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एक विचार हिन्दी दिवस पर मेरा भी
हिंदी अनेकता में एकता का दर्शन कराने वाली भाषा है। हिंदी का व्यक्ति संसार को अपना परिवार मानता है "वसुधैव कुटुम्बकम्" और अंग्रेजी का व्यक्ति विश्व को बाजार मानता है "The World is a Business" और मित्रों परिवार में प्यार होता है और बाजार में व्यापार होता है। हिंदी की विद्वता के ऐसे अनेक उदाहरण है।लेकिन आज युवाओं में स्टेटस की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा को ज्यादा विद्वान आंका जाता है इसमें गलती आज की युवा पीढ़ी कि नहीं बल्कि उन बुद्धिजीवियों की जिन्होंने शिक्षा पद्धति में हिंदी को तवज्जो नहीं दिया जो मिलना चाहिए था हिंदी की विध्वता शिक्षा व्यवस्था में उभर कर नहीं आती जैसे कि आज दिन तक मैंने किसी भी किताब में यह नहीं पड़ा कि फलाना वर्ड हिंदी भाषा या संस्कृत से लिया गया है यह शब्द लेटिन भाषा ग्रीक भाषा फलाना भाषा से लिया गया हिंदुस्तान की शिक्षा पद्धति में कब हम बताएंगे भ्राता से ब्रदर बना मातृ से मदर बना। आज शिक्षा में भारतीयता लाने की बह��त आवश्यकता है। शिक्षा पद्धति में इतिहास पुनर लेखन की मांग उठनी चाहिए यही हमारा मां हिंदी के प्रति सच्चा सम्मान होगा।
-प्रांजल शर्मा
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तरुण सागर जी के ज्ञान के सागर में एक डूबकी मेरी भी
TV इंटरव्यू आप की अदालत में पहली बार तरुण सागर जी को सुना था ध्यान है मुझे उन्होंने कहा था की *"दीवार पर खिल ठोकना है तो तकिए से काम नहीं चलेगा हथोड़ा चलाना पड़ेगा इसलिए मेरे जो प्रवचन है वह थप्पी का नहीं थप्पड़ का काम करते हैं"* उस दिन अद्भुत इंटरव्यू सुनकर मैं उस सागर में डूब गया और तब से उन्हें सुनने की जिज्ञासा हमेशा रहती थी कभी प्रत्यक्ष सुनने का अवसर तो नहीं मिला परंतु YouTube के माध्यम से अनेकों बार सुना है ध्यान है मुझे जब ��क बार किसी ने आचार्य श्री से पूछा कि आप संत हो आपने सब मोह त्याग दिया है फिर भी आप ऊंचे मंचों पर बैठते हैं तब उन्होंने कहा *"यदि दीपक को ऊंचे स्थान पर रख जाए तब वह कमरे में फैले पुरे अंधकार को मिटा सकता है और मैं ऊपर चौकी पर बैठकर भी छोटा हूं और आप नीचे बैठकर भी बड़े हैं क्योंकि मैं चौकी पर बैठा तो मैं चौकीदार हुआ आप जमीन पर बैठे हो आप जमींदार हुए"* ऐसे कई अनेकों प्रसंग ने मुझे प्रभावित किया है उनके ज्ञान का प्रकाश और बातों का विश्लेषण सभी को सम्मोहन में डाल देता है ऐसे अद्भुत संत और ऐसे वक्ता बहुत कम धरती पर जन्म लेते... आज हमने समाज के एकदिशा निर्देशक को खो दिया है.....
गमगीन है
प्रांजल शर्मा

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सफलता 3 स्तंभों के ऊपर टिकती है शक्ति, संघर्ष, प्रगति शक्ति बिना संघर्ष नहीं संघर्ष बिना प्रगति नहीं.....
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आज मन पीड़ित हैं, पर कुछ लिखूंगा
हम क्यों नहीं समझे जीवन के साथ मृत्यु एक *अटल* सत्य है... इनदिनों दिल्ली संसद मोन हो गई होगी उस के कोने-कोने से केवल अटल जी की गूंज सुनाई पड़ रही है सुनो अटल जी कह रहे हैं "सरकारें आएंगी जाएंगी पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर यह देश रहना चाहिए इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए !!" देखो वो दृश्य संसद में दिखाई पड़ रहा होगा कैसे नैतिकता के सिद्धांत पर अडिग रहकर राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा सौपने जाने की बात कह रहे है देखो... सुनो महाराष्ट्र में प्रथम अधिवेशन का वह भाषण जब अध्यक्ष पद पाकर भी लेशमात्र अहंकार ना था वह गुंजन अभी तक गूंज रही है सुनो मंच पर से अटल जी बोल रहे हैं
"भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद कोई अलंकार की वस्तु नहीं है, यह पद नहीं दायित्व है, प्रतिष्ठा नहीं परीक्षा है, यह सम्मान नहीं चुनौती है, मेरे लिए राजनीति केवल कुर्सी का खेल नहीं है"
सुनो गौर से याद करो भविष्यवाणी जो उस दूरदर्शी ने करी थी
"भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले इस महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि, "अंधेरा छटेगा-सूरज निकलेगा-कमल खिलेगा"
सुनो वह चीख जब संसद में भारत को भूमि का टुकड़ा नहीं अपितु राष्ट्रपुरुष माना था उन्होंने उन्होंने कहा था कि
"भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष है हम जिएंगे तो इस धरती के लिए हम मरेंगे तो इस धरती के लिए और मरने के बाद भी गंगाजल में बहती हुई हमारी अस्थियों को कोई कान लगाकर सुनेगा तो उसमें से एक ही आवाज आएगी भारत माता की जय"
वह व्यक्ति जो काल के कपाल पर लिख कर मिटा दे, जन जन के प्रणेता, शब्दों के शिल्पकार, राजनेता, कवि, भारतीय जनता पार्टी को जन्म देने वाले, विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त भारत UN मे जाकर पहली बार हिंदी में भाषण देने वाले, पड़ोसी मुल्क से रिश्ते अच्छे करने के लिए लाहौर से बस यात्रा, शहर को गांव से तालाब को नदी से और व्यक्तियों को व्यक्तित्व से जोड़ने वाले उपासक, देश की जिम्मेदारियों को गंगा समझकर शिव की तरह अपने सिर पर लेकर चलने वाला वह राजनेता जिसने कभी हार नहीं मानी रार नहीं ठानी मगर 16 अगस्त की शाम को देखते देखते सूरज हमसे रूठ गया और आसमान को चमकाने वाला वो तारा टूट गया भारत मां भी धन्य हो गई ऐसे सपूत को पाकर आज बड़ी रौनक होगी भगवान तेरे दरबार में एक फरिश्ता जो पहुंचा है जमीन से आसमान में....! देखो दिल्ली की सड़कों पर एक हुजूम उमड़ा है और देश की आंखों ��ें पानी भरा है देखो कैसे उनका नेता आज
आंख मूंदकर तीन रंगों का कफन लिपटे चला गया
मन आहत है भारत मां का प्यारा बेटा चला गया
40 साल रहे विपक्षी मंत्री पद भी पाते थे
चाहे कोई सरकार रहे सब अटल को गले लगाते थे
राजनीति की परिभाषा और उत्कर्ष का नाम अटल है
पैरों के छाले ना देखो संघर्षों का नाम अटल है
हम समझ गए जीवन के साथ मृत्यु एक अटल सत्य है मगर मृत्यु अटल है और अटल अमर है
इन्हीं शब्दों के साथ में भारत के युगपुरुष भारत रत्ना पूर्व प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी को भीगी पलकों से भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं
अटल उपासक
-प्रांजल शर्मा
वंदे मातरम....!!!
भारत माता की जय....!!
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