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"एहसास"
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एक ज़र्रे से खुदा तक का...
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akanksharma-blog · 4 years ago
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akanksharma-blog · 4 years ago
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akanksharma-blog · 4 years ago
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akanksharma-blog · 4 years ago
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akanksharma-blog · 4 years ago
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akanksharma-blog · 5 years ago
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akanksharma-blog · 6 years ago
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akanksharma-blog · 6 years ago
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akanksharma-blog · 7 years ago
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ख्याल तुम्हारा आता है...
रिमझिम बारिश के बाद जब,
इंद्रधनुष दिख जाता है,
छोटा सा बच्चा कोई जब,
प्यार से मुस्काता है,
जब मेरे आंगन में,
फूल कोई खिल जाता है,
किसी के नाम से कोई जब,
हौले से शर्माता है,
जब कोई अपनी आंखों में,
सारा प्यार छुपाता है,
और अंधेरी रात में जब,
चाँद जगमगाता है,
जब कोई नगमा मेरे,
दिल के तार छेड़ जाता है,
जब कभी कोई मेरे,
मन की बात कह जाता है,
सच कहती हूँ मन मे तब-तब,
ख्याल तुम्हारा आता है...
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akanksharma-blog · 7 years ago
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बरकरार...
कभी-कभी मन में ख्याल आता है,
कि क्यों,
चुप रह जाती हूँ,
जब कोई खेलता है,
मे��े जज़्बातों से,
जब कोई पहुचाता है ठेस,
मेरे आत्मसम्मान को,
जब कोई दुखाता है दिल,
और जब कोई छीन लेता है मुझसे,
मेरा बचपना,
मेरी चंचलता,
मुस्कुराहट,
मेरी कोमलता,
मेरी निर्मलता,
खिलखिलाहट...
कभी-कभी मन में ख्याल आता है कि कैसे,
कैसे कोई दे जाता है,
मेरे माथे पर शिकन,
चेहरे पर उदासी,
आंखों में नमी,
कैसे महसूस करा जाता है मुझको वो,
अकेलापन,
अंधकार,
अपनो की कमी...
हाँ मैंने सोचा था,
की जब मैं,
"मैं" से "हम" होऊँगी,
तो मेरा महत्व,
मेरी ताकत,
मेरी पहुंच,
मेरी बातों का वजन,
मेरी खुशियाँ,
सब दुगने होंगे,
पर ये सब तो अब,
पहले से भी आधे रह गए हैं,
दुगनी हुई हैं तो बस,
मेरी ज़िम्मेदारियाँ,
मेरे बंधन,
और मिलने वाले आदेश...
सब बदला मैंने तुम्हारे लिए,
अपनी आदतें,
पसंद,
परिवेश...
पर ये सब निभा लेती मैं,
अगर तुम साथ होते,
साथ देते,
पर देख लिया निभा के,
हासिल क्या हुआ?
कुछ नही,
कुछ भी तो नही,
बस खुद को इतना खो चुकी हूँ,
कि ढूंढ भी नही पा रही हूँ,
इसलिये,
इससे पहले की,
मेरी हिम्मत, मेरी उम्मीद की आखिरी किरण भी धूमिल हो,
में सोचती हूँ कि बोल दूँ...
बोल दूँ की नही चाहिए...
नही चाहिए ऐसा बदलता प्यार,
ऐसा एहसास रहित साथ,
नही चाहिए ऐसा बंधन,
नही चाहिए ऐसा रिश्ता,
ऐसा रिश्ता जिसमे,
में घुट-घुट के जियूँ,
जिसमें मैं चुप रहूं,
जिसमें मुझे अपना वजूद खोता हुआ दिखे,
जिसमें मैं मैं न रहूं,
नही चाहिए,
अब तुमसे कुछ भी नही चाहिए,
नाम भी नही...
क्योंकि
मैं सक्षम हूँ,
शायद तुम जानते नही,
क्योंकि,
मैं सही हूँ,
ये भी तुम मानते नही,
पर तुम देखना,
कि,
अपनी हिम्मत,
अपने आत्म विश्वास,
और
अपनी सच्चाई
को बनाकर हथियार,
रखूंगी
अपना वजूद,
अपना अस्तित्व,
और,
अपना आत्म सम्मान,
बरकरार....
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akanksharma-blog · 7 years ago
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खामोश कलम...
दिल में मोहब्बत इतनी थी,
की लफ़्ज़ों में बयां हो नही सकती,
तेरी गुस्ताखियां भी इतनी की,
जो कागज़ में समा नही सकती,
तूने दर्द इतना दे दिया है कि,
कोई स्याही समझा नही सकती,
और अब कोई शेर, कोई नगमा, कोई ग़ज़ल,
ये दूरियां मिटा नही सकती,
फिर मेरी कलम का क्या दोष,
जो आजकल वो खामोश रहती है...???
अकांक्षा...
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akanksharma-blog · 7 years ago
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दिल से जो जज़्बात का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता, शीतल जो चंदन के जैसा, पावन जो गंगा-जल जैसा, जैसे हाथों में हाथ का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता... शब्दों में जो बंध न पाए, पर हर एक रिश्ता जिसमे समाए, हरदम हरपल सुख जो देता, खुशियों से दामन भर देता, जैसे दिल से फरियाद का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता... मीठा जो मिश्री से भी, उजियारा, रौशनी से भी, तन्हाई में साथ कि तरह, खामोशी में आवाज़ की तरह, जैसे होंठो और बात का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता... अनमोल जो सीपी के मोती सा, मेरे लिए तो ये ज़िन्दगी सा, कभी-कभी नाम आंखों संग, कभी किलकारियाँ-हुडदंग, जैसे बूंद और बरसात का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता... कभी जो बचपने से भरा, और कभी सबसे बड़ा, सबसे प्यारा सबसे न्यारा सा, आसमाँ से टूटे तारे से, जैसे चंद और रात का रिश्ता, ऐसा मेरा आपका रिश्ता...
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akanksharma-blog · 7 years ago
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Being a Biker is more than riding a bike....You feel it in your heart n soul... #bikeride #avenger #happy
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akanksharma-blog · 7 years ago
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रास्तें...
ज़िन्दगी रास्तों का ही तो खेल है, बस समय समय पर उसकी परिभाषाएं बदलती रहती हैं... हमारे भीतर और बाहर दोनों ओर रास्ते ही रास्ते हैं, चाहे हम उसपे अमल करें या नही, चाहे वो ��ही हो, या गलत, आसान हो या फिर मुश्किल, हो सकता है वो मेरी नज़र में ठीक हो, और सबकी नजर में गलत, या फिर, सबकी नजर में सही, और मेरी नज़र में गलत, पर हर रास्ता हमें कही ना कहीं लेकर जाता है, हर रास्ता हमे कुछ नया सिखाता है, हर रास्ता कुछ यादें दे जाता है, चाहे वो अच्छी हों या खराब, तजुर्बा देता है, चाहे वो सुखद हों या दुखद, पर रास्ता कभी हमे खाली हाथ नही जाने देता... रास्ता... रास्ता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे साथ हर घड़ी बना ही रहता है. हमे उससे नफरत भी हो सकती है और प्यार भी. कभी वो हमें अच्छी यादों में खोने को मजबूर कर देता है, और कभी उदास भी कर देता है. कभी तो रास्ते खुद ही सामने आ जाता है, और कभी हमे उसे ढूँढना पड़ता है... हम भले ही उन्हें भूल जाएं...पर वो हमारी दी हुई यादों को संजोए रहते हैं...चाहे वो कोई पेड़ के रूप में हो, पेड़ों पर उकेरे नाम के रूप में हों, कोई पुलिया हो जिसपे हम दोस्तों संग अच्छा समय बिताते थे...कोई बेंच हो जहां हम किसी का इंतज़ार करते थे...या कोई बस स्टॉप हो जहां हम किसी का दीदार किया करते थे...या वो एक छोटी सी दुकान जो स्कूल जाते वक्त रास्ते मे पड़ती थी...जिससे हम मीठी गोलियां लिया करते थे... कभी कभी रास्ते वही रहते हैं और साथी बदल जाते हैं और कभी साथी वही रहते हैं और रास्ते बदल जाते हैं... क्या कभी कब आप ऐसे पुराने रास्तों से गुजरे हैं तो आपको उन रास्तो ने आवाज़ नही दी? पहचान नही लिया? उस समय आपके अंदर जो अनुभूति होती है...और आपके चेहरे पर जो मुस्कान आती है...कभी तो आंखे भी नम हो जाती हैं...ये सब उन्ही रास्तो की हरकत है शैतानी है टीस है दर्द है... हम जीवन भर रास्ता ही तो ढूंढते रहते हैं, बचपन मे परीक्षा में अच्छे अंक लाने का रास्ता, टीचर की मार से बचने का रास्ता, अव्वल आने का रास्ता, फिर अच्छी नौकरी पाने का रास्ता, अच्छा जीवन साथी पाने का रास्ता, उसके दिल का रास्ता, उस तक अपने दिल की बात पहुचने का रास्ता, और माँ बाप को मनाने का रास्ता... सिर्फ इतना ही नही, अच्छा बनने का, यानी अपनी कमियों को जानकर, मानकर, उन्हें सुधारने का, बेहतर बनने का, धन दौलत कमाने का, बचत करने का, मुश्किलों से बच निकलने का रास्ता, बल्कि वो रास्ता भी जिसमे हमे कम से कम ट्रैफिक मिले, जिसमे कम से कम समय लगे... मतलब ज़िन्दगी के हर मोड़ हर परिस्थिति में हम रास्ता ही तो ढूंढते हैं...ज़िन्दगी होती ही जबतक है जब तक हमें रास्ते मिलते जाते हैं... जिस दिन हमे कोई रास्ता दिखाई नही देता...कोई उम्मीद की किरण नज़र नही आती,उसी दिन हम ज़िन्दगी से हार जाते हैं...और फिर एक आखिर बार एक आखिरी रास्ता तय करते हैं...
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akanksharma-blog · 8 years ago
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हाथ में लेकर कलम, मैं हाल-ए-दिल लिखता गया, मेरा मन का निर्झर उमड़ा, अपने आप ही बहता गया...
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akanksharma-blog · 8 years ago
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जब...
जब खुद से दुनिया को कुछ घटा पाता हूँ, तभी अपने होने को बढ़ा पाता हूँ, छोड़ देता हूँ जब सब से उम्मीदें, तभी ज़िन्दगी में मुस्कुरा पाता हूँ, दिमाग से नहीं दिल से काम लेता हूँ, और औरों के दिल में समा जाता हूँ, नहीं है चाहत मुझको बड़े बड़े सौदों की, प्यार ही देता हूँ, प्यार ही पाता हूँ, जो मेरे अपने रहते हैं मेरे दिल में, उनको मैं हर वक़्त हर शय में पाता हूँ, कभी पिरोता हूँ उनको अपने अश्क़ों में, और कभी यूँही ग़ज़लों में गुनगुनाता हूँ... 11-04-17
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akanksharma-blog · 8 years ago
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ज़माना था जब रिसती थी मोहब्बत हर लफ्ज़ से, आज मेरे हर लफ्ज़ का हर हर्फ़ गिला हो बैठा... बहार ,बरसात और पतझड़, प्यार का हर मौसम मैंने देखा...
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