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यह राजनीति कुछ समझ नहीं आई।
भारष्टाचार, बईमानी के विरुद्ध बड़े जोश के साथ अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में आंदोलन हुआ और एक नए संगठन का जन्म हुआ, जिसका लक्ष्य एक ईमानदार और स्वच्छ गठबंधन करके देशहित के लिए कार्य करना था पदलोलुप की इच्छा न रखते हुए इसमें स्वेच्छा से कई लोग शामिल हुए।
किंतु धीरे धीरे यह सक्रिय राजनीति में परिवर्तित हो गया। केजरीवाल जिन्होंने अपनी छवि कट्टर ईमानदार बताते हुए जनता को झूठे प्रलोभन देकर बड़े-बड़े वादे करके दिल्ली के मुख्य मंत्री बन गए।
केजरीवाल जो की महिला सशक्तिकरण के हिमायती तथा महिलाओं को न्याय दिलाने ��े पक्ष में थे उन्हीं के आवास में उनके ही इशारों पर उनके सेक्रेटरी विभव ने स्वाति मालीवाल को लातो और घूसों से पिटवाया।
भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में यह कांड काले पन्नो में लिखा जायेगा। स्वाति मालीवाल जो की स्वयं इतने सशक्त पद पर कार्य कर चुकी हैं तथा राज्य सभा की सदस्य हैं उनसे इतना शर्मनाक और क्रूर व्यवहार हुआ तो साधारण लोग क्या ही आशा करेंगे?
इस कृत्य की जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। केजरीवाल जो की अपने आप को सत्यता और न्याय की मूर्ति बताते हैं उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं दी, इससे तो यही साबित होता है कि इनके इशारों पर ही सारा कार्य हो रहा था, जो कि बेहद शर्मनाक तथा निंदनीय है।
जय हिंद
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अमेरिका की दोगली नीति
वर्तमान समय में आज की ज्वलंत समस्या रूस और यूक्रेन युद्ध है | विश्व में कहीं भी कोई घटना होती है, प्रतेक देश पर उसका असर होता है | मनुष्य विश्वयुद्ध की कगार पर बैठा है, कब उसकी जीवनलीला समाप्त हो जाए मालूम नहीं है | मनुष्य ने विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है किंतु उसका गलत इस्तेमाल विध्वंसकारी परिणाम भी दे सकता है | और यही आजकल हो रहा है |
रूस जब संगठित था तो यूक्रेन उसी का हिस्सा था किंतु जब विघटन हुआ तो यूक्रेन एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गया | क्योंकि यूक्रेन की सीमा रूस से लगी हुई है तो समझौते की यह शर्त थी कि किसी भी विदेशी आक्रमण होने पर रूस उसकी रक्षा करेगा | किंतु अमेरिका को सर्वशक्तिशाली राष्ट्र बनना है तथा विश्व में अपना प्रभुत्व जमाना है इस कारण अमेरिका ने यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने में पहल की तथा प्रलोभन दिया कि रूस यदि आक्रमण करता है तो अमेरिका सहित समस्त नाटो देश उसकी रक्षा करेंगे | यूक्रेन को मोहरा बनाकर उसको युद्ध में ढकेल कर स्वयं पीछे हट गया | उसने केवल दिखावे के लिए रूस पर प्रतिबंध लगाए किंतु सेना भेजने से इनकार कर दिया | और स्वयं तमाशबीन बनकर देख रहा है |
अमेरिका की प्रारंभ से ही नीति रही है की परस्पर देशों को लड़वाओ और अपने हथियारों का व्यापार बढ़ाओ | यह बात प्रत्येक राष्ट्र को समझना चाहिए |
जय भारत 🇮🇳
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यह कैसी कायर राजनीति है?
देश में जितने भी घोटाले और बड़े-बड़े कांड होते हैं बड़े-बड़े माफिया फलते फूलते हैं, यह अपने बल पर ही नहीं पनप जाते, इनके ऊपर बड़े-बड़े सफेदपोश दिखने वाले राजनीतिज्ञों का हाथ कहीं ना कहीं अवश्य होता है। एक साधारण चोर को तो कितनी यातनाएं दी जाती हैं किंतु जो संपन्न व्यक्ति होते हैं और वह अपराध करते हैं फिर भी वह ऐश का जीवन व्यतीत करते हैं। महाराष्ट्र की सरकार के मंत्री एक बयान से ही इतना घबरा क्यों गए? कंगना राणावत ने यदि अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्त किया,तो सरकार इतनी बौखला क्यों गई? यदि महाराष्ट्र की पुलिस सरकार के अधीन कार्य कर रही है, वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही, ऐसी स्थिति में जनता अपने आप को असुरक्षित महसूस करेगी ही।
यदि वह अपना मत स्पष्ट करती है तो उद्धव ठाकरे की सरकार ने अपने ऊपर क्यों ले लिया? जब पुलिस सुनेगी ही नहीं, सरकार के आला अफसर के इशारों पर नाचेगी तो जनता या कोई भी व्यक्ति कम से कम अन्याय के विरोध में अपनी आवाज तो उठायेगा ही।
उनके विधायक एक नारी को गाली देते हैं तो वह अपमानजनक नहीं है, कंगना ने यदि असुरक्षा महसूस की और महाराष्ट्र की व्यवस्था की तुलना पाक अधिकृत कश्मीर से कर दी तो महाराष्ट्र का अपमान हो गया। किसी की टिप्पणी का जवाब यदि आपको ठीक नहीं लगता तो आप भी जवाब आलोचना से दे सकते हैं। आपने तो पूरे सरकारी तंत्र को ही उसके पीछे लगा दिया। यह देश सभी का है, किसी की बपौती नहीं है। लोकतंत्र ��ें आलोचना, अभिव्यक्ति यह सब संवैधानिक अधिकार है, तानाशाही नहीं है कि आपके साथ अन्याय होता है और आप अभिव्यक्त भी न करें। किन्तु बात कुछ और है यदि कंगना की अभिव्यक्ति को दबाया ना गया तो इनकी सब वो बातें और असफलताएं उजागर हो जाएंगी जो कि सरकार के लिए हितकारी नहीं होंगी।
जय हिन्द
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प्रधानमंत्री ने देश की जनता को गुमराह क्यों किया?
प्रधानमंत्री पद बहुत ही जिम्मेदारी का होता है क्योंकि उनके एक-एक शब्द की महत्ता पूरे अंतरराष्ट्रीय जगत में भी होती है और जो भी बोलते हैं उसका प्रभाव ना केवल राष्ट्र पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय जगत पर भी पड़ता है। चीन ने भारत की सीमा में मई के महीने से ही घुसपैठ प्रारंभ कर दी थी। किंतु प्रधानमंत्री का बयान आया कि 'ना कोई हमारी सीमा में घुसा है ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में हैं।' किंतु रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र पूर्वी लद्दाख में मई के महीने में घुसपैठ की थी। तथा भारत के 20 सैनिक शहीद हुए। किंतु अगले ही दिन ही यह दस्तावेजों को रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट से हटा दिया गया। मोदी जी ने इतनी बड़ी बात देशवासियों से झूठ बोली तथा जनता को धोखे में रखा। चीन भी अपनी देश में यह बयान प्रसारित कर रहा है कि स्वयं भारत के प्रधानमंत्री यह बात स्वीकार कर रहे हैं कि चीन ने घुसपैठ नहीं की है। कई बार सैन्यवार्ता होने के पश्चात भी वह हमारी सीमा से हटने को तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री जी तो चीन का नाम भी नहीं ले रहे। आखिर चीन से इतना डर किस बात का है?
चीन की नीति हमेशा से ही विस्तारवादी रही है। उसकी कथनी और करनी में हमेशा से ही अंतर रहा है। देश की स्वतंत्रता के पश्चात नेहरू जी के समय में हम हिंद-चीन भाई-भाई का नारा लगा रहे थे और 1962 में उसने अचानक भारत पर हमला कर दिया था। उस समय भारत की सैन्य शक्ति शक्तिशाली भी नहीं थी किंतु फिर भी भारत ने उसके आक्रमण का पुरजोर जवाब दिया था। हालांकि हमारी पराजय हुई थी किंतु फिर भी भारत चुप नहीं बैठा था।
आज तो यह स्थिति है कि चीन हमारी सीमा में घुसकर बैठा है और हम यह स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। ��ह कैसे स्थिति है?
जय हिन्द
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राजनीति में आने के लिए भी कुछ मापदंड होना चाहिए।
किसी भी क्षेत्र में जाने के लिए विभिन्न शैक्षणिक योग्यताएं होती हैं। जब तक वो शिक्षा पूरी नहीं होती तब तक वह उस कार्यक्षेत्र में नहीं उतर सकताl उदाहरणार्थ यदि वकील, इंजीनियर या डॉक्टर बनना होता है तो उसका पाठ्यक्रम पूरा करना आवश्यक होता है तभी वह अपना कर्यकौशल अच्छी तरह से संपादित कर सकते हैं। लेकिन देखा जाता है कि योग्यता तो दूर की बात है, अपराधी भी राजनीति में बड़ी आस��नी से आ जाते हैं। जैसे साध्वी प्रज्ञा को ही लीजिए इन पर मुकदमा चल रहा है, अभी पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं है किंतु भाजपा में राजनीति कर रहीं है। इन अयोग्य सांसदों से आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं? कभी गोडसे को वह देशभक्त बताती और कभी जनता को गुमराह करने के लिए अंधविश्वास फैलाती हैं, सांप्रदायिक जहर घोलती हैं। अभी उनका विवादित बयान आया कि कोरोना को समाप्त करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करो कॉरोना समाप्त हो जाएगा। ईश्वर में आस्था होने में कोई बुराई नहीं है किंतु ऐसा संभव होता तो पूरी दुनिया इस महामारी से कभी की वंचित हो जाती। एक जिम्मेदार पद पर बैठकर ऐसी गैर जिम्मेदाराना बयान देना, जनता में सांप्रदायिक वैमनस्य अंधविश्वास फैलाना कहां तक न्याय संगत है? अभी अमित शाह को कोरोना हो गया उनको भी यही फॉर्मूला अपनाना चाहिए, फिर वह हॉस्पिटल में भर्ती क्यों हुए? ईश्वर भी कर्म को ही प्रधानता देते हैं कर्म के बिना ईश्वर भी सहायता नहीं करते। जीवन में कर्म ही प्रधान है इस कारण इन बेतुके बयानों से जनता को गुमराह करना बंद होना चाहिए।
जय हिन्द
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पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष है?
लोकतंत्रात्मक शासन सुचारू रूप से चले इस कारण एक तो विपक्षी दल होता है जिसको समय-समय पर सत्ताधारियो से प्रश्न पूछने का अधिकार होता है, तथा एक स्तंभ पत्रकारों का होता है, जिनका अधिकार एवं कर्तव्य दोनों है कि वह सत्ताधारी पक्ष से प्रश्न पूछे तथा जनता को निष्पक्ष सूचना प्रदान करें।
जब सत्ताधारी दल आलोचना, विचार ही सुनना नहीं चाहता, ऐसा शासन निश्चित रूप से निरंकुश हो जाता है। अब कुछ पत्रकारों को छोड़कर बाकी पत्रकार ना तो ज्वलंत समस्याओं पर प्रश्न पूछते हैं, वरन शासन की हां में हां मिलाने में ही विश्वास करते हैं ताकि उनकी जीवनचर्या सुरक्षित बनी रहे। अभी का ही उदाहरण लीजिए, पुलिस कॉन्स्टेबल सुनीता यादव ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया तो उसी को इस्ती��ा देना पड़ा क्योंकि वह नेता जी का बेटा था तथा सुनीता यादव को धमकियां भी आने लगी। जहां उसको पुरस्कृत होना चाहिए, वहां उसको अपनी जान का ही खतरा लगने लगा। यह तो सत्तापक्ष की मनमानी तथा निरंकुशता ही कहलाएगी।
फिर लोकतंत्र कहां रह गया?? जय हिन्द
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उत्तर प्रदेश की पुलिस इतनी निकम्मी क्यों है?
उत्तर-प्रदेश की व्यवस्था इतनी अराजक हो गई है कि जनता को सुरक्षित रखना तथा उसके जान माल की सुरक्षा करना, जो कि उसका मौलिक अधिकार है, वहीं उसका मजाक बनाया जा रहा है।
यह व्यवस्था इतनी अराजक हो गई है कि किसी को किसी का भय ही नहीं है। जनता चाहे शिकायत दर्ज करें लेकिन कोई सुनवाई नहीं है, यह सब इसलिए हो रहा है कि कहीं ना कहीं इनको शासन का संरक्षण प्राप्त है तथा लेनदेन का मामला है।
उत्तर प्रदेश में अराजकता की सभी सीमाएं लांग दी है। कुलदीप सिंह सेंगर जैसा विधायक बलात्कार का दोषी होते हुए भी स्वछंदता एवं निर्भयता से घूमता रहा और पीड़िता की शिकायत भी दर्ज नहीं की। जब विधायक ने उसके पूरे परिवार को ही समाप्त कर दिया और बिल्कुल ही पानी सिर से उतर गया तब जाकर सुनवाई हुई। जब शासन को विवशता लगती है तभी कार्यवाही होती है।
अभी-अभी पत्रकार विक्रम जोशी को गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह अपनी भांजी को जो मनचले छेड़छाड़ कर रहे थे और उसको मानसिक प्रताड़ना दे रहे थे उनका विरोध कर रहा था। पुलिस से शिकायत करने पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। यदि समय रहते उचित कार्यवाही की जाती तो उसकी जान बच सकती थी।
किसी के लिए भी यह एक जान हो सकती है, किंतु यह जानना होगा कि यह एक जान ही नहीं गई बल्कि उसका पूरा का पूरा परिवार ही समाप्त हो गया।उसकी मौत के बाद अभियुक्तों को पकड़ना और अपने ऊपर शाबाशी लेना कहां तक न्यायसंगत है?
शासन तंत्र को कठोर से कठोर कार्यवाही करके यह सिद्ध करना चाहिए कि आपको अपने कर्तव्य का पालन जिम्मेदारी और निष्ठा के साथ करना होगा नहीं तो पुलिस तंत्र को यह भय होना चाहिए कि उनके ऊपर कठोर से कठोर कार्यवाही होगी।
जय हिन्द
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