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#हंस राज हंस
kawaiimoonpeace · 1 month
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#GodMorningWednesday
शिव ब्रह्मा का राज, इन्द्र गिनती कहां। चार मुक्ति वैकुंण्ठ समझ, येता लह्या ।। संख जुगन की जुनी, उम्र बड़ धारिया । जा जननी कुर्बान, सु कागज पारिया ।।
येती उम्र बुलंद मरैगा अंत रे। सतगुरु लगे न कान, न भैटे संत रे।।
चाहे संख युग की लम्बी उम्र भी क्यों न हो वह एक दिन समाप्त जरूर होगी। यदि सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब के नुमाँयदे पूर्ण संत (गुरु) जो तीन नाम का मंत्र (जिसमें एक ओम् तत् सत् सांकेतिक है) देता है तथा उसे पूर्ण संत द्वारा नाम दान करने का आदेश है, उससे उपदेश लेकर नाम की कमाई करेंगे तो हम सतलोक के अधिकारी हंस हो सकते है। सत्य साधना बिना बहुत लम्बी उम्र कोई काम नहीं आएगी क्योंकि निरंजन का लोक दुःखालय है यानि यहाँ पर दुःख ही दुःख है।
- जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
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scentedkidmagazine · 1 month
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शिव ब्रह्मा का राज, इन्द्र गिनती कहां। चार मुक्ति वैकुंण्ठ समझ, येता लह्या ।। संख जुगन की जुनी, उम्र बड़ धारिया । जा जननी कुर्बान, सु कागज पारिया ।।
येती उम्र बुलंद मरैगा अंत रे। सतगुरु लगे न कान, न भैटे संत रे।।
चाहे संख युग की लम्बी उम्र भी क्यों न हो वह एक दिन समाप्त जरुर होगी। यदि सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब के नुमाँयदे पूर्ण संत (गुरु) जो तीन नाम का मंत्र (जिसमें एक ओम् तत् सत् सांकेतिक है) देता है तथा उसे पूर्ण संत द्वारा नाम दान करने का आदेश है, उससे उपदेश लेकर नाम की कमाई करेंगे तो हम सतलोक के अधिकारी हंस हो सकते है। सत्य साधना बिना बहुत लम्बी उम्र कोई काम नहीं आएगी क्योंकि निरंजन का लोक दुःखालय है यानि यहाँ पर दुःख ही दुःख है।
#GodMorningWednesday
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rightnewshindi · 1 month
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चुराह से तीन बार विधायक रहे डॉ हंसराज ने मांगे लड़की के न्यूड फोटो, FIR दर्ज; जानें क्या है पूरा केस
Chamba News: हिमाचल प्रदेश पुलिस ने भाजपा विधायक हंस राज के खिलाफ एक महिला को कथित तौर पर अश्लील संदेश भेजने और लड़की से न्यूड तस्वीर की डिमांड करने के आरोप में मामला दर्ज किया है. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है. अधिकारियों ने बताया कि चंबा जिले के चुराह से तीन बार के विधायक रहे हंस राज के खिलाफ महिला की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया है. महिला भाजपा कार्यकर्ता की बेटी है.लड़की ने अपनी शिकायत में…
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jyotis-things · 4 months
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( #Muktibodh_Part294 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part295
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 562
◆ महाराज गरीबदास जी अपनी
वाणी में कहते हैं :-
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया, और धर्मराय कहिये।
इन पाँचों मिल परपंच बनाया, वाणी हमरी लहिये।।
इन पाँचों मिल जीव अटकाये, जुगन-जुगन हम आन छुटाये।
बन्दी छोड़ हमारा नामं, अजर अमर है अस्थिर ठामं।।
पीर पैगम्बर कुतुब औलिया, सुर नर मुनिजन ज्ञानी।
येता को तो राह न पाया, जम के बंधे प्राणी।।
धर्मराय की धूमा-धामी, जम पर जंग चलाऊँ।
जोरा को तो जान न दूगां, बांध अदल घर ल्याऊँ।।
काल अकाल दोहूँ को मोसूं, महाकाल सिर मूंडू।
मैं तो तख्त हजूरी हुकमी, चोर खोज कूं ढूंढू।।
मूला माया मग में बैठी, हंसा चुन-चुन खाई।
ज्योति स्वरूपी भया निरंजन, मैं ही कर्ता भाई।।
हंस अठासी दीप मुनीश्वर, बंधे मुला डोरी।
ऐत्यां में जम का तलबाना, चलिए पुरुष कीशोरी।।
मूला का तो माथा दागूं, सतकी मोहर करूंगा।
पुरुष दीप कूं हंस चलाऊँ, दरा न रोकन दूंगा।।
हम तो बन्दी छोड़ कहावां, धर्मराय है चकवै।
सतलोक की सकल सुनावां, वाणी हमरी अखवै।।
नौ लख पटट्न ऊपर खेलूं, साहदरे कूं रोकूं।
द्वादस कोटि कटक सब काटूं, हंस पठाऊँ मोखूं।।
चौदह भुवन गमन है मेरा, जल थल में सरबंगी।
खालिक खलक खलक में खालिक, अविगत अचल अभंगी।।
अगर अलील चक्र है मेरा, जित से हम चल आए।
पाँचों पर प्रवाना मेरा, बंधि छुटावन धाये।।
जहाँ ओंकार निरंजन नाहीं, ब्रह्मा विष्णु वेद नहीं जाहीं।
जहाँ करता नहीं काल भगवाना, काया माया पिण्ड न प्राणा।।
पाँच तत्त्व तीनों गुण नाहीं, जोरा काल दीप नहीं जाहीं।
अमर करूं सतलोक पठाँऊ, तातैं बन्दी छोड़ कहाऊँ।।
कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की महिमा बताते हुए आदरणीय गरीबदास साहेब जी कह रहे हैं कि हमारे प्रभु कविर् (कविर्देव) बन्दी छोड़ हैं। बन्दी छोड़ का भावार्थ है काल की कारागार
से छुटवाने वाला, काल ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों में सर्व प्राणी पापों के कारण काल के बंदी हैं।
पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब पाप का विनाश कर देते हैं। पापों का विनाश न ब्रह्म, न परब्रह्म, न ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी कर सकते हैं। केवल जैसा कर्म है, उसका वैसा ही फल दे
देते हैं।
इसीलिए यजुर्वेद अध्याय 5 के मन्त्र 32 में लिखा है ‘कविरंघारिरसि‘ कविर्देव (कबीर परमेश्वर) पापों का शत्रु है, ‘बम्भारिरसि‘ बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है।
इन पाँचों (ब्रह्मा-विष्णु-शिव-माया और धर्मराय) से ऊपर सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) है। जो सतलोक का मालिक है। शेष सर्व परब्रह्म-ब्रह्म तथा ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी व आदि माया
नाशवान परमात्मा हैं। महाप्रलय में ये सब तथा इनके लोक समाप्त हो जाएंगे। आम जीव से कई हजार गुणा ज्यादा लम्बी इनकी उम्र है। परन्तु जो समय निर्धारित है वह एक दिन पूरा
अवश्य होगा।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज कहते हैं :-
शिव ब्रह्मा का राज, इन्द्र गिनती कहां। चार मुक्ति वैकुंण्ठ समझ, येता लह्या।।
संख जुगन की जुनी, उम्र बड़ धारिया। जा जननी कुर्बान, सु कागज पारिया।।
येती उम्र बुलंद मरैगा अंत रे। सतगुरु लगे न कान, न भैंटे संत रे।।
चाहे शंख युग की लम्बी उम्र भी क्यों न हो वह एक दिन समाप्त जरूर होगी। यदि सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब के नुमाँयदे पूर्ण संत(गुरु) जो तीन नाम का मंत्र (जिसमें एक ओउम + तत् + सत् सांकेतिक हैं) देता है तथा उसे पूर्ण संत द्वारा नाम दान करने का आदेश है, उससे उपदेश लेकर नाम की कमाई करेंगे तो हम सतलोक के अधिकारी हंस हो सकते हैं। सत्य साधना बिना बहुत लम्बी उम्र कोई काम नहीं आएगी क्योंकि निरंजन लोक में दुःख ही दुःख है।
कबीर, जीवना तो थोड़ा ही भला, जै सत सुमरन होय। लाख वर्ष का जीवना, लेखै धरै ना कोय।।
कबीर साहिब अपनी (पूर्णब्रह्म की) जानकारी स्वयं बताते हैं कि इन परमात्माओं से ऊपर असंख्य भुजा का परमात्मा सतपुरुष है जो सत्यलोक (सच्च खण्ड, सतधाम) में रहता है
तथा उसके अन्तर्गत सर्वलोक ख्ब्रह्म (काल) के 21 ब्रह्माण्ड व ब्रह्मा, विष्णु, शिव शक्ति के लोक तथा परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्ड व अन्य सर्व ब्रह्माण्ड, आते हैं और वहाँ पर सत्यनाम-सारनाम के जाप द्वारा जाया जाएगा जो पूरे गुरु से प्राप्त होता है। सच्चखण्ड (सतलोक) में जो आत्मा
चली जाती है उसका पुनर्जन्म नहीं होता। सतपुरुष (पूर्णब्रह्म) कबीर साहेब (कविर्देव) ही अन्य लोकों में स्वयं ही भिन्न-भिन्न नामों से विराजमान हैं। जैसे अलख लोक में अलख पुरुष, अगम लोक में अगम पुरुष तथा अकह लोक में अनामी पुरुष रूप में विराजमान हैं। ये तो उपमात्मक नाम हैं, परन्तु वास्तविक नाम उस पूर्ण पुरुष का कविर्देव (भाषा भिन्न होकर कबीर साहेब) है।
क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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hcnnews-blog · 4 months
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पंजाब में मोदी ने 15 मिनट इंतजार किया फिर दे दिया आदेश! हंसराज हंस हुए भावुक 
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pradeepdasblog · 6 months
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( #Muktibodh_part229 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part230
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 440-441
‘‘प्रमाण के लिए पवित्र कबीर सागर से भिन्न-भिन्न अध्यायों से अमृत बानी’’
‘‘कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता‘‘
अनुराग सागर के पृष्ठ 62 से :-
‘‘धर्मराय (ज्योति निरंजन) वचन‘‘
धर्मराय अस विनती ठानी।
मैं सेवक द्वितीया न जानी।।1
ज्ञानी बिनती एक हमारा।
सो न करहू जिह से हो मोर बिगारा।।2
पुरूष दीन्ह जस मोकहं राजु।
तुम भी देहहु तो होवे मम काजु।।3
अब मैं वचन तुम्हरो मानी।
लीजो हंसा हम सो ज्ञानी।।4
पृष्ठ 63 से अनुराग सागर की वाणी :-
दयावन्त तुम साहेब दाता।
ऐतिक कृपा करो हो ताता।।5
पुरूष शॉप मोकहं दीन्हा।
लख जीव नित ग्रासन कीन्हा।।6
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी :-
जो जीव सकल लोक तव आवै।
कैसे क्षुधा मोर मिटावै।।7
जैसे पुरूष कृपा मोपे कीन्हा।
भौसागर का राज मोहे दीन्हा।।8
तुम भी कृपा मोपर करहु।
जो माँगे सो मोहे देहो बरहु।।9
सतयुग, त्रेता, द्वापर मांहीं।
तीनों युग जीव थोड़े जाहीं।।10
चौथा युग जब कलयुग आवै।
तब तव शरण जीव बहु जावै।।11
पृष्ठ 65 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 3 से :-
प्रथम दूत मम प्रकटै जाई।
पीछे अंश तुम्हारा आई।।12
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 6 :-
ऐसा वचन हरि मोहे दीजै।
तब संसार गवन तव कीजै।।13
‘‘जोगजीत वचन=ज्ञानी बचन‘‘
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 7 :-
अरे काल तुम परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख डारा।।14
बीनती तोरी लीन्ह मैं जानि।
मोकहं ठगा काल अभिमानी।।15
जस बीनती तू मोसन कीन्ही।
सो अब बखस तोहे दीन्ही।।16
चौथा युग जब कलयुग आवै।
तब हम अपना अंश पठावैं।।17
‘‘धर्मराय (काल) वचन‘‘
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 17 :-
हे साहिब तुम पंथ चलाऊ।
जीव उबार लोक लै जाऊ।।18
पृष्ठ 66 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 8, 9, 16 से 21 :-
सन्धि छाप (सार शब्द) मोहे दिजे ज्ञानी।
जैसे देवोंगे हंस सहदानी।।19
जो जन मोकूं संधि (सार शब्द) बतावै। ताके निकट काल नहीं आवै।।20
कहै धर्मराय जाओ संसारा।
आनहु जीव नाम आधारा।।21
जो हंसा तुम्हरे गुण गावै।
ताहि निकट हम नहीं जावैं।।22
जो कोई लेहै शरण तुम्हारी।
मम सिर पग दै होवै पारी।।23
हम तो तुम संग कीन्ह ढिठाई।
तात जान किन्ही लड़काइ।।24
कोटिन अवगुन बालक करही।
पिता एक चित नहीं धरही।।25
जो पिता बालक कूं देहै निकारी।
तब को रक्षा करै हमारी।।26
सारनाम देखो जेहि साथा।
ताहि हंस मैं नीवाऊँ माथा।।27
ज्ञानी (कबीर) वचन
अनुराग सागर पृष्ठ 66 :-
जो तोहि देहुं संधि बताई।
तो तूं जीवन को हइहो दुखदाई।।28
तुम परपंच जान हम पावा।
काल चलै नहीं तुम्हरा दावा।।29
धर्मराय तोहि प्रकट भाखा।
गुप्त अंक बीरा हम राखा।।30
जो कोई लेई नाम हमारा।
ताहि छोड़ तुम हो जाना नियारा।।31
जो तुम मोर हंस को रोको भाई।
तो तुम काल रहन नहीं पाई।।32
‘‘धर्मराय (काल निरंजन) बचन‘‘
पृष्ठ 62 तथा 63 से अनुराग सागर की वाणी :-
बेसक जाओ ज्ञानी संसारा।
जीव न मानै कहा तुम्हारा।।33
कहा तुम्हारा जीव ना मानै।
हमरी और होय बाद बखानै।।34
दृढ़ फंदा मैं रचा बनाई।
जामें सकल जीव उरझाई।।35
वेद-शास्त्र समर्ति गुणगाना।
पुत्र मेरे तीन प्रधाना।।36
तीनहू बहु बाजी रचि राखा।
हमरी महिमा ज्ञान मुख भाखा।।37
देवल देव पाषाण पुजाई।
तीर्थ व्रत जप तप मन लाई।।38
पूजा विश्व देव अराधी।
यह मति जीवों को राखा बाँधि।।39
जग (यज्ञ) होम और नेम आचारा।
और अनेक फंद मैं डारा।।40
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘
हमने कहा सुनो अन्याई।
काटों फंद जीव ले जांई।।41
जेते फंद तुम रचे विचारी।
सत्य शब्द ते सबै विडारी।।42
जौन जीव हम शब्द दृढ़ावैं।
फंद तुम्हारा सकल मुक्तावैं।।43
जबही जीव चिन्ही ज्ञान हमारा।
तजही भ्रम सब तोर पसारा।।44
सत्यनाम जीवन समझावैं।
हंस उभार लोक लै जावै।।45
पुरूष सुमिरन सार बीरा, नाम अविचल जनावहूँ।
शीश तुम्हारे पाँव देके, हंस लोक पठावहूँ।।46
ताके निकट काल नहीं आवै।
संधि देख ताको सिर नावै।।48
(संधि = सत्यनाम+सारनाम)
‘‘धर्मराय (काल) वचन‘‘
पंथ एक तुम आप चलऊ।
जीवन को सतलोक लै जाऊ।।49
द्वादश पंथ करूँ मैं साजा।
नाम तुम्हारा ले करों आवाजा।।50
द्वादश यम संसार पठाऊँ।
नाम कबीर ले पंथ चलाऊँ।।51
प्रथम दूत मेरे प्रगटै जाई।
पीछे अंश तुम्हारा आई।।52
यहि विधि जीवन को भ्रमाऊँ।
आपन नाम पुरूष का बताऊँ।।53
द्वादश पंथ नाम जो लैहि।
हमरे मुख में आन समैहि।।54
क्रमशः_______________
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kisturdas · 8 months
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( #Muktibodh_part185 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part186
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 355-356
पारख के अंग की वाणी नं. 1063-1096 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने ही गुप्त रूप में दस सिर वाले रावण को मारा। हम ही ज्ञानी हैं। चतुर भी हम ही हैं। चोर भी हम हैं क्योंकि काल के जाल से निकालने वाला स्वयं सतपुरूष होता है। अपने को छुपाकर चोरी-छुपे सच्चा ज्ञान बताता है। यह रंग रास या���ि आनंददायक वस्तुएँ भी मैंने बनाई हैं। सब आत्माओं की उत्पत्ति मैंने की है जिससे काल ब्रह्म ने भिन्न-भिन्न योनियां (जीव) बनाई हैं। जब-जब भक्तों पर आपत्ति आती है, मैं ही सहायता करता हूँ। व्रतासुर ने जब वेद चुराए थे तो मैंने ही बरहा रूप धरकर व्रतासुर को मारकर वेदों की रक्षा की थी।
हिरण्यकशिपु को मैंने ही नरसिंह रूप धारण करके उदर फाड़कर मारा था। मैंने ही बली राजा की यज्ञ में बावन रूप बनाकर तीन कदम (डंग) स्थान माँगा था। सुरपति के राज की रक्षा की थी। महिमा विष्णु की बनाई थी। इन्द्र ने विष्णु को पुकारा। विष्णु ने मुझे पुकारा।
तब मैं गया था। मैं जन्मता-मरता नहीं हूँ। इसलिए चार प्रकार से जो अंतिम संस्कार किया जाता है, वह मेरा नहीं होता। हम किसी को भ्रमित नहीं करते। काल का रूप मन सबको भ्रमित करता है। करोड़ों शंकर मरकर समूल (जड़ा मूल से) चले गए। ब्रह्मा, विष्णु की गिनती नहीं कि कितने मरकर जा चुके हैं। मैं वह परमेश्वर
हूँ जिसका गुणगान वेद तथा कतेब (कुरान व बाईबल) करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, सनकादिक भी जिसे प्राप्त नहीं कर सके, वे प्रयत्न करके थक चुके हैं। अल्फ रूप यानि मीनी सतलोक भी हमारा अंग (भाग) है। उसको भी ये प्राप्त नहीं कर सके जहाँ पर अनंत करोड़ त्रिवेणी तथा गंगा बह रही हैं। हमारे लोक में स्वर्ग-नरक नहीं, मृत्यु नहीं होती। कोई बंधन
नहीं है। सब स्वतंत्रा हैं। सत्य शब्द उस स्थान को प्राप्त करवाने का मंत्र है। केवल हमारे वचन (शब्द) से उत्पन्न ऊपर के लोक तथा उनमें रहने वाले भक्त/भक्तमती (हंस, हंसनी) अमर रहेंगे, और सब ब्रह्माण्ड एक दिन नष्ट हो जाएँगे। कच्छ, मच्छ, कूरंभ, धौल, धरती सब नष्ट हो जाएँगे। स्वर्ग, पाताल सब नष्ट हो जाएँगे। इन्द्र, कुबेर, वरूण, धर्मराय, ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव भी मर जाएँगे। आदि माया (दुर्गा) काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी मरेंगे।
सब संसार मरेगा। हम नहीं मरेंगे। जो हमारी शरण में हैं, वो नहीं मरेंगे। सतलोक में मौज करेंगे।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1097-1124 (धर्मदास जी ने कहा) :-
धर्मदास बोलत है बानी, कौंन रूप पद कहां निशानी।
तुम जो अकथ कहांनी भाषी, तुमरै आगै तुमही साषी।।1097।।
योह अचरज है लीला स्वामी, मैं नहीं जानत हूं निजधामी।
कौन रूप पदका प्रवानं, दया करौं मुझ दीजै दानं।।1098।।
हम तो तीरथ ब्रत करांही, अगम धामकी कछु सुध नांही।
गर्भ जोनि में रहैं भुलाई, पद प्रतीति नहीं मोहि आई।।1099।।
हम तुम दोय या एकम एका, सुन जिंदा मोहि कहौ बिबेका।
गुण इन्द्री और प्राण समूलं, इनका कहो कहां अस्थूलं।।1100।।
तुम जो बटकबीज कहिदीन्या, तुमरा ज्ञान हमौं नहीं चीन्या।
हमकौं चीन्ह न परही जिंदा, कैसे मिटै प्राण दुख दुन्दा।।1101।।
त्रिदेवनकी की महिमा अपारं, ये हैं सर्व लोक करतारं।
सुन जिन्दा क्यूं बात बनाव, झूठी कहानी मोहे सुनावैं।।1102।।
मैं ना मानुं, बात तुम्हारी। मैं सेवत हूँ, विष्णु नाथ मुरारी।
शंकर-गौरी गणेश पुजाऊँ, इनकी सेवा सदा चित लाऊँ।।1103।।
तहां वहां लीन भये निरबांनी, मगन रूप साहिब सैलानी।
तहां वहां रोवत है धर्मनीनागर, कहां गये तुम सुख के सागर।।1104।।
अधिक बियोग हुआ हम सेती, जैसैं निर्धन की लुटी गई खेती।
कलप करै और मन में रोवै, दशौं दिशा कौं वह मग जोवै।।1105।।
हम जानैं तुम देह स्वरूपा, हमरी बुद्धि अंध गृह कूपा।
हमतो मानुषरूप तुम जान्या, सुन सतगुरू कहां कीन पियाना।।1106।।
बेग मिलौ करि हूं अपघाता, मैं नाहीं जीवूं सुनौं विधाता।
अगम ज्ञान कुछि मोहि सुनाया, मैं जीवूं नहीं अविगत राया।।1107।।
तुम सतगुरू अबिगत अधिकारी, मैं नहीं जानी लीला थारी।
तुम अविगत अविनाशी सांई, फिरि मोकूं कहां मिलौ गोसांई।।1108।।
दोहा - कमर कसी धर्मदास कूं, पूरब पंथ पयान।
गरीब दास रोवत चले, बांदौगढ अस्थान।।1109।।
जा पौंहचैं काशी अस्थाना, मौमन के घरि बुनि है ताना।
षटमास बीतै जदि भाई, तहां धर्मदास यग उपराई।।1110।।
बांदौगढ में यग आरंभा, तहां षटदर्शन अधि अचंभा।
यज्ञमांहि जगदीश न आये, धर्मदास ढूंढत कलपाये।।1111।।
अनंत भेष टुकड़े के आहारी, भेटै नहीं जिंद व्यौपारी।
तहां धर्मदास कलप जब कीनं, पलक बीच बैठै प्रबीनं।।1112।।
औही जिंदे का बदन शरीरं, बैठे कदंब वृक्ष के तीरं।
चरण लिये चिंतामणि पाई, अधिक हेत सें कंठ लगाई।।1113।।
◆ कबीर वचन :-
अजब कुलाहल बोलत बानी, तुम धर्मदास करूं प्रवानी।
तुम आए बांदौगढ स्थाना, तुम कारण हम कीन पयाना।।1114।।
अललपंख ज्यूं मारग मोरा, तामधि सुरति निरति का डोरा।
ऐसा अगम ज्ञान गोहराऊँ, धर्मदास पद पदहिं समाऊं।।1115।।
गुप्त कलप तुम राखौं मोरी, देऊँ मक्रतार की डोरी।
पद प्रवानि करूं धर्मदासा, गुप्त नाम हृदय प्रकाशा।।1116।।
हम काशी में रहैं हमेशं, मोमिन घर ताना प्रवेशं।
भक्ति भाव लोकन कौ देही, जो कोई हमारी सिष बुद्धि लेही।।1117।।
ऐसी कलप करौ गुरूराया, जैसे अंधरें लोचन पाया।
ज्यूं भूखैकौ भोजन भासै, क्षुध्या मिटि है कलप तिरासै।।1118।।
जैसै जल पीवत तिस जाई, प्राण सुखी होय तृप्ती पाई।
जैसे निर्धनकूं धन पावैं, ऐसैं सतगुरू कलप मिटावैं।।1119।।
कैसैं पिण्ड प्राण निसतरहीं, यह गुण ख्याल परख नहीं परहीं।
तुम जो कहौ हम पद प्रवानी, हम यह कैसैं जानैं सहनानी।।1120।।
दोहा - धर्म कहैं सुन जिंद तुम, हम पाये दीदार।
गरीबदास नहीं कसर कुछ, उधरे मोक्षद्वार।।1121।।
◆ कबीर वचन :-
अजर करूं अनभै प्रकाशा, खोलि कपाट दिये धर्मदासा।
पद बिहंग निज मूल लखाया, सर्व लोक एकै दरशाया।।1122।।
खुलै कपाट घाटघट माहीं, शंखकिरण ज्योति झिलकांहीं।
सकल सृष्टि में देख्या जिंदा, जामन मरण कटे सब फंदा।।1123।।
दोहा - जिंद कहैं धर्मदास सैं, अभय दान तुझ दीन।
गरीबदास नहीं जूंनि जग, हुय अभय पद लीन।।1124।।
क्रमशः_______________
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dulichanddas · 9 months
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#GodMorningFriday
गरीब, पंजा दस्त कबीर का, सिर पर राखो हंस। जम किंकर चंपै नहीं, उधरि जात है बंस।।
सतलोक आश्रम सोजत (राज.)
हे साधक! परमात्मा कबीर जी का कृपा पात्र बने रहना यानि कबीर जी की शरण में रहना।
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jayshankars-blog · 1 year
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( #MuktiBodh_Part55 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part56
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (99-100)
एक अन्य करिश्मा जो उस काशी भण्डारे में हुआ।
वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शॉल) दिया जा रहा था।
इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों तथा एक लाख ��ेवादार जो सतलोक से आए थे, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। हजम भी हो रहा था। किसी रोगी तथा वृद्ध को कोई परेशानी नहीं हो रही थी। उन सबको मध्य के दिन चिंता हुई कि न तो पेट भारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाऐं। सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते, आप निश्चिंत रहो। फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है, परंतु कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको लैट्रिन जाने का दबाव हुआ। सब शहर से बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकी आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। परमेश्वर कबीर जी को परमेश्वर नहीं स्वीकारा। पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली (Duplicate) है।
उपरोक्त वाणी का सरलार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने भक्ति और भक्त तथा भगवान की महिमा बनाए रखने के लिए यह लीला की। स्वयं ही केशव बने, स्वयं भक्त बने।(112)
स्वामी रामानंद ने परमेश्वर कबीर जी को सतलोक में व पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर देखकर कहा था :-
दोहूँ ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारने, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरू तुम हंस।
गरीबदास तव रूप बिन, और न दूजा अंश।।
बोलत रामानंद जी, सुनो कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुम ही बोलनहार।।
◆वाणी नं. 113 से 117 :-
गरीब, सोहं ऊपरि और है, सत सुकत एक नाम।
सब हंसों का बंस है, सुंन बसती नहिं गाम।।113।।
गरीब, सोहं ऊपरि और है, सुरति निरति का नाह।
सोहं अंतर पैठकर, सतसुकृत लौलाह।।114।।
गरीब, सोहं ऊपरि और है, बिना मूल का फूल।
ताकी गंध सुगंध है, जाकूं पलक न भूल।।115।।
गरीब, सोहं ऊपरि और है, बिन बेलीका कंद।
राम रसाइन पीजियै, अबिचल अति आनंद।।116।।
गरीब, सोहं ऊपरि और है, कोइएक जाने भेव।
गोपि गोसांई गैब धुनि, जाकी करि लै सेव।।117।।
◆ सरलार्थ :- जैसा कि परमेश्वर कबीर जी ने कहा है तथा संत गरीबदास जी ने बोला है :- सोहं शब्द हम जग में लाए, सार शब्द हम गुप्त छिपाए। उसी का वर्णन इन अमृतवाणियों में है कि कुछ संत व गुरूजन परमेश्वर कबीर जी क�� वाणी से सोहं शब्द पढ़कर उसको
अपने शिष्यों को जाप के लिए देते हैं। वे इस दिव्य मंत्र की दीक्षा देने के अधिकारी नहीं हैं और सोहं का उपदेश यानि प्रचार करके फिर नाम देना सम्पूर्ण दीक्षा पद्यति नहीं है। अधूरा नाम है। मोक्ष नहीं हो सकता। सोहं नाम के ऊपर एक सुकृत यानि कल्याणकारक (सम्पूर्ण मोक्ष मंत्र) और है। वह सब हंसों यानि निर्मल भक्तों के वंश (अपना परंपरागत मंत्र) है जिसे भूल जाने के कारण मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। यदि यह मंत्र प्राप्त नहीं होता है तो उनको (नहीं बस्ती नहीं गाम) कोई ठिकाना नहीं मिलता। वे घर के रहते न घाट के यानि मोक्ष प्राप्त नहीं होता।(113)
◆ सोहं से ऊपर जो कल्याणकारक (सत सुकृत) नाम है, उसका स्मरण सुरति-निरति से होता है यानि ध्यान से उसका जाप करना होता है। सोहं नाम का जाप करते-करते उस सारशब्द का भी जाप ध्यान से करना है। उसमें (लौ ला) लगन लगा।(114)
◆ जो सार शब्द है, वह सत्य पुरूष जी का नाम जाप है। उस परमेश्वर के कोई
माता-पिता नहीं हैं यानि उनकी उत्पत्ति नहीं हुई। (बिन बेली) बिना बेल के लगा फूल है अर्थात् स्वयंभू परमात्मा कबीर जी हैं। उसके सुमरण से अच्छा परिणाम मिलेगा यानि सतलोक में उठ रही सुगंध आएगी। उस परमात्मा के सार शब्द को तथा उस मालिक को
पलक (क्षण) भी ना भूलना। वही आपका उपकार करेंगे।(115)
◆ वाणी नं. 116 का सरलार्थ :- वाणी नं. 115 वाला ही सरलार्थ है। इसमें फूल के स्थान पर कंद (मेवा) कहा है। उस परमेश्वर वाली इस सत्य भक्ति रूपी रसाईन (जड़ी-बूटी की) पीजिए यानि श्रद्धा से सुमरण कीजिए जो अविचल (सदा रहने वाला), आनन्द (सुख) यानि पूर्ण मोक्ष है। वह प्राप्त होगा।(116)
◆ जो सारशब्द सोहं से ऊपर है, उसका भेद कोई-कोई ही जानता है। गोपि (गुप्त) यानि अव्यक्त, गोसांई (परमात्मा) गैब (गुप्त) धुनि यानि उस जाप से स्मरण की आवाज बनती
है। उसे धुन कहा है। उस मंत्र की सेव यानि पूजा (स्मरण) करो।(117)
◆ वाणी नं. 118 :-
गरीब, सुरति लगै अरु मनलगै, लगै निरति धुनि ध्यान।
च्यार जुगन की बंदगी, एक पलक प्रवान।।118।।
◆ सरलार्थ :- उस सम्पूर्ण दीक्षा मंत्र का सुमरण (स्मरण) ध्यानपूर्वक करना है। उसका स्मरण करते समय सुरति-निरति तथा मन नाम के जाप में लगा रहे।
ऐसा न हो कि :-
कबीर, माला तो कर में फिरै, जिव्हा फिरै मुख मांही।
मनवा तो चहुँ दिश फिरै, यह तो सुमरण नांही।।
सुरति-निरति तथा मन व श्वांस (पवन) के साथ स्मरण करने से एक ही नाम जाप से चार युगों तक की गई शास्त्रविरूद्ध मंत्रों के जाप की भक्ति से भी अधिक फल मिल जाता
है।(118)
◆ वाणी नं. 119 :-
गरीब, सुरति लगै अरु मनलगै, लगै निरति तिस ठौर।
संकर बकस्या मेहर करि, उभर भई जद गौर।।119।।
◆ सरलार्थ :- उपरोक्त विधि से स्मरण करना उचित है। उदाहरण बताया है कि जैसे शंकर भगवान ने कृपा करके पार्वती जी को गुप्त मंत्र बताया जो प्रथम मंत्र यह दास (रामपाल दास) देता है जो शास्त्रोक्त नाम है और देवी जी ने उस स्मरण को ध्यानपूर्वक
किया तो तुरंत लाभ मिला।(119)
◆ वाणी नं. 120 :-
गरीब, सुरति लगै और मन लगै, लगै निरति तिसमांहि।
एक पलक तहां संचरै, कोटि पाप अघ जाहिं।।120।।
◆ सरलार्थ :- उपरोक्त विधि के सुमरण (स्मरण) से एक क्षण में करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं।(120)
क्रमशः__________________
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rightnewshp · 1 year
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बीजेपी विधायक डॉ हंस राज ने बताए भांग के फायदे, कहा, एक बार सेवन किया था तो चार दिन उठ नही पाए RightNewsIndia.com #RightNewsIndia #Himachal #News (at Himachal Pradesh) https://www.instagram.com/p/CquYCLmvmBE/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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jyotis-things · 6 months
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( #Muktibodh_part229 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part230
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 440-441
‘‘प्रमाण के लिए पवित्र कबीर सागर से भिन्न-भिन्न अध्यायों से अमृत बानी’’
‘‘कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता‘‘
अनुराग सागर के पृष्ठ 62 से :-
‘‘धर्मराय (ज्योति निरंजन) वचन‘‘
धर्मराय अस विनती ठानी।
मैं सेवक द्वितीया न जानी।।1
ज्ञानी बिनती एक हमारा।
सो न करहू जिह से हो मोर बिगारा।।2
पुरूष दीन्ह जस मोकहं राजु।
तुम भी देहहु तो होवे मम काजु।।3
अब मैं वचन तुम्हरो मानी।
लीजो हंसा हम सो ज्ञानी।।4
पृष्ठ 63 से अनुराग सागर की वाणी :-
दयावन्त तुम साहेब दाता।
ऐतिक कृपा करो हो ताता।।5
पुरूष शॉप मोकहं दीन्हा।
लख जीव नित ग्रासन कीन्हा।।6
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी :-
जो जीव सकल लोक तव आवै।
कैसे क्षुधा मोर मिटावै।।7
जैसे पुरूष कृपा मोपे कीन्हा।
भौसागर का राज मोहे दीन्हा।।8
तुम भी कृपा मोपर करहु।
जो माँगे सो मोहे देहो बरहु।।9
सतयुग, त्रेता, द्वापर मांहीं।
तीनों युग जीव थोड़े जाहीं।।10
चौथा युग जब कलयुग आवै।
तब तव शरण जीव बहु जावै।।11
पृष्ठ 65 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 3 से :-
प्रथम दूत मम प्रकटै जाई।
पीछे अंश तुम्हारा आई।।12
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 6 :-
ऐसा वचन हरि मोहे दीजै।
तब संसार गवन तव कीजै।।13
‘‘जोगजीत वचन=ज्ञानी बचन‘‘
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 7 :-
अरे काल तुम परपंच पसारा।
तीनों युग जीवन दुख डारा।।14
बीनती तोरी लीन्ह मैं जानि।
मोकहं ठगा काल अभिमानी।।15
जस बीनती तू मोसन कीन्ही।
सो अब बखस तोहे दीन्ही।।16
चौथा युग जब कलयुग आवै।
तब हम अपना अंश पठावैं।।17
‘‘धर्मराय (काल) वचन‘‘
पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 17 :-
हे साहिब तुम पंथ चलाऊ।
जीव उबार लोक लै जाऊ।।18
पृष्ठ 66 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 8, 9, 16 से 21 :-
सन्धि छाप (सार शब्द) मोहे दिजे ज्ञानी।
जैसे देवोंगे हंस सहदानी।।19
जो जन मोकूं संधि (सार शब्द) बतावै। ताके निकट काल नहीं आवै।।20
कहै धर्मराय जाओ संसारा।
आनहु जीव नाम आधारा।।21
जो हंसा तुम्हरे गुण गावै।
ताहि निकट हम नहीं जावैं।।22
जो कोई लेहै शरण तुम्हारी।
मम सिर पग दै होवै पारी।।23
हम तो तुम संग कीन्ह ढिठाई।
तात जान किन्ही लड़काइ।।24
कोटिन अवगुन बालक करही।
पिता एक चित नहीं धरही।।25
जो पिता बालक कूं देहै निकारी।
तब को रक्षा करै हमारी।।26
सारनाम देखो जेहि साथा।
ताहि हंस मैं नीवाऊँ माथा।।27
ज्ञानी (कबीर) वचन
अनुराग सागर पृष्ठ 66 :-
जो तोहि देहुं संधि बताई।
तो तूं जीवन को हइहो दुखदाई।।28
तुम परपंच जान हम पावा।
काल चलै नहीं तुम्हरा दावा।।29
धर्मराय तोहि प्रकट भाखा।
गुप्त अंक बीरा हम राखा।।30
जो कोई लेई नाम हमारा।
ताहि छोड़ तुम हो जाना नियारा।।31
जो तुम मोर हंस को रोको भाई।
तो तुम काल रहन नहीं पाई।।32
‘‘धर्मराय (काल निरंजन) बचन‘‘
पृष्ठ 62 तथा 63 से अनुराग सागर की वाणी :-
बेसक जाओ ज्ञानी संसारा।
जीव न मानै कहा तुम्हारा।।33
कहा तुम्हारा जीव ना मानै।
हमरी और होय बाद बखानै।।34
दृढ़ फंदा मैं रचा बनाई।
जामें सकल जीव उ��झाई।।35
वेद-शास्त्र समर्ति गुणगाना।
पुत्र मेरे तीन प्रधाना।।36
तीनहू बहु बाजी रचि राखा।
हमरी महिमा ज्ञान मुख भाखा।।37
देवल देव पाषाण पुजाई।
तीर्थ व्रत जप तप मन लाई।।38
पूजा विश्व देव अराधी।
यह मति जीवों को राखा बाँधि।।39
जग (यज्ञ) होम और नेम आचारा।
और अनेक फंद मैं डारा।।40
‘‘ज्ञानी (कबीर) वचन‘‘
हमने कहा सुनो अन्याई।
काटों फंद जीव ले जांई।।41
जेते फंद तुम रचे विचारी।
सत्य शब्द ते सबै विडारी।।42
जौन जीव हम शब्द दृढ़ावैं।
फंद तुम्हारा सकल मुक्तावैं।।43
जबही जीव चिन्ही ज्ञान हमारा।
तजही भ्रम सब तोर पसारा।।44
सत्यनाम जीवन समझावैं।
हंस उभार लोक लै जावै।।45
पुरूष सुमिरन सार बीरा, नाम अविचल जनावहूँ।
शीश तुम्हारे पाँव देके, हंस लोक पठावहूँ।।46
ताके निकट काल नहीं आवै।
संधि देख ताको सिर नावै।।48
(संधि = सत्यनाम+सारनाम)
‘‘धर्मराय (काल) वचन‘‘
पंथ एक तुम आप चलऊ।
जीवन को सतलोक लै जाऊ।।49
द्वादश पंथ करूँ मैं साजा।
नाम तुम्हारा ले करों आवाजा।।50
द्वादश यम संसार पठाऊँ।
नाम कबीर ले पंथ चलाऊँ।।51
प्रथम दूत मेरे प्रगटै जाई।
पीछे अंश तुम्हारा आई।।52
यहि विधि जीवन को भ्रमाऊँ।
आपन नाम पुरूष का बताऊँ।।53
द्वादश पंथ नाम जो लैहि।
हमरे मुख में आन समैहि।।54
क्रमशः_______________
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jagdishgarg · 2 years
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कबीर, तीन लोक का राज है, ये ब्रह्मा विष्णु महेश।
ऊंचा धाम कबीर का, पार न पावे शेष।।🙏🙏🙏
गरीब, ब्रह्मा शिव ध्यान धरै, विष्णु करै प्रणाम।
सतगुरु बिन पावै नहीं, कबीर पुरुष का धाम।।
गरीब चार मुक्ति बैकुंठ बट, सप्तपुरी सैलान।
आगे धाम कबीर का, हंस ना पावे जान।।🙏🙏
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crazynewsindia · 2 years
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ट्रक वालों ने अल्ट्राटेक द्वारा माल ढुलाई दर में कटौती को खारिज किया
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सोलन जिले के अर्की उपमंडल के बागा में अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री का प्रबंधन अडानी समूह के रास्ते पर जाता दिख रहा है, क्योंकि कल शाम उसने एकतरफा रूप से माल ढुलाई दरों में कमी को अधिसूचित किया। अल्ट्राटेक एमजीएमटी के अनुसार, दोनों श्रेणियों के लिए 10.71 पीटीपीके की मौजूदा दर के मुकाबले कठोर एक्सल और मल्टी-एक्सल वाहनों के लिए पहाड़ी इलाकों के लिए क्रमशः 10.30 पीटीपीके और 9.30 पीटीपीके की भाड़ा दरों को अधिसूचित किया गया है। मैदानी क्षेत्रों के लिए सभी वाहनों के लिए 5.15 रुपये पीटीपीके की दर निर्धारित की गई है   ट्रांसपोर्टरों की छह सोसायटियों ने कारखाना प्रबंधन के एकतरफा फैसले को मानने से इनकार कर दिया है. इस घटनाक्रम से राज्य सरकार के लिए एक नई चुनौती पैदा होने की संभावना है, जो ट्रांसपोर्टरों और अडानी समूह प्रबंधन के बीच दो महीने के गतिरोध को मुश्किल से हल कर पाई है।   अल्ट्राटेक सीमेंट प्रबंधन द्वारा जारी पत्र के अनुसार, पहाड़ी इलाकों के लिए 10.30 रुपये प्रति टन प्रति किमी (PTPK) और 9.30 रुपये PTPK की माल ढुलाई दरों को क्रमशः कठोर एक्सल और मल्टी-एक्सल वाहनों के लिए अधिसूचित किया गया है। दोनों श्रेणियों के लिए 10.71 रुपये पीटीपीके की दर। मैदानी क्षेत्रों के लिए सभी वाहनों के लिए 5.15 रुपये पीटीपीके की दर निर्धारित की गई है।   प्रबंधन ने दावा किया कि प्रचलित क्लस्टर पैटर्न और कल ट्रांसपोर्टरों के साथ हुई बैठक के अनुसार दरों को संशोधित किया गया था। अडानी समूह प्रबंधन द्वारा कुछ दिन पहले अधिसूचित दरों को अल्ट्राटेक सीमेंट प्रबंधन द्वारा अपनाया गया है।   अल्ट्राटेक संयंत्र अडानी समूह प्रबंधन के दाड़लाघाट स्थित संयंत्र से 45 किमी के दायरे में स्थित है।   ट्रांसपोर्टरों ने कंपनी द्वारा माल भाड़े में इस एकतरफा कटौती का विरोध किया है। करीब 1,850 ट्रक चलाने वाली बघल लैंड लॉसर्स ट्रांसपोर्ट सोसाइटी के सचिव हंस राज ने कहा, "यह जानकर हैरानी हुई है कि कंपनी प्रबंधन ने आज नई माल ढुलाई की घोषणा की, हालांकि यह कल ��य किया गया था।" उन्होंने कहा कि दरों को अस्वीकार करने का पत्र प्रबंधन और जिला प्रशासन को भेजा जा चुका है। हंस राज ने कहा, "अडानी संयंत्रों में प्रचलित माल ढुलाई दर की अल्ट्राटेक संयंत्र के साथ तुलना करना अनुचित है।" अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट में 3,500 से ज्यादा ट्रक काम करते हैं।   Read the full article
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seedharam · 2 years
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#भविष्यवाणी "दिल्ली के तख्त पर कौन विराजमान होगा.....?
🌼🌼🌼 सतगुरू देव जी की जय हो 🌼🌼🌼
*🍁 वाणी 🍁
दिल्ली के तख्त छत्तर फेर भी फिरायसी,
खेलत गुफ्तार सैन भंजन सब फौकट फैन,
महियल राज बाला पुरूष सतगुरू दिखलायसी।।
*➡️ सरलार्थ :- भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली के तख्त अर्थात् गद्दी (सिंहासन) पर बैठेगा। उसके सिर पर पुराने राजा-महाराजाओं की तरह छत्तर फिरेगा अर्थात् छत्तर से शोभा की जाएगी। महियल (माहिर) अर्थात् राजकाज में निपुण (कुशल) राज बाला अर्थात् राजा बनने वाले पुरूष को सतगुरू दिखाएगा। यह गुप्त खेल संकेत से कहा है। उस सतगुरू के प्रकट होने के पश्चात् सब फोकट अर्थात् व्यर्थ फैन अर्थात् महिमा किसी अन्य की बताई है, वह भंजन यानि समाप्त हो जाएगी।
तुम साहेब तुम सन्त हो, तुम सतगुरू तुम हंस *
गरीबदास तुव रूप बिना, और ना दूजा अंश **
√√√ वास्तविक अध्यात्मिक नॉलेज को बारिकी से समझने के लिए सपरिवार आज ही देखिये,यथार्थ अध्यात्मिक सत्संग-प्रवचन का कार्यक्रम...
--> mh -1 श्रद्धा टीवी चैनल पर दोपहर 02:00 - 03:00 pm.
--> पॉपकॉर्न टीवी चैनल /साधना टीवी चैनल पर सायं 07:30 - 08:30 pm.
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pradeepdasblog · 8 months
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( #Muktibodh_part185 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part186
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 355-356
पारख के अंग की वाणी नं. 1063-1096 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने ही गुप्त रूप में दस सिर वाले रावण को मारा। हम ही ज्ञानी हैं। चतुर भी हम ही हैं। चोर भी हम हैं क्योंकि काल के जाल से निकालने वाला स्वयं सतपुरूष होता है। अपने को छुपाकर चोरी-छुपे सच्चा ज्ञान बताता है। यह रंग रास यानि आनंददायक वस्तुएँ भी मैंने बनाई हैं। सब आत्माओं की उत्पत्ति मैंने की है जिससे काल ब्रह्म ने भिन्न-भिन्न योनियां (जीव) बनाई हैं। जब-जब भक्तों पर आपत्ति आती है, मैं ही सहायता करता हूँ। व्रतासुर ने जब वेद चुराए थे तो मैंने ही बरहा रूप धरकर व्रतासुर को मारकर वेदों की रक्षा की थी।
हिरण्यकशिपु को मैंने ही नरसिंह रूप धारण करके उदर फाड़कर मारा था। मैंने ही बली राजा की यज्ञ में बावन रूप बनाकर तीन कदम (डंग) स्थान माँगा था। सुरपति के राज की रक्षा की थी। महिमा विष्णु की बनाई थी। इन्द्र ने विष्णु को पुकारा। विष्णु ने मुझे पुकारा।
तब मैं गया था। मैं जन्मता-मरता नहीं हूँ। इसलिए चार प्रकार से जो अंतिम संस्कार किया जाता है, वह मेरा नहीं होता। हम किसी को भ्रमित नहीं करते। काल का रूप मन सबको भ्रमित करता है। करोड़ों शंकर मरकर समूल (जड़ा मूल से) चले गए। ब्रह्मा, विष्णु की गिनती नहीं कि कितने मरकर जा चुके हैं। मैं वह परमेश्वर
हूँ जिसका गुणगान वेद तथा कतेब (कुरान व बाईबल) करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, सनकादिक भी जिसे प्राप्त नहीं कर सके, वे प्रयत्न करके थक चुके हैं। अल्फ रूप यानि मीनी सतलोक भी हमारा अंग (भाग) है। उसको भी ये प्राप्त नहीं कर सके जहाँ पर अनंत करोड़ त्रिवेणी तथा गंगा बह रही हैं। हमारे लोक में स्वर्ग-नरक नहीं, मृत्यु नहीं होती। कोई बंधन
नहीं है। सब स्वतंत्रा हैं। सत्य शब्द उस स्थान को प्राप्त करवाने का मंत्र है। केवल हमारे वचन (शब्द) से उत्पन्न ऊपर के लोक तथा उनमें रहने वाले भक्त/भक्तमती (हंस, हंसनी) अमर रहेंगे, और सब ब्रह्म���ण्ड एक दिन नष्ट हो जाएँगे। कच्छ, मच्छ, कूरंभ, धौल, धरती सब नष्ट हो जाएँगे। स्वर्ग, पाताल सब नष्ट हो जाएँगे। इन्द्र, कुबेर, वरूण, धर्मराय, ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव भी मर जाएँगे। आदि माया (दुर्गा) काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी मरेंगे।
सब संसार मरेगा। हम नहीं मरेंगे। जो हमारी शरण में हैं, वो नहीं मरेंगे। सतलोक में मौज करेंगे।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1097-1124 (धर्मदास जी ने कहा) :-
धर्मदास बोलत है बानी, कौंन रूप पद कहां निशानी।
तुम जो अकथ कहांनी भाषी, तुमरै आगै तुमही साषी।।1097।।
योह अचरज है लीला स्वामी, मैं नहीं जानत हूं निजधामी।
कौन रूप पदका प्रवानं, दया करौं मुझ दीजै दानं।।1098।।
हम तो तीरथ ब्रत करांही, अगम धामकी कछु सुध नांही।
गर्भ जोनि में रहैं भुलाई, पद प्रतीति नहीं मोहि आई।।1099।।
हम तुम दोय या एकम एका, सुन जिंदा मोहि कहौ बिबेका।
गुण इन्द्री और प्राण समूलं, इनका कहो कहां अस्थूलं।।1100।।
तुम जो बटकबीज कहिदीन्या, तुमरा ज्ञान हमौं नहीं चीन्या।
हमकौं चीन्ह न परही जिंदा, कैसे मिटै प्राण दुख दुन्दा।।1101।।
त्रिदेवनकी की महिमा अपारं, ये हैं सर्व लोक करतारं।
सुन जिन्दा क्यूं बात बनाव, झूठी कहानी मोहे सुनावैं।।1102।।
मैं ना मानुं, बात तुम्हारी। मैं सेवत हूँ, विष्णु नाथ मुरारी।
शंकर-गौरी गणेश पुजाऊँ, इनकी सेवा सदा चित लाऊँ।।1103।।
तहां वहां लीन भये निरबांनी, मगन रूप साहिब सैलानी।
तहां वहां रोवत है धर्मनीनागर, कहां गये तुम सुख के सागर।।1104।।
अधिक बियोग हुआ हम सेती, जैसैं निर्धन की लुटी गई खेती।
कलप करै और मन में रोवै, दशौं दिशा कौं वह मग जोवै।।1105।।
हम जानैं तुम देह स्वरूपा, हमरी बुद्धि अंध गृह कूपा।
हमतो मानुषरूप तुम जान्या, सुन सतगुरू कहां कीन पियाना।।1106।।
बेग मिलौ करि हूं अपघाता, मैं नाहीं जीवूं सुनौं विधाता।
अगम ज्ञान कुछि मोहि सुनाया, मैं जीवूं नहीं अविगत राया।।1107।।
तुम सतगुरू अबिगत अधिकारी, मैं नहीं जानी लीला थारी।
तुम अविगत अविनाशी सांई, फिरि मोकूं कहां मिलौ गोसांई।।1108।।
दोहा - कमर कसी धर्मदास कूं, पूरब पंथ पयान।
गरीब दास रोवत चले, बांदौगढ अस्थान।।1109।।
जा पौंहचैं काशी अस्थाना, मौमन के घरि बुनि है ताना।
षटमास बीतै जदि भाई, तहां धर्मदास यग उपराई।।1110।।
बांदौगढ में यग आरंभा, तहां षटदर्शन अधि अचंभा।
यज्ञमांहि जगदीश न आये, धर्मदास ढूंढत कलपाये।।1111।।
अनंत भेष टुकड़े के आहारी, भेटै नहीं जिंद व्यौपारी।
तहां धर्मदास कलप जब कीनं, पलक बीच बैठै प्रबीनं।।1112।।
औही जिंदे का बदन शरीरं, बैठे कदंब वृक्ष के तीरं।
चरण लिये चिंतामणि पाई, अधिक हेत सें कंठ लगाई।।1113।।
◆ कबीर वचन :-
अजब कुलाहल बोलत बानी, तुम धर्मदास करूं प्रवानी।
तुम आए बांदौगढ स्थाना, तुम कारण हम कीन पयाना।।1114।।
अललपंख ज्यूं मारग मोरा, तामधि सुरति निरति का डोरा।
ऐसा अगम ज्ञान गोहराऊँ, धर्मदास पद पदहिं समाऊं।।1115।।
गुप्त कलप तुम राखौं मोरी, देऊँ मक्रतार की डोरी।
पद प्रवानि करूं धर्मदासा, गुप्त नाम हृदय प्रकाशा।।1116।।
हम काशी में रहैं हमेशं, मोमिन घर ताना प्रवेशं।
भक्ति भाव लोकन कौ देही, जो कोई हमारी सिष बुद्धि लेही।।1117।।
ऐसी कलप करौ गुरूराया, जैसे अंधरें लोचन पाया।
ज्यूं भूखैकौ भोजन भासै, क्षुध्या मिटि है कलप तिरासै।।1118।।
जैसै जल पीवत तिस जाई, प्राण सुखी होय तृप्ती पाई।
जैसे निर्धनकूं धन पावैं, ऐसैं सतगुरू कलप मिटावैं।।1119।।
कैसैं पिण्ड प्राण निसतरहीं, यह गुण ख्याल परख नहीं परहीं।
तुम जो कहौ हम पद प्रवानी, हम यह कैसैं जानैं सहनानी।।1120।।
दोहा - धर्म कहैं सुन जिंद तुम, हम पाये दीदार।
गरीबदास नहीं कसर कुछ, उधरे मोक्षद्वार।।1121।।
◆ कबीर वचन :-
अजर करूं अनभै प्रकाशा, खोलि कपाट दिये धर्मदासा।
पद बिहंग निज मूल लखाया, सर्व लोक एकै दरशाया।।1122।।
खुलै कपाट घाटघट माहीं, शंखकिरण ज्योति झिलकांहीं।
सकल सृष्टि में देख्या जिंदा, जामन मरण कटे सब फंदा।।1123।।
दोहा - जिंद कहैं धर्मदास सैं, अभय दान तुझ दीन।
गरीबदास नहीं जूंनि जग, हुय अभय पद लीन।।1124।।
क्रमशः_______________
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fuzzyyouthfun · 2 years
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#ThursdayMotivation
धर्म राय दरबार में,दई कबीर तलाक।
मेरे भूले बिसरे हंस को, पकड़िए मत कजाक।।
कबीर परमात्मा ने काल (बृहम⁠) धर्म राज को धमकाते हुए कहा है कि मेरे भक्त को कभी मत पकड़ लेना।
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