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नादिर गोदरेज प्रतिष्ठित सीएलएफएमए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से हुए सम्मानित
मुंबई, – गोदरेज इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक और गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के अध्यक्ष नादिर गोदरेज को पशुधन उद्योग में उनके योगदान और इस क्षेत्र की उपलब्धियों के लिए, हाल की में संपन्न हुए प्रतिष्ठित सीएलएफएमए ऑफ इंडिया की भारतीय संगोष्ठी (इंडिया सिम्पोज़ियम) में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। कंपाउंड फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएलएफएमए) एक शीर्ष…
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लखनऊ, 26.09.2024 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर में "नवनिर्वाचित छात्र परिषद शपथ ग्रहण एवं सम्मान समारोह" कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सहभागिता की |
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और मां सरस्वती के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया । भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ. अलका निवेदन और उप प्राचार्य डॉ. संदीप बाजपेई ने डॉ. रूपल अग्रवाल को पौधा और प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया । डॉ. रूपल अग्रवाल, प्राचार्या डॉ. अलका निवेदन एवं उप प्राचार्य डॉ. संदीप बाजपेई ने नवनिर्वाचित छात्र परिषद की सभी छात्राओं को बैच लगाए तथा शपथ दिलाई, साथ ही कॉलेज में आयोजित की गई विभिन्न प्रतियोगिताओं की विजेता छात्राओं को प्रतीक चिन्ह, प्रमाण पत्र एवं मैडल देकर सम्मानित किया | छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए |
सभी छात्राओं को बधाई देते हुए डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि, "आज आप सभी ने अपने कॉलेज के कर्तव्यों का निर्वहन करने की शपथ ली है | मुझे आशा है कि आप सभी अपनी हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाएंगे और अपने माता-पिता एवं कॉलेज का नाम समाज में रोशन करेंगे |"
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ अलका निवेदन, उप प्राचार्य डॉ संदीप बाजपेई, शिक्षिकाओं, अभिभावकों एवं छात्र-छात्राओं की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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Every dream is coming true with the double engine government of Bharatiya Janata Party: Colonel Rajyavardhan Rathore
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने उपचुनाव के लिए की मतदाताओं से अवश्य VOTE करने की अपील
राजस्थान के मतदाताओं से कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ की अपील, कहा- विकसित भारत-विकसित राजस्थान की यात्रा मिलकर तय करें
भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार से हर सपना साकार हो रहा है : कर्नल राज्यवर्धन राठौड़
राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री और झोटवाड़ा से ���ाजपा के लोकप्रिय विधायक कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने सभी सम्मानित मतदाताओं से मतदान अवश्य करने की विनम्र अपील की है। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार से हर सपना साकार हो रहा है।
राजस्थान में भाजपा सरकार ने एक वर्ष से भी कम समय में ही वो बदलाव किए हैं, जो कई वर्षों में नहीं हुए थे। बेहतरीन Infrastructure, PaperLeak पर प्रभावी रोकथाम, युवाओं के लिए Skilling, Reskilling और Upskilling गांव-गांव तक स्व-रोजगार का विस्तार, सरकार के पहले ही वर्ष में सबसे बड़े Rising Rajasthan का आयोजन, जिससे प्रदेश में देश-विदेश से बड़ा निवेश आ रहा है, नए-नए रोजगार की Opportunities Create हो रही हैं, यानी… हर क्षेत्र में हमने विकास की एक नई मिसाल पेश की है। आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का संकल्प ‘भारत को 2047 तक एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने’ का है और आदरणीय मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा जी के नेतृत्व में राजस्थान इस सपने को पूरा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा, 13 नवंबर 2024 (बुधवार) को राजस्थान की 7 सीटों झुंझुनू, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, सलूंबर और रामगढ़ विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में एक बार फिर राजस्थान का हमारा परिवार सबके साथ, सबके विश्वास और सबके प्रयास के साथ सबके विकास का कमल खिलाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा, अबकी बार, विकास की रफ्तार के लिए फिर BJP सरकार। आप भी इस संकल्प का हिस्सा बनें। क्योंकि, एक मजबूत और समर्पित नेतृत्व ही हमारे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बना सकता है। तो आइए, एक बार फिर साथ चलें और ‘विकसित भारत-विकसित राजस्थान’ की यात्रा मिलकर तय करें।
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Manual of Chest X-Ray | Shri Jitendra Kumar | IAS | Dr Rajendra Prasad | Brajesh Pathak
09.09.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा डॉ बीसी रॉय नेशनल अवार्ड से सम्मानित डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, निदेशक, चिकित्सा शिक्षा, एरा यूनिवर्सिटी लखनऊ, डॉ निखिल गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ तथा डॉ किरण विष्णु नारायण, एडिशनल प्रोफेसर, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, त्रिवेंद्रपुरम, केरल द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन रेनेसां लखनऊ होटल, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया | मुख्य अतिथि के रूप में श्री बृजेश पाठक जी, माननीय उपमुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने कार्यक्रम में शिरकत की जबकि विशिष्ट अतिथियों में श्री विद्यासागर गुप्ता जी, पूर्व अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन, उत्तर प्रदेश, श्री बृजलाल जी, माननीय सांसद, राज्यसभा, श्री अशोक बाजपेई जी, माननीय पूर्व सांसद, राज्यसभा, श्री श्याम नंदन सिंह जी, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय एम.एल.सी., श्री बृजेश महेश्वरी जी, शिक्षाविद एवं प्रेरक वक्ता शामिल हुए | कार्यक्रम में विशेष अतिथियों के रूप में डॉ. संजीव मिश्रा जी, उप कुलपति, अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, डॉ CM सिंह जी, निदेशक, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ, डॉ सूर्यकांत जी, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्पि��ेट्री मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, डॉ गिरीश गुप्ता, होम्योपैथिक चिकित्सक, लखनऊ, प्रोफेसर अमरिका सिंह, प्रो चांसलर, निम्स यूनिवर्सिटी, जयपुर, राजस्थान तथा अन्य गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी, विशिष्ट अतिथियों एवं विशेष अतिथियों को परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत की मुहिम "एक पेड़ मां के नाम" के अंतर्गत पौधा प्रदान करके सम्मानित किया |
पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन करते हुए मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद को बधाई दी तथा कहा कि, "भारत का चिकित्सा विज्ञान नित नए आविष्कारों के साथ दुनिया में कमाल कर रहा है एवं किसी भी मामले में पीछे नहीं है क्योंकि आज जो अमेरिका में हो सकता है, जो इंग्लैंड में हो सकता है, वह भारत में भी हो सकता है | डॉ राजेंद्र प्रसाद ने चिकित्सा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया है | उनके द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" निश्चय ही पलमोनरी चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी | मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल का जिन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया | मेरा ऐसा मानना है की नर सेवा ही सच्ची नारायण सेवा है और धरती पर जो नारायण के रूप में हम सब की सेवा करते हैं वह डॉक्टर हैं | अतः हमें सभी डॉक्टरों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह दिन रात मानवता की सेवा में लगे रहते हैं | भगवान ने हम सभी को धरती पर लोगों की मदद करने के लिए भेजा है, अतः हम सबका या कर्तव्य है कि जिस तरह से भी संभव हो निर्बल और असहाय लोगों की मदद करें तथा मानवता की सच्ची सेवा करें |"
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा कि, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट देश भर मे अपनी जन सेवाए देने के लिए प्रयासरत है, 2012 में स्थापित, यह ट्रस्ट शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक उन्नति में महत्वपूर्ण एवं प्रभावी योगदान दे रहा है । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रगति में हमारे मुख्य अतिथि, श्री ब्रजेश पाठक जी भाईसाहब की प्रेरणा और मार्गदर्शन अत्यंत महत्व���ूर्ण रहा है । डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने अपनी पुस्तक मे Chest X Ray को देखना इतनी सरलता से समझाया है कि एक आम व्यक्ति भी इस Manual of Chest X Ray पुस्तक को पढ़ कर समझ सकता है | डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी के प्रेरणादायक कार्यों से हम सबको प्रेरणा मिलती है |"
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी का धन्यवाद किया तथा कहा कि, "आज मेरी 12वीं पुस्तक 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' का 2 खंडों में मान��ीय उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक द्वारा लोकार्पण किया जा रहा है, जो मेरे लिए अत्यंत गर्व और खुशी की बात है । 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' पूरी तरह से हमारे भारतीय मरीज़ और मेरे लगभग पांच दशकों के लंबे शिक्षण और नैदानिक अनुभव पर आधारित है । डॉ प्रसाद ने बताया कि यह पुस्तक यूजी, पीजी छात्रों, चिकित्सा अधिकारियों, जिला टीबी अधिकारियों (डीटीओ) और आयुष चिकित्सकों सहित सभी चिकित्सकों के लिए अत्यंत लाभकारी होगी ।
#Manual_of_Chest_X_Ray #Bookrelease #Newbook #Booklaunch
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Manual of Chest X-Ray | Shri S K Srivastava | Justice | Dr Rajendra Prasad | Brajesh Pathak
09.09.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा डॉ बीसी रॉय नेशनल अवार्ड से सम्मानित डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, निदेशक, चिकित्सा शिक्षा, एरा यूनिवर्सिटी लखनऊ, डॉ निखिल गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ तथा डॉ किरण विष्णु नारायण, एडिशनल प्रोफेसर, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, त्रिवेंद्रपुरम, केरल द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन रेनेसां लखनऊ होटल, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया | मुख्य अतिथि के रूप में श्री बृजेश पाठक जी, माननीय उपमुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने कार्यक्रम में शिरकत की जबकि विशिष्ट अतिथियों में श्री विद्यासागर गुप्ता जी, पूर्व अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन, उत्तर प्रदेश, श्री बृजलाल जी, माननीय सांसद, राज्यसभा, श्री अशोक बाजपेई जी, माननीय पूर्व सांसद, राज्यसभा, श्री श्याम नंदन सिंह जी, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय एम.एल.सी., श्री बृजेश महेश्वरी जी, शिक्षाविद एवं प्रेरक वक्ता शामिल हुए | कार्यक्रम में विशेष अतिथियों के रूप में डॉ. संजीव मिश्रा जी, उप कुलपति, अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, डॉ CM सिंह जी, निदेशक, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ, डॉ सूर्यकांत जी, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, डॉ गिरीश गुप्ता, होम्योपैथिक चिकित्सक, लखनऊ, प्रोफेसर अमरिका सिंह, प्रो चांसलर, निम्स यूनिवर्सिटी, जयपुर, राजस्थान तथा अन्य गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी, विशिष्ट अतिथियों एवं विशेष अतिथियों को परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत की मुहिम "एक पेड़ मां के नाम" के अंतर्गत पौधा प्रदान करके सम्मानित किया |
पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन करते हुए मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद को बधाई दी तथा कहा कि, "भारत का चिकित्सा विज्ञान नित नए आविष्कारों के साथ दुनिया में कमाल कर रहा है एवं किसी भी मामले में पीछे नहीं है क्योंकि आज जो अमेरिका में हो सकता है, जो इंग्लैंड में हो सकता है, वह भारत में भी हो सकता है | डॉ राजेंद्र प्रसाद ने चिकित्सा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया है | उनके द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" निश्चय ही पलमोनरी चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी | मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल का जिन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया | मेरा ऐसा मानना है की नर सेवा ही सच्ची नारायण सेवा है और धरती पर जो नारायण के रूप में हम सब की सेवा करते हैं वह डॉक्टर हैं | अतः हमें सभी डॉक्टरों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह दिन रात मानवता की सेवा में लगे रहते हैं | भगवान ने हम सभी को धरती पर लोगों की मदद करने के लिए भेजा है, अतः हम सबका या कर्तव्य है कि जिस तरह से भी संभव हो निर्बल और असहाय लोगों की मदद करें तथा मानवता की सच्ची सेवा करें |"
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा कि, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट देश भर मे अपनी जन सेवाए देने के लिए प्रयासरत है, 2012 में स्थापित, यह ट्रस्ट शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक उन्नति में महत्वपूर्ण एवं प्रभावी योगदान दे रहा है । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रगति में हमारे मुख्य अतिथि, श्री ब्रजेश पाठक जी भाईसाहब की प्रेरणा और मार्गदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है । डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने अपनी पुस्तक मे Chest X Ray को देखना इतनी सरलता से समझाया है कि एक आम व्यक्ति भी इस Manual of Chest X Ray पुस्तक को पढ़ कर समझ सकता है | डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी के प्रेरणादायक का��्यों से हम सबको प्रेरणा मिलती है |"
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी का धन्यवाद किया तथा कहा कि, "आज मेरी 12वीं पुस्तक 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' का 2 खंडों में माननीय उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक द्वारा लोकार्पण किया जा रहा है, जो मेरे लिए अत्यंत गर्व और खुशी की बात है । 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' पूरी तरह से हमारे भारतीय मरीज़ और मेरे लगभग पांच दशकों के लंबे शिक्षण और नैदानिक अनुभव पर आधारित है । डॉ प्रसाद ने बताया कि यह पुस्तक यूजी, पीजी छात्रों, चिकित्सा अधिकारियों, जिला टीबी अधिकारियों (डीटीओ) और आयुष चिकित्सकों सहित सभी चिकित्सकों के लिए अत्यंत लाभकारी होगी ।
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Manual of Chest X-Ray | Dr Rajendra Prasad | Dr Nikhil Gupta | Dr Kiran V Narayan | Brajesh Pathak
09.09.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा डॉ बी सी रॉय नेशनल अवार्ड से सम्मानित डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, निदेशक, चिकित्सा शिक्षा, एरा यूनिवर्सिटी लखनऊ, डॉ निखिल गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ तथा डॉ किरण विष्णु नारायण, एडिशनल प्रोफेसर, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, त्रिवेंद्रपुरम, केरल द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन रेनेसां लखनऊ होटल, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया | मुख्य अतिथि के रूप में श्री बृजेश पाठक जी, माननीय उपमुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने कार्यक्रम में शिरकत की जबकि विशिष्ट अतिथियों में श्री विद्यासागर गुप्ता जी, पूर्व अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन, उत्तर प्रदेश, श्री बृजलाल जी, माननीय सांसद, राज्यसभा, श्री अशोक बाजपेई जी, माननीय पूर्व सांसद, राज्यसभा, श्री श्याम नंदन सिंह जी, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय एम.एल.सी., श्री बृजेश महेश्वरी जी, शिक्षाविद एवं प्रेरक वक्ता शामिल हुए | कार्यक्रम में विशेष अतिथियों के रूप में डॉ. संजीव मिश्रा जी, उप कुलपति, अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, डॉ CM सिंह जी, निदेशक, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ, डॉ सूर्य कांत जी, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, डॉ गिरीश गुप्ता, होम्योपैथिक चिकित्सक, लखनऊ, प्रोफेसर अमरिका सिंह, प्रो चांसलर, निम्स यूनिवर्सिटी, जयपुर, राजस्थान तथा अन्य गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी, विशिष्ट अतिथियों एवं विशेष अतिथियों को परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत की मुहिम "एक पेड़ मां के नाम" के अंतर्गत पौधा प्रदान करके सम्मानित किया |
पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" का विमोचन करते हुए मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद को बधाई दी तथा कहा कि, "भारत का चिकित्सा विज्ञान नित नए आविष्कारों के साथ दुनिया में कमाल कर रहा है एवं किसी भी मामले में पीछे नहीं है क्योंकि आज जो अमेरिका में हो सकता है, जो इंग्लैंड में हो सकता है, वह भारत में भी हो सकता है | डॉ राजेंद्र प्रसाद ने चिकित्सा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया है | उनके द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X-Ray" निश्चय ही पलमोनरी चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी | मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल का जिन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया | मेरा ऐसा मानना है की नर सेवा ही सच्ची नारायण सेवा है और धरती पर जो नारायण के रूप में हम सब की सेवा करते हैं वह डॉक्टर हैं | अतः हमें सभी डॉक्टरों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह दिन रात मानवता की सेवा में लगे रहते हैं | भगवान ने हम सभी को धरती पर लोगों की मदद करने के लिए भेजा है, अतः हम सबका या कर्तव्य है कि जिस तरह से भी संभव हो निर्बल और असहाय लोगों की मदद करें तथा मानवता की सच्ची सेवा करें |"
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, "आज का यह अवसर हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम समाज के महत्वपूर्ण चिकित्सक डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी द्वारा लिखित पुस्तक "Manual of Chest X Ray" के विमोचन के साक्षी बन रहे हैं । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट देश भर मे अपनी जन सेवाए देने के लिए प्रयासरत है, 2012 में स्थापित, यह ट्रस्ट शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक उन्नति में महत्वपूर्ण एवं प्रभावी योगदान दे रहा है । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रगति में हमारे मुख्य अतिथि, श्री ब्रजेश पाठक जी भाईसाहब की प्रेरणा और मार्गदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है । डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य है और यह हमारे लिए गर्व की बात है | डॉ श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने अपनी पुस्तक मे Chest X Ray को देखना इतनी सरलता से सम��ाया है कि एक आम व्यक्ति भी इस Manual of Chest X Ray पुस्तक को पढ़ कर समझ सकता है |
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मुख्य अतिथि श्री बृजेश पाठक जी का धन्यवाद किया तथा कहा कि, "‘मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' मेरी 12वीं पुस्तक है। आज मेरी 12वीं पुस्तक 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' का 2 खंडों में माननीय उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक द्वारा लोकार्पण किया जा रहा है, जो मेरे लिए अत्यंत गर्व और खुशी की बात है । 'मैनुअल ऑफ चेस्ट एक्स-रे' पूरी तरह से हमारे भारतीय मरीज़ और मेरे लगभग पांच दशकों के लंबे शिक्षण और नैदानिक अनुभव पर आधारित है । डॉ प्रसाद ने बताया कि यह पुस्तक यूजी, पीजी छात्रों, चिकित्सा अधिकारियों, जिला टीबी अधिकारियों (डीटीओ) और आयुष चिकित्सकों सहित सभी चिकित्सकों के लिए अत्यंत लाभकारी होगी ।
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माननीय सभापति जी, और सम्मानित विपक्ष,
में आज यह कहना चाहता हुं के, पाश्च्याताप का हमारा यह महायघ आज यहीं खत्म होता है। में आप सब से यह नही कह रहा की आज के बाद सब फूल बघिया होगा, परंतु में आप सब को यह आश्वासन देता हु, को अब आए धूप घाम पानी पत्थर, हम हर चुनौती के लिए तत्पर है, त्यार है! पीछे मुड़कर अफसोस करने के हमारे दिन अब खत्म हुए, आईए अब मिलकर हम आगे बढ़ते है। में अपने विपक्ष का धन्यवाद करना चाहता हुं, विक्षम से विक्षम परिस्तिथियो में भी इन्होंने अपने काम को पूरी निष्ठा से किया, और हमे हमारी गलतियां का आइना दिखाते रहे, में अपने संघ का, ख़ास तौर पे हमारे संघ के प्रमुख सर्व-सम्माननीय श्रीमती (डी.र.) पि.ती. जी का जिनके मार्ग दर्शन के बिना शायद हम यहां कभी नही पहुंच पाते और आप सभी का जो हर पग पर हमारा मनोबल बढ़ाते रहे।
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माथुर ब्राह्मणों के गोत्र 7 हैं। ये प्राचीन सप्त ऋषियों की प्रतिष्ठा में उन्हीं के द्वारा स्थापित हुए थे। इनकी ऐतिहासिकता संदेह से परे है। इन सात गोत्रों के गोत्रकार ऋषियों की परम्परा में नाम इस प्रकार हैं।
दक्ष गोत्र
कुत्स गोत्र
वशिष्ठ गोत्र
भार्गव गोत्र
भारद्वाज गोत्र
धौम्य गोत्र
सौश्रवस गोत्र
दक्ष गोत्र परिचय
दक्ष गोत्र प्रजापति ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में सर्व प्रतिष्ठित प्रजापतियों के पति (10 ब्रह्मपुत्रों की धर्म परिषद के अध्यक्ष) रूप में सर्वोपरि सम्मानित थे। 9400 वि0पू0 की ब्रह्मदेव की मानसी सृष्टि के केन्द्र ब्रह्मपुर्या माथुर महर्षियों के क्षेत्र मालाधारी गली ब्रह्मपुरी पद्म��ाभ स्थल के ये अधिष्ठाता थे।
आदि प्रयागतीर्थ मथुरा के उत्तरगोल सूर्यपुर में प्रजापत्य याज्ञ करके प्रजापति विभु स्वयंभू ब्रह्मदेव ने इन्हें समष्ट वेद-वेदज्ञ यज्ञ कर्मकर्ता प्रजापितयों का अधिष्ठाता नियुक्त किया था। ऋग्वेद में इनके मन्त्र हैं। देवों से पूजित होने और बड़े-बड़े यज्ञों, संस्कारों, धार्मिक कृत्यों के सर्बश्रेष्ठ नियन्ता होने के कारण ये अपार विद्याओं के समुद्र तथा अपार द्रव्य राशि के स्वामी थे। इनका अपना विशाल आश्रम मथुरा के सुयार्श्व गिरि पर था ऐसी हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है।
इन्होंने अपने दक्षपुर (छौंका पाइसा) में महासत्र का आयोजन करके माथुर महर्षियों की ब्रह्मविद्या से अर्चना करके समस्त सुपार्श्व गिरि को सुवर्ण से आच्छादित कर उसकी शिखरों को रत्नों से देदीप्यमान कर उस समय (9400 वि0पू0) एक मात्र कर्मनिष्ठ लोकवंद्य देवपूजित माथुर चतुर्वेद ब्राह्मणों को दान में अर्पित कीं और उन्हें यह निर्देश दिया कि वे अनकी प्रदत्त पुण्य भूमि को खण्ड-खण्ड करके कभी विभाजित न करें उसका सम्मिलित रूप से उपभोग करते रहें।
उनके इस निर्देश पर भी उन ब्राह्मणों के वंशजों ने लोभ वश स्वर्ण बटोरकर उस शोभायमान पर्वत की श्री हीन करके कई खण्डों में विभाजित कर डाला। इस अनैतिक आचरण से खिन्न और कुपित होकर महामान्य दक्ष ने उन्हें शाप दिया कि वे लालची, कलही, भिक्षुक और कुल मान्यता से शून्य प्रतिष्ठा हीन हो जायेगें। महापुण्य दक्ष के सुपाश्व के विभिन्न शिखिर खण्ड मथुरा में आज भी पाइसा नामों से (गजा पाइसा, नगला पाइसा, शीतला पाइसा, कुत्स पाइसा, छौंका ��ाइसा) नामों से प्रसिद्ध हैं ध्यान देने की बात हे कि पाइसा शब्द का प्रयोग भारत के और किसी भी स्थान में कही भी प्रयुक्त नहीं है।
दक्ष यज्ञ- प्रजापति दक्ष ने अनेक बहु दक्षिणा युक्त यज्ञ किये। इनमें वह यज्ञ सर्वाधिक विख्यात है जिसमें इनका कन्या सती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राणों की आहुति दी तथा भगवान यछ्र के गण रूप से वीरभद्र द्वारा देवों और ऋषियों का महाप्रतारण हुआ। पुराणों के अनुसार महात्मा दक्ष के प्रसूति नाम की पत्नी से 16 कन्यायें हुई थीं। इनमें से 13 उन्होंने प्रजापति ब्रह्मा को दी अत: वे ब्रह्मदेव के श्वसुर होने से महान गौरव पद को प्राप्त हुए।
उन्होंने स्वाहा पुत्री अग्निदेव प्रमथ माथुर को दी जिससे वे माथुरों के गोत्रकार बनकर मातामह बने। उन्होंने स्वधा नाम की पुत्री पितगों क��� दौं अत: पितृगण भी उनकी जामाता बनकर श्राद्धों में आदर पाते रहे। उनको उबसे छोटी स्नेहमयी लाडली पुत्री सती थी जो त्र्यंवक रूद्रदेव को ब्याही गयी। इतने प्रधान देवों का पितृ तुल्य श्वसुर पदधारी होने से दक्ष को महाअभियान हो गया। एक वार ब्रह्माजी की सभा (ब्रह्म कुण्ड गोवर्धन शिखर) पर उनके पहुँचने पर सभी देवों ने उन्हें नमन और अभ्युत्थान दिया परन्तु भगवान रूद्र गम्भीर मुद्रा में बैठे रहे इससे उन्होंने रूद्र द्वारा अपना अपमान किया जाना अनुभव किया और प्रतिकार रूप में एक विशाल यज्ञमूर्ति प्रभविष्णु की अर्चना युक्त जो अष्टभुज धारी महाविष्णु थे एक यज्ञ का आयोजन मथुरा में यमुना तट पर कनखल तीर्थ में आयोजन किया।
इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने अहंकारवश रूद्र को आमन्त्रित नहीं करते हुए यज्ञवेदी पर उनका देव आसन भी नहीं स्थापित किया। देवी सती यज्ञ में बिना बुलाये ही माता पिता के स्नेह से आतुर होकर पधारीं और यज्ञ मण्डप में भगवान रूद्र का आसग न देख महाक्षुब्ध होकर यज्ञाग्नि के विशाल कुण्ड में दलांग लगाकर आत्माहुति दे दी। तब रूद्र भगवान की भृकुटी भंग से उनके गण वीरभद्र (भील सरदार) ने भूत सेना लेकर यज्ञ का विध्वंश किया जिसमें पूषा, भग, भृगु आदि सभासद ताड़ित और दण्डित हुए और अन्त में शिरच्छेद के बाद अजामुख दक्ष भगवान रूद्र कों शरणागत हुआ। भगवान रूद्र की यह एतिहासिक घटना 9358 वि0पू0 की है तथा ब्रह्मर्षि देश के मथुरा सूरसेनपुर में घटित हुई । विद्वान मूल तथ्यों से भटक जाने के कारण हरिद्वार इसे या अन्यत्र कहीं खोजते-फिरते हैं जबकि हरिद्वार (गंगाद्वार) भगीरथ के गंगावतरण के समय 4771 वि0पू0 में स्थापित हुआ।
मथुरा में यमुना के तठ पर अभी भी कनखस तीर्थ एक अति पुरत्तन पुराण वर्णित तीर्थ मौजूद है, यही समीप में भगवान रूद्र का त्र्यंवक (तिंदुक) तीर्थ तथा वीरभद्र गणों और मरूतों के युद्ध का स्थल मरूत क्षेत्र (मारू गली) सती मांता का पुरातन मठ (दाऊजी मन्दिर जहाँ क्षुरधारी मरूत ढाल बरवार वारे हनुमान के नाम से स्थित हैं। मथुरा में ही भूतनगर (नगला भूतिया) वीरभद्रेश्वरूद्रदेव , दक्षपुरी छौंका पाइसा तथा उसके निवासी दक्ष गोत्रिय माथुर छौंका वंश (महाक्रोधी , अभिमानी) अभी स्थित हैं। दक्ष की कथा विस्तार से भागवत आदि अनेक पुराणों में वर्णन की गयी है।
दक्ष वेद-प्रशस्त देव सम्मानित राजर्षि थें। इनके पुत्रों का वर्णन ऋग�� 10-143 में तथा इन्द्र द्वारा इनकी रक्षा ऋग्0 1-15-3 में आश्विनी कुमारों द्वारा इन्हें बृद्ध से तरूण किये जाने का कथन ऋग्0 10-143-1 में है। वे दक्ष स्मृति नाम के धर्मशास्त्र के कर्ता है जिसमें आश्रम धर्म , आचार धर्म , आशीच , श्राद्ध, संस्कारों, व्यवहार धर्म तथा सुवर्ण दान के महान्म के प्रकरण कहे गये हैं।
मन्वन्तरों में समयों में सप्तऋषियों में आद्य स्थापना
मानव वंशों को "स्वस्वं चरित्र शिक्षेरेन पृथिव्यां सर्वमानवा:" का निर्णायक उद्घघोष प्रवर्तित करने वाले स्वायंभू मनुदेव के समय के सप्तऋषियों की धर्मपरिषद में माथुरों के आदि महापुरूषों में दक्ष आदि का प्रमाण है।
1- स्वायंभूमनु का मन्वन्तर काल 9000 वि0पू0 चैत्र शुक्ल 3 के समय उनके सप्तऋषि मण्डल में
1. आँगिरस, 2. अत्रि, 3. क्रतु, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. मरोचि, 7. वशिष्ठ समाहित थे।
इनमें से ब्रतु, पुलस्त्य , पुलह के वंश आसुरी सम्पर्क में आकर ब्रह्मर्षि देश से बाहर उत्तर, पश्चिम भूखण्डों एशिया यूरोप सुदूर दक्षिण आदि में चले गये। आँगिरस (कुत्स) , दक्ष (आत्रेय वंश) मरोचि (कश्यप धौम्यवंश) वशिष्ठ (वेदव्यास वंश) मुरा मण्डल में अनु राजधानी में रहे तथापि देव, दानव, आसुर पोरोहिव्यधारी इन वहिर्गत महर्षियों को भी विश्व संगठन प्रवर्तक मान मनु महाराज ने इन्हें मण्डल बाह्य नहीं किया।
2- स्वारोर्चिष मन्वतर- 9962 वि0पू0 भाद्र पद कृष्ण 3 के प्रवर्तन समय के सप्त ऋषियों में माथुर वंश के भार्गव गोत्रिय और्व तथा आंगिरस वंशज वृहस्पति देव, आत्रेय पुत्र निश्च्यवन अन्य 4 महर्षियों के मण्डल में स्थापित हुए। 3- उत्तम मन्वर - (8530 वि0पू0 पाल्गुन कृष्ण 3 को स्थापित) मन्वतन्र के सप्तऋषि मण्डल के वशिष्ठ वंशों माथुर महर्षि ऊध्ववाहु शुक सदन सुतया आदि सम्मानित हुए थे। 4- तामस मनु क मन्वंतर - (8360 वि0पू0 पौष शुक्ल 1 में) माथुरों का अग्नि (प्रमथ) वंश चैत्र ज्योर्तिधीम धात् आदि सदस्यों के रूप में स्थापित था। 5- रैवत मन्वंतर - (8186 वि0पू0 आषाढ़ शुक्ल 10) स्थापित में सप्तर्षि मण्डल में माथुर महामुमि वशिष्ठ के वंशज सत्यनेत्र, अर्ध्वबाहु, वेदबाहु, वेदशिरा आदि धर्म प्रवर्तक थे। 6- चाक्षुष मन्वंतर - (7428 वि0पू0 माघ शुक्ल 7) प्रवर्तित के सप्तर्षि मण्डल में भगवान आदि नारायण (गताश्रम नारायण) के अशंभूत्त विराट मत्स्यपति ब्रजमण्डल संस्थापक भगवान विराज, श्रीयमुना जी के पिता विवस्व��न सूर्य परिवार के विवस्वंतदेव, सहिणु सुधामा, सुमेधा आदि माथुर मुनीन्द्र लोकधर्म प्रतिपालक रहे। इस मन्वन्तर में ही बैकुण्ठलोक के स्थापक भगवान बैकुण्ठनाथ (बैकुण्ठतीर्थ मथुरा) तथा विरजरूप में प्रभु दीर्घ विस्णु के लोक संस्थापक अवतार हुए। 7- वेवस्वत मन्वंतर - (6379 वि0पू0 श्रावण कृष्ण 8) प्रवर्तित के महाविश्व विस्तृत सप्तऋषि मण्डल में माथुर ब्राह्माणों के पूजनीय पुर्व पुरूष अत्रि (दक्ष गोत्र) , कश्यप (धौम्य पूर्वज) , यमदंग्नि (भार्गव गोत्र) परशुराम अवतार के पिता वशिष्ठ (महर्षि वेदव्यास के पूर्वज ) विश्वामित्र सौश्रवस गोत्र पूर्व पुरूष ) देवपूजित विश्वधर्म के संचालक थे। केवल गौतम महर्षि जो गौतम आश्रम (गोकर्ण) टीला कैलाश) पर रहते थे आंगिरसों से विरोध उत्पन्म हो जाने के कारण भगवान माहेश्वर रूद्र की अनुज्ञा से मथुरा त्याग कर कुवेरबन (वर्तमान वृन्दावन) में (गौतमपारा) बसाकर जाकर रह गये। इनके वंशज गौतम ब्राह्मण अभी भी इस स्थान पर बसते हैं। इन ऋषियों के वंशधर बाद के व्यतीत मन्वन्तरों में सप्तर्षि मण्डलों में भी स्थापिय रहे।
यह भी प्रमाणित तथ्य है कि इन सभी मन्वन्तरों की स्थापना आद्य मनु की पुरी मथुरा सूरसेनपुरी में ही परम्पराबद्ध रूप से होती रहीं और ये ब्रह्मर्षि देश के पवित्र देवक्षेत्र में जहाँ-तहाँ स्थापित हो धर्म प्रशासन चलाते रहे। इस प्रकार परम सुनिश्चित सुपुष्ठ इतिहास परम्परा और शास्त्र प्रमाण से माथुर ब्राह्मणों की प्राचीनता और पदगरिमा की प्रशस्त स्थिति स्पष्ट है। अनेक युगों में ऋषियों की उपस्थिति
प्राय: यह शंका उठाई जाती है कि देव और ऋषि एक ही रूप में प्राय: प्रत्येक काल और युग में उपस्थित दीखते हैं जिससे उनकी आयु और जीवन स्थिति में अति असंवद्धता प्रगट होती है। इस सन्दर्भ में शास्त्र पद्धति की एक महत्वपूर्ण बात हमें जान लेनी चाहिये। भारतीय परम्परा के संस्थापकों ने देवों ब्रह्मपुत्र ऋषियों के लिये अजरामर रूप में बने रहने के लिये अमरत्व की एक विशेष प्रक्रिया स्थपित की थी जिसके अनुसार जिन देवों और ऋषि-महार्षियों को त्रिकाल व्याप्त पदों पर प्रितष्ठित किये गये थे उनके वे पद पीठ आसन या गादी नाम से स्थिर थे। ब्रह्मा, इन्द्र , अग्नि, वरूण , कुवेर, यम, सूर्य , चन्द, आदि देव कोई एक व्यक्ति नहीं अपितु ये प्रतिष्ठा सपद थे। इन पदों पर एक व्यक्ति के पद मुक्त होने से तत्काल पूर्व ही दूसरे पदधारी की प्रतिष्ठा कर दी जाती थी जिससे साधारण प्रजा को यह ज्ञात ही नहीं हो पाता था कि कौन पदधारी कब बदला। ब्रह्मा, इन्द्र, आदि अनेक हुए हैं इसी प्रकार कश्यप , अत्रि , वशिष्ठ, अंगिरा , नारद, भृगु, दक्ष आदि बहुत से हुए हैं वे सभी अपने पदों पर आसनारूढ या पदारूढ होते रहे हैं। इसी कारण से वेदों-पुराणों में किसी देवता या महर्षि का बृद्धता से लाठी टेककर चलना या उनकी मृत्यु होने का कथन नहीं है। वे प्राय: सामर्थ्यशाली दशा में ही पद मुक्त होकर उत्तर ध्रुव के महाप्रयाण लोक को प्रस्थान कर जाते थे। इस तथ्य का आधुनिक काल में प्रमाण जगद्गुरु शंकराचार्य की पाद पीट है जहां शंकराचार्य देव आदि स्थापना से अभी तक अजर-अमर बने विराजमान हैं। देवों, ऋषियों का प्रत्येक युग में एक उसी नाम से वर्तमान रहने का यही गूढातिगूढ रहस्य है जिसे हमें समझ लेना चाहिये।
दक्ष गोत्र के प्रवर - गोत्रकार ऋषि के गोत्र में आगे या पीछे जो विशिष्ट सन्मानित या यशस्वी पुरूष होते हैं वे प्रवरीजन कहे जाते हैं और उन्हीं से पूर्वजों को मान्यता यह बतलाती है कि इस गोत्र के में गोत्रकार के अतिरकित और भी प्रवर्ग्य साधक महानुभाव हुए है। दक्ष गोत्र के तीन प्रवर हैं। 1. आत्रेये 2. गाविष्ठर 3. पूर्वातिथि।
1. आत्रेय - महर्षि अत्रि के पुत्र थे। ये चन्द्र पुत्र अत्रि के छोटे पुत्र थे। महर्षि दक्ष के पुत्र न होने से इन्हें मानस पुत्र बनाया था तथा चन्द्रमा दत्तात्नेय के माह होने पर भी दक्ष वंश में चले जाने से इन्हें अत्रिवंश में नहीं गिना गया। ये वेदज्ञ विपुल यज्ञ कर्ता थे। मंटी ऋषि के के ये शिष्य थे तथा इनने वैत्तरेय संहिता का पद पाठ निर्धारण किया था। इनकी शास्त्रीय रचना आत्नेयी शिक्षा तथा आत्नेयी संहिता है। 2. गाविष्ठर - ये यज्ञ और वेद विद्या के महान आचार्य थे। समाइगय राजेश्वर वभ्रु के यज्ञों को इनने गृत्समद ऋषि के सा सम्पन्न कराये थे। 3. पूर्वातिथि - ये अत्रि कुल के महान आचार्य थे। इनका समय 8758 वि0पू0 है। भारतीय इतिहास काल में दक्ष दो हुए हैं। पहले दक्ष प्रजापति पुत्र दक्ष दूसरे प्राचेतस दक्ष। माथुरों के गोत्रकार प्रथम दक्ष है। दक्षों का वेद ऋग्वेद है। शाखा आश्वलायनी है तथा कुलदेवी महाविद्या देवी है। इनकी 4 अल्ल हैं 1. दक्ष, 2. ककोर, 3. पूरवे, 4. साजने। अल्ल उपजाति या आस्पद को कहते है। मनु ने इसे 'विख्याति' नाम दिया हे। आस्पद का अर्थ है आदर्शपद जो कुल के आदर्श कर्म या स्थान को संकेत करता है। जिस संज्ञा से समूह की लोक के ख्याति होती है उसे आख्यात या आख्या कहा जाता है। अलंकृति सूचक कुल नाम को अल्ह या अल्ल कहते है। दक्ष - ये दक्ष प्रजापति के पदासीन ��्येष्ठ (टीकैत) पुत्रों का वर्ग है। ये अधिक तर द्विजातियों के यज्ञोपवीत, विवाह , यज्ञ, अनुष्ठान आदि संस्कार कराते है। दक्ष ये मूल अल्ल है। 2. ककोर - ये यादवों की कुकुर शाखा के कुलाचार्य थे। इनका पुरा मथुरा में कुकुरपुरी , घाटी ककोरन के नाम से स्थित है। ये यादवों के पुरोहित होने से बड़े समृद्ध और सम्पत्तियों के स्वामी थे। कौंकेरा, ककोरी, कक्कु, कांकरौली, कांकरवार, ककोड़ा इनके विस्तार क्षेत्र थे। इस वंश में महापूजय श्री उजागरदेव जी वामन राजाओं के पुरोहित बड़े चौबेजी थे जो बादशाह अकबर के दरबार में सम्मान पाते थे। 3. पूरवे - ये सम्राट पुरूरवा च्रन्द्रवंशी के पुरोहित कुल में से हैं।
4. साजने या फैंचरे - ये साध्यजनों के पति गन्धर्वराज उपरिचर वसु (फैंचरी ब्रज) के पुरोहित थे। उपरिचर वसु बहुत शक्तिशाली सम्राट था। जिस इन्द्रदेव ने अपना ध्वज (झण्डा) देकर इन्द्र ध्वज पूजन की उत्सव विधि का उपदेश किया था। जिसे गंधारी केतुओं ने सद्दे और अलम के रूप में पूजना और उत्सव में प्रयुक्त तथा रण में फहराना सीखा। उपरिचय मगध देश के जरासंध परिवार का पूर्व पुरूष था तथा मत्स्य देश के राजा सम्स्या और वेद व्यास माता मत्स्यगन्धा सत्यवती भी इसी वंश में उत्पन्न हुए थे। उसका राज्य गोपाचल क्षेत्र (ग्वालियर) में पिछोर पचाड़ गांग क्षेत्र में था। 5.सोखिया - मीठे वर्ग में यह अल्ल है जो सौंख खेड़ा में शौनक क्षेत्र में बसने से प्रख्यात हुई है। 6. जुनारिया - यह अल्ल अब देखने में नहीं आती है जान्हवी गंगा के प्रवर्तक जन्हु ऋषि (राजा) के प्रशासन क्षेत्र पुण्य क्षेत्र तीर्थों के केन्द्र में निवास करने से यह नाम प्रसिद्ध था जो जान्हवी के लोप होने के साथ ही अलक्ष हो गया है।
दक्ष का बहुत बड़ा परिवार था। प्रथम दक्ष (9400 वि0पू0) की 16 कन्याओं से प्रजापति ब्रह्मा, ऋग्वेद प्रतिष्ठापक अग्निदेव , पितृदेव तथा सती के पतिदेव रूद्र से प्राय: सभी देवों और ऋषियों के परिवार बढ़े और फंले। दूसरे प्रचेतरा दक्ष (7822 वि0पू0) में इसकी 60 कन्याओं में से ऋषि कश्यप आदि द्वारा सारे विश्व (यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका) के मानव वंश विश्व में विस्तारित हुए। अत: माथुरों का दक्ष वंश सारे संसार की जातियों और भूखण्डों का आद्य जनक और संस्कृति शिक्षक है ऐसा सिद्ध होता है।
कुत्स गोत्र
दक्ष के ��ाद कुत्स गोत्र सर्वाधिक व्यापक महान और पूजनीय सिद्ध होता है। कुत्स वंश के आद्य पुरूष महर्षि अंगिरा थे। जिनका ��ेदों पुराणों में सर्वाधिक वर्णन है। अंगिरा और भृगु आद्य अग्नि उत्पादक यज्ञ प्रवर्तक थे, तथा अग्निदेव (प्रमथो) के साथ समस्त विश्व में पर्यटन कर जंगली प्रजाओं को अग्नि का प्रयोग बताकर उन्हें सभ्यता के पथ में आगे बढ़ाने का इनने प्रयास किया था।
कुत्स महर्षि - आंगिरसों के कुल में उत्पन्न हुए थे। कुत्स का समय (6103 वि0पू0) है, तथा इनका मथुरा में आश्रम कुत्स सुपार्श्व श्रंग (कुत्स पाइसा या अपभ्रंश में कुत्ता पाइसा) कहा जाता है। कुत्स आचार शिथिल लोगों की कठोर शब्दों में भर्त्सना (कुत्सा) करते थे।, जो उनकी धर्म दृढ़ता और सावधान मनस्थिति का द्योतक था। इसी से आतंकित होकर प्रताड़ित जन उनके नाम को कुत्स कसे कुत्ता बनाने लगे। महर्षि कुत्स का एक और आश्रम गुजरात में भी था जिसे कुत्सारण्य की जगह ऐसे ही लोग 'कुतियाना गाँव' कहने लगे। कुत्स बड़े स्वरूप वान थे एक बार इन्द्र के महल में सजधज कर जाने पर इन्द्रानी इन्दे पहिचान न सकी क्योंकि ये वज्र धारथ कर इन्द्र के साथ संग्रामों में जाते थे। इन्द्र से इनकी ऐसी मित्रता थी कि एक बार सूर्य देव से इनका विरोध होने पर इन्द्र ने सूर्य के रथ का एक पहिया निकाल लिया तथा दूसरा भी निकाल कर इन्हें दे दिया 2। एक बार घर आने पर कहना न मानकर घर जाने को तैयार इन्द्र को इनने रस्सियों से बाँध लिया।3।। इनके वंशधर कौत्स ने अयोध्या सम्राट रघु (4181 वि0पू0) से अपने गुरु विश्वामित्र के शिष्य बरतन्तु (तेतूरा गाँव मथुरा) को गुरुदक्षिणा देने को 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा माँगी। रघु उस समय ���हान विश्वजित यज्ञ में सारा कोष दान कर चुके थे। कोषगारपति की सूचना से उद्विन्न हो रघु न कुवेर पर चढ़ाई करने का निश्चय किया। सायंकाल रथ आयुधों से सजवाया, प्रात: ही चढ़ाई करने वाले थे, तभी रात्रि में कुबेर ने स्वर्ण वृष्टि कर राज्य का पूरा कोष स्वर्ग से भर गया है। रघु ने हर्षित होकर कौत्स मुनि से सम्पूर्ण कोष का सुवर्ण ले जाने की प्रार्थना की परन्तु कौत्स ने कहा- "राजन् मैं 14 कोटि से एक कौड़ी भी ज़्यादा नहीं लूंगा। इतना ही तों मुझे गुरुदक्षिणा में देना है" राजा चंकित रह गया और आज्ञानुसार द्रव्य बरतन्तु मुनि के आश्रम में ऊँटों-गाड़ी , बैलों से पहुँचाया। माथुरों का 6000 वर्ष पूर्व असाधारण त्याग का वह एक सर्व पुरातन महान प्रमाण है।
कौत्स मान्धाता के गुरु थे। इनको भगीरथ ने अपनी कन्या दी थी ये बेद मंत्र कर्ता बड़े परिवार के स्वामी थे अत: इनके परिवार के 70 ऋषियों के नाम ऋग्वेद मण्डल में मंडल 1 3,5,810 में ��पलब्ध है। इनके पुत्र अंगिरा के अग्नि, इन्द्र, विश्वेदेव, अश्विनौ, उषा , सूर्य रूद्र, रात्रि, सोम, भृगुगण आदि की स्तुति के मन्त्र ऋग्वेद मंडल 1 में है। इससे इनका इन सभी वैदिक देवों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध अनेक यज्ञों में उपस्थित होना तथा इन देवों से इन्हें प्रभूत दक्षिणा गो, स्वर्ण मिलने का संकेत मिलता है। कुत्स के 12 शिष्यों के मन्त्र ऋग् 5-31 में हैं। वेद वर्णन से ज्ञात होता है कि दस्युभज इनके इन्द्रादि द्वारा सम्मान से कुपित थे, अत: इनके परम मित्र इन्द्र ने इनकी रक्षा के लिये शुष्ण (सुसनेर) कुयव (जावरा) (सापर बड़ौद) वासी दस्युओं को मारकर उनके दुर्ग ध्वस्त किये थे। शत्रुओं द्वारा कूप में डाले गये इनका इन्द्र ने उद्धार किया 3। इन्द्र ने प्रसन्न होकर कुत्स को वेतसु (तस्सोखर) तुग्र (ताल गाँव) , मधैम (दियानौ मथुरा) नाम के क्षेत्र अर्पण किये थे।
आंगिरस - आंगिरस वंश से इनकी परम्परा निरन्तर चलती है। इनका समय 9400 वि0पू0 चलता है। इनका आश्रम मथुरा में अम्बरीष टीले के सामने स्यायंभूमनु के सरस्वती तटवर्ती विन्दुसरोवर के यमुना तट समीप है जिसे प्राचीन बाराह पुराण के मथुरा महात्म में "आंगिरस तीर्थ लिखा है। प्राचीन ऋषियों में आंगिरसों का महत्व सर्वाधिक है। ये इतने गौरवशाली थे कि सवय नामक इन्द्र स्वयं आकर इन्हें पिता बनाकर इनका पुत्र बनकर इनके घर में रहा था। "अभूदिन्द्र: स्वयं तस्यं तनय: सव्य नामक:। अंगिरावंश वेदों के स्तोत्र पढ़ने में अद्वितीय परिगत थे। इनके स्तोत्र द्वारस्तंभों की तरह स्थिरता युक्त और अचल है। इन्द्र ने अंगिराओं ने (इंगलैड के ब्रात्य ब्रिटिशों के शिक्षकों के ) साथ पणियों (फिनशियनों) द्वारा चुराई गायें (पिनियन पर्वत) पर पायीं। इन्द्र से यह प्रार्थना भी की गयी है। कि - 'हे सर्वशक्तिशाली देव जिन्होंने नौमहीना (नवम्बर) में यज्ञ समाप्त किया है तथा दस महीना (दिसम्बर) में यज्ञ की पूर्ति की हैं, ऐसे सप्त संख्याओं वाले सद्गति पात्र महा मेधावी के सुखकर स्तोत्रों से तुम स्तुत किये गये हो । अंगिराओं ने मन्त्रों द्वारा अग्निदेव (माथुर देव) की स्तुति करके महावली और दृढ अंगों वाले (पानीपत वासी) पणि असुर को मन्त्र वल से नष्ट कर दिया था तथा हम अन्य ऋषियों के लिये द्युलोक (ब्रहमण्डल द्यौसरेस द्यौतानौ) देव क्षेत्र का मार्ग खोल दिया था। अंगिरसों ने इन्द्र के लिये अन्न अर्पित कर, अग्नि ज्वालाओं द्वारा इन्द्र का पूजन और हविदान कर यज्ञ कर्म के प्रधान पुरूषों के रूप अशव गौ तथा बहुत सा द्रव्य ��्राप्त किया। अंगिरावंशी अंगिरसों ने मथुरा के भांडीरबन में "आंगिरससत्र" किया जिसमें विष्णु से कल्याण कामना का संकल्प था। इसी सत्र में श्रीकृष्ण बल राम ने अपने सखा भेज कर यज्ञान्न (मधुयुवत पुरोडाश) की याचना की और यज्ञ पत्नियों द्वारा सत्कृत और पूर्ण तृप्त होकर माथुरों की कर्म श्रेष्ठता का बंदन करते हुए इन्हें सदैव घृत पूर्णित और उत्तम भोजनों से सर्वत्र सब युगो में आदरित होने का वरदान दिया।
माथुर ब्राह्मणों के उच्चतिउच्च सदाचार और ज्ञान गौरव के आगे नत मस्तक होकर देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ने आंगिरस प्रवरी घोर अंगिरस महर्षि से उपनिषदों का अध्ययन करके दुर्लभ ब्रह्मा विद्या भी प्राप्ति की जिसका उपयोग उन्होंने "श्री मद् भागवद गीता" में करके विश्व को सर्वोच्च दार्शसिक तत्व चिंतन के पथ पर चलने का दर्शन शास्त्र दिया। आंगिरसों की वैदिक वाणी से उत्पन्न आसुरी वैकृत भाषायें ग्रीस देश की ग्रीक, इगलेंड की आंगिरसी इंगलिश तथा अंगोला की महाबृषो "हवशियों" की भाषा अंगोलियन हैं , जो आंगिरसी शिक्षा के लिये कभी समर्पित थीं। आंगिरसों ने धर्म शास्त्र ग्रन्थ समृतियों का भी प्रवर्तन किया है। आंगिरा ने मथुरा के चित्रकेतु राजा वि0पू0 9332 के मृत पुत्र को जीवितकर ज्ञानोपदेश कराया । आंगरिसों ने स्वर्ग जाने में आदित्यों से स्पर्धा की तब आदित्य पहिले स्वर्ग पहुंच गय आंगिरा 60 वर्ष यज्ञ करने के बाद स्वर्ग पहंचे। आंगिरस पहिले ब्राह्मण थे जिनने सर्व प्रथम वाणी (भाषा) और छंद रचना ज्ञान देवों से प्राप्त दिया। आंगिरसों के परिवारों में गौत्र प्रवर्तक ऋषियों के नाम इस प्रकार हैं-बृहस्पति भारद्वाज , आश्वलायन, गालव, पैल, कात्यायन, वामदेव, मुद्गल , मार्कड, तैतरेय, शौंग, (शुंग) , पतंजल्लि, दीर्घतमा, शुक्ल, मांधाता , यौवनाश्व , अंवरीष आदि ।
यौवनाश्व प्रवर – कुत्स गोत्र का यौवनाश्व प्रवर युवनाश्व पुत्र चक्रवर्ती सम्राट मांधाता के आत्म समर्पण का द्योतक है। मान्धाता यौवनाश्व का समय 5576 वि0पू0 है। भागवत के कथन से यौवनाश्व मांधाता पुत्र अंवरीष का पुत्र था जो अंगिराओं के शिष्यत्व से क्षातियोपेत ब्राह्मण बने। मांधाता यौवनाश्व चक्रवर्ती सूर्यवंशी सम्राट था और इसका साम्राज्य पश्चिम समुद्र तट कच्छ करांची (दांता राज्य) से पूर्व में जापान द्वीप तक था जो सूर्य उदय और सूर्य अस्त का क्षेत्र था। मथुरा के नमक व्यापार पर एकाधिकार के लिये लवणासुर ने इसका राज्य छीन लिया। यह मथुरा माथुर ब्राह्मणों और माथुरों के आराध्य वाराह देव का परम भक्त था तथा वाराह देव की पूजा इसने सारे भारत वर्ष में फैलायी थी। भरना मथुरा के क्षेत्र वासी महर्षि सौभरि से इसने श्री यमुना महारानी का पंचाग उपासना मार्ग ग्रहण किया और उन्हें अपनी 50 कन्यायें देकर उनका राजवैभव विस्तृत किया। ऋग्वेद में इनका मन्त्र 10-134 पर है।
कुत्स गोत्र का वेद ऋग्वेद शाखा आशवलायनी तथा कुल देवी महाविद्या जी है। कुत्स गोत्र के आस्पद भी बहुत महत्व पूर्ण हैं जो अपनी प्रमाणिक श्रेष्ठता के विस्तार को प्रतिपादित करते हैं।
1. मिहारी - ये सबसे अधिक ज्ञानी गुणी लोक सम्मानित और समाज के सरदार शीर्ष वर्ग में से हैं। यही एक ऐसा वर्ग है जो अपने महा महिमा मंडित आद्य पूर्वज श्री ज्ञान तपो मूर्ति उद्धवाचार्य देव के गुणों का गर्व करता हुआ एक ही उनके 200 से भी अधिक परिवारों में माथुर पुरी के प्रधान केन्द्र स्थान मिहार पुरा में अवस्थित हैं प्रलय में भी नष्ट न होने वाले ब्रज द्युलोक महालोक (महजन तप) महारानौ महरौली के आद्यक्षेत्र से वाराह यज्ञ में उतर कर मथुरापुरी में आकर पूजित होकर स्थापित हुए। नन्द जशोदा तथा ब्रज के गो संस्कृति के अधिष्ठाता गोपों घोषपालों देवों के गोष्ठ रक्षकजनों को नंद मैहैर, मैहेर जसोध, मैहर गोपेशनंद आदि अपने शिष्यतत्व पद देकर तथा प्रख्यात ज्योतिर्बिद विक्रम के नवरत्न शिरोमणि बाराह मिहिर को भी बाद की प्रतिष्ठा से प्ररित किया। महलोंक के ये महामहर्षि प्रजापति दक्ष ��े पड़ौस में बसकर भी अपना कोई पाइसा न बनाकर दक्ष के कोप से मुक्त तथा दक्ष की प्रतिष्ठा युक्त मेत्री से विभूषित रहे। इन्होने गोप प्रजाओं को सादा पौष्टिक आहार महेरी खाने की सरल "सादाजीवन उच्च विचार मयी" पद्धति देकर सहज स्वाभिमानी बनाया। कहते हैं नंदराय गोपपति ने इन्हीं की सेवा कर आशीर्वाद साधना से पूर्ण पुरूषोत्तम श्री कृष्ण और धीर गंभीर लोक नमरकृत श्री बलराम देव जैसे पुत्र प्राप्त किये थे प्रमाण रूप पुरातन "कंस मेला" में दौनों भाई कंस विजय कर इनकहीं की गोद में विराजते विश्राम आरती अंगीकार करते हैं । इनके पुर के समीप वेश्रवण कुवेर का पुर (सरवन पुरा) है तथा रत्न सरोवर तथा स्वर्ण कलशधारी रत्नेश्वर शिव का देवस्थान है। जिसे "सोने का कलसा" वाला देव अभी भी कहा जाता है।
2. शांडिल्य- ये नंद गोपकुल के पुरोहित थे। इनका शाँडिल्य भक्तिसूत्र नारद भक्तिसूत्र के बाद ��क्ति सम्प्रदाय का मान्य ग्रन्थ है। श्रीकृष्ण बलराम की रक्षा हेतु सदा प्रयत्नशील रहते थे। इनका वंश प्राचीन है। कर्मपुराण के अनुसार थे असित (देवल) के पुत्र 5014 वि0पू0 में विद्यमान थे। महाभारत से इनकी संशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में विद्यमान थे । महाभारत से इनकी वंशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में भी थी। कृष्णकाल में इनका समय 3107 वि0पू0 है। इनका धर्मशास्त्र 'सांडिल्य स्मृति' हैं।
3. अकोर - यह अल्ल प्राय: विलुप्त है। मथुरा के समीप अर्कस्थ अकोस गांव में ये रहते थे। जो अर्क सूर्य का स्थल प्राचीन मथुरा के पंच स्थलों में से था।
4. धोरमई - ये मथुरा के निकट ध्रुवपुरी घौरैरा के वासी थे। धोरवई ध्रुव का अटल पद (अटल्ला चौकी) वर्तमान ब्रन्दावन के निकट है। धुरवा, धुरैरा (रज के ) धुर्रा , धुरपद, गाढी का धुरा, धुरंथर, ध्रुव काल के माथुरी भाषा के शब्द हैं।
5. गुनारे - मथुरा के मधुवन के समीप फाल्गुनतीर्थ पालीखेड़ा तथा फालैन में इनका निवास था। ब्रज के फाल्गुनी यज्ञ (होली) के महीना में ही अर्जुन का जन्म होने पर इन्होंने फाल्गुनी बालक के जन्म का महोत्सव किया था। गुना क्षेत्र ग्वालियर गोपाचल में भी हैं। इनका समय 3110 वि0पू0 के लगभग है।
6. खलहरे - ये यज्ञ कर्म में ब्रीहि यव धान्य उलूखलों मे कूटकर यज्ञहवि प्रस्तुत करते थे। ऐसे उलूखलनंदराय के भी गोकुल में थे जिनमें से एक ऊखल से श्री कृष्ण को माता यशोदा ने बाँधा था तभी से उनका नाम दामोदर पड़ा । महावन में ऊखल बंधन का स्थान अभी है। यहीं यमलार्जुन तीर्थ भी है।
7. मारोठिया - 49 मरूतगणों का प्रदेश मरूधन्व (मारवाड़) प्रसिद्ध है। मरूतों की पुरी मारौठ तथा मरूदगण वंशी (आंधी तूफान के देवता) मारौठिया, मराठा, राठौर प्रसिद्ध हैं ये दक्ष यज्ञ के समय अपने मरूत क्षेत्र (मारू गली) में दक्ष और देव पक्ष की रक्षा हेतु वीरभद्र की भूतसेना से लड़े थे। मारूगली में भी मारू राजा का महल मारू देवता, मारूगण, तीरभद्र वीर प्रतिमां अभी मथुरा में है।
8. सनौरे - ये 12 अदित्यों में पूषन सूर्य के वंशधर हैं। उशीनर देश के राजा शिवि महादानी के ये पुरोहित थे। ब्रज में अपने क्षेत्र चौमां में ये सन (पटसन फुलसन अलसी) कुटवा कर ऋषियां और ब्रह्मचारियों के लिये क्षौममेखला और क्षौमपट कारीगरों से बनवाकर प्रस्तुत करते थे।
9. सौनियां - ये ब्रजसीमा सोनहद के वासी थे। गंधारी शकुनी को शकुन शाऊत्र सगुनौती विद्या सिखाने से तथा सगुन चिरैया द्वारा प्रश्नोत्तर देने से "शाकुने तु बृहस्पति" के प्रमाण से अंगिराओं की विद्या के आचार्य थे सगुनियों से सौनियां नाम पाया । ये मीठों में ही हैं।
10. सद्द - ये सद्द देवों की देवसद या ऋषियों की धर्म परिषद के धर्म निर्णायक सदस्य 'सद्द' हैं। इनकी परिषद् परम्परा मौर्य गुप्तकाल तक स्थापित थी सद्दू पांड़े की वैठक श्री नाथ जी के समय की जतीपुरा में है। वर्हिषद प्रियब्रत वंशी सम्राट की पुरी वहेड़ी उत्तर पाँचाल में अभी वर्तमान है। यहीं प्रियब्रत पुरी पीलीभीत तथा हविर्धान की हविर्धानी हल्द्वानी है इनका ही अपभ्रंश नाम सद्द है।
11. कुसकिया - ये विश्वामित्र के दादा कुशिक के पुर कुशकगली मथुरा के प्राचीन निवासी हैं। ये मीठों में है। कुशिकापुर के लोग पीछे मुसलिम बना लिये गये तथा कुशिकपुर पर मसजिद बना कर कब्जा कर लिया गया। कुशिक के पुत्र गाधि का गाधीपुरा (नया गोकुल के निकट) तथा विश्वामित्र तीर्थ स्वामीघाट मथुरा ही में हैं।
12. सिरोहिया - ये सिरोही राज्य में जाकर आश्रय पाने से सिरोहिया कहे गये। ये भी मीठे वर्ग में हैं। किसी समय सिरोही की तलवारें बहुत नामी होती थीं। असुर असिलोमा के अश्वारोही सैनिक दल की यह प्राचीन पुरी थी।
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#दहेज_मुक्त_विवाह
दहेज प्रथा की वजह से बेटियां माता पिता की दुश्मन बन गई थी और बेटियों को गर्भ में मारने की प्रथा अर्थात भ्रूण हत्या (अबॉर्शन) प्रारंभ हो चुकी थी। लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने समाज पर उपकार करते हुए दहेज रूपी दानव को ही समाप्त कर दिया। उनके अनुयायियों द्वारा विवाह में न कोई दहेज लिया जाता और न ही दिया जाता है। जिससे बेटियों की जीवन रक्षा हुई, साथ ही बेटियाँ सम्मानित जीवन जी रही हैं।
Marriage In 17 Minutes
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कारगिल युद्ध में अदम्य साहस व शौर्य का परिचय दिखाते हुए तिरंगे की शान में बलिदान होने वाले परमवीर चक्र से सम्मानित अमर शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय जी के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
#ManojKumarPandey
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart123 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart124
काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना (विस्तृत व सम्पूर्ण वर्णन)
प्रश्न: कबीर जी के नाम से चले 12 पंथों के वास्तविक मुखिया कौन हैं और तेरहवां पंथ कौन चलाएगा?
उत्तर :- जैसा कि कबीर सागर के संशोधनकर्ता स्वामी युगलानन्द (बिहारी) जी ने दुख व्यक्त किया है कि समय-समय पर कबीर जी के ग्रन्थों से छेड़छाड़ करके उनकी बुरी दशा कर रखी है।
उदाहरण: परमेश्वर कबीर जी का जोगजीत के रूप में काल ब्रह्म के साथ विवाद हुआ था। वह "स्वसमवेद बोध" पृष्ठ 117 से 122 तक तथा "अनुराग सागर" 60 से 67 तक है।
परमेश्वर कबीर जी अपने पुत्र जोगजीत के रूप में काल के प्रथम ब्रह्माण्ड में प्रकट हुए जो इक्कीसवां ब्रह्माण्ड है जहाँ पर तप्त शिला बनी है। काल ब्रह्म ने जोगजीत के साथ झगड़ा किया। फिर विवश होकर चरण पकड़कर क्षमा याचना की तथा प्रतिज्ञा करवाकर कुछ सुविधा माँगी।
1. तीनों युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग) में थोड़े जीव पार करना।
2. जोर-जबरदस्ती करके जीव मेरे लोक से न ले जाना।
3. आप अपना ज्ञान समझाना। जो आपके ज्ञान को माने, वह आपका और जो मेरे ज्ञान को माने, वह मेरा।
4. कलयुग में पहले मेरे दूत प्रकट होने चाहिएँ, पीछे आपका दूत जाए।
5. त्रेतायुग में समुद्र पर पुल बनवाना। उस समय मेरा पुत्र विष्णु रामचंद्र रूप में लंका के राजा रावण से युद्ध करेगा, समुद्र रास्ता नहीं देगा।
6. द्वापर युग में शरीर त्यागकर जाऊँगा। राजा इन्द्रदमन मेरे नाम से (जगन्नाथ नाम से) समुद्र के किनारे मेरी आज्ञा से मंदिर बनवाना चाहेगा। उसको समुद्र बाधा करेगा। आप उस मंदिर की सुरक्षा करना। परमेश्वर ने सर्व माँगें स्वीकार कर ली और वचनबद्ध हो गए। तब काल ब्रह्म हँसा और कहा कि हे जोगजीत ! आप जाओ संसार में। जिस समय कलयुग आएगा। उस समय मैं अपने 12 दूत (नकली सतगुरू) संसार में भेजूँगा। जब कलयुग 5505 वर्ष पूरा होगा, तब तक मेरे दूत ते��े नाम से (कबीर जी के नाम से) 12 कबीर पंथ चला दूँगा। कबीर जी ने जोगजीत रूप में काल ब्रह्म से कहा था कि कलयुग में मेरा नाम कबीर होगा और मैं कबीर नाम से पंथ चलाऊँगा। इसलिए काल ज्योति निरंजन ने कहा था कि आप कबीर नाम से एक पंथ चलाओगे तो मैं (काल) कबीर नाम से 12 पंथ चलाऊँगा। सर्व मानव को भ्रमित करके अपने जाल में फाँसकर रखूँगा। इनके अतिरिक्त और भी कई पंथ चलाऊँगा जो सतलोक, सच्चखण्ड की बातें किया करेंगे तथा सत्य साधना उनके पास नहीं होगी। जिस कारण से वे सत्यलोक की आश में गलत नामों को जाप करके मेरे जाल में ही रह जाऐंगे।
काल ब्रह्म ने पूछा था कि आप किस समय कलयुग में अपना सत्य कबीर पंथ चलाओगे? कबीर जी ने कहा था कि जिस समय कलयुग 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष बीत जाएगा, तब मैं अपना यथार्थ तेरहवां कबीर पंथ चलाऊँगा।
काल ने कहा कि उस समय से पहले मैं पूरी पृथ्वी के ऊपर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवाकर शास्त्रविरूद्ध ज्ञान बताकर झूठे नाम तथा गलत साधना के अभ्यस्त कर दूँगा। जब तेरा तेरहवां अंश आकर सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, उल्टे उसके साथ झगड़ा करेंगे। कबीर जी को पता था कि जब कलयुग के 5505 वर्ष पूरे होंगे (सन् 1997 में) तब शिक्षा की क्रांति लाई जाएगी। सर्व मानव अक्षर ज्ञानयुक्त किया जाएगा। उस समय मेरा दास सर्व धार्मिक ग्रन्थों को ठीक से समझकर मानव समाज के रूबरू करेगा। सर्व प्रमाणों को आँखों देखकर शिक्षित मानव सत्य से परिचित होकर तुरंत मेरे तेरहवें पंथ में दीक्षा लेगा और पूरा विश्व मेरे द्वारा बताई भक्ति विधि तथा तत्त्वज्ञान को हृदय से स्वीकार करके भक्ति करेगा। उस समय पुनः सत्ययुग जैसा वातावरण होगा। आपसी रागद्वेष, चोरी-जारी, लूट ठगी कोई नहीं करेगा। कोई धन संग्रह नहीं करेगा। भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाएगा। जैसे उस समय उस व्यक्ति को महान माना जा रहा होगा जिसके पास अधिक धन होगा, बड़ा व्यवसाय होगा, बड़ी-बड़ी कोठियाँ बना रखी होंगी, परंतु 13वें पंथ के प्रारम्भ होने के पश्चात् उन व्यक्तियों को मूर्ख माना जाएगा और जो भक्ति करेंगे, सामान्य मकान बनाकर रहेंगे, उनको महान, बड़े और सम्मानित व्यक्ति माना जाएगा।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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लखनऊ, 14.09.2024 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में "India Vision 2047" कार्यक्रम का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, विनीत खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तत्पश्चात मुख्य अतिथि श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, श्री हर्षवर्धन अग्रवाल जी, प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ. अलका निवेदन जी, प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की |
डॉ. अलका निवेदन ने मुख्य अतिथि श्री मुकेश शर्मा जी को पुष्प गुच्छ, प्रतीक चिन्ह तथा परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी माननीय प्रधानमंत्री भारत की मुहिम "एक पेड़ मां के नाम" के अंतर्गत पौधा भेंट कर सम्मानित किया | डॉ संदीप बाजपेई ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी, श्री हर्षवर्धन अग्रवाल जी को पौधा भेंट कर सम्मानित किया ।
श्री मुकेश शर्मा ने सभागार में उपस्थित सभी छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि, “वर्तमान समय में ��मारे देश की बागडोर बहुत ही ऊर्जावान और लोकप्रिय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के हाथ में हैं और यह हम सबके लिए बहुत गर्व की बात है | 2047 में भारतवर्ष की आजादी के 100 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे और हमारे माननीय प्रधानमंत्री वर्ष 2047 तक भारत देश को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने "India Vision 2047" मुहिम की शुरुआत की है | किसी राष्ट्र की ताकत और जीवन शक्ति उसके युवाओं के हाथों में होती है । देश के युवा सकारात्मक परिवर्तन के अग्रदूत हैं क्योंकि उनमें बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए आवश्यक ऊर्जा, उत्साह और रचनात्मकता होती है | कोई भी काम खाली सरकार नहीं कर सकती जब तक सबका योगदान न हो | आज भारत के ओजस्वी एवं यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी, सशक्त एवं कुशल नेतृत्व में देश के युवाओं को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है । 21वीं सदी भारत की सदी होगी क्योंकि देश अपनी क्षमताओं के प्रति आश्वस्त होकर भविष्य की ओर तीव्रता से अग्रसर है । यह आज दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी, क्योंकि आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक इसकी जीडीपी 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगी । वर्ष 2047 तक, भारत एक विकसित राष्ट्र की सभी विशेषताओं के साथ 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है । यह एक विकसित भारत होगा, जिसके लिए हमारे युवाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी ।"
डॉ अलका निवेदन ने मुख्य अतिथि, श्री मुकेश शर्मा जी, सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश तथा श्री हर्षवर्धन अग्रवाल जी, प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का स्वागत एवं अभिनंदन किया |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने मुख्य अतिथि श्री मुकेश शर्मा जी का धन्यवाद दिया |
"India Vision 2047" कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री मुकेश शर्मा जी ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं की विजेता छात्राओं को प्रमाण पत्र प्रदान किया साथ ही भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के यूट्यूब चैनल का भी शुभारंभ किया |
कार्यक्रम में श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, श्री हर्षवर्धन अग्रवाल जी, प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, डॉ. अलका निवेदन जी प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ, डॉ. संदीप बाजपेई जी उप प्राचार्य, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ, शिक्षिकाओं, लगभग 150 छात्र-छात्राओं तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart123 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart124
काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना (विस्तृत व सम्पूर्ण वर्णन)
प्रश्न: कबीर जी के नाम से चले 12 पंथों के वास्तविक मुखिया कौन हैं और तेरहवां पंथ कौन चलाएगा?
उत्तर :- जैसा कि कबीर सागर के संशोधनकर्ता स्वामी युगलानन्द (बिहारी) जी ने दुख व्यक्त किया है कि समय-समय पर कबीर जी के ग्रन्थों से छेड़छाड़ करके उनकी बुरी दशा कर रखी है।
उदाहरण: परमेश्वर कबीर जी का जोगजीत के रूप में काल ब्रह्म के साथ विवाद हुआ था। वह "स्वसमवेद बोध" पृष्ठ 117 से 122 तक तथा "अनुराग सागर" 60 से 67 तक है।
परमेश्वर कबीर जी अपने पुत्र जोगजीत के रूप में काल के प्रथम ब्रह्माण्ड में प्रकट हुए जो इक्कीसवां ब्रह्माण्ड है जहाँ पर तप्त शिला बनी है। काल ब्रह्म ने जोगजीत के साथ झगड़ा किया। फिर विवश होकर चरण पकड़कर क्षमा याचना की तथा प्रतिज्ञा करवाकर कुछ सुविधा माँगी।
1. तीनों युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग) में थोड़े जीव पार करना।
2. जोर-जबरदस्ती करके जीव मेरे लोक से न ले जाना।
3. आप अपना ज्ञान समझाना। जो आपके ज्ञान को माने, वह आपका और जो मेरे ज्ञान को माने, वह मेरा।
4. कलयुग में पहले मेरे दूत प्रकट होने चाहिएँ, पीछे आपका दूत जाए।
5. त्रेतायुग में समुद्र पर पुल बनवाना। उस समय मेरा पुत्र विष्णु रामचंद्र रूप में लंका के राजा रावण से युद्ध करेगा, समुद्र रास्ता नहीं देगा।
6. द्वापर युग में शरीर त्यागकर जाऊँगा। राजा इन्द्रदमन मेरे नाम से (जगन्नाथ नाम से) समुद्र के किनारे मेरी आज्ञा से मंदिर बनवाना चाहेगा। उसको समुद्र बाधा करेगा। आप उस मंदिर की सुरक्षा करना। परमेश्वर ने सर्व माँगें स्वीकार कर ली और वचनबद्ध हो गए। तब काल ब्रह्म हँसा और कहा कि हे जोगजीत ! आप जाओ संसार में। जिस समय कलयुग आएगा। उस समय मैं अपने 12 दूत (नकली सतगुरू) संसार में भेजूँगा। जब कलयुग 5505 वर्ष पूरा होगा, तब तक मेरे दूत तेरे नाम से (कबीर जी के नाम से) 12 कबीर पंथ चला दूँगा। कबीर जी ने जोगजीत रूप में काल ब्रह्म से कहा था कि कलयुग में मेरा नाम कबीर होगा और मैं कबीर नाम से पंथ चलाऊँगा। इसलिए काल ज्योति निरंजन ने कहा था कि आप कबीर नाम से एक पंथ चलाओगे तो मैं (काल) कबीर नाम से 12 पंथ चलाऊँगा। सर्व मानव को भ्रमित करके अपने जाल में फाँसकर रखूँगा। इनके अतिरिक्त और भी कई पंथ चलाऊँगा जो सतलोक, सच्चखण्ड की बातें किया करेंगे तथा सत्य साधना उनके पास नहीं होगी। जिस कारण से वे सत्यलोक की आश में गलत नामों को जाप करके मेरे जाल में ही रह जाऐंगे।
काल ब्रह्म ने पूछा था कि आप किस समय कलयुग में अपना सत्य कबीर पंथ चलाओगे? कबीर जी ने कहा था कि जिस समय कलयुग 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष बीत जाएगा, तब मैं अपना यथार्थ तेरहवां कबीर पंथ चलाऊँगा।
काल ने कहा कि उस समय से पहले मैं पूरी पृथ्वी के ऊपर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवाकर शास्त्रविरूद्ध ज्ञान बताकर झूठे नाम तथा गलत साधना के अभ्यस्त कर दूँगा। जब तेरा तेरहवां अंश आकर सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, उल्टे उसके साथ झगड़ा करेंगे। कबीर जी को पता था कि जब कलयुग के 5505 वर्ष पूरे होंगे (सन् 1997 में) तब शिक्षा की क्रांति लाई जाएगी। सर्व मानव अक्षर ज्ञानयुक्त किया जाएगा। उस समय मेरा दास सर्व धार्मिक ग्रन्थों को ठीक से समझकर मानव समाज के रूबरू करेगा। सर्व प्रमाणों को आँखों देखकर शिक्षित मानव सत्य से परिचित होकर तुरंत मेरे तेरहवें पंथ में दीक्षा लेगा और पूरा विश्व मेरे द्वारा बताई भक्ति विधि तथा तत्त्वज्ञान को हृदय से स्वीकार करके भक्ति करेगा। उस समय पुनः सत्ययुग जैसा वातावरण होगा। आपसी रागद्वेष, चोरी-जारी, लूट ठगी कोई नहीं करेगा। कोई धन संग्रह नहीं करेगा। भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाएगा। जैसे उस समय उस व्यक्ति को महान माना जा रहा होगा जिसके पास अधिक धन होगा, बड़ा व्यवसाय होगा, बड़ी-बड़ी कोठियाँ बना रखी होंगी, परंतु 13वें पंथ के प्रारम्भ होने के पश्चात् उन व्यक्तियों को मूर्ख माना जाएगा और जो भक्ति करेंगे, सामान्य मकान बनाकर रहेंगे, उनको महान, बड़े और सम्मानित व्यक्ति माना जाएगा।
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कारगिल युद्ध में अदम्य साहस व शौर्य का परिचय दिखाते हुए तिरंगे की शान में बलिदान होने वाले परमवीर चक्र से सम्मानित अमर शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय जी के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
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