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सबको सुखदाई अति मन भाई शरद सुहाई आई।कूजत हंस कोकिला फूले कमल सरनि सुखदा।सूखे पंक हरे भये तरुवर दूरे मेघ मग भूले ।अमल इंदु तारे भय सरिता कूल कास तरु फूले।निर्मल जल भयो दिसा स्वछ भई सो लखि अति अनुरागे।जानि परत हरि शरद विलोकत रति श्रम आलस जागे।।
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आई भादों की उजियारी।आनन्द भयो सकल बृज मंडल प्रगटि श्री वृषभानु दुलारी।कीरति जू की कोख सिरानी जाके घर प्यारी अवतारी।हरिचंद मोहन जू की जोरी, विधना कुंवरि सँवारी।
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भागती जिंदगी को प्रकृति ने स्तंभित कर दिया।होड़, बैचैनी,चाह, इच्छा सब को शांत कर दिया।विचार करने का समय दिया।स्वयं भी अर्गला लगा कर निज सेवको के साथ बैठ गए।शायद पुनर्नवा यही है।डर पर मनुष्य विजय प्राप्त करता है जानते थे।इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी कोनेअन्तरे से निकले नवजीवन नए प्रयोग स्थान बनाने लगे।फिर परिस्थिति विपरीत क्या हुई।क्या ये मन की ही दशा नही है। और सुंदर सृजन हुआ जो अभीष्ट तक नही पहुंच पाते थे ।वे भी digitl माध्यम से पहुँच गए।तनावयुक्त वातावरण में भी नवांकुर।जीवन कैसे एक क्षण में सामंजस्य बना लेता है
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नाव हरि अवघट घाट लगाई।हम ब्रज बाल कहो कीत जैहैं करिहैं कौन उपाई।साँझ भई संग में कोउ नाही देहु हमे पंहुचाई।हरिचंद तन मन धन सब देंहैं उतराई।🙏🙏यही भाव है न😊🙏🙏
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