गीता जी मे प्रमाण है अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि :- क्षर पुरुष ( ॐ ) और अक्षर ���ुरुष ( परब्रह्म ) नाशवान है। परम अक्षर ब्रह्म अविनाशी है।
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आदि सनातन धर्म के आधार पर हमें पवित्र श्रीमद् भागवत गीता एवं पवित्र चारों वेद के अनुसार अपनी साधना भक्ति करनी चाहिए जिससे हमें मोक्ष प्राप्त होगा एवं हमारे सभी कार्य सिद्ध होंगे।
उस अनादि परमेश्वर कबीर साहेब जी का सनातन धर्म ही चारों युगों में अस्तित्व में रहता है। किंतु काल ब्रह्म द्वारा भ्रमित किये जाने के कारण नए नए धर्मों की उत्पत्ति होती जाती है। कलियुग से पहले भी केवल सनातन धर्म ही था।
चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सनातन धर्म की आधारशिला हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 3, सूक्त 82 मन्त्र 1-3, सूक्त 86 मन्त्र 26-27, सूक्त 96 मन्त्र 16-20, मण्डल 1 सूक्त 1 मन्त्र 5, यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32, अध्याय 40 मन्त्र 8, संख्या नं. 920 यूटार्किक अध्याय नं. 5 की धारा नं. 4 श्लोक नं. 2, अथर्ववेद कैनन नं. 4 श्लोक नं. 1 मन्त्र 7 आदि वैदिक मन्त्रों से स्पष्ट है कि मूल पुरुष परमेश्वर कबीरदेव (कबीर साहेब) हैं जो पूर्ण शान्तिकर्ता, पापनाशक तथा मुक्तिदाता हैं।