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और इक मौसमे बहार गया
दिल गया था ही क़रार गया
आदमी का सफ़र हुआ पूरा
जाते जाते कोई पुकार गया
छोड़ कर फिर ख़्याल जन्नत का
कोई और कूए यार गया
दिल नशीं था अदावर वो था
जैसे लाखों दिलों का प्यार गया
चांद आग़ोश़ में चमकते हुए
चांदनी साथ में हिसार गया
एसे जाता भी है भला कोई
जैसे वो दीवाना वार। गया
शाह ऋषि था सुनहरी यादों में
अपना सब कुछ यहीं पे वार गया
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी
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