#��ीपेश भान
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सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेशों से खेती को तो फायदा हो सकता है पर किसानों को नहीं
भारत कृषक समाज के संचालक और पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने उन संघठन के नाम मांगे है जिन्होंने केंद्र सरकार के द्वारा पारित किये गए तीन ‘ऐतिहासिक’अध्यादेशों का समर्थन किया है | साथ यह भी पूछा है कि तीनों अध्यादेशों का किसानों पर क्या लाभ होगा |
सवाल बेशक उन्होंने पूछा है लेकिन वे जानते हैं कि इसका जवाब क���ई है नहीं | संभावित अपवाद के तौर पर बीजेपी के भारतीय किसान संघ को छोड़ दें तो फिर नजर आयेगा कि किसी भी अन्य किसान-संगठन, संघ या फिर जनाधार वाले किसी किसान महागठबंधन ने नीतिगत स्तर पर किये गये इन तीन बदलावों का समर्थन स्वागत तक नहीं किया है, समर्थन की कौन कहे, मैं जितने भी संगठनों को जानता हूं या फिर जिनके साथ मैंने काम किया है, सब ने केंद्र सरकार की ओर से जारी इन तीन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध किया है | सो, यहां हरेक के लिए सोचने की बात बनती है | क्या जिन कदमों को ऐतिहासिक बताकर पेश किया गया है वे किसानों के हक में कारगर साबित होने जा रहे हैं?
मेरा दावा ये कत्तई नहीं कि सिर्फ किसान संगठनों की ही बात इस मामले में आखिरी मानी जाये | बहुत संभव है, किसान-संगठनों का जो विरोध नजर आ रहा है वो बदलाव को लेकर श्रमिक संगठनों में पाये जाने वाले प्रतिरोध-भाव या फिर वर्तमान शासन के प्रति पूर्वाग्रह की देन हो | मैं इस बात से भी आगाह हूं कि किसानों के हक में सोचने वाले बहुत से विशेषज्ञ, जिनके ज्ञान पर मैं भरोसा पालकर चलता हूं, इन ‘सुधारो’ को सही दिशा में उठा कदम बता रहे हैं |
सुधारों का यह पैकेज तीन कानूनों का मिला-जुला रूप है | तीनों कानून अध्यादेश के रास्ते सामने लाये गये हैं | पहला कानून है अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम का | इस कानून मे केंद्र सरकार ने संशोधन किया है ताकि खाद्य-उत्पादों पर लागू संग्रहण की मौजूदा बाध्यताओं को हटाया जा सके |
दूसरा, केंद्र सरकार ने एक नया कानून (द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रोमोशन एंड फेसिलिएशन) अध्यादेश, 2020) एफपीटीसी नाम से बनाया है जिसका मकसद कृषि उपज विपणन समितियों के एकाधिकार को खत्म करना और हर किसी को कृषि-उत्पाद खरीदने-बेचने की अनुमति देना है |
तीसरा, एक नया कानून एफएपीएएफएस (फार्मर(एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्युरेंस एंड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस,2020) बनाया गया है | इस कानून के जरिये अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर सकें |
शुरुआत हम इसी बात से करें कि इन ��ानूनों को लाने के लिए कौन सा समय चुना गया और कानूनों को सामने लाने के लिए कौन-सा त���ीका अपनाया गया | इन कानूनों के पक्षधर भी इस बात पर सहमत हैं कि कोरोनावायरस या फिर लॉकडाउन से इन कानूनों का कोई लेना-देना नहीं | संकट के इस समय में किसानों की जो बड़ी जरूरतें हैं या फिर किसानों की जो मांगें हैं, उसका कोई रिश्ता इन कानूनों से नहीं बनता |
जाहिर है, फिर कोविड के नाम पर जो राहत पैकेज दिया गया है उसमें इन कानूनों को शामिल करना ध्यान भटकाने की कवायद मानी जायेगी | और, इन कानूनों की प्रकृति को देखते हुए वैसी कोई अर्जेन्सी भी नहीं जान पड़ती जो इन्हें अध्यादेश के रास्ते लाने की इतनी हड़बड़ी दिखायी गई | जिन मुद्दों पर ये कानून केंद्रित हैं, उन पर दशकों से बहस होती रही है और अगर कानून लाना ही था तो संसद के शुरू होने तक कुछ माह इंतजार कर लेना वाजिब होता |
इसके अतिरिक्त, ये भी साफ नहीं है कि केंद्र सरकार को ऐसी शक्ति कहां से मिल गई है जो वह कृषि और अन्तर्राज्यीय व्यापार के मसले पर कानून लाये. आखिर, कृषि राज्य-सूची के अन्तर्गत आने वाला विषय है. ये बात सच है कि खाद्य-सामग्रियों का वाणिज्य और व्यापार समवर्ती सूची के अन्तर्गत दर्ज है लेकिन अगर राज्यों को कृषि उपज विपणन समिति अधिनियम को पारित करने का अधिकार है तो फिर यह मानकर चलना चाहिए कि उन्हें यह अधिनियम उलांघने का भी हक हासिल है |
जहां तक संविधान का सवाल है, ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता जो माना जाये कि केंद्र सरकार के पास अनुबंध आधारित कृषि के बारे में कानून बनाने का अधिकार है | सो पहली नजर में तो यही जान पड़ता है कि एफएपीएएफएस असंवैधानिक है |
अगर सरकार किसानों के फायदे के लिए खेती-बाड़ी से संबंधित कानूनों में सचमुच ऐतिहासिक बदलाव ही लाना चाहती थी तो उसे इन कानूनों पर संसद और सर्वजन के बीच बहस और जांच-परख से कन्नी काटने की क्या जरूरत थी? ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी जो ये बदलाव पिछले दरवाजे से किये गये और वो भी सेहत के मोर्चे पर चल रही ऐसी आपातकालिक हालत में और राज्य सरकारों के संविधान-प्रदत्त अधिकारों को ठेंगा दिखाते हुए?
मुझे भान है कि इन आपत्तियों पर क्या प्रतिक्रियाएं सामने आएंगी. इन बदलावों के ईमानदार पक्षधर कहेंगे कि आप ये बात तो ठीक कहते हैं कि विधायी प्रक्रिया के हिसाब से ये सब करना गलत है लेकिन इन कानूनों को लाने की जरूरत बनी हुई थी. तो फिर क्यों ना हम लोग असल मुद्दे पर बात करें.
ठीक है, फिर शुरुआती तौर पर मैं इन बदलावों के पक्षधर लोगों की एक ��ुनियादी बात स्वीकार करके चलता हूं कि कृषि-बाजार के नियमन से संबंधित कानून बहुत पुराने हो चले हैं, उन्हें खाद्य-असुरक्षा के मनोभाव के बीच बनाया गया था और आज के दिन में ये कानून बाधक साबित होते हैं. हर कदम पर राज्यसत्ता का हस्तक्षेप कोई बहुत चुस्त और कारगर विचार नहीं, ऐसा करने पर बहुधा लेने के देने पड़ सकते हैं. कृषि क्षेत्र में बढ़वार और खाद्य-बाजार में स्थिरता लाने के लिए हमें बहुत से बाधक नियमों को हटाने की जरूरत है.
अनिवार्य वस्तु अधिनियम में संशोधन बाधाओं को हटाने का यही काम करता है सो संशोधन स्वागत योग्य है. ‘संग्रहण’ पर लगी रोक भी 1960 के दशक के खाद्य-संकट के दिनों की देन है. राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य-संकट जैसी आपातकालिक स्थिति ना हो तो फिर आज की सूरत में हमें ऐसे रोक की जरूरत नहीं है. ऐसी रोक के हटने से व्यापारियों और स्टॉकिस्ट्स को मदद मिलेगी और कभी-कभार यह भी हो सकता है कि इस रोक का हटना फसलों के दाम में गिरावट को रोकने में सहायक साबित हो. लेकिन फिर इसी तर्क का विस्तार करते हुए हम कह सकते हैं कि सरकार को कृषि-वस्तुओं के निर्यात पर आयद बाधाओं को भी हटा लेना चाहिए. लेकिन, इन ‘सुधारों’ से यही एक निर्णायक चीज सिरे से गायब है.
जहां तक एफपीटीसी एक्ट का सवाल है, इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसीज्) में समस्याओं की भरमार है. किसानों से बहुत ज्यादा शुल्क लिया जाता है और किसान अक्सर शोषण का शिकार होते हैं. लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्धा से बात बन सकती थी.अध्यादेश में जो बदलाव किये गये हैं, जैसे एपीएमसीज् के दायरे से बाहर के व्यापार पर जीरो-टैक्स का विधान, वे कृषि उपज विपणन समितियों का जीनव-परिवेश बिगाड़ सकते हैं.
क्या किसान के हक में ऐसे बदलाव भी फायदेमंद साबित होंगे? हमें इस सवाल के जवाब के लिए बिहार की तरफ देखना चाहिए जहां साल 2006 में कृषि उपज विपणन समितियों से छुट्टी पा ली गई और उन राज्यों की तरफ भी देखना चाहिए जहां ऐसी समितियां थी ही नहीं. मैं निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि ऐसी जगहों पर किसान भले ही कृषि उपज विपणन समितियों के हाथों शोषण का शिकार होना सह लें लेकिन वो कभी नहीं चाहेगा कि एक बिखरे-बिखरे से बाजार में किसी निजी व्यापारी के रहमो-करम पर निर्भर हो. ये अध्यादेश (एफपीटीसी) बड़े व्यापारियों को फायदा पहुंचाएगा, वे सीधे किसानों से सौदा कर सकेंगे लेकिन ये बात साफ नहीं है इससे किसानों को मदद मिल पायेगी या नहीं क्योंकि किसान बहुधा मोल-भाव करने की हालत में नहीं होते. इसका मतलब हुआ, हम अभी जो खोटा ढांचा मौजूद है उसे तो ढहा रहे हैं लेकिन उसकी जगह कोई बेहतर ढांचा खड़�� करने का काम नहीं कर रहे.
ठीक इसी तरह, अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान करना कार्पोरेट जगत के लिए मददगार साबित होगा, कार्पोरेट जगत कृषि-क्षेत्र में अपनी पैठ बना सकेगा और संभव है कि इससे कृषि-उत्पादकता बढ़े. लेकिन क्या इससे किसानों को फायदा होगा?
ध्यान रहे कि ठेका या बटाई सरीखी प्रथा के जरिये अभी लाखों किसान अनौपचारिक तौर पर अनुबंध आधारित खेती में लगे हैं. एफएपीएएफएस अध्यादेश में ऐसे किसानों को देने के लिए कुछ भी नहीं है. जमीन के मालिकाने के हक में बिना कोई छेड़छाड़ किये इन बटाईदार किसानों का एक ना एक रूप में पंजीकरण किया जाता तो यह बहुप्रतीक्षित भूमि-सुधारों की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम साबित होता. लेकिन एफएपीएएफएस, अभी की स्थिति में जो अनौपचारिक अनुबंध आधारित खेती का चलन है, उसकी राह में बाधक बनेगा.
जमीन के मालिकाने का हक लेकर अपनी जमीन से कोसों दूर बैठे भू-स्वामी सोचेंगे कि स्थानीय बटाइदारों के साथ रोज के झंझट में पड़ने से बेहतर है कि कंपनियों के साथ खेती-बाड़ी का लिखित करार कर लिया जाय. अध्यादेश में ऐसी कोई बात नहीं जिससे सुनिश्चित होता हो कि नाम-मात्र के मोलभाव की ताकत वाले छोटे किसान अनुबंध के लिए सहमति जताते हैं तो वह उनके लिए न्यायोचित साबित होगा. बेशक, नये विधान में विवादों के समाधान के लिए विस्तृत तौर-तरीकों का उल्लेख है लेकिन सोचने की बात ये बनती है कि जब किसानों का पाला बड़ी कंपनियों से पड़ेगा तो विवादों के समाधान के इन तौर-तरीकों तक उनकी पहुंच कैसे बनेगी?
इतिहास हमें बताता है कि कानून का अमल हवा में नहीं होता. सारा कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि कानून किन परिस्थितियों में लागू हुआ और उस पर अमल किस भांति किया गया. कृषि-मंडी के अध्येता हमें याद दिलाते हैं कि हमें ‘आर्थिक स्वतंत्रता और इससे जुड़े ठोस नतीजों को हासिल करने के नाम पर कानूनी मोर्चे से किये जाने सुधारों को बढ़ा-चढ़ाकर देखने और ऐसे ही सुधारों से शुरुआत करने से बचना चाहिए’.
ये अध्यादेश जिस वक्त लाये गये हैं और जिस किस्म के शक्ति-समीकरण के बीच इन अध्यादेशों पर अमल किया जाना है, उससे जुड़े पूरे संदर्भ को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि ये बदलाव व्यापारियों, कृषि-व्यवसाय के बड़े खिलाड़ियों तथा कार्पोरेट जगत को तो फायदा पहुंचायेंगे लेकिन किसानों को नहीं और जहां तक छोटे किसानों का सवाल है, उन्हें इन बदलावों का रंचमात्र भी फायदा नहीं होने जा रहा.
हो सकता है, इन सुधारों से कृषि-उत्पादकता बढ़े, खाद्य-बाजार का विकास हो लेकिन जहां तक किसानों की आमदनी की बढ़वार का सवाल है, इन सुधारों से कोई मदद नहीं मिलने जा रही. इन सुधारों के बारे में हद से हद यही कहा जा सकता है कि खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने वाली नीतियों के निर्माण का ��ो पीछे लंबा सिलसिला रहा है, ये सुधार उसी सिलसिले की अगली कड़ी साबित होंगे, पहले भी ऐसी नीतियों में किसानों के फायदे के लिए कुछ खास नहीं था और अभी जो नीतिगत बदलाव किये गये हैं उनसे भी किसानों का कोई फायदा नहीं सधने वाला.
(इस लेख की पुष्टि किसान सत्ता नहीं करता ,यह लेखक के खुद के विचार है )
https://kisansatta.com/farmers-can-benefit-from-the-ordinances-brought-by-the-government-but-not-the-farmers38320-2/ #FarmersCanBenefitFromTheOrdinancesBroughtByTheGovernmentButNotTheFarmers Farmers can benefit from the ordinances brought by the government but not the farmers Farming, Top, Trending #Farming, #Top, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
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प्रधानमन्त्री हिँड्न खोजेपछि चिकित्सक हैरान, मोबाइल भेटेपछि धमाधम रिप्लाई
१२ मंसिर, काठमाडौं । जस्तोसुकै कठिन परिस्थितिमा पनि धैर्य देखाउने र हाँसो ठट्टा गर्ने प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओलीको मौलिक शैली अस्पतालको सघन उपचार कक्षमा पनि कायमै देखेर चिकित्सकहरु हैरान भएका छन् ।
सामान्य मान्छे पनि एपेन्डिसाइटिसको शल्यक्रियापछि मिर्गौलाको डाइलासिस गरिरहेका र जटिल रोगहरुको सामना गरिरहेका प्रधानमन्त्री ओली भोलिपल्ट बिहानै उठेर हिँड्न खोजेपछि चिकित्सक पनि चकित परे ।
विहीबार बिहानदेखि हिँड्न सक्ने अवस्थामा पुगेका प्रधानमन्त्री ओली विहानै उभिएर बाहिरतिर टहलिन खोजेपछि चिकित्सक हैरानीमा परेका हुन् । उनीहरुले प्रधानमन्त्रीलाई आराम गर्न र हिँडडुल नगर्न सम्झाउनुपरेको उपचारमा संलग्न टिमका एक सदस्यले बताए ।
बुधबारै अक्सिजन मास्क कहिले निकाल्ने हो भन्दै चिकित्सकलाई सोधेका प्रधानमन्त्री ओलीले आफू पूर्ववत् अवस्थामा फर्किसकेको जनाऊ दिन कुनै कसर बाँकी राखेका छैनन् । उनी चाँडोभन्दा चाँडो नियमित काममा फर्किन चिकित्सक र सहयोगीहरुसँग तन्दुरुस्तीको प्रमाण पेश गर्न आफ्नो लयमा आउने प्रयासमा छन् ।
बिहीबार बिहान चिकित्सकको असहमतिका कारण हिँडडुल गर्न नपाएपछि प्रधानमन्त्रीको हातमा मोबाइल पर्यो । उनले एकछिन मोबाइल चलाए । त्यहाँ नोटिफिकेशनमा देखिएका दुई/चारजनालाई उनले रिप्लाइ दिनसमेत भ्याए ।
प्रधानमन्त्री मोबाइल चलाउँदै सामाजिक सञ्जालमा सक्रिय भएपछि चिकित्सक तथा सचिवालयका सदस्यहरुले रोक्नुपरेको थियो । प्रधानमन्त्री ओली सामाजिक सञ्जाल र अनलाइन समाचारहरु प्रायः आफैं हेर्ने गर्छन्, उनी सहयोगीको सूचनामा मात्र भर पर्दैनन् ।
आईसीयुमै बसेर सामाजिक सञ्जालमा प्रधानमन्त्री सक्रिय भएपछि उनलाई आरामका लागि केहीबेरमै रोकिएको स्रोतले ��नाएको छ । एक/एकजनालाई रिप्लाई दिनुभन्दा आम जनता र शुभेच्छुकलाई एकमुष्ठ धन्यवाद तथा स्वास्थ्य अवस्थाबारे जानकारी दिन उपयुक्त हुने सुझावपछि प्रधानमन्त्रीले सबैलाई धन्यवाद दिएर ट्वीट गरे ।
बिहान केहीबेर प्रधानमन्त्रीका मुख्य सल्लाहकार बिष्णु रिमालसहितको टोलीले भेट गरेको थियो । त्यस लगत्तै उपप्रधानमन्त्री ईश्वर पोखरेल अस्पताल पुगेका थिए । प्रधानमन्त्रीलाई भेटघाटमा भने चिकित्सकहरुले कडाइ गरेका छन् ।
यो पनि पढ्नुहोस शुभेच्छुकलाई धन्यवाद दिँदै प्रधानमन्त्रीले भने– मेरो स्वास्थ्यमा तीव्र सुधार भइरहेको छ
बुधवार कालो चिया पिएका प्रधानमन्त्रीले बिहीबार बिहानै दाल पिएको अस्पताल स्रोतले जनाएको छ । प्रधानमन्त्री आफ्नो पूर्वववत स्वभाव अनुसार हाँसो ठट्टा गर्ने अवस्थामा फर्किसकेको उनलाई भेट्नेहरुले बताएका छन् ।
प्रधानमन्त्री ओलीले अस्पतालको बेडमा सुतिरहेका बेला शिक्षण अस्पतालपछाडिको सडकमा बिहेको बाजा बजेको सुनेछन् । उनले चिकित्सक र सचिवालयका सदस्यहरुसँग रमाइलो शैलीमा ‘यतातिर त बिहेका जन्ति पनि हिँड्दा रहेछन्’ भन्दै केहीबेर हाँसो ठट्टासमेत गरेका थिए ।
उनलाई मुख्य सल्लाहकार रिमालले ठट्यौली शैलीमै ‘प्रधानमन्त्रीज्यू हजुरले आफ्नो ख्याल गर्नुपर्यो, बाहिर के-के हुँदैछ भनेर ध्यान दिनु भएन, बाहिर सबै ठीकठाक चल्दैछ’ भनेका थिए ।
प्रधानमन्त्री जतिसक्दो चाँडो अस्पतालबाट निवास फर्किन चाहेको उनलाई भेट्नेहरु बताउँछन् ।
प्रधानमन्त्रीलाई भेटेका एक निकट सहयोगीले भने, उहाँ त ठमठमी हिँड्न खोज्नुहुन्छ, अस्पतालबाट कहिले निवास पठाउने हो भनेर डाक्टरहरुलाई सोधिरहनुहुन्छ, चिकित्सकले उहाँलाई अस्पतालमै राख्न पाए अलि धपेडी हुने थिएन भनेर रोकेका हुन्, उहाँ त हिँड्न आत��र हुनुहुन्छ ।
नेकपा संसदीय दलका उपनेता सुवास नेम्वाङले प्रधानमन्त्री ओलीको उच्च मनोबल र दृढ इच्छाशक्ति रोगलाई जित्ने खालको रहेको भनेर चिकित्सक पनि चकित हुने गरेको बताए । उनलाई डा.भगवान कोइराला, डा.अरुण सायमी, डा.दिब्यासिंह शाह लगायतले प्रधानमन्त्रीको स्वभाव र रोग विरुद्ध लड्ने सामर्थ्यबारे सुनाएका थिए ।
प्रधानमन्त्रीलाई केही दिन जसरी पनि आराम गर्ने वातावरण बनाइदिन चिकित्सकहरुले परिवार तथा सचिवालय र नेकपाका नेताहरुलाई आग्रह गरेका छन् । प्रधानमन्त्रीलाई आफू बिरामी छु भन्ने भान नै नहुने र घण्टौं कुराकानी तथा भाषणमा रमाउने बानीले चिकित्सकहरु हैरान छन् ।
‘उहाँलाई केही भन्यो भने म आजको बिरामी हुँ र ? ४७ वर्षदेखि कुनै न कुनै रोगसँग लड्दै आएको छु, बाँकी जीवन जति छ सक्रियपूर्वक जनता र देशको पक्षमा लगाउन चाहान्छु’ प्रधानमन्त्रीको भनाइ उधृत गर्दै एक चिकित्सकले भने ‘मलाई उपचार गर्नुस् तर रोकेर नराख्नुस, मलाई एक- एक मिनेटको महत्व छ’ ।
केही दिन प्रधानमन्त्रीलाई आराम चाहिएको कुरा पत्नी राधिका शाक्यलेसमेत महशुस गरेपछि चिकित्सकलाई सजिलो भएको छ । बुधवार प्रधानमन्त्रीलाई भेटेपछि राधिकाले आराम गर्न सहमत गराएको स्रोतले जनाएको छ ।
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पुलिस पर नाबालिग से मारपीट का आरोप जांच करने पहुंचीं एससी कमीशन की मेंबर
पुलिस पर नाबालिग से मारपीट का आरोप जांच करने पहुंचीं एससी कमीशन की मेंबर
बरनाला एसडीएम 17 जून तक रिपोर्ट पेश करें, कसूरवार पर होगी कार्रवाई : पूनम कांगड़ा
दैनिक भास्कर
Jun 02, 2020, 07:48 AM IST
भदौड़. नजदीकी गांव कोठे भान सिंह के दलित लड़के की कथित तौर पर पुलिस द्वारा की गई मारपीट की मिली शिकायत की जांच करने के लिए पंजाब राज अनुसूचित जातिय कमीशन की मेंबर पूनम कांगड़ा ने गांव का दौरा किया गया।
इस दौरान उन परिवार की से बातचीत कर इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया। इस मौके पर…
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#NirmalaSitharaman द्वारा पेश #Budget2019 का आकलन न केवल भ्रामक है, बल्कि गुमराह करने वाला भी है। लेकिन #ModiGovt की यह तिकड़म ज्यादा नहीं ठहरने वाली, क्योंकि 6-7 महीने बाद फरवरी में फिर नया #Budget आ जाएगा। तब बजट की वास्तविकता का भान सबको हो जाएगा। https://t.co/wQaVQztSot
— 24x7politics (@24x7Politics) July 20, 2019
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गाजीपुर/शादियाबाद पुलिस को मंगलवार की शाम बड़ी कामयाबी, मुठभेड़ में सात हजार रुपये के ईनामी बदमाश को साथी संग धर दबोचा
गाजीपुर/शादियाबाद पुलिस को मंगलवार की शाम बड़ी कामयाबी, मुठभेड़ में सात हजार रुपये के ईनामी बदमाश को साथी संग धर दबोचा
गाजीपुर ब्योरो रिपोर्ट :- शादियाबाद पुलिस को मंगलवार की शाम बड़ी कामयाबी मिली। मुठभेड़ में सात हजार रुपये के ईनामी बदमाश को साथी संग धर दबोची। पुलिस कप्तान सोमेन बर्मा ने बुधवार की शाम अपने ऑफिस में पकड़े गए बदमाशों को मीडिया के सामने पेश किया। बदमाशों में चंद्रभान कश्यप उर्फ भान कश्यप तथा रोहित गुप्त उर्फ गुड्डू है। दोनों शादियाबाद थाने के यूसुफपुर गांव के रहने वाले हैं।
चंद्रभान की पुलिस को…
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अमरनाथ यात्रियों पर मुस्लिम आतंकवादियों ने हमला किया था जिसमें सलीम शेख को हीरो की तरह पेश किया गया। सद्भावना की गंगा यमुना तो छोड़िए अदृश्य सरस्वती भी प्रकट होकर बहने लगी थी। मीडिया मे अमरनाथ यात्रियों के बजाय सलीम शेख को कवरेज दी गई। अब आते है दूसरी खबर पर, गोरखपुर मे बच्चों की मृत्यु हुई, डाॅ. कफील खान विभाग के मुख्य प्रभारी है, सरकारी डाॅक्टर होने के साथ साथ इनका गोरखपुर मे निजी चिकित्सालय भी है और मरीज देखने का समय सुबह 9 बजे से ��ात 9 बजे तक का है, ऑक्सीजन सप्लायर को पेमेन्ट इनके पास से होकर गुजरती है। इन्हें पूरी जानकारी भी रही होगी की ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो सकती है, लेकिन इन्हें पिछले 6 माह से अपने निजी अस्पताल से समय नहीं मिला की वह सप्लायर को पेमेन्ट करवा सकें, जबकि एक डाॅक्टर होने के कारण इन्हें ऑक्सीजन की सप्लाई बंद होने पर स्थिति की भयावहता का पूरा भान भी रहा होगा। जब ऑक्सीजन सप्लायर ने बंद किया तब ये महोदय सिलेन्डरो और मरीजों के साथ फोटो खिचवा कर हीरो बन गए। गौर तलब है की आप ने अखिलेश यादव को ट्वीट करके देश को मोदी और अमित शाह से बचाने की गुहार भी लगाई थी, और राहुल गांधी से भी सम्पर्क साध कर मेडिकल कालेज आने का न्योता भी दिया था। खैर यह तो लाशो पर हीरो बन बैठे मगर सबूत मिटाना भूल गए.. एक सरकारी कर्मचारी का प्रोटोकाल तोड़ कर एक राजनीतिक पार्टी के प्रति इस प्रकार प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना और फिर लाशो पर राजनीति करके हीरो बन जाना बहुत कुछ कहता है... दोनों मामलों मे संदिग्ध भूमिका की जांच की आवश्यकता है, कहीं घटना दुर्घटना न होकर राजनीतिक साजिश तो नहीं..... Narendra Modi MYogiAdityanath Sidharth Nath Singh
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दुनियाको सबैभन्दा भयानक घर, जहाँ १० घण्टा बिताउँदा पाइन्छ २२ लाख पुरस्कार
भूतघर अर्थात् हन्टेड हाउसका बारेमा धेरै कथा, कहानी तथा फिल्महरु पनि देख्नु सुन्नु भएकै होला । यस्ता हन्टेड हाउसका प्रसंगले मनमा डर, रोमाञ्चकता तथा मनोरञ्जन सिवाय अरु दिने केही होइन । तर अमेरिकामा चाहिँ एउटा यस्तो भुतघर खोलिएको छ, जसमा तपाईंले डरत्रासको मज्जा मात्र होइन पैसा पनि कमाउन सक्नुहुनेछ ।
टेनिसीको समरटाउनमा स्थापित उक्त हण्टेड हाउसमा १० घण्टा बिताउन सक्नुभयो भने करीब २२ लाख रुपैयाँको पुरस्कार तपाईंको झोलीमा पर्नेछ ।
उक्त हण्टेड हाउसको नाम हो, ‘मे मी म्यानर’ । यो भुतघर भित्रको दृश्यहरु इति भयानक छन् कि त्यहाँ कुनै पनि मानिसका लागि १० घण्टा बिताउनु असम्भव प्रायः जस्तै हुन्छ । तर यदि जसले हिम्मत जुटाएर हण्टेड हाउसभित्र १० घण्टा बिताउँछ उसले २० हजार डलर पुरस्कार पाउँदछ ।
यो हण्टेड हाउसभित्र छिर्नु अगाडि जो कोहीले पनि ४० पेजको करारनामा गर्नुपर्दछ, ता कि भित्र डरका कारण केही भएमा स्वयं व्यक्ति नै जिम्मेवार हुन्छ । साथै घरभित्र जाने मानिसको उमेर २१ वर्षभन्दा कम हुनुहुँदैन । यसका साथै आफू स्वस्थ रहेको मेडिकल सर्टिफिकेट पनि पेश गर्नुपर्दछ ।
यतिमात्र कहाँ हो र, करारनामामा यतिधेरै कडा शर्तहरु हुन्छन् कि घरभित्र छिरिसकेपछि गम्भीर रुपमा शारीरिक वा मानसिक चोट नपरेसम्म बाहिर निस्किन पाइँदैन ।
हण्टेड हाउसभित्र छिरिसकेपछि धेरै मानसिक तथा शारीरिक त्रासदीहरुको सामना गर्नुपर्दछ । त्��सक्रममा मान्छेलाई रिस पनि उठ्नसक्छ, तर रिसलाई नियन्त्रणमा राख्नुपर्दछ ।
घरभित्र भूतका मूर्ति मात्र होइन डरलाग्दा पहिरनमा रहेका अन्य मानिसहरुले समेत अचानक अगाडि पछाडि आएर डरलाग्दो वातावरण सिर्जना गर्नेछन् । यसले मानिसलाई साँच्चीकै भूतको फेला परेको भान हुनेछ ।
उक्त हण्टेड हाउसका मालिकका अनुसार अहिलेसम्म कोहीपनि व्यक्तिले उक्त घरभित्र १० घण्टा बिताउन सकेको छैन । एजेन्सीको सहयोगमा
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३ खर्ब घट्यो पुनर्निर्माणको लागत
५ असार, काठमाडौं । राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरणले भूकम्पपछिको पुनर्निर्माणको कूल लागत संशोधन गरी घटाएको छ । राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरण विकास सहायता तथा सहजीकरण स��ितिको बैठकले कूल अनुमान घटाएर ६ खर्ब ३० अर्बमा पुनर्निर्माण सम्पन्न हुने उल्लेख गरेको छ ।
यसअघि पुनर्निर्माणका सबै काम सम्पन्न गर्न ९ खर्ब ३८ अर्ब रुपैयाँ लाग्ने आंकलन गरेको थियो । वैशाख २०७३ मा तयार पारिएको विपद्पछिको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी पञ्चवर्षीय योजनाले पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनाका सबै काम सम्पन्न गर्न ९ खर्ब ३८ अर्ब रुपैयाँ लाग्ने अनुमान गरेको थियो ।
बुधबार बसेको विकास सहायता तथा सहजीकरण समितिको बैठकले प्राधिकरणले पेश गरेको ‘नेपालको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनामा ६ खर्ब ३० अर्ब रुपैयाँ लाग्ने संशोधित अनुमान र कार्यक्रम’ स्वीकृत गरेको हो । समितिले संशोधित अनुमानअनुसार कार्यक्रम कार्यान्वयन गर्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरेको छ ।
बैठकमा दातृ निकाय तथा विकास साझेदार संस्थाहरुले पनि विपद्पछिको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी पञ्चवर्षीय योजनामा संशोधित कार्यक्रम र वित्तीय योजना अनुसार अघि बढ्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरेको प्राधिकरणले उल्लेख गरेको छ ।
राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरणका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत सुशील ज्ञवालीले बजेटको सीमालाई ध्यान दिएर खानेपानी, सडक, पुल लगायत सरकारका नियमित निकायबाट गरिने पुनर्निर्माण र गैरसरकारी संस्थाहरुबाट गरिने पुनर्निर्माणको बजेट कटाएर प्राधिकरणको मात्रै बजेट योजनामा समेटिएको जानकारी दिए ।
उनकाअनुसार विभागीय मन्त्रालयबाट हुने पुनर्निर्माणलाई अब प्राधिकरणको बजेटमा समेटिने छैन । बजेटभन्दा बाहिरबाट गैरसरकार संस्थाले गर्ने पुनर्निर्माणका कामलाई पनि प्राधिकरणको बजेटबाट अलग गरिएको छ । यसैले शुरुको अनुमान भन्दा ३ खर्ब बढी कम लागतमा प्राधिकरणको काम सकिने भएको हो ।
प्राधिकरणकाअनुसार आर्थिक वर्ष २०७५/०७६ को अन्त्यसम्म प्राधिकरणबाट कूल २ खर्ब ९१ अर्ब रुपैयाँ खचए भइसक्छ । आगामी आव ०७६/७७ का लागि १४१ अर्ब रुपैयाँ विनियोजन भइसकेको छ । प्रमुख कार्यकारी अधिकृत ज्ञवालीकाअनुसार पुनर्निर्माण तथा पुनस्र्थापनामा आवश्यक रकमको जोहो गर्न अर्थ मन्त्रालय र दातृ निकायसँग परामर्श भइरहेको छ ।
बुधबारको बैठकमा प्राधिकरणले पुनर्निर्माण र विपद् व्यवस्थापन गर्ने काममा स्थानीयकरण, सामाजिक आर्थिक तथा जीवीकोपार्जन कार्यक्रम सञ्चालन, परम्परागत सम्पदा बस्ती तथा शहरी क्षेत्रको पुनर्निर्माण एवं पुनर्निर्माण र पुनर्स्थापनासम्बन्धी अभिलेखिकरणमा थप सहयोग गर्न दातृ निकायलाई आग्रह गरेको थियो । बैठकले सुरक्षित नेपाल निर्माणका लागि राष्ट्रिय भवन आचारसंहितालाई संशोधन गर्दै स्थानीय तहसम्म लागू गर्नुपर्ने निर्णय गरेको छ ।
आगामी वर्ष अन्तरराष्ट्रिय सम्मेलन
प्राधिकरणको अवधि आगामी वर्ष सकिँदैछ । नेपालले पुनर्निर्माण तथा पुनस्र्थापनामा प्राप्त गरेको उपलब्धी, अनुभव र सिकाईलाई अन्तरराष्ट्रिय समुदायसम्म पुर्याउन आगामी वर्ष पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी अन्तरराष्ट्रिय सम्मेलन गर्ने निर्णय समितिले गरेको छ । ‘दातृ निकायको समेत सहयोगमा अन्तरराष्ट्रिय क्षेत्रमा नमूनायोग्य काम भएका छन् । त्यसलाई स्थापित गर्न र सिकाइ आदान प्रदान ��र्न अन्तराराष्ट्रिय सम्मेलन आयोजना हुनेछ,’ सीइओ ज्ञवालीले भने । उनका अनुसार ��ो लगानी सम्मेलन चाहिँ होइन ।
बैठकमा विश्व बैंकका कार्यबाहक कन्ट्री म्यानेजर केने एजेमेनारीले विभिन्न प्रतिकूलता हुँदाहुँदै पनि पुनर्निर्माणमा उल्लेखनीय भएको बताए । युरोपेली युनियनका हेड अफ कोअपरेसन ओभिडियो माइकले पुनर्निर्माणको क्षेत्रमा उल्लेख्य प्रगति भएको भन्दै आगामी दिनमा पनि सहयोग जारी राख्ने बताए । भारतीय दूतावासका डेपुटी चिफ अफ मिसन डा. अजयकुमारले नेपालको पुनर्निर्माणमा भारत सरकारले प्रतिबद्धता गरेको अनुदान तथा ऋण सहयोगका परियोजनाहरुलाई अगाडि लैजाने काम भइरहेको जानकारी दिए ।
चिनियाँ राजदूतावासका प्रतिनिधि लुअ सुआईले चीन सरकारले अन्तराष्ट्रिय पुनर्निर्माण सम्मेलनमा प्रतिबद्धता गरेअनुसार पुनर्निर्माणका काम भइरहेको जानकारी दिए । बेलायती सहयोग नियोग (डिफिड)को पुनर्निर्माणका विभागका टिम लिडर लियोनार्ड टेडले जोखिममा परेका वर्गका भूकम्प पीडिततर्फ ध्यान दिन सुझाव दिँदै बेलायत सहयोग गर्न तयार रहेको बताए ।
अमेरिकी सहयोग नियोग (युएसएआइडी)का परियोजना विकास अधिकृत एन्ड्रयु गोल्डाले युएसएडले क्षतिग्रस्त विद्यालय, शिक्षा तथा सञ्चार क्षेत्रमा सहयोग पुर्याइरहेको जानकारी दिँदै आगामी दिनमा पनि त्यसलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरे ।
एसियाली विकास बैंकका पोर्टफोलियो म्यानेजमेन्ट युनिटका प्रमुख रुडी भान डेइलले इन्डोनेसियाले विपद् जोखिम न्युनीकरणमा गरेका प्रयास नेपालका लागि पनि उदाहरणीय हुनसक्ने सुझाव दिए । उनी यसअघि इन्डोनेसियामा कार्यरत थिए ।
जापानी अन्तर्राष्ट्रिय सहयोग नियोग (जाइका)का कन्ट्री रिप्रेजेन्टटेभिज युमिको आशाकुमाले आफूले जिम्मेवारी पाएका क्षेत्रमा पुनर्निर्माणको राम्रो प्रगति भएको जानकारी दिए ।
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३ खर्ब घट्यो पुनर्निर्माणको लागत
५ असार, काठमाडौं । राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरणले भूकम्पपछिको पुनर्निर्माणको कूल लागत संशोधन गरी घटाएको छ । राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरण विकास सहायता तथा सहजीकरण समितिको बैठकले कूल अनुमान घटाएर ६ खर्ब ३० अर्बमा पुनर्निर्माण सम्पन्न हुने उल्लेख गरेको छ ।
यसअघि पुनर्निर्माणका सबै काम सम्पन्न गर्न ९ खर्ब ३८ अर्ब रुपैयाँ लाग्ने आंकलन गरेको थियो । वैशाख २०७३ मा तयार पारिएको विपद्पछिको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी पञ्चवर्षीय योजनाले पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनाका सबै काम सम्पन्न गर्न ९ खर्ब ३८ अर्ब रुपैयाँ लाग्ने अनुमान गरेको थियो ।
बुधबार बसेको विकास सहायता तथा सहजीकरण समितिको बैठकले प्राधिकरणले पेश गरेको ‘नेपालको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनामा ६ खर्ब ३० अर्ब रुपैयाँ लाग्ने संशोधित अनुमान र कार्यक्रम’ स्वीकृत गरेको हो । समितिले संशोधित अनुमानअनुसार कार्यक्रम कार्यान्वयन गर्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरेको छ ।
बैठकमा दातृ निकाय तथा विकास साझेदार संस्थाहरुले पनि विपद्पछिको पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी पञ्चवर्षीय योजनामा संशोधित कार्यक्रम र वित्तीय योजना अनुसार अघि बढ्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरेको प्राधिकरणले उल्लेख गरेको छ ।
राष्ट्रिय पुनर्निर्माण प्राधिकरणका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत सुशील ज्ञवालीले बजेटको सीमालाई ध्यान दिएर खानेपानी, सडक, पुल लगायत सरकारका नियमित निकायबाट गरिने पुनर्निर्माण र गैरसरकारी संस्थाहरुबाट गरिने पुनर्निर्माणको बजेट कटाएर प्राधिकरणको मात्रै बजेट योजनामा समेटिएको जानकारी दिए ।
उनकाअनुसार विभागीय मन्त्रालयबाट हुने पुनर्निर्माणलाई अब प्राधिकरणको बजेटमा समेटिने छैन । बजेटभन्दा बाहिरबाट गैरसरकार संस्थाले गर्ने पुनर्निर्माणका कामलाई पनि प्राधिकरणको बजेटबाट अलग गरिएको छ । यसैले शुरुको अनुमान भन्दा ३ खर्ब बढी कम लागतमा प्राधिकरणको काम सकिने भएको हो ।
प्राधिकरणकाअनुसार आर्थिक वर्ष २०७५/०७६ को अन्त्यसम्म प्राधिकरणबाट कूल २ खर्ब ९१ अर्ब रुपैयाँ खचए भइसक्छ । आगामी आव ०७६/७७ का लागि १४१ अर्ब रुपैयाँ विनियोजन भइसकेको छ । प्रमुख कार्यकारी अधिकृत ज्ञवालीकाअनुसार पुनर्निर्माण तथा पुनस्र्थापनामा आवश्यक रकमको जोहो गर्न अर्थ मन्त्रालय र दातृ निकायसँग परामर्श भइरहेको छ ।
बुधबारको बैठकमा प्राधिकरणले पुनर्निर्माण र विपद् व्यवस्थापन गर्ने काममा स्थानीयकरण, सामाजिक आर्थिक तथा जीवीकोपार्जन कार्यक्रम सञ्चालन, परम्परागत सम्पदा बस्ती तथा शहरी क्षेत्रको पुनर्निर्माण एवं पुनर्निर्माण र पुनर्स्थापनासम्बन्धी अभिलेखिकरणमा थप सहयोग गर्न दातृ निकायलाई आग्रह गरेको थियो । बैठकले सुरक्षित नेपाल निर्माणका लागि राष्ट्रिय भवन आचारसंहितालाई संशोधन गर्दै स्थानीय तहसम्म लागू गर्नुपर्ने निर्णय गरेको छ ।
आगामी वर्ष अन्तरराष्ट्रिय सम्मेलन
प्राधिकरणको अवधि आगामी वर्ष सकिँदैछ । नेपालले पुनर्निर्माण तथा पुनस्र्थापनामा प्राप्त गरेको उपलब्धी, अनुभव र सिकाईलाई अन्तरराष्ट्रिय समुदायसम्म पुर्याउन आगामी वर्ष पुनर्निर्माण र पुनस्र्थापनासम्बन्धी अन्तरराष्ट्रिय सम्मेलन गर्ने निर्णय समितिले गरेको छ । ‘दातृ निकायको समेत सहयोगमा अन्तरराष्ट्रिय क्षेत्रमा नमूनायोग्य काम भएका छन् । त्यसलाई स्थापित गर्न र सिकाइ आदान प्रदान गर्न अन्तराराष्ट्रिय सम्मेलन आयोजना हुनेछ,’ सीइओ ज्ञवालीले भने । उनका अनुसार यो लगानी सम्मेलन चाहिँ होइन ।
बैठकमा विश्व बैंकका कार्यबाहक कन्ट्री म्यानेजर केने एजेमेनारीले विभिन्न प्रतिकूलता हुँदाहुँदै पनि पुनर्निर्माणमा उल्लेखनीय भएको बताए । युरोपेली युनियनका हेड अफ कोअपरेसन ओभिडियो माइकले पुनर्निर्माणको क्षेत्रमा उल्लेख्य प्रगति भएको भन्दै आगामी दिनमा पनि सहयोग जारी राख्ने बताए । भारतीय दूतावासका डेपुटी चिफ अफ मिसन डा. अजयकुमारले नेपालको पुनर्निर्माणमा भारत सरकारले प्रतिबद्धता गरेको अनुदान तथा ऋण सहयोगका परियोजनाहरुलाई अगाडि लैजाने काम भइरहेको जानकारी दिए ।
चिनियाँ राजदूतावासका प्रतिनिधि लुअ सुआईले चीन सरकारले अन्तराष्ट्रिय पुनर्निर्माण सम्मेलनमा प्रतिबद्धता गरेअनुसार पुनर्निर्माणका काम भइरहेको जानकारी दिए । बेलायती सहयोग नियोग (डिफिड)को पुनर्निर्माणका विभागका टिम लिडर लियोनार्ड टेडले जोखिममा परेका वर्गका भूकम्प पीडिततर्फ ध्यान दिन सुझाव दिँदै बेलायत सहयोग गर्न तयार रहेको बताए ।
अमेरिकी सहयोग नियोग (युएसएआइडी)का परियोजना विकास अधिकृत एन्ड्रयु गोल्डाले युएसएडले क्षतिग्रस्त विद्यालय, शिक्षा तथा सञ्चार क्षेत्रमा सहयोग पुर्याइरहेको जानकारी दिँदै आगामी दिनमा पनि त्यसलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गरे ।
एसियाली विकास बैंकका पोर्टफोलियो म्यानेजमेन्ट युनिटका प्रमुख रुडी भान डेइलले इन्डोनेसियाले विपद् जोखिम न्युनीकरणमा गरेका प्रयास नेपालका लागि पनि उदाहरणीय हुनसक्ने सुझाव दिए । उनी यसअघि इन्डोनेसियामा कार्यरत थिए ।
जापानी अन्तर्राष्ट्रिय सहयोग नियोग (जाइका)का कन्ट्री रिप्रेजेन्टटेभिज युमिको आशाकुमाले आफूले जिम्मेवारी पाएका क्षेत्रमा पुनर्निर्माणको राम्रो प्रगति भएको जानकारी दिए ।
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किसान एग्रोका सञ्चालक ४ लाख धरौटी तिरेर छुटे
७ चैत, वीरगञ्ज । वीरगञ्जका उद्योगी श्यामकुमार तुल्स्यान ४ लाख रुपैयाँ धरौटीमा छुटेका छन् । जिल्ला अदालत पर्साले माग दावी गरेको धरौटी रकम तिरेर तुल्स्यान बुधबार छुटेका हुन् ।
उनी कृषि प्रायोजनका लागि आवश्यक पर्ने किटनासक विषादी, भिटामिन, जैविक मल उत्पादन गर्ने किसान एग्रो केमिकल्स उद्योगका सञ्चालक हुन् ।
जिल्ला प्रशासन कार्यालय पर्सा नेतृत्वको संयुक्त अनुगमन टोलीले २८ फागुनमा वीरगञ्ज महानगरपालिका-४ छपकैयास्थित उद्योगको गोदाममा छापा मारेकोे थियो । त्यस क्रममा गोदाम भनिए पनि त्यही ठाउँबाट उद्योग चलाएको पाइएको थियो । साथै सार्वजनिक हित प्रतिकुल हुनेगरी गतिविधि सञ्चालन गरेको पाइएपछि प्रशासनले उनलाई नियन्त्रणमा लिएको थियो ।
हिरासतमै रहेको बेला मधुमेह र उच्च रक्तचापको समस्या देखिएपछि तुल्स्यानलाई उपचारका लागि वीरगञ्ज हेल्थ केयर अस्पतालमा भर्ना गरिएको थियो ।
प्रहरीले अदालतबाट पहिलो पटक ७ दिनको म्याद थप गराइ कारबाही प्रक्रिया अघि बढाएको थियो ।
अनुसन्धानका लागि समय अपुग भएपछि अदालतमा पेश गर्दा दोस्रो पटक थप पाँच दिनको म्याद पाएको थियो ।
पछिल्लो पटक थपिएको म्याद बाँकी रहँदै अनुसन्धान पूरा भएको दावी गर्दै प्रशासनले बुधबार तुल्स्यानलाई अदालतमा पेश गरेको थियो ।
अदालतले तुल्स्यानसँग ४ लाख धरौटी माग दावी गरेको थियो । धरौटी बुझाएर रिहा भएपछि पनि तुल्स्यान बुधबार राति वीरगञ्ज हेल्थ केयरमा उपचारका लागि गएका थिए ।
भारतको दिल्लीमा नियमित स्वास्थ्योपचार गराउँदै आएका उनलाई अस्पतालका चिकित्सकले थप उपचारका लागि उतै जान सुझाव दिएको अस्पताल स्रोतले जनाएको छ ।
छापा मार्ने क्रममा उद्योगको गोदाममा म्याद गुज्रेको किटनाशक औषधिको पाउचमा मिति सच्याउने, अनुगमन टोलीले साइनबोर्ड नराखेको, नापतौलका प्रमाणपत्र फेला नपरेको, गोदामबाट समान बिक्री गर्ने गरिएको तर इजाजत नभएको, तयारी बस्तु तथा म्याद नाघेका बस्तु एकै ठाउँमा राखिएको र गोदाममा रि-प्याकिङ गर्ने गरेको पाएपछि प्याकिङ गर्ने कोठा र गोदाममा टोलीले शिलबन्दी गरी आवश्यक अनुसन्धान शुरु गरेको थियो ।
वीरगञ्ज महानगरपालिका-२४ रामगढवामा किसान एग्रो केमिकल्स उद्योग सञ्चालनमा छ । २०५४ फागुन ५ गते घरेलु तथा साना उद्योग कार्यालय बारामा कृषि पैदावारमा लाग्ने विभिन्न किसिमका औषधि तथा जैविक मल उत्पादन गर्ने उदेश्यले ४६ लाख २० हजार ६ सय ६७ रुपैयाँको लागतमा उद्योग स्थापना गरिएको थियो । तर पछि त��यसलाई रामगढवामा सारिएको थियो ।
उद्योगले २०५८ सालमा आन्तरिक राजश्व कार्यालय वीरगञ्जसँग लिएको स्थायी लेखा नम्बर लिँदा प्याकिङ मेटोरियल सम्बन्धी कारोबार, कीटनाशक औषधि उत्पादन गर्ने भनी उल्लेख छ ।
प्रशासनले उद्योगी तुल्स्यानमाथि मुलुकी अपराध संहिता ऐन २०७४ को परिच्छेद ५ ‘सार्वजनिक हित, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सुविधा र नैतिकता बिरुद्धका कसूर’ अन्र्तगत ‘सार्वजनिक हितविरुद्धको कसुर’को मुद्दा चलाएको छ ।
उनको मुद्दामा वकिलको बहस सुनिसकेपछि जिल्ला अदालत, पर्साका न्यायाधीश लीलाराज अधिकारीको इजलासले ‘धरौटी दिन सके लिनु र साधारण तारिकमा छाडिदिनु नत्र पूर्पक्षका लागि थुनामा पठाइदिनू’ भन्ने आदेश दिएका थिए । अदालतको आदेशअनुसार धरौटि रकम तिरेर तुल्स्यान छुटेको जिल्ला प्रशासन कार्यालय पर्साका प्रशासकीय अधिकृत एवं अनुगमन टोलीका संयोजक उज्वल बस्नेतले जानकारी दिए ।
मुलुकी अपराध संहिताको दफा १०९ मा झुक्यानमा पारी कुनै वस्तु बिक्री-वितरण गर्न नहुनेः व्यवस्था छ । जसमा कसैले खाद्य पदार्थ बाहेक कमसल वस्तुलाई असल वस्तु हो भनी वा एक वस्तुलाई अर्को वस्तु हो भन्ने भान पारी वा कुनै वस्तुमा त्यस्तो वस्तुको गुणस्तर घट्ने गरी मिसावट गरी बिक्री गर्न वा कुनै वस्तुमा रहेको लेवल साट्न वा म्याद नाघेको वस्तु बिक्री गर्न पाइदैन भनिएको छ । यदि त्यस्तो कसुर गरेको खण्डमा कसूर गर्ने वा गराउने व्यक्तिलाई तीन वर्षसम्म कैद वा तीस हजार रुपैयाँसम्म जरिवाना वा दुवै सजाय हुने उल्लेख छ ।
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अधिकार खोसे कानूनी उपचार खोज्ने स्थानीय सरकारको चेतावनी
१७ फागुन, काठमाडौं । स्थानीय सरकारहरुले संविधानले दिएको अधिकार खोस्ने प्रयास भए केन्द्र सरकारविरुद्ध अदालत जाने चेतावनी दिएका छन् ।
प्रदेश सरकारले केन्द्र सरकारप्रति असन्तुष्टि जनाइरहेका बेला गाउँपालिका महासंघ र नगरपालिका संघले संयुक्त रुपमा केन्द्र सकारलाई खबरदारी गरेका हुन् । संविधान प्रदत्त अधिकार समेत संकुचन गर्ने काम भइरहेको भन्दै दुबैले संविधानले अक्षरस पालना गर्नुपर्नेमा जोड दिएका छन् ।
संवैधानिकव्यवस्था अनुसार फागुन २० गतेभित्र साविकका पुराना संघीय कानुनहरु संविधान अनुकूल हुनेगरी संशोधन, खारेजी तथा नयाँ निर्माण गर्नुपर्ने अवस्था छ । तर, संघीय सरकारले संविधानको अनुसूची ८ मा रहेको एकल अधिकारलाई समेत खुम्च्याउने तथा हस्तक्षेप गर्नेगरी ऐन-कानून तर्जुमा गरिरहेको भन्दै स्थानीय सरकारहरुले आपत्ति जनाएका छन् ।
शुक्रबार काठमाडौंमा एक कार्यक्रम गरी नेपाल नगरपालिका संघ र गाउँपालिका राष्ट्रिय महासंघले संविधानले दिएको अधिकार खोसिए कानूनी उपचार खोज्न बाध्य हुने चेतावनी दिएका छन् ।
संघीय कानूनसँग प्रदेश कानून बाझिन नहुने र संघीय तथा प्रदेश कानूनसँग स्थानीय कानून बाझिन नहुने भएपनि त्यस्तो अवस्था नरहेको गाउँपालिका राष्ट्रिय महासंघका अध्यक्ष होमनारायण श्रेष्ठले बताए ।
स्थानीय तहको एकल अधिकारका क्षेत्रमा समेत प्रदेश र संघ सरकारबाट हस्तक्षेप हुनेगरी ऐन-कानून निर्माण गर्ने काम भइरहेको उनले बताए । साझा अधिकारको सन्दर्भमा समेत नीति तथा मापदण्ड बनाउन संघीय सरकारले स्थानीय तथा प्रादेशिक सरकारसँग समन्वय नगरेको महासंघका अध्यक्ष श्रेष्ठले बताए ।
नगरपालिका संघका अध्यक्ष अशोक व्याञ्जु श्रेष्ठले फास्ट ट्र्याकका नाममा प्रादेशिक र स्थानीय तहका अधिकार कटौती नगर्न आग्रह गरे ।
संघीय ईकाईबाट गर्ने सं��चनासहितको विधेयकहरु सरोकारवालासँग सहकार्य र समन्वय बिनानै संसदमा पेश गर्ने तयारी भइरहेकोप्रति आफूहरुको गम्भिर ध्यानाकर्षण भएको उनले बताए । संविधानको अनसूची ८ मा रहेको २२ वटा एकल अधिकारको प्रयोग धारा ५७ -४) बमोजिम स्थानीय संसदबाट कानुन बनाइ प्रभावकारी कार्यान्वयन गर्न दिनुपर्नेमा संघ सरकारका विभिन्न मन्त्रालयहरु अधिकार केन्द्रीकृत गर्न लागि परेको उनले बताए ।
‘साझा अधिकारको प्रयोग पनि एकलौटी रुपमा गर्न लागिरहेको भान हुन्छ, तसर्थ स्थानीय सरकारका एकल अधिकारका क्षेत्रमा संघीय कानूनले हस्तक्षेप नगर्न र साझा अधिकारको बाँडफाँट, नीति र मापदण्ड निर्माण गर्न तीनतहकै सरकारसँग समन्वय, सहकारिता संवैधानिक सिद्धान्तअनुसार अघि बढ्न संघीय सरकारको ध्यानाकर्षण गराउन चाहन्छौं’, दुई संगठनले जारी गरेको ध्यानाकर्षण पत्रमा भनिएको छ ।
सहकार्यको अभ्यास भएन
संघ, प्रदेश र स्थानीय तहबीचको सम्बन्ध सहकारिता, सहअस्ति समन्वयको सिद्धान्तमा आधारित हुने संवैधानिक व्यवस्था छ ।
तीन तहबीचको समन्वय कायम गर्न संघीय संसदले सोही अनुरुपको कानुन बनाउने पर्ने व्यवस्था धारा २३५ -१) मा छ । तर, हालसम्म पनि त्यस्तो अभ्यास नभएको स्थानीय तहका जनप्रतिनिधिको गुनासो छ । संविधान र स्थानीय सरकार सञ्चालन ऐन, २०७४ बमोजिम स्थानीय तहमा हस्तान्तरण हुनु पर्ने जिल्ला स्थित विषयगत कार्यालयहरुलाई अनेक बहाना र नाममा संरचना खडा गरी जिल्लामा नै राख्न थालिएको गाउँपालिका महासंघ र नगरपालिका संघको आरोप छ ।
‘ति निकायले गर्ने काम स्थानीय तहमा प्रत्योजन भइसकेको अवस्थामा तत्काल स्थानीय सरकारलाई नै हस्तान्तरण हुनुपर्दछ । कार्यबोझको आधारमा संरचना निर्माण गर्नुको सट्टा कर्मचारी हेरेर संरचना स्थापना गर्ने उल्टो बाटोबाट संघीयताको औचित्यतामाथि नै प्रश्न उठ््ने तर्फ तीन तहकै सरकार बेलैमा सचेत हुनुपर्दछ’, पत्रमा उल्लेख छ ।
अधिकार खोस्न लागियो
शिक्षा, वन, उद्योग, स्वास्थय लगायतका संघीय ऐन, कानूनका मस्यौदाले स्थानीय सरकारहरुको संवैधानिक क्षेत्राधिकारलाई नै संकुचन गर्न लागेको स्थानीय तहहरुको गुनासो छ । तर्जुमा भइरहेका ऐन, कानून र मस्यौदा तत्काल सुधार गरेेर मात्र बिधेयक संसदमा लैजान ७५३ स्थानीय तहको माग छ ।
संविधानको अनुसूची ५, ६ र ८ मा एकल अधिकारको रुपमा संविधानले नै बाँडफाँट गरिसकेको अधिकारलाई फेरि केन्द्रीकृत गर्न खोज्ने मानसिकता संघीयताको भावना र मर्म बिपरित हुने उनीहरुको भनाइ छ । स्थानीय सरकारसँग प्रत्यक्ष सरोकार राख्ने ऐन, कानूनको मस्यौदामा अधिकार कटौती र केन्द्रीकृत गरी स्थानीय तहलाई असफल पार्ने षड्यन्त्र भइरहेको उनीहरुको तर्क छ ।
संविधान प्रदत्त अधिकारको कानुन मार्फत प्रभावकारी रुपमा प्रयोग गर्न सबै स्थानीय तहलाई गाउँपालिका महासंघ र नगरपालिका संघको आग्रह छ । स्थापित अधिकार संकुचन गर्नेतर्फ संघ र प्रदेश सरकार लाग्नुको सट्टा प्रभावकारी प्रयोगमा स्थानीय सरकारलाई सहजीकरण गर्न दिने अपेक्षा उनीहरुले गरेका छन् ।
अन्यथा नागरिकले आफू नजिकै प्राप्त अधिकारको रक्षा र प्रयोगको लागि दबावमूलक गतिबिधि सञ्चालन तथा कानून उपचार खोज्न बाध्य नपार्न गाउँपालिका महासंघ र नगरपालिका संघको चेतावनी छ ।
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कंगनाको ‘मणिकर्णिका’ किन विवादित बन्दैछ ?
त्यसो त अभिनेत्री कंगना रनवतलाई बलिउडमा दुई भिन्न डाइमेन्सनबाट हेरिन्छ । एकातिर उनले फिल्ममा जुन हिरोइज्म कायम राखेकी छिन्, त्यसको खुलेर तारिफ गरिन्छ । अर्कोतिर उनले जुन विवाद निम्त्याएकी छिन्, त्यसले उनको छवि धुमिल बनाइदिएको छ ।
कंगना यस्ती अभिनेत्री हुन्, जसले फिल्ममा आफ्ना पुरुष को-स्टारभन्दा बढी पारिश्रमिक लिने गर्छिन् । यसअघि उनले शाहिद कपुरलाई उछिनेर बढी पारिश्रमिक लिएको चर्चाले बलिउड तातिएको थियो । ठिक सोही समयमा उनले ऋतिक र���शन लगायत बलिउड अभिनेताहरुसँग जोडेर केही विवादित तर्कहरु पेश गरिन् । यसले उनलाई फाइदा होइन, बेफाइदा भयो । एकपछि अर्को विवादमा तानिदै र झुट सावित हुँदै गएकी उनलाई बलिउड इभेन्टमा समेत निम्तो गर्न छाडिएको चर्चा चल्यो ।
यसैबीच उनी ‘मणिर्कणिर्का’ जस्तो ऐतिहासिक र विग बजेट फिल्ममा काम गर्न थालिन् । यो फिल्म पनि विवादरहित हुन सकेन । सुरुदेखि नै यसले अनेकन विवाद झेल्नुपर्यो ।
फिल्मको सुरुवातमा अभिनेता सोनू सूदले फिल्म छाडे । पछि निर्देशकले पनि फिल्मबाट हात झिके । आखिरमा कंगनाले निर्देशनको कप्तानी सम्हालिन् । मणिकणिर्काका लागि कंगनालाई नै निर्देशनको क्रेडिट पनि मिल्यो ।
यसै साता ‘मणिककणिर्का’को ट्रेलर सार्वजनिक भएको छ । ट्रेलरमा कंगनालाई शानदार रुपमा पेश गरिएको छ । यद्यपी यो ट्रेलर हेरिरहँदा त्यसले फिल्म ‘जोधा अकबर’, ‘बाहुबली’कै झल्को दिन्छ । अर्थात यसमा नयाँ स्वाद पाइदैन ।
हुन त ट्रेलर सार्वजनिकसँगै कतिले यसलाई ‘ब्ल्कबस्टर’ फिल्मको तक्मा झुन्ड्याइदिएका छन् । कतिपयले भने यसको धज्जी पनि उडाएका छन् ।
फिल्मको ट्रेलरमा कंगनाको एक्सन दृश्य निकै तगडा छ । यद्यपी यसमा देखिने कतिपय दृश्य तपाईंले यसअघि अरु नै फिल्ममा देखेको भान हुन्छ ।
ऋतिक रोशनको फिल्मको एक डायलग हुबहु मणिकणिर्कामा लिइएको छ । जस्तो कि, ‘तू मोहेनजो दारो पर राज करना चाहता और मैं सेवा ।’ त्यसैगरी मणिकणिर्काको ट्रेलरको अन्त्यमा कंगना भन्छिन्, ‘झांसी दोनों को चाहिए, तुझे राज करना है और मुझे झांसी की सेवा करनी है ।’
हुन त ऐतिहासिक फिल्मका कतिपय पात्र, प्रवृत्ति र दृश्य मेल खान सक्छ । यसैगरी मणिकणिर्कामा पनि एउटा दृश्य हुवहु मिलेको भन्दै आलोचना गरिएको छ । उक्त दृश्य बाजीराव मस्तानीको जस्तै छ । दृश्यमा राजगद्दीमा बसेको पोज उस्तै देखिन्छ ।
बाहुबली -२ मा सबैभन्दा दमदार दृश्य थियो, हात्तीको सुँढमा टेकेर चढेको । त्यस्तै दृश्य मणिकणिर्कामा पनि देखिन्छ ।
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प्रसाद चलचित्रः सुपाच्य छ कि अपाच्य ?
बजारमा मुडेको आलु बिक्छ कि, भकुण्डेबेंसीको मकै भनेर सोही बमोजिम दोकान थाप्ने रक्षात्मक मानसिकताले होइन, नयाँ खुराक पेश गर्नुपर्छ भन्ने चुनौती उठाएको चलचित्र हो, प्रसाद ।
यो चलचित्र हेरेर पेट मिचीमिची हाँस्नु हुनेछैन, धुरुधुरु रुनुहुने पनि छैन । कथा सरल छ, प्रस्तुती सरस छ । सामान्य पात्र छन्, स्वभाविक घटनाक्रम छन् । तर, प्रसाद हेरिरहँदा ‘फोकट’ वा ‘जोतको’ लाग्नेछैन । घत लाग्नेछ ।
घत यसकारण लाग्नेछ कि, सिनेमाभित्र पोखिने मानविय संवेग, करुणा, अत्यास, भय, आक्रोशले मनलाई स्थिर रहन दिनेछैन । त्यही अस्थिरताले दर्शकको आँखा दुईघण्टा १५ मिनेट अविचलित पर्दामा अडिनेछ ।
कस्तो छ कथा ?
चलचित्रको कथा नयाँ, नौलो, आश्चर्यलाग्दो, उदेगलाग्दो छैन । हाम्रो समाजसँग दिनहुँ ठोक्किने विषयमाथि कथा बुनिएको छ । कथा, निसन्तान दम्पतीको हो ।
तर, चलचित्र निसन्तान हुनुको पीडा–व्यथामाथि बिलौना गर्दैन । समाजसँग गुनासो पनि गर्दैन । जैविक त्रुटीले उत्पन्न गराउने भावनात्मक द्वन्द्वमा कथानक मोडहरु आउँछन् । त्यही मोडहरुमा ठोक्किदै यसका तीन केन्द्रीय पात्र ��ारायणी कार्की (नम्रता श्रेष्ठ), बाबुराम परियार (विपीन कार्की) र रमेश (निश्चल बस्नेत)को जीवन–चक्र घुमिरहन्छ ।
अन्र्तजातिय विवाहपछि ग्रामीण समाजबाट लखेटिएका नारायणी कार्की र बाबुराम परियार काठमाडौंको कुनै अनाम गल्लीमा कोचिएका छन् । एउटै कोठामा भान्सा, एउटै कोठामा ओछ्यान ।
बाबुराम आफ्नो पेशागत सीप अर्थात कपडा सिलाउने काम गरेर शहरमा दुई ज्यान पाल्ने यत्नमा छन् । नारायणी एक निजी विद्यालयमा सहयोगीको काम गर्छिन् ।
नारायणी सुन्दर छिन्, सुशील छिन्, पतिभक्त छिन् ।
औसत रुपरंगका श्रीमानसँग उनको कुनै अपेक्षा छैन । अभाव जरुर छ । तर, त्यसप्रति पनि उनमा पीडावोध छैन । बरु भौतिक दुःख–अभावलाई छिचोल्ने चोट उनीभित्र छ । उनको हृदयभित्र छ । त्यही आलो चोटले नारायणीको रंगीन जीवन क्रमस फिका र उजाड बनाउँदै लान्छ ।
त्यो अदृश्य चोटले कसरी एउटा प्रेमिल दम्पतीको जीवनमा आँधीबेहेरी ल्याउँछ ? यस्तै उत्सुकता मेट्दै २ घण्टा लामो चलचित्रले विट मार्छ ।
किन हेर्ने ?
यस चलचित्रले नविन, अग्र्यानिक, मौलिक कथा पस्किएको छ भनेर भनिरहनु भन्दा पनि बिना तडकभडक दर्शकको मनोवेगसँग कसरी अन्र्तक्रिया गर्छ भन्ने कुरा हो ।
धेरै पात्र छैनन्, धमकेदार संवाद छैन, न कामुक नृत्य छ, न धुमधडक फाइट । भव्य सेट, लोभलाग्दो लोकेसन, चकित तुल्याउने तामझाम केही छैन । यति हुँदाहुँदै पनि ‘प्रसाद’ एकोहोरो एवं पट्यारलाग्दो छैन । बरु स–सना तत्वले यसलाई सुरुचिपूर्ण बनाएको छ ।
६ दशक लामो इतिहास बोकेको नेपाली चलचित्रसँग अझैपनि एउटा प्रश्न ज्यूँको त्यूँ छ । कति चलचित्र प्रयोग गरिरहेको, कति चलचित्र अन्तर्राष्ट्रियकरण भइरहेको, कति चलचित्रले व्यवसायिक उत्कर्ष हासिल गरिरहेको वर्तमान सन्दर्भमा त्यो प्रश्न थप पेचिलो बनेको छ । प्रश्न हो, सिनेमा कस्तो हुनुपर्छ ?
प्रश्नको जवाफ प्रसादमा खोज्न सकिन्छ, आशिंक भएपनि । चलचित्र चलाउनका खातिर कुनै कलाकारको स्टारडमलाई दाउमा राख्नुपर्दैन, अनगिन्ती कलाकारको टेको लगाइरहनुपर्दैन, आइटम गीत राख्नुपर्दैन, ड्रोन उडाएर आश्चर्यलाग्दो दृश्यांकन गरिरहनुपर्दैन । सामान्य कथामा, सरल ढंगले पनि रहरलाग्दो दृश्यभाषा निर्माण गर्न सकिन्छ । प्रसादले यसै भन्छ ।
यसमा निर्देशकको उपस्थिति एवं नि��न्त्रण पनि अनुभव गर्न सकिन्छ । उनले सबै पात्र र दृश्यमाथि लगाम खिचेका छन् । कतिपय दृश्य प्रतिकात्मक छन् । जस्तो कि, नारायणीमाथि बलात्कार भइरहँदा पानी दर्केको, बाबुरामको उल्टो जुत्ता आदि ।
चलचित्रमा विपीन कार्की, नम्रता श्रेष्ठले नारायणी र बाबुरामको आवरणमा आफुलाई जसरी रुपान्तरण गरेका छन्, त्यो शक्तिशाली पक्ष हो । त्यही शक्तिले बाग्लुङ क्षेत्रका एक निरिह दम्पतीसँग दर्शकले सोझो मनोवाद गर्न सक्छन् । उनीहरुको कथा–व्यथामा एकाकार हुन सक्छन् ।
हेपिएका, पेलिएका, खेदिएका र आफैभित्रको अन्र्तद्वन्द्वले थलिदै गएको विवाहित पुरुषको रुपमा विपिनको चरित्र निर्माण गरिएको छ । उनको हाउभाउ, बोलीचाली, मनोविज्ञान कति पनि विचलित छैन । यो पात्र कम्ता घतलाग्दो छैन । बाबुरामको निरिह, विवश र अवोधपनले दर्शकलाई कहिले हसाउँछ, कहिले भावुक बनाउँछ ।
नम्रताले पनि आफ्नो चरित्रलाई प्राण दिएकी छिन् । निश्चलको अभिनय औसत छ । बरु मासु पसले एवं बाबुरामकै सहयोगीको रुपमा प्रकाश गन्धर्वले सम्झन लायक अभिनय गरेका छन् । सामान्य भूमिका सही, जब–जब उनको आगमन हुन्छ दर्शकले बेग्लै रोमाञ्चकता अनुभूत गर्छन् ।
फिल्मको पाश्र्व संगीत जोडदार छ । यसले कथालाई थप बेगवान बनाएको छ । कथाको मर्म अनुसार दुईवटा गीतलाई स्थान दिइएको छ ।
के छ कमजोर पक्ष
चलचित्र जति छरितो हुनुपथ्र्यो, त्यो छैन । निश्चल बस्नेतलाई ‘स्पेश’ दिनकै लागि कतिपय दृश्य तन्काइएको जस्तो भान हुन्छ, जो छाँट्न सकिन्थ्यो । निश्चल र उनकी श्रीमतीसँगका दृश्य, संवाद झर्को लाग्न सक्छ ।
निश्चल अर्थात रमेशको द्वैध चरित्र सुरुदेखि नै छर्लङ छ, जसलाई रहस्यमा राख्न सकेको भए दर्शकको मन बढी उथलपुथल हुने थियो ।
केन्द्रिय पात्र बाबुराम र नारायणीलाई बढी केन्द्रित गरिरहँदा फ्रेममा समेटिने साहयक पात्रको हाउभाउ, बोलीचालीमा ध्यान दिइएको छैन । जस्तो, नारायणीले काम गर्ने विद्यालयमा एक पुरुष अभिभावकले बोल्ने संवाद, आफ्नो बच्चालाई चोट लागेको आवेगमा महिला अभिभावकले पोखेको धाराप्रवाह गाली सुहाउँदिलो छैन ।
कथालाई जुन ढंगबाट बिट मारिएको छ, त्यो पुरातन शैली हो । यसमा केही नयाँपन दिने जोखिम उठाइएको छैन ।
यद्यपि समग्रमा प्रसाद हेर्नलायक, मनन गर्नलायक चलचित्र हो । विपीन कार्की, नम्रता श्रेष्ठका प्रशंसकका लागि त यो सुपाच्य र स्वादिलो खुराक नै हो ।
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