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राजनीति क्यों आज इतनी असहिष्णु हो चली है ? क्या प्रबुद्धजन इस पर परामर्श देंगे? एक स्वनाम धन्य नेता पब्लिक मीटिंग में बौखलाकर यह कह बैठता है कि प्रधान-मंत्री को जनता अगले छै महीने में डंडे मारेगी। इन्हें अपनी भाषा पर कोई नियन्त्रण नहीं है,बेचारे को जो कहने को कहा जाता है बिना जाने बूझे बोल देते हैं। वैसे इन्हें बेचारे कहना भी बेचारगी की तौहीन होगी। भारत की सबसे पुरानी पार्टी लगता है घिसट घिसट कर चल भी इसी लिये है कि इन खोटे सिक्के को खरे बाज़ार में चलाया जा सके। वह तो मोदी जी ने संसद में ��ो टूक जवाब देकर चालीस मिनट बाद ही सही ट्यूब लाइट तक करंट पहुँचा ही दिया।राष्ट्रीय हितों से इतर विपक्ष जो तुष्टिकरण की राजनीति कर रहा है जनता बखूबी निरख रही है,परख रही है।अब तो लोहा भी गरम हो चुका है बस हथौड़ा मारने की देर है।दिल्ली का चुनाव यकीनन इसकी गवाही देगा।
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