#होम जो हरि कै हेत । यज्ञ पंचमी तुझ कहूं
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#GodMorningThursday गरीब#दान ज्ञान प्रणाम करि#होम जो हरि क��� हेत । यज्ञ पंचमी तुझ कहूं#ध्यान कमल सुर सेत । ।
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#GodMorningThursday
गरीब, दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत ।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत
#SaintRampalJiQuotes
#सत_भक्ति_संदेश
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5 यज्ञ
गरीब, दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत ।।
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अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ।
@SaintRampalJiM
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( #Muktibodh_Part259 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part260
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 498-499
◆ सरलार्थ :- इन वाणियों में दान-पुण्य करने का ज्ञान है। बताया है कि जो दान नहीं करते, उनका भविष्य नरक बन जाता है। दान-धर्म के अनुष्ठान यानि धर्म यज्ञ व अन्य यज्ञ करने से भक्ति ऐसे सफल होती है जैसे खेत में किसान बीज बो कर बाद में समय-समय पर सिंचाई करता है जिससे बीज उगता है। पौधा बनकर अन्न देता है। इसी प्रकार भक्ति मार्ग में नाम तो बीज है। यज्ञ (धर्म यज्ञ, ध्यान यज्ञ, हवन यज्ञ, प्रणाम यज्ञ, ज्ञान यज्ञ)
सिंचाई का कार्य करती हैं। यदि दीक्षा लेकर यज्ञ नहीं की तो भक्ति सफल नहीं होती। पारख के अंग की वाणी नं. 1209 में पाँच यज्ञ बताई हैं :-
गरीब, दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत। यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत।।1209।।
अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ। ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरू जी के आदेशानुसार करनी चाहिएँ।
◆ जैसे पूर्व की वाणियों में तैमूरलंग को परमात्मा मिले। इसका कारण है कि किसी जन्म में यह आत्मा, परमात्मा कबीर जी की शरण में आकर साधना किया करती थी। सुख होने
पर काल तुरंत परमात्मा को भुलाता है। तैमूरलंग ने फिर अनेकों पशु-पक्षियों के जन्म भोगे।
जब मानव जन्म हुआ। धर्म के अभाव में निर्धन घर में जन्मा। यह पिछला टांका रह गया था।(1181)
◆ जीवन रूपी गाड़ी पाप कर्मों की कीच (कीचड़) में धंस जाती है तो धर्म उस गाड़ी को पाप रूपी कीचड़ से निकालने वाला (धोरी) दमदार बैल है।(1182)
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1183-1186 :-
गरीब, धरम धसकत है नहीं, धसकैं तीनूं लोक।
खैरायतमें खैर हैं, कीजै आत्म पोष।।1183।।
गरीब, धर्म बिना ऐसा नरा, जैसी बंझा नार।
बिन दीन्या पावै नहीं, सुन्हा भया गंवार।।1184।।
गरीब, साधु संत सेये नहीं, करी न अन्नकी सांट।
कुतका बैठया कमरि में, हो गया बारह बाट।।1185।।
गरीब, धर्म बिना धापै नहीं, योह प्रानी प्रपंच।
आश बिरांनी क्यूं करै, दीन्हा होय तो संच।।1186।।
◆ सरलार्थ :- धर्म कभी नष्ट नहीं होता। तीनों लोक नष्ट हो जाते हैं। (खैरायत) दान-धर्म करने से (खैर) बचाव है। इसलिए धर्म-भण्डारा (लंगर) करके धर्म करना चाहिए।(1183)
◆ जो धर्म नहीं करते, उनको भक्ति का कोई लाभ नहीं मिलता। उदाहरण दिया है कि जैसे बांझ स्त्री का विवाह भी हो जाता है, परंतु संतान नहीं होती। इसी प्रकार धर्म बिना भक्ति
सफल नहीं होती, उल्टा (सुन्हा) कुत्ते का जीवन प्राप्त करता है। सतगुरू से दीक्षा ली नहीं, अन्न की सांट नहीं की यानि अन्न दान (भोजन नहीं कराया) नहीं किया तो कुत्ता बनकर घर-घर जाता है। कहीं-कहीं उसकी कमर पर (कुतका) मुगदर लगाया जाता है। हाय-हाय करता फिरता है।(1184-1185)
◆ धर्म किए बिना आत्मा की संतुष्टि नहीं होती। अन्य सब प्रपंच है। यदि पूर्व जन्म में या इस जन्म में दान किया है तो धन मिलेगा, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा।(1186)
◆ वाणी नं. 1187-1192 का सरलार्थ :- बली राजा ने सौ यज्ञ की थी। परमात्मा बावना रूप धारण करके आया था। यह धर्म का प्रभाव था कि परमात्मा को आना पड़ा। राजा बली भक्त प्रहलाद का पोता था। पिता क���
नाम बैलोचन था। राजा बली ने चार यज्ञ की थी। बावन रूप परमात्मा को आना पड़ा।
◆ वाणी नं. 1190-1191 :-
गरीब, एक यज्ञ है धर्म की, दूजी यज्ञ है ध्यान।
तीजी यज्ञ है हवन की, चौथी यज्ञ प्रणाम।।1190।।
गरीब, च्यारि बेद का मूल सुनि, स्वसंबेद संगीत।
बलिकौं ये चारौं करी, बावन उतरे प्रीति।।1191।।
◆ सरलार्थ :- जो चार यज्ञ राजा बली ने की, वे हैं 1.धर्म यज्ञ, 2. ध्यान यज्ञ, 3. हवन यज्ञ, 4. प्रणाम यज्ञ।
◆ बलि को कुछ समय के लिए पाताल लोक में छोड़ दिया है। वह वर्तमान इन्द्र के शासन काल को पूरा होने के बाद इन्द्र की गद्दी पर बैठकर स्वर्ग का राज करेगा। इतना अमर किया है बली को।(1192)
◆ दान करने से मानव शरीर भी मिलता है। उसको मिलता है जो गुरू बनाकर धर्म करता है, यज्ञ करता है। एक बार दुर्भिक्ष गिरा था। एक धर्मात्मा ने प्रतिदिन एक (बूक) आंजला चनों की बाकली बनाकर प्रत्येक व्यक्ति को बाँटा था। वह सेठ उसके धर्म के कारण
कई बार चक्रवर्ती राजा बना था।(1193)
◆ वाणी नं. 1194-1195 :-
गरीब, नाम सरीखा दान है, दान सरीखा नाम।
सुनहीकौं भोजन दिया, तीनि छिके बलिजांव।।1194।।
गरीब, बुढिया और बाजींदजी, सुनहीकै आनंद।
रोटी चारौं मुक्ति हैं, कटैं गले के फंद।।1195।।
◆ सरलार्थ :- एक समय बाजीद राजा राज्य-घर त्यागकर जंगल में साधना कर रहे थे। एक कुतिया ने 8 बच्चों को जन्म दिया। उसको बहुत भूख लगी थी। एक बुढि़या अपनी 4 रोटी कपड़े में बाँधकर खेत में काम के लिए जा रही थी। बाजीद ने कहा, माई! इस कुतिया को एक रोटी डाल दो, यह भूख से मरने वाली है, साथ में 8 बच्चे और मरेंगे। बुढिया चतुर थी, उसने कहा मेरे खून-पसीने की कमाई है, यह कैसे दे दूँ? संत ने कहा कैसे रोटी
डालोगी? बुढि़या ने कहा आप अपनी भक्ति का चौथा भाग मुझे दे दो, मैं रोटी डाल दूँगी।
संत ने अपनी साधना का ( भाग संकल्प कर बुढि़या को दे दिया। वृद्धा ने एक रोटी कुतिया को डाल दी। फिर भी कुत्ती भूखी थी। करते-करते चारों रोटी कुतिया को डाल दी और संत
बाजीद जी ने अपनी सर्व भक्ति कमाई वृद्धा को संकल्प कर दी। जिससे कुतिया (सुनही) तथा उसके बच्चों का जीवन बचा। रोटी देने से माई को भक्ति की कमाई प्राप्त हुई और बाजीद जी भक्ति पुण्यहीन हो गया, परंतु कुतिया और उसके बच्चों को जीवन दान देने के कारण स्वर्ग प्राप्ति हुई।
◆ वाणी नं. 1196 :-
गरीब, राजाकी बांदी होती, रोटी देत हमेश।
चक्र भये हैं दहूं दिशा, जीते जंग नरेश।।1196।।
◆ सरलार्थ :- एक राजा की (बांदी) नौकरानी धार्मिक थी। वह प्रतिदिन गरीबों को रोटी बाँटती थी। उसके कारण उस राजा ने कई राजाओं पर विजय ��्राप्त की। उसका राज्य
विशाल हो गया। जब उसने किसी ज्योतिषी से पता किया तो पता चला कि तेरी नौकरानी के द्वारा तेरे खजाने से किए रोटी दान से तुझे यह सफलता मिली है।
◆ वाणी नं. 1192-1202 का सरलार्थ पूर्व में वाणी नं. 41-47 के सरलार्थ में कर दिया है।
◆ वाणी नं. 1203 का सरलार्थ पहले इसी अंग में कर दिया है।
◆ एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ। एक राक्षस किसी भी शस्त्र से नहीं मर रहा था। एक ऋषि ने बताया कि इसकी मृत्यु ऋषि दधिचि की हड्डी के तीर से होगी।
ऋषि दधिचि ने अपने पैर की हड्डी दान कर दी। तब वह राक्षस मरा। यह परमार्थ केवल महात्मा ही कर सकता है।(1204)
क्रमशः_____
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#GodMorningThursday
"5 यज्ञ"
गरीब,दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत।।
अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए।
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GodMorningThursday
"5 यज्ञ"
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अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए।
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#GodMorningThursday
"5 यज्ञ"
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ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए।
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#ThursdayMotivation
"👉5 यज्ञ"
👉गरीब,दान ज्ञान प्रणाम करि,होम जो हरि कै हेत।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं,ध्यान कमल सुर सेत।।
👉अर्थात्(1)दान(धर्म)यज्ञ,(2)ज्ञान यज्ञ,(3)प्रणाम यज्ञ,(4)होम(हवन)यज्ञ,(5)ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए।🙏👇📺
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#GodMorningThursday
"5 यज्ञ"
गरीब,दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत।
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अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए।
💫🌷🌷🌷🌷💫
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#GodMorningThursday
"5 यज्ञ"
गरीब,दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत।
अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए
अवश्य देखिए साधना टीवी शाम 7:30 बजे
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#GodMorningFriday🙏🌺
गरीब, दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत ।🌹🍂
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत ।।🌻🌿
#SaintRampalJiQuotes 🙏🌷
#सत_भक्ति_संदेश🙏
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( #Muktibodh_Part258 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part259
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 496-497
‘‘दान-धर्म करने से लाभ’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1181-1248 :-
गरीब, पिछला टांका रहि गया, उतर्या हुकम हजूम।
तिबरलंग क��ौ कौंन है, आये मौलवी रूम।।1181।।
गरीब, गाडा अटक्या कीच में, ऊपर बैठे तिम।
बेलनहारा राम हैं, धोरी आप धरंम।।1182।।
गरीब, धरम धसकत है नहीं, धसकैं तीनूं लोक।
खैरायतमें खैर हैं, कीजै आत्म पोष।।1183।।
गरीब, धर्म बिना ऐसा नरा, जैसी बंझा नार।
बिन दीन्या पावै नहीं, सुन्हा भया गंवार।।1184।।
गरीब, साधु संत सेये नहीं, करी न अन्नकी सांट।
कुतका बैठया कमरि में, हो गया बारह बाट।।1185।।
गरीब, धर्म बिना धापै नहीं, योह प्रानी प्रपंच।
आश बिरांनी क्यूं करै, दीन्हा होय तो संच।।1186।।
गरीब, धर्म किया बलिरायकौं, ठानी इकोतरि जगि।
तहां बावन अवतार धरि, लिए समूचे ठगि।।1187।।
गरीब, कंपे स्वर्ग समूल सब, ऐसी यज्ञ आरंभ।
आसन सुरपति के डिगे, पान अपानं संभ।।1188।।
गरीब, हवन किए हरि हेत सैं, जप तप संयम साध।
बलि कै बावन आईया, देख्या अगम अगाध।।1189।।
गरीब, एक यज्ञ है धर्म की, दूजी यज्ञ है ध्यान।
तीजी यज्ञ है हवन की, चौथी यज्ञ प्रणाम।।1190।।
गरीब, च्यारि बेद का मूल सुनि, स्वसंबेद संगीत।
बलिकौं ये चारौं करी, बावन उतरे प्रीति।।1191।।
गरीब, अमर किए आसन दिये, सिंहासन सुरपति।
ऐसी जगि जगदीश की, ताहि मानियौं सत्य।।1192।।
गरीब, दान किए देही मिलै, नर स्वरूप निरबांन।
बूक बाकला देतहीं, चकवै भये निशान।।1193।।
गरीब, नाम सरीखा दान है, दान सरीखा नाम।
सुनहीकौं भोजन दिया, तीनि छिके बलिजांव।।1194।।
गरीब, बुढिया और बाजींदजी, सुनहीकै आनंद।
रोटी चारौं मुक्ति हैं, कटैं गले के फंद।।1195।।
गरीब, राजा की बांदी होती, रोटी देत हमेश।
चक्र भये हैं दहूं दिशा, जीते जंग नरेश।।1196।।
गरीब, इंद्र भये हैं धर्म सैं, यज्ञ हैं आदि जुगादि।
शंख पचायन जदि बजे, पंचगिरासी साध।।1197।।
गरीब, सुपच शंक सब करत हैं, नीच जाति बिश चूक।
पौहमी बिगसी स्वर्ग सब, खिले जा पर्बत रूंख।।1198।।
गरीब, कंनि कंनि बाजा सब सुन्या, पंच टेर क्यौं दीन।
द्रौपदी कै दुर्भाव हैं, तास भये मुसकीन।।1199।।
गरीब, करि द्रौपदी दिलमंजना, सुपच चरण पी धोय।
बाजे शंख सर्व कला, रहे अवाजं गोय।।1200।।
गरीब, द्रौपदी चरणामत लिये, सुपच शंक नहीं कीन।
बाज्या शंख असंख धुनि, गण गंधर्व ल्यौलीन।। 1201।।
गरीब, सुनी शंखकी टेर जिन, हृदय भाव बिश्बास।
जोनी संकट ना परै, होसी गर्भ न त्रास।।1202।।
गरीब, दान अभैपद अजर है, नहीं दूई दूर्भाव।
जगि करी बलिरायकूं, बावन लिये बुलाय।।1203।।
गरीब, दिया दान दधीचिकौं, पांसू धनक धियान।
तेतीसौं कुरनसि करैं, हो गये पद प्रवान।।1204।।
गरीब, दान वित्त समान हैं, टोपी कोपीन टूक।
यासैं लघु क्या और है, साग पत्र गई भूख।।1205।।
गरीब, पीतांबरकूं पारि करि, द्रौपदी दिन्ही लीर।
अंधेकू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।1206।।
गरीब, देना जगमें खूब है, दान ज्ञान प्रवेश।
ब्रह्माकूं तौ जगि करि, बतलाई है शेष।।1207।।
गरीब, दान ज्ञान ब्रह्मा दिया, सकल सष्टिकै मांहि।
सूंम ��ूंम मांगत फिरैं, जिन कुछि दीन्ह्या नांहि।। 1208।।
गरीब, दान ज्ञान प्रणाम करि, होम जो हरि कै हेत।
यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत।।1209।।
गरीब, धर्म कर्म जगि कीजिये, कूवें बाय तलाव।
इच्छा अस्तल स्वर्ग सुर, सब पृथ्वी का राव।। 1210।।
गरीब, भूख्यां भोजन देत हैं, कर्म यज्ञ जौंनार।
सो गज फीलौं चढत हैं, पालकी कंध कहार।।1211।।
गरीब, कूवें बाय तलावड़ी, बाग बगीचे फूल।
इंद्रलोक गन कीजियें, परी हिंदोलौं झूल।।1212।।
गरीब, जती सती इंद्री दमन, बिन इच्छा बाटंत।
कामधेनु कल्प वक्ष पद, तास बार दूझंत।। 1213।।
गरीब, स्वर्ग नंदिनी दर बंधै, बिन इच्छा जौंनार।
गण गंधर्व और मुनिजन, तीनी लोक अधिकार।।1214।।
गरीब, पतिब्रता नारी घरौं, आंन पुरुष नहीं नेह।
अपने पति की बंदगी, दुर्लभ दर्शन येह।।1215।।
गरीब, माता मुक्ति सुनीतिसी, मैनासी पुरकार।
फकर फरीद फिकर लग्या, कूप कलप दीदार।।1216।।
गरीब, ऐसी जननी मात सत्य, पुत्र देत उपदेश।
और नार व्यभिचारिणी, यौं भाखत हैं शेष।।1217।।
गरीब, समुद्र तौ नघ देत है, इन्द्र देत है स्वांति।
नारी पुत्र देत हैं, ध्रुव कैसी लगमांति।।1218।।
गरीब, सात धात पथ्वी दई, सात अन्न प्रबीन।
वृक्षा नदियौं फल दिये, यौ नर मूढ कुलीन।। 1219।।
गरीब, जिन पुत्र नहीं जगि करी, पिण्ड प्रदान पुरान।
नाहक जग में अवतरे, जिनसैं नीका श्वान।।1220।।
गरीब, बिना धर्म क्या पाईये, चौदह भुवन बिचार।
चमरा चूक्या चाकरी, स्वर्गहूं में बेगार।।1221।।
गरीब, स्वर्ग स्वर्ग सब जीव कहैं, स्वर्ग मांहि बड दुःख।
जहां चौरासी कुंड हैं, थंभ बलैं ज्यूं लुक।।1222।।
गरीब, कुंड पर्या निकसैं नहीं, स्वर्ग न चितवन कीन।
धर्मराय के धाम में, मार अधिक बेदीन।।1223।।
गरीब, करि साहिब की बंदगी, सुमरण कलप कबीर।
जमकै मस्तक पांव दे, जाय मिलै धर्मधीर।।1224।।
गरीब, धर्मधीर जहां पुरुष हैं, ताकी कलप कबीर।
सकल प्रान में रमि रह्या, सब पीरन शिर पीर।।1225।।
गरीब, धर्म धजा फरकंत हैं, तीनौं लोक तलाक।
पापी चुनि चुनि मारिये, मुंख में दे दे राख।।1226।।
गरीब, पापीकै परदा नहीं, शिब पर कलप करंत।
माता कूं घरणी कहै, भस्मागिर भसमंत।।1227।।
गरीब, भसम हुये अप कलपसैं, शिबकूं कछु न कीन।
इस दुनियां संसार में, कर्म भये ल्यौलीन।।1228।।
गरीब, जिन्हौं दान दत्तब किया, तिन पाई सब रिद्ध।
बिना दानि व्याघर भये, तास पजाबै गद्ध।।1229।।
गरीब, ��र दिन्ह्ये कुरबांनजां नयन नाक मुखद्वार।
पीछैं कुछ राख्या नहीं, नर मानुष अवतार।।1230।।
गरीब, दान दया दरबेश दिल, बैराट फटक जो दिल।
दानी ज्ञानी निपजहीं, सूंम सदा ज्यूं सिल।।1231।।
गरीब, सूंम सुसरसैं शाख क्या, हनिये छाती तोर।
असी गंज बांटे नहीं, की��्ह्ये गारत गोर।।1232।।
गरीब, हरिचंद ऐसी यज्ञ करी, राजपाट स्यूं देह।
संगही तारालोचनी, काशी नगर बिकेह।।1233।।
गरीब, मरघट का मंगता किया, मुर्द पीर चिंडाल।
डायन तारालोचनी, राजा पुत्र काल।।1234।।
गरीब, उस डायन कूं तोरि है, हरिचंद हाथ खड्ग।
स्वर्ग मृत्यु पाताल में, ऐसी और न जगि।। 1235।।
गरीब, मोरध्वज मेला किया, जगि आये जगदीश।
ताम्रध्वज आरा धर्या, अरपन कीन्ह्या शीश।।1236।।
गरीब, अंबरीष आनंद में, यज्ञ रूप सब अंग।
दुर्बासाकूं दव नहीं, चक्र सुदर्शन संग।।1237।।
गरीब, राजा अधिक पुरुरवा, होमि दई जिन देह।
तीन लोक साका भया, अमर अभय पद नेह।।1238।।
गरीब, मरुत यज्ञ अधकी करी, पथ्वी सर्वस्व दान।
अनंत कोटि राजा गये, पद चीन्हत प्रवान।। 1239।।
गरीब, नगर पुरी भदरावती, जोबनाथ का राज।
श्यामकर्ण जिस कै बंध्या, खूंहनि अनगिन साज।।1240।।
गरीब, गये भीम जहां भारथी, श्याम कर्ण कौं लैंन।
भारथ करि घोरा लिया, तास यज्ञ तहां दैंन।।1241।।
गरीब, गोरख जोगी ज्ञान यज्ञ करी, तत्तवेत्ता तरबीत।
सतगुरु सें भेटा भया, हो गये शब्दातीत।।1242।।
गरीब, सेऊ समन जग करी, शीश भेद करि दीन।
सतगुरु मिले कबीर से, शीश चढे फिरि सीन।।1243।।
गरीब, कबीर यज्ञ जैसी करी, ऐसी करै न कोय।
नौलख बोडी बिस्तरी, केशव केशव होय।।1244।।
गरीब, यज्ञ करी रैदास कूं, धरै सात सै रूप।
कनक जनेऊ काढियां, पातशाह जहां भूप।।1245।।
गरीब, तुलाधार कूं जग करी, नामदेव प्रवान।
पलरे में सब चढि गये, ऊठ्या नहीं अमान।।1246।।
गरीब, पीपा तौ पद में मिल्या, कीन्ही यज्ञ अनेक।
बुझ्या चंदोवा बेगही, अबिगत सत्य अलेख।।1247।।
गरीब, तिबरलंग तौ जग करी, एक रोटी रस रीति।
बिन दीन्ही नहीं पाईये, दान ज्ञान सें प्रीति।।1248।।
क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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"5 यज्ञ"
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अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
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यज्ञ पंचमी तुझ कहूं, ध्यान कमल सुर सेत।।
अर्थात् (1) दान (धर्म) यज्ञ, (2) ज्ञान यज्ञ, (3) प्रणाम यज्ञ, (4) होम (हवन) यज्ञ, (5) ध्यान यज्ञ
ये पाँचों यज्ञ साधक को गुरु जी केआदेशानुसार करनी चाहिए
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