पवित्र कुरआन मजीद का अमृत ज्ञान पाक आत्मा हजरत मुहम्मद जी को मिला। हजरत मुहम्मद जी थे तो कुरआन का ज्ञान हमारे बीच में है। इसलिए नबी मुहम्मद जी का अनुभव कुरआन मजीद से कम महत्व नहीं रखता।
होली पर जानिए,वह समर्थ परमात्मा कौन है, जिसके विषय में ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 80 मंत्र 2 व ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा गया है कि वह परमात्मा अपने सच्चे साधक की आयु भी बढ़ा देता है?
संत रामपाल जी महाराज ने सतभक्ति साधना के साथ परमार्थ करने को श्रेष्ठ बताया है। इसी कारण उनके अनुयायी आए दिन जरूरतमंदों की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं (जैसे रक्तदान, देहदान)
आपको सूचित करते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है कि जो अवसर मानव को सतयुग में भी सुलभ नहीं था वो पवित्र अवसर हमें प्राप्त हो रहा है। 17, 18, 19 और 20 फ़रवरी 2024 को होने वाले इस पवित्र महासमागम में आप सभी सह परिवार सादर आमंत्रित हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी को 37 वर्ष की आयु में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि के समय नाम दीक्षा प्राप्त हुई। और तन-मन से सक्रिय होकर भक्ति साधना करके परमात्मा का साक्षात्कार किया।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने सतलोक जाकर केशव बंजारा(व्यापारी) रुप बनाया फिर वहीं के हंसात्माओं(मनुष्यों) को बैल बनाकर खाने पीने का समान लादकर लाए और अद्भुत भंडारा कराया था।
संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य है कि पूरी दुनिया से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी समाप्त हो। संत रामपाल जी के बताये तत्वज्ञान से उनके अनुयायी न तो रिश्वत लेते और न देते हैं। इससे भ्रष्टाचार मुक्त समाज तैयार होगा।
वर्तमान में सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो शास्त्र अनुकूल सतभक्ति विधि से भक्त समाज को दहेज़, नशा, पाखंड, भ्रष्टाचार, छुआछूत, रिश्वत खोरी व काल के दुखों से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 8 सितंबर को उन महान संत का अवतरण दिवस है।
एक सदन नाम का कसाई था। संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। ऐसे ही सदन कसाई को शरण में लेकर सतभक्ति कराकर उद्धार किया था।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है, कि पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कुंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त में अपने सत्यलोक से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।
पूर्ण परमात्मा का माँ के गर्भ से जन्म नहीं होता।
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