#व्रत-त्योहार 2023
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Dev Diwali - Kartik Purnima 2023: देव दिवाली पर शिव योग का होगा निर्माण इसका शिव से है गहरा संबंध होगा हर समस्या का समाधान
Dev Deepawali 2023: कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है. ये दिवाली देवताओं को समर्पित है, इसका शिव जी से गहरा संबंध है. इस दिन धरती पर आते हैं देवतागण कार्तिक पूर्णिमा का दिन कार्तिक माह का आखिरी दिन होता है. इसी दिन देशभर में देव देवाली भी मनाई जाती है लेकिन इस बार पंचांग के भेद के कारण देव दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, स्नान 27 नवंबर 2023 को है. देव दिवाली यानी देवता की दीपावली. इस दिन सुबह गंगा स्नान और शाम को घाट पर दीपदान किया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा पर 'शिव' योग का हो रहा है निर्माण, हर समस्या का होगा समाधान |
देव दिवाली तिथि और समय
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 26 नवंबर 2023 - 03:53
पूर्णिमा तिथि समापन - 27 नवंबर, 2023 - 02:45
देव दीपावली मुहूर्त - शाम 05:08 बजे से शाम 07:47 बजे तक
पूजन अवधि - 02 घण्टे 39 मिनट्स
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ शंकराय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ श्री रुद्राय नमः
ॐ नील कंठाय नमः
देव दिवाली का महत्व
देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। इस पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।
इस शुभ दिन पर, गंगा घाटों पर उत्सव मनाया जाता है और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री देव दिवाली मनाने के लिए इस स्थान पर आते हैं और एक दीया जलाकर गंगा नदी में छोड़ देते हैं। इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट और मंदिर दीयों की रोशनी से जगमग होते हैं. काशी में देव दिवाली की रौनक खास होती है.
Dev diwali Katha : देव दिवाली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की ��ृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया.
ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर को वरदान दिया कि जब निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में में होगी और असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर का आतंक बढ़ गया. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया.
काशी से देव दिवाली का संबंध एवं त्रिपुरासुर का वध:
शास्त्रों के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा था, जिससे ऋषि-मुनियों के साथ देवता भी काफी परेशान हो गए थे। ऐसे में सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा। पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध कर दिया था और फिर सभी देवी-देवता खुशी होकर काशी पहुंचे थे। तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. जहां जाकर उन्होंने दीप प्रज्वलित करके खुशी मनाई थी। इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप ��ान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.
पूजन विधि
देव दीपावली की शाम को प्रदोष काल में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 दीपकों में घी या फिर सरसों के भर दें। इसके बाद नदी के घाट में जाकर देवी-देवताओं का स्मरण करें। फिर दीपक में सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, फूल, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद दीपक जला दें। इसके बाद आप चाहे, तो नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं।
देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। हो सके,तो गंगा स्नान करें। अगर आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें। ऐसा करने से गंगा स्नान करने के बराबर फलों की प्राप्ति होगी। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, अक्षत, लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव के साथ अन्य देवी देवता पूजा करें। भगवान शिव को फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, बेलपत्र चढ़ाने के साथ भोग लाएं। अंत में घी का दीपक और धूर जलाकर चालीसा, स��तुत, मंत्र का पाठ करके विधिवत आरती कर लें।
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Hindu Panchang: June 17, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 17, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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Calendar 2024 | हिन्दू कैलेंडर 2023 | Hindu Calendar 2024
Calendar 2024 covers the months from January 2024 throughout December 2024, along with the corresponding Hindi tithi, Month, Vrat, and Festivals. कैलेंडर 2024 में, जनवरी 2024 से लेकर दिसंबर 2024 तक के अंग्रेज़ी महीनों के साथ-साथ संबंधित हिन्दी पंचांग के 12 मास, हिन्दी तिथि, व्रत और त्योहार शामिल हैं। Hindu Calendar 2024 नोट: 🌔 शुक्लपक्ष एकादशी, 🌕 पूर्णिमा, ☾ कृष्णपक्ष एकादशी, 🌑 अमावस्या, 🌙 चंद्र…
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Karva Chauth 2023: तिथि, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय, विधि
Karva Chauth 2023 : करवा चौथ 2023: तिथि (puja time), शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व, कथा, सरगी, जानिए आपके शहर में चंद्रोदय का समय (moon time) ??
करवा चौथ(Karva Chauth 2023) हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह एक प्रमुख पर्व है जो विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु और सुरक्षा की कामना करती हैं। इस व्रत में महिलाएं करवा चौथ की पूजा और उपवास करती हैं तथा चंद्रमा के दर्शन के बाद ही उपवास को खोलती हैं। यह पर्व हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान आदि राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की पूजा के शुभ मुहूर्त
Karva Chauth 2023: करवा चौथ के उपवास के लाभ
करवा चौथ का व्रत रखने से महिलाओं को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (puja time) को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023, बुधवार को रखा जाएगा।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय
करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय स्थान के अनुसार अलग-अलग होता है। कुछ प्रमुख शहरों में चंद्रोदय का समय (moon time) निम्नलिखित है:
करवा चौथ की पूजा विधि
करवा चौथ की पूजा विधि निम्नलिखित है:
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ एक हिंदू त्योहार है जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। चंद्रोदय के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ के महत्व के बारे में कुछ विशेष बातें
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती है। कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है । इस साल एक नवंबर को करवा चौथ का व्रत रखा जा रहा है । दरअसल, इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर एक नवंबर रात 9 बजकर 19 मिनट तक है । ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ का व्रत बुधवार यानि 1 नवंबर को रखा जायेगा।
1 नवंबर को चन्द्रमाम(MOON) अपनी उच्च राशि वृषभ में होंगे। इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में हैं। सूर्य और बुध बुधादित्य योग बना रहे हैं तो मंगल और सूर्य मिलकर मंगलादित्य योग बना रहे हैं। शनि भी 30 साल बाद अपनी मूलत्रिकोण राशि कुंभ में योग बना रहे हैं। इस दिन शिवयोग मृगशिरा नक्षत्र और बुधादित्य योग का संगम रहेगा। शिव योग शिव को समर्पित, मृगशिरा नक्षत्र मंगल को समर्पित, बुधादित्य योग यश और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। इन योगों से पर्व का महत्व हजारों गुना बढ़ गया है।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ का महात्म्य
छांदोग्य उप��िषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।
महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ (Karva Chauth) का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।
सरगी का महत्त्व
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।
महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। वैसे अलग अलग क्षेत्र में ये पूजा अलग अलग विधि विधान से की जाती है । कहीं कहीं इसे गणेश चौथ के नाम से भी मनाया जाता है ।
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं । आइए जानते कुछ प्रमुख कथाओं के बारे में –
प्रथम कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन ��हुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ (Karva Chauth) का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य द��ने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ? करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख ��ाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसक�� पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
Karva Chauth 2023: करवाचौथ की द्वितीय कथा
इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की तृतीय कथा
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।
Karva Chauth 2023: करवाचौथ की चौथी कथा
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रौपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।
पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या ��िट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।
एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।
पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (Karva Chauth) 1 नवम्बर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:35 से 06:55 बजे तक।
चंद्रोदय- 20:06 मिनट पर।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - 31 अक्टूबर को रात्रि 09:30 बजे से।
चतुर्थी तिथि समाप्त - 01 नवम्बर को रात्रि 09:19 बजे।
इस साल 13 घंटे 26 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से शाम 08 बजकर 06 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।
करवा चौथ के दिन चन्द��र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:07 बजे से 8:55 तक है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।
चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर ��ें सुख व शांति आती है।
"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"
इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।
सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय
मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।
वृषभ राशि - वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी।
मिथुन राशि - इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।
कर्क राशि - कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा।
सिंह राशि - करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है।
कन्या राशि - कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।
तुला राशि - इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा।
वृश्चिक राशि - इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा।
धनु राशि - इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।
मकर राशि - मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी।
कुंभ राशि - ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी।
मीन राशि - इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।
समापन
करवा चौथ का यह पर्व सामाजिक एकता और परंपरा का प्रतीक है। इस विशेष दिन पर, हम सभी महिलाएं अपने पति की खुशियों की कामना करती हैं और उनके साथ विशेष रूप से समय बिताती हैं। इसके अलावा, यह एक विशेष अवसर है जब हम समाज में एक साथ आकर्षित होते हैं और परंपरा का महत्व समझते हैं। इस करवा चौथ पर, हम सभी को खुशियों और समृद्धि की कामना है, और हम साथ हैं इस खास पर्व को और ��ी खास बनाने के लिए।
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) की सभी महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं। आप सभी के पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करता हूं।
ये भी पढ़ें: history of muharram, date of muharram मुहर्रम 2023 इतिहास और महत्व
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करवा चौथ 2023: करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं द्वारा अपने पति के लंबी उम्र के लिए किया जाता है। वहीं अब कई पति भी अपनी पत्नियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखते हैं। इस साल करवा चौथ का यह व्रत 01 नवंबर बुधवार के दिन रखा जाएगा। करवा चौथ का व्रत महिलायें अपनी पतियों के लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह त्योहार हर साल मनाया जाता है। इस दिन महिलायें दिनभर बिना अन्न और जल के व्रत रखी हैं और शाम को छलनी से चांद को देखकर (Karwa Chauth Moonrise Time) अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन सुहागिनों को चांद के दीदार का बेसब्री से इंतजार रहता है। अगर हम बात करें करवा चौथ पूजा की मुहूर्त (Karwa Chauth 2023 Shubh Muhurat) और चंद्रोदय के समय (Karwa Chauth Chand kab Niklega) के बारे में तो इस बार करवा चौथ पूजा मुहूर्त - शाम 06:05 बजे से शाम 07:21 बजे तक है। तो वहीं, करवा चौथ व्रत का समय - सुबह 06:39 बजे से रात 08:59 बजे तक रहेगा। इसके अलावा चंद्रोदय का समय - रात्रि 08:59 बजे
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Chhath Puja 2023: छठ पूजा, जिसे सूर्य देव को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार माना जाता है, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में चार दिवसीय त्योहार के रूप में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार कार्तिक महीने में आता है, जो अक्टूबर या नवंबर में आता है।
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Monthly Vrat Tyohar October 2023 : अक्टूबर में मनाए जाएंगे ये प्रमुख त्योहार, देखें आने वाले व्रत त्योहारों की लिस्ट
मासिक व्रत त्यौहार अक्टूबर 2023: अक्टूबर महीने में कई बड़े त्योहार मनाए जाने वाले हैं। अंग्रेजी कैलेंडर का दसवां महीना अक्टूबर जल्द ही शुरू होने वाला है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह महीना बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है। अक्टूबर माह में प्रदोष व्रत, एकादशी व्रत, सारदा जैसे कई त्योहार आ रहे हैं। हर त्यौहार का अपना-अपना महत्व होता है। 29 सितंबर से अंतिम संस्कार शुरू हो गए हैं. आइए जानते हैं अक्टूबर महीने…
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छठ पूजा 2023: शुभ मुहूर्त (Date), महत्व और सामग्री
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विविध सांस्कृतिक विरासत और उत्सवों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहाँ, हर एक त्योहार बड़े अनोखे तरीके से मनाया जिसके कारण दुनिया भर से लोग यहां त्योहारों को देखने आते हैं। इन्हीं अनोखे त्योहारों में से एक त्योहार है "छठ पूजा"। छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे उत्तर भारत के कई राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस ब्लॉग से आप जानेंगे छठ पूजा का महत्व, उसके तौर तरीके एवं पूजा की विधी और सामग्���ी।
छठ पूजा कब है:
छठ पूजा हर साल शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह पूजा चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) और कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर) के बीच दो बार मनाई जाती है। पहली बार छठ पूजा चैत्र मास में छठ तिथि को मनाई जाती है, जिसे "छठ छई" कहा जाता है। दूसरी बार यह पूजा कार्तिक मास में कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जिसे "खराग छठ" कहा जाता है। इन दोनों अवसरों पर, लोग सूर्यकुंड (पूर्व) या कोषी नदी (पश्चिम) के किनारे जाकर छठ पूजा करते हैं।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है:
छठ पूजा का महत्व पौराणिक समय से चला आ रहा है, जिसमें सूर्यदेव की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यदेव की प्रसन्नता प्राप्त करना और उनकी शक्ति और सौभाग्य की वृद्धि की आशा होती है। छठ पूजा के दौरान, माँ छठी महागौरी और सूर्यदेव का व्रत रखा जाता है, जिसमें व्रती निर्जल सूर्यदेव का पूजन करती है ।
छठ पूजा सामग्री:
छठ पूजा के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस उत्सव को पूर्ण बनाती है। यहाँ हम छठ पूजा के सामग्री की एक सूची प्रस्तुत कर रहे हैं:
पूरे परिवार को नए कपड़े पहनने चाहिए, खासकर व्रत करने वाले व्यक्ति को।
छठ पूजा अर्थात दउरी में प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी टोकरियाँ।
सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल से बने बर्तन का उपयोग करना चाहिए।
दूध और गंगाजल के अर्घ्य के लिए एक गिलास, लोटा और थाली सेट होना चाहिए।
नारियल जिस्में जल भरा हुआ हो
पाँच पत्तेदार गन्ने के तने
चावल
बारह दीपक या दीये
रोशनी, कुमकुम और अगरबत्ती
सिन्दूर
एक केले का पत्ता
केला, सेब, सिंघाड़ा, हल्दी, मूली और अदरक के पौधे, शकरकंद और सुथनी (रतालू प्रजाति)
सुपारी
शहद और मिठाई
गुड़ (छठी मैया को प्रसाद बनाने के लिए चीनी की जगह गुड़ का उपयोग किया जाता है)
गेहूं और चावल का आटा
गंगाजल और दूध
ठेकुआ
छठ पूजा के दौरान, व्रती एक बांस की टोकरी में छठी महागौरी की मूर्ति ऱखकर उनकी पूजा करती हैं। इस त्यौहार में ख़ासतौर पर चावल, दलिया, चना, गुड़, और दूध का उपयोग किया जाता है। इन सामग्रियों से वे व्रत के दौरान भोजन बनाते हैं। छठ पूजा के दौरान घर को सजाने के लिए खास रूप से फूल, दीपक, और रंगों का उपयोग किया जाता है। घर को सजाने का उद्देश्य पूजा का माहौल बनाना होता है। छठ पूजा के दौरान, व्रती को भोजन बनाने और सूर्यदेव का पूजन करने के लिए बर्तन और छलना की आवश्यकता होती है।
छठ पूजा के दौरान, व्रती विशेष रूप से लकड़ी का उपयोग करती हैं जिनसे वे सूर्यदेव के पूजन के लिए झूला बनाती हैं। छठ पूजा के इन सामग्रियों का सवाल समय के साथ बदलता है, लेकिन इनका महत्व हमेशा बरकरार रहता है। यह पूजा न केवल एक ��ार्मिक अद्वितीयता है, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक अद्वितीयता भी है जो हमारे समृद्ध और भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।
छठ पूजा विधि:
दिन 1: नहाय खाय (छठ पूजा शुरू)
पहले दिन, भक्त उषा काल के पहले सूर्योदय से पहले, नदी या जलस्रोत में स्नान करते हैं। स्नान के बाद, वे घर लौटकर खुद के लिए एक विशेष भोजन तैयार करते हैं, जिसमें चावल, दाल (लेंटिल्स), और कद्दू शामिल होते हैं। इस भोजन को सूर्य देव को चढ़ाया जाता है, और भक्त दिन भर उपवास करते हैं।
दिन 2: लोहंडा और खरना (बिना पानी के व्रत)
दूसरे दिन, भक्त निर्जल उपवास करते हैं। शाम को, वे थेकुआ (गेहूं के आटे और गुड़ से बनी मिठाई) का प्रसाद तैयार करते हैं। सूर्यास्त होने से पहले, वे इस प्रसाद को खाकर उनका उपवास तोड़ते हैं।
दिन 3: संध्या अर्घ्य (सूर्य देव को शाम का अर्घ्य)
भक्त अपनी संध्या की अर्घ्य क्रिया सूर्यास्त के समय करते हैं। वे कमर तक पानी में खड़े होते हैं और फल, थेकुआ, गन्ना, और नारियल का अर्घ्य सूर्य देव को देते हैं।यह आमतौर पर नदी के किनारे, तालाबों, या अन्य जल स्रोतों के किनारे किया जाता है।
दिन 4: उषा अर्घ्य (सूर्य भगवान को सुबह का अर्घ्य)
छठ पूजा के आखिरी दिन पर, भक्त सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय के समय नदी किनारे जाते हैं। वे सूर्योदय के साथ अर्घ्य (पानी के साथ पूजा) करते हैं, साथ में फल और थेकुआ के साथ उपवास तोड़ते हैं
और च्हठ पूजा समाप्त करते हैं ।
प्रसाद ग्रहण करना:
पूजा करने के बाद, भक्त प्रसाद को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करते हैं। प्रसाद को पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच बाँटना शुभ माना जाता है।
छठ कथा:
पूजा के दौरान, भक्त अक्सर छठ कथा पढ़ते हैं, जिसमें छठ मैया (सूर्य देव की पुत्री उषा) और उनकी तपस्या की कहानी सुनाई जाती है।
भारतीय परंपराओं और समृद्ध विरासत के गौरव का जश्न मनाते हुए, प्रभु श्रीराम- इन्सेंस विद अ स्टोरी अनूठी सुगंध तैयार करते हैं। आइए और उन सुगंधों का अनुभव करें जो भारत की कहानियाँ बयान करती हैं।
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गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन 2023 डेट (Ganesh Visarjan 2023 Date) व्रत त्योहार
जन जागृति संगम न्यूज़ http://janjagratisangamindor.blogspot.com/2023/09/2023-ganesh-visarjan-2023-date.html
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जय शनि देव 🙏🌺
चंद्र राशि: मेष (मेष राशि में चंद्र चल रहा है)
वार: शनिवार तिथि: शुक्ल पक्ष, पंचमी मास: आषाढ़ संवत्सर: प्लवंग नक्षत्र: मघा योग: सौभाग्य करण: वणिज
व्रत और त्योहार: कार्तिकेय व्रत
मुहूर्त: आरंभ मुहूर्त: 05:29 AM समाप्ति मुहूर्त: 01:45 PM
राहुकाल: 10:52 AM - 12:29 PM यमघंट काल: 03:44 PM - 05:20 PM गुलिकाकाल: 07:06 AM - 08:42 AM
व्रत काल: कार्तिकेय व्रत प्रारंभ: 05:29 AM कार्तिकेय व्रत समाप्ति: 01:45 PM
सूर्योदय: 05:46 AM सूर्यास्त: 07:19 PM
पंचांग के अनुसार, शनिवार, 07 जुलाई 2023 को आपको कार्तिकेय व्रत का आरंभ होगा। व्रत का प्रारंभ मुहूर्त 05:29 AM पर होगा और समाप्ति मुहूर्त 01:45 PM पर होगी। इस दिन मेष राशि में चंद्र चल रहा है।
विशेष मुहूर्त के राशि के अनुसार, राहुकाल समय 10:52 AM से 12:29 PM तक रहेगा। यमघंट काल 03:44 PM से 05:20 PM तक रहेगा और गुलिकाकाल समय 07:06 AM से 08:42 AM तक रहेगा।
शुभ सूर्योदय समय 05:46 AM है और सूर्यास्त समय 07:19 PM है।
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जय शनि देव 🙏🌺
चंद्र राशि: मेष (मेष राशि में चंद्र चल रहा है)
वार: शनिवार तिथि: शुक्ल पक्ष, पंचमी मास: आषाढ़ संवत्सर: प्लवंग नक्षत्र: मघा योग: सौभाग्य करण: वणिज
व्रत और त्योहार: कार्तिकेय व्रत
मुहूर्त: आरंभ मुहूर्त: 05:29 AM समाप्ति मुहूर्त: 01:45 PM
राहुकाल: 10:52 AM - 12:29 PM यमघंट काल: 03:44 PM - 05:20 PM गुलिकाकाल: 07:06 AM - 08:42 AM
व्रत काल: कार्तिकेय व्रत प्रारंभ: 05:29 AM कार्तिकेय व्रत समाप्ति: 01:45 PM
सूर्योदय: 05:46 AM सूर्यास्त: 07:19 PM
पंचांग के अनुसार, शनिवार, 07 जुलाई 2023 को आपको कार्तिकेय व्रत का आरंभ होगा। व्रत का प्रारंभ मुहूर्त 05:29 AM पर होगा और समाप्ति मुहूर्त 01:45 PM पर होगी। इस दिन मेष राशि में चंद्र चल रहा है।
विशेष मुहूर्त के राशि के अनुसार, राहुकाल समय 10:52 AM से 12:29 PM तक रहेगा। यमघंट काल 03:44 PM से 05:20 PM तक रहेगा और गुलिकाकाल समय 07:06 AM से 08:42 AM तक रहेगा।
शुभ सूर्योदय समय 05:46 AM है और सूर्यास्त समय 07:19 PM है।
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Hindu Panchang: June 16, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 16, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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ज्येष्ठ मास में आने वाले 10 बड़े त्योहार कौन से हैं?
Jyeshtha maas 2023 vrat and tyohar 2023: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष का तीसरा माह ज्येष्ठ माह होता है। इस बार ज्येष्ठ का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 6 मई 2023 से होकर 4 जून तक रहेगा। इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है। इसी माह में नौतपा प्रारंभ होता है। ज्येष्ठ माह में इसीलिए जल का महत्व बढ़ जाता है। आओ जानते हैं इस मास के व्रत एवं त्योहारों की एक लिस्ट। 10 बड़े व्रत और त्योहार :- अचला…
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Chaitra Navratri 2023 Vrat Niyam Salt Not Considered Edible During Navratri Fasting You Can Use Rock Salt
Chaitra Navratri 2023 Vrat Niyam: चैत्र नवरात्रि का व्रत शुरू हो चुका है. बुधवार 22 मार्च 2023 से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है. नवरात्रि को हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है. इसमें मां भवगती की विशेष अराधना की जाती है और नौ दिनों तक नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. साथ ही नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक व्रत रखने का भी विधान है. नवरात्रि में भक्त माता रानी को प्रसन्न कर उनका…
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*होली त्योहार 2023*
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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#हम_सबका_स्वाभिमान_है_मोदी
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#yogi
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#rajasthan
#hinduism
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
*महत्वपूर्ण जानकारी*
होली और होलिका दहन 2023
बुधवार, 08 मार्च 2023
होलिका दहन मुहूर्त - मंगलवार, 07 मार्च 2023, समय 06:29 अपराह्न से 08:54 अपराह्न तक
पूर्णिमा तिथि शुरू - 06 मार्च 2023 अपराह्न 04:17 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 07 मार्च 2023 अपराह्न 06:09 बजे*
होली स्पेशल भोग और प्रसाद
होली वसंत ऋतु ���ें मनाया जाने वाला रंगों का एक त्योहार है। यह एक प्राचीन हिंदू धार्मिक उत्सव है और कभी-कभी इस त्योहार को प्यार का त्योहार भी कहा जाता है।
यह मुख्यतः भारत, नेपाल और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में मुख्य रूप से भारतीय मूल के लोगों के बीच मनाया जाता है। यह त्यौहार यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। यह प्रेम, उल्लास और रंगों का एक वसंत उत्सव है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। उत्साह का यह त्योहार फाल्गुन मास (फरवरी व मार्च) के अंतिम पूर्णिमा के अवसर पर उल्लास के साथ मनाया जाता है।
त्योहार का एक धार्मिक उद्देश्य भी है, जो प्रतीकात्मक रूप से होलिका की किंवदंती के द्वारा बताया गया है। होली से एक रात पहले होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन (होलिका के जलने) के रूप में जाना जाता है। लोग आग के पास इकट्ठा होते है नृत्य और लोक गीत गाते हैं। अगले दिन, होली का त्योहार मनाया जाता जिसे संस्कृत में धुलेंडी के रूप में जाना जाता हैै। रंगों का उत्सव आनंदोत्सव शुरू करता है, जहां हर कोई खेलता है, सूखा पाउडर रंग और रंगीन पानी के साथ एक दूसरे का पीछा करते है और रंग लगाते है। कुछ लोग पानी के पिचकारी और रंगीन पानी से भरा गुब्बारे लेते हैं और दूसरों पर फेंक देते हैं और उन्हें रंग देते हैं। बच्चे और एक दूसरे पर युवाओं स्प्रे रंग, बड़े एक-दूसरे के चेहरे पर सूखी रंग का पाउडर गुलाल लगाते है। आगंतुकों को पहले रंगों से रंगा जाता है, फिर होली के व्यंजनों, डेसर्ट और पेय जल परोसा जाता है।
यह त्यौहार सर्दियों के अंत के साथ वसंत के आने का भी प्रतीक है। कई लोगों के लिए यह ऐसा समय होता है जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और संचित भावनात्मक दोष समाप्त करके अपने संबंधों को सुधारने के लिए लाता है।
होलिका दहन की तरह, कामा दहानाम भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इन भागों में रंगों का त्योहार रंगपंचमी कहलाता है, और पंचमी (पूर्णिमा) के बाद पांचवें दिन होता है।
*क्यो मनाया जाता है होली त्योहार*
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यक्श्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अभिमान में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यक्श्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यक्श्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने विष्णु की भक्ति नही छोड़ी। हिरण्यक्श्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यक्श्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहा जाता है।
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।
रंगों का त्यौहार होली भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन को धुलंडी कहते है इस दिन एक दूसरे को गुलाल अबीर लगाते हैं। होली क्यों मनाई जाती है इस संदर्भ में पुराणों में अनेक कथाएं है। जिसमें सबसे प्रमुख विष्णु भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका से सम्बंधित है। आइए जानते है होली से सम्बंधित कुछ कथाएं।
*होली व्रत कथा*
प्रथम कथा – नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया? और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए। होली की कथा के अनुसार जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका। कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार-बार की कोशिशों से नाकम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो उठा। इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। तय हुआ कि प्रह्लाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्निन में स्वाहा कर दिया जाएगा। होलिका अपनी चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी के बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।
दूसरी कथा – एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरान्तर शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इस कथा के आधार पर होली की अग्नि में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
तीसरी कथा – एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। पूतना मनचाहा रूप धारण कर सकती थी। उसने सुंदर रूप धारण कर अनेक शिशुओं को अपना विषाक्त स्तनपान करा मौत के घाट उतार दिया। फिर वह बाल कृष्ण के पास जा पहुंची किंतु कृष्ण उसकी सच्चाई को जानते थे और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध के उपलक्ष में होली मनाई जाने लगी।
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