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श्री लिंग महापुराणशिव तत्व को साक्षात्कार करने के लिए योग के स्थानों का वर्णन…(भाग 4)
श्री लिंग महापुराणशिव तत्व को साक्षात्कार करने के लिए योग के स्थानों का वर्णन…(भाग 4)प्रयाण (चलना) करती है, इससे वायु को प्राण वायु कहते हैं। आहार आदि क्रम से जो वायु नीचे की तरफ जाये, वह अपानवायु (पाद) है। व्यान नाम की वायु अङ्गों में व्याधियाँ पैदा करती है तथा ऊपर की ओर चलती है। मर्मों को जो झकझोरती है वह उदान नाम की वायु कहती है। अङ्गो को जो समान ��ूप से ले जाती है वह समान नाम की वायु है।…
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संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराणबदरिकाश्रम-महात्म्यपंचतीर्थ, सोमतीर्थ, द्वादशादित्य तीर्थ, चतुः स्त्रोततीर्थ, सत्यपद तीर्थ तथा नर-नारायणाश्रम की महिमा…(भाग 3)
संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराणबदरिकाश्रम-महात्म्यपंचतीर्थ, सोमतीर्थ, द्वादशादित्य तीर्थ, चतुः स्त्रोततीर्थ, सत्यपद तीर्थ तथा नर-नारायणाश्रम की महिमा…(भाग 3) उसके बाद सत्यपद नामक तीर्थ है जो त्रिकोणाकार कुण्डके रूपमें विद्यमान है। वह सब पापोंका नाश करनेवाला है। एकादशी तिथिको उस पावन तीर्थमें साक्षात् भगवान् विष्णु पधारते हैं। तत्पश्चात् ऋषि, मुनि, तपस्वी उस कुण्डमें स्नान करनेके लिये आते हैं। ��स…
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श्रीमद्भागवत महापुराणम्द्वादशः स्कन्धःअथैकादशोऽध्यायः भगवान् के अङ्गः उपाङ्ग और आयुधों का रहस्य तथा विभिन्न सूर्यगणौ का वर्णन…(भाग 3)
श्रीमद्भागवत महापुराणम्द्वादशः स्कन्धःअथैकादशोऽध्यायः भगवान् के अङ्गः उपाङ्ग और आयुधों का रहस्य तथा विभिन्न सूर्यगणौ का वर्णन…(भाग 3)मण्डलं देवयजनं दीक्षा संस्कार आत्मनः । परिचर्या भगवत आत्मनो दुरितक्षयः ।॥१७॥ भगवान् भगशब्दार्थ लीलाक मलसुद्वहन्धर्म यशश्च भगवांश्चामरव्यजनेऽभजत् ॥१८ । आतपत्रं तु वैकुण्ठं द्विजा धामाकुतोभयम् । त्रिवृद्देदः सुपर्णाख्यो यज्ञं वहति पुरुषम् ॥१९॥ विष्वक्सेनस्तन्त्र…
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पाशुपतास्त्रस्तोत्र__
पाशुपतास्त्रस्तोत्र__ इस पाशुपत स्तोत्र का मात्र एक बार जप करने पर ही मनुष्य समस्त विघ्नों का नाश कर सकता है, सौ बार जप करने पर समस्त उत्पातो को नष्ट कर सकता है तथा युद्ध आदि में विजय प्राप्त के सकता है । इस मंत्र का घी और गुग्गल से हवं करने से मनुष्य असाध्य कार्यो को पूर्ण कर सकता है ,इस पाशुपातास्त्र मंत्र के पाठ मात्र से समस्त क्लेशो की शांति हो जाती है….. स्तोत्र ॐ नमो भगवते…
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दस महाविद्याओं में माता काली प्रथम हैं।
।। जय माँ महाकाली ।। दस महाविद्याओं में माता काली प्रथम हैं। कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार देवताओं ने हिमालय पर जाकर महामाया का स्तवन किया। पुराणकार के अनुसार यह स्थान मतङ्गमुनि का आश्रम था। स्तुति से प्रसन्न होकर भगवती ने मतङ्ग-वनिता बनकर देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि ‘तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो।’ तत्काल उनके श्रीविग्रह से काले पहाड़ के समान वर्णवाली एक दिव्य नारी का प्राकट्य…
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श्री योगवशिष्ठ महारामायण जी चित्तोपाख्यानसमाप्तिवर्णन
श्री योगवशिष्ठ महारामायण जी चित्तोपाख्यानसमाप्तिवर्णन भाग-1 रामजी बोले, हे ब्राह्मण! वह कौन अटवी है; मैंने कब देखी है और कहाँ है और वे पुरुष अपने नाश के निमित्त क्या उद्यम करते थे सो कहिये? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी ! वह अटवी दूर नहीं और वह पुरूष भी दूर नहीं । यह जो गम्भीर बड़ा आकाररूप संसार है वही शून्य अटवी है और विकारों से पूर्ण है । यह अटवी भी आत्मा से सिद्ध होती है । उसमें जो पुरुष रहते हैं…
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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराणतृतीय स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति ब्रह्मोवाच – तद्वा इदं भुवनमङ्गल मङ्गलाय ।ध्याने स्म नो दर्शितं त उपासकानाम् ।तस्मै नमो भगवतेऽनुविधेम तुभ्यं ।योऽनादृतो नरकभाग्भिरसत्प्रसङ्गैः ॥ ४ ॥ये तु त्वदीयचरणाम्बुजकोशगन्धं ।जिघ्रन्ति कर्णविवरैः श्रुतिवातनीतम्…
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||ॐ श्री परमात्मने नम:||
||ॐ श्री परमात्मने नम:|| एक संत की वसीयत (पोस्ट.३)(श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज की वसीयत) वास्तविक जीवनी या चरित्र वही होता है जो सांगोपांग हो अर्थात जीवन की अच्छी-बुरी (सद्गुण दुर्गुण, सदाचार, दुराचार आदि) सब बातों का यथार्थ रूप से वर्णन हो। आजकल जो जीवनी लिखी जाती है, उसमें दोषों को छिपाकर गुणों का ही मिथ्यारूप से अधिक वर्णन करने के कारण वह सांगोपांग तथा पूर्णरूप से सत्य होती नहीं…
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आदि शंकराचार्य कहते हैं -
आदि शंकराचार्य कहते हैं – भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्, गोविन्दं भजमूढमते।नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे॥गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भवसागर से पार जानेका अन्य कोई मार्ग नहीं है॥ सर्वप्रयत्नेन स एवसेव्यो योव्याप्यविश्वं जगतामधीश:।कालेसृजत्यत्ति च हेलया वा तं प्राप्यभक्तो न हि सीदतीति ॥(स्कंदपुराण,नागरखंड, अध्याय २५५)समस्त…
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।। नानक के राम ।।
।। नानक के राम ।। नानक उस परमात्मा की स्तुति में ऐसे बोलते हैं, जैसे एक मदहोश आदमी बोले। वे किसी पंडित के वचन नहीं हैं; वरन उसके वचन हैं, जो प्रभु की शराब में पूरी तरह डूब गया है। इसीलिए वे दोहराते चले जाते हैं। मस्ती में बोले गए वचन हैं। जैसे शराबी बोल रहा हो रास्ते के किनारे खड़े हो कर- बोले चला जाता है। एक ही बात को बहुत बार कहे चला जाता है। ऐसी ही किसी गहरी शराब में डूब कर वे बोल रहे…
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जय श्री सीताराम जी कीआप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणामश्री रामचरित मानस अयोध्या काण्डसरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना, कैकेयी-मन्थरा संवाद
जय श्री सीताराम जी की आप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणामश्री रामचरित मानस अयोध्या काण्डसरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना, कैकेयी-मन्थरा संवाद दोहा :नामु मंथरा मंदमति,चेरी कैकइ केरि।अजस पेटारी ताहि करि,गई गिरा मति फेरि॥12॥ भावार्थ:-मन्थरा नाम की कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं॥12॥ चौपाई :दीख मंथरा नगरु बनावा।मंजुल मंगल बाज…
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।। माता लक्ष्मी की उत्पत्ति ।।
।। माता लक्ष्मी की उत्पत्ति ।। महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। कन्या के समस्त शुभ गुणों से सुशोभित होने के कारण उसका नाम लक्ष्मी रखा गया। बड़ी होने पर लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु के गुण व प्रभाव का वर्णन सुना। इस कारण उनका हृदय भगवान में अनुरक्त हो गया। भगवान् विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वे समुद्र तट पर घोर तपस्या करने लगी। उन्हें तपस्या…
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श्री लिंग महापुराणसृष्टि की प्रथम उत्पत्ति का वर्णन…(भाग 3)
श्री लिंग महापुराणसृष्टि की प्रथम उत्पत्ति का वर्णन…(भाग 3)हे ब्राह्मणो! श्रद्धा से लेकर कीर्ति तक जो तेरह धर्म की पत्नियां हैं उनसे यथा क्रम उत्पन्न होने वाली सन्तान को कहता हूँ। उनसे काम, दर्प, नियम, सन्तोष, अलोभ, श्रुत, दण्ड, समय, बोध, महाद्युति, अप्रमाद, विनय, व्यवसाय, क्षेम, सुख, यश नाम के पुत्र उत्पन्न हुए। धर्म के क्रिया नाम की भार्या से दण्ड और समय दो पुत्र उत्पन्न हुए त��ा बुद्धि नाम की…
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संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराणबदरिकाश्रम-महात्म्गरुड़शिला, वाराहीशिला और नारसिंहीशिला की उत्पत्ति और महिमा…(भाग 3)
संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराणबदरिकाश्रम-महात्म्गरुड़शिला, वाराहीशिला और नारसिंहीशिला की उत्पत्ति और महिमा…(भाग 3)स्कन्द ने कहा- भगवन् ! अब वाराहीशिला का माहात्म्य बतलाइये। भगवान् शिव बोले- रसातल से पृथ्वी का उद्धार करके और युद्ध में हिरण्याक्ष नामक दैत्य को मारकर भगवान् वाराह बदरीक्षेत्र में आये तथा प्रलयकाल की समाप्ति तक वहीं बने रहे। वाराहजी ने शिला के रूप में ही वहाँ निवास किया। स्कन्द ने…
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��गवान्विष्णुकेपरमभक्तशेषनागजीके_रहस्य
भगवान्विष्णुकेपरमभक्तशेषनागजीके_रहस्य ? *सेष सहस्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिन्धु सौमित्रि गुनाकर॥ भावार्थ:-जो हजार सिर वाले और जगत के कारण (हजार सिरों पर जगत को धारण कर रखने वाले) शेषजी हैं, जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिए अवतार लिया, वे गुणों की खान कृपासिन्धु सुमित्रानंदन श्री लक्ष्मणजी मुझ पर सदा प्रसन्न रहें॥ हमारे हिन्दू सनातन धर्म में भगवान…
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सोलह संस्कार इस प्रकार है-
।। श्री हनुमते नमः ।। हनुमानजी और हनुमान चालीसा दोनों की भारतीय संस्कृति में अवर्णनीय आस्था है। हनुमानजी का नाम आते ही हमारे अंदर एक अद्भुद शक्ति का संचार होने लगता है। हनुमान चालीसा का पूरा पाठ करने में लगभग १० मिनट लगते हैं ! हनुमानजी अत्यंत बलशाली थे और वह किसी से भी नहीं डरते थे। हनुमानजी को भगवान माना जाता है और वे हर बुरी आत्माओं का नाश कर के लोगों को उससे मुक्ति दिलाते हैं। जिन लोगों…
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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-आठवां अध्याय..(पोस्ट०३)॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-आठवां अध्याय..(पोस्ट०३)॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराणतृतीय स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०३) ब्रह्माजीकी उत्पत्ति उदाप्लुतं विश्वमिदं तदासीत्यन्निद्रयामीलितदृङ् न्यमीलयत् ।अहीन्द्रतल्पेऽधिशयान एकःकृतक्षणः स्वात्मरतौ निरीहः ॥ १० ॥सोऽन्तः शरीरेऽर्पितभूतसूक्ष्मःकालात्मिकां शक्तिमुदीरयाणः ।उवास तस्मिन् सलिले पदे स्वेयथानलो दारुणि रुद्धवीर्यः ॥ ११…
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