Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। जहां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। लेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक कैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनते ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन ��िसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके सम्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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Jharkhand hul diwas - पूरा देश याद कर रहा सिदो कान्हू को, मनाया जा रहा हुल दिवस, जानें क्यों मनाया जाता है हुल दिवस, क्या है इसका इतिहास
जमशेदपुर : झारखंड में प्रत्येक वर्ष 30 जून को हुल दिवस मनाया जाता है. इस दिन संथाल की माटी के वीर शहीदों को याद किया जाता है. शहीद सिद्धू कान्हू और उन 20000 आदिवासियों के बलिदान को समर्पित है हुल दिवस. हुल एक संथाली शब्द है जिसका अर्थ है विद्रोह. सिद्धू कान्हू की जन्म स्थली भोगनाडीह में हर साल उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. वर्ष 1855 को संथाल विद्रोह के नायक सिद्धू कान्हू ने अंग्रेजों और महाजनी…
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Heart Touching Republic Day Quotes In Hindi
Republic Day 2022: 26 जनवरी हम भारतीयों के लिए किसी त्योहार से कम नहीं है। इस दिन पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से हर स्कूल कॉलेज में झंडे फहराए जाते हैं और बहुत ही धूमधाम से गीत संगीत रंगमंच कार्यक्रम और वीर जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए, हमारी आजादी के लिए शहीद हुए वीरों को याद करते हुए इसे मनाते हैं।
आज के दिन देश के प्रधानमंत्री राजधानी दिल्ली मैं स्थित लाल किले से देश को संबोधित करते हैं। हर साल 26 जनवरी के अवसर पर पूरे विश्व के किसी न किसी देश से दिग्गज नेता को निमंत्रण दिया जाता है और वह इस आयोजन में भाग लेते हैं।
इस साल 26 जनवरी 2023 को हम 74वां गणतंत्र दिवस मनाने वाले हैं। आज ही के दिन हमारे देश का संविधान लागू किया गया था। संविधान समिति के मुख्य डॉ भीमराव अंबेडकर ने 26 जनवरी 1948 को संविधान को संसद में प्रस्तुत किया था जिसे 26 जनवरी 1949 को कुछ संशोधन के बाद लागू कर दिया गया था।
वर्तमान समय में इसे संविधान के आधार पर हमारा देश विकास की दिशा में प्रगतिशील है। हमारे देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है और हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के निवासी हैं। इसलिए हमें भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए।
अगर आप एक भारतीय हैं तो 26 जनवरी के अवसर पर अपने प्रिय लोगों से मिलते होंगे उनके साथ कुछ अच्छे शब्द साझा करते होंगे। अच्छे वीडियो साझा करते होंगे। इसी क्रम में आज हम दिल को छू लेने वाले कुछ कोटेशन इस आर्टिकल के माध्यम से देने वाले हैं।
Top 10 Heart Touching Republic Day Quotes In Hindi
इस बार के गणतंत्र दिवस के अवसर पर यदि आप अपने दोस्तों, फैमिली और सोशल मीडिया पर Republic Day Quotes भेजना चाहते हैं तो आपके लिए टॉप कोटेशन नीचे दिए गए हैं जिसे आप व्हाट्सएप स्टेटस, फेसबुक इंस्टाग्राम कहीं भी शेयर कर सकते हैं।
- भूख, गरीबी, लाचारी को, इस धरती से आज मिटायें, भारत के भारतवासी को,उसके सब अधिकार दिलायें आओ सब मिलकर नये रूप में गणतंत्र मनायें ।
- खुश नसीब है वह भी जो वतन पर मर मिट जाते हैं, मर कर भी वो वीर अमर हो जाते हैं, करता हूँ उन्हें सलाम ए वतन पर मिटने वालों तुम्हारी हर साँस में बसता तिरंगे का नसीब है। गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
- ना जियो घर्म के नाम पर, ना मरों घर्म के नाम पर, इंसानियत ही है धर्म वतन का, बस जियों वतन के नाम पर। भारत माता की जय !!
- दे सलामी इस तिरंगे को, जिससे तेरी शान है, सर हमेशा ऊंचा रखना इसका जब तक तुझ में जान है। गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!
- कुछ नशा तिरंगे की आन का है, कुछ नशा मातृभूमि की शान का है, हम लहराएंगे हर जगह ये तिरंगा, नशा ये हिंदुस्तान की शान का है!! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
- देशभक्त शहीदों के बलिदान से, स्वतन्त्र हुए है हम कोई पूछे कौन हो, तो गर्व से कहेंगे भारतीय है हम। गणतंत्र दिवस की ढ़ेरो शुभकामनाये !
- अमेरिका देखा, पेरिस देखा, देख लिया जापान, लेकिन पूरी दुनिया में हमको मिला ना हिंदुस्तान।
- हमारी शान है तिरंगा, जान है तिरंगा सर पर रखा है हमने देश की पहचान है तिरंगा। गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
- देश का गणतंत्र है महान इसकी महिमा है महान धर्म, जाति है समान यहां, यह देश पूरे जहां में महान। गणतंत्र दिवस की बधाई 2022!
- अलग हैं बातें, अलग है भाषा, अलग है सबके विचार, लेकिन एक है तिरंगा अपना,एक है सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तान। हैप्पी रिपब्लिक डे 2023
- ना काम मेरा है, ना बड़ा सा नाम मेरा है, मुझे तो गर्व इस बात का मैं हिंदुस्तान का और हिंदुस्तान मेरा है।
26 जनवरी के दिन दोस्तों को भेजे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कोटेशन
वतन हमारा ऐसा की कोई ना छोड़ पाए
रिश्ता हमारा ऐसा की कोई ना तोड़ पाए,
दिल एक है एक जान है हमारी
ये हिंदुस्तान शान है हमारी…
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…
ना पूछो जमाने से कि
क्या हमारी कहानी है,
हमारी पहचान तो बस
इतनी है कि हम सब
हिन्दुस्तानी हैं…
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…
देश भक्तों के बलिदान से, स्वतंत्र हुए हैं हम
कोई पूछे कौन हो, तो गर्व से कहेंगे, हिन्दुस्तानी हैं हम!
लहराएगा तिरंगा अब सारे आस्मां पर,
भारत का नाम होगा सब की जुबान पर,
ले लेंगे उसकी जान या दे देंगे अपनी जान,
कोई जो उठाएगा आंख हमारे हिंदुस्तान पर.
राष्ट्र के लिए मान-सम्मान रहे,
हर एक दिल में हिन्दुस्तान रहे,
देश के लिए एक-दो तारीख नहीं,
भारत मां के लिए ही हर सांस रहे.
Happy Republic Day 2022
गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है ?
हर साल 26 जनवरी के दिन हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं। ऐसा माना जाता है हमारा भारत देश अंग्रेजों से 26 जनवरी के दिन ही अर्ध रूप से आजाद हुआ था। और इसी दिन हमारा संविधान भी लागू हुआ था। जिसे बनाने के लिए 22 समितियां बनाई गई थी और जिसने प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर मुख्य थे जिन्होंने 2 साल की 11 महीने और 18 दिन में पूरा किया।
संविधान को बनाने के लिए कुल 22 समितियां बैठाई गई थी और हर समिति का अपना उद्देश्य था। वर्तमान समय में संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बताया जाता है लेकिन केवल भीमराव अंबेडकर ही संविधान के निर्माता नहीं थे उनके साथ मिलकर बहुत से लोगों ने संविधान के निर्माण में अपनी भूमिका निभाई थी। 26 जनवरी 1948 को डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में संविधान को पेश किया जिसे उस समय स्वीकार नहीं किया गया लेकिन ठीक 1 साल बाद 26 जनवरी 1949 को कुछ संशोधन के साथ संविधान को लागू कर दिया गया।
आज के दिन भारत के राष्ट्रपति दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं। इस अवसर पर देश के प��रतिष्ठित स्कूल के बच्चे आकर्षक और मनमोहक प्रोग्राम करते हैं। जिसे टेलीविजन पर देखा जा सकता है। राजपथ को बहुत ही धूमधाम से सजाया जाता है एवं अलग-अलग प्रदेश की संस्कृति के अनुसार उसकी झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं।
26 जनवरी का दृश्य बहुत ही मनमोहक होता है। इस दिन पूरे देश में कहीं भी आप जाएं बहुत ही धूमधाम से 26 जनवरी के दिन को एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इसीलिए हमारा देश पूर्ण स्वराज घोषित हुआ था।
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शहीद दिवस
शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है ? भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव का बलिदान .
आज के इस आर्टिकल में जानेगे शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है ? भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव का बलिदान ने कैसे अंग्रेजो उखार फेका एवं भारत में एक क्रांति का जन्म दिया | जिसने अंग्रेजो को भारत छोरने पर मजबूर कर दिया |
अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने की जज्बा लिए क्रांतिकारियों ने अपने अदम्य साहस और बलिदान से ब्रिटिश हुकूमत…
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शहीद दिवस कब और क्यों मनाया जाता है|
शहीद दिवस कब और क्यों मनाया जाता है|
शहीद दिवस 2021: जानें 23 मार्च को ही क्यों मनाते हैं शहीद दिवस
भगत सिंह केवल 23 साल के थे जब उन्हें फांसी दी गई थी लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार बहुत व्यापक थे. आजादी की लड़ाई से लेकर आजतक हर रैली, आंदोलन और प्रदर्शनों में बोले जाने वाला नारा इंकलाब जिंदाबाद पहली बार भगत सिंह ने ही बोला था.
23 March Current Affairs GK | 23 मार्च 2021 करंट अफेयर्स
भारत में शहीद दिवस (Martyrs’ Day) 23 मार्च को…
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शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है?(Why and when do celebrate Martyrs'Day?) https://ift.tt/2QsyTyL
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shaheed diwas in hindi – भारत में शहीद दिवस हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन उन क्रांतिकारियों को याद किया जाता है जिन्होंने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। यही वो दिन था जब हंसते-हंसते देश के हीरो ने धरती मां के लिए ख़ुद को कुर्बान कर दिया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह, शिवराम हरि राजगुरु और सुखदेव थापर का एक अहम योगदान रहा है। तो जानिए क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस।
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Check out this post… "शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है? शहीद दिवस कब है।".
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सेना दिवस 2022: जानिए भारत में 15 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है आर्मी डे?
सेना दिवस 2022: जानिए भारत में 15 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है आर्मी डे?
सेना दिवस 2022: भारतीय सेना दिवस भारत में हर साल 15 जनवरी को बड़े जोश के साथ मनाया जाता है। 2022 में, भारत 74 वां भारतीय सेना दिवस मनाता है और भारत के सशस्त्र बलों द्वारा किए गए बलिदानों को उजागर करता है और स्वीकार करता है। सेना दिवस 2022 को नई दिल्ली के इंडिया गेट पर ‘अमर जवान ज्योति’ पर शहीद भारतीय सेना के जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए मान्यता दी गई थी।
सेना दिवस 2022: भारत में हर साल 15…
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ऑपेरशन विजय का विजय बखान
न झुके थे, न रुके थे, न्योछावर कर गए अपने प्राणों को,
भारत माँ के वीर शहीद हुए, देश की बचाने शान को ।
कारगिल विजय दिवस स्वत्रंत भारत के सभी देशवासियों के जीवन का एक महवत्पूर्ण दिन, जो प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है । भारत और पाकिस्तान के बीच 3 मई को शुरू हुए कारगिल युद्ध को भारत ने 26 जुलाई 1999 में जीत लिया था । और कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है जिसे बाद इसे विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
क्यों हुआ कारगिल युद्ध -
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाना तय हुआ था, लेकिन पाकिस्तान ने अपनी ही बात पर न टिकते हुए अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजना शुरू कर दिया था और इस घुसपैठ का नाम पाकिस्तान ने “ऑपरेशन बद्र” रखा। जिसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था । साथ ही पाकिस्तान का मानना था कि इस क्षेत्र में तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी ।
भारत की जवाबदेही किस तरह की रही —
भारतीय सेना को 3 मई 1999 को एक चरवाहे ने कारगिल में पाक सेना के घुसपैठ की खबर दी । इसके बाद हिंदुस्तान ने पाक सेना को खदेड़ने के लिए कारगिल में ऑपेरशन विजय चलाया गया, जिस वजह से दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थी । पाकिस्तान की सेना 18 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई से और भारतीय सेना नीचे खाई से युद्ध लड़ रही थी । पाकिस्तान को ऊंचाई पर से युद्ध लड़ने में शुरुआत में काफी मदद मिल रही थी । लेकिन बाद में सारी बाज़ी पलट गई ।
भारत के सामने मुश्किल लक्ष्य –
कर्नल ललित राय बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया था और उस समय खालोबार टॉप सबसे मत्वपूर्ण इलाका था क्योंकि पाकिस्तानियों के लिए वो एक कॉम्युनिकेशन हब था । वहाँ तक पहुंचना आसान नहीं था इसलिए कर्नल राय ने 2 टुकड़ियां बनाने का फैसला किया और एक टुकड़ी के साथ कैप्टन मनोज पांडे को ऊपर जा कर नीचे से नज़र आ रहे 4 बंकरों को ख़त्म करने के लिए कहा ।
लेकिन जब कैप्टन मनोज ऊपर पहुंचे तो उन्होंने रिपोर्ट किया कि वहाँ 4 नहीं 6 बंकर हैं । हर बंकर से दो-दो मशीन गन से भारतीय सेना पर फायर किए जा रहे हैं । जिनमें से 2 बंकरों को उड़ाने के लिए कैप्टन मनोज ने हवलदार दीवान को भेजा। फ्रंटल चार्ज संभालते हुए दीवान ने दोनों बंकरों को उड़ा तो दिया लेकिन खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गए,
और बाकी 3 बंकरों को उड़ाने के लिए मनोज और उनके साथी ज़मीन पर रेंगते हुए गए और उन बंकरों के लूप होल में ग्रेनेड डालकर उन्हें उड़ा दिया । लेकिन चौथे बंकर में ग्रेनेड फेंकते समय पाकिस्तान के सैनिकों ने उन्हें देख लिया और मशीन गन स्विंग कर उन पर गोलियां चला दी और मनोज ज़मीन पर गिर गए और उनके अंतिम शब्द थे छोडनूं जिसका मतलब था छोड़ना नहीं, लेकिन चौथे बंकर को भी उड़ा दिया गया, और खालोबार पर भारतीय तिरंगा फहराया गया ।
भारतीय सैनिकों की जांबाजी का नज़ारा —
कैप्टन ललित राय बताते हैं कि जब वो जीत का झंडा गाड़ कर लौट रहे थे तब उन्हें रास्ते में भारतीय सैनिक शहीद हालात में मिले । उनकी राइफलें अभी तक पाकिस्तानी बंकरों की तरफ थी और उंगलिया ट्रिगर को दबाए हुए थी । मैगज़ीन को चेक किया तो उनकी राइफल में एक भी गोली नहीं थी । हमारे देश के जवान आखिरी सांस आखिरी गोली तक लड़े थे ।
कारगिल युद्ध के वीर —
कैप्टन मनोज कुमार पांडे को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया । कर्नल ललित राय के पैर में गोली लगी थी उन्हें भी वीर चक्र से सम्मानित किया गया । और कैप्टन विक्रम बत्रा ने पाकिस्तानियों द्वारा बनाए गए बंकरों पर कब्जा भी किया और अपने सैनिकों को बचाने के लिए 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से भिड़ गए और वीरगति को प्राप्त हो गए । वहां स्थित ��ोटी को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है और सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया था ।
कारगिल युद्ध में भारत की जीत के कौन से बड़े कारण रहे –
अगर कारगिल युद्ध में भारत की जीत का श्रेय किसी को देना हो तो वो थी “बोफोर्स” तोप । साथ ही भारतीय वायु सेना ने 32 हज़ार फीट की ऊंचाई से आसमान से भी पाक को अपनी एयर पावर से खदेड़ा । मिग-27 और मिग-28 ने भी उन जगहों पर बमों की बारिश की जहां पाकिस्तान की सेना ने कब्जा जमा रखा था। और ये ही बड़े कारण रहे थे कारगिल युद्ध में भारत की जीत के।
इस तहर भारत के इतिहास में कारगिल युद्ध की जीत का दिन एक बेहद ही मत्वपूर्ण दिन बन गया, जिसे विजयी दिवस के रूप में इस युद्ध में शहीद हुए वीरों को सम्मान और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मनाया जाता है।
नाम अपना अमर कर गए वो देश के इतिहास में,सुकून मिला उन्हें,
शहादत के बाद खुली आँखों से देखकर,
जीत से लहराता तिरंगा अपनों के हाथ में।
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Kharsawan Martyr's Day- खरसावां को ओड़िशा में मिलाए जाने के विरोध में अदिवासियों पर चलायी गयी थी अंधाधुंध गोलियां, इस घटना को याद करके आदिवासियों की कांप जाती है रूह, क्या है इसके मायने, जानें क्यों मनाया जाता है खरसावां शहीद दिवस, पढ़े संतोष कुमार की रिपोर्ट
Kharsawan Martyr’s Day- खरसावां को ओड़िशा में मिलाए जाने के विरोध में अदिवासियों पर चलायी गयी थी अंधाधुंध गोलियां, इस घटना को याद करके आदिवासियों की कांप जाती है रूह, क्या है इसके मायने, जानें क्यों मनाया जाता है खरसावां शहीद दिवस, पढ़े संतोष कुमार की रिपोर्ट
खरसावां: 1 जनवरी 1948 को जब आज़ाद भारत अपने पहले नए साल की पहली तारीख़ का जश्न मना रहा था, तब बिहार का खरसावां (अब झारखण्ड) अपना ख़ून अपनो द्वारा बहवा रहा था. 1 जनवरी 1948 को खरसावां हाट में 50 हज़ार से अधिक आदिवासियों की भीड़ पर ओड़िशा मिलिट्री पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिसमें कई आदिवासी मारे गये थे. आदिवासी खरसावां को ओड़िशा में मिलाये जाने का विरोध कर रहे थे. आदिवासी खरसावां को बिहार…
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Shaheed Diwas 2021: Martyrs Day पर भेजें शुभकामाएं, व्हात्सप्प सन्देश और फेसबुक स्टेटस, जानें क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस
Shaheed Diwas 2021: Martyrs Day पर भेजें शुभकामाएं, व्हात्सप्प सन्देश और फेसबुक स्टेटस, जानें क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस
Martyrs’ Day जिसे शहीद दिवस भी कहा जाता है, भारत में हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन, भारतीय उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में अपनी जान गंवा दी थी। हर साल, विभिन्न नेताओं ने स्वतंत्रता ��ेना��ियों को याद करने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया। वे शहीदों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
Martyrs Day | शहीद दिवस क्यों मनाते हैं
शहीद दिवस (Martyrs Day)…
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शहीद दिवस पर भाषण - Shaheed Diwas Speech in Hindi
पंजाब के लायलपुर के एक गाँव बंगा में, एक शिशु का जन्म हुआ। दादी ने बड़े प्यार से उस बच्चे का नाम भगत सिंह रखा। सब भगत सिंह को खूब प्यार करते। घर में दादा-दादी, माता-पिता, बडे़ भाई-बहन और चाचा-चाची साथ रहते। सबके बीच खेलकर भगत सिंह बड़ा होने लगा।
Bhagat Singh Quotes and BIography in Hindi
Bhagat Singh के जन्म के समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। भगत सिंह के दादा, पिता और चाचा सब देश को आजाद कराने की कोशिश में जी-जान से जुटे हुए थे। घर के लोगों की बातचीत का भगत सिंह के मन पर गहरा असर पड़ा। वह बचपन से ही भारत की आजादी के सपने देखने लगा। सॅंझले चाचा की मृत्यु पर उसकी चाची रो रही थीं।
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चाची को तसल्ली देते हुए बालक भगत सिंह ने कहा-
"चाची जी, रोइए मत। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, अंग्रेजों को भारत से भगा। दूंगा और चाचा जी को वापस लाऊंगा।"
चाची ने भगत को सीने से चिपका लिया।
शहीद भगत सिंह पर निबंध
पढ़ने लायक उम्र होने पर भगत सिंह को गाँव के प्राइमरी स्कूल में भर्ती करा दिया गया। वे पढ़ाई में बहुत तेज थे। भगत सिंह अपने गुरू का बहुत आदर करते थे। जब वे चौथी कक्षा में थे उनके मास्टर जी ने बच्चों से पूछा-
"बच्चों, तुम बड़े होकर क्या करना चाहोगे?"
एक बच्चे ने कहा-
"मैं बड़ा होकर खेती-बाड़ी करूँगा और फिर शादी करूँगा।"
सब हॅंस पड़े, भगत सिंह ने अकड़कर कहा-
ये सब बड़े काम नहीं हैं। मैं हरगिज शादी नहीं करूँगा। मैं तो अंग्रेजों को देश से निकाल बाहर करूँगा। सब भगत सिंह की तेजी देखते रह गए।
म��स्टर जी ने उन्हें शाबाशी देकर कहा-
भगत सिंह जरूर अपना वादा पूरा करेगा। पंजाब के जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। अंग्रेजों ने बेकसूर हिंदुस्तानियों पर गोलियाँ बरसा दीं। सैकड़ों देशवासियों की जानें चली गई। उस वक्त भगत सिंह सिर्फ बारह बर्ष के थे। उनके मन में आग धधक उठी। निहत्थों पर गोलियाँ चलाना अन्याय है।
भगत सिंह जलियाँवाला बाग में अकेले चले गए। चारों ओर सिपाही थे। वे जरा भी नहीं डरे। बाग की मिट्टी एक शीशी में भरकर ले आए। घर में आम आए हुए थे। भगत सिंह को आम बहुत पसंद थे। उनकी बहन ने उन्हें आम खाने को बुलाया। भगत सिंह ने आम खाने से इनकार कर दिया। बहन को अकेले में ले जाकर शीशी में बंद मिट्टी दिखाकर कहा-
अंग्रेजों ने हमारे सैकड़ों लोग मार दिए। ये खून उन्हीं शहीदों का है। मुझे अंग्रेजों से इस खून का बदला लेना है।
भगत सिंह कई वर्षो तक उस शीशी को अपने पास रखे रहे और उस पर फूल चढ़ाते रहे।
कॅलेज पहुंचने पर गाँधी जी की बातों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे ।कॉलेज में भी मित्रों के साथ भारत की आजादी की बातें करते। नेशनल कॉलेज में उन्होंने महाराणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त, भारत दुर्दशा जैसे नाटकों में भाग लिया। इन सभी नाटकों में देश-भक्ति की भावना थी।
भगत सिंह की तरह उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू भी आजादी के दीवाने थे। तीनों मिलकर गाते-
"मेरा रंग दे बसंती चोला,
माँ रंग दे बसंती चोला।"
भगत सिंह के माता-पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे, पर भगत सिंह को तो देश को आज़ाद कराना था। उन्होंने माता-पिता से कह दिया-
"गुलाम देश में सिर्फ़ मौत ही मेरी पत्नी हो सकती है। मैं देश को आजादी दिलाए बिना शादी नहीं कर सकता।"
अपने देश को आजाद कराने के लिए भगत सिंह अपने मित्रों के साथ जी जान से जुट गए। उन्हें लगा बम के धमाकों से अंग्रेजों को डराया जा सकता है। अपने एक साथी के साथ उन्होंने असेंबली में बम फेंका और खुद गिरफ्तारी दी।
भगत सिंह और उनके मित्रों के खिलाफ़ मुकदमा चलाया गया। उन पर बम फेंककर अंग्रेजों को मारने का दोष लगाया गया। कोर्ट ने भगत सिंह और उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सजा सुनाई। सजा सुनकर तीनों मित्र हॅंस पड़े और नारा लगाया, "वंदे मातरम्! इंकलाब जिंदाबाद।"
भगत सिंह ने अपने माता-पिता को समझाया-
"आपका बेटा देश के लिए शहीद होगा। आप लोग दुख मत कीजिएगा।"
भगत सिंह से कहा गया कि अगर वे वायसरायय से माफी माँग लें तो उनकी फाँसी की सज़ा माफ़ की जा सकती है। भगत सिंह ने माफ़ी माँगना स्वीकार नहीं किया।
भगत सिंह से फाँसी के पहले उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा-
"मैं चाहता हूँ, मैं फिर भारत में जन्म लूं और अपने देश की सेवा करूँ।"
फाँसी लगने के पहले तीनों मित्र एक-दूसरे के गले मिले। मनपसंद रसगुल्ले खाए। मित्रों के साथ भगत सिंह फाँसी के फंदे के पास जा पहुंचे। अपने हाथ से गले में फाँसी का फंदा लगाया और हॅंसते-हॅंसते फाँसी चढ़ गए। अंत तक वे नारे लगाते रहे- इंकलाब जिंदाबाद।
शहीद दिवस पर भाषण
भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भारतीय इतिहास के लिए एक काला दिन माना जाता है, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं।
देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन वीर सपूतों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है।
हिंदी में शहीद दिवस पर भाषण
हमारे देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के लिए शहीद दिवस के उपलक्ष्य पर मैं कुछ शब्द बोलने जा रहा हूं। कुछ गलत कह बैठूं तो माफ़ कर देना।
आओ, झुक कर सलाम करें उनको,
जिनके हिस्से में यह मुकाम आता है,
खुशनसीब होते हैं वो लोग,
जिनका खून देश के काम आता है।
भारतीय सैनिक हमारी जान है, हमारी शान है।
देश की सीमा और सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा सेना का निर्माण किया जाता है।
इस सेना पर देश की सीमाओं में आने वाले सभी जल, थल और आकाश की रक्षा का भार होता है।
इस सेना में देश के नौजवान युवाओं को भर्ती किया जाता है।
यह ऐसे नौजवान युवक होते हैं जिनमें देश के लिए मरने का जज्बा होता है।
जब एक नौजवान देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर जाता है तो केवल एक परिवार ही तैयार नहीं होता है, तैयार होते हैं बूढ़े मां बाप के कई सपने, चूड़ी, मंगलसूत्र और तैयार होती कई हसरतें और जब कभी उनका खून आतंकी हमलों में वो जवान शहीद होता है तो पता है क्या होता है।
इस धरती मां का सीना फट जाता है, रूह कांप जाती है उनके बूढ़े मां बाप की, चकनाचूर हो जाते हैं उनके सारे सपने, वो चूड़ी वो बिंदी, वो मुस्कान एक सफेद कागज की तरह खामोश हो जाती है। जब एक जवान शहीद होता है तो केवल एक परिवार ही नहीं रोता, बल्कि पूरा देश रोता है।
वो हर इंसान रोता है जो शहादत के मायने समझता है, वो हर नागरिक रोता है जो अपने देश के प्रति प्यार रखता है। तिरंगे से लिपटे जवान को जब एक मां आखरी बार अपने सीने से लगाती हैं तो देश की 133 करोड़ आंखों में, लबों पर एक ही बात होती है की
मेरी ख्वाहिश है कि फिर से फरिश्ता हो जाऊं,
मां से इस कदर लिपटू कि बच्चा हो जाऊं।
ऐसे ही हमारे देश में ना जाने कितने क्रांतिकारी हुए हैं जिन्होंने जाने से पहले अपनी मां को वचन दिया। उन्हीं में से एक है शहीद भगत सिंह। जिन्होंने जाने से पहले अपनी मां को वचन दिया की मां जब मैं इस दुनिया से जाऊं तो तुम रोना मत वरना यह दुनिया कहेगी कि देखो आज वीर भगत सिंह की मां रो रही है। माँ मुझे अच्छा नहीं लगेगा तू रोना मत।
एक बात आज तक मुझे समझ में नहीं आई की लोगों में माता, बालाजी, भुत-प्रेत आते है, मरे हुए इंसान बोलते है। अरे, मैं पूछता हूं इन लोगों में भगत सिंह क्यों नहीं आते, चंद्रशेखर आजाद क्यों नहीं आते, लक्ष्मीबाई क्यों नहीं आती।
यकीन मानिए जिस दिन वे लोग मेरे देश के लोगों में अंग लग गए उस दिन मेरे देश, मेरी भारत मां की तरफ कोई आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं करेगा।
मंजिलें मिल ही जाती है भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं।
एक आखरी बात में आप सभी से कहना चाहता हूं, अगर पीठ पीछे कभी आपकी बात चले तो घबराना मत क्योंकि बात उन्हीं की होती है जिनमें कोई बात होती और बात भी वही मनवाता है जिसमें कोई बात होती है।
शहीद दिवस पर शायरी
हर तूफान को मोड़ दूंगा,
जो मेरे देश से टकराएगा,
चाहे मेरा सीना हो छलनी,
मेरे देश के तिरंगे को कभी झुकने नहीं दूंगा।
धन्य है वे माता-पिता जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने युवावस्था में ही अपनी जिंदगी देश के लिए न्योछावर कर दी और अपने देश के प्रति देश भक्ति की मिसाल पेश की।
कभी तपती हुई धूप में जलकर देख लेना, कभी कड़ाके की ठंड में ठिठुर कर देख लेना, कैसे होती है हिफाज़त अपने देश की, जरा सरहद पर जाकर देख लेना।
अगर यह शहीद दिवस भाषण आपमें अपने देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा करे तो मुझे गर्व महसूस होगा। मैं अपने देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों को सलाम करता हूँ। जय हिन्द जय भारत।
शहीद दिवस उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए भाषण और वार्ता आदि का आयोजन किया जाता है। यहाँ हम उनके लिए शहीद दिवस पर भाषण शेयर कर रहे है जो शहादत के मायने समझता है और जिन्हें देश के प्रति प्यार है
धन्य हैं वीर भगत सिंह। उन जैसे शहीदों के त्याग से ही भारत को आज़ादी मिल सकी। मरने के बाद भी वे अमर हैं। हम उन्हें सदैव याद करते रहेंगे।
भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान दे दी। इसीलिए उन्हें शहीद भगत सिंह कहा जाता है।
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Shaheed Diwas Martyrs' Day 2020 Date in India, History, Quotes, Status, Images in Hindi: Why Saheed Diwas is celebrated on 23 March in India? Know History Here - Shaheed Diwas 2020: 23 मार्च को ही क्यों मनाते हैं शहीद दिवस, जानिए इस दिन का इतिहास और महत्व
Shaheed Diwas Martyrs’ Day 2020 Date in India, History, Quotes, Status, Images in Hindi: Why Saheed Diwas is celebrated on 23 March in India? Know History Here – Shaheed Diwas 2020: 23 मार्च को ही क्यों मनाते हैं शहीद दिवस, जानिए इस दिन का इतिहास और महत्व
Martyrs’ Day (Shaheed Diwas) Date in India 2020:शहीद दिवस यानि कि एक ऐसा दिन जब पूरा देश इसकी रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले शहीदों को नमन कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। भारत में शहीद दिवस 2 दिन मनाया जाता है। पहला 30 जनवरी और दूसरी बार 23 मार्च को हम अपनी जान की परवाह किए बगैर देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों को याद करते हैं। 30 जनवरी को महात्मा गांधी और दूसरे स्वतंत्रता…
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Martyrs Day 2020 शहीद दिवस Shradhanjali Shaheed Diwas 2020 wikipedia Date in Hindi
Martyrs Day 2020 शहीद दिवस Shradhanjali Shaheed Diwas 2020 wikipedia Date in Hindi
Shaheed Diwas 2020 Date In India Martyrs Day 2020 Shradhanjali Diwas Shaheed Diwas Wikipedia In Hindi 30 जनवरी को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस? : देश की आजादी के लिए शहीद हुए वीर जवानो को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष शहीद दिवस Martyrs Day Shradhanjali Diwasमनाया जाता है | भारत में कई तिथियाँ जैसे जनवरी, फरवरी, मार्च, मई, अक्टूबर, नवम्बर शहीद दिवस के रूप में मनाई जातीं हैं |…
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शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है?(Why and when do celebrate Martyrs'Day?)
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क्या आपको पता है,शहीद दिवस क्यों मनाते हैं? क्या आपने कभी सोचा इसके बारे में। अगर नहीं तो इस लेख को पूरा पढ़ें। हम लेख मे जानेंगे कि , शहीद दिवस क्यों और कब मनाया जाता है। चलिए तो अब हम शहीद दिवस के बारे में पूरी जानकारी आपको देते हैं।
शहीद दिवस को अंग्रेजी में Martyrs' day बोला जाता है
शहीद दिवस हम अपने उन शहीदों को श्रद्धांजलि प्रदान करते हैं जो अपने देश के हिफाजत के लिए अपने जान गवा बैठे हैं, या वह अपने देश के लिए शहीद हो गए। शहीद दिवस के दिन शिक्षा केंद्र जैसे स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय हाथी में उस दिन राष्ट्रीय गान बजाया जाता है और 1-2 मिनट तक मौन धारण करके अपने शहीदों को याद करते हैं। देखा जाए तो हमारे शहीद हमारे देश के लिए जो कि वह बेहद काबिले तारीफ है क्योंकि उन्हीं के वजह से हम चैन की नींद सो पाते हैं। इसलिए हम सब भारतीयों के लिए शहीद दिवस बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होता है ,और शहीद दिवस को हम सब भारतीय को शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहिए और उन शहीदों के कुछ गुण को भी अपने अंदर लाना चाहिए।
शहीद दिवस क्या है?(What is Martyrs' day?)
हर साल हम शहीद दिवस में अपने बहादुर शहीदों अपने देश के लिए अपनी जान बलिदान कर दिए हैं, उसम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। क्या आपको पता है कि भारत में शहीद दिवस अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से दो तिथियां देशभर में अधिक जानी जाती है और मनाई जाती है।
15 देश में से भारत एक ऐसा देश है, जो हर साल शहीद दिवस मनाता है। इसका कारण यह है, कि हम अपने शहीद बहादुर नेताओं और सैनिकों को भूल नहीं सकते हैं जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और हमारे देश को आजाद किए ब्रिटिश के चंगुल से। इसलिए भारत अपने शहीद और बहादुर नेताओं और सैनिकों को श्रद्धांजलि प्रदान करने के लिए शहीद दिवस को मनाता है
शहीद दिवस कब कब मनाते हैं
पहला शहीद दिवस , पूरे भारत में 30 जनवरी को बनाया जाता है जबकि दूसरे शहीद दिवस 23 मार्च को बनाया जाता है।
दोनों के अलग-अलग कारण है की एक शहीद दिवस 30 जनवरी को और दूसरा 23 मार्च को मनाया जाता है यह तो हम एक-एक करके दोनों दिनांक के बारे में जानते हैं
30 जनवरी को महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ,और स्वतंत्रता नेताओं के लिए मनाया जाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और अपनी जान बलिदान कर दिए
23 मार्च को शहीद दिवस हमारे 3 राष्ट्र के नेताओं के लिए मनाया जाता है भगत सिंह , शिवराम गुरुजी , सुखदेव थापर।
एक-एक करके दोनों के बारे में हम विस्तार से जानते हैं।
30 जनवरी को शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है?
राष्ट्रपिता गांधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को उसी शाम प्रार्थना के दौरान नाथूराम गोडसे नहीं की थी। गांधीजी एक स्वतंत्र सेनानी विशाल दृढ़ संकल्प वाले एक सरल व्यक्ति और एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता में बहुत सारे बलिदान दिए हैं।
नाथूराम गोडसे गांधी जी को पकड़ कर अपने अपराध को सही ठहराने की कोशिश कर रहे था और कह रहे थे कि वह देश के विभाजन और सग्राम हजारों लोगों की हत्या के जिम्मेदार हैंऔर उन्होंने आखिरी वक्त में महात्मा गांधी को ढोंगी कहा और किसी भी तरह अपने अपराध के लिए दोषी नहीं माने।और 8 नवंबर को गोडसे की मौत की सजा सुनाई गई इसलिए इस दिन यानी 30 जनवरी को बापू के अंतिम सांस ली और शहीद हो गए भारत सरकार ने इस दिन को शहीद दिवस के रूप में घोषित कर दिया।
23 मार्च को शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है?
मार्च को भारत के तीन नायक नेताओं को फांसी में लटका दिया गया था जो कि एक भगत सिंह शिवराम गुरुजी और सुखदेव थापर थेतुमने कोई शक नहीं कि उन्होंने हमारे राष्ट्र के खलियान के लिए अपने जीवन के बलिदान कर दिए । हम सब की उम्र कम थी और वह सब एक ऐसे नेता बन गए थे जिससे कि अंग्रेजों को डर था कि उन्हें भारत कहीं छोड़ना ना पड़ जाए । वे तीनों भारत के बहादुर क्रांतिकारी थे और उन्होंने देश के लिए बहुत सारे योगदान दिए और अंतिम में अपनी जान गवा बैठे।
भगत सिंह और उनके साथियों के बारे में कुछ जानकारी
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1960 में पंजाब के लाइव पुर मेंहुआ में हुआ था । भगत सिंह ने अपने साथ ही राजगुरु सुखदेव आजाद और गोपाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की हत्या के लिए लड़ाई लड़े और देश के लिए बहादुर नेता के रूप में बन गए।उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को अपने साथियों के साथ इंकलाब जिंदाबाद के नारे को पढ़कर केंद्रीय विधानसभा पर बम फेंके और इनके लिए उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया गया, और 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
यही सब कारणों से 23 मार्च को स्वतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है
पूरे देश में शहीद दिवस कैसे मनाते हैं
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री 30 जनवरी को महात्मा गांधी समाधि राजघाट महात्मा गांधी की प्रतिमा पर फूलों की माला पहनाकर सम्मान पाने के लिए एकत्र होते हैं शहीद के सामने सशस्त्र बल के जवानों और अंतर सेवा दुखियों द्वारा सामान्य जनक साल्मी भी क जाती है
देशभर में राष्ट्रपति बापू और अन्य शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन किया जाता है भारत तरह शहीद दिवस मनाया जाता है।
मुझे उम्मीद है कि आप को मेरे याह लेख स
शहीद दिवस क्यों मनाते हैं ज्यादा से ज्यादा पसंद आया होगा और मेरी कोशिश रहेगी कि आप लोगों को ऐसी ऐसी जानकारी देते रहू। कमेंट करके बताएं लेख कैसा लगा।
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