A thrill seeker, who believes in turning ideas into reality. Otherwise like to write, eat and travel.
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द बैड बॉय !
मैं जब स्कूल में था तो मेरी इमेज “ बैड बॉय ” की थी । मैं हर वो काम करने की कोशिश करता था जिससे की मेरी इमेज बैड बॉय के रूप में फिट हो ।
पर आज जब मैं सोचता हूँ मैं बदमाश क्यों बनना चाहता था तो जयदा मुश्किल नहीं होती यह समझने में की मर्द बनने के लिए । अब सवाल ये उठता है की आखिर मर्दानगी इतनी बड़ी चीज़ कैसे बनी और बदमाश होने में ही मुझे मर्दानगी क्यों दिखने लगी ।
दरसल शुरुआत में मैं बिल्कुल पढ़ने लिखने वाला लड़का था , हिंदी मीडियम से अंग्रेजी मीडियम स्कूल में गया था , शुरुआत में मेरा मकसद था की खुद को प्रूव करना क्लास में कोई स्थान लाकर की हिंदी मीडियम का बच्चा भी अचानक अंग्रेजी मीडियम में आकर बेहतर कर सकता है । जो की मैंने किया क्लास में सेकंड पोजीशन लाकर ।
लेकिन अचानक उस दौर में स्कूल में लड़को की ग्रूपबाज़ी बढ़ने लगी और फिर पढ़ने लिखने वालो की पहचान दब्बू और कमज़ोर किस्म के बच्चो में होने लगी । जिन लड़को के पास ग्रुप था वो किसी को भी बुली कर सकते थे , कोई इनका विरोध करता तो फिर पिटाई खाता । इनकी पहचान “माचो मैन” के रूप में होने लगी । इनको मर्द माना जाने लगा । और फिर देखते ही देखते डर कहे या इज़्ज़त ��नकी बढ़ने लगी । बस हर जगह इसको वाहवाही मिलने लगी ।
फिर मर्दानगी किसे कहते है और मर्द कैसे बनते है ये समझने में मुझे देर न लगा । बस मर्द को इज़्ज़त मिलती थी इसलिए मेरे लिए भी यह नंबर लाने से ज्यादा जरुरी बन गया । सबसे पहले तो किसी से दबना छोड़ दिया और दूसरा अगर कोई किसी को दबता था तो उसके लिए लड़ना चालू कर दिया । शायद घर का माहौल बिल्कुल अलग था इसलिए बदमाशी में भी कुछ सिद्धांत थे मेरे । और हमेसा यह ध्यान रखता था की किसी कमजोर को न मारू इसलिए हमेसा दूसरे बदमास लड़को से ही मेरी लड़ाई होती थी । लड़कियों को भी मर्द लड़के पढ़ने-लिखने वालो की अपेक्षा ज्यादा पसंद थे । लेकिन मैं मर्द बनने में इतना मशरूफ हो गया था की लड़कियों से बात करना भी मुझे अपने मर्दानगी के खिलाफ लगने लगा । क्योकि स्कूल में जो लड़के लड़कियों से बात करते थे उन्हें “मउग” कह कर उपहास उड़ाया जाता था ।
हमें मर्दानगी की परिभाषा पर दुबारा सोचने की जरुरत है । अगर मर्दानगी की यही परिभाषा है तो मर्द होना एक कलंक की बात है ।
लेकिन मेरे अंदर एक अच्छी अादत थी सवाल करने की मैंने जैसे ही सवाल किया की क्या सच में ये किसी को दबाना या लड़ना ही बहादुरी है ? तब मुझे समझ में आया की यह “झूठी मर्दानगी” बहादुरी नहीं हो सकती भले इसे सब लोग माने। जब मैंने अपने भविस्य के बारे में सोचा तो मुझे समझ आया की ऐसे मैं कुछ भी हासिल नहीं कर सकता । समझ आया की किसी को लड़ना-दबना कभी भी बहादुरी नहीं सकता । किसी भी क्षेत्र चाहे वह विज्ञान हो , खेल-कूद हो , नृत्य हो , संगीत हो , लेखन हो , चित्रकारी हो या कुछ भी में बेहतर करना और इस समाज को बेहतर देना बहादुरी है । उसमे ऐसा कुछ कर गुज़ारना की अभी तक किसी ने नहीं किया हो वह बहादुरी है । मानव जाती और समाज को एक नई ऊंचाई तक ले जाना बहादुरी है ।
मैं समय समय रहते सुधर गया और यह भी समझ गया की सुधरने और अच्छा करने के लिए कभी भी देर नहीं होती । उम्मीद करता हूँ की यह लेख औरो को भी अपनी राह चुनने में मदद करेगा ।
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ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा !
जब भी करियर की बात आती है सबसे पहले आइंस्टीन की एक बात मेरे दिमाग में आती है - हर कोई प्रतिभाशाली है लेलिन अगर आप एक मछली को उसके ��ेड़ चढ़ने की छमता से उसकी योग्यता देखेंगे तो वो मछली जिंदिगी भर यही विश्वास करती रहेगी की वो बेवकूफ है ।
यह एक बहुत कारण है की आज दुनिया में सफल से बहुत ज्यादा असफल व्यक्ति है । और दूसरी बड़ी कारण है की करियर को सिर्फ पैसे कमाने के नज़रिये से देखना । अक्सर हम भूल जाते है की क्षेत्र की वजह से पैसा या कामयाबी नहीं मिलती बल्कि उस क्षेत्र में अपनी योग्यता की वजह से । जिस क्षेत्र में कम स्कोप हो लेकिन आपका वंहा मन लग रहा है तो आपके सफल होने के चान्सेस अधिक होते है अन्य क्षेत्रो मुकाबले ।
जैसे ही हम स्कूल पास करते है हम यह सोचने लगते है की आखिर हम कौन सा करियर चुने । बहुत से लड़के-लड़कियां इसे मात्र जीवन यापन का जरिया समझ कर कुछ चुन लेते है । लेकिन वह यह नहीं समझते की उनका काम और करियर उनके जीवन का सबसे बड़ा हिसा है , इसपर ही निर्भर करता है की आप अपना जीवन का सबसे ज्यादा समय कहाँ देने वाले है ।
आज के युवा सफलता की चरम सीमाओ को इसलिए भी नहीं छू पा रहे है क्योकि उनके लक्ष्य सिर्फ अपने और अपने जीवन तक सिमित रह गया है । हम भूल जाते है खाना , पीना , सोना और बच्चे पैदा करना तो जानवर भी करते है और अगर हम भी सिर्फ वही करे तो फिर पृथ्वी के सबसे बुद्धिजीवी जीव के रूप में जन्म लेकर क्या फायदा । जब तक हमारा जीवन सिर्फ अपने तक सिमित रहेगा हम कभी भी कुछ बड़ा लक्ष्य नहीं तय कर सकते जैसे की किसी बच्चे को सिर्फ अगर परीक्षा में पास होना होगा तो वह कभी अच्छा नंबर नहीं ला सकता ।
मैं अक्सर जिंदगी को ऐसे भी देखता हूँ की मुझे किसी अनजान प्लेनेट या जगह पे ला कर छोड़ दिया गया और कुछ दिन दिए गए अब यह मेरे ऊपर है की मैं अपने इस समय को कैसे प्रयोग करू ताकि व्यर्थ न जाए यंहा पर आना । और जिंदगी की यह खास बात है की इसका कोई फिक्स मकसद नहीं यानि की हर कोई अपना मकसद चुन सकता है ।
दो तरह के युवा है एक जिसे की माँ-बाप किसी ने हक़ दिया की तुम्हे यही करना है इसी रस्ते पर चलना है यही तुमहरा मकसद है बस उस पर चल दिए । दूसरे वे जो की इन चीज़ो पर सवाल करते है । जो सवाल करते है वो अपने जीवन का मकसद स्वयं तलासते है , उसकी रह स्वयं तय करते है और उस पर चलते है । यह अब आपके ऊपर है की आप कौन सा बनाना चाह रहे है ।
अक्सर हम जब यह सवाल करते है की मेरे जिंदगी का पर्पस क्या होना चाहिए तो हम एक तरह से स्वयं से ये पूछ रहे होते है मैं अपने समय के साथ क्या करू जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है । अब अगला सवाल आत है की मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण है जन्��ा मैं अपने जीवन यानि की समय का निवेश करू । इस सवाल का जबाब अलग-अलग तरीके से ढूंढा जा सकता है । अक्सर मैं इस सवाल का जबाब इस प्रकार ढूंढता हूँ की अगर मेरा यह जीवन का आखिरी साल है तो मैं क्या करूँगा । यह किताब भी उसी का नतीजा है । मैं अपने एक्सपेरिएन्सेस शेयर किये बिना नहीं मरना चाहता था । अगर आपको पता है की ऐसी कौन सी चीज़ है जिसमे आपका मन लगता हो , जिसको करने में आपको अच्छा लगता हो , ग्रेट फील होता हो तो उसे करे अन्यथा सेटल न हो , उसे ढूंढते रहिये ।
कई बार हमें पता होता है की हम क्या चाहते है और फिर भी उसके लिए अपना एफर्ट नहीं दे पाते , ऐसी स्तिथि में आपको मोटिवेशन हेल्प कर सकता है । वैसे हर एक बात,लाइन , फोटो और वीडियो या कुछ भी ऐसा अपने पास रखे जो आपको मोटीवेट करती हो । और हाँ आपको यह भी ध्यान रखना होगा की आप स्वयं को रोज मोटीवेट करे , जिस तरह से एक दिन नहाने से काम नहीं चलता उसी तरह से एक दिन सिर्फ खुद को मोटीवेट करने से काम नहीं चलता ।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक इंसान की सफलता 85 % उसके अटीट्यूड (मनोदृष्टि-सोचने का तरीका ) पर निर्भर करती है । मौके हमेसा ह��ारे पास होते है बस हमें पहचानने की देर होती है । और हमें यह हमेशा ध्यान रखने की जरुरत है की हर समस्या अपने बराबर या बड़ी मौका लेकर आती है । इसके लिए पॉजिटिव एनवायरनमेंट को बनाना बहुत जरुरी है । एनवायरनमेंट उसी तरह का काम करती है जैसे नदी की धारा , अगर नदी की धारा जिधर आपको जाना है उसी दिशा में है तो आप बहुत आसानी होगी अन्यथा अगर धारा विपरीत हुई तो आपको दुगनी मेहनत करनी पड़ती है । सफलता की परिभषा सब्जेक्टिव है यानि की अलग-अलग लोगो के लिए अलग अलग लेकिन सफलता का सबका तारित एक ही है । और यह आसानी से सभी सक्सेसफुल व्यक्तियों के कॉमन क्वालिटी से जाना जा सकता है ।
एक और बीमारी है जो हमें हमारे राह में बड़े रोड़े का काम करती है जिसे हम आम भाषा में कहते है कल पर छोड़ना । लेकिन अगर हम कोई काम आज कर सकते है तो उसे आज ही कर देना चाहिए क्योकि हमारे पास समय बहुत लिमिटेड है । हमें समझना होगा की अगर हम अपना महत्वपूर्ण समय सोने , उठने, खाने और नहाने में ही गँवा देंगे तो जीवन के महत्वपूर्ण काम कब करेंगे ।
सोचते है की जब बड़े होंगे तो ये करेंगे वो करेंगे , और सब फिर अगला दिन , अगले महीने और अगले साल पर डालते जाते है । पर हमें यह समझने की जरुरत है की हम हर एक अगले दिन बड़े हो रहे है और हम सबसे बड़ा अपने मृत्यु के दिन होंगे तो क्या हम अपने सपनो को पूरा मृत्यु के दिन करेंगे ।
जीवन में हमारे पास जितने दिन ह�� उससे अधिक बहुत से लोगो के पास पैसे होते है लेकिन वो पैसो को सोच-समझ के खर्च करते है लेकिन समय को नहीं । जबकि पैसे हमारे बच्चो के भी काम जायेंगे जिसका प्रयोग नहीं किया लेकिन जो हमारा समय हम यूँही खर्च कर रहे है वह किसी के काम नहीं आने वाला । पैसे अगर व्यर्थ चले जाये तो दुबारा से अर्जित किये जा सकते है लेकिन समय नहीं किया जा सकता ।
इसलिए हम अपने समय का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने के लिए अपने समय को अपने मकसद को पूरा करने के लिए लगाना चाहिए और अगर नहीं है है तो उसे ढूंढने में । वार्ना ऐसे ही आये और ऐसे ही गए वाली बात हो जाएगी । इसलिए आपको अपने जिंदगी को एक मीनिंग (अर्थ) देना होगा ।
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मेरे दिलो के दरमियान क्या है !
मेरे दिलो के दरमियाँ क्या तू झाँक के तो देख
एक छोटा सा फाक है
जिसमे एक छोटा सा बच्चा है
वो दुनिया को अपनी छोटी-छोटी आँखों से झांक रहा है
चमसा पहना है पर दुनिया को बिन चसमे के ही ताक रहा है
सहमा सा है पर
दुनियाँ को बदलने की हिम्मत कर रहा है
नन्ही-नन्ही उंगलिओ से एक नए रास्ते की ओर इशारा कर रहा है
छोटे-छोटे कदम बढ़ा रहा है , नन्हे-नन्हे पाओ से
नय रास्ते बना रहा है
डर रहा दुनियाँ की नफरत से और
मोहब्बत का पाठ पढ़ा रहा है
मेरे दिलो के दरमियाँ क्या है तू झांक के तो देख
एक छोटा सा फाक है
जिसमे एक छोटा सा बच्चा है |
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दूसरे पन्ने को पलट के तो देख !
"जिन्दगी कितनी खूबशूरत है , दूसरे पन्ने को पलट के तो देख ।
एक पन्ना कोरा निकला तो क्या हुआ ,
कुछ पन्नो ने आँखों में आंसू ला दिए तो क्या हुआ ,
जिंदगी में जैसा सोचा था वैसा न हुआ तो क्या हुआ ,
जिंदिगी कितनी हसीन है दूसरे पन्ने को पलट के तो देख ।
एक दुःख भरे पन्ने पर नज़रे क्यों टिकाये जा रहा है,
क्यों उसपर ही अपने अनमोल पल बिताये जा रहा है ।
इतने पल बीत गए , बाकी भी बीत जायेंगे ,
क्या पता जिन लम्हों की तुझे तलाश है वह इन्ही पन्नो में आएंगे ।
एक बार कम से कम जिंद��गी की पूरी किताब तो पढ़ ले ।
बहुत उलट लिए गम के पन्ने अब कुछ खुशियो के भी उलट ले ।
बिन पलटे पन्ने को तो यह कह नहीं सकता की जिंदिगी हसीन नहीं ।
पलट ले कुछ और पन्नो को जितने पल है उतने ही सही ।
जिंदगी कितनी खूबशूरत है दूसरे प���्ने को पलट के तो देख ।
क्या पता इन पन्नो में ऐसे सवेरे हो जैसा तूने देखा ही नहीं ।
जिंदिगी कितनी हसीन है बस फर्क है तू कंहा से देखता
भिखारी खुद को पायेगा , अगर राजा की नज़र से है देखता ।
राजा है तू अगर खुद को भिखारी की नज़र से देखता ।
जिंदिगी के कोरे पन्नो की भी एक खास बात है,
लिख सकता है जो तू है चाहता अपने वर्त्तमान से।
मत मांग किसी खुदा से भलाई अपनी किताब में,
लिख दे जो तू चाहता अपने वर्तमान से ।
मुस्कुरा के तो देख मुशीबत के पल में,
झूठा ही सही हिम्मत दिखा के तो देख मुशीबत के पल में ।
मै ये नहीं कहता दर्द काम हो जायेगा ,
पर एहसासो पर तो जरूर फर्क पड जायेगा ।
अक्षर न बदले तो क्या हुआ पन्ना ही उलट जायेगा ।
जिन्दगी कितनी खूबशूरत है , दूसरे पन्ने को पलट के तो देख । "
Life is so beautiful, you just need to turn another page.
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वो कहते है मोहब्बत है फूल से !
वो कहते है हमें मोहब्बत है फूल से और फूल ही घर तोड़ लाते है
वो कहते है मुझे मोहब्ब्त है पंक्षी से और
फिर फिर पिंजरे में कैद कर डालते है
वो कहते है हमें मोहब्बत है तुमसे और फिर नकाब पहना देते है
वो कहते है हमें मोहब्बत है तुमसे और घूँघट में कैद कर देते है
वो कहते है हमें मोहब्बत है फूल से और फिर फूल ही घर तोड़ लाते है
वो भूल जाते है इसके अंदर भी जान
इसके अंदर भी अपने जैसा प्राण है
वो भूल जाते है ये तोड़ने से मर जाएगी,
ये कौन सी मोहब्बत है जो तुम मुर्दे से करते हो
ये कैसी मोहब्बत है जिन्दा है जो उसे कैद करने की हसरत रखते हो
कहते हो हमें मोहब्बत है फूल से और फूल ही घर तोड़ लाते हो ।
लेकिन कम्बख़त ये नहीं समझते की ये मोहब्बत नहीं पाने की हसरत है
मोहब्बत अपनी मोहब्बत से प्यार का नाम है ना की हसरतो से
बदनाम करते है ये लोग मोहब्बत को हसरतो की गलियों में
काश कोई इन्हे समझाए मोहब्बत आज़ादी का ज़रिया है ना गुलामी पिंजरा
वो कहते है हमें मोहब्बत है फूल से और फूल घर तोड़ लाते है ।
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वो हाथो में कुरआन लेकर निकले है !
वो हाथो में कुरआन लेकर निकले है ,
कुछ बाईबल और पुराण लेकर निकले है ।
जुबां पर दोनों की छुरी है,
दोनों मानवता को काटने के लिए सरेआम निकले हैं ।
कहते है हम धार्मिक है
पर धर्म को बदनाम करने निकले है ।
अगर अच्छा है आपका धर्म-सलीका जीने का
तो आप यह न कहते की हम औरो को अपने राह पर लाने को निकले है ।
अगर आप समझते धर्म और ईश्वर को तो
ये न कहते की हम उसकी रक्षा में निकले हैं ।
धर्म इंसान के लिए है इंसान धर्म के लिए नहीं
इतनी बात समझते नहीं और कहते है और कहते है हम धर्म का पाठ पढ़ने निकले हैं ।
कहते है ये आस्था और विश्वास की चीज़ है यह तर्क से नहीं समझा जा सकता
ये भी एक तर्क है जो इतनी सी बात न समझ सके हमें ज्ञान देने निकले हैं ।
एक तरफ औरत और पुरुष के भेदभाव को कहते है खुद ने लिखा है
और दूसरी तरफ कहते है उसी खुद की इबादात करो,
ये खुदा को बदनाम करने निकले है ।
वो हाथो में कुरआन लेकर निकले है
कुछ बाईबल और पुराण लेकर निकले है ।
दोनों की जुबां ���र छुरी है
दोनों मानवता को काटने के लिए सरेआम निकले हैं ।
कहते है खुद के मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता
हर हत्या, बलात्कार और गुनाह को ये पिछले जन्म का फल बताने वाले
ईश्वर-अल्लाह का जानकार बन कर निकले है ।
भाग्यवाद और पुनः जन्म को ये शोषण का हथियार बन कर निकले है ।
कहते है औरत को दोयम दर्ज़ का रब ने बनाया है
जिस माँ के पेट से निकले उसी माँ को दूसरे दर्ज़े का बनाने का अभिमान लेकर निकले है।
हर चीज़ के जबाब में ये ईश्वर-अल्लाह और भगवान कहते है
विज्ञान और सच की रह में शुरू से रोड़ा बनने वाले
कहते है हम ब्राह्मण का ज्ञान लेकर निकले है ।
लोगो के भाग्य को बदलने के नाम पर पैसे ऐठने वाले , खुदा के व्यापारी
परोपकारी बन कर निकले है ।
परंपरा के नाम पर औरत को कभी सती तो कभी दहेज़ के नाम पर जिन्दा जलाने वाले
परंपरा और संस्कृति का हथियार लेकर निकले है ।
धर्म के नाम पर लोगो को सदियों तक कभी जाति तो कभी लिंग के नाम पर
शोषण करने वाले उसी धर्म का सिलेबस बदलकर उदार बनकर निकले है।
वो हाथो में कुरआन ले कर निकले है
कुछ बाईबल और पुराण लेकर निकले है ।
जुबां पर दोनों की छुरी है दोनों मानवता को काटने के लिए सरेआम निकले है।
This poem is inspired by charlie hebdo incident.
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बिंग बिहारी
कुछ दिन पहले की बात है मैं पुणे में रहने के लिए फ्लैट रेंट पर खोज रहा था। बिहारी होने की वजह से बड़ी मुश्किल आई अच्छे-अच्छे फ्लैट मालिकों को पता नहीं क्या हो गया बिहारी सुनकर । ऐसी समस्या अक्सर अपने राज्य से बहार रहने वाले लोगो को आती होगी । लेकिन सवाल ये है आखिर ये छवि बिगड़ी कैसे और छवि को सुधर जाये कैसे ?
बहुत से बड़े डॉक्टर , इंजीनियर ,बड़े अफसर अक्सर बिहार के होने बाद भी पूरी कोशिश करते है अपनी पहचान छुपाने की । मान ले अगर आप खुद को अचे व्यक्ति मानते है , आप अच्छा व्यव्हार भी करते है लेकिन आपके जैसा व्यक्ति अगर अपनी पहचान छुपा देगा तो बहार के लोग कैसे जान पाएंगे की बिहार में अच्छे लोग भी है ? एक चोर जो बिहार में पकड़ा जाता है तो वह खुद को बिहारी बताता है लेकिन जब एक अफसर को बिहारी बताने में शर्माता है , तो कहाँ से बदलेगी छवि ?
मुझे भी बहुत बार समस्या आई है बिहारी होने की वजह से लेकिन अपनी पहचान छुपा देना कहाँ का हल है ? कहाँ तक छुपायेगा ? आप अगर ऐसे जगह से आते है जिसकी छवि ख़राब है तो आपकी ज़िम्मेदारी दोगुनी हो जाती है की जब आप बहार जाये तो खास ख्याल रखे की आप एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक राज्ये को रिप्रेजेन्टेटिव है ।
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हद गुनाहों की है या हद तेरी चुप्पी की है
तू जब कोख में थी , तेरे जन्म लेने पर सवाल उठा तब रही तू चुप । तुझे तेरे भाइयो की तरह न पढ़ाया गया तब भी रही तू चुप । तेरे भाइयो को खेल कूद , तुझे घर के काम-काज तब भी रही तू चुप । ख़ूबसूरती और परंपरा के नाम पर तेरा नाक कान तक छेद दिया गया , तब भी रही तू चुप । बेड़ियों को चूड़ी और पायल कह कर पहना दिया गया तब भी रही तू चुप । तुझे वस्तु की तरह घूरा गया , तुझे मदिरा की तरह सेवन की बात कही तब भी रही तू चुप । तेरे घर से निकलने को , तेरे कपड़ो को बलात्कार का वजह बताया गया तब भी रही तू चुप । शादी के नाम पर तुझे वास्तु की तरह लड़के वालो के सामने पेश किया तब भी रही चुप । तुझे शादी कर घर और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया तब भी रही तू चुप । शादी के बाद तेरा नाम , तेरा पहचान मिटा दिया गया तब भी रही तू चुप । माथे पर सिंदूर लगा कर तेरे अमानत होने का मुहर लगा दिया गया तब भी रही तू चुप । तुझे बच्चा पैदा करने की मशीन बना दिया तब भी रही तू चुप । तेरी जिंदिगी को चार-दिवारी के बीच दफना दिया गया तब भी रही तू चुप । मर्यादा के नाम पर तेरी खुशियो के ऊपर घू��घट उढ़ा दिया गया तब भी रही तू चुप । मरने के बाद तुझे तेरे माता-पिता को अग्नि देने का अधिकार न दिया तब भी रही तू चुप । प्रेम के नाम पर पति ने गुलाम बना लिया तब भी रही तू चुप । दहेज़ के नाम पर तुझे जिन्दा तक जला दिया तब भी रही तू चुप । क्या हद गुनाहो की है ? क्या हद जुर्म की है ? या हद तेरी चुप्पी की है ? ***( यह कविता मैंने विमेंस डे पर महिला शसक्तीकरण के उद्देशय से लिखी है । )
“जाने वाले सिपाही से पूछो की वो कंहा जा ��हा है
कौन दुखिया है जो गा रही है
भूखे बच्चे को बहला रही है ।
लाश जलने की बू आ रही है
जिंदगी है की चिल्ला रही है ।
जाने वाले सिपाही से पूछो
की वह कंहा जा रहा है
खुल रहा है सिपाही का डेरा
हो रहा है मेरी जान सवेरा
ए वतन छोड़ कर जाने वाले
खुल गया इंक़लाबी फरेरा
जाने वाले सिपाही से पूछो
वो कंहा जा रहा है। …”
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कहती है मेरी कलम मुझसे
कहती है मेरी कलम मुझसे हर एक शोषित को जगा दे राहुल
मानव को मानव से अलग करती दीवारों को गिरा दे राहुल
धर्म का अर्थ सबको समझा दे राहुल , मजहबो के धंदे बंद करा दे राहुल
जो किताब मानव पर मानव के शोषण को सही बताती हो उन किताबो को आग लगा दे राहुल
भगवान् ने ना ये धर्म बनाया नाही ये धर्म ग्रन्थ सबको इतनी सी बात समझा दे राहुल
हर इंसान बारबर है जो इतनी सी बात न समझ सके उनको सबक सिखला दे राहुल
खोई हुई मानवता और गिरी हुई नैतिकता को ज्ञान का दीप जला कर उठा दे राहुल
प्यार का भवर चला कर जाती-पाती का रोग मिटा दे राहुल
कहती है मेरी कलम मुझसे की लिख इस कद्र की तेरी बात हवाओ में मिल जाये
तेरे शब्द पन्नो के साथ दिलो पर छप जाये
तेरी बात किताबो की जगह दिलो में घर कर जाये
लिख इस कद्र की शोषित अपनी अंतिम साँस जुल्म के खिलाफ लड़ता रह जाये
कहती है मेरी कलम मुझसे की लिख इस कद्र की कोई तुझ क मिटा कर भी तेरे पन्नो को जल कर भी
तेरी बातो को अपने दिलो से न मिटा पाए ।
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तू मेरे पन्नो को क्या जलायेगा
तू मेरे पन्नो को क्या जलायेगा
मेरे पन्ने का राख भी क्रांति लायेगा।
शोषण तभी तक रहेगा ���ब तक शोषित सहेगा
शोषित तभी तक सहेगा जब तक अनभिज्ञ रहेगा।
भगवान् ने ना बनाई ये धर्म नाही ये धर्मग्रन्थ, जिस दिन शोषित को पता ये चल जायेगा
उस दिन से तेरी दुकानों पर दुआ करने कोई न जायेगा।
मेरी स्याही पन्नो के साथ दिल पर भि छप जायेगा
मेरी बात किताबो की जगह दिलो में घर कर जायेगा
फिर तू चाह कर भि जोर-जुल्म न कर पायेगा।
शोषित जब जागृत होगा तब अंतिम सांस तक अपने हको के लिए लड़ता रह जायेगा
तू चाह कर भी उसको गुलाम न रख पायेगा।
शिक्षा की जब ज्योति जलेगी , जाग्रति जब रोशन करेगी
तेरा फैलाया अँधियारा खुद-पे खुद मिट जायेगा।
जिस दिन औरत को पता चल जायेगा की उसकी किस्मत में गुलामी नहीं बल्कि तूने किस्मत की
पाठ गुलाम रखने के लिए बनाई , उस दिन से तू औरत को मुट्ठी में न रख पायेगा।
फिर प्यार की भवर चलेगी और तेरी बनाई
जाति-धर्म का बांध उस में बह जायेगा।
तू मेरे पन्नो को जला कर भी मेरी आवाज़ को दबा न पायेगा
मेरे पन्ने का राख़ भी शोषण पर टिके तेरे महलो को ढाह जायेगा।
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ई धरम का चीज़ होत है बाबा
जब मै छोटा था मुझसे किसी बच्चे ने पुछा कि तुम किस धर्म के हो? तब मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने कहा कल बताऊंगा । मैंने घर जाकर अपने बाबा से पूछा कि बाबा ई धरम -वरम का चीज़ है ? आउर हमरो कौनो धरम-वरम है का ? उन्होंने कहा जो धारण करने योग्य है वही धर्म है। फिर मैंने पुछा धारण करने योग्य का है? उन्होंने कहा जो मानवता , समानता , एकता और न्याय के हित में हो वही धारण करने योग्य है। वही हम सब का सही धर्म है । फिर उन्होंने मानवता, एकता, समानता और न्याय के बारे में एक-एक कर के पूछा । उन्होंने कहा जो आचरण और व्यवहार खुद को बुरा लगे वो दुसरे के साथ नहीं करना चहिये यही धर्म है ।
जैसे अगर हमारा कोई शोषण करे तो हमें अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए हमें भी किसी का शोषण नहीं करना चहिये और हमेशा इसके विरुद्ध रहना चहिये ।अगर हमें कोई छोटा समझे तो हमें बुरा लगेगा इसीलिए हमें सबको बराबर समझना चहिये। किसी को अन्याय प्रिये नहीं होता इसलिए हमको दुसरो के लिए भि न्याय के पक्ष में होना चहिये। उन्होंने फिर समझाया की अगर माता-पिता बच्चे को जन्म देते है तो उनका धर्म है कि उसका सही तरीके से पालन-पोषण करे उसे भरपूर प्यार दे, शिक्षा दे ताकि वो इस दुनिया को समझ सके। और बच्चे का धर्म है कि अपने माता-पिता की इज्जत करे , उन्हें प्यार क���े , उनकी सेवा करे और जब वो वृद्ध हो जाये तो उन्हें उसी तरह प्यार और सेवा दे जैसा की माँ-बाप ने दिया। एक गुरु का धर्म है की हमेशा अपने शिष्य को अच्छा मनुष्य बनने के लिए प्रेरित करे ,फिर उसके बाद ज्ञान के लिए ।
ई जाति भी सेमे चीज़ होता है का बाबा ? उन्होंने कहा नहीं, जिव के अलग -अलग रूप को जाती कहते है जैसे की इंसान,शेर, भेड़,बकरी, हाथी, कुता, बाघ इत्यादि।
फिर मैंने उनसे पूछा लोग फिर हमारा से काहे जाति पूछते है , उनको दिखाई नहीं देता का । वो हसने लगे । उन्होंने मुझसे कहा लोग नासमझ है , उन्हें लगता है खुद को बारबार बताने से बड़ा बताना अच्छा है और अइसन लोगन के पास बड़ा बनने वाली कौनो बात नाही होती इसलिए ऊलोग ई सब काम करते है । और बहुत लोगो को ईसब घर-परिवार से फ्री मिलता है और फ्री के चीज़ पर कौनो नहीं सोचता ।
फिर मैंने उनसे पूछा की बाबा तब का कल हम अपने क्लास में उ दोस्तवा को इतना सब बताना पड़ेगा । वो बोले नहीं बस कहना मै इंसान हूँ और मेरा धर्म-मजहब इंसानियत है । और जब तुम्हारा दोस्त पूछे तब बताना ये क्या है ।
पर अफ़सोस जब मै बड़ा हुआ तो देखा की दुनिया के लिए अलग ही धर्म है । यहाँ लोग खुद को इंसान से ज्यादा खुद को हिन्दू, सिख , ईसाई मुसलमान कहने में गर्व महसूश कर रहे है। और ये अपने धर्मो के ऊपर सवाल भी नहीं करते जो लिखा है अंधे होकर मानते । एक दुसरे से होड़ लगाये हुए है कि मेरा धर्म महान है। यही तक बात नहीं ये लोग तो एक दुसरे को अपने तरीके से जिन्दगी जीने को मजबूर करते है, कभी-कभी मार-काट भी करते है।।
मुझे ये जान कर बहुत ही दुःख हुआ कि यहाँ तो धर्म मानव के लिए नहीं बल्कि मानव ही धर्म के लिए है। मुझे लगा मेरे बाबा जैसे ही सबके बाबा होते, तो ई हाल नहीं होता। पर यह संभव तो नहीं लेकिन एक तरीका है जौना से सब बच्चा ई बात सिख सकता है – शिक्षा । शिक्षा के माध्यम से यह सब सिख सकता है और उम्मीद करता हूँ की ऐसी शिक्षा हमारे देश के बच्चो को जल्द से जल्द मिले ताकि वह हिन्दू , सिख, ईसाई और मुसलमान होने बदले इंसान होने पर गर्व महसूस कर सके ।
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ओह गॉड ई आम नॉट बैड - गॉड
मुझे लगता है की बहुत से लोग सिर्फ इसलिए धार्मिक है क्योकि उन्हें लागता है कि भगवान् ��ा अल्लाह ने धर्म बनाया और धर्म ग्रन्थ लिखे। जिस दिन इनको ये बात समझ में आ जायेगी कि एक भगवान् दो तरह की बाते कैसे कर सकता है वह भी बिलकुल विपरीत और भगवान् को इतना कम ज्ञान ज्ञान कैसे हो सकता है कि वह कही लिखेगा पृथ्वी तस्तरी की तरह है और शेष नाग पर टिकी हुई है और कही कहेगा की अंडे की तरह है, उस दिन धर्म के दुकान पर ताला लग जायेगा।
लोग पता नहीं भगवान् को इतना जालिम और पागल क्यों समझते है कि वह पिछले जन्म कि सजा इस जन्म में देगा और वह भी उस गलती की जिसका व्यक्ति को पता ही नहीं। वह स्त्री विरोधी कैसे हो सकता है वह कैसे कह सकता है की स्त्री बहुमुल्य अमानत है यानि वास्तु है जिसे वश में रखने के लिए आप मार-पिट भी सकते है। वह औरत और मर्द के लिए अलग नियम कैसे बना सकता है कि एक आदमी जितनी चाहे उतनी शादी कर ले पर विधवा औरत को एक शादी का भि अधिकार नहीं। नहीं वह अपने बच्चो के साथ सौतेला व्यवहार नहीं कर सकता ??
अगर वह ऐसा करता है तो मै उसकी भक्ति सिर्फ इस लिए नहीं कर सकता की उसने मुझे बनाया है। जैसे की एक माँ अगर अपने बच्चे को जन्म दे कर , वो उसे मरने के लिए फेक देती है तो वह माँ भक्ति की पात्र नहीं। उसी प्रकार अगर आप कहेंगे की ईश्वर इतना बुरा और जालिम है, तो मै ऐसे इश्वर का विद्रोह करता हूँ।
दोस्तों भगवान् रास्ता दिखने वाला है भटकने वाला नहीं जो ऐसी फिजूल की बाते करेगा। उसने हमें सोचने के लिए विवेक दिया ताकि हम किसी की कही बातो पर विश्वास न कर के तर्क और तथ्य के आधार पर कोई बात माने। अगर उसे ���ाबाओ/ पंडित-पोंगियो/ मुल्लो/पादरियों को ही हमारे बिच में रास्ता दिखने के लिए भेजना होता तो फिर हमें दिमाग नहीं देता। शायद वह जनता हो की बहुत लोग धुर्त भी है और वो जानते है की मै कभी सामने नहीं आऊंगा और इस का बात का ये धुर्त फायदा न उठा ले इसीलिए उसने हमें दिमाग दिया होगा। आप सब इतिहास और विज्ञान पढ़कर भी क्यों नहीं समझते की धर्म कब आया और किस लिए आया? अगर नहीं जानते तो आपको इतिहास पढने की जरुरत है। फिर सब माजरा समझ में आ जायेगा।
जिस दिन आप सब को ऐहसास हो जायेगा की भगवान् ने धर्म नहीं बनाया उस दिन सारी ढोंग-पाखंड की दुकाने बंद हो जाएँगी। जिस दिन आपको इस बात का एहसास हो जायेगा की भगवान् हर जगह है उस दिन आप मंदिर-मस्जिद और गिरजाघर जाना बंद कर देंगे और उस पर करोड़ो-अरबो लुटाना बंद कर के वह पैसा समाज को देंगे। जिस दिन आपको एहसास हो जायेगा कि कर्म ही पूजा है उस दिन आप उसकी घंटो बैठ कर भक्ति नहीं करेंगे। जिस दिन आपको एहसास हो जायेगा की सब कुछ दिया ह��आ भगवान का ही है और भगवान आपके लड्डू का मोहताज़ नहीं उस दिन एक नयी दुनिया का ही निर्माण होगा जंहा समानता होगी, भाईचारा होगा , बराबरी और इन्साफ होगा।क्योकि वह आपका धर्म आपका दिमाग होगा , आपको गाइड कोई किताब और बाबा नहीं बल्कि आपका पाना दिमाग करेगा । मै ऐसे लेख इसी उम्मीद में लिख रहा हु और उनलोगों तक पहुचने कि ज्यादा कोशिश कर रहा हु जिन्हें इंसान से जयादा हिन्दू, मुस्लिम और इसाई होने का गर्व है।
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द फोलोस्फी ऑफ़ एक्सपोलिटशन
जिस दिन उस पीडिता लड़की का देहांत हुआ, उस दिन मेरे एक मित्र ने अजब बात कही। उन्होंने ने कहा की जिसके भाग्य में जो लिखा है वही होता है, इस लड़की के भाग्य में यही लिखा था। इतना कह कर भी वे नहीं रुके फिर उन्होंने कहा की उसने पिछले जन्म में जरुर कुछ पाप किया होगा तभी उसके साथ ऐसा हुआ।
आप कहते हैं न की ब्राह्मणवाद क्या है ? इसी को कहते है ब्राह्मणवाद , भाग्यवाद, पुनः - जन्म , जाति-पति , वर्ण व्यवस्था , ढोंग-पाखंड , कर्म-कांड को ही सम्मलित कर के ब्राह्मणवाद कहते है। इन्ही सिद्धांतो और विचारो के आधार पर स्त्री और शुद्रो के साथ हजारो सालो तक शोषण हुआ और वे चुप-चाप यही समझ कर सहते रहे कि ये उनके भाग्य में लिखा है पिछले जन्म के कर्म के अनुसार। और मै धर्मं-ग्रंथो के खिलाफ भी इसीलिए हु कि उसमे ये सब कूट-कूट के भरी है। जिन्होंने सिर्फ सुना है वो कृपया एक बार खुद से अपने इन धर्मं ग्रंथो को पढ़ ले मुझे पूरा विश्वास है अगर आप समानता और मानव आज़ादी के पक्षधर होंगे तो मुझसे जायदा खिलाफ हो जाएंगे। आप उसी स्तिथि में इसको पूजते है या तो आप इसमें लिखे बातो को नहीं जानते या आपको धर्मं से किसी भी प्रकार का लाभ पहुचता हो। कुछ लोग और भी है जो की बेचारे धर्म को सिर्फ इसलिए श्रेष्ठ शाबित करने में लगे हुए है क्योकि उन्होंने इसे बिना विचार किये पहले ही अपना लिया है और सही मान लिया है। मै ये नहीं कहता की भगवान् नहीं मै ये कह रहा हु की भगवान् इतना क्रूर और पागल नहीं हो सकता की पिछले जन्म की सजा देगा और उस गलती की जिस गलती का हमें पता ही नहीं।
-------- मानसिक गुलामी भी अजीब है गुलाम को पता भी नहीं चलता की ��ह गुलाम है । कितना भी बुरा हाल हो पिछले जन्म का फल समझ कर जिता-जाता है । सच में आज के समय में सवाल न करना ही मानसिक गुलामी है चाहे कोई भी कह रहा हो या कितने लोग भी उस बात को मान रहे हो । चाहे करियर चुनने का सवाल हो या पार्टनर चुनने का आँख बंद कर भीड़ के साथ चलना आज के समय में वास्तविक मानसिक गुलामी है ।आस्था-विश्वास और तर्क न करने की बात दो ही तरह का व्यक्ति करता है या तो धूर्त नहीं तो मूर्ख ।
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हैट्रेड एंड सोशल मीडिया
मैं बहुत समय से सोच रहा था की आखिर इतनी नफरत और गुस्सा आता कंहा से है। फिर मैंने सवाल किया की मैं आज घटनाओ की जानकारी कंहा से लेता हूँ , कंहा पर अन्य लोगो की प्रतिक्रिया को पढता हूँ। जबाब साफ़ था फेसबुक -ट्विटर । अचानक मैंने अपने न्यूज़ फीड पर गौर करना चालू कर दिया । पाया की जो फेसबुक का गणित है वह हमें फेसबुक पर ज्यादा देर तक उलझा के रखने की है इसके लिए फेसबुक हमें ज्यादातर एक तरह की ही पोस्ट देने लगता है । जिसकी वजह से हमारी न्यूज़ फीड एक तरह की मानसिकता से भर जाता है । इससे हम एक पक्ष में तो मजबूत हो जाते है लेकिन हमको दूसरे पक्ष को जानने का मौका ही नहीं मिलता । इसमें कई बार ऐसे पेज या मित्र के पोस्ट होते है जो तर्क से हटा हमें गुस्सा दिलाने का कोशिश करते है । कई बार आप जिस समाज से आते है या जिसकी आप फ़िक्र करते है चाहे वो हिन्दू हो , मुस्लिम हो , दलित हो , क्रिस्चियन हो या सिख हो - उससे सम्बंधित ऐसी बर्बरता को दिखाई जाती है जिससे हमारा खून खौलने लगता है । हम अचानक कब अपने समाज के हितैषी के बदले दूसरे समाज के दुश्मन बन जाते है हमको पता ही नहीं चलता । कब हम एक समाज के रक्षक से दूसरे समाज के भक्षक बन जाता है पता ही नहीं चलता । हम युवा नफरत और बदले की आग में इस प्रकार जलने लगते है की कब हम मानवता तक भूल जाते है हमें खुद ही पता नहीं चलता । कई बार हम उन उग्रवादी और कट्टरपंथी संगठनो तक से जुड़ जाते है जो की धार्मिक उन्माद के नाम पर निर्दोष बच्चो तक से हिंसा करने में नहीं चूकते । फिर हम युवा ये भी कहने लगते है उन्होंने भी तो हमारे घर जलाये थे - हमने तो बस जबाब दिया है । लेकिन हम ये भूल जाते है की जबाब उनको नहीं मिलती जिन्होंने ऐसा किया हो बल्कि हजारो निर्दोष बच्चो को , महिलाओ को और बुढो को जिनका इनसे दूर-दूर ��क कोई नाता नहीं होता। कई बार ऐसे काम पोलिटिकल पार्टी भी करने लगती है , ताकि समाज के बिच तनाव पैदा हो और उसे किसी एक वोट बैंक का लाभ मिले । नफरत इतनी भर जाती है है की कब हम अपने देश में ही दरार पैदा करने लगते है पता नहीं चलता । और हम कई बार इन सब के चक्कर में आकर ये तो भूल ही जाते है की हम नफरत में कभी भी किसी समाज , देश या मानवता की भलाई नहीं कर सकते। हमारे देश में अनेक भाषा है , अनेक रंग है , अनेक धर्म है , अनेक संस्कृति है और शायद इसी वजह से हम दुनिया में खास है । जन्हा इतनी विविधताएँ होंगी वंहा वैचारिक डिफरेंस होना स्वाभिक है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की हम किसी को अपना दुश्मन समझ ले । क्योकि मै मानता हूँ किसी भी बात को किसी भी विचार को बिना गुस्से के, बिना ठेस पहुचाये कहा जा सकता है।
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ऑक्स एंड द रेड साड़ी
“ कौन कहता है की वो निर्भया का अपराधी है
वह मेरा भी अपराधी है
जब मेरी बहन घर से निकली है तो खौफ-ज़दा हो जाता हूँ
माँ बाजार जाती है तो सहम सा जाता हूँ
गर्लफ्रेंड देर रात को कही से लौटती है तो डर सा जाता हूँ
कौन कहता है की वो निर्भया का अपराधी
वो मेरा भी अपराधी है
कौन कहता है की वो अपराधी है वह आतंकवादी है ।
दरसल जब भी कही बलात्कार होता है हम आम नागरिक बस उस दोषी को सजा दिलाने तक ही अपना कर्त्तव्य समझते है । हम बलात्कार में सख्त कानून भी ले आये , कइयों को फांसी भी हुई लेकिन यह किस्सा है रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है।
ऐसा इसलिए होता है क्योकि हम सभी कही न कही यह मान कर चल रहे है की बलात्कार पुरुष या किसी की अन्यन्त्रित सेक्स की इच्छा की वजह से होता है । लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है अगर ऐसा होता तो फिर सिर्फ पुरुष ही ऐसा क्यों करते । क्या औरत के अंदर सेक्स की इच्छा नहीं होती । इसलिए ये बात बिलकुल ही गलत है की यह अनियंत्रित सेक्स की अच्छा की वजह से होता है ।
ऐसा काम तभी कोई कर सकता है जब वह इतना स्वार्थी हो जाये की उसे कोई फर्क नहीं पड़े अपने इच्छा के आगे की किसी की चाहे जिंदगी ही क्यों न बर्बाद हो जाये । और वह तभी ऐसा कर सकता है जब वह औरत को ऑब्जेक्ट यानि एक वस्तु की नज़र से देखता हो। जब इंसान पैसा के लिए मर्डर कर सकता है तो वह सेक्स के लिए रेप भी कर सकता है । कहने का मत��ब की ऐसी चीज़े वही ज्यादा होंगी जन्हा यह सिख मिलती है की सिर्फ अपने बारे में सोचो चाहे दुसरो को कितना भी नुक्सान हो ये मत देखो । अगर हम अपने बच्चो को ऐसी सिख देंगे तो आगे चल कर अपने स्वार्थ की वजह से रेप भी कर सकते है ।
बहुत से लोगो को लगता है की बलात्कार कपड़ो की वजह से होते है बलात्कारियो को भी ऐसा ही कुछ लगता है अगर उनके इंटरव्यू को पढ़ेंगे तो पता चलता है । लेकिन समझने वाली बात ये है की अगर ऐसा होता तो फिर बुर्के में रहने वाली महिला इसका शिकार न होती , २ साल की बच्ची भला कैसे किसी को लुभा सकती है ।
इतिहास में बलात्कार को औरत के लिए सजा के रूप में भी प्रयोग किया गया है जब वह सामाजिक व्यवस्था के हिसाब से नहीं चलती थी तो उसे सबक सिखलाने के लिए ऐसा किया जाता था । पुरुष प्रधान समाज इसे शक्ति प्रदर्शन और औरत को सबक सिखलाने का जरिया के तौर पर लेता है । जो लोग समझते है की औरत को हद में रहनी चाहिए , उनके लिए जो समाज में नियम बनाया गया है या चलता आ रहा है वही करना चाहिए , उन्हें रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए , बॉयफ्रेंड या पुरुष मित्र नहीं बनाना चाहिए इत्यादि । ऐसी सोच बलात्कारियो की भी होती है । जो लोग ऐसा सोचते है वो जाने-अनजाने में इन बलात्कारियो को बढ़वा दे रहे है । वह एक तरह से औरत की दमन की सोच को बढ़वा दे रहे है , गैर -बराबरी की वकालत कर रहे है ।
अनेक धर्मो में भी स्त्री और पुरुष के लिए अलग अलग नियम है , इनको भी हमें आँख बंद कर मानना सही नहीं है ।
जब दिल्ली निर्भया कांड के दोषियों का इंटरव्यू आया था तो उसमे भी ये बाते साफ़-साफ़ दिख रही थी । आप अगर उस वीडियो को देखेंगे तो आपको साफ-साफ़ समझ में आएगा की वे कैसी मानसिकता और सोच के लोग थे ।
ऐसी मानसिकता हमारे बच्चो की न हो इसके लिए उन्हें बराबरी की सिख देनी होगी । यह सिखाने के बजाय की लड़को का यह काम है , लड़कियों का यह काम है इसके बदले माता-पिता को खुद बेटी को बारबार प्यार , शिक्षा और संपत्ति में हिस्सा देना चाहिए ।
लड़कियों को साथ ही साथ नाजुक होने के बजाय मजबूत और अपनी आत्मरक्षा स्वयं कर सके इस लायक बनाने की जरुरत है ।
स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को कंपल्सरी करना चाहिए और माता-पिता को भी बच्चे की सही उम्र होते उसे इसके बारे में बता देना चाहिए । ताकि बच्चा सेक्स जैसे विषयो के बारे में कही गलत जगह से जानकारी न कर ले ।
आज मैरिटल रेप आम बात है इस पर भी सवाल उठाने की जरुरत है की शादी कैसे ���िसी के साथ जबरदस्ती शारारिक सम्बन्ध बनाने का लाइसेंस हो सकता है । इसे बहुत सी लड़कियां मज़बूरी में सहती है बहुत तो अपने पैरो पर नहीं ह��ती इसलिए और कुछ समाज की चिंता की वजह से । ऐसी लड़कियों को अपने पैरो पर खड़ा होने की जरुरत है और उस समाज की बिलकुल भी फ़िक्र करने की जरुरत नहीं जो उनके प्रति बिल्कुल ही असंवेदनशील है ।
बलात्कार एक परिणाम है इस गैर-बराबरी वाले पुरुष प्रधान समाज का जिसे हर प्रकार लौंगीक बराबरी से पूरी तरह ख़त्म किया जा सकता है ।
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