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india china standoff : बॉर्डर पर चीन भेज रहा मार्शल आर्ट ट्रेनर, भारतीय सेना के ‘घातक’ पहले से तैयार
हाइलाइट्स
चीनी मीडिया के मुताबिक सैनिकों की ट्रेनिंग के लिए भेजे हैं ट्रेनर
15 जून से पहले भी किए थे मार्शल आर्ट में माहिर लड़ाके तैनात
भारतीय सेना में हर यूनिट में होते हैं 40-45 घातक कमांडो
‘घातक’ कमांडो होते हैं बिना हथियारों की लड़ाई में भी माहिर
नई दिल्ली ईस्टर्न लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारत-चीन सेना के तनाव (India-China tension) के बीच चीन तिब्बत में अपने सैनिकों को ट्रेंड करने के लिए मार्शल आर्ट ट्रेनर ( Martial arts trainer) भेज रहा है। 15 जून से पहले भी चीन ने मार्शल आर्ट लड़ाकों को तिब्बत भेजा था। चीन इसके जरिए भले ही माइंड गेम खेलने की कोशिश कर रहा हो लेकिन भारतीय सेना में ‘घातक’ कमांडो पहले से तैनात हैं। भारतीय सेना के घातक कमांडो बिना हथियारों की लड़ाई में माहिर हैं और दुश्मन को आमने सामने की लड़ाई में चित कर सकते हैं। चीन ने भेजे 20 ट्रेनर चीनी मीडिया में आ रही रिपोर्ट के मुताबिक चीन अपनी फोर्स को ट्रेंड करने के लिए 20 मार्शल आर्ट ट्रेनर तिब्बत भेज रहा है। 15 जून को हुई खूनी झड़प से पहले भी चीन ने तिब्बत के स्थानीय मार्शल आर्ट क्लब से भर्ती लड़ाकों को सेना की डिविजन में तैनात किया था। भारत और चीन के बीच 1996 में हुए समझौते के मुताबिक एलएसी से दो किलोमीटर के दायरे में न फायरिंग की जाएगी न ही किसी भी तरह के खतरनाक रसायनिक हथियार, बंदूक, विस्फोट की इजाजत होगी। इसलिए यहां हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। 15 जून को हुई खूनी झड़प के दौरान भी दोनों तरफ से किसी ने भी हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया।
1- प्रति व्यक्ति आय फिर से करनी होगी बेहतर
1980 में चीन की 191 अरब डॉलर की इकनॉमी भारत की 186 अरब डॉलर की इकनॉमी से बस थोड़ी ही आगे थी। हालांकि, चीन की इकनॉमी का��ी बड़ी थी, इसलिए भारतीय 40 फीसदी अमीर थे। यहां पर प्रति व्यक्ति 267 डॉलर की आमदनी थी, जबकि चीन में 195 डॉलर प्रति व्यक्ति आमदनी थी। चीन में इकनॉमिक रिफॉर्म के बाद सब कुछ बदल गया। 2018 तक इसकी प्रति व्यक्ति आय 50 फीसदी तक बढ़कर 9771 डॉलर तक पहुंच गई। वहीं भारत में लोगों की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 2000 रुपये हुई है।बात अगर जीडीपी की करें तो चीन की जीडीपी 13.6 ट्रिलियन डॉलर हो गई है, जबकि भारत की जीडीपी सिर्फ 2.7 ट्रिलियन डॉलर तक ही पहुंची है। 1987 में चीन की 66 फीसदी आबादी गरीब थी, जो रोजाना 1.90 डॉलर कमाती थी, जबकि भारत की सिर्फ 49 फीसदी आबादी गरीब थी। अब चीन में सिर्फ 0.5 फीसदी लोग गरीब हैं, जबकि भारत में अभी भी 20 फीसदी से अधिक लोग गरीब हैं।
हम शहरीकरण में पिछड़ गए हैं। अभी 60 फीसदी से अधिक चीनी लोग शहरों में रहते हैं, जबकि भारत में सिर्फ 35 फीसदी लोग ही शहरों में रहते हैं। जब दोनों देश आजाद हुए थे, तब सिर्फ 12 फीसदी चीनी ही शहरों में रहते थे, जबकि 17 फीसदी भारतीय शहरों में रहा करते थे। उस वक्त भारत में अधिक इंडस्ट्रियल सेंटर थे।इतना ही नहीं, 80 के दशक में चीन में शिक्षा की दर भारत से अच्छी थी। वहां के दो तिहाई लोग शिक्षित थे, जबकि भारत की सिर्फ 2/5 आबादी ही शिक्षित थी। अब भारत में शिक्षा की दर 74 फीसदी पर पहुंच गई है, जबकि चीन में शिक्षा की दर 97 फीसदी हो गई है।
1974 में चीन में सिर्फ 7 लाख यात्री ही हवाई यात्रा करते थे, जबकि भारत में करीब 30 लाख लोगों की हवाई यात्रा का इंतजाम था। अभी भारत की तुलना में चीन के करीब 4 गुने लोग हवाई यात्रा करते हैं। 2018 में भारत के लिए ये आंकड़ा 16.4 करोड़ था, जबकि चीन के लिए यही आंकड़ा 61.14 करोड़ था।1980 में भार का रेल नेटवर्क 61,240 किलोमीटर का था, जबकि चीन का सिर्फ 51,700 किलोमीटर ही था। 2017-18 तक भारत का रेल नेटवर्क बढ़कर 68,442 किलोमीटर हो गया है, जबकि चीन का नेटवर्क दोगुने से भी अधिक 1.27 लाख किलोमीटर हो चुका है।
1969 में भारत में बच्चे के मरने की दर काफी अधिक थी। हर 1000 में से 145 बच्चे मर जाते थे। उस समय चीन में ये दर 84 थी। अब भारत में ये दर घटकर 30 पर आ गई है, जबकि चीन में ये दर महज 7 रह गई है। बता दें कि ये दर विकसित अर्थव्यवस्था की होती है, जैसे अमेरिका में ये दर 2018 में सिर्फ 5.6 फीसदी थी।चीन में लोगों की औसत उम्र 77.6 साल है, जबकि भारत में उम्र 69.2 साल है। मतलब कि हर चीनी व्यक्ति औसतन एक भारतीय की तुलना में करीब 7 दिन अधिक जीता है। 50 और 60 के दशक में ये अंतर और भी कम था।
आजादी के वक्त भारत में चीन से अधिक इंडस्ट्रियल सेंटर थे, लेकिन आज चीन दुनिया की फैक्ट्री बन चुका है। दोनों देशों में कारों का प्रोडक्शन एक अंदाजा लागने में मदद कर रहा है। इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ मोटर व्हीकल मैन्युफैक्चरर्स का आंकड़ा दिखाता है कि हम 1999 में लगभग बराबरी पर थे, जब भारत ��े 5.3 लाख कराकें बनाईं, जबकि चीन ने लगभग 5.7 लाख कारें बनाईं। लेकिन पिछले साल ��ारत ने सिर्फ 36.2 लाख कारें बनाईं, जबकि चीन ने 2.1 करोड़ कारें बना डालीं।
भारत के पास हैं ‘घातक’ चीन भले ही मार्शल आर्ट लड़ाकों की बात कर रहा है लेकिन भारतीय सेना में घातक कमांडो पहले से मौजूद हैं। सेना की हर यूनिट में घातक कमांडो होते हैं, जो हथियारों के साथ लड़ाई के अलावा बिना हथियारों की लड़ाई में भी माहिर होते हैं। यह इस तरह ट्रेंड होते हैं कि अपने से मजबूत शरीर वाले दुश्मन को भी धूल चटा सकते हैं।
पढ़ें, चीनी सेना से नहीं, मार्शल आर्ट में माहिर हत्यारों से भिड़े थे भारतीय जवान!
सेना के एक अधिकारी के मुताबिक इनकी 43 दिन की कमांडो स्कूल में ट्रेनिंग होती है। जिसमें करीब 35 किलो का भार लेकर बिना रूके 40 किलोमीटर तक दौड़ना भी शामिल है। यह ट्रेनिंग इन्हें शारीरिक तौर पर मजबूत करती है। इन्हें हर तरह के हथियारों की ट्रेनिंग के साथ ही गुत्थम गुत्था की लड़ाई के लिए भी ट्रेंड किया जाता है। यह मार्शल आर्ट में भी माहिर होते हैं। कमांडो स्कूल की ट्रेनिंग के बाद भी जब यह यूनिट में तैनात होते हैं तो वहां भी इनकी ट्रेनिंग होती है। हाई एल्टीट्यूट वाले इलाकों के लिए अलग तरह की ट्रेनिंग और रेगिस्तानी इलाकों के लिए अलग ट्रेनिंग होती है।
आसमान की सुरक्षा ‘आकाश’ के जिम्मे
आसमान में ऊंचाई पर उड़ता एयरक्राफ्ट हो या निचले इलाकों में मंडराता ड्रोन, भारत का ऐडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) मिसाइल किसी भी एलियन ऑब्जेक्ट को उड़ाने में सक्ष�� है। इसी का हिस्सा है Akash मिसाइल। जमीन से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल 30 किलोमीटर तक के दायरे में बैलिस्टिक मिसाइल्स को इंटरसेप्ट कर सकती है। 720 किलो वजनी आकाश मिसाइल सुपरसोनिक स्पीड से चलती है। इतना काफी न हो तो 18 किलोमीटर ऊंचाई तक मौजूद दुश्मन की मिसाइल को निशाना बनाने में सक्षम है। इसे ट्रैक या व्हील, दोनों सिस्टम से फायर किया जा सकता है।
आकाश मिसाइल सिस्टम में ऐडवांस्ड कम्प्यूटर और एक इलेक्ट्रो-मेकेनिकल ऐक्टिवेटर लगा है। यह ‘राजेंद्र’ नाम के रडार से सिग्नल लेकर निशाना साधती है। ‘राजेंद्र’ में कई ऐडवांस्ड फीचर्स हैं जैसे वह अपनी रेंज में 64 टारगेट्स को ट्रैक कर सकता है। यह एक साथ चार निशानों की तरफ 8 मिसाइलें छोड़ने में सक्षम है।
आकाश के बाद, अब बारी पृथ्वी की। पृथ्वी एयर डिफेंस यानी PAD सिस्टम 80 से 120 किलोमीटर तक की रेंज में इनकमिंग मिसाइल्स को संभाल सकता है। पृथ्वी मिसाइल पर ‘प्रद्युम्न’ असल में टूज मिसाइल है। यह सुपरसोनिक मिसाइल आसानी से 300 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर रेंज वाली बैलिस्टिक मिसाइल्स को हवा में ही ढेर कर सकती है। यह मिसाइल सिस्टम वातावरण के बाहर से आने वाली मिसाइल्स को भी उड़ा सकता है। इसमें लॉन्ग रेंज का ट्रैकिंग रडार लगा है जो इसे टारगेट लॉक करने में मदद करता है। ट्रैजेक्टरी ऑप्टिमाइजेशन फीचर की बदौलत यह डिफेंस सिस्टम हाई और लो, दोनों तरह के ऑल्टीट्यूड्स में यूज किया जा सकता है।
भारत के पास सिर्फ धरती पर ही नहीं, अंतरिक्ष में भी युद्ध लड़ने की क्षमता है। दुनिया में सिर्फ तीन और देशों- अमेरिका, रूस और चीन के पास ही ऐंटी-सैटेलाइट मिसाइल है। भारत ने पिछले साल 17 मार्च को ‘मिशन शक्ति’ सफलतापूर्वक पूरा किया था। तब हमने धरती की निचली कक्षा में मौजूद एक सैटेलाइट को ऐंटी सैटेलाइट मिसाइल से उड़ाकर पूरी दुनिया में अपनी स्पेस पावर का लोहा मनवाया था।
भारत के पास इजरायल की SPYDER मिसाइल भी है जो 5 से 50 किलोमीटर तक की रेंज में मार कर सकती है। इसके अलावा ‘अश्विन’ नाम की एक स्वदेशी मिसाइल भी है जो करीब 30 किलोमीटर तक के ऑल्टीट्यूट पर मिसाइल्स को इंटरसेप्ट कर लेती है।
भारत को रूस की ओर से जल्दी ही S-400 Triumf एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम मिलने वाला है। यह सिस्टम भारतीय एयरफोर्स की रीच को चार गुना तक बढ़ा देगा। S-400 Triumf दुनिया के सबसे ऐडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम्स में से एक है। इसमें जो रडार लगे हैं वह 1,000 किलोमीटर दूर से ही आ रहे ऑब्जेक्ट को पकड़ सकते हैं। दर्जनों ऑब्जेक्ट्स पर एकसाथ नजर रखने में सक्षम यह डिफेंस सिस्टम फाइटर एयरक्राफ्ट्स पर निशाना लगाने में जल्दी चूकता नहीं। एक S-400 सिस्टम से एक पूरे स्पेक्ट्रम को हवाई खतरे से सुरक्षित किया जा सकता है। चीन के साथ बॉर्डर पर जारी तनाव के बीच इस सिस्टम को जल्द हासिल करने की कोशिश हो रही है ताकि पूर्वी लद्दाख सेक्टर में सिर्फ एक डिफेंस सिस्टम से ही ड्रैगन की हर हरकत पर नजर रखी जाए।
रूस के S-300V जैसी चीन की HQ-9 भी टू-स्टेज मिसाइल है। जमीन से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल सिस्टम करीब दो टन वजनी और 7 मीटर लंबी है। HQ-9 चीन का मेन एयर डिफेंस सिस्टम है। इसके वारहेड की अधिकतम रेंज 200 किलोमीटर और स्पीड 4.2 मैच है। इस मिसाइल में खामी यह है कि इसका थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल एक साइड से नजर आता है। यह मिसाइल पहले बहुत बड़ी थी, रूस की मदद से अब इसे इतना छोटा बना लिया गया है कि ट्रांसपोर्ट लॉन्चर से छोड़ा जा सके। फिर भी इसकी बैलिस्टिक क्षमता पर एक्सपर्ट्स को शक है।
भारत और चीन के म्युचुअल फ्रेंड यानी रूस ने दोनों देशों को हथियार बेचे हैं। रशियन S-300 एयर डिफेंस सिस्टम को चीन ने खरीदा और फिर ��से अपने यहां और डेवलप किया। S-300V का चीनी वर्जन HQ-18 के नाम से जाना जाता है। इन मिसाइल सिस्टम की रेंज 100 किलोमीटर तक है। कुछ मिसाइलें 150 किलोमीटर तक भी मार कर सकती है। इसका रडार एक साथ 200 टारगेट्स को डिटेक्ट कर सकता है।
दुनिया के सबसे ऐडवांस्ड मिसाइल सिस्टम्स में से एक, S-400 Triumf की एक खेप चीन के पास पहले से मौजूद है। इस साल फरवरी में रूस ने दूसरी खेप चीन को भेजी थी। 2014 में चीन ने दो S-400 सेट मांगे थे। पहले सेट की डिलीवरी 2018 में पूरी हुई। यानी तुलनात्मक रूप से देखें तो दोनों देशों के पास मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम है। हालांकि लॉन्च रेंज में भारत अभी थोड़ा कमजोर नजर आता है मगर S-400 आ जाने से उसकी स्थिति और मजबूत हो जाएगी।
बैकअप टीम हमेशा तैयार एक अधिकारी ने बताया कि वैसे तो एक यूनिट में घातक टीम में एक ऑफिसर, एक जेसीओ सहित करीब 22 जवान होते हैं लेकिन लगभग एक पूरी घातक टीम बैकअप में भी होती है। इस तरह एक यूनिट में हर वक्त 40-45 घातक कमांडो होते हैं। भारतीय सेना में हर इंफ्रेंट्री ऑफिसर को घातक कमांडो ट्रेनिंग करनी होती है और चुने हुए जवानों को यह ट्रेनिंग दी जाती है। हर यूनिट में हर साल 30-40 नए जवान आते हैं और फिर घातक कमांडो टीम में भी नए जवानों से कुछ को रखा जाता है। ये घातक कमांडो टीम में से जिन जवानों को रिप्लेस करते हैं, वह भी यूनिट में रहते हैं। इस तरह घातक कमांडो टीम के अलावा भी यूनिट में लगभग 50 पर्सेंट जवान ऐसे होते हैं जो इसमें माहिर होते हैं।
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india china standoff : बॉर्डर पर चीन भेज रहा मार्शल आर्ट ट्रेनर, भारतीय सेना के ‘घातक’ पहले से तैयार
हाइलाइट्स
चीनी मीडिया के मुताबिक सैनिकों की ट्रेनिंग के लिए भेजे हैं ट्रेनर
15 जून से पहले भी किए थे मार्शल आर्ट में माहिर लड़ाके तैनात
भारतीय सेना में हर यूनिट में होते हैं 40-45 घातक कमांडो
‘घातक’ कमांडो होते हैं बिना हथियारों की लड़ाई में भी माहिर
नई दिल्ली ईस्टर्न लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारत-चीन सेना के तनाव (India-China tension) के बीच चीन तिब्बत में अपने सैनिकों को ट्रेंड करने के लिए मार्शल आर्ट ट्रेनर ( Martial arts trainer) भेज रहा है। 15 जून से पहले भी चीन ने मार्शल आर्ट लड़ाकों को तिब्बत भेजा था। चीन इसके जरिए भले ही माइंड गेम खेलने की कोशिश कर रहा हो लेकिन भारतीय सेना में ‘घातक’ कमांडो पहले से तैनात हैं। भारतीय सेना के घातक कमांडो बिना हथियारों की लड़ाई में माहिर हैं और दुश्मन को आमने सामने की लड़ाई में चित कर सकते हैं। चीन ने भेजे 20 ट्रेनर चीनी मीडिया में आ रही रिपोर्ट के मुताबिक चीन अपनी फोर्स को ट्रेंड करने के लिए 20 मार्शल आर्ट ट्रेनर तिब्बत भेज रहा है। 15 जून को हुई खूनी झड़प से पहले भी चीन ने तिब्बत के स्थानीय मार्शल आर्ट क्लब से भर्ती लड़ाकों को सेना की डिविजन में तैनात किया था। भारत और चीन के बीच 1996 में हुए समझौते के मुताबिक एलएसी से दो किलोमीटर के दायरे में न फायरिंग की जाएगी न ही किसी भी तरह के खतरनाक रसायनिक हथियार, बंदूक, विस्फोट की इजाजत होगी। इसलिए यहां हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। 15 जून को हुई खूनी झड़प के दौरान भी दोनों तरफ से किसी ने भी हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया।
1- प्रति व्यक्ति आय फिर से करनी होगी बेहतर
1980 में चीन की 191 अरब डॉलर की इकनॉमी भारत की 186 अरब डॉलर की इकनॉमी से बस थोड़ी ही आगे थी। हालांकि, चीन की इकनॉमी काफी बड़ी थी, इसलिए भारतीय 40 फीसदी अमीर थे। यहां पर प्रति व्यक्ति 267 डॉलर की आमदनी थी, जबकि चीन में 195 डॉलर प्रति व्यक्ति आमदनी थी। चीन में इकनॉमिक रिफॉर्म के बाद सब कुछ बदल गया। 2018 तक इसकी प्रति व्यक्ति आय 50 फीसदी तक बढ़कर 9771 डॉलर तक पहुंच गई। वहीं भारत में लोगों की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 2000 रुपये हुई है।बात अगर जीडीपी की करें तो चीन की जीडीपी 13.6 ट्रिलियन डॉलर हो गई है, जबकि भारत की जीडीपी सिर्फ 2.7 ट्रिलियन डॉलर तक ही पहुंची है। 1987 में चीन की 66 फीसदी आबादी गरीब थी, जो रोजाना 1.90 डॉलर कमाती थी, जबकि भारत की सिर्फ 49 फीसदी आबादी गरीब थी। अब चीन में सिर्फ 0.5 फीसदी लोग गरीब हैं, जबकि भारत में अभी भी 20 फीसदी से अधिक लोग गरीब हैं।
हम शहरीकरण में पिछड़ गए हैं। अभी 60 फीसदी से अधिक चीनी लोग शहरों में रहते हैं, जबकि भारत में सिर्फ 35 फीसदी लोग ही शहरों में रहते हैं। जब दोनों देश आजाद हुए थे, तब सिर्फ 12 फीसदी चीनी ही शहरों में रहते थे, जबकि 17 फीसदी भारतीय शहरों में रहा करते थे। उस वक्त भारत में अधिक इंडस्ट्रियल सेंटर थे।इतना ही नहीं, 80 के दशक में चीन में शिक्षा की दर भारत से अच्छी थी। वहां के दो तिहाई लोग शिक्षित थे, जबकि भारत की सिर्फ 2/5 आबादी ही शिक्षित थी। अब भारत में शिक्षा की दर 74 फीसदी पर पहुंच गई है, जबकि चीन में शिक्षा की दर 97 फीसदी हो गई है।
1974 में चीन में सिर्फ 7 लाख यात्री ही हवाई यात्रा करते थे, जबकि भारत में करीब 30 लाख लोगों की हवाई यात्रा का इंतजाम था। अभी भारत की तुलना में चीन के करीब 4 गुने लोग हवाई यात्रा करते हैं। 2018 में भारत के लिए ये आंकड़ा 16.4 करोड़ था, जबकि चीन के लिए यही आंकड़ा 61.14 करोड़ था।1980 में भार का रेल नेटवर्क 61,240 किलोमीटर का था, जबकि चीन का सिर्फ 51,700 किलोमीटर ही था। 2017-18 तक भारत का रेल नेटवर्क बढ़कर 68,442 किलोमीटर हो गया है, जबकि चीन का नेटवर्क दोगुने से भी अधिक 1.27 लाख किलोमीटर हो चुका है।
1969 में भारत में बच्चे के मरने की दर काफी अधिक थी। हर 1000 में से 145 बच्चे मर जाते थे। उस समय चीन में ये दर 84 थी। अब भारत में ये दर घटकर 30 पर आ गई है, जबकि चीन में ये दर महज 7 रह गई है। बता दें कि ये दर विकसित अर्थव्यवस्था की होती है, जैसे अमेरिका में ये दर 2018 में सिर्फ 5.6 फीसदी थी।चीन में लोगों की औसत उम्र 77.6 साल है, जबकि भारत में उम्र 69.2 साल है। मतलब कि हर चीनी व्यक्ति औसतन एक भारतीय की तुलना में करीब 7 दिन अधिक जीता है। 50 और 60 के दशक में ये अंतर और भी कम था।
आजादी के वक्त भारत में चीन से अधिक इंडस्ट्रियल सेंटर थे, लेकिन आज चीन दुनिया की फैक्ट्री बन चुका है। दोनों देशों में कारों का प्रोडक्शन एक अंदाजा लागने में मदद कर रहा है। इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ मोटर व्हीकल मैन्युफैक्चरर्स का आंकड़ा दिखाता है कि हम 1999 में लगभग बराबरी पर थे, जब भारत ने 5.3 लाख कराकें बनाईं, जबकि चीन ने लगभग 5.7 लाख कारें बनाईं। लेकिन पिछले साल भारत ने सिर्फ 36.2 लाख कारें बनाईं, जबकि चीन ने 2.1 करोड़ कारें बना डालीं।
भारत के पास हैं ‘घातक’ चीन भले ही मार्शल आर्ट लड़ाकों की बात कर रहा है लेकिन भारतीय सेना में घातक कमांडो पहले से मौजूद हैं। सेना की हर यूनिट में घातक कमांडो होते हैं, जो हथियारों के साथ लड़ाई के अलावा बिना हथियारों की लड़ाई में भी माहिर होते हैं। यह इस तरह ट्रेंड होते हैं कि अपने से मजबूत शरीर वाले दुश्मन को भी धूल चटा सकते हैं।
पढ़ें, चीनी सेना से नहीं, मार्शल आर्ट में माहिर हत्यारों से भिड़े थे भारतीय जवान!
सेना के एक अधिकारी के मुताबिक इनकी 43 दिन की कमांडो स्कूल में ट्रेनिंग होती है। जिसमें करीब 35 किलो का भार लेकर बिना रूके 40 किलोमीटर तक दौड़ना भी शामिल है। यह ट्रेनिंग इन्हें शारीरिक तौर पर मजबूत करती है। इन्हें हर तरह के हथियारों की ट्रेनिंग के साथ ही गुत्थम गुत्था की लड़ाई के लिए भी ट्रेंड किया जाता है। यह मार्शल आर्ट में भी माहिर होते हैं। कमांडो स्कूल की ट्रेनिंग के बाद भी जब यह यूनिट में तैनात होते हैं तो वहां भी इनकी ट्रेनिंग होती है। हाई एल्टीट्यूट वाले इलाकों के लिए अलग तरह की ट्रेनिंग और रेगिस्तानी इलाकों के लिए अलग ट्रेनिंग होती है।
आसमान की सुरक्षा ‘आकाश’ के जिम्मे
आसमान में ऊंचाई पर उड़ता एयरक्राफ्ट हो या निचले इलाकों में मंडराता ड्रोन, भारत का ऐडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) मिसाइल किसी भी एलियन ऑब्जेक्ट को उड़ाने में सक्षम है। इसी का हिस्सा है Akash मिसाइल। जमीन से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल 30 किलोमीटर तक के दायरे में बैलिस्टिक मिसाइल्स को इंटरसेप्ट कर सकती है। 720 किलो वजनी आकाश मिसाइल सुपरसोनिक स्पीड से चलती है। इतना काफी न हो तो 18 किलोमीटर ऊंचाई तक मौजूद दुश्मन की मिसाइल को निशाना बनाने में सक्षम है। इसे ट्रैक या व्हील, दोनों सिस्टम से फायर किया जा सकता है।
आकाश मिसाइल सिस्टम में ऐडवांस्ड कम्प्यूटर और एक इलेक्ट्रो-मेकेनिकल ऐक्टिवेटर लगा है। यह ‘राजेंद्र’ नाम के रडार से सिग्नल लेकर निशाना साधती है। ‘राजेंद्र’ में कई ऐडवांस्ड फीचर्स हैं जैसे वह अपनी रेंज में 64 टारगेट्स को ट्रैक कर सकता है। यह एक साथ चार निशानों की तरफ 8 मिसाइलें छोड़ने में सक्षम है।
आकाश के बाद, अब बारी पृथ्वी की। पृथ्वी एयर डिफेंस यानी PAD सिस्टम 80 से 120 किलोमीटर तक की रेंज में इनकमिंग मिसाइल्स को संभाल सकता है। पृथ्वी मिसाइल पर ‘प्रद्युम्न’ असल में टूज मिसाइल है। यह सुपरसोनिक मिसाइल आसानी से 300 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर रेंज वाली बैलिस्टिक मिसाइल्स को हवा में ही ढेर कर सकती है। यह मिसाइल सिस्टम वातावरण के बाहर से आने वाली मिसाइल्स को भी उड़ा सकता है। इसमें लॉन्ग रेंज का ट्रैकिंग रडार लगा है जो इसे टारगेट लॉक करने में मदद करता है। ट्रैजेक्टरी ऑप्टिमाइजेशन फीचर की बदौलत यह डिफेंस सिस्टम हाई और लो, दोनों तरह के ऑल्टीट्यूड्स में यूज किया जा सकता है।
भारत के पास सिर्फ धरती पर ही नहीं, अंतरिक्ष में भी युद्ध लड़ने की क्षमता है। दुनिया में सिर्फ तीन और देशों- अमेरिका, रूस और चीन के पास ही ऐंटी-सैटेलाइट मिसाइल है। भारत ने पिछले साल 17 मार्च को ‘मिशन शक्ति’ सफलतापूर्वक पूरा किया था। तब हमने धरती की निचली कक्षा में मौजूद एक सैटेलाइट को ऐंटी सैटेलाइट मिसाइल से उड़ाकर पूरी दुनिया में अपनी स्पेस पावर का लोहा मनवाया था।
भारत के पास इजरायल की SPYDER मिसाइल भी है जो 5 से 50 किलोमीटर तक की रेंज में मार कर सकती है। इसके अलावा ‘अश्विन’ नाम की एक स्वदेशी मिसाइल भी है जो करीब 30 किलोमीटर तक के ऑल्टीट्यूट पर मिसाइल्स को इंटरसेप्ट कर लेती है।
भारत को रूस की ओर से जल्दी ही S-400 Triumf एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम मिलने वाला है। यह सिस्टम भारतीय एयरफोर्स की रीच को चार गुना तक बढ़ा देगा। S-400 Triumf दुनिया के सबसे ऐडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम्स में से एक है। इसमें जो रडार लगे हैं वह 1,000 किलोमीटर दूर से ही आ रहे ऑब्जेक्ट को पकड़ सकते हैं। दर्जनों ऑब्जेक्ट्स पर एकसाथ नजर रखने में सक्षम यह डिफेंस सिस्टम फाइटर एयरक्राफ्ट्स पर निशाना लगाने में जल्दी चूकता नहीं। एक S-400 सिस्टम से एक पूरे स्पेक्ट्रम को हवाई खतरे से सुरक्षित किया जा सकता है। चीन के साथ बॉर्डर पर जारी तनाव के बीच इस सिस्टम को जल्द हासिल करने की कोशिश हो रही है ताकि पूर्वी लद्दाख सेक्टर में सिर्फ एक डिफेंस सिस्टम से ही ड्रैगन की हर हरकत पर नजर रखी जाए।
रूस के S-300V जैसी चीन की HQ-9 भी टू-स्टेज मिसाइल है। जमीन से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल सिस्टम करीब दो टन वजनी और 7 मीटर लंबी है। HQ-9 चीन का मेन एयर डिफेंस सिस्टम है। इसके वारहेड की अधिकतम रेंज 200 किलोमीटर और स्पीड 4.2 मैच है। इस मिसाइल में खामी यह है कि इसका थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल एक साइड से नजर आता है। यह मिसाइल पहले बहुत बड़ी थी, रूस की मदद से अब इसे इतना छोटा बना लिया गया है कि ट्रांसपोर्ट लॉन्चर से छोड़ा जा सके। फिर भी इसकी बैलिस्टिक क्षमता पर एक्सपर्ट्स को शक है।
भारत और चीन के म्युचुअल फ्रेंड यानी रूस ने दोनों देशों को हथियार बेचे हैं। रशियन S-300 एयर डिफेंस सिस्टम को चीन ने खरीदा और फिर उसे अपने यहां और डेवलप किया। S-300V का चीनी वर्जन HQ-18 के नाम से जाना जाता है। इन मिसाइल सिस्टम की रेंज 100 किलोमीटर तक है। कुछ मिसाइलें 150 किलोमीटर तक भी मार कर सकती है। इसका रडार एक साथ 200 टारगेट्स को डिटेक्ट कर सकता है।
दुनिया के सबसे ऐडवांस्ड मिसाइल सिस्टम्स में से एक, S-400 Triumf की एक खेप चीन के पास पहले से मौजूद है। इस साल फरवरी में रूस ने दूसरी खेप चीन को भेजी थी। 2014 में चीन ने दो S-400 सेट मांगे थे। पहले सेट की डिलीवरी 2018 में पूरी हुई। यानी तुलनात्मक रूप से देखें तो दोनों देशों के पास मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम है। हालांकि लॉन्च रेंज में भारत अभी थोड़ा कमजोर नजर आता है मगर S-400 आ जाने से उसकी स्थिति और मजबूत हो जाएगी।
बैकअप टीम हमेशा तैयार एक अधिकारी ने बताया कि वैसे तो एक यूनिट में घातक टीम में एक ऑफिसर, एक जेसीओ सहित करीब 22 जवान होते हैं लेकिन लगभग एक पूरी घातक टीम बैकअप में भी होती है। इस तरह एक यूनिट में हर वक्त 40-45 घातक कमांडो होते हैं। भारतीय सेना में हर इंफ्रेंट्री ऑफिसर को घातक कमांडो ट्रेनिंग करनी होती है और चुने हुए जवानों को यह ट्रेनिंग दी जाती है। हर यूनिट में हर साल 30-40 नए जवान आते हैं और फिर घातक कमांडो टीम में भी नए जवानों से कुछ को रखा जाता है। ये घातक कमांडो टीम में से जिन जवानों को रिप्लेस करते हैं, वह भी यूनिट में रहते हैं। इस तरह घातक कमांडो टीम के अलावा भी यूनिट में लगभग 50 पर्सेंट जवान ऐसे होते हैं जो इसमें माहिर होते हैं।
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