हिंदू हैं हम। (Title)
(Voiceover by @aasthaa_rai)
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वो कहते है की वो हिंदू है,
तब हम क्या,
गोल बिंदु है?
एक तरफ़ वो कहते है हिंदू को ख़तरा है,
फूंक के चलो अस्तित्व का रास्ता सकरा है।
महानुभाव कहते है,
की हम हिंदू सारे ज़ुल्म सहते है।
अरे मानवता जितना पौराणिक धर्म है यह,
वक्त की कसौटी पर कभी ना चरम है यह।
जो धर्म है युग युग से अमल,
तुम्हें मतलब के लिए खिलाना है
इसका मजबूर कमल?
इसे तो रक्षा की,
आवश्यकता ही नहीं।
जिसने समय को सदियों से मात दिया है,
तुमने उसे ही सहारे का हाथ दिया है?
अरे छोड़ो यह आडम्बर,
कब तक खिचोगे नफ़रत का यह अम्बर?
हिंदू धर्म था, है और रहेगा,
और जिसका घमंड इसे कमजोर समझता है,
वह स्वयं लाचारता सहेगा।
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- shra_ra
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हिंदू हैं हम। (Title)
(Voiceover by @aasthaa_rai)
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वो कहते है की वो हिंदू है,
तब हम क्या,
गोल बिंदु है?
एक तरफ़ वो कहते है हिंदू को ख़तरा है,
फूंक के चलो अस्तित्व का रास्ता सकरा है।
महानुभाव कहते है,
की हम हिंदू सारे ज़ुल्म सहते है।
अरे मानवता जितना पौराणिक धर्म है यह,
वक्त की कसौटी पर कभी ना चरम है यह।
जो धर्म है युग युग से अमल,
तुम्हें मतलब के लिए खिलाना है
इसका मजबूर कमल?
इसे तो रक्षा की,
आवश्यकता ही नहीं।
जिसने समय को सदियों से मात दिया है,
तुमने उसे ही सहारे का हाथ दिया है?
अरे छोड़ो यह आडम्बर,
कब तक खिचोगे नफ़रत का यह अम्बर?
हिंदू धर्म था, है और रहेगा,
और जिसका घमंड इसे कमजोर समझता है,
वह स्वयं लाचारता सहेगा।
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- shra_ra
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बेगाना (title)
वक्त के साथ यह वेश हुआ बेगाना।
मौज नहीं देते यह नाचना और गाना।
हर गीत बस है सताता।
मन इसे क्यूँ नहीं हटाता?
यह उम्र ने ली अंगड़ाई है,
या अंतर मन से चल रही लड़ाई है?
जो अपने थे विचार,
उनमें लाना पड़ रहा है विकार।
जवानी का जो था नशा,
उसकी हो चुकी है यह कैसी दुर्दशा।
जो सबसे ज़्यादा अपना था,
सुनहरा एक सपना था,
वहाँ हूँ मैं गुमराह,
नहीं थी ऐसी चाह,
पर दिख रही है सिर्फ़ यही एक राह।
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नानी का घर (title)
नानी का घर एक अहसास है,
कुछ से दूर, कुछ के पास है।
सिर्फ़ ईंट-पठरों की एक ईमारत नहीं,
बल्कि सबकी दुनिया का एक ऐसा कोना,
जहां हर ग़लत बन जाता है सोना।
एकलौति ऐसी जगह जहां माँ को पड़ती है झाड़,
साथ हो नानी तो लगता है उठा लेंगे पहाड़।
बचपन भर ऐसा लगता है,
की नानी तो यही है,
जहां छोड़ कर आए है वही है।
पर उम्र पर है किसका ज़ोर,
जुदाई नहीं मचाती है कोई शोर।
अंत में रह जाती है यादें,
ज़िंदगी भर घूमने के सारे वादे, सादे।
नानी तो घर में अब है नहीं,
फिर भी एक अलग सुकून है वहीं।
कहा था ना,
नानी का घर एक अहसास है,
तब तक पास है,
जब तक साँस है।
- Shra_ra.
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सराब (title)
आज जो लोगों में ऐसा अलगाव है,
उसकी वजह सिर्फ़ अपने अंदर का बदलाव है।
पल में कोई अपना लगने लगता है,
एक असल सपना लगने लगता है।
फिर एक झोका आता है,
और उस रेत में छुपा सराब दिखलाता है।
“क्या वहाँ पानी कभी था ही नहीं?”
हम खुद से पूछते है।
इस धर्मसंकट में अरसों तक जूझते है।
इसके बाद भी हम नहीं रुकते है,
वही गलती दोहराने से नहीं चूकते है।
शायद यही हमारी पहचान है।
जो असलियत दूसरे में है नहीं,
वही पाना हमारा अरमान है।
सिर्फ़ इसीलिये,
हम इंसान है।
- Shra_ra.
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सिलसिला (title)
वक्त का है एक अनोखा क़िला।
जब फिर वहाँ वापस गए,
हमें कोई ना मिला।
क्यू होता है यह?
क्या है यह किसी करनी का सिला,
ज़िंदगी भर का गिला?
आख़िर क्यूँ है यह फ़ासला?
मुझसे पूछो तो बताऊँ।
इसे कहते है ज़िंदगी का सिलसिला।
जिसे रहना है क़ायम,
वो अभी तक नहीं मिला।
- Shra_ra.
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हद-अनहद (title)
अब इसे हद कहे,
या अनहद?
हर कदम,
कोई है हमदम।
यह नहीं पता,
की क्या थी ख़ता।
शायद इस लिए हर मोड़,
ज़हन खुद ही को देता है छोड़।
अब इसे हद कहे,
या अनहद?
हद में रहते रहते,
ना जाने कब अनहद पास आ जाता है।
प्यार से सहलाता है,
पर पल में अकेला छोड़ जाता है।
एक गोलाई,
में लेते है दोनो अंगड़ाई।
ना जाने मन खुश रहे,
या आँसुओं में बहे।
अब इसे हद कहे,
या अनहद?
आप ही बताइए?
- Shra_ra.
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किरदार (title)
सब है,
पर है नहीं।
एक नज़ारा यहाँ,
एक नज़ारा वहाँ।
वो जो हम है,
वो तुम भी हो।
यही है हमारी हक़ीक़त,
या हर एक की उल्फ़त?
मुलाक़ातों का कोई हिस्सा,
लिखता है एक नया क़िस्सा।
तो क्या हम है खुद से ग़द्दार,
या फिर इस फ़रारी के हक़दार?
एक किरदार तुम हो,
एक किरदार हम भी है।
- Shra_ra.
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