्ली बल्कि पूरे देश में दंगे और हिंसा को बढ़ावा देने का कारण बनी। AAP के दंगाई ताहिर हुसैन और पेट्रोल बम दंगे के दौरान एक और नाम जो चर्चा में आया वह था आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता ताहिर हुसैन का। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ताहिर हुसैन के घर की छत पर दर्जनों पेट्रोल बम रखे गए थे। इन बमों का इस्तेमाल दंगे के दौरान हिंसा को बढ़ावा देने और पुलिस पर हमला करने के लिए किया गया था। हुसैन की भूमिका को लेकर कई विवाद हुए, और यह सवाल खड़ा हुआ कि क्या किसी राजनीतिक नेता का इस तरह से दंगों में शामिल होना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है? शरजील इमाम का विवादास्पद भाषण दंगे के दौरान शरजील इमाम का एक भाषण भी काफी चर्चा में रहा था, जिसमें उसने "चिकन नेक" को भारत से अलग करने की बात की थी। इमाम के इस भाषण को देशद्रोह के रूप में देखा गया और उसे गिरफ्तार किया गया। शरजील इमाम के बयान ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए देश की एकता और अखंडता को खतरे में डाल सकते हैं? शफूरा जरगर का चेतावनी भरा भाषण दिल्ली दंगों के दौरान शफूरा जरगर का भी एक भाषण सामने आया था, जिसमें उसने हिंदुओं को खुलेआम चेतावनी दी थी। शफूरा ने अपने भाषण में दंगे के दौरान हिंसा को जायज ठहराया और हिंदू समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए। इस भाषण ने स्थिति को और अधिक जटिल और तनावपूर्ण बना दिया था। शफूरा जरगर का यह बयान भी न्यायपालिका और समाज के सामने एक गंभीर मुद्दा बन गया। "2020 दिल्ली" फिल्म – एक सच्चाई का पर्दाफाश अब इस फिल्म "2020 दिल्ली" के जरिए इन सब घटनाओं और उनके नतीजों का पर्दाफाश किया जाएगा। यह फिल्म दंगों की सच्चाई को उजागर करने का एक प्रयास है, जिसमें यह दिखाया जाएगा कि किस तरह से कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए समाज में हिंसा और नफ़रत फैला सकते हैं। यह फिल्म उन सभी सच्चाइयों को सामने लाएगी, जिन पर अब तक पर्दा पड़ा हुआ था। फिल्म "2020 दिल्ली" का उद्देश्य यह है कि दर्शक दंगों के असली कारणों, प्रभावों और उसकी जड़ को समझें। यह एक ऐतिहासिक फिल्म होगी, जो समाज और राजनीति में हो रहे बदलावों के प्रति लोगों को जागरूक करेगी। "2020 दिल्ली" फिल्म एक महत्वपूर्ण पहल है, जो दिल्ली दंगों की सच्चाई को उजागर करने का प्रयास करती है। इस फिल्म के माध्यम से उन घटनाओं का खुलासा किया जाएगा, जिन्होंने देश में हिंसा, असहमति और नफ़रत को बढ़ावा दिया। यह फिल्म न केवल दंगों के बारे में जानकारी देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि ऐसे घटनाओं से समाज को कितना नुकसान हो सकता है। इस फिल्म को देखने के बाद लोग दंगों और हिंसा के पीछे के असली कारणों को समझ सकेंगे और देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए जागरूक हो सकेंगे। https://youtube.com/shorts/eCuOgRNwQ5I?si=kz44oPi9z9WAWvq3 The movie "2020 Delhi" reveals the truth behind the Delhi riots of February 2020, shedding light on key figures like Shahrukh Pathan, Tahir Hussain, Sharjeel Imam, and Shafura Zargar. These individuals played controversial roles during the violence, with incidents like Shahrukh Pathan pointing a gun at police, Tahir Hussain storing petrol bombs, Sharjeel Imam advocating separatism, and Shafura Zargar giving inflammatory speeches. This film uncovers the hidden facts about the riots, showing how political motives and inflammatory rhetoric fueled the chaos. "2020 Delhi" aims to raise awareness about the dangers of violence and its long-term impact on society and democracy. Read the full article
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Adrak : सेहत का खजाना या सेहत के लिए खतरा? जानें इसके अधिक सेवन के नुकसानों के बारे में
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वायु प्रदूषण कैंसर से भी बड़ा ख़तरा? आयु-विपरीत सीईओ अलार्म बजाता है
45 वर्षीय करोड़पति तकनीकी उद्यमी और दीर्घायु समर्थक ब्रायन जॉनसन ने उम्र बढ़ने को रोकने और मानव जीवन काल को बढ़ाने के अपने अपरंपरागत मिशन के लिए सुर्खियां बटोरी हैं। हालाँकि, अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान, जॉनसन ने अपना ध्यान अधिक तात्कालिक और गंभीर मुद्दे पर केंद्रित कर दिया: वायु प्रदूषण। जॉनसन ने इसे कैंसर से भी बड़ा खतरा बताते हुए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया और घातक खतरे से निपटने के…
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sex kb nhi karna chahiye
Sex Kab Nahi Karna Chahiye?
सेक्स एक स्वाभाविक और निजी अनुभव है, लेकिन इसे करने का सही समय और सही परिस्थितियाँ बेहद महत्वपूर्ण होती हैं। कई स्थितियाँ ऐसी होती हैं, जब सेक्स से बचना चाहिए, ताकि शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर न पड़े। यहां कुछ स्थितियों का विवरण दिया गया है जब सेक्स नहीं करना चाहिए:
1. जब शारीरिक अस्वस्थता हो
यदि आप या आपका पार्टनर बुखार, फ्लू, या किसी प्रकार के संक्रमण से पीड़ित हों, तो इस स���य शारीरिक संबंध बनाना स्वस्थ नहीं होता। इसके अलावा, जननांगों में दर्द, ज��न या सूजन होने पर भी सेक्स से बचना चाहिए।
2. मासिक धर्म के दौरान
मासिक धर्म के दौरान, सेक्स करना कई लोगों के लिए असहज हो सकता है। इसके अलावा, इस दौरान संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। अगर दोनों पार्टनर्स सहमत हों और स्वच्छता का ध्यान रखा जाए, तो यह व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, लेकिन आमतौर पर इस दौरान सेक्स से बचने की सलाह दी जाती है।
3. मानसिक अस्थिरता या तनाव के दौरान
अगर कोई पार्टनर मानसिक तनाव, चिंता, या डिप्रेशन से गुजर रहा हो, तो शारीरिक संबंध इस समय से बचने चाहिए। मानसिक अस्थिरता या किसी भी प्रकार की भावनात्मक अस्वस्थता के दौरान सेक्स नहीं करना चाहिए क्योंकि यह स्थिति को और बिगाड़ सकता है।
4. सहमति की कमी
सहमति और इच्छा का होना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर किसी भी पार्टनर को सेक्स के लिए मानसिक या शारीरिक रूप से तैयार नहीं लगता, तो इस समय शारीरिक संबंध से बचना चाहिए।
5. गर्भावस्था की जटिलताएँ
गर्भावस्था के दौरान कुछ जटिलताएँ हो सकती हैं, जैसे रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, या प्रीटरम लेबर। ऐसे मामलों में डॉक्टर की सलाह के बिना सेक्स से बचना चाहिए।
6. यौन संचारित रोग (STI) के दौरान
यदि किसी पार्टनर को यौन संचारित रोग (STI) का संक्रमण हो, तो इस दौरान सेक्स से बचना चाहिए। इससे संक्रमण फैल सकता है, और इससे बचने के लिए सुरक्षित सेक्स का उपयोग करना जरूरी है।
7. अत्यधिक थकावट या नींद की कमी
अगर आप या आपका पार्टनर अत्यधिक थका हुआ महसूस कर रहे हों, या नींद पूरी नहीं हुई हो, तो इस समय शारीरिक संबंध बनाना दोनों के स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं हो सकता। इस स्थिति में आराम और स्वस्थ नींद अधिक आवश्यक होती है।
8. परिवार नियोजन के उद्देश्य से
यदि कोई पार्टनर गर्भवती नहीं होना चाहता या परिवार बढ़ाने का निर्णय नहीं लिया है, तो सेक्स करते समय गर्भनिरोधक उपायों का उपयोग करना जरूरी है। ऐसे समय में सेक्स से बचना या सुरक्षित उपाय अपनाना सही होता है।
9. सर्जरी या चोट के बाद
सर्जरी या गंभीर चोट के बाद शरीर को ठीक होने में समय चाहिए। इस समय सेक्स करने से बचना चाहिए क्योंकि यह शरीर को अतिरिक्त दबाव दे सकता है और रिकवरी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
10. स्वच्छता का ध्यान न रखना
शारीरिक संबंध के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। यदि दोनों पार्टनर्स ने अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा है, तो इससे संक्रमण या अन्य समस्याएँ हो सकती हैं।
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निष्कर्ष
सेक्स एक निजी और सुखद अनुभव है, लेकिन इसे करने का निर्णय शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए लिया जाना चाहिए। जब आप या आपका पार्टनर अस्वस्थ हों या किसी भी तरह की असहमति हो, तो इस समय शारीरिक संबंध से बचना चाहिए। सही समय, सहमति, और स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी है, ताकि दोनों पार्टनर्स का अनुभव सुरक्षित और सुखद हो।
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Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad
Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad | In Conversation with Vandana Tribhuwan Singh
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में मौजूद हर अंग बेहद जरूरी होता है । सभी का अपना अलग कार्य होता है, जो हमें स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं । फेफड़े इन्हीं में से एक है, जो हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम का सबसे अहम हिस्सा है। यह हमें सांस लेने में काफी मदद करता है। हालांकि, कई वजहों से हमारे फेफड़े (Lungs) विभिन्न समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि फेफड़े में होने वाली इन बीमारियों के बारे में भी आप सतर्क रहें । फेफड़ों के स्वास्थ्य के महत्व और फेफड़ों की बीमारियों को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य आम लोगों के बीच में फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना है | हमारे देश भारत में Covid-19 के बाद फेफड़े संबंधित बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ता जा रहा है और फेफड़ों के कैंसर सीओपीडी टीवी अस्थमा एवं एलर्जिक राइनाइटिस के मरीज निरंतर बढ़ते जा रहे हैं |
आखिर, भारत में फेफड़े संबंधी बीमारियों के बढ़ते मामलों की क्या है वजह और इससे बचने के क्या हैं उपाय? हमारे ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे साथ आज मौजूद है डॉ राजेंद्र प्रसाद जी जो आज की परिचर्चा के विषय The Vital Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases " पर प्रकाश डालेंगे |
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Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad
Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad | In Conversation with Vandana Tribhuwan Singh
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में मौजूद हर अंग बेहद जरूरी होता है । सभी का अपना अलग कार्य होता है, जो हमें स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं । फेफड़े इन्हीं में से एक है, जो हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम का सबसे अहम हिस्सा है। यह हमें सांस लेने में काफी मदद करता है। हालांकि, कई वजहों से हमारे फेफड़े (Lungs) विभिन्न समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि फेफड़े में होने वाली इन बीमारियों के बारे में भी आप सतर्क रहें । फेफड़ों के स्वास्थ्य के महत्व और फेफड़ों की बीमारियों को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य आम लोगों के बीच में फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना है | हमारे देश भारत में Covid-19 के बाद फेफड़े संबंधित बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ता जा रहा है और फेफड़ों के कैंसर सीओपीडी टीवी अस्थमा एवं एलर्जिक राइनाइटिस के मरीज निरंतर बढ़ते जा रहे हैं |
आखिर, भारत में फेफड़े संबंधी बीमारियों के बढ़ते मामलों की क्या है वजह और इससे बचने के क्या हैं उपाय? हमारे ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे साथ आज मौजूद है डॉ राजेंद्र प्रसाद जी जो आज की परिचर्चा के विषय The Vital Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases " पर प्रकाश डालेंगे |
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Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad
Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases | Dr Rajendra Prasad | In Conversation with Vandana Tribhuwan Singh
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में मौजूद हर अंग बेहद जरूरी होता है । सभी का अपना अलग कार्य होता है, जो हमें स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं । फेफड़े इन्हीं में से एक है, जो हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम का सबसे अहम हिस्सा है। यह हमें सांस लेने में काफी मदद करता है। हालांकि, कई वजहों से हमारे फेफड़े (Lungs) विभिन्न समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि फेफड़े में होने वाली इन बीमारियों के बारे में भी आप सतर्क रहें । फेफड़ों के स्वास्थ्य के महत्व और फेफड़ों की बीमारियों को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य आम लोगों के बीच में फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना है | हमारे देश भारत में Covid-19 के बाद फेफड़े संबंधित बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ता जा रहा है और फेफड़ों के कैंसर सीओपीडी टीवी अस्थमा एवं एलर्जिक राइनाइटिस के मरीज निरंतर बढ़ते जा रहे हैं |
आखिर, भारत में फेफड़े संबंधी बीमारियों के बढ़ते मामलों की क्या है वजह और इससे बचने के क्या हैं उपाय? हमारे ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे साथ आज मौजूद है डॉ राजेंद्र प्रसाद जी जो आज की परिचर्चा के विषय The Vital Role of Lung Health : Understanding, Preventing & Managing Respiratory Diseases " पर प्रकाश डालेंगे |
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डायबिटीज का हृदय पर प्रभाव ======================== डायबिटीज यानी मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में शुगर का स्तर बढ़ जाता है। लंबे समय तक बढ़ा हुआ शुगर स्तर आपके शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर आपके हृदय को।
डायबिटीज हृदय को कैसे प्रभावित करती है? ========================= - रक्त वाहिकाओं को नुकसान: उच्च शुगर स्तर आपकी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे वे सख्त और संकरी हो जाती हैं। यह आपके हृदय को अधिक मेहनत करने के लिए मजबूर करता है, जिससे दिल का दौरा या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना: डायबिटीज खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकती है, जो रक्त वाहिकाओं में प्लाक जमने का कारण बनता है और हृदय रोग का खतरा बढ़ाता है।
- रक्तचाप बढ़ना: डायबिटीज से रक्तचाप भी बढ़ सकता है, जो हृदय पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
- नसों को नुकसान: उच्च शुगर स्तर आपके हृदय को रक्त और ऑक्सीजन पहुंचाने वाली नसों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
डायबिटीज और हृदय रोग के लक्षण ======================== - सीने में दर्द या बेचैनी - सांस लेने में तकलीफ - पैरों में सूजन - थकान - चक्कर आना
डायबिटीज और हृदय रोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यदि आपको डायबिटीज है, तो हृदय रोग के खतरे को कम करने के लिए आपको अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने डॉक्टर से नियमित रूप से मिलते रहें और उनकी सलाह का पालन करें।
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#GodMorningFriday
हिंदू धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि पवित्र गीताजी का ज्ञान श्रीकृष्ण ने बोला जबकि गीता अध्याय 11,श्लोक 32 में गीता ज्ञानदाता स्वयं कहता है कि अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूं।वह काल कौन है? आखिर सच्चाई को क्यों छुपाया नकली धर्मगुरुओं ने?
जानने के लिए देखिए साधना टीवी 7:30pm
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Surrogacy Trends: Answers To All Your Questions About The Process
Introduction
सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत एक महिला किसी अन्य व्यक्ति या परिवार के लिए गर्भधारण करती है और बच्चे को जन्म देती है. जन्म के बाद बच्चे को कानूनी रूप से अपनाया जाता है. लोग कई वजहों से सरोगेसी का सहारा लेते हैं, जैसे कि बांझपन, गर्भावस्था में खतरा या गर्भधारण ना कर पाना. इसके बाद किसी ऐसी महिला को चुना जाता है जो उनके बच्चे को जन्म दे सके. बच्चे को जन्म देने वाली महिला को सरोगेट मदर कहा जाता है. बच्चे की कस्टडी लेने वाले व्यक्ति को कमीशनिंग माता-पिता कहा जाता है. सरोगेट माताओं को आमतौर पर एजेंसियों के जरिए बच्चे की इच्छा रखने वाले माता-पिता से मिलवाया जाता है. सेरोगेट मदर के मिल जाने से लेकर बच्चा होने तक की सभी प्रक्रियाओं में ये कपल पूरी तरह से शामिल होता है.
Table Of Content
कई वजह से लोग अपनाते हैं सरोगेसी
क्या है सरोगेसी ?
कितने तरीके की होती है सरोगेसी ?
वेबएमडी की रिपोर्ट ने किया खुलासा
जेस्टेशनल सरोगेसी की प्रक्रिया है कठिन
कौन सी महिला बन सकती है सरोगेट मां
सरोगेसी की प्रक्रिया
क्या भीरत में लीगल है सरोगेसी?
क्या है भारत में सरोगेसी के अधिनियम ?
सरोगेसी बिल 2019
सरोगेसी की अनुमति कब दी जाती है?
क्या है सरोगेट बनने के लिए योग्यता?
सरोगेसी कानून की कुछ अन्य बारीकियां
कितना होता है खर्च?
बॉलीवुड के इन कपल्स ने उठाई सरोगेसी की सुविधा
सरोगेसी पर बॉलीवुड में बनी हैं कई फिल्में
कई वजह से लोग अपनाते हैं सरोगेसी
सरोगेसी व्यवस्था में पैसों का मुआवजा भी शामिल हो सकता है और नहीं भी. व्यवस्था के लिए पैसे प्राप्त करना कमर्शियल सरोगेसी कहलाती है. आपको बता दें कि हमारे देश में भी कई जानी-मानी हस्तियों ने सरोगेसी के जरिए अपना माता-पिता बनने का सपना पूरा किया है.
क्या है सरोगेसी ?
पिछले कुछ सालों में सरोगेसी शब्द महिलाओं और आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है या कहें कि खूब सुनने को मिल रहा है. इस कड़ी में साल 2022 में इस शब्द को सबसे ज्यादा गूगल भी किया गया. देश में कुछ लोगों को सरोगेसी के बारे में जानकारी है, लेकिन अब भी ज्यादाकर लोग इस शब्द से अनजान हैं. सरोगेसी शब्द अचानक ��स समय लोकप्रिय हो गया जब एक के बाद एक बॉलीवुड के कई सितारे इसके जरिए मां-बाप बने. सरोगेसी के जरिए प्रियंका चोपड़ा, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जोहर, शिल्पा शेट्टी, प्रीति जिंटा जैसे कई बड़े स्टार्स माता-पिता बन चुके हैं. सरल शब्दों में अगर इसे समझाएं तो अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला की कोख में अपने बच्चे को पालना सरोगेसी कहलाता है.
कितने तरीके की होती है सरोगेसी ?
आमतौर पर सरोगेसी दो प्रकार की होती है. इसमें ट्रेडिशनल सरोगेसी और जेस्टेशनल सरोगेसी शामिल है. आइए जानतें हैं दोनों के बीच में क्या अंतर हैं.
ट्रेडिशनल सरोगेसी: ट्रेडिशनल सरोगेसी में डोनर या पिता के शुक्राणु को सेरोगेट मदर के अंडाणु से मैच कराया जाता है. इसके बाद डॉक्टर कृत्रिम तरीके से सरोगेट महिला के कर्विक्स, फैलोपियन ट्यूब्स या यूटेरस में स्पर्म को सीधे प्रवेश कराते हैं. इससे प्रक्रिया के दौरान स्पर्म बिना किसी परेशानी के महिला के यूटेरस में पहुंच जाता है. इस प्रक्रिया में बच्चे की बायोलॉजिकल मदर सरोगेट मदर ही होती है. यानी जिसकी कोख किराए पर ली गई है. अगर होने वाले पिता का स्पर्म इस्तेमाल नहीं किया जाता तो किसी डोनर के स्पर्म का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इस स्थिति में पिता का बच्चे के साथ जेनेटिकली रिलेशन नहीं होता है. इस टर्म को ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी कहा जाता है.
जेस्टेशनल सरोगेसी: भारत में जेस्टेशनल सरोगेसी ज्यादा प्रचलन में है. इसमें माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु को मिलाकर सेरोगेट मदर की कोख में रखा जाता है. इस प्रक्रिया में सरोगेट मदर केवल बच्चे को जन्म देती है, उसका बच्चे से जेनेटिकली रिलेशन नहीं होता है. बच्चे की मां सरोगेसी कराने वाली महिला ही होती है. बता दें कि इसमें पिता के स्पर्म और माता के एग्स का मेल डोनर के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूटेरस में ट्रांसप्लांट किया जाता है.
वेबएमडी की रिपोर्ट ने किया खुलासा
अमेरिका में स्थापित वेबएमडी के मुताबिक जेस्टेशनल सरोगेसी कानूनी रूप से कम कठिन है, क्योंकि इसमे माता-पिता दोनों के बच्चे के साथ जेनेटिकली रिलेशन होते हैं. पारंपरिक सरोगेसी की तुलना में जेस्टेशनल सरोगेसी अधिक आम हो गई है. इसकी सबसे बड़ी वजह है जेनेटिकली रिलेशन. जेस्टेशनल सरोगेसी का उपयोग करके अमेरिका में हर साल करीब 750 बच्चे पैदा होते हैं.
जेस्टेशनल सरोगेसी की प्रक्रिया है कठिन
यहां बता दें कि जेस्टेशनल सरोगेसी की मेडिकल प्रक्रिया थोड़ी कठिन होती है. इसमें आईवीएफ का तरीका अपनाकर भ्रूण बनाया जाता है और फिर उसे सरोगेट महिला में ट्रांसफर किया जाता है. हालांकि, आईवीएफ का यूज ट्रेडिशनल सरोगेसी में भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर मामलों में आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन ही अपनाया जाता है. इस प्रक्रिया में ज्यादा परेशानी नहीं होती. इसमें सरोगेट महिला को अलग-अलग तरहों की जांच से छुटकारा मिल जाता है और ट्रीटमेंट भी नहीं कराना पड़ता.
कौन सी महिला बन सकती है सरोगेट मां
सरोगेसी में रुचि रखने वाले अधिकांश क��ल प्रक्रिया और इलाज की लागत पर चर्चा करने के लिए सरोगेसी एजेंसी से मिलते हैं. एजेंसी उन्हें जेस्टेशनल कैरियर से मिलाने में मदद करती है. होने वाले माता-पिता और कैरियर के बीच कानूनी समझौते स्थापित करने में भी मदद करती हैं. कुछ कपल अपनी जनरेशन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों को कैरियर के रूप में चुनते हैं. सरोगेट मदर वह महिला बन सकती है जो विवाहित हो या तलाकशुदा हो. कुंवारी महिलाओं इसके लिए वैध्य नहीं हैं. इसके साथ ही चुनी गई महिला का कम से कम एक बच्चा पहले से ही हो. भारतीय अधिनियमों के तहत सरोगेट मदर बनने वाली महिला भारत की नागरिक होनी चाहिए और उस महिला की उम्र 25 से 35 वर्ष के अंदर होनी चाहिए. इसके साथ ही डॉक्टरों ने उस महिला को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बताया हो.
सरोगेसी की प्रक्रिया
सरोगेसी की प्रक्रिया थोड़ी कठिन होती है. इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए सबसे पहले लीगल एग्रीमेंट से गुजरना होता है. सबसे पहले सरोगेट चाइल्ड की इच्छा रखने वाले माता-पिता और सरोगेट मदर के बीच एक लीगल एग्रीमेंट बनवाया जाता है. इसमें सरोगेसी से जुड़ी सारी शर्तें लिखी जाती हैं, जैसे कि सरोगेट मदर सिर्फ बच्चे को अपने गर्भ में रखेगी और उसके जन्म के बाद उसे उनके लीगल पेरेंट को सौंपना होगा. इस एग्रीमेंट में सरोगेट मदर की फीस भी लिखी होती है.
एंब्रियो ट्रांसफर
इस चरण में अंडे और स्पर्म को साथ लेकर फर्टिलाइज कराया जाता है. जब वह एंब्रियो में परिवर्तित हो जाता है, तो उसे सरोगेट मदर के गर्भ में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
गर्भावस्था और प्रसव
एंब्रियो ट्रांसफर के कुछ समय के बाद महिलाएं गर्भ धारण कर लेती हैं और इसके कुछ समय के बाद वह प्राकृतिक रूप से एक बच्चे को जन्म भी देती है. बच्चे की इच्छा रखने वाले माता-पिता हमेशा एक स्वस्थ सरोगेट मदर की खोज में होते हैं, क्योंकि वह स्वस्थ संतान की इच्छा रखते हैं.
पेरेंट को बच्चे को सौंपना
एग्रीमेंट की तर्ज पर बच्चे के जन्म के बाद उसे इंटेंडेड पेरेंट को सौंप दिया जाता है और उसी दौरान सरोगेट मदर की पूरी फीस भी दे दी जाती है.
क्या भीरत में लीगल है सरोगेसी?
गौरतलब है कि कई देशों में सरोगेसी को अवैध माना जाता है. हालांकि, भारत की बात करें तो, यहां सरोगेसी मान्य है. लेकिन इसे लेकर कुछ नियम कानून भी हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है. इसे लेकर नियम कानून हाल ही में लाए गए हैं, वो भी इसलिए क्योंकि सरोगेसी को लोग व्यवसायिक रूप न दे सकें और इसका यूज जरूरतमंद कपल ही उठा सकें. भारत सरकार ने सरोगेसी के नियम कानून में बदलाव किए और इसे सख्त बनाया.
क्या है भारत में सरोगेसी के अधिनियम ?
सरोगेसी बिल 2019
सरोगेसी को अवैध रूप से रोकने के लिए सरोगेसी बिल का प्रस्ताव साल 2019 में रखा गया था. उस दौरान लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस बिल को पेश किया था. इस बिल में नेशनल सरोगेसी बोर्ड, स्टेट सरोगेसी बोर्ड के गठन की बात कही गई है. ��हीं, इस बिल में सरोगेसी की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का भी प्रावधान है. सरोगेसी की अनुमति सिर्फ उन कपल्स को दी जाती है जो विवाहित हैं. इन सुविधाओं को ���ेने के लिए कई शर्तें पूरी करनी होती है. जैसे जो महिला सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होगी, उसकी सेहत और सुरक्षा का ध्यान सरोगेसी की सुविधा लेने वाले को रखना होगा. सरोगेसी बिल 2019 व्यावसायिक सरोगेसी पर रोक लगाता है, लेकिन स्वार्थहीन सरोगेसी की अनुमति देता है. निस्वार्थ सरोगेसी में गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा में खर्चे और बीमा कवरेज के अलावा सरोगेट मां को किसी तरह का पैसा या मुआवजा नहीं दिया जाता. वहीं, कमर्शियल सरोगेसी में, चिकित्सा पर आए खर्च और बीमा कवरेज के साथ पैसा या फिर दूसरी तरह की सुविधाएं दी जाती.
सरोगेसी की अनुमति कब दी जाती है?
सरोगेसी की अनुमति उन कपल्स को दी जाती है जो जो इन्फर्टिलिटी से जूझ रहे हों. इसके अलावा जिन कपल्स का इससे कोई स्वार्थ न जुड़ा हो. इसके अलावा बच्चों को बेचने, देह व्यापार या अन्य प्रकार के शोषण के लिए सरोगेसी न की जा रही हो और जब कोई किसी गंभीर बीमारी से गुजर रहा हो, जिसकी वजह से गर्भधारण करना मुश्किल हो रहा हो.
क्या है सरोगेट बनने के लिए योग्यता?
सरोगेट बनने के लिए एलिजिबल होती है. इसके लिए महिला की उम्र 25 से 35 साल के बीच होनी चाहिए. वह शादीशुदा होनी चाहिए और उसके पास अपने खुद के बच्चे भी होने चाहिए. इसके अलावा वो पहली बार सरोगेट होनी चाहिए. भारत में सरोगेट बस एक बार ही बन सकती है. इन सबके के अलावा महिला मानसिक रूप से फिट होनी चाहिए. एक बार दंपति और सरोगेट ने अपना प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया, तो वे भ्रूण स्थानांतरण के लिए सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी केंद्र से संपर्क कर सकते हैं. कानून की मानें तो सरोगेट मां और दंपति को अपने आधार कार्ड को लिंक करना होता है. यह व्यवस्था में शामिल व्यक्तियों के बायोमेट्रिक्स का पता लगाने में मदद करेगा, जिससे धोखाधड़ी की गुंजाइश कम हो जाएगी.
सरोगेसी कानून की कुछ अन्य बारीकियां
भारतीय विवाह अधिनियम गे कपल्स की शादी को मान्यता नहीं देता है. इसलिए, समलैंगिक जोड़े बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेसी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. एक बार कॉन्ट्रैक्ट होने के बाद महिला इससे इन्कार नहीं कर सकती है और न ही अपनी मर्जी से गर्भ को खत्म कर सकती है. कानून कहता है कि सरोगेसी प्रोसेस में भ्रूण से मां बाप का रिश्ता होना जरूरी है, या तो पिता से हो मां से हो या फिर दोनों से.
यहां बता दें कि अगर भारतीय कपल्स देश के बाहर सरोगेसी की सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं तो, इससे पैदा होने वाले बच्चे को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी.
सरोगेसी से जन्मे बच्चे 18 वर्ष के होने पर यह जानने के अधिकार का दावा कर सकते हैं कि वे सरोगेसी से पैदा हुए हैं. वे सरोगेट मां की पहचान का पता लगाने ��ा भी अधिकार रखते हैं.
यह भी पढ़ें: ISRO ने एक बार फिर दिखाई ताकत, ‘स्पेडेक्स मिशन’ के तहत उपग्रहों की सफल ‘डॉकिंग’
कितना होता है खर्च?
सरोगेसी करवाने का कोई फिक्स अमाउंट नहीं होता. कपल अपने बच्चे को जितना स्वस्थ चाहते हैं उस हिसाब से वह सरोगेट मदर की अच्छी देखभाल और रेगुलर चेकअप पर होने वाले खर्चे के हिसाब से इस प्रक्रिया पर खर्चा होता है. सरोगेट मदर के खानपान, रेगुलर चेकअप से लेकर बच्चे के पैदा होने तक जो भी खर्चा आता है वो सब इस प्रक्रिया में शामिल होता है. इसमे सरोगेसी मदर को भी पैसा दिया जाता है. सरोगेसी के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें खर्चे से संबंधित सभी बातें लिखी हुई होती हैं.
बॉलीवुड के इन कपल्स ने उठाई सरोगेसी की सुविधा
एक्ट्रेस सनी ल्योनी तीन बच्चों की मां हैं. उन्होंने सबसे पहले एक बच्ची को गोद लिया था, जिसे अक्सर सनी के साथ देखा जाता है. इसके अलावा सनी सेरोगेसी की मदद से दो जुड़ावा बच्चों की मां बनी हैं, जिनके नाम अशर सिंह वेबर और नोहा सिंह वेवर हैं. सनी और उनके पति डेनियल साल 2018 में इन बच्चों के पेरेंट्स बने थे.
बॉलीवुड के किंग शाहरुख खान भी 3 बच्चों के पिता हैं. उनके बड़े बेटे का नाम आर्यन है और बेटी का नाम सुहाना. बता दें कि शाहरुख के तीसरे बेटे अबराम का जन्म सरोगेसी के जरिए हुआ है. साल 2013 में शाहरुख अबराम के पिता बने थे.
बालाजी प्रोड्क्शन की मालकिन एकता कपूर भी सेरोगेसी की मदद से मां बनीं. एकता एक सिंगल पेरेंट हैं. एकता के बच्चे का नाम रवि है.
आमिर खान और उनकी पत्नि किरण राव साल 2011 में सेरेगेसी की मदद से एक बच्चे के माता-पिता बने. आमिर ने अपने छोटे बेटे का नाम आजाद राव खान रखा है.
इस लिस्ट में प्रीति जिंटा का नाम भी शामिल है. प्रीति सेरेगेसी की मदद से जुड़वा बच्चों की मां बन चुकी हैं. उन्होंने दोनों बच्चों के नाम जय और जिया रखे हैं.
बॉलीवुड की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा हिंदी सिनेमा के साथ हॉलीवुड में भी अपने अभिनय से खूब नाम कमा रही हैं. यहां बता दें कि प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस सरोगेसी की मदद से पेरेंट्स बने हैं. अभिनेत्री ने 21 जनवरी, 2022 को सोशल मीडिया पर इस बात की आधिकारिक घोषणा की थी.
सरोगेसी पर बॉलीवुड में बनी हैं कई फिल्में
सरोगेसी एक ऐसा विषय है, जिस पर अक्सर चर्चा होती है. सरोगेसी पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं. इनमें साल 1983 में आई ‘दूसरी दुल्हन’ से लेकर कृति सेनन की फिल्म ‘मिमी’ तक का नाम शामिल है. इन फिल्मों ने मनोरंज के साथ-साथ समाज को हमेशा एक नई सोच देने की कोशिश की है. बदलते समाज में सरोगेसी एक ऐसी जरूरत बन ग�� है, जिसे लेकर सरकार ने भी कई कदम उठाए हैं.
‘दूसरी दुल्हन’
‘दूसरी दुल्हन’ साल 1983 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में विक्टर बनर्जी और शर्मिला टैगोर मुख्य भूमिका में थे. फिल्म में शबाना आजमी ने कमाठीपुरा की एक वेश्या का किरदार निभाया था. इस फिल्म में शबाना आजमी सरोगेट मां का किरदार निभाया था.
‘चोरी चोरी चुपके चुपके’
फिल्म ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’ में सलमान खान और रानी मुखर्जी एक कपल के रूप में नजर आए थे. इस फिल्म में प्रीति जिंटा ने सरोगेट मां का किरदार निभाया है. इस फिल्म का डायरेक्शन अब्बास-मुस्तान ने किया था. फिल्म 9 मार्च, 2001 को रिलीज हुई थी.
‘फिलहाल’
साल 2002 में रिलीज हुई फिल्म ‘फिलहाल’ भी सरोगेसी पर आधारित है. इस फिल्म में सुष्मिता सेन ने सरोगेट मां का किरदार निभाया है.
‘गुड न्यूज’
करीना कपूर, अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, दिलजीत दोसांझ की फिल्म ‘गुड न्यूज’ वैसे तो आईवीएफ पर है, लेकिन कहानी में हालात ऐसे बनते हैं कि दोनों महिलाएं सेरोगेट मदर बन जाती हैं.
यह भी पढ़ें: हमले के बाद अभिनेता के घर जांच के लिए पहुंची क्राइम ब्रांच की टीम, शक के घेरे में कर्मचारी
‘मिमी’
बॉलिवुड एक्ट्रेस कृति सेनन की फिल्म ‘मिमी’ भी सरोगेट मदर की कहानी दिखाती है. फिल्म में कृति के साथ पंकज त्रिपाठी भी अहम भूमिका में हैं.
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