12845678
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12845678 · 6 months ago
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🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब जी मुनीन्द्र ऋषि के रूप में प्रकट हुए, नल-नील को शरण में लिया और जब रामचन्द्र जी द्वारा सीता जी को रावण की कैद से छुड़वाने की बारी आई तो समुद्र में पुल भी ऋषि मुनीन्द्र रूप में परमात्मा कबीर जी ने बनवाया।
धन-धन सतगुरू सत कबीर भक्त की पीर मिटाने वाले।।
रहे नल-नील यत्न कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।।
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12845678 · 6 months ago
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12845678 · 6 months ago
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🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर ने ही द्रौपदी का चीर बढ़ाया जिसे जन समाज मानता है कि वह भगवान कृष्ण ने बढ़ाया। कृष्ण भगवान तो उस वक्त अपनी पत्नी रुकमणी के साथ चौसर खेल रहे थे।
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12845678 · 6 months ago
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🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से ही पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ था। पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि महर्षि मंडलेश्वर उपस्थित थे। यहां तक की भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे। फिर भी उनका शंख नहीं बजा। कबीर परमेश्वर ने सुपच सुदर्शन वाल्मीकि के रुप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया था।
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12845678 · 6 months ago
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🔹परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से जब द्वापरयुग में प्रकट थे तब काशी में रह रहे थे। सुदर्शन नाम का एक युवक उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। एक दिन सुदर्शन ने करुणामय जी से पूछा कि आप जो ज्ञान देते हैं उसका कोई ऋषि-मुनि समर्थन नहीं करता है, तो कैसे विश्वास करें? उन्होंने सुदर्शन की आत्मा को सत्यलोक का दर्शन करवाया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। उसके माता-पिता रोते हुए परमेश्वर करूणामय के घर आए और उन पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया।
तीसरे दिन सुदर्शन होश में आया और कबीर जी को देखकर रोने लगा। उसने सबको बताया कि परमेश्वर करूणामय (कबीर साहेब जी) पूर्ण परमात्मा हैं और सृष्टि के रचनहार हैं।
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12845678 · 6 months ago
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🔹द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) सा��ेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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12845678 · 7 months ago
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📗ज्ञान गंगा पढ़ने के बाद हमें ज्ञान होता है हम कौन हैं, कहां से आए हैं और हमें मनुष्य जीवन क्यों प्राप्त हुआ है।
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12845678 · 7 months ago
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📗भगवान राम व भगवान कृष्ण जी सतयुग में नहीं थे। तब किस राम की भक्ति होती थी?जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
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12845678 · 7 months ago
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📗आखिर मृत्यु होती ही क्यों है?
जानने के लिए पढ़िए अद्भुत पुस्तक ज्ञान गंगा।
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12845678 · 7 months ago
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📗क्या गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुष की मुक्ति हुई ?
इस तरह के गहरे आध्यात्मिक राज़ जानने के लिए पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
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12845678 · 7 months ago
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📗क्या भगवान विष्णु जी ने अपना कर्म फल भोगने के लिए ही श्रीराम व श्रीकृष्ण रूप में जन्म लिया ?
ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और खुद जानें।
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12845678 · 8 months ago
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📯माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिये उनके मूल मंत्र का जाप करना अनिवार्य होता है जिसकी जानकारी इस धरती पर पूर्ण संत प्रदान करता है। पूर्ण संत यानी तत्वदर्शी संत जो भक्ति विधि और मर्यादाएं बताता है उन पर चलने और भक्ति करने से दुर्गा माता एवं अन्य देवी देवताओं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।
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12845678 · 8 months ago
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📯पूर्ण परमात्मा की जानकारी तत्वदर्शी संत बता सकते हैं जो स्वंय पूर्ण परमात्मा ही होता है। देवी भागवत महापुराण में देवी जी यानि दुर्गा जी अपने से अन्य किसी और भगवान की भक्ति करने के लिये कहती हैं।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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12845678 · 8 months ago
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📯नवरात्रि के पावन पर्व पर जानिए क्या माँ दुर्गा की भक्ति करने से हमारे जीवन में आने वाले कष्ट समाप्त हो सकते हैं या नहीं ?
जानने के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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12845678 · 8 months ago
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📯नवरात्रि के पावन पर्व पर जानिए क्या माँ दुर्गा की भक्ति करने से हमारे जीवन में आने वाले कष्ट समाप्त हो सकते हैं या नहीं ?
जानने के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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12845678 · 8 months ago
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📯जब ब्रह्मा जी ने वेदों को पढ़ा तो बह्मा जी माता दुर्गा जी से पूछते हैं कि हे माते वेद‌ परमेश्वर कृत हैं, मैंने वेदों में पढ़ा है कि कोई और परम शक्ति है।
उस पूर्ण परमेश्वर की जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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12845678 · 10 months ago
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୧୭ ଫେବୃୟାରୀରେ ସନ୍ଥ ରାମପାଲଜୀ ମହାରାଜଙ୍କ ବୋଧ ଦିବସ ଯାହା ଉପଲକ୍ଷେ ତାଙ୍କର ୯ ଟି ଆଶ୍ରମରେ ଅମର ଗ୍ରନ୍ଥର ଅଖଣ୍ଡ ପାଠ ଓ ଦେଶି ଘିଅରେ ପ୍ରସ୍ତୁତ ଭୋଜନ-ଭଣ୍ଡାରାର ଆୟୋଜନ କରାଯାଉଛି। ସନ୍ଥ ରାମପାଲଜୀ ମହାରାଜ ପୂର୍ଣ୍ଣସନ୍ଥ ଅଟନ୍ତି ଯିଏକି ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ଜ୍ଞାନର କ୍ରାନ୍ତି ଆଣିଛନ୍ତି। ସର୍ବ ଧର୍ମ ଗ୍ରନ୍ଥର ଜ୍ଞାନକୁ ଜନତାଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି। ସତ୍ୟ ଓ ଅସତ୍ୟକୁ ପ୍ରମାଣିତ କରିଛନ୍ତି ଓ ସମସ୍ତ ନକଲି ଧର୍ମଗୁରୁଙ୍କୁ ଜ୍ଞାନ ଚର୍ଚ୍ଚା ପାଇଁ ଆମନ୍ତ୍ରିତ କରି ନୀରୁତ୍ତର କରିଛନ୍ତି। ଏଥିସହିତ ସମାଜ ସୁଧାର ପାଇଁ ଭିତ୍ତିଭୂମି ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିଛନ୍ତି।
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