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Shri Kashidharmpeeth
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वैदिक सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार, जिससे वैदिक संस्कृति विश्वपटल पर प्रतिष्ठित हो सके।
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। https://youtu.be/Da2ygv1NF5E https://www.instagram.com/p/CDvU_s2hDyu/?igshid=fe6i1kmmjkg2
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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हर-हर महादेव। #Jagadguru_Shankaracharya_Swami_Narayananand_Tirth https://www.instagram.com/p/CDXuR1GhTPq/?igshid=goqm5u4q1yc7
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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. #गुरुपूर्णिमा_महापर्व_की_हार्दिक_शुभकामनाएं। श्रीमद् आद्य शंकराचार्य विरचित #गुर्वष्टकम् शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं यशश्चारू चित्रं धनं मेरुतुल्यम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।1।। यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ । कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।2।। सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ। षडंगादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।3।। वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ। विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।4।। जिन्हें विदेशों में समादर मिलता हो, अपने देश में जिनका नित्य जय-जयकार से स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता हो, यदि उसका भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ। क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।5।। जिन महानुभाव के चरणकमल पृथ्वीमण्डल के राजा-महाराजाओं से नित्य पूजित रहा करते हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्री चरणों में आसक्त न हो तो इसे सदभाग्य से क्या लाभ। यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापात् जगद्वस्तु सर्वं करे सत्प्रसादात्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।6।। दानवृत्ति के प्रताप से जिनकी कीर्ति दिगदिगान्तरों में व्याप्त हो, अति उदार गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो तो इन सार https://www.instagram.com/p/CCQmoelh5OQ/?igshid=cfuifxldcms5
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मना कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥ जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रता रूप से शुद्धअंत:करण वाले व्यक्तियों के हृदय में सद्बुद्धि रूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से, कुलीन व्यक्तियों में लज्जारूप से निवास करती हैं। उन भगवती दुर्गा को हम सभी नमस्कार करते हैं। हे देवी! आपही सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये l https://www.instagram.com/p/CB2ODL4Bqlb/?igshid=fqwb2thgs03d
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ।सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥ #Jagadguru_Shankaracharya_Swami_Narayananand_Tirth https://www.instagram.com/p/CBxIrF_hczh/?igshid=1su0qvaddp9vi
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या। तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥ #jagadguru_shankaracharya_swami_narayananand_tirth https://www.instagram.com/p/CBvOOkYBW_v/?igshid=1uwi6dls92c0t
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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माँ गंगा दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। #श्रीशंकराचार्यविरचितं_श्रीगंगाष्टकम् भगवति तव तीरे नीरमात्राशनोऽहं विगतविषयतृष्ण: कृष्णमाराधयामि। सकलकलुषभंगे स्वर्गसोपानसंगे तरलतरतरंगे देवि गंगे प्रसीद।।१।। भगवति भवलीलामौलिमाले तवाम्भ:– कणमणुपरिमाणं प्राणिनो ये स्पृशन्ति। अमरनगरनारीचामरग्राहिणीनां विगतकलिकलंकातंकमंके ��ुठन्ति।।२।। ब्रह्माण्डं खण्दयन्ती हरशिरसि जटावल्लिमुल्लासयन्ती स्वर्लोकादापतन्ती कनकगिरिगुहागण्दशैलात्स्खलन्ती । क्षोणीपृष्ठे लुठन्ती दुरितचयचमूर्निभरं भर्त्सयन्ती पाथोधिं पूरयन्ती सुरनगरसरित्पावनी न: पुनातु।।३।। मज्जन्मातंगकुम्भच्युतमदमदिरामोदमत्तालिजालं स्नानै: सिद्धांगनानां कुचयुगविगलत्कुड्कुमासंगपिंगम्। सायंप्रातर्मुनीनां कुशकुसुमचयैश्छन्नतीरस्थनीरं पायान्नो गांगमम्भ: करिकलभकराक्रान्तरंहस्तरंम्।।४।। आदावादिपितामहस्य नियमव्यापारपात्रे जलं पश्चात्पन्नगशायिनो भगवत: पादोदकं पावनम्। भूय: शम्भुजटाविभूषणमणिर्जह्नोर्महर्षेरियं कन्या कल्मषनाशिनी भगवती भागीरथी दृश्यते।।५।। शैलेन्द्रादवतारिणी निजजले मज्जज्जनोत्तारिणी पारावारविहारिणी भवभयश्रेणीसमुत्सारिणी। शेषाहेरनुकारिणी हरशिरोवल्लीदलाकारिणी काशीप्रान्तविहारिणी विजयते गंगा मनोहारिणी।।६।। कुतो वीचिर्वीचिस्तव यदि गता लोचनपथं त्वमापीता पीताम्बरपुरनिवासं ���ितरसि। त्वदुत्संगे गंगे पतति यदि कायस्तनुभृतां तदा मात: शातक्रतवपदलाभोSप्यतिलघु:।।७।। गंगे त्रैलोक्यसारे सकलसुरवधूधौतविस्तीर्नतोये पूर्णब्रह्मस्वरूपे हरिचरणरजोहारिणी स्वर्गमार्गे । प्रायश्चिततं यदि स्यात्तव जलकणिका ब्रह्महत्यादिपापे कस्त्वां स्तोतुं समर्थस्त्रिजगदघहरे देवि गंगे प्रसीद।।८।। मातर्जाह्नवि शम्भुसंगवलिते मौलौ निधायांजलिं त्वत्तीरे वपुषोSवसानसमये नारायणाड्घ्रिद्वयम्। सानन्दं स्मरतो भविष्य़ति मम प्राणप्रयाणोत्सवे भूयाद्भक्तिरविच्युताहरिहराद्वैतात्मिका शाश्वती।।९।। गंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेत्प्रयतो नर:। सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति।।१०।। इति श्रीशंकराचार्यविरचितं श्रीगंगाष्टकं सम्पूर्णम्। https://www.instagram.com/p/CA5SFg4h49J/?igshid=1m3b157b8ckd1
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kashidharmpeeth · 4 years ago
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वैज्ञानिक उपलब्धियां शाश्वत नहीं, धर्म ही शाश्वत है। (Jagadguru Shankaracharya Swami Shree Narayananand Tirth Ji Maharaj में) https://www.instagram.com/p/CAPafCVB0KS/?igshid=1pvbc7sneukhz
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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हर हर महादेव। को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा शिष्यस्तु को यो गुरु भक्त एव । (Jagadguru Shankaracharya Swami Shree Narayananand Tirth Ji Maharaj में) https://www.instagram.com/p/CACje78hqMo/?igshid=1sjewng01bbku
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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माँ जानकी जयंती श्रीसीतानवमी की हार्दिक शुभकामनाएं। त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासी माया। सम्मोहितं देवी समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवी मुक्तिहेतु:।। #मां_सीता_परम_सत्य_योगमाया सीता उपनिषद में देवगणों और प्रजापति के बीच हुए प्रश्नोत्तर में 'सीता' को शाश्वत शक्ति का आधार माना गया है। संवाद में सीता को प्रकृति का स्वरूप बताया गया है। सीता शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है। यह नाम साक्षात् 'योगमाया' का है। सीता को भगवान श्रीराम का सान्निध्य प्राप्त है, जिसके कारण वे विश्व कल्याणकारी हैं। सीता-क्रिया-शक्ति, इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति-तीनों रूपों में प्रकट होती है। परमात्मा की क्रिया-शक्ति-रूपा सीता परब्रह्म परमात्मा के मुख से 'नाद' रूप में प्रकट हुई है। वह प्रणव यानी ओंकार की वाचक हैं। उनका नाम ही प्रणव नाद, ओंकार स्वरूप है। परा प्रकृति एवं महामाया भी वही हैं। उपनिषद के अनुसार सीता शब्द का पहला अक्षर "सी" परम सत्य से प्रवाहित हुआ है और "ता" वाक की अधिष्ठात्री वाग्देवी स्वयं हैं। उन्हीं से समस्त वेद प्रवाहित हुए हैं। सीता पति राम से समस्त ब्रह्मांड, संसार तथा सृष्टि उत्पन्न हुए हैं जिन्हें ईश्वर की शक्ति ‘सीता' धारण करतीं हैं। सीता ��ी भूमिरूप है। भूमि से उत्पन हुई है, इसलिए भूमात्मजा भी कही जाती हैं। सूर्य, अग्नि एवं चंद्रमा का प्रकाश सीता जी का ‘नील स्वरूप‘ है। चंद्रमा की किरणें विविध औषधियों को रोग प्रतिकारक गुण प्रदान करतीं हैं। ये चन्द्र किरणें अमृतदायिनी सीता का प्राणदायी और आरोग्य वर्धक प्रसाद है वे ही हर औषधि की प्राण तत्त्व हैं। उपनिषद के अनुसार सूर्य की प्रचंड शक्ति द्वारा सीता ही काल का निर्माण एवं ह्रास करतीं हैं। सूर्य द्वारा निर्धारित समय भी वही हैं, अत: वे काल धात्री भी हैं। पद्मनाभ, महाविष्णु, क्षीर सागर के स्वामी श्रीमन्न नारायण के वक्ष स्थल पर श्रीवत्स के रूप में सीता ही विद्यमान हैं। कामधेनु और स्यमंतक मणि भी वही जानकी हैं। वेद पाठी, अग्निहोत्री, द्विजवर्ग कर्मकांडों के जितने भी स्वरूप हैं संस्कार, विधि पूजन या हवन आदि संपन्न कराते हैं, उनकी शक्ति भी सीता हैं। उपनिषद में सीता के वैभव का जैसा वर्णन किया गया है, उसके अनुसार स्वर्ग की अप्सराएं जया ,उर्वशी, रम्भा मेनका आदि इनके आगे नृत्य करतीं हैं। नारद उनके आगे वीणा वादन करते और ऋषिगण विविध वाद्य बजाते हैं। चन्द्र देव छत्र धरते हैं। रत्न रजित दिव्य सिंहासन पर सीता देवी आसीन हैं। उनके न https://www.instagram.com/p/B_raqroh07M/?igshid=72uohihipd7z
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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श्रीमद् आद्य शंकराचार्य रचित- #गुर्वष्टकम् शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं यशश्चारू चित्रं धनं मेरुतुल्यम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।1।। यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ । कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।2।। सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ। षडंगादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।3।। वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ। विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।4।। जिन्हें विदेशों में समादर मिलता हो, अपने देश में जिनका नित्य जय-जयकार से स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता हो, यदि उसका भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ। क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।5।। यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापात् जगद्वस्तु सर्वं करे सत्प्रसादात्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।6।। दानवृत्ति के प्रताप से जिनकी कीर्ति दिगदिगान्तरों में व्याप्त हो, अति उदार गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो तो इन सारे ऐश्वर्यों से क्या लाभ। न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ न कान्तासुखे नैव वित्तेषु चित्तम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।7।। जिनका मन भोग, योग, अश्व, राज्य, धनोपभोग और स्त्रीसुख से कभी विचलित न हुआ हो, फिर भी गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाया हो तो इस मन की अटलता से क्या लाभ। अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये। मनश्चेन्न लग्नं https://www.instagram.com/p/B_g_OvMhc9Y/?igshid=z3pzm2y0xssw
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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भगवान आद्य शंकराचार्य जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। https://www.instagram.com/p/B_g-gyxBBFI/?igshid=5rsany4mig9t
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या। ता��म्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥ यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥ (Jagadguru Shankaracharya Swami Shree Narayananand Tirth Ji Maharaj में) https://www.instagram.com/p/B_CNm2CB4xR/?igshid=1oxm4yuqzgqa3
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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. #समर्पण_भाव केवल एक भगवत्तत्व ही वास्तविक त्तत्व है, बाकी सब अतत्व है। जब-तक अन्तःकरण में संसार का महत्त्व होता है, तब-तक प्यारे प्रभु का महत्व समझ में नहीं आ सकता है। कभी-कभी हम संसार की हर नाशवान वस्तु के पीछे दौड़ते हैं, पर जो नाशवान नहीं है,उसको भुला बैठते हैं। संसार की हर प्राप्त वस्तु नष्ट होने वाली है, पर जो परमतत्त्व परमात्मा है, वह कभी नष्ट नहीं होता। अतएव सांसारिक क्रियाकलापों में लिप्त जब हम कई तरह के संकट में फँस जाते हैं अथवा अपने पूर्ण जन्म के संस्कारों से जब हमें जब कभी प्रभु प्रेमीजनों का सानिध्य प्रसाद रूप में प्राप्त होता है, तो सहसा हमें उस परमतत्त्व परमात्मा श्री श्यामसुन्दर की अनुभूति अंतर्मन में करने की लालसा हो उठती है। जिस प्रकार से हम अपने छोटे से निश्छल बच्चे के मुख से अपना नाम सुनना पसंद करते हैं तथा बार-बार कहने को कहते हैं और उसके बुलाने पर उसके पास दौड़े चले जाते हैं। निश्छल प्रेम और सरल हृदय के भाव के भूखे प्रभु, अपने भक्त की करुण पुकार सुन ठीक उसी प्रकार प्रकट हो जाते हैं। निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छलछिद्र न भावा।। हमारे जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। भारतीय संस्कृति के जीवंत संस्कारों में प्रमुख हैं – देवार्चन, देवदर्शन। हमारा जन्म, हमारे कार्य, हमारा मन और हमारी वाणी के द्वारा सर्वसमर्थ की सेवा करने का नाम देवार्चन है और साथ ही श्रेष्ठ सदाचार भी है। हमारी आस्था-ज्योति के आलोक से अज्ञानता के सघन-अंधकार को नष्ट कर शांति प्रदान करती है। छलरहित और शुद्ध मन की ‘स्तुति’ ही प्रभु स्वीकारते है। जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े की पुकार सुन सुदूर जंगलों में कितनी ही दूर हो, वो वहीं से दौड़ती हुई उसके पास चली आती है और उसे स्नेह एवं ममता से सहलाने लगती है। जिस प्रकार गाय को अपने बछड़े में अपार ममता होती है, उसी प्रकार दीनदयाल, करुणानिधि प्रभु में भी निज भक्तों के लिये अपार ममता होती है एवं जब किसी भक्त की करुण पुकार प्रभु तक पहुचती है तो प्रभु भी अपने आप को रोक नहीं पाते और दौड़े चले आते हैं निज भक्त के पास। प्रभु तो प्रेम को डोरी में स्वयं ही बंधने के लिये तत्पर रहते हैं, परन्तु उन्हें निश्चल प्रेम की डोरी में बांधने वाला विरला ही कोई होता है। किन्तु इस संसार में कई ऐसे भी भक्तवृंद हुए है, जिनके पूर्ण समर्पण के भाव से उन्हें प्रिय प्रभु की प्राप्ति हुई है। अगर हम लोग भी अपने हृदय में उन भक्तों के सदृश्य अंश (Jagadguru Shankaracharya Swami Shree Narayananand Tirth Ji Maharaj में) https://www.instagram.com/p/B-9Dgwsh5Ca/?igshid=1j8b28i8ontat
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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#हिन्दू_नववर्ष_एवं_वासंतिक_नवरात्रिकी_हार्दिक_शुभकामनाएं। विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्। विश्वेशवंद्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्रा:।। देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते- र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:। पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्।। #ShankaracharyaSwamiNarayananandTirth (India में) https://www.instagram.com/p/B-JsKRjhNLc/?igshid=1nswesld8jcy0
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kashidharmpeeth · 5 years ago
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#श्रीमद्देवीभागवत_महापुराण- गोसाईं खमरिया, लखनादौन, सिवनी, मध्यप्रदेश। (25 मार्च 2020 से 02 अप्रैल 2020 पर्यंत) (Jagadguru Shankaracharya Swami Shree Narayananand Tirth Ji Maharaj में) https://www.instagram.com/p/B9tyN-yBCN-/?igshid=19btanztel7rz
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