hitankit
MIDNIGHT MADNESS
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Hello everyone, My name is Hitankit and i am from the hills of the Himalayas. I read, i think, and i write, that's all i do everyday!!
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hitankit · 5 years ago
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आजादी के बाद बड़े से बड़े नेताओं का चरित्र कुछ बदला हुआ जरूर दिखा पर नेहरू जो धर्मनिरपेक्षता को अपना धर्म बना चुके थे वो उसी राह में चले जो गांधी ने कांग्रेस को दिखाई थी।
1951 में पास हुआ हिन्दू कोड बिल हो या आजादी के बाद पाकिस्तान से आये लाखों रिफ्यूजियों को भारत मे बसाना, नेहरू अकेले ही लड़ते रहे और अंत तक डटे रहे।
जब पाकिस्तान में हिन्दू और सिखों का कत्लेआम चल रहा था और भारत मे मुस्लिम जलाए जा रहे थे तो पटेल और राजेंद्र प्रसाद चुप थे और नेहरू जी जान से लगे थे कि किसी तरह वो अपने देश को इस जलती आग की लपटों से बचा लें।
कुलदीप नैयर जो बाद में नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के मीडिया प्रभारी रहे वो अपनी किताब में लिखते हैं कि जब राजेन्द्र प्रसाद रिटायर होकर घर जा रहे थे तो मैं भी उनके साथ था तब उन्होंने बंटवारे को याद करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में हिंदुओं का मारा जाना गलत था और ऐसे में जवाहर का देश के हिंदुओं से ये कहना कि किसी भी हालत में हिंसा बर्दास्त नही होगी ये भारत को नीचा दिखाने जैसा था।
मतलब राजेंद्र प्रसाद कहना चाह रहे थे कि पाकिस्तान के कत्लेआम के बदले में उन्हें भारत मे हिंसा मंजूर थी। ठीक इसी तरह की बात पटेल ने भी की थे।
उस वक़्त दंगे ना रुकने का एक बड़ा और मुख्य कारण यह था कि लोगों की तरह प्रशासन भी धर्मों के आधार पर बंटा हुआ था। हिन्दू बहुल इलाकों में हिन्दू पुलिस थी और मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम और अगर वो हिंसा रोकने की कोशिश करते तो खुद के धर्म के लोग उनको स्वीकार नही करते।
जब 1951 में हिन्दू कोड बिल संसद में आया जो साफ साफ सामंतवादी प्रणाली के खिलाफ था तो इसके खिलाफ दक्षिणपंथियों ने नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोला।
कांग्रेस में मौजूद नेता जो दक्षिणपंथी थे वो तक उनके खिलाफ हो गए पर ये नेहरू ही थे जो टुकड़ों में एक-एक कर उस बिल को पास करा गए।
सभी को लगता है कि संविधान के निर्माता अम्बेडकर ही हैं लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि अम्बेडकर बस ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष थे ऐसी बहुत 13 कमिटियां बनाई गई थी जिनमे से 5 के हेड नेहरु खुद थे।
उनमें ही वो ताकत थी कि संविधान को उस हालात में लागू किया गया ज�� देश एक बंजर जमीन के अलावा कुछ नही था।
30-30 साल तक आजादी के लड़ाई साथ लड़ने वाले कांग्रेस के सभी नेता एक-एक कर नेहरू को छोड़ते चले गए पर वो डटे रहे और अंत मे अपने मित्र (चीन) के हाथों धोखा खाने के बाद खुद को इस धरती से अलविदा कर गए।
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