संत रामपाल ज़ी महाराज के 74वें अवतरण दिवास के उपलक्ष्य में होने वाले तीन दिवसीय अखंडपाठ,विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर,दहेज रहित विवाह,नशा मुक्ति अभियान,समाज सुधार,नि:शुल्क नाम दीक्षा और भव्य आध्यात्मिक प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगगा।
संत रामपाल ज़ी महाराज के 74वें अवतरण दिवास के उपलक्ष्य में होने वाले तीन दिवसीय अखंडपाठ,विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर,दहेज रहित विवाह,नशा मुक्ति अभियान,समाज सुधार,नि:शुल्क नाम दीक्षा और भव्य आध्यात्मिक प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगगा।
संत रामपाल जी महाराज के 74वें अवतरण दिवस के अवसर पर 6, 7 और 8 सितंबर को महासमागम का आयोजन किया जा रहा है। इस उपलक्ष्य में होने वाले तीन दिवसीय अखंड पाठ, विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, दहेज रहित विवाह, नशा मुक्ति अभियान, समाज सुधार, नि:शुल्क नाम दीक्षा और भव्य आध्यात्मिक प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें आप सभी को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारकर आयोजन की शोभा बढ़ाएं।
अध्यात्म के नाम पर अज्ञान परोसने वाले धर्मगुरुओं के अज्ञान को उजागर कर मानव समाज को शास्त्र अनुकूल ज्ञान देने के लिए संत रामपाल जी महाराज को अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि सत्यज्ञान के प्रचार लिए उन्होंने अन्य धर्मगुरुओं का विरोध झेला, उन्हें जेल तक जाना पड़ा और बिना रुके, बिना थके आज जेल में रहते हुए भी संत रामपाल जी महाराज का संघर्ष जारी है।
संत रामपाल जी ने अपना पूरा जीवन मानव समाज तक सतभक्ति और सत्यज्ञान पहुँचने के लिए न्योछावर कर दिया। इसी कड़ी में उन्होंने सर्वप्रथम अपनी नौकरी से त्यागपत्र दिया व उसके बाद दिन-रात संघर्ष कर घर-घर जाकर सत्यज्ञान की अलख जगाई। वास्तव में संत रामपाल जी महाराज का जीवन मानव कल्याण के लिए संघर्ष का पर्याय बन गया।
त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया।
कबीर परमात्मा जी द्वारा नल और नील के असाध्य रोग को ठीक करना
जब त्रेतायुग में परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मुनींद्र ऋषि रूप में नल और नील के असाध्य रोग को अपने आशीर्वाद से ठीक किया तथा नल और नील को दिए आशीर्वाद से ही रामसेतु पुल की स्थापना हुई थी।
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
श्री रामचंद्र द्वारा रावण वध के बाद माता सीता की अयोध्या वापसी पर जब एक घटनाक्रम के दौरान माता सीता जी ने हनुमान जी का अपमान किया तो हनुमान जी वापिस जंगल में चले गए। तब दुखी हनुमान जी को मुनिंदर रूप में आए परमात्म��� कबीर जी ने मोक्ष की राह दिखाई और असली राम की जानकारी दी।
आदरणीय धर्मदास साहेब जी, बांधवगढ़ मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मथुरा में मिले, सतलोक दिखाया और तत्वज्ञान समझाया। वहाँ सतलोक में दो रूप दिखा कर जिंदा रूप वाले परमात्मा, पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही काशी (बनारस) में नीरू-नीमा के घर गया हुआ हूँ। वहाँ धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ।