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#GodMorningMonday शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराबनाम : शशि प्रभा#चंडीगढ़लाभ : मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराबपीते थे। घर में शराब की वजह
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स्वरयोगिनी हरपल्या, ज्येष्ठ शास्त्रीय गायिका डॉ. प्रभा अत्रे यांचे पुण्यात निधन
पुणे : ज्येष्ठ शास्त्रीय गायिका स्वरयोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे यांचे निधन झाले. वयाच्या ९२ व्या वर्षी त्यांनी पुण्यात अखेरचा श्वास घेतला. प्रभा अत्रे यांना आज पहाटे झोपेतच ह्रदयविकाराचा झटका आला. त्यांना दीनानाथ मंगेशकर रुग्णालयात नेण्यात आले. मात्र, त्याआधीच त्यांचे निधन झाले होते. अत्रे यांच्या पार्थिवावर सोमवारी अंत्यसंस्कार केले जातील. दोनच वर्षांपूर्वी कला क्षेत्रातील अतुलनीय योगदानासाठी डॉ.…

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Dhanbad : देव प्रभा आउटसोर्सिंग में हादसा, दो की मौत
Dhanbad : जिले के लोदना ओपी क्षेत्र के कुजामा अंतर्गत संचालित एटी देव प्रभा आउटसोर्सिंग परियोजना में ओबी डंपिंग करने के दौरान मंगलवार को पिकअप वैन सवार दो कर्मचारी भारी वाहन हॉलपेक की चपेट में आ गए, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। मृतकों में कंपनी के पिकअप वाहन चालक लोदना श्रमिक कल्याण निवासी जय चौहान और इंचार्ज भूली निवासी राजा कुमार हैं। बताया जाता है कि कंपनी के हॉलपेक ने कंपनी की ही गाड़ी…

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13.12.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा एल्डिको हाउसिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से राजकीय हाई स्कूल, धनुवासांड, मोहनलालगंज में निर्मित शौचालय का लोकार्पण हुआ | इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा राजकीय हाई स्कूल में 200 छात्र-छात्राओं को पुस्तक 'गीता गर्ल मरियम' का वितरण किया गया साथ ही, सभी छात्र-छात्राओं के लिए जलपान की व्यवस्था की गई ।
पुस्तक वितरण में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया । इस अवसर पर राजकीय हाई स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती प्रति��ा शुक्ला एवं शिक्षिकाओं श्रीमती अग्रति प्रभा, श्रीमती साधना सिंह, श्रीमती ऐश्वर्या यादव, श्रीमती रश्मी वर्मा की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
सादर अवगत कराना है कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2012 में जनहित और जनकल्याण हेतु लखनऊ, उत्तर प्रदेश में की गई । अपने स्थापना वर्ष से अब तक 12 वर्षों में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने उत्तर प्रदेश में जनकल्याणकारी संस्था के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की है । ट्रस्ट अपने आदरणीय संरक्षकों पद्म भूषण स्वर्गीय गोपाल दास नीरज, पद्म श्री स्वर्गीय अनवर जलालपुरी तथा पद्म श्री अनूप जलोटा के मार्गदर्शन में, स्वसाधनों से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उन्नयन की दिशा में गतिशील है । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के संकल्प “सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास और सबका प्रयास” को ध्येय मानते हुए, ट्रस्ट गरीबों और असहायों की मदद हेतु वस्त्र वितरण अभियान, रक्तदान, बाल गोपाल शिक्षा योजना, जनहित के जागरूकता अभियान, सम्मान समारोह और अन्य लाभकारी योजनाओं का निरंतर क्रियान्वयन कर रहा है । विश्वव्यापी कोरोना महामारी (COVID-19) के संकट के दौरान, ट्रस्ट ने अपने संसाधनों और हेल्प यू कोरोना वारियर्स की मदद से निराश्रित और जरूरतमंद लोगों के लिए निरंतर भोजन, मास्क, सैनिटाइजर तथा अन्य बचाव सामग्री का वितरण किया ।
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा साहित्य और साहित्यकारों के प्रोत्साहन के लिए, अध्यात्म और संस्कृति के संवर्धन एवं उत्थान के दृष्टिगत जनहित में पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया है ।
ट्रस्ट लखनऊ, उत्तर प्रदेश में वृद्धा आश्रम, अनाथालय, भगवत गीता सेंटर, हेल्प यू एकेडमी ऑफ स्पिरिचुअल म्यूजिक तथा अन्य जनहित की परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रयत्नशील है । साथ ही, देश के सभी राज्यों की राजधानियों तथा अन्य देशों में ट्रस्ट के कार्यालय स्थापित कर जनहित के कार्यों को और विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है ।
हम जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों की मदद कर रहे हैं । ट्रस्ट की समस्त गतिविधियों और जनकल्याण के कार्यक्रमों का सम्पूर्ण विवरण ट्रस्ट की वेबसाइट www.helputrust.org तथा सोशल मीडिया प्ले��फॉर्म्स जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, Tumblr, Instagram और YouTube पर आपके अवलोकनार्थ उपलब्ध है ।
आप हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ सकते हैं और ट्रस्ट को अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान कर सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप ट्रस्ट को केवल आर्थिक सहयोग (Donation, Sponsorship, CSR आदि) ही दें, बल्कि आप अपने ���ेवा क्षेत्र के माध्यम से हमारे सलाहकार, आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य, सद्भावना राजदूत, या संयुक्त तत्वावधान में आयोजन करके भी जनहित में अपना योगदान दे सकते हैं ।
आपसे सादर अनुरोध है कि कृपया ट्रस्ट द्वारा विगत 12 वर्षों से निरंतर किए जा रहे जनहित में समाज उत्थान और समाज कल्याण के कार्यों के दृष्टिगत, लाभार्थियों के हित में तथा ट्रस्ट को प्रभावशाली कार्य करने हेतु अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान करना चाहें |
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नूतन काव्य प्रभा by प्रभा मिश्रा 'नूतन'
किताब के बारे में... नूतन काव्य प्रभा नामक यह काव्य संग्रह प्रसिद्ध कवयित्री प्रभा मिश्रा 'नूतन' द्वारा रचित है, जो समाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को केंद्र में रखकर कविताओं की रचना करती हैं। इस संग्रह में कवयित्री ने सामाजिक विषमताओं, संघर्षों, और मानवीय संवेदनाओं को सहज और प्रभावी भाषा में व्यक्त किया है।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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ll रुद्राष्टकम ll
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गं��ा लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावद् उमानाथ पादारविंदं भजंतीह लोके परे वा नराणां
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं जरा जन्म दुःखोद्य तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति
ॐ नमः शिवाय🔱☘️🙏
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श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप 2.17 https://srimadbhagavadgita.in/2/17 अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ २.१७ ॥ TRANSLATION जो सारे शरीर में व्याप्त है उसे ही अविनाशी समझो । उस अव्यय आत्मा को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है । PURPORT इस श्लोक में सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त आत्मा की प्रकृति का अधिक स्पष्ट वर्णन हुआ है । सभी लोग समझते हैं कि जो सारे शरीर में व्याप्त है वह चेतना है । प्रत्येक व्यक्ति को शरीर में किसी अंश या पुरे भाग में सुख-दुख का अनुभव होता है । किन्तु चेतना की यह व्याप्ति किसी के शरीर तक ही सीमित रहती है । एक शरीर के सुख तथा दुख का बोध दुसरे शरीर को नहीं हो पाता । फलतः प्रत्येक शरीर में व्यष्टि आत्मा है और इस आत्मा की उपस्थिति का लक्षण व्यष्टि चेतना द्वारा परिलक्षित होता है । इस आत्मा को बाल के अग्रभाग के दस हजारवें भाग के तुल्य बताया जाता है । श्र्वे��ाश्र्वतर उपनिषद् में (५.९) इसकी पुष्टि हुई है – बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च । भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते ॥ “यदि बाल के अग्रभाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय और फिर इनमें से प्रत्येक भाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय तो इस तरह के प्रत्येक भाग की माप आत्मा का परिमाप है ।” इसी प्रकार यही कथन निम्नलिखित श्लोक में मिलता है – केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः । जीवः सूक्ष्मस्वरूपोSयं संख्यातीतो हि चित्कणः ॥ “आत्मा के परमाणुओं के अनन्त कण हैं जो माप में बाल के अगले भाग (नोक) के दस हजारवें भाग के बराबर हैं ।” इस प्रकार आत्मा का प्रत्येक कण भौतिक परमाणुओं से भी छोटा है और ऐसे असंख्य कण हैं । यह अत्यन्त लघु आत्म-संफुलिंग भौतिक शरीर का मूल आधार है और इस आत्म-संफुलिंग का प्रभाव सारे शरीर में उसी तरह व्याप्त है जिस प्रकार किसी औषधि का प्रभाव व्याप्त रहता है । आत्मा की यह धरा (विद्युतधारा) सारे शरीर में चेतना के रूप में अनुभव की जाती हैं और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है । सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह भौतिक संयोग के फलस्वरूप नहीं है, अपितु आत्मा के कारण है । मुण्डक उपनिषद् में (३.१.९) सूक्ष्म (परमाणविक) आत्मा की और अधिक विवेचना हुई है – एषोSणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो यस्मिन्प्राणः पञ्चधा संविवेश । प्राणैश्र्चितं सर्वमोतं प्रजानां यस्मिन् विशुद्धे विभवत्येष आत्मा ॥ “आत्मा आकार में अणु तुल्य है जिसे पूर्ण बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है । यह अणु-आत्मा पाँच प्रकार के प्राणों में तैर रहा है (प्राण, अपान, व्यान, समान और उड़ान); यह हृदय के भीतर स्थित है और देहधारी जीव के पुरे शरीर में अपने प्रभाव का विस्तार करता है । जब आत्मा को पाँच वायुओं के कल्मष से शुद्ध कर लिया जाता है तो इसका आध्यात्मिक प्रभाव प्रकट होता है ।” हठ-योग का प्रयोजन विविध आसनों द्वारा उन पाँच प्रकार के प्राणों को नियन्त्रित करना है जो आत्मा की घेरे हुए हैं । यह योग किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं, अपितु भौतिक आकाश के बन्धन से अणु-आत्मा की मुक्ति के लिए किया जाता है । इस प्रकार अणु-आत्मा को सारे वैदिक साहित्य ने स्वीकारा है और प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति अपने व्यावहारिक अनुभव से इसका प्रत्यक्ष अनुभव करता है । केवल मुर्ख व्यक्ति ही इस अणु-आत्मा को सर्वव्यापी विष्णु-तत्त्व के रूप में सोच सकता है । अणु-आत्मा का प्रभाव पुरे शरीर में व्याप्त हो सकता है । ���ुण्डक उपनिषद् के अनुसार यह अणु-आत्मा प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है और चूँकि भौतिक विज्ञानी इस अणु-आत्मा को माप सकने में असमर्थ हैं, उसे उनमें से कुछ यह अनुभव करते हैं कि आत्मा है ही नहीं । व्यष्टि आत्मा तो निस्सन्देह परमात्मा के साथ-साथ हृदय में हैं और इसीलिए शारीरिक गतियों की साड़ी शक्ति शरीर के इसी भाग से उद्भूत है । जो लाल रक्तगण फेफड़ों से आक्सीजन ले जाते हैं वे आत्मा से ही शक्ति प्राप्त करते हैं । अतः जब आत्मा इस स्थान से निकल जाता है तो रक्तोपादक संलयन (फ्यूज़न) बंद हो जाता है । औषधि विज्ञान लाल रक्तकणों की महत्ता को स्वीकार करता है, किन्तु वह यह निश्चित नहीं कर पाता कि शक्ति का स्त्रोत आत्मा है । जो भी हो, औषधि विज्ञान यह स्वीकार करता है कि शरीर की सारी शक्ति का उद्गमस्थल हृदय है । पूर्ण आत्मा के ऐसे अनुकणों की तुलना सूर्य-प्रकाश के क���ों से की जाती है । इस सूर्य-प्रकाश में असंख्य तेजोमय अणु होते हैं । इसी प्रकार परमेश्र्वर के अंश उनकी किरणों के परमाणु स्फुलिंग है और प्रभा या परा शक्ति कहलाते हैं । अतः चाहे कोई वैदिक ज्ञान का अनुगामी हो या आधुनिक विज्ञान का, वह शरीर में आत्मा के अस्तित्व को नकार नहीं सकता । भगवान् ने स्वयं भगवद्गीता में आत्मा के इस विज्ञान का विशद वर्णन किया है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.17 avināśi tu tad viddhi yena sarvam idaṁ tatam vināśam avyayasyāsya na kaścit kartum arhati TRANSLATION That which pervades the entire body you should know to be indestructible. No one is able to destroy that imperishable soul. PURPORT This verse more clearly explains the real nature of the soul, which is spread all over the body. Anyone can understand what is spread all over the body: it is consciousness. Everyone is conscious of the pains and pleasures of the body in part or as a whole. This spreading of consciousness is limited within one’s own body. The pains and pleasures of one body are unknown to another. Therefore, each and every body is the embodiment of an individual soul, and the symptom of the soul’s presence is perceived as individual consciousness. This soul is described as one ten-thousandth part of the upper portion of the hair point in size. The Śvetāśvatara Upaniṣad (5.9) confirms this: bālāgra-śata-bhāgasya śatadhā kalpitasya ca bhāgo jīvaḥ sa vijñeyaḥ sa cānantyāya kalpate “When the upper point of a hair is divided into one hundred parts and again each of such parts is further divided into one hundred parts, each such part is the measurement of the dimension of the spirit soul.” Similarly the same version is stated: keśāgra-śata-bhāgasya śatāṁśaḥ sādṛśātmakaḥ jīvaḥ sūkṣma-svarūpo ’yaṁ saṅkhyātīto hi cit-kaṇaḥ “There are innumerable particles of spiritual atoms, which are measured as one ten-thousandth of the upper portion of the hair.” Therefore, the individual particle of spirit soul is a spiritual atom smaller than the material atoms, and such atoms are innumerable. This very small spiritual spark is the basic principle of the material body, and the influence of such a spiritual spark is spread all over the body as the influence of the active principle of some medicine spreads throughout the body. This current of the spirit soul is felt all over the body as consciousness, and that is the proof of the presence of the soul. Any layman can understand that the material body minus consciousness is a dead body, and this consciousness cannot be revived in the body by any means of material administration. Therefore, consciousness is not due to any amount of material combination, but to the spirit soul. In the Muṇḍaka Upaniṣad (3.1.9) the measurement of the atomic spirit soul is further explained: eṣo ’ṇur ātmā cetasā veditavyo yasmin prāṇaḥ pañcadhā saṁviveśa prāṇaiś cittaṁ sarvam otaṁ prajānāṁ yasmin viśuddhe vibhavaty eṣa ātmā “The soul is atomic in size and can be perceived by perfect intelligence. This atomic soul is floating in the five kinds of air (prāṇa, apāna, vyāna, samāna and udāna), is situated within the heart, and spreads its influence all over the body of the embodied living entities. When the soul is purified from the contamination of the five kinds of material air, its spiritual influence is exhibited.” The haṭha-yoga system is meant for controlling the five kinds of air encircling the pure soul by different kinds of sitting postures – not for any material profit, but for liberation of the minute soul from the entanglement of the material atmosphere. So the constitution of the atomic soul is admitted in all Vedic literatures, and it is also actually felt in the practical experience of any sane man. Only the insane man can think of this atomic soul as all-pervading viṣṇu-tattva. The influence of the atomic soul can be spread all over a particular body. According to the Muṇḍaka Upaniṣad, this atomic soul is situated in the heart of every living entity, and because the measurement of the atomic soul is beyond the power of appreciation of the material scientists, some of them assert foolishly that there is no soul. The individual atomic soul is definitely there in the heart along with the Supersoul, and thus all the energies of bodily movement are emanating from this part of the body. The corpuscles which carry the oxygen from the lungs gather energy from the soul. When the soul passes away from this position, the activity of the blood, generating fusion, ceases. Medical science accepts the importance of the red corpuscles, but it cannot ascertain that the source of the energy is the soul. Medical science, however, does admit that the heart is the seat of all energies of the body. Such atomic particles of the spirit whole are compared to the sunshine molecules. In the sunshine there are innumerable radiant molecules. Similarly, the fragmental parts of the Supreme Lord are atomic sparks of the rays of the Supreme Lord, called by the name prabhā, or superior energy. So whether one follows Vedic knowledge or modern science, one cannot deny the existence of the spirit soul in the body, and the science of the soul is explicitly described in the Bhagavad-gītā by the Personality of Godhead Himself. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
नाम शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ: मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था।
जब से संत रामपाल जी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
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नाम शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ: मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था।
जब से संत रामपाल जी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
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जब से संत रामपाल जी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
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15.09.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से "दिल की कलम से- सीजन 2" कार्यक्रम का भव्य आयोजन जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के ऑडिटोरियम में किया गया | इस कार्यक्रम में कवि चंद्रशेखर वर्मा ने पद्मश्री कैफ़ी आज़मी जी, साहिर लुधियानवी जी,पद्म भूषण गोपालदास नीरज जी, पद्म भूषण गुलजार जी, श्री आनंद बक्शी जी, मख��ूम मोहिउद्दीन जी, श्री सुदर्शन फकीर जी, श्री संतोष आनंद जी, अहमद फ़राज़ जी और हसरत जयपुरी जी जैसे प्रसिद्ध महान कवियों एवं गीतकारों के गीतों को नए शब्दों और धुनों से संवारा जिन्हें गायिका डॉ. प्रभा श्रीवास्तव ने अपनी सुरीली आवाज में प्रस्तुत किया |
कार्यक्रम की शुरुआत लोकप्रिय गीत "फूलों के रंग से" से हुई, जिसके बाद "छिड़ी रात बात फूलों की", "बड़े अच्छे लगते हैं", "एक प्यार का नग़मा है", “आपकी आँखों मे कुछ महके हुए से ख्वाब हैं”, “जिंदगी के सफर में”, “प्यार का पहला खत” और “एक अकेला इस शहर में” जैसी कालजयी रचनाओं की प्रस्तुति हुई । इस संगीतमयी शाम में गायिका डॉ. प्रभा श्रीवास्तव का साथ श्री रिंकू राज (सिंथेसाइज़र), श्री राकेश आर्य (तबला) और श्री नितीश भारती (गिटार) ने दिया |
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों डॉ शिखा श्रीवास्तव, डॉ प्राची श्रीवास्तव, जानिसार जी, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, सेक्टर-25, इंदिरानगर से डॉ प्रमोद श्रीवास्तव, श्रीमती प्रभा श्रीवास्तव तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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कचोटती तनहाइयाँ by प्रभा मिश्रा 'नूतन'
किताब के बारे में... कचोटती तनहाइयाँ प्रभा मिश्रा 'नूतन' द्वारा लिखी गई एक कहानी है, जो वृद्धावस्था में अपने अकेलेपन और कचोटती यादों से जूझ रहे सूर्य प्रताप भानु और दिव्या प्रताप भानु की जटिल मानसिक और भावनात्मक स्थिति को उजागर करती है।
यह कहानी उनके जीवन के उस पड़ाव को दर्शाती है जहाँ वे समाज में अपनी जगह और परिवार में अपने महत्व को लेकर चिंतित होते हैं। वृद्धावस्था में आने वाली चुनौतियों, खासकर मानसिक तनाव, सामाजिक अलगाव और परिवार से दूर होते संबंधों का यथार्थ चित्रण इस पुस्तक में किया गया है।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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आंजनेय भुजंग प्रयात स्तोत्रम्
प्रसन्नांगरागं प्रभाकांचनांगं
जगद्भीतशौर्यं तुषाराद्रिधैर्यम्
तृणीभूतहेतिं रणोद्यद्विभूतिं
भजे वायुपुत्रं पवित्राप्तमित्रम् ॥ 1 ॥
भजे पावनं भावना नित्यवासं
भजे बालभानु प्रभा चा��ुभासम्
भजे चंद्रिका कुंद मंदार हासं
भजे संततं रामभूपाल दा���म् ॥ 2 ॥
भजे लक्ष्मणप्राणरक्षातिदक्षं
भजे तोषितानेक गीर्वाणपक्षम्
भजे घोर संग्राम सीमाहताक्षं
भजे रामनामाति संप्राप्तरक्षम् ॥ 3 ॥
कृताभीलनाधक्षितक्षिप्तपादं
घनक्रांत भृंगं कटिस्थोरु जंघम्
वियद्व्याप्तकेशं भुजाश्लेषिताश्मं
जयश्री समेतं भजे रामदूतम् ॥ 4 ॥
चलद्वालघातं भ्रमच्चक्रवालं
कठोराट्टहासं प्रभिन्नाब्जजांडम्
महासिंहनादा द्विशीर्णत्रिलोकं
भजे चांजनेयं प्रभुं वज्रकायम् ॥ 5 ॥
रणे भीषणे मेघनादे सनादे
सरोषे समारोपणामित्र मुख्ये
खगानां घनानां सुराणां च मार्गे
नटंतं समंतं हनूमंतमीडे ॥ 6 ॥
घनद्रत्न जंभारि दंभोलि भारं
घनद्दंत निर्धूत कालोग्रदंतम्
पदाघात भीताब्धि भूतादिवासं
रणक्षोणिदक्षं भजे पिंगलाक्षम् ॥ 7 ॥
महाग्राहपीडां महोत्पातपीडां
महारोगपीडां महातीव्रपीडाम्
हरत्यस्तु ते पादपद्मानुरक्तो
नमस्ते कपिश्रेष्ठ रामप्रियाय ॥ 8 ॥
जराभारतो भूरि पीडां शरीरे
निराधारणारूढ गाढ प्रतापी
भवत्पादभक्तिं भवद्भक्तिरक्तिं
कुरु श्रीहनूमत्प्रभो मे दयालो ॥ 9 ॥
महायोगिनो ब्रह्मरुद्रादयो वा
न जानंति तत्त्वं निजं राघवस्य
कथं ज्ञायते मादृशे नित्यमेव
प्रसीद प्रभो वानरेंद्रो नमस्ते ॥ 10 ॥
नमस्ते महासत्त्ववाहाय तुभ्यं
नमस्ते महावज्रदेहाय तुभ्यम्
नमस्ते परीभूत सूर्याय तुभ्यं
नमस्ते कृतामर्त्य कार्याय तुभ्यम् ॥ 11 ॥
नमस्ते सदा ब्रह्मचर्याय तुभ्यं
नमस्ते सदा वायुपुत्राय तुभ्यम्
नमस्ते सदा पिंगलाक्षाय तुभ्यं
नमस्ते सदा रामभक्ताय तुभ्यम् ॥ 12 ॥
हनूमद्भुजंगप्रयातं प्रभाते
प्रदोषेऽपि वा चार्धरात्रेऽपि मर्त्यः
पठन्नश्नतोऽपि प्रमुक्तोघजालो
सदा सर्वदा रामभक्तिं प्रयाति ॥ 13 ॥
इति श्रीमदांजनेय भुजंगप्रयात स्तोत्रम्
जय श्री राम🏹🙏जय श्री हनुमानजी🚩🙏
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#GodMorningMonday
#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
नाम : शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ : मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब
पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था। जब से सतगुरु रामपालजी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
संदेश : आप भी नशा छुड़वायें।
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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
नाम शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ: मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था।
जब से संत रामपाल जी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
नाम शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ: मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था।
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