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10+ Best Kabir Das ke Dohe कबीर दास जी के दोहे
Kabir ke Dohe - कबीरदास जी के दोहे मानव जीवन में धर्मनिरपेक्षता, भक्ति, नीति का ज्ञान प्रदान करते हैं। कबीर दास जी के दोहे ज्ञान के भंडार है जिन्हे हम पढ़कर अपने ज्ञान मे वृद्धि होती हैं। इनका मानव जीवन में अनुसरण करने से अपने गुणों और व्यक्तित्व को विकसित कर सकते हैं ।
10+ Best Kabir Das ke Dohe कबीर दास जी के दोहे
गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं गुरु का पद भगवान से भी ऊपर होता है। यदि आपके सामने गुरु गोविंद दोनों खड़े हो तो हमें सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं साधु की जाती कभी नहीं पूछनी चाहिए अभी तो उसका ज्ञान का हमें सम्मान करना चाहिए हमें तलवार का सम्मान करना चाहिए ना की म्यान का ।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरदास जी कहते हैं हमें जीवन मैं देर रखना चाहिए क्योंकि सारे कार्य धीमे-धीमे ही होते हैं माली सौ घड़े पानी से एक पेड़ को सींचने लगता है, तब भी फल तभी आएगा जब ऋतु आएगी!
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥
कबीरदास जी कहते हैं तिनका कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए जो कि हमारे पैर के नीचे दब जाता है लेकिन वही पिंका तिनका हमारे यहां में पड़ जाए तो अत्यंत पीड़ा होती है।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं जो कार्य हमें कल करना चाहिए वह कार्य हमें अभी कर लेना चाहिए जो काम हमें आज करना चाहिए वह काम हमें अभी कर लेना चाहिए क्योंकि हमारे जीवन में प्रलय कभी भी आ सकती है तो आप कार्य कब करेंगे
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ॥
कबीरदास जी कहते हैं जो पुरुषार्थ करते हैं वे कुछ न कुछ प्राप्त कर ही लेते हैं एक मेहनती गोताखोर गहरे पानी में जाकर कुछ वापस लाता है। लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो डूबने के डर से किनारे पर बैठे रहते हैं और कुछ हासिल नहीं कर पाते।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
कबीरदास जी कहते हैं कुछ लोग पढ़ पढ़ कर सभी कुछ रख लेते हैं लेकिन वह पंडित नहीं बन पाते हैं अर्थात वह ज्ञानी नहीं बन पाते लेकिन जो व्यक्ति दो अक्षर प्रेम के अर्थात मानवता के पढ़ लेता है वह ज्ञानी हो जाता है।
रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय ।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥
कबीरदास जी कहते हैं रात सोकर बितायी खाकर दिन बिताया, संसार की अमूल्य वस्तुओं की वासनाओं और वासनाओं के लिए हीरे जैसे अनमोल जीवन का बलिदान कर दिया इससे बड़ा दुःख और क्या हो सकता है ।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
कबीरदास जी कहते हैं जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया तो मुझे कोई बुराई नहीं मिली। जब मैंने अपने मन के अंदर झाँका तो पाया क��� मुझसे बुरा कोई नहीं है।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
कबीरदास जी कहते हैं कि बोली हमारी अनमोल है मैं अपने शब्दों का चयन बहुत ही नाप तोल कर करना चाहिए क्योंकि यदि एक बार शब्द निकल जाता है तब वह वापस नहीं आता है।
Kabir ke Dohe यह थे कबीर दास जी के कुछ चुने हुए दोहे जो हमें भक्ति, नीति का ज्ञान प्रदान करते हैं।
Source https://doheinhindi.blogspot.com/2023/05/10-best-kabir-das-ke-dohe.html
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तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास का जन्म चित्रकूट में हुआ था।गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1554 या 1497 ई. में सुमवत में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास के जन्म की तारीख और स्थान के बारे में विद्वानों में अलग-अलग राय हैं। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और तुलसीदास की माता का नाम हुल्सी था । ये सरौपालिन ब्राह्मण थे । ऐसा कहा जाता है कि उनके माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया क्योंकि उनका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। इस वजह से उनका बचपन बड़े क्लेशों में बीता।
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सूरदास का जन्म 1478 ई. रूंनकता में हुआ था। सूरदास के पिता का नाम पं .रामदास सारस्वत था। सूरदास का जन्म स्थान रुनकता (आगरा) के समीप माना जाता है। कृष्ण भक्त शाखा के कवियों में अष्टछाप के कवि प्रमुख हैं, जिनमें हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास हैं। सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माना जाता है।
.सूरदास की शिक्षा बल्लभाचार्य की देख रेख में हुई। सूरदास बचपन से ही अलग हो गए थे और अक्सर गांव में रहते हुए विनय के छंद गाते थे। यहीं उनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई थी। सूरदास बल्लभाचार्य का शिष्य बन गये । बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने अष्टछाप नामक आठ कृष्ण भक्त कवियों का एक मंडल बनाया। अपने जीवन के अंतिम दिनों में, सूरदास गोवर्धन के स्थान पर गए, जिसे परसौली कहा जाता है। इनकी मृत्यु 1583 ई. में हुई थी ।सूरदास की तुलना भक्ति काल के श्रेष्ठ कवि जैसे तुलसीदास , कबीरदास , रहीम दास ,मीराबाई आदि से की जाती है
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कबीर दास ( kabir das ) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने वाले संत थे उनके गीतों और कविताओं को सूफी शैली और रहस्यवाद से जोड़ा गया।कबीर" नाम अरबी शब्द "अल-कबीर" से आया है। शब्द का अर्थ है "महान"; यह कुरान में वर्णित अल्लाह का 36वां नाम है कबीर दास के गीतों कविताओं में सूफी शैली और रहस्यवाद पाया जाता है कबीर दास के संबंध में जन्म और मृत्यु के लगभग तिथि प्रमाण नहीं पाए जाते हैं।
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चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय
चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय
चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय चैतन्य महाप्रभु 15वीं शताब्दी के भारतीय संत थे जिन्हें उनके शिष्यों और विभिन्न शास्त्रों द्वारा राधा और कृष्ण का संयुक्त अवतार माना जाता है ।चैतन्य महाप्रभु कृष्णा के उपासक थे। भक्ति गीतों और नृत्यों के साथ कृष्ण की पूजा करने की चैतन्य महाप्रभु की पद्धति का बंगाल में वैष्णववाद पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे अचिंत्य भेद अभेद तत्त्व के वेदांत दर्शन के मुख्य प्रस्तावक भी थे।…
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महाप्रभु वल्लभाचार्य का जीवन परिचय
महाप्रभु वल्लभाचार्य का जीवन परिचय श्री वल्लभाचार्य एक महान दार्शनिक थे। जिनका जीवन काल (1479 – 1531) तक था। एक भक्ति दार्शनिक थे जिन्होंने पुष्टि संप्रदाय की स्थापना की और भारत में शुद्ध अद्वैत (शुद्ध अद्वैतवाद) के दर्शन के जनक थे। वल्लभ दक्षिण भारत के एक तेलुगु ब्राह्मण थे जिनका जन्म भारत के छत्तीसगढ़ राज्�� में रायपुर के पास चंपा��ण में हुआ था। वह आंध्र प्रदेश, दक्षिण भारत से थे।कुछ लोगो के…
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रहीम दास का जीवन परिचय Biography of Abdurrahim Khankhana
रहीम दास का जीवन परिचय Biography of abdul rahim khan-i-khana
जो गरीब सों हित करें, धनि रहीम ये लोग। कहाँ सुदामा चापुरी, कृष्ण मिताई जोग ।। जो लोग गरीबों का भला करते हैं वास्तव में ये ही धन्य हैं। कहाँ द्वारिका के राजा कृष्ण और कहाँ गरीब ब्राह्मण सुदामा। दोनों के बीच अमीरी-गरीबी का बहुत बड़ा अंतर था, फिर भी श्री कृष्ण ने सुदामा से मित्रता की और उसका निर्वाह किया। उक्त पंक्तियों की रचना महान कवि रहीम ने की। रहीम ने कविताओं व दोहों में नीति और व्यवहार पर बल दिया और समाज को आदर्श मार्ग दिखाया। रहीम दास मुसलमान होते हुए भी भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। उन्होंने काव्य के द्वारा जिस सामाजिक मर्यादा को प्रस्तुत किया वह आज भी अनुकरणीय है। रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ (abdul rahim khan-i-khana) था। रहीम का जन्म लाहौर (जो अब पाकिस्तान में है) में 1556 ई0 में हुआ। इनके पिता बैरम खाँ हुमायूँ के अतिविश्वसनीय सरदारों में से एक थे।हुमायूँ की मृत्यु के बाद बैरम खाँ ने तेरह वर्षीय अकबर का राज्याभिषेक करदिया तथा उनके संरक्षक बन गए। हज यात्रा के दौरान मुबारक लोहानी नामक एक अफगानी पठान ने बैरम खाँ की हत्या कर दी। रहीम उस समय मात्र पाँच वर्ष के थे। रहीम अपनी माँ के साथ अकबर के दरबार में पहुंचे। read also रहीम दास के दोहे
रहीम का जीवन परिचय (rahim biography in hindi) एक नज़र में
नाम अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ (abdul rahim khan-i-khana) उपनाम रहीम दास माता का नाम सुल्ताना बेगम पिता का नाम बैरम खां व्यक्तिगत जीवन जन्म की तारीख 17 दिसंबर 1556, जन्मस्थान लाहौर, मुगल साम्राज्य पत्नी का नाम माहबानो धर्म इस्लाम प्रतिभा कवि, सेनापति, प्रशासक, शरणार्थी, दार्शनिक, राजनयिक, परोपकारी और विद्वान पद अकबर के दरबार मीर अर्ज
रहीम की शिक्षा
अकबर ने रहीम के लालन-पालन की व्यवस्था राजकुमारों की तरह की। अकबर ने रहीम को 'मिर्जा की उपाधि भी प्रदान की जो केवल राजकुमारों को दी जाती थी। उन्होंने रहीम की शिक्षा के लिए मुल्ला अमीन को नियुक्त किया। रहीम ने मुल्ला अमीन से अरबी, फारसी, तुर्की, गणित, तर्कशास्त्र आदि का ज्ञान प्राप्त किया। अकबर ने रहीम के लिए संस्कृत अध्ययन की भी व्यवस्था की। बचपन से ही अकबर जैसे उदार व्यक्ति का संरक्षण प्राप्त होने के कारण रहीम में उदारता और दानशीलता के गुण भर गए। रहीम को काव्य सृजन का गुण पैतृक परम्परा से प्राप्त हुआ था। इसके अतिरिक्त उन्हें राज्य संचालन, वीरता और दूरदर्शिता भी पैतृक रूप में मिली। मिर्जा खाँ रहीम की कार्य कुशलता, लगन और योग्यता देखकर अकबर ने उन्हें शासक वंश से जोड़ने का निश्चय किया। अकबर ने रहीम का विवाह माहमअनगा की बेटी तथा खाने जहाँ अजीज कोका की बहन से करा दिया। सन् 1573 ई0 में मिर्जा खाँ रहीम का राजनीतिक जीवन आरंभ हुआ। अकबर गुजरात के विद्रोह को शान्त करने के लिए अपने कुछ विश्वसनीय सरदारों को लेकर गए थे। उनमें सत्रह वर्षीय मिर्जा खाँ भी थे। 1576 ई0 में अकबर ने उन्हें गुजरात का सूबेदार बनाया। 1580 तक मिर्जा खाँ ने राजा भगवानदास और कुँवर मानसिंह जैसे योग्य सेनापतियों की संगति में रहकर अपने अन्दर एक अच्छे सेनापति के गुणों को विकसितकर लिया। प्रधान सेनापति के रूप में उन्होंने बहुत लडाइयाँ जीती। अकबर ने उन्हें वकील की पदवी से सम्मानित किया। उनके पहले यह सम्मान केवल उनके पिता बैरम खां को था । उच्च कोटि के सेनापति और राजनीतिज्ञ होने के साथ ही रहीम श्रेष्ठ कोटि के कवि भी थे। अकबर का शासन काल हिंदी साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है। इसी समय रहीम ने ब्रजभाषा, अवधी तथा खडी बोली में रचनाएँ की। उनकी प्रमुख रचनाएं रहीम सतसई. बरवै नायिका भेद, रास प��चाध्यायी, शृंगार सो��हा रहीम समाज की कुरीतियों, आडम्बरों के भी आलोचक थे। वे मानवता के रचनाकार थे। उन्होंने एक सम्प्रदाय से दूर रह कर राम रहीम को एक माना। रहीम ने राम, सरस्वती, गणेश, कृष्ण, सूर्य, शिव-पार्वती हनुमान और गंगा की स्तुति की है। भाषा, धर्म-सम्प्रदाय में न उलझकर उन्होंने मानवधर्म को परम धर्म माना। राजद्रोह के अभियोग में उन्हें कैद करवा लिया। उनकी सारी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया। जहाँगीर से रहीम की नहीं बनी। वह दुःखी होकर चित्रकूट चले आए। उन्होंने लिखा चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस। जा पर विपदा पड़त है, वहि आवत यहि देस।। रहीम के अंतिम दिन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहे ! वह बीमार पड़ गए। उन्हें दिल्ली लाया गया जहाँ 1628 में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें हुमायूँ के मकबरे के सामने अपने ही द्वारा बनवाए गए अधूरे मकबरा में दफनाया गया। अब्दुर्रहीम खानखाना अपनी रचनाओं के कारण आज भी जीवित हैं। अकबर के नवरत्नों में वे अकेले ऐसे रत्न थे जिनका कलम और तलवार पर समान अधिकार था। उन्होंने समाज के सामने 'सर्वधर्म समभाव' का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया जो मानव मात्र के लिए ग्रहणीय है। Read Also: रहीम के दोहे अर्थ सहित रहीमदास का साहित्यिक परिचय रहीम का हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है उनकी गिनती भक्ति काल के श्रेष्ठ कवि जैसे तुलसीदास , कबीरदास , सूरदास ,मीराबाई आदि में की जाती है रहीम दास को संस्कृत, अरबी, हिंदी, फ़ारसी जैसी कई भाषाओं का ज्ञान था। उनके दोहे आम जन के दिलो को छू लेते है। रहीम दास की रचनाओं में भक्ति–प्रेम, नीति और श्रृंगार रस का भरपूर आनंद मिलता है ।
रहीम की भाषा शैली
रहीम दास जी ने अवधी और ब्रज भाषा दोनों में कविता लिखी है उनकी कविता में रचित, शांत और हास्य रस पाए जाते हैं।उनकी भाषा बहुत सरल हैउनकी कविता में भक्ति, नैतिकता, प्रेम और श्रंगार का सुंदर समावेश है। दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। रहीम की रचनाएँ रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि रहीम का पूरा नाम क्या है ? रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ था। रहीम किस काल के कवि हैं ? रहीम भक्ति काल के कवि हैं। रहीम का जन्म कहां हुआ था ? रहीम का जन्म लाहौर (जो अब पाकिस्तान में है) में 1556 ई0 में था। रहीम के पिता कौन थे ? रहीम के पिता का नाम बैरम खां था । रहीम की मृत्यु कब ��ुई ? रहीम के अंतिम दिन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहे 1628 में उनकी मृत्यु हो गई अन्य पढ़े Read the full article
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