#हरिद्वार आश्रम
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
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भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० जुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ मैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डित, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसको कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से ��िनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में जहाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवनयापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं कर सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके विषय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक समय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को समाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों ��ें सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ की आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनातनी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्��ान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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🙏अब आपकी बारी
खासकर अपने बच्चों को बताएं
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜
📜
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜
📜
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
**********************
इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी सनातन भारतीय संस्कृति का ज्ञान हो।
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।
5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शौक में
4. मन्दिर में
5. कथा में
सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।
अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।
परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।
उदास हो?
कथाए पढो ।
टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।
फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......
सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।
व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।
ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।
श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।
.
''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...
''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...
खाने से पहले'पानी 'पीना
अमृत"है...
खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की
''पूजा'' है...
खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
''पीना औषधि'' है...
खाने के बाद 'पानी' पीना"
बीमारीयो का घर है...
बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...
ये बात उनको भी बतायें जो आपको "जान"से भी ज्यादा प्यारे है
रोज एक सेब
नो डाक्टर ।
रोज पांच बदाम,
नो कैन्सर ।
रोज एक निबु,
नो पेट बढना ।
रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।
रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहेरे की समस्या ।
रोज चार काजू,
नो भूख ।
रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।
रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।।
"चेहरे के लिए ताजा पानी"।
"मन के लिए गीता की बाते"।
"सेहत के लिए योग"।
और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।
अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।
जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...
अच्छा लगा तो मैने भी आपको भेज दिया, आप भी इस पुण्य के भागीदार बनें
*जय माँ सरस्वती*!! जय मां शारदा !! 🙏🙏🌹🌹
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माथुर ब्राह्मणों के गोत्र 7 हैं। ये प्राचीन सप्त ऋषियों की प्रतिष्ठा में उन्हीं के द्वारा स्थापित हुए थे। इनकी ऐतिहासिकता संदेह से परे है। इन सात गोत्रों के गोत्रकार ऋषियों की परम्परा में नाम इस प्रकार हैं।
दक्ष गोत्र
कुत्स गोत्र
वशिष्ठ गोत्र
भार्गव गोत्र
भारद्वाज गोत्र
धौम्य गोत्र
सौश्रवस गोत्र
दक्ष गोत्र परिचय
दक्ष गोत्र प्रजापति ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में सर्व प्रतिष्ठित प्रजापतियों के पति (10 ब्रह्मपुत्रों की धर्म परिषद के अध्यक्ष) रूप में सर्वोपरि सम्मानित थे। 9400 वि0पू0 की ब्रह्मदेव की मानसी सृष्टि के केन्द्र ब्रह्मपुर्या माथुर महर्षियों के क्षेत्र मालाधारी गली ब्रह्मपुरी पद्मनाभ स्थल के ये अधिष्ठाता थे।
आदि प्रयागतीर्थ मथुरा के उत्तरगोल सूर्यपुर में प्रजापत्य याज्ञ करके प्रजापति विभु स्वयंभू ब्रह्मदेव ने इन्हें समष्ट वेद-वेदज्ञ यज्ञ कर्मकर्ता प्रजापितयों का अधिष्ठाता नियुक्त किया था। ऋग्वेद में इनके मन्त्र हैं। देवों से पूजित होने और बड़े-बड़े यज्ञों, संस्कारों, धार्मिक कृत्यों के सर्बश्रेष्ठ नियन्ता होने के क���रण ये अपार विद्याओं के समुद्र तथा अपार द्रव्य राशि के स्वामी थे। इनका अपना विशाल आश्रम मथुरा के सुयार्श्व गिरि पर था ऐसी हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है।
इन्होंने अपने दक्षपुर (छौंका पाइसा) में महासत्र का आयोजन करके माथुर महर्षियों की ब्रह्मविद्या से अर्चना करके समस्त सुपार्श्व गिरि को सुवर्ण से आच्छादित कर उसकी शिखरों को रत्नों से देदीप्यमान कर उस समय (9400 वि0पू0) एक मात्र कर्मनिष्ठ लोकवंद्य देवपूजित माथुर चतुर्वेद ब्राह्मणों को दान में अर्पित कीं और उन्हें यह निर्देश दिया कि वे अनकी प्रदत्त पुण्य भूमि को खण्ड-खण्ड करके कभी विभाजित न करें उसका सम्मिलित रूप से उपभोग करते रहें।
उनके इस निर्देश पर भी उन ब्राह्मणों के वंशजों ने लोभ वश स्वर्ण बटोरकर उस शोभायमान पर्वत की श्री हीन करके कई खण्डों में विभाजित कर डाला। इस अनैतिक आचरण से खिन्न और कुपित होकर महामान्य दक्ष ने उन्हें शाप दिया कि वे लालची, कलही, भिक्षुक और कुल मान्यता से शून्य प्रतिष्ठा हीन हो जायेगें। महापुण्य दक्ष के सुपाश्व के विभिन्न शिखिर खण्ड मथुरा में आज भी पाइसा नामों से (गजा पाइसा, नगला पाइसा, शीतला पाइसा, कुत्स पाइसा, छौंका पाइसा) नामों से प्रसिद्ध हैं ध्यान देने की बात हे कि पाइसा शब्द का प्रयोग भारत के और किसी भी स्थान में कही भी प्रयुक्त नहीं है।
दक्ष यज्ञ- प्रजापति दक्ष ने अनेक बहु दक्षिणा युक्त यज्ञ किये। इनमें वह यज्ञ सर्वाधिक विख्यात है जिसमें इनका कन्या सती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राणों की आहुति दी तथा भगवान यछ्र के गण रूप से वीरभद्र द्वारा देवों और ऋषियों का महाप्रतारण हुआ। पुराणों के अनुसार महात्मा दक्ष के प्रसूति नाम की पत्नी से 16 कन्यायें हुई थीं। इनमें से 13 उन्होंने प्रजापति ब्रह्मा को दी अत: वे ब्रह्मदेव के श्वसुर होने से महान गौरव पद को प्राप्त हुए।
उन्होंने स्वाहा पुत्री अग्निदेव प्रमथ माथुर को दी जिससे वे माथुरों के गोत्रकार बनकर मातामह बने। उन्होंने स्वधा नाम की पुत्री पितगों को दौं अत: पितृगण भी उनकी जामाता बनकर श्राद्धों में आदर पाते रहे। उनको उबसे छोटी स्नेहमयी लाडली पुत्री सती थी जो त्र्यंवक रूद्रदेव को ब्याही गयी। इतने प्रधान देवों का पितृ तुल्य श्वसुर पदधारी होने से दक्ष को महाअभियान हो गया। एक वार ब्रह्माजी की सभा (ब्रह्म कुण्ड गोवर्धन शिखर) पर उनके पहुँचने पर सभी देवों ने उन���हें नमन और अभ्युत्थान दिया परन्तु भगवान रूद्र गम्भीर मुद्रा में बैठे रहे इससे उन्होंने रूद्र द्वारा अपना अपमान किया जाना अनुभव किया और प्रतिकार रूप में एक विशाल यज्ञमूर्ति प्रभविष्णु की अर्चना युक्त जो अष्टभुज धारी महाविष्णु थे एक यज्ञ का आयोजन मथुरा में यमुना तट पर कनखल तीर्थ में आयोजन किया।
इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने अहंकारवश रूद्र को आमन्त्रित नहीं करते हुए यज्ञवेदी पर उनका देव आसन भी नहीं स्थापित किया। देवी सती यज्ञ में बिना बुलाये ही माता पिता के स्नेह से आतुर होकर पधारीं और यज्ञ मण्डप में भगवान रूद्र का आसग न देख महाक्षुब्ध होकर यज्ञाग्नि के विशाल कुण्ड में दलांग लगाकर आत्माहुति दे दी। तब रूद्र भगवान की भृकुटी भंग से उनके गण वीरभद्र (भील सरदार) ने भूत सेना लेकर यज्ञ का विध्वंश किया जिसमें पूषा, भग, भृगु आदि सभासद ताड़ित और दण्डित हुए और अन्त में शिरच्छेद के बाद अजामुख दक्ष भगवान रूद्र कों शरणागत हुआ। भगवान रूद्र की यह एतिहासिक घटना 9358 वि0पू0 की है तथा ब्रह्मर्षि देश के मथुरा सूरसेनपुर में घटित हुई । विद्वान मूल तथ्यों से भटक जाने के कारण हरिद्वार इसे या अन्यत्र कहीं खोजते-फिरते हैं जबकि हरिद्वार (गंगाद्वार) भगीरथ के गंगावतरण के समय 4771 वि0पू0 में स्थापित हुआ।
मथुरा में यमुना के तठ पर अभी भी कनखस तीर्थ एक ���ति पुरत्तन पुराण वर्णित तीर्थ मौजूद है, यही समीप में भगवान रूद्र का त्र्यंवक (तिंदुक) तीर्थ तथा वीरभद्र गणों और मरूतों के युद्ध का स्थल मरूत क्षेत्र (मारू गली) सती मांता का पुरातन मठ (दाऊजी मन्दिर जहाँ क्षुरधारी मरूत ढाल बरवार वारे हनुमान के नाम से स्थित हैं। मथुरा में ही भूतनगर (नगला भूतिया) वीरभद्रेश्वरूद्रदेव , दक्षपुरी छौंका पाइसा तथा उसके निवासी दक्ष गोत्रिय माथुर छौंका वंश (महाक्रोधी , अभिमानी) अभी स्थित हैं। दक्ष की कथा विस्तार से भागवत आदि अनेक पुराणों में वर्णन की गयी है।
दक्ष वेद-प्रशस्त देव सम्मानित राजर्षि थें। इनके पुत्रों का वर्णन ऋग् 10-143 में तथा इन्द्र द्वारा इनकी रक्षा ऋग्0 1-15-3 में आश्विनी कुमारों द्वारा इन्हें बृद्ध से तरूण किये जाने का कथन ऋग्0 10-143-1 में है। वे दक्ष स्मृति नाम के धर्मशास्त्र के कर्ता है जिसमें आश्रम धर्म , आचार धर्म , आशीच , श्राद्ध, संस्कारों, व्यवहार धर्म तथा सुवर्ण दान के महान्म के प्रकरण कहे गये हैं।
मन्वन्तरों में समयों में सप्तऋषियों में आद्य स्थापना
मानव वंशों को "स्वस्वं चरित्र शिक्षेरेन प��थिव्यां सर्वमानवा:" का निर्णायक उद्घघोष प्रवर्तित करने वाले स्वायंभू मनुदेव के समय के सप्तऋषियों की धर्मपरिषद में माथुरों के आदि महापुरूषों में दक्ष आदि का प्रमाण है।
1- स्वायंभूमनु का मन्वन्तर काल 9000 वि0पू0 चैत्र शुक्ल 3 के समय उनके सप्तऋषि मण्डल में
1. आँगिरस, 2. अत्रि, 3. क्रतु, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. मरोचि, 7. वशिष्ठ समाहित थे।
इनमें से ब्रतु, पुलस्त्य , पुलह के वंश आसुरी सम्पर्क में आकर ब्रह्मर्षि देश से बाहर उत्तर, पश्चिम भूखण्डों एशिया यूरोप सुदूर दक्षिण आदि में चले गये। आँगिरस (कुत्स) , दक्ष (आत्रेय वंश) मरोचि (कश्यप धौम्यवंश) वशिष्ठ (वेदव्यास वंश) मुरा मण्डल में अनु राजधानी में रहे तथापि देव, दानव, आसुर पोरोहिव्यधारी इन वहिर्गत महर्षियों को भी विश्व संगठन प्रवर्तक मान मनु महाराज ने इन्हें मण्डल बाह्य नहीं किया।
2- स्वारोर्चिष मन्वतर- 9962 वि0पू0 भाद्र पद कृष्ण 3 के प्रवर्तन समय के सप्त ऋषियों में माथुर वंश के भार्गव गोत्रिय और्व तथा आंगिरस वंशज वृहस्पति देव, आत्रेय पुत्र निश्च्यवन अन्य 4 महर्षियों के मण्डल में स्थापित हुए। 3- उत्तम मन्वर - (8530 वि0पू0 पाल्गुन कृष्ण 3 को स्थापित) मन्वतन्र के सप्तऋषि मण्डल के वशिष्ठ वंशों माथुर महर्षि ऊध्ववाहु शुक सदन सुतया आदि सम्मानित हुए थे। 4- तामस मनु क मन्वंतर - (8360 वि0पू0 पौष शुक्ल 1 में) माथुरों का अग्नि (प्रमथ) वंश चैत्र ज्योर्तिधीम धात् आदि सदस्यों के रूप में स्थापित था। 5- रैवत मन्वंतर - (8186 वि0पू0 आषाढ़ शुक्ल 10) स्थापित में सप्तर्षि मण्डल में माथुर महामुमि वशिष्ठ के वंशज सत्यनेत्र, अर्ध्वबाहु, वेदबाहु, वेदशिरा आदि धर्म प्रवर्तक थे। 6- चाक्षुष मन्वंतर - (7428 वि0पू0 माघ शुक्ल 7) प्रवर्तित के सप्तर्षि मण्डल में भगवान आदि नारायण (गताश्रम नारायण) के अशंभूत्त विराट मत्स्यपति ब्रजमण्डल संस्थापक भगवान विराज, श्रीयमुना जी के पिता विवस्वान सूर्य परिवार के विवस्वंतदेव, सहिणु सुधामा, सुमेधा आदि माथुर मुनीन्द्र लोकधर्म प्रतिपालक रहे। इस मन्वन्तर में ही बैकुण्ठलोक के स्थापक भगवान बैकुण्ठनाथ (बैकुण्ठतीर्थ मथुरा) तथा विरजरूप में प्रभु दीर्घ विस्णु के लोक संस्थापक अवतार हुए। 7- वेवस्वत मन्वंतर - (6379 वि0पू0 श्रावण कृष्ण 8) प्रवर्तित के महाविश्व विस्तृत सप्तऋषि मण्डल में माथुर ब्राह्माणों के पूजनीय पुर्व पुरूष अत्रि (दक्ष गोत्र) , कश्यप (धौम्य पूर्वज) , यमदंग्नि (भार्गव गोत्र) परशुराम अवतार के पिता वशिष्ठ (महर्षि वेदव्यास के पूर्वज ) विश्वामित्र सौश्रवस गोत्र पूर्व पुरूष ) देवपूजित विश्वधर्म के संचालक थे। केवल गौतम महर्षि जो गौतम आश्रम (गोकर्ण) टीला कैलाश) पर रहते थे आंगिरसों से विरोध उत्पन्म हो जाने के कारण भगवान माहेश्वर रूद्र की अनुज्ञा से मथुरा त्याग कर कुवेरबन (वर्तमान वृन्दावन) में (गौतमपारा) बसाकर जाकर रह गये। इनके वंशज गौतम ब्राह्मण अभी भी इस स्थान पर बसते हैं। इन ऋषियों के वंशधर बाद के व्यतीत मन्वन्तरों में सप्तर्षि मण्डलों में भी स्थापिय रहे।
यह भी प्रमाणित तथ्य है कि इन सभी मन्वन्तरों की स्थापना आद्य मनु की पुरी मथुरा सूरसेनपुरी में ही परम्पराबद्ध रूप से होती रहीं और ये ब्रह्मर्षि देश के पवित्र देवक्षेत्र में जहाँ-तहाँ स्थापित हो धर्म प्रशासन चलाते रहे। इस प्रकार परम सुनिश्चित सुपुष्ठ इतिहास परम्परा और शास्त्र प्रमाण से माथुर ब्राह्मणों की प्राचीनता और पदगरिमा की प्रशस्त स्थिति स्पष्ट है। अनेक युगों में ऋषियों की उपस्थिति
प्राय: यह शंका उठाई जाती है कि देव और ऋषि एक ही रूप में प्राय: प्रत्येक काल और युग में उपस्थित दीखते हैं जिससे उनकी आयु और जीवन स्थिति में अति असंवद्धता प्रगट होती है। इस सन्दर्भ में शास्त्र पद्धति की एक महत्वपूर्ण बात हमें जान लेनी चाहिये। भारतीय परम्परा के संस्थापकों ने देवों ब्रह्मपुत्र ऋषियों के लिये अजरामर रूप में बने रहने के लिये अमरत्व की एक विशेष प्रक्रिया स्थपित की थी जिसके अनुसार जिन देवों और ऋषि-महार्षियों को त्रिकाल व्याप्त पदों पर प्रितष्ठित किये गये थे उनके वे पद पीठ आसन या गादी नाम से स्थिर थे। ब्रह्मा, इन्द्र , अग्नि, वरूण , कुवेर, यम, सूर्य , चन्द, आदि देव कोई एक व्यक्ति नहीं अपितु ये प्रतिष्ठा सपद थे। इन पदों पर एक व्यक्ति के पद मुक्त होने से तत्काल पूर्व ही दूसरे पदधारी की प्रतिष्ठा कर दी जाती थी जिससे साधारण प्रजा को यह ज्ञात ही नहीं हो पाता था कि कौन पदधारी कब बदला। ब्रह्मा, इन्द्र, आदि अनेक हुए हैं इसी प्रकार कश्यप , अत्रि , वशिष्ठ, अंगिरा , नारद, भृगु, दक्ष आदि बहुत से हुए हैं वे सभी अपने पदों पर आसनारूढ या पदारूढ होते रहे हैं। इसी कारण से वेदों-पुराणों में किसी देवता या महर्षि का बृद्धता से लाठी टेककर चलना या उनकी मृत्यु होने का कथन नहीं है। वे प्राय: सामर्थ्यशाली दशा में ही पद मुक्त होकर उत्तर ध्रुव के महाप्रयाण लोक को प्रस्थान कर जाते थे। इस तथ्य का आधुनिक काल में प्रमाण जगद्गुरु शंकराचार्य की पाद पीट है जहां शंकराचार्य देव आदि स्थापना से अभी तक अजर-अमर बने विराजमान हैं। देवों, ऋषियों का प्रत्येक युग में एक उसी नाम से वर्तमान रहने का यही गूढातिगूढ रहस्य है जिसे हमें समझ लेना चाहिये।
दक्ष गोत्र के प्रवर - गोत्रकार ऋषि के गोत्र में आगे या पीछे जो विशिष्ट सन्मानित या यशस्वी पुरूष होते हैं वे प्रवरीजन कहे जाते हैं और उन्हीं से पूर्वजों को मान्यता यह बतलाती है कि इस गोत्र के में गोत्रकार के अतिरकित और भी प्रवर्ग्य साधक महानुभाव हुए है। दक्ष गोत्र के तीन प्रवर हैं। 1. आत्रेये 2. गाविष्ठर 3. पूर्वातिथि।
1. आत्रेय - महर्षि अत्रि के पुत्र थे। ये चन्द्र पुत्र अत्रि के छोटे पुत्र थे। महर्षि दक्ष के पुत्र न होने से इन्हें मानस पुत्र बनाया था तथा चन्द्रमा दत्तात्नेय के माह होने पर भी दक्ष वंश में चले जाने से इन्हें अत्रिवंश में नहीं गिना गया। ये वेदज्ञ विपुल यज्ञ कर्ता थे। मंटी ऋषि के के ये शिष्य थे तथा इनने वैत्तरेय संहिता का पद पाठ निर्धारण किया था। इनकी शास्त्रीय रचना आत्नेयी शिक्षा तथा आत्नेयी संहिता है। 2. गाविष्ठर - ये यज्ञ और वेद विद्या के महान आचार्य थे। समाइगय रा��ेश्वर वभ्रु के यज्ञों को इनने गृत्समद ऋषि के सा सम्पन्न कराये थे। 3. पूर्वातिथि - ये अत्रि कुल के महान आचार्य थे। इनका समय 8758 वि0पू0 है। भारतीय इतिहास काल में दक्ष दो हुए हैं। पहले दक्ष प्रजापति पुत्र दक्ष दूसरे प्राचेतस दक्ष। माथुरों के गोत्रकार प्रथम दक्ष है। दक्षों का वेद ऋग्वेद है। शाखा आश्वलायनी है तथा कुलदेवी महाविद्या देवी है। इनकी 4 अल्ल हैं 1. दक्ष, 2. ककोर, 3. पूरवे, 4. साजने। अल्ल उपजाति या आस्पद को कहते है। मनु ने इसे 'विख्याति' नाम दिया हे। आस्पद का अर्थ है आदर्शपद जो कुल के आदर्श कर्म या स्थान को संकेत करता है। जिस संज्ञा से समूह की लोक के ख्याति होती है उसे आख्यात या आख्या कहा जाता है। अलंकृति सूचक कुल नाम को अल्ह या अल्ल कहते है। दक्ष - ये दक्ष प्रजापति के पदासीन ज्येष्ठ (टीकैत) पुत्रों का वर्ग है। ये अधिक तर द्विजातियों के यज्ञोपवीत, विवाह , यज्ञ, अनुष्ठान आदि संस्कार कराते है। दक्ष ये मूल अल्ल है। 2. ककोर - ये यादवों की कुकुर शाखा के कुलाचार्य थे। इनका पुरा मथुरा में कुकुरपुरी , घाटी ककोरन के नाम से स्थित है। ये यादवों के पुरोहित होने से बड़े समृद्ध और सम्पत्तियों के स्वामी थे। कौंकेरा, ककोरी, कक्कु, कांकरौली, कांकरवार, ककोड़ा इनके विस्तार क्षेत्र थे। इस वंश में महापूजय श्री उजागरदेव जी वामन राजाओं के पुरोहित बड़े चौबेजी थे जो बादशाह अकबर के दरबार में सम्मान पाते थे। 3. पूरवे - ये सम्रा�� पुरूरवा च्रन्द्रवंशी के पुरोहित कुल में से हैं।
4. साजने या फैंचरे - ये साध्यजनों के पति गन्धर्वराज उपरिचर वसु (फैंचरी ब्रज) के पुरोहित थे। उपरिचर वसु बहुत शक्तिशाली सम्राट था। जिस इन्द्रदेव ने अपना ध्वज (झण्डा) देकर इन्द्र ध्वज पूजन की उत्सव विधि का उपदेश किया था। जिसे गंधारी केतुओं ने सद्दे और अलम के रूप में पूजना और उत्सव में प्रयुक्त तथा रण में फहराना सीखा। उपरिचय मगध देश के जरासंध परिवार का पूर्व पुरूष था तथा मत्स्य देश के राजा सम्स्या और वेद व्यास माता मत्स्यगन्धा सत्यवती भी इसी वंश में उत्पन्न हुए थे। उसका राज्य गोपाचल क्षेत्र (ग्वालियर) में पिछोर पचाड़ गांग क्षेत्र में था। 5.सोखिया - मीठे वर्ग में यह अल्ल है जो सौंख खेड़ा में शौनक क्षेत्र में बसने से प्रख्यात हुई है। 6. जुनारिया - यह अल्ल अब देखने में नहीं आती है जान्हवी गंगा के प्रवर्तक जन्हु ऋषि (राजा) के प्रशासन क्षेत्र पुण्य क्षेत्र तीर्थों के केन्द्र में निवास करने से यह नाम प्रसिद्ध था जो जान्हवी के लोप होने के साथ ही अलक्ष हो गया है।
दक्ष का बहुत बड़ा परिवार था। प्रथम दक्ष (9400 वि0पू0) की 16 कन्याओं से प्रजापति ब्रह्मा, ऋग्वेद प्रतिष्ठापक अग्निदेव , पितृदेव तथा सती के पतिदेव रूद्र से प्राय: सभी देवों और ऋषियों के परिवार बढ़े और फंले। दूसरे प्रचेतरा दक्ष (7822 वि0पू0) में इसकी 60 कन्याओं में से ऋषि कश्यप आदि द्वारा सारे विश्व (यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका) के मानव वंश विश्व में विस्तारित हुए। अत: माथुरों का दक्ष वंश सारे संसार की जातियों और भूखण्डों का आद्य जनक और संस्कृति शिक्षक है ऐसा सिद्ध होता है।
कुत्स गोत्र
दक्ष के बाद कुत्स गोत्र सर्वाधिक व्यापक महान और पूजनीय सिद्ध होता है। कुत्स वंश के आद्य पुरूष महर्षि अंगिरा थे। जिनका वेदों पुराणों में सर्वाधिक वर्णन है। अंगिरा और भृगु आद्य अग्नि उत्पादक यज्ञ प्रवर्तक थे, तथा अग्निदेव (प्रमथो) के साथ समस्त विश्व में पर्यटन कर जंगली प्रजाओं को अग्नि का प्रयोग बताकर उन्हें सभ्यता के पथ में आगे बढ़ाने का इनने प्रयास किया था।
कुत्स महर्षि - आंगिरसों के कुल में उत्पन्न हुए थे। कुत्स का समय (6103 वि0पू0) है, तथा इनका मथुरा में आश्रम कुत्स सुपार्श्व श्रंग (कुत्स पाइसा या अपभ्रंश में कुत्ता पाइसा) कहा जाता है। कुत्स आचार शिथिल लोगों की कठोर शब्दों में भर्त्सना (कुत्सा) करते थे।, जो उनकी धर्म दृढ़ता और सावधान मनस्थिति का द्योतक था। इसी से आतंकित होकर प्रताड़ित जन उनके नाम को कुत्स कसे कुत्ता बनाने ��गे। महर्षि कुत्स का एक और आश्रम गुजरात में भी था जिसे कुत्सारण्य की जगह ऐसे ही लोग 'कुतियाना गाँव' कहने लगे। कुत्स बड़े स्वरूप वान थे एक बार इन्द्र के महल में सजधज कर जाने पर इन्द्रानी इन्दे पहिचान न सकी क्योंकि ये वज्र धारथ कर इन्द्र के साथ संग्रामों में जाते थे। इन्द्र से इनकी ऐसी मित्रता थी कि एक बार सूर्य देव से इनका विरोध होने पर इन्द्र ने सूर्य के रथ का एक पहिया निकाल लिया तथा दूसरा भी निकाल कर इन्हें दे दिया 2। एक बार घर आने पर कहना न मानकर घर जाने को तैयार इन्द्र को इनने रस्सियों से बाँध लिया।3।। इनके वंशधर कौत्स ने अयोध्या सम्राट रघु (4181 वि0पू0) से अपने गुरु विश्वामित्र के शिष्य बरतन्तु (तेतूरा गाँव मथुरा) को गुरुदक्षिणा देने को 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा माँगी। रघु उस समय महान विश्वजित यज्ञ में सारा कोष दान कर चुके थे। कोषगारपति की सूचना से उद्विन्न हो रघु न कुवेर पर चढ़ाई करने का निश्चय किया। सायंकाल रथ आयुधों से सजवाया, प्रात: ही चढ़ाई करने वाले थे, तभी रात्रि में कुबेर ने स्वर्ण वृष्टि कर राज्य का पूरा कोष स्वर्ग से भर गया है। रघु ने हर्षित होकर कौत्स मुनि से सम्पूर्ण कोष का सुवर्ण ले जाने की प्रार्थना की परन्तु कौत्स ने कहा- "राजन् मैं 14 कोटि से एक कौड़ी भी ज़्यादा नहीं लूंगा। इतना ही तों मुझे गुरुदक्षिणा में देना है" राजा चंकित रह गया और आज्ञानुसार द्रव्य बरतन्तु मुनि के आश्रम में ऊँटों-गाड़ी , बैलों से पहुँचाया। माथुरों का 6000 वर्ष पूर्व असाधारण त्याग का वह एक सर्व पुरातन महान प्रमाण है।
कौत्स मान्धाता के गुरु थे। इनको भगीरथ ने अपनी कन्या दी थी ये बेद मंत्र कर्ता बड़े परिवार के स्वामी थे अत: इनके परिवार के 70 ऋषियों के नाम ऋग्वेद मण्डल में मंडल 1 3,5,810 में उपलब्ध है। इनके पुत्र अंगिरा के अग्नि, इन्द्र, विश्वेदेव, अश्विनौ, उषा , सूर्य रूद्र, रात्रि, सोम, भृगुगण आदि की स्तुति के मन्त्र ऋग्वेद मंडल 1 में है। इससे इनका इन सभी वैदिक देवों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध अनेक यज्ञों में उपस्थित होना तथा इन देवों से इन्हें प्रभूत दक्षिणा गो, स्वर्ण मिलने का संकेत मिलता है। कुत्स के 12 शिष्यों के मन्त्र ऋग् 5-31 में हैं। वेद वर्णन से ज्ञात होता है कि दस्युभज इनके इन्द्रादि द्वारा सम्मान से कुपित थे, अत: इनके परम मित्र इन्द्र ने इनकी रक्षा के लिये शुष्ण (सुसनेर) कुयव (जावरा) (सापर बड़ौद) वासी दस्युओं को मारकर उनके दुर्ग ध्वस्त किये थे। शत्रुओं द्वारा कू�� में डाले गये इनका इन्द्र ने उद्धार किया 3। इन्द्र ने प्रसन्न होकर कुत्स को वेतसु (तस्सोखर) तुग्र (ताल गाँव) , मधैम (दियानौ मथुरा) नाम के क्षेत्र अर्पण किये थे।
आंगिरस - आंगिरस वंश से इनकी परम्परा निरन्तर चलती है। इनका समय 9400 वि0पू0 चलता है। इनका आश्रम मथुरा में अम्बरीष टीले के सामने स्यायंभूमनु के सरस्वती तटवर्ती विन्दुसरोवर के यमुना तट समीप है जिसे प्राचीन बाराह पुराण के मथुरा महात्म में "आंगिरस तीर्थ लिखा है। प्राचीन ऋषियों में आंगिरसों का महत्व सर्वाधिक है। ये इतने गौरवशाली थे कि सवय नामक इन्द्र स्वयं आकर इन्हें पिता बनाकर इनका पुत्र बनकर इनके घर में रहा था। "अभूदिन्द्र: स्वयं तस्यं तनय: सव्य नामक:। अंगिरावंश वेदों के स्तोत्र पढ़ने में अद्वितीय परिगत थे। इनके स्तोत्र द्वारस्तंभों की तरह स्थिरता युक्त और अचल है। इन्द्र ने अंगिराओं ने (इंगलैड के ब��रात्य ब्रिटिशों के शिक्षकों के ) साथ पणियों (फिनशियनों) द्वारा चुराई गायें (पिनियन पर्वत) पर पायीं। इन्द्र से यह प्रार्थना भी की गयी है। कि - 'हे सर्वशक्तिशाली देव जिन्होंने नौमहीना (नवम्बर) में यज्ञ समाप्त किया है तथा दस महीना (दिसम्बर) में यज्ञ की पूर्ति की हैं, ऐसे सप्त संख्याओं वाले सद्गति पात्र महा मेधावी के सुखकर स्तोत्रों से तुम स्तुत किये गये हो । अंगिराओं ने मन्त्रों द्वारा अग्निदेव (माथुर देव) की स्तुति करके महावली और दृढ अंगों वाले (पानीपत वासी) पणि असुर को मन्त्र वल से नष्ट कर दिया था तथा हम अन्य ऋषियों के लिये द्युलोक (ब्रहमण्डल द्यौसरेस द्यौतानौ) देव क्षेत्र का मार्ग खोल दिया था। अंगिरसों ने इन्द्र के लिये अन्न अर्पित कर, अग्नि ज्वालाओं द्वारा इन्द्र का पूजन और हविदान कर यज्ञ कर्म के प्रधान पुरूषों के रूप अशव गौ तथा बहुत सा द्रव्य प्राप्त किया। अंगिरावंशी अंगिरसों ने मथुरा के भांडीरबन में "आंगिरससत्र" किया जिसमें विष्णु से कल्याण कामना का संकल्प था। इसी सत्र में श्रीकृष्ण बल राम ने अपने सखा भेज कर यज्ञान्न (मधुयुवत पुरोडाश) की याचना की और यज्ञ पत्नियों द्वारा सत्कृत और पूर्ण तृप्त होकर माथुरों की कर्म श्रेष्ठता का बंदन करते हुए इन्हें सदैव घृत पूर्णित और उत्तम भोजनों से सर्वत्र सब युगो में आदरित होने का वरदान दिया।
माथुर ब्राह्मणों के उच्चतिउच्च सदाचार और ज्ञान गौरव के आगे नत मस्तक होकर देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ने आंगिरस प्रवरी घोर अंगिरस महर्षि से उपनिषदों का अध्ययन करके दुर्लभ ��्रह्मा विद्या भी प्राप्ति की जिसका उपयोग उन्होंने "श्री मद् भागवद गीता" में करके विश्व को सर्वोच्च दार्शसिक तत्व चिंतन के पथ पर चलने का दर्शन शास्त्र दिया। आंगिरसों की वैदिक वाणी से उत्पन्न आसुरी वैकृत भाषायें ग्रीस देश की ग्रीक, इगलेंड की आंगिरसी इंगलिश तथा अंगोला की महाबृषो "हवशियों" की भाषा अंगोलियन हैं , जो आंगिरसी शिक्षा के लिये कभी समर्पित थीं। आंगिरसों ने धर्म शास्त्र ग्रन्थ समृतियों का भी प्रवर्तन किया है। आंगिरा ने मथुरा के चित्रकेतु राजा वि0पू0 9332 के मृत पुत्र को जीवितकर ज्ञानोपदेश कराया । आंगरिसों ने स्वर्ग जाने में आदित्यों से स्पर्धा की तब आदित्य पहिले स्वर्ग पहुंच गय आंगिरा 60 वर्ष यज्ञ करने के बाद स्वर्ग पहंचे। आंगिरस पहिले ब्राह्मण थे जिनने सर्व प्रथम वाणी (भाषा) और छंद रचना ज्ञान देवों से प्राप्त दिया। आंगिरसों के परिवारों में गौत्र प्रवर्तक ऋषियों के नाम इस प्रकार हैं-बृहस्पति भारद्वाज , आश्वलायन, गालव, पैल, कात्यायन, वामदेव, मुद्गल , मार्कड, तैतरेय, शौंग, (शुंग) , पतंजल्लि, दीर्घतमा, शुक्ल, मांधाता , यौवनाश्व , अंवरीष आदि ।
यौवनाश्व प्रवर – कुत्स गोत्र का यौवनाश्व प्रवर युवनाश्व पुत्र चक्रवर्ती सम्राट मांधाता के आत्म समर्पण का द्योतक है। मान्धाता यौवनाश्व का समय 5576 वि0पू0 है। भागवत के कथन से यौवनाश्व मांधाता पुत्र अंवरीष का पुत्र था जो अंगिराओं के शिष्यत्व से क्षातियोपेत ब्राह्मण बने। मांधाता यौवनाश्व चक्रवर्ती सूर्यवंशी सम्राट था और इसका साम्राज्य पश्चिम समुद्र तट कच्छ करांची (दांता राज्य) से पूर्व में जापान द्वीप तक था जो सूर्य उदय और सूर्य अस्त का क्षेत्र था। मथुरा के नमक व्यापार पर एकाधिकार के लिये लवणासुर ने इसका राज्य छीन लिया। यह मथुरा माथुर ब्राह्मणों और माथुरों के आराध्य वाराह देव का परम भक्त था तथा वाराह देव की पूजा इसने सारे भारत वर्ष में फैलायी थी। भरना मथुरा के क्षेत्र वासी महर्षि सौभरि से इसने श्री यमुना महारानी का पंचाग उपासना मार्ग ग्रहण किया और उन्हें अपनी 50 कन्यायें देकर उनका राजवैभव विस्तृत किया। ऋग्वेद में इनका मन्त्र 10-134 पर है।
कुत्स गोत्र का वेद ऋग्वेद शाखा आशवलायनी तथा कुल देवी महाविद्या जी है। कुत्स गोत्र के आस्पद भी बहुत महत्व पूर्ण हैं जो अपनी प्रमाणिक श्रेष्ठता के विस्तार को प्रतिपादित करते हैं।
1. मिहारी - ये सबसे अधिक ज्ञानी गुणी लोक सम्मानित और समाज के सरदार शीर्ष वर्ग में से हैं। यही एक ऐसा वर्ग है जो अपने महा मह��मा मंडित आद्य पूर्वज श्री ज्ञान तपो मूर्ति उद्धवाचार्य देव के गुणों का गर्व करता हुआ एक ही उनके 200 से भी अधिक परिवारों में माथुर पुरी के प्रधान केन्द्र स्थान मिहार पुरा में अवस्थित हैं प्रलय में भी नष्ट न होने वाले ब्रज द्युलोक महालोक (महजन तप) महारानौ महरौली के आद्यक्षेत्र से वाराह यज्ञ में उतर कर मथुरापुरी में आकर पूजित होकर स्थापित हुए। नन्द जशोदा तथा ब्रज के गो संस्कृति के अधिष्ठाता गोपों घोषपालों देवों के गोष्ठ रक्षकजनों को नंद मैहैर, मैहेर जसोध, मैहर गोपेशनंद आदि अपने शिष्यतत्व पद देकर तथा प्रख्यात ज्योतिर्बिद विक्रम के नवरत्न शिरोमणि बाराह मिहिर को भी बाद की प्रतिष्ठा से प्ररित किया। महलोंक के ये महामहर्षि प्रजापति दक्ष के पड़ौस में बसकर भी अपना कोई पाइसा न बनाकर दक्ष के कोप से मुक्त तथा दक्ष की प्रतिष्ठा युक्त मेत्री से विभूषित रहे। इन्होने गोप प्रजाओं को सादा पौष्टिक आहार महेरी खाने की सरल "सादाजीवन उच्च विचार मयी" पद्धति देकर सहज स्वाभिमानी बनाया। कहते हैं नंदराय गोपपति ने इन्हीं की सेवा कर आशीर्वाद साधना से पूर्ण पुरूषोत्तम श्री कृष्ण और धीर गंभीर लोक नमरकृत श्री बलराम देव जैसे पुत्र प्राप्त किये थे प्रमाण रूप पुरातन "कंस मेला" में दौनों भाई कंस विजय कर इनकहीं की गोद में विराजते विश्राम आरती अंगीकार करते हैं । इनके पुर के समीप वेश्रवण कुवेर का पुर (सरवन पुरा) है तथा रत्न सरोवर तथा स्वर्ण कलशधारी रत्नेश्वर शिव का देवस्थान है। जिसे "सोने का कलसा" वाला देव अभी भी कहा जाता है।
2. शांडिल्य- ये नंद गोपकुल के पुरोहित थे। इनका शाँडिल्य भक्तिसूत्र नारद भक्तिसूत्र के बाद भक्ति सम्प्रदाय का मान्य ग्रन्थ है। श्रीकृष्ण बलराम की रक्षा हेतु सदा प्रयत्नशील रहते थे। इनका वंश प्राचीन है। कर्मपुराण के अनुसार थे असित (देवल) के पुत्र 5014 वि0पू0 में विद्यमान थे। महाभारत से इनकी संशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में विद्यमान थे । महाभारत से इनकी वंशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में भी थी। कृष्णकाल में इनका समय 3107 वि0पू0 है। इनका धर्मशास्त्र 'सांडिल्य स्मृति' हैं।
3. अकोर - यह अल्ल प्राय: विलुप्त है। मथुरा के समीप अर्कस्थ अकोस गांव में ये रहते थे। जो अर्क सूर्य का स्थल प्राचीन मथुरा के पंच स्थलों में से था।
4. धोरमई - ये मथुरा के निकट ध्रुवपुरी घौरैरा के वासी ��े। धोरवई ध्रुव का अटल पद (अटल्ला चौकी) वर्तमान ब्रन्दावन के निकट है। धुरवा, धुरैरा (रज के ) धुर्रा , धुरपद, गाढी का धुरा, धुरंथर, ध्रुव काल के माथुरी भाषा के शब्द हैं।
5. गुनारे - मथुरा के मधुवन के समीप फाल्गुनतीर्थ पालीखेड़ा तथा फालैन में इनका निवास था। ब्रज के फाल्गुनी यज्ञ (होली) के महीना में ही अर्जुन का जन्म होने पर इन्होंने फाल्गुनी बालक के जन्म का महोत्सव किया था। गुना क्षेत्र ग्वालियर गोपाचल में भी हैं। इनका समय 3110 वि0पू0 के लगभग है।
6. खलहरे - ये यज्ञ कर्म में ब्रीहि यव धान्य उलूखलों मे कूटकर यज्ञहवि प्रस्तुत करते थे। ऐसे उलूखलनंदराय के भी गोकुल में थे जिनमें से एक ऊखल से श्री कृष्ण को माता यशोदा ने बाँधा था तभी से उनका नाम दामोदर पड़ा । महावन में ऊखल बंधन का स्थान अभी है। यहीं यमलार्जुन तीर्थ भी है।
7. मारोठिया - 49 मरूतगणों का प्रदेश मरूधन्व (मारवाड़) प्रसिद्ध है। मरूतों की पुरी मारौठ तथा मरूदगण वंशी (आंधी तूफान के देवता) मारौठिया, मराठा, राठौर प्रसिद्ध हैं ये दक्ष यज्ञ के समय अपने मरूत क्षेत्र (मारू गली) में दक्ष और देव पक्ष की रक्षा हेतु वीरभद्र की भूतसेना से लड़े थे। मारूगली में भी मारू राजा का महल मारू देवता, मारूगण, तीरभद्र वीर प्रतिमां अभी मथुरा में है।
8. सनौरे - ये 12 अदित्यों में पूषन सूर्य के वंशधर हैं। उशीनर देश के राजा शिवि महादानी के ये पुरोहित थे। ब्रज में अपने क्षेत्र चौमां में ये सन (पटसन फुलसन अलसी) कुटवा कर ऋषियां और ब्रह्मचारियों के लिये क्षौममेखला और क्षौमपट कारीगरों से बनवाकर प्रस्तुत करते थे।
9. सौनियां - ये ब्रजसीमा सोनहद के वासी थे। गंधारी शकुनी को शकुन शाऊत्र सगुनौती विद्या सिखाने से तथा सगुन चिरैया द्वारा प्रश्नोत्तर देने से "शाकुने तु बृहस्पति" के प्रमाण से अंगिराओं की विद्या के आचार्य थे सगुनियों से सौनियां नाम पाया । ये मीठों में ही हैं।
10. सद्द - ये सद्द देवों की देवसद या ऋषियों की धर्म परिषद के धर्म निर्णायक सदस्य 'सद्द' हैं। इनकी परिषद् परम्परा मौर्य गुप्तकाल तक स्थापित थी सद्दू पांड़े की वैठक श्री नाथ जी के समय की जतीपुरा में है। वर्हिषद प्रियब्रत वंशी सम्राट की पुरी वहेड़ी उत्तर पाँचाल में अभी वर्तमान है। यहीं प्रियब्रत पुरी पीलीभीत तथा हविर्धान की हविर्धानी हल्द्वानी है इनका ही अपभ्रंश नाम सद्द है।
11. कुसकिया - ये विश्वामित्र के दादा कुशिक के पुर कुशकगली मथुरा के प्राचीन निवासी हैं। ये मीठों में है। कुशिकापुर के लोग पीछे मुसलिम बना लिये गये तथा कुशिकपुर पर मसजिद बना कर कब्जा कर लिया गया। कुशिक के पुत्र गाधि का गाधीपुरा (नया गोकुल के निकट) तथा विश्वामित्र तीर्थ स्वामीघाट मथुरा ही में हैं।
12. सिरोहिया - ये सिरोही राज्य में जाकर आश्रय पाने से सिरोहिया कहे गये। ये भी मीठे वर्ग में हैं। किसी समय सिरोही की तलवारें बहुत नामी होती थीं। असुर असिलोमा के अश्वारोही सैनिक दल की यह प्राचीन पुरी थी।
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श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल का देवपुरा हरिद्वार में सोमवार को निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर, वरिष्ठ कैंसर सर्जन डाॅ पंकज कुमार गर्ग कैंसर जागरूकता पर देंगे व्याख्यान
देहरादून। श्री महंत इन्दिरेश की ओर से देवपुरा हरिद्वार में सोमवार को कैंसर जागरूकता शिविर एवम् निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। श्री गुरु मण्डल आश्रम, देवपुरा, हरिद्वार में आयोजित शिविर में श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के विशेषज्ञ डाॅक्टर चिकित्सकीय परामर्श देंगे। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की ओर से रोगियों की निःशुल्क दवाईयों भी दी जाएंगी। यह जानकारी श्री महंत इन्दिरेश…
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हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम फ्लाईओवर के नीचे सड़क पर निकला अजगर !! #shor...
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मातृभूमि करती है क्रंदन, वृक्ष लगाओ छूटे बंधन
वृक्षारोपण के आयोजन पर बच्चों ने दिया सन्देश न्यूज़ चक्र, कोटपूतली। ‘मातृभूमि करती है क्रंदन, वृक्ष लगाओ छूटे बंधन’ जैसे प्रेरणादायक नारों से माहौल उत्साह और समर्पण से भर गया। अवसर था फतेहपुरा रोड स्थित संस्कार विद्या आश्रम शिक्षण संस्थान में वृक्षारोपण आयोजन का, वृक्षारोपण का आयोजन अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार एवं राजस्थान पेंशनर समाज कोटपूतली के संयुक्त तत्वावधान में किया गया…
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पति, पत्नी और हरिद्वार का वो आश्रम... प्रेमी से छिपाई 9 साल की शादी, नाजायज संबंधों की खौफनाक कहानी
नई दिल्ली: साहेब यहां एक घर से बहुत तेज दुर्गंध आ रही है, आप जल्दी से आ जाओ...। 15 जून की सुबह करीब 8 बजे, जब धर्म नगरी हरिद्वार श्रद्धालुओं की भीड़ से भरी थी, तो जिले की सिडकुल पुल���स के पास एक फोन पहुंचता है। पुलिस की टीमें तुरंत मौके पर जाती हैं और जब उस घर का दरवाजा तोड़ा जाता है तो अंदर का हाल देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। मौके पर भारी भीड़ जमा हो जाती है। कुछ देर बाद पुलिस उस घर से एक लाश बाहर निकालती हैं और पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देती है। लाश किसकी थी, कैसे उसकी मौत हुई और उस घर के अंदर आखिर क्या हुआ था, ऐसे बहुत से सवाल खड़े हो जाते हैं।पुलिस मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू करती है। अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आती है तो पता चलता है कि जिस आदमी की वो लाश थी, उसे जहर देकर मारा गया था। अब पुलिस कातिल की तलाश शुरू करती है। उस इलाके की छोटी-छोटी और संकरी गलियों के बीच लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले जाते हैं। कड़ियां जुड़ती हैं तो फुटेज में एक महिला और एक आदमी रात के अंधेरे में उस इलाके से संदिग्ध हालत में भागते हुए नजर आते हैं। पुलिस अपने मुखबिरों को अलर्ट करती है, सायरन बजाती हुई गाड़ियां हर तरफ दौड़ने लगती हैं और आखिरकार 15 दिन की मशक्कत के बाद इस कत्ल को अंजाम देने वाले पति-पत्नी पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं। आखिर क्यों हुआ कमरे के अंदर वो कत्ल? दोनों से पूछताछ होती है तो पता चलता है कि ये कहानी अवैध संबंधों की है। लिव इन रिलेशनशिप के बीच महिला के पति की एंट्री और प्रेमी के दखल की है। एक ऐसी कहानी, जिसमें हरिद्वार के एक आश्रम में हुई मुलाकात सबकुछ बदलकर रख देती है। जिस आदमी का कत्ल हुआ, उसका नाम था लक्ष्मण। मूल तौर पर यूपी के पीलीभीत का रहने वाला लक्ष्मण हरिद्वार में मजदूरी करता था। जिस पति-पत्नी को उसके कत्ल के आरोप में पकड़ा गया, उनमें महिला का नाम अंजू देवी और पति का नाम मधु राय था। लक्ष्मण हरिद्वार में अंजू के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था। पति से झगड़े के बाद हरिद्वार में लिव इन रिलेशन झारखंड के रहने वाले मधु राय से अंजू की शादी करीब 9 साल पहले हुई थी। शादी के बाद मधु अपनी पत्नी के साथ घर जमाई बनकर रहने लगा और कुछ दिन बाद ही दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए। इस बीच अंजू ने एक बेटे को भी जन्म दिया। दोनों के बीच जब झगड़े ज्यादा बढ़ने लगे, तो अंजू घर छोड़कर यूपी के बरेली में आकर रहने लगी। यहां उसकी मुलाकात लक्ष्मण नाम के आदमी से हुई और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी। एक दिन लक्ष्मण अंजू को लेकर पीलीभीत में अपने घर गया, लेकिन उसके साथ एक शादीशुदा महिला को देखकर घरवाले भड़क गए। हारकर लक्ष्मण और अर्जुन उत्तराखंड के हरिद्वार �� गए और किराए का एक कमरा लेकर लिव इन में रहने लगे। आश्रम में एक मुलाकात और बदल गया अंजू का मन यहां हरिद्वार के एक आश्रम में अंजू के कुछ परिचित रहते थे और वो अक्सर उसने मिलने के लिए वहां जाया करती थी। एक दिन जब आश्रम में सत्संग चल रहा था तो अंजू की मुलाकात अचानक अपने पति मधु राय से हो गई। साथ में उसका 8 साल का बेटा भी था। अपने बेटे को देखकर अंजू को पुरानी जिंदगी याद आने लगी और इसी आश्रम में पति-पत्नी के बीच फिर से सुलह हो गई। अपने पति और बेटे को लेकर अंजू घर पहुंची और पड़ोस के मकाने में उसे भी किराए पर एक कमरा दिला दिया। अंजू ने अपने प्रेमी से झूठ बोलते हुए पति को भाई और बेटे को अपना भतीजा बताया। शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन जल्दी ही लक्ष्मण को उसकी सच्चाई पता चल गई। खान में दिया जहर और भाग निकले पति-पत्नी अब अंजू और लक्ष्मण के बीच झगड़े होने लगे। लक्ष्मण उसके साथ मारपीट भी करने लगा। उसे अंजु का उसके पति मधु राय से मिलना जुलना पसंद नहीं था। ऐसे में अंजू और उसके पति ने एक खौफनाक प्लान बनाया। प्लान था लक्ष्मण को रास्ते से हटाने का। 14 जून की रात अंजू ने खाना बनाया और उसमें जहर मिलाकर लक्ष्मण को खिला दिया। खाना खाते ही कुछ ही पलों में लक्ष्मण ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया। इसके बाद अंजू और उसके पति मधु ने उस कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया और मौका देखकर भाग निकले। हालांकि, दोनों की साजिश उस वक्त खुल गई, जब पुलिस ने उन्हें बस अड्डे से रानीपुर मोड़ की तरह जाते हुए दबोच लिया। http://dlvr.it/T92jpj
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west singhbhum manoharpur gayatri mahayagya- मनोहरपुर में चार दिवसीय 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ शुरू, निकाली गयी भव्य कलश शोभा यात्रा
रामगोपाल जेना,चक्रधरपुर /मनोहरपुर: अखिल विश्व गायत्री परिवार,शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में रविवार को श्रीश्री संत नरसिंह आश्रम मनोहरपुर में चार दिवसीय 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं प्रज्ञापुराण कथा अनुष्ठान आयोजित किया गया. बतौर मुख्य अतिथि जिला परिषद उपाध्यक्ष रंजित यादव ने धर्मध्वजा रोहण एवं मां गायत्री का दीप प्रज्वलित एवं पूजा अर्चना कर कलश शोभा यात्रा का शुभारंभ किया गया. इस दौरान…
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ओबीसी मोर्चा हरिद्वार ने टनल में फसे श्रमिक बंधुओ के सकुशल बाहर निकलने के लिए किया यज्ञ
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ओबीसी मोर्चा हरिद्वार ने टनल में फसे श्रमिक बंधुओ के सकुशल बाहर निकलने के लिए किया यज्ञ
हरिद्वार/28/11/2023,आज ओबीसी मोर्चा हरिद्वार के सभी पधाधिकारियो व कार्यकर्ताओं ने वेद मंदिर हरिद्वार में ���नल में फसे श्रमिक भाईयो के सकुशल वापसी के लिए यज्ञ किया ।
यज्ञ मे भाग लेने वालो में पूर्व राज्यमंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने ��ताया कि उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में टनल में फसे श्रमिक भाईयो को बाहर निकालने का काम युद्ध स्तर पर कर रही है एव प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार पूरे कार्य पर नजर बनाए हुए है जल्द ही हम सभी श्रमिको को बाहर निकालने में सफल होंगे।
इस अवसर पर प्रदेश कार्यकारी सदस्य जयपाल चौहान व जिला अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार ने कहा कि आज ओबीसी मोर्चा हरिद्वार ने वेद मंदिर आश्रम में टनल में फसे श्रमिको के लिए यज्ञ के माध्यम से सकुशल बाहर आने की प्रार्थना की है,जिसमे प्रदेश मंत्री ओबीसी मोर्चा मुनेश पाल,जयध्वज सैनी,जिला महामंत्री पवनदीप ,मोहित वर्मा , जिला उपाध्यक्ष रवि कश्यप, कार्यालय प्रभारी राकेश नायक ,जिला कार्यकारी सदस्य प्रेमप्रकाश सतलेवाल ,मंडल अध्यक्ष सर्वेश प्रजापति ,आकाश दत्त,सचिन सैनी ,महामंत्री अजय राजपूत, ऋषभ सैनी ,यशपाल कश्यप, मंत्री महक सिंह,सुधीर ठाकुर,युवा जिला अध्यक्ष विक्रम भुल्लर, महामंत्री दीपांशु शर्मा ,जोगेंद्र वर्मा , राजेश कश्यप, मुकेश कश्यप दिनेश राठी आदि ने श्रमिकों की कुशलता के लिए यज्ञ मे अपनी ओर से आहुति दी।
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भृगु सहिंता ग्रंथ: भृगु शास्त्री पंडित निखिल शर्मा यजमान की पत्रिका देखकर कर बता देतें है भविष्य।
भृगु सहिंता ग्रंथ यजमान का बताता है, काल, वर्तमान, और भविष्य
जहां पर भृगु सहिंता ग्रंथ द्वारा आचार्य पंडित निखिल शर्मा ने उस यजमान की पत्रिका सुनाने के बाद उस यजमान का पास्ट प्रेजेंट फ्यूचर्स पूर्व जीवन और अगला जीवन सब बताया साथ ही उसके लिए कुछ उपाए बताए उसमे से एक उपाए गंगा तट पर होगा ऐसा यजमान को बताया गया। की गंगा तट पर एक हवं होगा
और पढिये: Mukherjee Nagar News: जिस इंस्टीट्यूट में पूरा होता है, IAS बनने का सपना उसी ईमारत में लगी भीषण आग, कई छात्र झुलसे
भृगु संहिता ग्रंथ द्वारा यजमान को कहा गया की गंगा तट पर एक हवन करना होगा जिसमें यजमान को साक्षात भगवान के दर्शन होंगे जिसके लिए शास्त्री पंडित निखिल शर्मा अपनी टीम को लेकर हर की पौड़ी घाट हरिद्वार पहुंचे और यजमान को भी वहाँ बुलाया गया भृगु संहिता ग्रंथ के द्वारा पंडित निखिल शर्मा ने हवन शुरू किया। पंडित निखिल शर्मा ने हवन शुरू किया |
अग्नि जलाकर उसमे आहुति दी और ये सब कुछ चमतकारी ग्रंथ भृगु सहिंता ग्रंथ द्वारा किया जा रहा था। हवन के दौरान शास्त्री पंडित निखिल शर्मा यजमान को गंगा जी में स्नान के लिए लेकर पहुँचे और इसी गंगा मैय्या में पूजा-पाठ एंव स्नान के दौरान यजमान को नाग देवता के साक्षात दर्शन हुए। read more
और पढिये: भृगु संहिता ग्रंथ: आम जनता के जीवन की समस्याओं का समाधान एंव उपाए शास्त्री निखिल शर्मा ने भृगु सहिंता ग्रंथ द्वारा बताए।
इस यजमान के द्वारा बताया गया है, देखा जाए तो यह बात सही साबित हुई जो बात भृगु महाराज ने भृगु संहिता ग्रंथ द्वारा यजमान को दो महीने पहले उसकी पत्रिका देखकर बताई थी, की जब ये बालक हवन करने के लिए गंगा तट पर जाएगा तो इसको साक्षात भगवान के दर्शन होंगे वो दर्शन नाग देवता ने गंगा जी मे आकर साक्षात यजमान को दिए और ये अद्भुत नज़ारा यजमान के साथ आए परिजनों ने भी अपनी आँखों से देखा साथ ही भृगु महारज पंडित निखिल शर्मा और उनकी टीम ने भी भगवान के साक्षात दर्शन किए।
इसलिए भृगु संहिता ग्रंथ एक चमत्कारी ग्रंथ जो दिल्ली के राजोरी गार्डन भृगु आश्रम में शास्त्री निखिल शर्मा के पास उपलब्ध है।
अन्य पढ़े: भृगु संहिता एक ऐसा ग्रंथ जिसमें कई जन्मों के राज व ज्योतिष संबंधी सभी जानकारी उपलब्ध है
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Haridwar : मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने मदन दास देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की
हरिद्वार/देहरादून: Haridwar मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को भीमगोडा स्थित कृष्ण कृपा आश्रम में आयोजित श्रद्धाजंलि सभा मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह कार्यवाह श्री मदन दास देवी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि श्री मदन दास देवी जी के निधन से समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा तथा वे…
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जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम में शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज के साथ सीएम धामी ने किया हवन यज्ञ
हरिद्वार: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को कनखल स्थित जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम में जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज से भेंट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम में, शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हवन यज्ञ में भी शामिल हुए। जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम कनखल में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अवसर पर शनिवार को…
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ऋषिकेश में राफ्टिंग के दौरान हादसा, चल रहा रेस्क्यू ऑपरेशन
ऋषिकेश ओशो आश्रम, ऋषिकेश के पास राफ्टिंग के दौरान डूबा एक युवक, SDRF जूटी रेस्क्यू में। https://www.lokjantoday.com/wp-content/uploads/2023/04/VID-20230407-WA0030.mp4 आज दिनाँक 07 अप्रैल 2023 को DDMO हरिद्वार द्वारा SDRF टीम को सूचित किया गया कि ओशो आश्रम के पास राफ्टिंग के दौरान एक युवक नदी में डूब गया है, जिसमें सर्चिंग हेतु SDRF टीम की आवश्यकता है। उक्त सूचना पर SDRF टीम द्वारा HC ओमप्रकाश…
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श्रीरामानंदाचार्य महाराज की जन्म जयंती पर बैरागी समाज ने निकाला भव्य चल समारोह जगह-जगह हुआ भव्य स्वागत
लोकतंत्र उद्घोष विनय निगम – – आलोट नगर के वैष्णव बैरागी चतु:संप्रदाय के तत्वाधान में रामानंदाचार्य महाराज की जयंती पर शीतला माता परिसर से बैंड बाजों के साथ एक चल समारोह नगर में निकला चल समारोह में महामंडलेश्वर रामेश्वर दास महाराज हरिद्वार , महामंडलेश्वर भगवान दास महाराज पंचमुखी हनुमान दास आश्रम भगवान दास महाराज भीड़ावद, महंत गरीब दास बैरागी बोरबड़ा, नमन वैष्णो महाराज ताल , महंत रमेश…
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Haridwar:हरिद्वार पहुंचे सीएम पुष्कर सिंह धामी, शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम से मुलाकात कर लिया आशीर्वाद - Haridwar: Cm Pushkar Singh Dhami Meets Shankaracharya Rajrajeshwarashram In Haridwar
शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम से मिले सीएम पुष्कर सिंह धामी – फोटो : अमर उजाला विस्तार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मंगलवार को हरिद्वार पहुंहे। यहां उन्होंने कनखल स्थित शंकराचार्य आश्रम में जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया। इस दौरान मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कांवड़ लेकर आने वाले सभी कांवड़ियों को शुभकामनाएं भी दी। वहीं, उन्होंने हरिद्वार के अधिकारियों…
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