जब मैं कालेज में थी तो नोबल पुरस्कार से सम्मानित और गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित ‘गीतान्जली' पढ़ी थी. आज मेरे बेटा कालेज में जा चुका है तो बुकर प्राइज विजेता ‘गीतान्जली श्री' को पढ़ने का आनन्द लूंगी.
यह भी ध्यान देना पड़ेगा कि इस उपन्यास की आलोचना का जो हो हल्ला मचाया जा रहा है, वो सही है या ‘अंगूर खट्टे हैं'… .
इस बार गर्मी इतना सिर चढ़कर बोल रही है कि आग का रूप धारण कर चुकी है । ऐसी तपन सूरज की किरणों से ही होती है पर इस बार लग रहा है कि सूरज ने अपना एक टुकड़ा धरती पर फेंक दिया हो।
इस जलवाने मौसम में जंगलों में आग लगने की खबर तो आ ही रही है, बड़ी इमारतें भी इसका शिकार बनी हुईं है । सरकारी दफ्तर तो इससे कभी अछूते रहे ही नहीं। कई फाइलें अग्निकुंड में स्वाहा हो जाती हैं । ये फ़ाइलें किसी के लिए महत्वपूर्ण तो किसी के लिए महत्वहीन होती हैं । इसीलिए फ़ाइलों का अग्नाशय में जाना, किसी के लिए ‘दुर्भाग्य’ का मसला तो किसी के लिए ‘सौभाग्य’ की बात हो जाती है। कई बार तो यह ‘हज़ार भाग्य’ की भी कहानी बन जाती है । खैर, यह आग के कारण, स्थान, समय और फाइल की दशा/ दिशा पर निर्भर करती है।
इस आग की खासियत है कि इसकी लपटों और धूँए की भयावहता को देखा जा सकता है । फायर ब्रिगेड की बौछारों से इसे बुझाया भी जा सकता है। आग बुझने के बाद की राख़ को उड़ाया और साफ भी किया जा सकता है। दूसरी जगह बनने वाली परत को रोका जा सकता है । यदि भूलवश/ जानबूझकर परत बन ही गयी हो तो उसे भी साफ किया जा सकता है।
पर उन ‘आगों’ का क्या जो दिलों में लग जाती है ? वो समय गुजर गया जब इसका आरोप सिर्फ सावन पर लगाया जाता था । सावनीय आग तो किसी से प्यार में पड़ने की होती थी जिससे मन मस्त होकर हरा-भरा हो जाता था । माहौल चहकने और फलने-फूलने लगता था। मानव और मानवीयता का निर्माण होता था ।
आज की आग तो स्वयं से और स्वयं के समूह से अंधे प्यार की आग है। बिना किसी लेट–लतीफी के न जाने कितने अग्निकुंड दिलों में बन रहें हैं । ऐसी निराकारी अग्नि साकार से कई गुना ज्यादा धरती पर विद्यमान है । यह लंबे समय तक रहती है । अनेक पीढ़ियों और सदियों तक कब्जा जमाये रहती है। साकार अग्नि की तरह नहीं कि पानी की लंबी बौछारें से बुझा दो और लपटों का अस्तित्व खत्म । आज इससे निकली लपटें हवा में इस कदर उड़ रही है कि ‘हवा में आग’ तो क्या ‘आग ही हवा’ बन गयी है । फलतः आग और हवा दोनों के मन में संदेह अलंकार वाला यह प्रसिद्ध उदाहरण शब्द बदलकर घुस गया है कि ‘हवा बीच आग है कि आग बीच हवा है। आग ही की हवा है कि हवा की ही आग है।’
स्थिति यह है कि यह ऑक्सीजन के रूप में हमारे अंदर जा रही है और अमानवीय प्रतिक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में बाहर भी आ रही है । इससे केवल श्वसन नलियाँ ही प्रभावित नहीं हो रही , सारे अंग-प्रत्यंग भी अंधाधुंध शिकार हो रहें हैं । इसका असर इतना मारक है कि पेड़-पौधे, कीट –पतंगे और जानवर भी इसी राह पर चलाने को मजबूर हो गयें हैं। ‘फेयर’ बनाने के सामाजिक मुहिम में पूरा ‘इकोसिस्टम’ ही ‘फायरी’ हो गया है। अब तो यह उत्पादक, फैलावक और उपभोक्ता ही नहीं , भुक्तभोग्ता भी बन गया है ।
प्रश्न यह है कि निराकार लपटों के लिए फायर ब्रिगेड कहाँ से लाया जाए ? कोई भूले भटके फायर-ब्रिगेड बनकर आ भी जाता है तो कोई गारंटी नहीं कि उसके पाइपों में पानी की बौछारें ही हों। घी की धार भी तो हो सकती है। ‘आग में घी डालना ’ मुहावरा यूँ ही तो नहीं बना ? कहीं पर, किसी ने तो शुरुआत की ही होगी। तभी तो आज इसकी लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई कई गुना बढ़ गई है। परिमाप और आयतन इतना विकास कर चुका है कि कईयों के अंदर असीमित मात्रा में घी के तहखाने बन गयें हैं । फलतः ���नेक लोगों द्वारा अनेक तरीकों से अनेक लोगों पर घी डाला जा रहा है । यह घी कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। जितना निकलता है, उससे कई गुना बढ़ता जाता है।
शर्त यह है कि यह सक्रिय रहे, अन्यथा घी जम सकता है। इसीलिए कहीं आग न लगी हो तो घी धारकों का मन नहीं लगता। ये बेचैन और उदास हो जातें हैं । विकल्प के तौर पर माचिस की तीलियों का भंडार भी इनके पास रहता है। वे शांत क्षेत्रों में इनका प्रयोग बड़े ही कलात्मक ढंग से करते हैं। माचिस की डिब्बी के मसाले वाले भाग पर तीली को लंबा खड़ा करके अँगूठे से दबा देते हैं और दूसरे हाथ की ऊंगली से तीली को झटके से फेंक देते हैं । पता ही नहीं चलता कि आग कैसे और किसने लगाई है। बस यही समय होता है जब घी पिघल जाता है और आग में जाने को तैयार होता है, भले ही दूर से यह पानी वाली पाइप लगे।
यह आग इतनी अनंत, असीमित और सर्वव्यापक हो गई है कि आज इसे ही भगवान मान लिया गया है। यूँ ही आग को विश्व के सर्वश्रेष्ठ खोजों में एक नहीं माना जाता।
आप सभी को हिन्द दी चादर और मानवाधिकार के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देने वाले सिक्ख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के प्रकाश पर्व की शुभकामनायें