#मघ
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salviblogdinesh · 7 months ago
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#GodMorningWednesday
रामानंद जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले १०४ वर्ष की आयु में सत्य ज्ञान समझाकर तथा सतलोक दिखाया।
दोहूं ठौर है एक तू,भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय।।
#आँखों_देखा_भगवान_को सुनो उस अमृतज्ञान को
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hardas64 · 3 months ago
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#कबीर_God_है_प्रत्यक्ष_प्रमाण #proof #vedic #vedicastrology #proofreading #evidence #evidencebased #scripture #bhagavadgita #gurugranthsahibji #rigveda #DivinePlayOfGodKabir #SantRampalJiMaharaj 104 वर्ष की आयु में रामानंद जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले���। सत्य ज्ञान समझाकर सतलोक दिखाया। तब रामानंद जी ने अपनी अमरवाणी में कहा कि:- दोहूं ठौर है एक तूं,भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय।। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
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onkarsahu17 · 5 months ago
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दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
कोई कहैे हमारा राम बड़ा है, कोई कहे खुदाई रे ।
कोई कहे हमारा ईसा मसीह बड़ा ये बाटा रहे लगाई रे।।
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taapsee · 7 months ago
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रामानंद जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले।
रामानंद जी को १०४ वर्ष की आयु में सत्य ज्ञान समझाकर तथा सतलोक दिखाया।
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास हम कारणें उतरे हैं मघ जोय । गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार ।।
#आँखों_देखा_भगवान_को
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gauravdass · 7 months ago
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रामानंद जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले।
रामानंद जी को १०४ वर्ष की आयु में सत्य ज्ञान समझाकर तथा सतलोक दिखाया।
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास हम कारणें उतरे हैं मघ जोय । गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार ।।#आँखों_देखा_भगवान_को
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pradeepdasblog · 9 months ago
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( #Muktibodh_part221 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part222
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 424-425
◆◆ कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि भैंसा पंडित आप पंडितो वाले लंगर में प्रवेश करके भोजन ग्रहण करें। मैं तो शुद्र हूँ, अशिक्षित हूँ। इसलिए आम जनता के लिए लगे लंगर मैं भोजन करने जाता हूँ।
उसी समय सर्व पंडित जो भैंसे को वेदमन्त्रा बोलते देखकर एकत्रित हो गए थे। कबीर जी के चरणों में गिर गए तथा अपनी भूल की क्षमा याचना की। परमेश्वर ��बीर जी ने कहाः-
करनी तज कथनी कथैं, अज्ञानी दिन रात।
कुकर ज्यों भौंकत फिरें सुनी सुनाई बात ।।
सत्संग में तो कह रहे थे कि भगवान रामचन्द्र जी ने शुद्र जाति की सबरी (भीलनी) के झूठे बेर रुचि-रुचि खाए, कोई छुआछूत नहीं की और स्वयं को तुम परमात्मा से भी उत्तम मानते हो। कहते हो, करते नहीं। एक-दूसरे से सुनी-सुनाई बात कुत्ते की तरह भौंकते रहते हो। सर्व उपस्थित पंडितों सहित हजारों की सँख्या में कबीर जुलाहे के शिष्य बने, दीक्षा ली।
शास्त्रविरुद्ध भक्ति त्यागकर, शास्त्रविधि अनुसार भक्ति शुरु की, आत्म कल्याण करवाया। हे धर्मदास! यही बात आप कह रहे हो कि हम शुद्र को पास भी नहीं बैठने देते।
धर्मदास बहुत शर्मसार हुआ। परन्तु परमात्मा की शिक्षा को अपने ऊपर व्यंग्य समझकर खिझ गया तथा कहा कि हे जिन्दा! आपकी जली-भूनी बातें अच्छी नहीं लगती। आपको बोलने की सभ्यता नहीं है। कहते हो कि कुत्ते की तरह सुनी-सुनाई बातें तुम सब भौंकते
फिरते हो। यह कहकर धर्मदास जी ने मुँह बना लिया। नाराजगी जाहिर की। परमात्मा जिन्दा रुप में अन्तर्ध्यान हो गए। चौथी बार अन्तर्ध्यान हो गए तो धर्मदास का जीना मुश्किल हो गया। पछाड़ खा-खा कर रोने लगा। उस दिन फिर वृंदावन में धर्मदास से परमात्मा की वार्ता हुई थी। (इस प्रकार परमेश्वर कबीर जी कुल मिलाकर छः बार अन्तर्ध्यान हुए, तब धर्मदास की अक्ल ठिकाने आई) वृन्दावन मथुरा से चलकर धर्मदास रोता हुआ अपने गांव
बांधवगढ़ की ओर वापिस चल पड़ा। धर्मदास जी ने छः महीनों का कार्यक्रम तीर्थों पर भ्रमण का बना रखा था। वह 15 दिन में ही वापिस घर की ओर चल पड़ा। गरीब दास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है :-
तहां वहां रोवत है धर्मनी नागर, कहां गए मेरे सुख के सागर।
अति वियोग हुआ हम सेती, जैसे निर्धन की लुट जाय खेती।
हम तो जाने तुम देह स्वरुपा, हमरी बुद्धि अन्ध गहर कूपा।
कल्प करे और मन में रोवै, दशों दिशा कूं वो मघ जोहै।
बेग मिलो करहूं अपघाता, मैं ना जीवूं सुनो विधाता।
जब धर्मदास जी बाँधवगढ़ पहुँचा, उस समय बहुत रो रहा था। घर में प्रवेश करके मुँह के बल गिरकर फूट-फूटकर रोने लगा। उसकी ��त्नी का नाम आमिनी देवी ��ा। अपने पति को रोते देखकर तथा समय से पूर्व वापिस लौटा देखकर मन-मन में विचार किया कि लगता है भक्तजी को किसी ने लूट लिया है। धन न रहने के कारण वापिस लौट आया है। धर्मदास जी के पास बैठकर अपने हाथों आँसूं पौंछती हुई बोली - क्यों कच्चा मन कर रहे हो। कोई बात नहीं, किसी ने आपकी यात्रा का धन लूट लिया। आपके पास धन की कमी थोड़े है और ले जाना। अपनी तीर्थ यात्रा पूरी करके आना। मैं मना थोड़े करुँगी। कुछ देर बाद दृढ़ मन करके धर्मदास जी ने कहा कि आमिनी देवी यदि रुपये पैसे वाला धन लुट
गया होता तो मैं और ले जाता। मेरा ऐसा धन लुट गया है जो शायद अब नहीं मिलेगा।
वह मैंने अपने हाथों अपनी मूर्खता से गँवाया है। जिन्दा महात्मा से हुई सर्वज्ञान चर्चा तथा जिन्दा बाबा से सुनी सृष्टि रचना आमिनी देवी को सुनाया। सर्वज्ञान प्रमाणों सहित देखकर आमिनी ने कहा कि सेठ जी आप तो निपुण व्यापारी थे, कभी घाटे का सौदा नहीं करते थे। इतना प्रमाणित ज्ञान फिर भी आप नहीं माने, साधु को तो नाराज होना ही था। कितनी बार आपको मिले- बच्चे की तरह समझाया, आपने उस दाता को क्यों ठुकरवाया? धर्मदास ने कहा आमिनी! जीवन में पहली बार हानि का सौदा किया है। यह हानि अब पूर्ति नहीं हो पावेगी। वह धन नहीं मिला तो मैं जीवित नहीं रह पाऊँगा।
छः महीने तक परमेश्वर जिन्दा नहीं आए। धर्मदास रो-रो अकुलाए, खाना नाममात्र रह गया। दिन में कई-कई बार घण्टों रोना। शरीर सूखकर काँटा हो गया। एक दिन धर्मदास जी से आमिनी देवी ने पूछा कि हे स्वामी! आपकी यह हालत मुझ से देखी नहीं जा रही है। आप विश्वास रखो, जब छः बार आए हैं तो अबकी बार भी आएँगे। धर्मदास ने कहा कि इतना समय पहले कभी नहीं लगाया। लगता है मुझ पापी से बहुत नाराज हो गए हैं, बात भी नाराजगी की है। मैं महामूर्ख हूँ आमिनी देवी! अब मुझे उनकी कीमत का पता चला है। भोले-भाले नजर आते हैं, वे परमात्मा के विशेष कृपा पात्रा हैं। इतना ज्ञान देखा न सुना।
आमिनी ने पूछा कि उन्होंने बताया हो कि वे कैसे-कैसे मिलते हैं, कहाँ-कहाँ जाते हैं? धर्मदास जी ने कहा कि वे कह रहे थे कि मैं वहाँ अवश्य जाता हूँ जहाँ पर धर्म-भण्डारे होते हैं। वहाँ
लोगों को ज्ञान समझाता हूँ। आमिनी देवी ने कहा कि आप भण्डारा कर दो। हो सकता है कि जिन्दा बाबा आ जाए। धर्मदास जी बोले कि मैं तो तीन दिन का भण्डारा करुँगा।
आमिनी देवी पहले तो कंजूसी करती थी। धर्मदास तीन दिन का भण्डारा कहता था तो वह एक दिन पर अड़ जाती थी। परन्तु उस दिन आमिनी ने तुरन्त हाँ कर दी कि कोई बात
नहीं आप तीन दिन का भण्डारा करो। धर्मदास जी ने दूर-दूर तक तीन दिन के भण्डारे का संदेश भिजवा दिया। साधुओं का निमन्त्रण भिजवा दिया। निश्चित दिन को भण्डारा प्रारम्भ
हो गया। दो दिन बीत गए। साधु-महात्मा आए, ज्ञान चर्चा होती रही। परन्तु जो ज्ञान जिन्दा
बाबा ने बताया था। उसका उत्तर किसी के पास नहीं पाया। धर्मदास जी जान-बूझकर साधुओं से प्रश्न करते थे कि क्या ब्रह्मा, विष्णु, शिव का भी जन्म होता है। उत्तर वही घिसा-पिटा मिलता कि इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। इससे धर्मदास को स्पष्ट हो जाता कि वह जिन्दा महात्मा नहीं आया है। वेश बदलकर आता तो भी ज्ञान तो सही बताता। तीसरे दिन भी दो पहर तक में जिन्दा बाबा नहीं आए। धर्मदास जी ने दृढ़ निश्चय करके कहा कि यदि आज जिन्दा बाबा नहीं आए तो मैं आत्महत्या करुँगा, ऐसे जीवन से मरना भला। परमात्मा तो अन्तर्यामी हैं। जान गए कि आज भक्त पक्का मरेगा। उसी समय कुछ दूरी पर
कदंब का पेड़ था। उसके नीचे उसी जिन्दा वाली वेशभूषा में बैठे धर्मदास को दिखाई दिए। धर्मदास दौड़कर गया, ध्यानपूर्वक देखा, जिन्दा महात्मा के गले से लग गया। अपनी गलती
की क्षमा माँगी। कभी ऐसी गलती न करने का बार-बार वचन किया। तब परमात्मा धर्मदास के घर में गए। आमिनी तथा धर्मदास दोनों ने बहुत सेवा की, दोनों ने दीक्षा ली। परमात्मा
ने जिन्दा रुप में उनको प्रथम मन्त्र की दीक्षा दी। कुछ दिन परमेश्वर उनके बाग में रहे। फिर एक दिन धर्मदास ने ऐसी ही गलती कर दी, परमात्मा अचानक गायब हो गए। धर्मदास
जी ने अपनी गलती को घना (बहुत) महसूस किया। खाना-पीना त्याग दिया, प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक दर्शन नहीं दोगे, पीना-खाना बन्द। धर्मदास शरीर से बहुत दुर्बल हो गए।
उठा-बैठा भी नहीं जाता था। छठे दिन परमात्मा आए। धर्मदास को अपने हाथों उठाकर गले से लगाया। अपने हाथों खाना खिलाया। धर्मदास ने पहले चरण धोकर चरणामृत लिया।
फिर ज्ञान चर्चा शुरु हुई। धर्मदास जी ने पूछा कि आप जी को इतना ज्ञान कैसे हुआ?
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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purplefoxyouth · 10 months ago
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दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
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ramkaranjangra · 10 months ago
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तहां वहां संख सुरंग है, मघ औघट घाटा।
सतगुरु मिलैं कबीर से, तब खुलै कपाटा।।
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jyotis-things · 11 months ago
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( #Muktibodh_part152 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part153
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 294-295
संख सुरगपर हम बसैं, सुनि स्वामी यह सैंन।
गरीबदास हम सतपुरूष हैं, यौह गुल फोकट फैंन।।516।।
जो तैं कहया सौ मैं लह्या बिन देखैं नहीं धीज।
गरीबदास स्वामी कहै, कहाँ अलफ वह बीज।।517।।
अनंत कोटि ब्रह्मांड फणा, अनंत कोटि उदगार।
गरीबदास स्वामी कहै, कहां अलफ दीदार।।518।।
हद बेहद कहीं ना कहीं, ना कहीं थरपी ठौर।
गरीबदास निज ब्रह्मकी, कौंन धाम वह पौर।।519।।
चल स्वामी सर पर चलैं, गंग तीर सुन ज्ञान।
गरीबदास बैकुंठ बट, कोटि कोटि घट ध्यान।।520।।
तहां कोटि वैकुंठ हैं, नक सरबर संगीत।
गरीबदास स्वामी सुनों, जात अनन्त जुग बीत।521।।
प्राण पिंड पुरमें धसौ, गये रामानंद कोटि।
गरीबदास सर सुरग में, रहौ शब्दकी ओट।।522।।
तहां वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार।
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।523।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।
गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ़ बिश्बास।।524।।
सुन्न-बेसुन्न सें तुम परै, उरैं स हमरै तीर। गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर।।525।।
कोटि कोटि सिजदे करैं, कोटि कोटि प्रणाम।
गरीबदास अनहद अधर, हम परसैं तुम धाम।।526।।
सुनि स्वामी एक ��ल गुझ, तिल तारी पल जोरि।
गरीबदास सर गगन में, सूरज अनंत करोरि।।527।।
सहर अमान अनन्तपुर, रिमझिम रिमझिम होय।
गरीबदास उस नगर का, मरम न जानैं कोय।।528।।
सुनि स्वामी कैसैं लखौ, कहि समझाऊं तोहि।
गरीबदास बिन पर उड़ैं, तन मन शीश न होय।।529।।
रवनपुरी एक चक्र है, तहाँ धनंजय बाय।
गरीबदास जीते जन्म, याकूँ लेत समाय।।530।।
आसन पदम लगायकरि, भिरंग नादकौं खैंचि।
गरीबदास अचवन करै, देवदत्त को ऐंचि।।531।।
काली ऊन कुलीन रंग, जाकै दो फुन धार।
गरीबदास कुरंभ शिर, तास करे उद्गार।।532।।
चिस्में लाल गुलाल रंग, तीनि गिरह नभ पेच।
गरीबदास वह नागनी, हौंन न देवैं रेच।।533।।
कुंभक रेचक सब करैं, ऊन करत उदगार।
गरीबदास उस नागनी कूँ, जीतै कोई खिलार।।534।।
कुंभ भरै रेचक करै, फिर टूटत हैं पौंन। गरीबदास मण्डल गगन, नहीं होत है रौंन।। 535।।
आगे घाटी बंद है, इंगला-पिंगला दोय। गरीबदास सुषमन खुले, तास मिलावा होय।।536।।
चंदा कै घर सूर रखि, सूरज कै घर चंद। गरीबदास मधि महल है, तहाँ वहाँ अजब आनन्द।।537।।
त्रिवेणी का घाट है, गंग जमन गुपतार। गरीबदास परबी परखि, तहाँ सहंस मुख धार।।538।।
मध्य किवारी ब्रह्मदर, वाह खोलत नहीं कोय।
गरीबदास ��ब जोग की, पैज पीछौड़ी होय।।539।।
आसन संपट सुधि करि, गुफा गिरद गति ढोल।
गरीबदास पल पालड़ै, हीरे मानिक तोल।।540।।
पान अपान समान सुध, मंदा चल महकंत।
गरीबदास ठाढी बगै, तो दीपक बाति बुंझत।।541।।
ज्यूंका त्यूंही बैठि रहो, तजि आसन सब जोग।
गरीबदास पल बीच पद, सर्व सैल सब भोग।।542।।
घंटा टुटै ताल भंग, संख न सुनिए टेर। गरीबदास मुरली मुक्ति, सुनि चढ़ी हंस सुमेर।।543।।
खुल्है खिरकी सहज धुनि, दम नहीं खैंचि अतीत।
गरीबदास एक सैंन है, तजि अनभय छंद गीत।।544।।
धीरैं धीरैं दाटी हैं, सुरग चढैंगे सोय। गरीबदास पग पंथ बिन, ले राखौं जहां तोय।।545।।
सुन स्वामी सीढी बिना, चढौं गगन कैलास।
गरीबदास प्राणायाम तजि, नाहक तोरत श्वास।।546।।
गली गली गलतान है, सहर सलेमाबाद।
गरीबदास पल बीचमैं, पूरण करौं मुराद।।547।।
पनग पलक नीचै करौ, ता मुख सहंस शरीर।
गरीबदास सूक्ष्म अधरि, सूरति लाय सर तीर।।548।।
सुनि स्वामी यह गति अगम, मनुष्य देवसैं दूर।
गरीबदास ब्रह्मा विष्णु थके, किन्हैं न पाया मूर।।549।।
मूल डार जाकै नहीं, है सो अनिन अरंग।
गरीबदास मजीठ चलि, ये सब लोक पतंग।।550।।
सुतह सिधि परकाशिया, कहा अरघ असनान।
गरीबदास तप कोटि जुग, पचि हारे सुर ज्ञान।।551।।
कोटि कोटि बैकुंठ हैं, कोटि कोटि शिब शेष।
गरीबदास उस धाम में, ब्रह्मा कोटि नरेश।।552।।
अवादान अमानपुर, चलि स्वामी तहां चाल।
गरीबदास परलो अनंत, बौहरि न झंपै काल।।553।।
अमर चीर तहां पहरि है, अमर हंस सुख धाम।
गरीबदास भोजन अजर, चल स्वामी निजधाम।।554।।
सतलोक को देखकर, जाना परम प्रभु का भेव।
गरीबदास यह धाणका है, सब देवन का देव।।555।।
बोलत रामानंदजी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तुमहीं बोलन हार।।556।।
तुम साहिब तुम संत हौ, तुम सतगुरू तुम हंस।
गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।557।।
मैं भगता मुक्ता भया, किया कर्म कुन्द नाश।
गरीबदास अबिगत मिले, मेटी मन की बास।।558।।
दोहूं ठौर है एक तूं, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं, उतरे हो मघ जोय।।559।।
बोलै रामानंद जी, सुनौं कबीर सुभांन। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिंड अरु प्राण।।560।।
मैं नगदी बानी कहूं, जिनसी राखी झांपि।
गरीबदास इस महलमें, नाभ नासिका मापि।।561।।
नाकी परि झांखी लगी, झांखी बीच द्वार।
गरीबदास उस महल चढि, उतरे पेलैं पार।।562।।
गोष्टी रामानंद सैं, काशी नगर मंझार। गरीबदास जिंद पीरके, हम पाये दीदार।।563।।
सुन ��्वामी तोसौं कहूं, पूरब जन्मकी बात।
गरीबदास बीतै तुझै, चेला आत्म घात।।564।।
मुसलमान के दीनमें, कुल पठान आवंत।
गरीबदास तो परि सजै, तनहि तेग धावंत।।565।।
नबै बरस निदानि है, सिख सैदक शर घालि।
गरीबदास या साच है, लगै पदममें भालि।।566।।
भालि लगै मिसरी बगै, सुन स्वामी यह साच।
गरीबदास पद में मिलैं, मेटै तन का नांच।।567।।
◆ सरलार्थ :- कबीर परमात्मा ने बताया है कि हे स्वामी जी! आपको (मूल गति) मुख्य स्थिति बताता हूँ। इस श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण ने सब जीवों को (समोहि) सम्मोहित कर रखा है।
तीन लोक के सब जीवों को विषय-वासनाओं में भटका रखा है। जो मेरे को (कबीर जी को) जपेगा, उसे सतलोक धाम दिखाऊँगा। जो मेरे सतलोक धाम को देखेगा, वही मुझे परमात्मा मानेगा। मैं आप से यह (गुझ) गुप्त गहरी यानि निज बात बता रहा हूँ। श्री कृष्ण उर्फ विष्णु भगवान ने जीवों को (जहड़ाया) मोह फांस में फंसा रखा है। तीन लोक (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में कर्मों के भोग भोगने पड़ते हैं। काल ब्रह्म द्वारा कर्म लगाए गए हैं। काल कर्म यानि काल के कर्मों का जीव के सिर पर (शीव) दंड है। हे स्वामी रामानंद जी, सुनो! आपको (अगम
दीप) सतलोक को जाने का मार्ग बताता हूँ। जो शास्त्रार्थ करने के उद्देश्य से बैलों के ऊपर शास्त्र लादकर लिए फिरते हैं, उनको शास्त्रों का ही ठीक से ज्ञान नहीं है। वे भी (पूठे परें) वापिस जन्म-मरण के चक्र में गिरते हैं। धरती, आकाश, चांद, सूर्य, तारे, तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक) चलेंगे यानि नष्ट होंगे। आप स्वर्ग जाना चाहते हो। आपके (रज-बिरज) माता-पिता से बने शरीर की (धूर) धूल (यानि जलकर राख बन जाएगी) कहाँ बचेगी? ये चार मुक्ति जो स्वर्ग में प्राप्त होती हैं, वह स्वर्ग ही कई बार (फना) नष्ट हो चुका है।
सतलोक को यह संसार नहीं जानता। हे स्वामी जी! जब चौदह लोक नष्ट होंगे, तब आप कहाँ रहोगे? शरीर भी नष्ट होगा। कहाँ आपका मोहन मुरारी रहेगा?
हे स्वामी जी! सुनो, एक काल ब्रह्म की शक्ति है जो उसकी (अरधंगी) पत्नी प्रकृति देवी है। वह अनेकों लोकों को नष्ट कर देती है।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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vinod1992 · 1 year ago
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#SantRampalJiEternalKnowledge
#MondayMotivation
सुरापान मघ मांसाहारी, गमन करे भोगे पर नारी। सत्तर जनम कटत है शीशं, साक्षी साहेब हैं जगदीशं।।
अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पवित्र पुस्तक "ज्ञान गंगा"
Sant Rampal Ji Maharaj ji 🌏
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onkarsahu17 · 6 months ago
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दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
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taapsee · 7 months ago
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#Witnesses_of_GodKabir
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
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anusuyas-blog · 1 year ago
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#सत्_भक्ति_संदेश
सुरापान मघ मांसाहारी गमन करै भोगै पर नारी।सत्तर जन्म कटत है शीशों , साक्षी साहेब है जगदीशं ।। अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
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todaypostlive · 1 year ago
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Motihari: पुलिस ने कंटनेर से पकड़ी 1.5 करोड़ की शराब की बड़ी खेप , दो गिरफ्तार
-14 चक्का ट्रक पर लदी  1184 कार्टून विदेशी शराब जालंधर से ले जा रहे थे मुजफ्फरपुर Motihari:  शहर के छतौनी थाना क्षेत्र में सोमवार को पुलिस को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है।पुलिस ने जालंधर(पंजाब ) से मुजफ्फरपुर ले जाये जा रही एक 14 चक्का कंटेनर पर लदी  करीब 1.5  करोड़ की विदेशी शराब जब्त किया है। जब्त शराब 1184 कार्टून रखकर लाया जा रहा था।एएसपी राज से मिली जानकारी के अनुसार बिहार मघ निषेध इकाई ने…
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navnath6868 · 1 year ago
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#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
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virenderyadav · 2 years ago
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#मगहर_लीला
महल भेद महरमी कूं दीजै,यौह जग जान ठगा ठग है।जिंदे का कोई भेद न पावै, काशी छोड़ गया मघ है।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 505 वां
कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस
देखिए Live कार्यक्रम
01 फरवरी 2023 को साधना व पांपकार्न चैनल पर सुबह 9:00 बजे से।
God Kabir Nirvana diwas
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