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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
कबीर साहेब जी ही त्रेतायुग में लंका के राजा रावण के छोटे भाई विभीषण जी को मुनीन्द्र रुप में मिले थे विभीषण जी ने उनसे तत्वज्ञान ग्रहण कर उपदेश प्राप्त किया और मुक्ति के अधिकारी हुए।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
त्रेतायुग में नल तथा नील दोनों ही कबीर परमेश्वर के शिष्य थे। कबीर परमेश्वर ने नल नील को आशीर्वाद दिया था कि उनके हाथों से कोई भी वस्तु चाहे�� वह किसी भी धातू से बनी हो,जल में डूबेगी नहीं। परंतु अभिमान होने के कारण नल नील के आशीर्वाद को कबीर परमेश्वर ने वापस ले लिया था। तब कबीर परमेश्वर ने एक पहाड़ी के चारों और रेखा खींचकर उसके पत्थरों को हल्का कर दिया था। वही पत्थर समुद्र पर तैरे थे।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
त्रेतायुग में कबीर साहेब मुनींद्र ऋषि नाम से आये। तब रावण की पत्नी मंदोदरी, विभीषण, हनुमान जी, नल - निल, चंद्र विजय और उसके पूरे परिवार को कबीर परमात्मा ने शरण में लिया जिससे उन पुण्यात्माओं का कल्याण हुआ।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी को त्रेतायुग में मुनीन्द्र ऋषि रूप में परमात्मा मिले थे, जिन्होंने हनुमान जी को अपना अमरलोक दिखाया था और सतभक्ति प्रदान की थी।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से ही पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ था। पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि महर्षि मंडलेश्वर उपस्थित थे। यहां तक की भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे। फिर भी उनका शंख नहीं बजा। कबीर परमेश्वर ने सुपच सुदर्शन वाल्मीकि के रुप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया था।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर ने ही द्रौपदी का चीर बढ़ाया जिसे जन समाज मानता है कि वह भगवान कृष्ण ने बढ़ाया। कृष्ण भगवान तो उस वक्त अपनी पत्नी रुकमणी के साथ च��सर खेल रहे थे।
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#सच्चा_इतिहास_परमात्मा_का
द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सिरजन हार।।
22 June God Kabir Prakat Diwas
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
7 वर्षीय संत घीसा दास जी गाँव खेखड़ा (जिला मेरठ, उत्तरप्रदेश) को सन् 1813 में संत दादू जी, संत गरीबदास जी की तरह कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले व उन्हें सतलोक दिखाया।
22 June God Kabir Prakat Diwas
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
नानकदेव जी को कबीर साहेब सुल्तानपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में बेई नदी पर जिंदा महात्मा के वेश में आकर मिले थे। उन्हें सचखंड यानी सत्यलोक के दर्शन कराए थे उन्होंने कबीर साहेब की महिमा गाते हुए कहा है :-
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।
(गुरु ग्रन्थ साहिब राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29)
22 June God Kabir Prakat Diwas
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
नानकदेव जी को कबीर साहेब सुल्तानपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में बेई नदी पर जिंदा महात्मा के वेश में आकर मिले थे। उन्हें सचखंड यानी सत्यलोक के दर्शन कराए थे उन्होंने कबीर साहेब की महिमा गाते हुए कहा है :-
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।
(गुरु ग्रन्थ साहिब राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29)
22 June God Kabir Prakat Diwas
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
शेख फरीद को मिले परमात्मा
हठ योग करते हुए कुएं में उल्टे लटके हुए शेख फरीद को कबीर परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले और उन्हें वास्तविक ज्ञान से परीचित करवाया।
22 June God Kabir Prakat Diwas
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#किस_किस_को_मिले_भगवान
महाराष्ट्र के पुंडरपुर के महान संत नामदेव जी जिन्हें कबीर जी कलंदर नामक संत रूप में सन् 1270 (वि. सं.1327) में मिले थे उन्हें दीक्षा दी थी। उसका विवरण संत गरीबदास जी ने इस प्रकार दिया -
गरीब, नामा के बीठ्ठल भये, और कलंदर रूप।
गउ जिवाई जगतगुरु, पादसाह जहां भूप।।
22 June God Kabir Prakat Diwas
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ज्ञान गंगा पढ़ने के बाद हमें ज्ञान होता है हम कौन हैं, कहां से आए हैं और हमें मनुष्य जीवन क्यों प्राप्त हुआ है।
📗गीता ज्ञान दाता के अनुसार तत्वदर्शी संत की पहचान क्या है? जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
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ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ने से ज्ञान हुआ कि पूर्ण गुरु की शरण में आये बिना मुक्ति असंभव है।
📗सृष्टि कैसी रची गयी?
प्रमाण सहित जानने के लिए पढ़िए सभी सद्ग्रन्थों का सार "ज्ञान गंगा"।
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ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी भक्ति में लगे रहते हैं। आओ ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़कर जानें ये तीनों भगवान किस परमात्मा की भक्ति करते हैं।
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परमात्मा तो सुख का सागर है।
फिर हमको दुख देने वाला कौन है?
पढ़ें अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा और जानें कई गहरे राज़।
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